Tuesday, December 18, 2012

पसंद पसंद की बात शिव को नहीं भाये प्रभात

 
   पसंद पसंद की बात
  शिव को नहीं भाये प्रभात
भोपाल,रमेश कुमार ‘रिपु‘
भाजपा ने आखिर किसके कहने पर,झा का जाप नहीं करने का निर्णय लिया? इस बात को जितनी शिद्दत से प्रभात झा समझ सकते हैं,कोई दूसरा नहीं। प्रदेश के सियासी इतिहास में खासकर भाजपा शासन में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक मुख्यमंत्री को विवश होकर अपना वीटो पावर का इस्तेमाल करना पड़ा। खासकर,अध्यक्ष के लिए। भाजपा हाई कमान को भी शिव के तर्क और बातों को बिना किसी कुतर्क के स्वीकार करना पड़ा। अंत तक प्रभात को शिवराज पता नहीं चलने दिया कि उनकी मंशा क्या है। उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी मीडिया से साफ साफ कह दिया कि प्रभात झा ही अध्यक्ष रहेंगे। इस दौड़ में कोई दूसरा शामिल नहीं। उनके ऐसा कहते ही प्रभात झा के मोबाइल पर बधाई संदेश आना शुरू हो गया। बिहारी बाबू समझ गये कि उनके जख्म में नमक छिड़कने के लिए किस तरह की मीठी राजनीति उनके साथ की गई है। एक तरफ अध्यक्ष की बधाई,दूसरी तरफ उन्हें भीड़ से अलग करके, तमाशा देखने मजा लेने वाले भीड़ में तब्दील हो रहे है। दिल्ली से मन मसोड़कर जब 13 तारीख की टेªन प्रभात ने पकड़ी और तोमर भी,दोनों अलग अलग टेªन से भोपाल पहुंचे,तभी सभी को एहसास हो गया कि पार्टी में झा का जाप अब नहीं होगा।
    भाजपा मामलों के अकेले नीति नियंता सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी तीन दिनों तक भोपाल के सियासी गलियारों में घूमते रहे और वो प्रभात के लिए काम करते रहे। यही बात शिवराज का पसंद नहीं आई। इसलिए भी कि सुरेश की मदद से ही प्रभात दिल्ली के रास्ते से भोपाल पहुंचे थे। ढाई साल में संगठन के ढांचे को जिस तरह बिहारी ताना बना से खड़ा किया और सरकार के समानांतर अपने आप को स्थापित किया,उससे शिव की बंद तीसरी ऑख खुल गई। शिव को प्रभात ने इस बात का एहसास करा दिया कि आप नहीं तो और सही। विधायक, जिला प्रतिनिधि,मंडल अध्यक्ष और सांसदों को घुड़की देने वाले प्रभात ने पार्टी को अपने गिरफ्त में ले लिया। प्रदेश में शिवराज की योजनायें से आम जनता के बीच बढ़ती उनकी लोकप्रियता पर धब्बा लगाने के लिए प्रभात ने पिछले साल गोपनीय चुनावी सर्वे कराया और रिपोर्ट लीक भी करवाया। रिपोर्ट थी कि आज चुनाव हो जाये तो भाजपा 135 स्थानों पर बेहद कमजोर है। यानी लाड़ली लक्ष्मी योजना के दम पर अमेरिका तक लोकप्रिय शिव को यह बताया गया कि उनकी योजना,और लोकप्रियता खोखली है। जमीनी हकीकत यह है कि प्रदेश में भाजपा की स्थिति बेहद खराब है। धैर्यवान शिवराज कुछ बोले नहीं। उनके माथे पर जरा भी शिकन नहीं आई तो प्रभात ने दूसरी चाल चली। विकास यात्रा के जरिये विधायकों की रिपोर्ट मंगवाई,जिसमें बताया गया कि प्रदेश के 65 विधायकों से जनता नाराज है। यानी इतनी सीट भाजपा के हाथ से निकल जायेगी। यह सब शिवराज को परेशान करने के लिए प्रभात ने किया। मीडिया में सुर्खियों की राजनीति के लिए प्रभात ने शिवराज को कई मामले मे निशाने पर लिया। लेकिन जब बात प्रदेश में प्रभात वर्सेस शिवराज होने लगी। आगामी मुख्यमंत्री प्रदेश के प्रभात झा। इसकी शिकायत कई बार दिल्ली जाकर शिवराज ने हाई कमान से की। प्रभात को हाई कमान ने तलब किया। लेकिन वो संगठन को सक्रिय करने की बात कहकर, अपना बाचाव कर लेते थे। लेकिन यह कब तक चलता। