केन्द्र
में अबकी बार मोदी या फिर बीजेपी की नहीं बल्कि, एनडीए की सरकार होगी।
लेकिन बैसाखियों के सहारे चलने वाली सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी
पहले की तरह ताकतवर नहीं रहेंगे। नितिश के पास बहुत विकल्प हैं।
चंन्द्रबाबू नायडू और नितिश की विचारधारा मोदी से मेल नहीं खाती। इसलिए
हमेशा संशय बना रहेगा सरकार के गिरने का।
- रमेश कुमार ‘रिपु’
अबकी
बार चार सौ पार वाला नारा चार जून की शाम को बूढ़ा हो गया। इसी के साथ मोदी
की राजनीति के चेहरे पर झुर्रियां आ गयी। और उनकी सत्ताई सियासत बैसाखी पर
आ गयी। अपने मन की बात कहने वाले को अब दूसरे के मन की बात सुननी पड़ेगी।
मोदी प्रधान मंत्री बनेंगे या फिर संघ किसी और को आगे करेगा। यह सवाल अभी
दो -चार दिन सियासी गलियारे में दौड़ते रहंगे। वैसे मोदी ने राष्ट्रपति
द्रोपदी मुर्म को इस्तीफा दे दिया है।साथ ही मंत्रिमंडल भंग करने सिफारिश
कर दी है। अब सबकी निगाहें टिकी है कि एनडीए का जो हिस्सा हैं,वो क्या मोदी
को प्रधान मंत्री आसानी से बन जाने देंगेे या फिर बारगनिंग करेंगे?
चंद्रबाबू नायडू और नितिश के हाथ में सत्ता की चाबी है। सबसे बड़ा सवाल यह
है, कि नितिश के साथ मोदी ने जो किया क्या वो भूल जाएंगे? चंन्द्रबाबू
नायडू को जेल में डाल दिया गया था।उनके खिलाफ जीएसटी, इंटेलिजेंस,आईटी,ईडी
सहित कई एजेसियां इसकी जांच कर रही हैं।
गुजरात
लाॅबी की मजबूरी - लोकसभा चुनाव के समय मोदी ने नितिश को मंच में साझा
नहीं किया था। उनका सियासी अपमान खूब किये थे। क्या वो अब जब मोदी की जरूरत
बने हुए है,उनके साथ जाएंगे? चंद्राबाबू नायडू और मोदी की विचार धारा में
भिन्नता है। यही स्थिति नितिश की है। दोनों सेक्यूलर हैं। मोदी इस बार
चुनाव में खुले मंच से मुस्लिमों की खिलाफत किये हैं। वो टोपी पहनते नहीं।
उन्हें मुसलमानों का वोट चाहिए नहीं। वो जातीय गणना के खिलाफ है। मुस्लिम
आरक्षण के खिलाफ हैं। ऐसे में ये दोनों नेता क्या मोदी को प्रधान मंत्री की
शपथ आसनी से ले लेने देंगे। यदि ले भी लिये, तो कितने दिन मोदी प्रधान
मंत्री की कुर्सी में रहेंगे? सबसे बड़ा सवाल यह है, कि गुजरात लाॅबी से
जिसने भी हाथ मिलाया,उसका सियासी वजूद खत्म हो गया। या खत्म करने में कोई
कमी नहीं की गुजरात लाॅबी ने। ऐसा कोई भी नहीं है,जिसे गुजरात लाॅबी ने ठगा
न हो। उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री कुर्सी से हटा दिया। उनकी पार्टी तोड़
दी। उनका सियासी सिंबल छीन लिया। शरद पवार के साथ भी यही हुआ। उनकी पार्टी
तोड़ दी। अजीत पवार को ही असली एनसीपी बना दिया। नवीन पटनायक की आज जो
सियासी हालत हुई,वो गुजरात लाॅबी की वजह से हुई। मोदी ने केजरीवाल और हेमंत
सोरेन को जेल भेज दिया। इंडिया गठबंधन में ऐसा कोई सियासी दल नहीं है,जो
मोदी से प्रताड़ित न हो। ऐसे में इंडिया गठबंधन वाले मोदी का साथ देंगे,इसमे
संदेह है। बीजेपी केा इतनी सीट नहीं मिली कि मोदी प्रधान मंत्री अकेले
अपने दम पर बन सके। मोदी की सोच और विचारधारा नायडू और नितिश सेे मेल नहीं
खाती। ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि नितिश उप प्रधान मंत्री अथवा गृहमंत्री
के पद के साथ ही बिहार में जेडीयू का मुख्यमंत्री बने, इसकी मांग कर सकते
