Saturday, May 25, 2024

संघ से पंगा सस्ता या महंगा,

 


सांस्कृतिक ताकत से सियासी मशीन में तब्दील संघ के क्या बुरे दिन आने वाले हैं? अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं है कहकर जे.पी.नड्डा ने केवल  चौकाया ही नहीं है,बल्कि संकेत दे दिया है, कि पार्टी में अब आदेश नागपुर का नहीं, गुजरात लाॅबी का चलेगा। चार जून को बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो संघ प्रमुख गुजरात लाॅबी को दर्शक दीर्घा में बिठा देंगे और परिणाम उल्टा हुआ तो संघ का वजूद मोदी खत्म कर देंगे।  

-- रमेश कुमार ‘रिपु’
क्या वाकई में मोदी की बीजेपी बदल गयी है! उसकी चाल। उसका चेहरा। उसका चरित्र। और शुचिता अब 2014 जैसी नहीं है। इसीलिए अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं। क्या वाकई में अकेले अपने दम पर बीजेपी इतनी मजबूत हो गयी है,कि उसे संघ की जरूरत नहीं है। इसीलिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने संघ और बीजेपी में अंतर क्या है,इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये साक्षात्कार में देश को बताया। अटल बिहारी बजापेयी के समय बीजेपी को चलाने के लिए संघ की जरूरत थी। क्यों कि उस समय बीजेपी कम सक्षम और छोटी पार्टी हुआ करती थी। आज बीजेपी पहले से अधिक सक्षम है। बीजेपी अपने आप को चलाती है। बीजेपी के नेता अपने कर्तव्य और भूमिकाएं निभाते हैं। संघ एक सास्कृतिक और समाजिक संगठन है। जबकि बीजेपी राजनीतिक पार्टी है। संघ वैचारिक तौर पर काम करता है।हम अपने मामलों को अपने तरीके से संभालते हैं। और राजनीतिक दलों को यही करना चाहिए।

नागपुर के फैसले नहीं चलेंगे-सवाल यह है,कि ऐसा क्या हो गया इन दस सालों में,कि संघ की शाखा से निकली बीजेपी को आज संघ की जरूरत नहीं है।नड्डा ने संघ से पंगा लिया या फिर उन्हें कहा गया,कि संघ को बता दो ‘किंग ऑफ बीजेपी मोदी’ का दौर है। जिसमें बीजेपी को किसी के सहारे की जरूरत नहीं है।नड्डा के बयान पर न अमित शाह कुछ बोले औरे न ही मोदी का कोई बयान आया है। इसका सीधा मतलब है,कि अभी तक जो फैसले नागपुर से लिए जाते थे,वो अब बीजेपी के लिए दिल्ली से लिए जाएंगे।यानी कह सकते हैं,कि कभी डिफरेंट विथ अदर्स का घमंड करने वाली बीजेपी ‘पार्टी विद डिफरेंस’ बन गयी। क्या यह मान लिया जाए कि सांस्कृतिक ताकत से सियासी मशीन में तब्दील संघ के बुरे दिन आने वाले हैं? अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं है कहकर जे.पी.नड्डा ने केवल चौकाया ही नहीं है,बल्कि संकेत दे दिया है कि पार्टी में अब आदेश नागपुर का नहीं गुजरात लाॅबी का चलेगा। चार जून को बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो संघ प्रमुख गुजरात लाॅबी को दर्शक दीर्घा में बिठा देंगे और परिणाम उल्टा हुआ तो संघ का वजूद मोदी खत्म कर देंगे।  

मोदी और मोहन में संवादहीनता - नड्डा के बयान से एक बात साफ है,कि मोदी और मोहन भागवत के बीच मधुर संबंध नहीं हैं। उनके बीच संवाद ठप है। जबकि अभी दो चरण के मतदान होने हैं। यू.पी.महाराष्ट्र ही नहीं,पूरे देश में इस बार संघ ने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। उसने बीजेपी को इस बार के चुनाव में कोई सहयोग नहीं किया। संघ की मदद से बीजेपी को हर चुनाव में दस से पन्द्रह फीसदी वोट का फायदा हो जाया करता था।इस बार संघ की चुप्पी साध लेने की वजह से राहुल गांधी दावा कर रहे हैं,कि मोदी चार जून को पी.एम.नहीं रहेंगे। चार जून को कौन पी.एम.रहेगा या देश को नया पीएम मिलता है,सब कुछ सियासी पर्दे के अंदर है। लेकिन नड्डा के बयान से बीजेपी के अंदर ही हांडी खदबदाने लगी है। शिवराज सिंह चौहान,योगी आदित्यनाथ,नितिन गडकरी,वसुंधरा राजे सिधिया,डाॅ रमन सिंह,राजनाथ और मुख्तार अंसारी आदि की निगाहें चार जून पर टिकी है। यदि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो मोदी की वजह से जो हाशिये में डाल दिये गये हैं,वो सारे मोदी की सियासी रेखा को मिटाने आगे आ जाएंगे।