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की लगातर अनदेखी और उन्हें तवज्जो नहीं देने की प्रभात की सियासत से कई अपमानित हुए। प्रभात के चलते भाजपा प्रदेष में रंग बदलने लगी। सुर्खियों की सियासत प्रभात करने लगे,जबकि अध्यक्ष का काम होता है,संगठन को मजबूत करना,राजनीति नहीं। अपने पौने तीन साल के कार्यकाल में झा अपने बयान और कार्यप्रणाली को लेकर विपक्ष के निशाने पर अधिक रहे। वहीं तोमर के दामन पर ऐसा कोई धब्बा नहीं लगा। विधानसभा चुनाव के मौके पर शिवराज ऐसे व्यक्ति को अपना सारथी नहीं बनाना चाहते थे,जिससे दिक्कतों का सामना करना पड़ता। इसीलिए सुरेश सोनी की तीन दिनी भोपाल यात्रा को शिवराज ने तवज्जो नहीं दिया। प्रभात को इस बात का एहसास हो गया था कि शिवराज नहीं चाहते कि मै दुबारा अध्यक्ष बनूं,इसलिए उन्होंने सुरेश सोनी को भोपाल बुलाये। यह अलग बात है कि सोनी से प्रभात नहीं मिले और न ही सोनी मिले प्रभात से। यह सब सोची समझी चाल थी। सोनी को जब यह पता चल गया कि शिव की मंशा प्रभात को लेकर अनुकूल नहीं है तो वो भी अपना वीटो पॉवर का इस्तेमाल नहीं किये। जानते थे वीटो पॉवर फिजूल होगा।  
बहरहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पसंद का अध्यक्ष तोमर के बनने पर उन्होने यूं ही नहीं कहा कि कार्यकर्ताओं में विश्वास का संचार उनका मूलमंत्र रहा है। उनके नेतृत्व में पार्टी नई ऊंचाई पर पहुंचेगी। तोमर की स्वीकार्यता को साबित करने उनके नामांकन के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी के साथ पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण पांडे, सत्यनारायण जटिया जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ नई पीढ़ी के लोगों की मौजूदगी इस बात का संकेत है कि तीसरी बार सत्ता तक पहुंचने में सभी साथ साथ हैं।
क्यों जरूरी हुए तोमर
पार्टी का मानना है कि आगामी चुनाव जीतने के लिए हाई प्रोफाइल नहीं, लो प्रोफाइल की राजनीति करने वाले की जरूरत है। ताकि निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक संदेश जाये साथ ही उन्हें यह लगे भी कि उनके बीच का व्यक्ति उनका नेतृत्व कर रहा है। वैसे भी इस मेयार को छूने वाले अन्य नेताओं की अपेक्षा तोमर के मुकाबले कोई और नेता नहीं भी है। मुख्यमंत्री भी संगठन के मामले में तोमर पर ज्यादा भरोसा करते आये हैं। देखा जाये तो कई विषय ऐसे थे, जिन पर शिवराज ने प्रदेश भाजपा नेतृत्व के बजाए, तोमर से विचार विमर्श करना बेहतर समझा। शिवराज को तोमर इसलिए भी पसंद आये कि प्रदेश में पहले से स्ािापित और प्रभावशील होने के बाद भी तोमर ने कभी अपनी हदें पार नहीं की। आपसी भरोसा और तालमेल का आकर्षण उन्हें पुनः एक दूसरे के करीब ले आया। तोमर 2007 में अध्यक्ष बने तब भी केवल संगठन का ही काम देखते रहे,चुनाव के समय और सरकार बनने के बाद भी कभी शिवराज और अपने बीच यह स्थिति पैदा नहीं होने दिया कि मीडिया या फिर पार्टी के लोग कहें कि तोमर वर्सेस शिव। वहीं प्रभात झा मुख्यमंत्री को सेफ करने की रणनीति कम बनाते थे,फिर भी वो खुद को विपक्ष के निशाने से नहीं बचा  पाते थे। विवादों की सूची बेहद लंबी है उनकी विपक्ष के साथ, जो चुनाव के समय पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते थे। शिवराज निर्विवाद व्यक्तित्व वाला अध्यक्ष चाहते थे,इसलिए झा को नापसंद किया।