हैं। यदि ऐसा हो भी गया तो मोदी को अपनी विचार धारा और लीडर शिप से अलग
जाकर हर दिन नायडू और नितिश को फोन करके,उनका सियासी हाल चाल पूछना पड़ेगा।
यानी आज के सियासी हालात में नितिश और नायडू किंग मेकर की भूमिका में है।
संघ
की पसंद बदल गयी तो..- मौजूदा सियासी हालात मोदी के पक्ष में नहीं। यदि
बात नहीं बनी तो संघ मोदी को किनारे कर नीतिन गडकरी को आगे कर सकता है।
वैसे भी मोहन भागवत और मोदी में पिछले छह माह से कुछ ज्यादा ही छत्तीस का
सियासी रिश्ता हो गया है। नागपुर में मोदी से मोहन भागवत और गडकरी बुलाने
के बावजूद नहीं मिले। यह बात मोदी को बुरी लगी। और वो वहां से आने के बाद
नड्डा के जरिये कहलवा दिये कि अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं है। बीजेपी
बड़ी पार्टी हो गयी है। बीजेपी अटल के दौर से आगे निकल गयी है। लेकिन चुनाव
परिणाम बता रहे हैं,कि मोदी की बीजेपी,अटल की तरह हो गयी है। उसे भी सियासी
बैसाखी की जरूरत पड़ गयी है।मोदी चट मंगनी पट व्याह चाहते हैं। ताकि संघ को
मौका न मिले। मोदी की बैठक में अमितशाह,राजनाथ सिंह और जेपी नड्डा ही थे।
गडकरी नहीं थी। मोदी फटाफट सरकार बन जाए,इसके फिराक में है। छोटे- छोटे
राज्यों की पार्टी का समर्थन लेना मोदी की विवशता रहेगी। मेघालय,
नागालैण्ड,मिजोरम,मणिपुर आदि राज्य की पार्टियों से अमितशाह और मोदी बात कर
रहे हैं। यदि ये इंडिया गठबंधन के साथ चले गए तो मोदी के बुरे दिन आ
जाएंगे। राफेल कांड,जस्टिस रोया की हत्या कांड,पीएम फंड घोटाला, इलेक्टोरल
बांड,अडानी को बेची गयी संपत्तियां,उद्योगपतियों के माफ किये कर्ज आदि
मामले उठेगें। वैसे इडिया गठबंधन ने दो टुक कह दिया है कि डीएमके के लिए
दरवाजे खुले हैं।
बैसाखी
टूटने का संशय - केन्द्र में अबकी बार मोदी या फिर बीजेपी की नहीं बल्कि
एनडीए की सरकार होगी। लेकिन बैसाखियों के सहारे चलने वाली सरकार के
प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी पहले की तरह ताकतवर नहीं रहेंगे। नितिश के पास
बहुत विकल्प हैं। चंन्द्रबाबू नायडू और नितिश की विचारधारा मोदी से मेल
नहीं खाती। इसलिए हमेशा संशय बना रहेगा सरकार के गिरने का। फ्लोर टेस्ट में
मोदी को विश्वास मत हासिल करना होगा। अपना लोक सभा अध्यक्ष बनाना मोदी को
इस बार कठिन हो सकता है। इतना ही नहीं रेड कारपोरेट पर मोदी को अपनी बैसाखी
देने वालों का रेट ज्यादा रहेगा। वैसे भी नितिश ने छह माह पहले ही कह दिया
था, कि जो 2014 में आए हैं,वो 2024 में नहीं आएंगे। यानी कह सकते हैं कि
अबकी बार मोदी को प्रधान मंत्री बनने के लिए नायडू,नितिश और मोहन भागवत
तीनों की जरूरत है। तेजस्वी यादव की बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि
चचा चार जून के बाद कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।
क्या
भूल जाएंगे - नितिश क्या इस बात को भूल जाएंगे मोदी उनकी पार्टी को तोड़
कर बीजेपी की सरकार बिहार में बनाने जा रहे थे। उनके लोगों को गुजरात लाॅबी
अपने पक्ष में कर लिया था। नितिश को भनक लग गयी और वो राजद प्रमुख लालू
प्रसाद यादव से हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री बन गए। नितिश मोदी को सबक सिखाने
ममता बनर्जी,उद्धव ठाकरे,केजरी वाल,अखिलेश यादव सहित अन्य 28 दलों को एक