दो विचारधारायें जन्मी - सन् 1925 में गठित संघ भाजपा की कमान अपने हाथ में रखने के मकसद से हर प्रदेश में संगठन मंत्री का पद देकर अपना एक प्रतिनिधि भेजता आया है। यही संगठन मंत्री धीरे-धीरे माल कमाने वाले नेताओं के रूप में भाजपा को चलाने लगे। तभी से संघ में राजनीति को लेकर दो विचारधाराएं आकार लेने लगी। संघ के लोग बीजेपी में आकर विलासी जीवन जीने लगे। ऐसे लोग वापस संघ में जाना नहीं चाहते।मोदी इस पर लगाम लगाना चाहते हैं। देखा जाए तो संघ स्वयं अपने गठन के सिद्धातों से दूर होता चला गया है। भाजपाइयों और सत्ता लोलुपता वालों पर संघ नकेल नहीं लगाता है। संघ का बीजेपी में पकड़ कमजोर करना चाहते हैं मोदी।पार्टी में कई नेता संगठन से बड़े बनने की कोशिश पहले भी करते आए हैं। यूपी में कल्याण सिंह,राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया,कर्नाटक में येदुरप्पा,मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह,नागपुर में नितिन गडकरी आदि। मोदी मानते हैं कि ऐसे लोगों की वजह से पार्टी को नुकसान होता है। मोदी अपनी शर्त पर काम करते हैं। मोदी की खिलाफत जो करता है,उसे वो किनारे करने में जरा भी देर नहीं करते। संजय जोशी का मामला सभी जानते हैं।
बीजेपी पर संघ का दबदबा रहा है। चाहे चुनाव के दौरान उम्मीदवारों का चयन हो या फिर भाजपा के शीर्ष नेता को बदलने का।मोदी अपनी जिद की करते रहे। मोहन भागवत के अति करीबी नितिन गडकरी से उनका कई विभाग छीन लिया। उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहते थे। सीएजी की रिपोर्ट के बाद एनएचएआई अधिकारी अरेस्ट किये गए। नितिन गडकरी को भी अरेस्ट करके मोदी अपने रास्ते से हटाना चाहते थे।लेकिन मोहन भागवत के दखल पर चुप हो गये। संघ चूंकि शाखाओं पर आधारित संगठन है।जो गांव से लेकर शहर तक फैला हुआ है। इन्हीं से निकल कर बीजेपी के नेता आते हैं। अब शाखाएं सिमट गयी तो बीजेपी के कार्य कर्ता बनने लगे। इससे इंकार नहीं है,कि सत्ता सुख की गोद में बैठने वाले संघ के लोग भाजपा पर निर्भर हैं।

बीजेपी से बड़े मोदी - सन् 1977 में जन संघ का जनता पार्टी में विलय हो गया था। जनता पार्टी छिन्न भिन्न हो गयी थी। तब जनसंघ की नीतियों की कोख से बीजेपी का जन्म हुआ। अटल बिहारी बाजपेयी जैसे शब्दों के जादूगर की अगुआई में बीजेपी ने चलना शुरू किया और सत्ता के मंजिल तक पहुंची। मोदी ने अटल की बीजेपी को एक नयी ऊंचाई तक पहुंचाया। देश की सबसे बड़ी पार्टी बनाया। राममंदिर बनाया। धारा 370 खत्म किया। तीन तालाक खत्म किया। कांग्रेस से लड़ते-लड़ते बीजेपी बीजेपी का कांग्रेसी करण हुआ। जो कुछ बचा था,उसे मोदी ने पूरा कर दिया। जिन कांग्रेसियों को भ्रष्ट नेता कहा जाता था,उन सभी को मोदी ने ई.डी.सीबीआइ और आइ.टी का डर दिखाकर बीजेपी में शामिल कर लिया। आज मोदी बीजेपी से भी बड़े बन गए है।

