Thursday, June 13, 2024

नए साथी करेंगे फेवर या दिखाएंगे तेवर

"एनडीए सरकार बनाने में फेवर करने वाले दलों के तेवर स्पीकर के चुनाव तक संयमित रहेगा,इसमें संदेह है। तोल- मोल की सरकार कितने घर चलेगी न मोदी जानते हैं ,न ही नीतिश और न ही चन्द्रबाबू नायडू। मोहन भागवत से लेकर पूरा विपक्ष इंतजार कर रहा है अपने टाइम का।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ सरकार वही।चेहरे वही।मोहरे वही।पासे भी वही हैं। सिर्फ कुछ साथी नए हैं। अब बीजेपी की नहीं, एनडीए की सरकार है। सरकार का नाम बदला है। मजबूरी है। विवशता है। क्यों कि सबको साथ लेकर चलना है। सरकार बनाने में साथ देने वाले साथियों के दम पर मोदी सियासी पहाड़ चढ़ने का मन बनाए हैं। सौ दिन के सियासी एजेंडे का खाका भी खींच लिये हैं। सरकार चल पड़ी है। प्रधान मंत्री मोदी ने इसका संकेत दे दिया है। किसानों को सौगात दी। पीएम किसान सम्मान निधि की 17वीं किस्त जारी की।9.3 करोड़ किसानों को लाभ होगा और करीब बीस हजार करोड़ रुपए बांटे जाएंगे। आवास योजना के तहत 3 करोड़ ग्रामीण और शहरी घरों के निर्माण किये जाएंगे।अभी तक दस वर्षो में कुल 4.21 करोड़ घर बनाये गए हैं। चुनाव में बेरोजगारी मुद्दा छाया रहा। इसलिए रोजगार पर खास ध्यान रहेगा। बुनियादी सवाल - मगर राजनीति के कुछ बुनियादी सवाल हैं। जो 18 जून को सांसदों के शपथ के बाद 20 जून को होने वाले स्पीकर चुनाव में विपक्ष के साथ देश की नज़र है। क्यों कि प्रधान मंत्री मोदी इस बार नए अवतार में हैं। होना भी चाहिए। नए सोच के साथ खड़े हैं । उन्हें सबका साथ चाहिए। और सबका विकास करना है। मोदी के लिए 140 करोड़ लोग परमात्मा का स्वरूप हो सकते हैं। लेकिन, जिन्हें लेकर सियासी पहाड़ चढ़ना है। दूर तक चलना है। क्या वो बीस जून को चलते-चलते ठहर कर नहीं कहेंगे, कि स्पीकर तो हमारा होगा? आप ने बीजेपी सांसदों को गृह मंत्रालाय,वित्त मंत्रालय,रक्षा मंत्रालय,कृषि विभाग,परिवहन मंत्रालय दे दिया। कोई बात नहीं। सभी बड़े और सम्मानीय विभाग बांट लिये। फिर भी हम कुछ नहीं बोले। लेकिन स्पीकर भी आप की ही पार्टी का हो, ऐसा नहीं चलेगा। सियासत की ढाई चाल सिर्फ आप ही नहीं,हम भी चलना जानते हैं। राजनीतिक सीन में इंडिया गठबंधन है ही साथ, अब एनडीए के घटक दलों में नीतीश और चन्द्रबाबू नायडू भी है। इन्हें एनडीए सरकार की फिल्म में मेहमान कलाकार नहीं कह सकते। असली खेला होना बकाया है। राजनीति में कुछ सवाल ऐसे हैं,जिन्हें नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता। उनमें से एक सवाल यह है,कि बीस जून को यदि टीडीपी नेता चन्द्र बाबू नायडू अड़ गए कि स्पीकर हमारी पार्टी से होगा, नीतीश भी यही चाहते हैं। डीटीपी ने स्पीकर का अपना उम्मीदवार उतार दिया, चुनाव करा लेते हैं। ऐसे में टीडीपी के पीछे पूरा इंडिया गठबंधन खड़ा दिखे तो कोई आश्चर्य नहीं। जदयू भी साथ हो तो हैरानी नहीं। ऐसे में बीजेपी का स्पीकर उम्मीदवार चुनाव हार गया तो पूरी एनडीए सरकार एक पल में ताश के पत्ते के महल की तरह ढह जाएगी। चन्द्र बाबू नायडू और नीतिश कुमार दोनों मोदी और अमितशाह के खेल से वाकिफ हैं। दोनों की बिसात को भी जानते हैं। यदि बीजेपी का स्पीकर हुआ तो बीजेपी को 240 से 272 होने में कोई ताकत नहीं है, जो रोक सके। सारा खेल छह माह के भीतर हो जाएगा। उनके पास हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं बचेगा। सवाल यह भी है,कि चन्द्र बाबू नायडू क्या आन्ध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिये जाने की शर्त पर स्पीकर पद से पीछे हट जाएंगे। और हट गए तो इसकी क्या गारंटी है,कि उनकी पार्टी के सांसद टूट कर बीजेपी में शामिल नहीं होंगे। मोदी की गारंटी जनता को मिले या न मिले, मगर बीजेपी को बहुमत मिलने की पूरी संभावना है। पार्टी टूटने का भय - जब किसी पार्टी की सरकार बनती है,तो वैसे भी छोटे- मोटे दल सरकार के साथ बगैर न्यौता दिये मिल जाते हैं। छोटे-छोटे राज्यों के गैर बीजेपी के सांसद मिल ही जाएंगे। वो बाहर से सरकार को समर्थन देने में पीछे नहीं हटेंगे।