Monday, June 12, 2023

पटरी पर मौत रोकने की सबसे बड़ी चुनौती

"बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाली सरकार के सामने चुनौती है पटरी पर मौत रोकना। अब तक सिर्फ साठ ट्रेनों में ही कवच सिस्टम है। उद्योगपतियों का ग्यारह लाख करोड़ रुपए कर्ज माफ कर देने वाली सरकार कवच सिस्टम के लिए चौतीस हजार करोड़ रुपए खर्च कर दे तो देश में बालासोर जैसी दुर्घटना की पुनरावृति नहीं होगी। जबकि दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा उद्योगपति लेकर देश से भाग गए।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ दो जून को ओड़िसा में जिस ट्रैक पर रेल हादसे में 278 लोगों की जानें गयी अब उसी ट्रैक पर फिर से रेलगाड़ियां चलनी शुरू हो गयी। प्रधान मंत्री ने कहा कि गुनहगार बख्शे नहीं जाएंगे। वहीं रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ओडिशा ट्रिपल ट्रेन हादसा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग और सिग्नल सिस्टम की समस्या की वजह से हुआ है। शाम को कहा रेलवे बोर्ड ने रेल हादसे की सीबीआई जांच की सिफारिश की है। रेलवे बोर्ड की सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने कहा कि साजिश की संभावना से इनकार नहीं किया गया है। जब सब पता है तो फिर सीबीआई जांच क्यों? जाहिर सी बात है लोगों का ध्यान बांटने के लिए ऐसा किया गया है ताकि इस्तीफे की बात न उठे। सवाल यह है कि देश के प्रधान मंत्री वंदेमातरम ट्रेन को हरी झंडी दिखाते आए हैं। देश में करीब पन्द्रह वंदेमातरम ट्रेन अलग-अलग रूट पर चल रही हैं। इस ट्रेन का किराया अन्य ट्रेनो की तुलना में पाँच गुना ज्यादा है। यात्री सफर इस उम्मीद से करता है कि वह सुरक्षित अपने घर पहुंच जाएगा। लेकिन बालासोर की रेल दुर्घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार की गलती से अथवा अनदेखी से रेल दुर्घटना होने पर क्यों ने सरकार को कटघरे पर खड़ा किया जाए। इसलिए भी कि प्रधान मंत्री सारे मंत्रालय के जवाबदारी लेते हैं तो फिर रेल दुर्घटना की क्यों नहीं? इस हादसे की जिम्मेदारी कौन लेगा? अब न अटल जी का और न ही नेहरू का दौर है। कैग की रिपोर्ट की अनदेखी - मोदी सरकार यदि कैग की रिपोर्ट को अमल में लाती तो बालासोर हादसा होता नहीं। रेल्वे बजट में 2023-24 के लिए ढाई लाख करोड़ रुपए का प्रावधान है। लेकिन इस हादसे ने सबका ध्यान रेल मंत्री अश्विनी के 2022 के उस बयान की ओर खींचा है,जिसमें उन्होंने कहा था, रेल कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। इसे ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम कहते हैं। इंजन और पटरियों में लगे इस डिवाइस की मदद से रेल दुर्घटनाएं रोकी जा सकती है। कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेनों के इंजन में कवच लगा होता तो इस हादसे को टाला जा सकता था। देश में करीब एक लाख पन्द्रह हजार किलोमीटर रेल पटरियांँ है। प्रति किलोमीटर कवच सिस्टम पर तीस लाख रुपए खर्चा आएगा। यानी देश में कवच सिस्टम पर चौतीस हजार करोड़ रुपए का खर्चा आएगा। लोगों की जिन्दगी के नजरिये से देखा जाए तो यह बहुत बड़ी राशि नहीं है। बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाली सरकार के सामने चुनौती है पटरी पर मौत रोकना। अब तक सिर्फ साठ ट्रेनों में ही कवच सिस्टम है। उद्योगपतियों का ग्यारह लाख करोड़ रुपए कर्ज माफ कर देने वाली सरकार कवच सिस्टम के लिए चौतीस हजार करोड़ रुपए खर्च कर दे तो देश में बालासोर जैसी दुर्घटना की पुनरावृति नहीं होगी। जबकि दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा उद्योगपति लेकर देश से भाग गए। कोंकण रेलवे के इंजीनियरों ने रेल हादसे रोकने के लिए रक्षा कवच विकसित किया था। सन् 2011 में मनमोहन सरकार के समय लगाने की शुरूआत हो गयी थी। इसे हर रेल नेटवर्क पर लगाने की योजना है। लेकिन काम की गति कछुवा गति जैसी है। सरकार ने अनदेखी की - दिसंबर 2022 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे की व्यवस्था में खामियों की ओर सरकार का ध्यान खींचा था। अप्रैल 2017 से मार्च 2021 के बीच चार सालों में 16 जोनल रेलवे में 1129 डिरेलमेंट की घटनाएं हुईं। यानी हर साल लगभग 282 डिरेलमेंट हुए। इसमें करीब 3296 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। जाहिर है कि ट्रैक का निरीक्षण नहीं होने से डिरेलमेंट होगा। रिपोर्ट कहती है 422 डिरेलमेंट इंजीनियरिंग विभाग की लापरवाही से हुए। 