बीजेपी का नया वोट बैंक - बीजेपी ने संघ के हिन्दुत्ववादी ऐजेंडे से बाहर जाकर सोशल इंजीनियरिंग का एक नया वोट बैंक तैयार कर लिया है। इसलिए नड्डा ने कहा,कि अब भाजपा की मथुरा और काशी के विवादित स्थलों पर मंदिर बनाने की कोई योजना नहीं है। जबकि मोहन भागवत चाहते हैं,केन्द्र में हिन्दूवादी सरकार रहे।और भारत,हिन्दू राष्ट्र बने। चूंकि 2025 में संघ अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। लेकिन मोदी अपनी राह चुनने का फैसला किया है। सन् 2014 में मोदी जब पी.एम.बने वो संघ कार्यालय नहीं गए। जबकि मोहन ने कहा था,यह जीत किसी एक व्यक्ति की नहीं,इसमें लाखों करोड़ों संघ के लोगों का भी योगदान है। सन् 2015 में दिल्ली में मध्यप्रदेश सरकार के मध्याचंल भवन में केन्द्र सरकार के मंत्रियों की तीन दिन तक संघ प्रमुख ने एक -एक करके तलब किया था। भाजपा पर अपने नियंत्रण का प्रदर्शन किया था। मोदी को भी जाना पड़ा था। इसके बाद फिर ऐसी बैठक नहीं हुई। मोदी को यह अच्छा नहीं लगा। उसके बाद से गुजरात लाॅबी ने संघ को तवज्जो देना बंद कर दिया। राम मंदिर उद्घाटन के समय भी मोदी ने मोहन भागवत को पूजा स्थल पर बिठाने की बजाए दर्शक दिर्घा में बिठा दिया था। तत्कालीन सर संघ संचालक गुरु गोलवलकर ने भारतीय जनसंध की स्थापना के बाद 1951 में कहा था,जब तक इसकी जरूरत होगी चलाएंगे। वर्ना बंद कर देंगे। यानी पार्टी को यह अंदेशा था, आगे चलकर इसे बंद करना ही पड़ेगा। और मोदी इसी दिशा में अपना कदम बढ़ा दिये है।
मोदी मोदी कहना होगा - जे.पी.नड्डा के बयान के जरिये गुजरात लाॅबी ने यह संकेत दे दिया है कि बीजेपी में रहना है तो मोदी मोदी कहना होगा। जो लोग दावा कर रहे थे, कि भाजपा में व्यक्ति नहीं संगठन बड़ा है। उन्हें जे.पी.नड्डा के बयान से समझ लेना चाहिए।यह अलग बात है कि पीएम मोदी तमिलनाडु,उत्तराखंड के बाद महाराष्ट्र चुनाव प्रचार करने गए।दूसरे चरण के प्रचार के लिए वर्धा आकर नागपुर में जान बुझकर विश्राम किया। उनसे संघ और बीजेपी के छोटे पदाधिकारी और कार्यकर्ता राजभवन में मिलने गए। मगर नितिन गडकरी और मोहन भागवन नहीं मिले। दोनों का उनसे न मिलना मोदी को नागवार गुजरा। इस घटना का सियासी धमाका होना ही था। और दो चरणों के बकाए चुनाव से पहले जो धमाका गुजरात लाॅबी ने जेपी नड्डा के जरिए किया उससे पूरी बीजेपी स्तब्ध है। चार जून को मोदी का रथ नहीं रूका तो मोहन भागवत चाहकर भी मोदी की जगह किसी और को पी.एम.का दायित्व दे पाएंगे,इसमें संदेह है। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का संघ सरकार्यवाह होसबोले से बंद कमरे में एक घंटे बात करना और भैयाजी जोशी से चालीस मिनट तक बातें करना, कई सियासी संदेहों को जन्म देता है। जाहिर सी बात है शिवराज को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से गुजरात लाॅबी से वो नाराज हैं। वसुंधरा राजे सिधिया भी चार जून के चुनाव परिणाम का इंतजार कर रही है। वसुंधरा राजे सिंधिया सन् 2014 और 2019 में सक्रिय थी,तब बीजेपी को 25 में से 25 सीट राजस्थान में मिली थी। लेकिन इस बार करीब 18 सीटें मिलने का दावा किया जा रहा है। चुनाव परिणाम से पहले वसुंधरा राजे सिंधिया का संघ के ऑफिस और राजभवन पहुंचने से सियासी हलचलें तेज हो गयी हैं। वहीं अमितशाह दावा कर रहे हैं 380 सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी को 270 सीट मिल रही है। वहीं चुनाव आयोग जो बीजेपी के लिए चुनाव लड़ रहा है,उसने हर राज्य में वोट प्रतिशत बढ़ा कर विपक्ष को संशय में डाल दिया है। पिछली बार सीपीएम को कुल एक करोड़ सात लाख वोट मिले थे। चुनाव आयोग ने चार चरण के चुनाव के बाद इतना ही वोट बढ़ा दिया है। ऐसे में बीजेपी का रथ फंसता है या दिल्ली तक पहुंचता है,सबकी निगाहें टिकी है।

फिर संघ किसे आगे करेगा - मोहन भागवत वैसे भी चुनाव से पहले कह चुके हैं,कि केवल मोदी और हिन्दुत्व के भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकता।यदि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो संघ नितिन गडकरी को आगे कर सकता है। और इसका समर्थन योगी,शिवराज,वसुंधरा राजे सिंधिया,डाॅ रमन सिंह आदि करने से पीछे नहीं हटेंगे। मोदी और सघ के बीच तलवार अब खिंच गयी है। देखना यह होगा,कि आधुनिक और राजनीतिक रूप से असरकारी संगठन चार जून के बाद कितना मजबूत है। देश प्रेम की नयी आभा क्या रग दिखाती है।