वो चाहे केन्द्र में एनडीए की सरकार हो या फिर इंडिया गठबंधन की। बीजेपी का स्पीकर होने पर सभी को अपनी पार्टी टूटने का डर है। और कोई ऐसे वक्त का इंतजार नहीं करना चाहता। सभी को वक्त का इंतजार - मंत्रिमंडल के गठन के बाद विभाग बंटवारे को लेकर नाराजगी एनडीए में देखी जा रही है। जाहिर है,बात खुश करने की है। अखिलेश यादव वैसे कह ही चुके हैं,कि यदि किसी को खुश करने से सरकार बनती है,तो हमें खुश करने में कोई दिक्कत नहीं है। जिसे जो विभाग चाहिए ले ले। शरद पवार वक्त का इंतजार कर रहे हैं। वो एनडीए सरकर के गिरने की राह देख रहे हैं। सभी को वक़्त का इंतजार है। एक नाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना के पास सात सांसद है। जिसे प्रधान मंत्री मोदी असली शिवसेना कहते हैं। लेकिन उनकी पार्टी से केवल एक व्यक्ति को मंत्री बनाया गया। जबकि जतिन राम माझी अपनी पार्टी के अकेले सांसद हैं,उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। प्रफुल्ल पटेल पिछली बार कैबिनेट मंत्री थे,इस बार उन्हें राज्य मंत्री बनाए जाने का आफर था। अजीत पवार ने कहा,सरकार चलाने का अनुभव हमारे पास है।हमें फुसलाने की कोशिश न करें। ऐसे नहीं चलेगा। लल्लन सिंह को पशुपालन विभाग मिला है। जबकि इन्हें कोई बड़ा विभाग मिलने की उम्मीद थी। जाहिर सी बात है, कि इनका सियासी अपमान किया गया है। उद्धव ठाकरे कह रहे हैं, पी.एम. के रूप में मोदी पसंद नहीं हैं। नीतिन गडकरी हों तो विचार करेंगे। यानी गुजरात मानुस और मराठा मानुस में टकराहट वाली बात है। दिल्ली अपने अनुरूप यू.पी. में राजनीति करना चाहती है। योगी को हटाना चाहती है।योगी राजनाथ,नीतिन गडकरी,और जेपी नड्डा से भी मिले।25 टिकट अमित शाह ने दिये और सीट नहीं आई तो योगी आदित्यनाथ का इसमें क्या दोष? जबकि महाराष्ट्र बीजेपी के हाथ से निकल गया है। बीजेपी सरकार के अल्पमत होने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी पर निशाना साधा। जिस विचार धारा के पालने में बीजेपी पली, वही अब संघ को आंखें दिखाए,ऐसा नहीं चलेगा। मोहन भागवत ने दो टुक कह दिया। मणिपुर में पिछले कई माह से अशांति का वातावरण है। मगर उसे हल करने कोशिश नहीं की गयी।इसे प्राथमिकता में रखते हुए शांति बहाली का प्रयास किया जाना चाहिए। इस मामले में विपक्ष संसद में भी पूछता रहा,कि प्रधान मंत्री मणिपुर पर खामोश क्यों हैं? एक वर्ष से भी अधिक समय बीत गया, मगर मणिपुर में हिंसा कायम है। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष चल रहा है। अपनी -अपनी चाहत - नीतीश चाहते हैं जब महाराष्ट्र,हरियाणा और झारखंड के चुनाव की घोंषणा हो तो बिहार का भी। वो जानते हैं,अब वोट बीजेपी में स्थानांतरित नहीं हो रहा है बिहार में। पिछले विधान सभा में भी यही हुआ था। विधान सभा चुनाव हो जाने पर वो स्वतंत्र हो जाएंगे। जबकि बिहार में चुनाव अगले साल होना है। नीतीश के मन का नहीं होने पर नाराजगी का ठिकरा भी फूटेगा। वैसे जेडीयू अपनी नाराजगी का संकेत देना शुरू कर दिया है। जेडीयू के प्रवक्ता के. सी. त्यागी ने अग्निवीर और यूनिफार्म सिविल कोड पर सवाल उठा दिए हैं। त्यागी ने साफ- साफ कहा,कि अग्निवीर योजना को लेकर लोगों में नाराजगी है।हमारी पार्टी इस पर विस्तार से चर्चा चाहती है। मुस्लिम आरक्षण खत्म करना,वन नेशन वन इलेक्शन,प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में बदलाव,वक्फ बोर्ड खत्म करना,सीएए का कम्पलीट इम्प्लिमेंटेशन और यूनिफाॅर्म सिविल कोड पर जेडीयू चर्चा चाहती है। टीडीपी भी इन सभी मुद्दों पर बीजेपी के पक्ष में नहीं है। खासकर मुस्लिम आरक्षण,महिला आरक्षण,वक्फ बोर्ड को खत्म करना,प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को खत्म करना। जाहिर सी बात है कि एनडीए सरकार बनाने में फेवर करने वाले दलों के तेवर स्पीकर के चुनाव तक संयमित रहेगा,इसमें संदेह है। तोल- मोल की सरकार कितने घर चलेगी न मोदी जानते हैं ,न ही नीतीश और न ही चन्द्रबाबू नायडू। मोहन भागवत से लेकर पूरा विपक्ष इंतजार कर रहा है, अपने टाइम का।