171 मामलों में ट्रैक के मैंटिनेंस में कमी डिरेलमेंट की वजह रही। वहीं मैकेनिकल डिपार्टमेंट की लापरवाही से 182 डिरेलमेंट हुए। 156 मामलों में निर्धारित ट्रैक पैरामीटर के नियमों का पालन नहीं होने से डिरेलमेंट हुआ। 154 डिरेलमेंट में लोको पायलट की खराब ड्राइविंग और ओवर स्पीडिंग मुख्य वजहें रहीं। 37 फीसदी मामलों में कोच में खराबी और पहियों का गलत निर्माण से डिरेलमेंट हुआ। करीब चार सौ मामलों में खराब डिब्बों और खराब पहिए दुर्घटना की वजह बने हैं। सरकार के रेल बजट में पुराने डिब्बे और पहिए के मेंटिनेस का जिक्र सिर्फ संसद के पटल पर होता है। यानी जमीनी हकीकत कुछ और है। 275 डिरेलमेंट ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट की लापरवाही के चलते हुए। दरअसल रेलवे विभाग की ओर से ट्रैक मेनटेनेंस धीरे- धीरे कम होता गया। जांच होने से क्या - बलासोर रेल दुर्घटना की जांच सीबाआई के करने से क्या होगा? 278 लोगों की जान वापस आने से रही। दरअसल जनता का गुस्सा कम करने के लिए सरकार रेल हादसे की जांच के आदेश देती है। कुछ दिनों बाद लोग भूल जाते है। फाइल बंद हो जाती है। जैसा कि सन 2016 में कानपुर में रेल दुर्घटना में 150 लोगों की मौत पर प्रधान मंत्री ने साजिश की आशंका के चलते एनआई को जांच करने आदेश दिया था । दो साल बाद एनआईए ने फाइल बंद कर दी। चार्जशीट दायर करने से इंकार कर दिया। सरकार को लगता है मुआवजा दे देने से लोगों को न्याय मिल जाता है। लोग संतुष्ट हो जाते हैं। जबकि सरकार मरने वाले परिवार की तकलीफ के बारे में कुछ भी नहीं सोचती। कई बार ऐसा भी होता है कि परिजन को उनका अपना शव नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में उन्हें न क्लेम मिलता है और न ही नौकरी मिलती है। दो हजार करोड़ की कटौती - बहुत लोगों को यह भी नहीं पता कि रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार ने खराब पट्टिरियों के लिए विशेष सुरक्षा फंड बनाया था। बड़े पैमाने पर पुरानी और जर्जर पटरियों की जगह नई पटरियां लगाने का काम किया गया। लेकिन मोदी सरकार ने 2018 में इस पर किए गए 9607 करोड़ रुपये के खर्च में दो साल बाद दो हजार करोड़ रुपये की कटौती कर दी। यानी राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष में 79 प्रतिशत फंडिंग कम की गई। रेल पटरी नवीकरण कार्यों की राशि में भारी गिरावट भी रेल दुर्घटना की भी वजह है। कईयों ने इस्तीफा दिया- राजनीति में अब नैतिकता खत्म हो गयी है। लाल बहादुर शास्त्री 1958 में रेल मंत्री थे। आन्ध्र प्रदेश के महबूबनगर में एक रेल हादसा में 112 लोगों की मौत हो गयी थी। उन्होंने इस्तीफा पी.एम नेहरू को दे दिया था। उनका इस्तीफा नेहरू नहीं स्वीकारे। इसके बाद तमिलनाडु के अरियालुर में 144 लोगों की मौत पर नेहरू को लालबहादुर शास्त्री ने अपना इस्तीफा भेज दिया था। नीतीश कुमार ने भी 1990 में असम में गैसल ट्रेन दुर्घटना की जवाबदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। तब 290 लोगों की मौत हुई थी। ममता बनर्जी ने सन् 2000 में दो ट्रेन की दुर्घटना में इस्तीफा दे दिया था। अटल जी ने उनका इस्तीफा नहीं स्वीकारे थे। एनडीए सरकार में रेल मंत्री रहे सुरेश प्रभु ने 2017 में दो रेल हादसे पर इस्तीफा दे दिया था। पीएम मोदी ने नहीं स्वीकारा।

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