मंच पर लाए। इंडिया की नीव की नितिश ने ही रखी थी। यह अलग बात है कि बीते
जनवरी में पाला बदल कर फिर एनडीए में शामिल हो गए। जाहिर है कि उनके लोग
यानी उनकी पार्टी के सारे विधायक मोदी के साथ जाने के पक्ष में नहीं है।
नितिश सेक्यूलर विचारधारा के समर्थक है। लल्लन सिंह और विजेन्द्र प्रसाद का
कहना कि नितिश मोदी के साथ न जाए।
चन्द्रबाबू नायडू
को आठ माह पहले स्किल डेवलपमेंट घोटाले (कोशल विकास मामला) पुलिस ने
हिरासत में ले लिया था। दो महीने तक जेल में थे। आंध्र प्रदेश सरकार ने
स्किल डेवलपमेंट एक्सीलेंस सेंटर की स्थापना के लिए सीमेेंस और डिजाइन टेक
के साथ 3356 करोड़ रुपए का समझौता किया था।समझौते के मुताबिक टेक कंपनी को
इस प्रोजेक्ट में 90 फीसदी हिस्सेदारी वहन करनी थी। लेकिन यह बात आगे नहीं
बढ़ी। आंध्र प्रदेश सरकार ने अपने हिस्से की हिस्सेदारी 371 करोड़ रुपए जारी
कर दिया था। आंध्र की सीआईडी ने कौशल विकास के लिए जारी फंड को दुरूप्रयोग
का आरोप लगाते हुए कहा था,सीमेंसे प्रोजेक्ट की लागत को बढ़ा चढ़ाकर 3300
करोड़ रुपए कर दिया था। पुलिस का कहना था, कि इस प्रोजेक्ट की वास्तविक लागत
58 करोड़ रुपए थी। जीएसटी, इंटेलिजेंस,आईटी,ईडी सहित कई एजेसियां इसकी जांच
कर रही हैं। मोदी के समक्ष नायडू भी कई शर्ते रख सकते हैं।
एक
समय नितिश और नायडू दोनों मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। दोनों
सियासत के मजे उस्ताद हैं। यानी अब मोदी अपनी मनमानी नहीं कर पाएंगे। सत्ता
में जिनकी भागेदारी रहेगी,यदि उनकी नहीं सुनी गयी, तो हाथ खींच कर सरकार
गिरा भी सकते हैं।
ममता दोनों एन से करेंगी बात -
इंडिया गठबंधन का कहना है कि एनडीए घटक दलों के भी दरवाजे खुल हैं। वैसे
शरद पवार नितिश और चंद्रबाबू नायडू से बातें कर रहे हैं। ममता बनर्जी को
राहुल गांधी कहेगे कि वो नायडू और नितिश से बातें करें। इसलिए कि ममता
बनर्जी की इन दोनों नेताओं से पटती है। जयराम रमेश ने चंन्द्रबाबू नायडू
को 2014 में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के उस वायदे को याद दिलाया
जिसमें आन्ध्र प्रदेश को पांच साल तक स्पेशल स्टेटस देने की बात कही गयी
थी। उन्होंने ट्वीट किया, जिसमें चंन्द्र बाबू नायडू यह कह रहे हैं,कि सभी
नेता मोदी से बेहतर हैं। चन्द्रबाबू नायडू ने कहाथा,कि आन्ध्र प्रदेश को
स्पेशल स्टेटस नहीं मिलने की वजह से उन्होंने बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस का
हाथ पकड़ लिया था।
एक सच ऐसा भी - सुबह सबेरे के 18 मई
के अंक में मैंने लिखा था कि अबकी बार अल्पमत सरकार। उसमें जिन बातों का
जिक्र किया था, वो सारी बातें सटीक रही। बहरहाल केन्द्र में नयी सरकार के
गठन तक नित्य कई बयान चौकाने वाले आएंगे। जैसा कि जेडीयू के एलएलसी अनवर
खालिद ने कहा कि नितिश से बेहतर प्रधान मंत्री और कौन हो सकता है? वहीं आम
आदमी पार्टी के नेता गोपाल राय ने नितिश और चन्द्र बाबू नायडू से सही फैसला
लेने की अपील की है। नितिश के 12 सांसद और चन्द्र बाबू नायडू के 16 सांसद
मोदी के साथ नहीं जाते हैं तो एनडीए 264 पर आ जाएगी। अकेले बीजपी की 240
सीट है। यानी उसे 32 सीट और चाहिए। इंडिया गठबंधन के पास 234 सीट है। बैठक
में इंडिया गठबंधन फैसला करेगा कि वो विपक्ष में बैठेगा या फिर कोई खेला
करना चाहिए।