Monday, June 3, 2024

बीजेपी के बीमार होने पर कौन होंगे सियासी डाॅक्टर




"मोदी बनाम अन्य का मुकाबला अबकी बार दिलचस्प रहा। सवाल यह है कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने पर वो बीमार हो गयी तो उसके इलाज के लिए किस- किस दल के नेता डाॅक्टर की भूमिका में होंगे।क्यों कि बीजेपी की हर राज्य में सीटें कम हो रही है। गुजरात लाॅबी आखिर करेगी क्या?

0 रमेश कुमार ‘रिपु’
 लोकतंत्र की तस्वीर बदलने वाली है। सोशल मीडिया में यही शोर है। वैसे मोदी बनाम अन्य का मुकाबला अबकी बार दिलचस्प रहा। सवाल यह है कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने पर वो बीमार हो गयी तो उसके इलाज के लिए किस- किस दल के नेता डाॅक्टर की भूमिका में होंगे?क्यों कि बीजेपी की हर राज्य में सीटें कम हो रही है। ऐसे में गुजरात लाॅबी करेगी क्या?मोदी ने एएनआई को दिये गये साक्षात्कार में कहा कि हिन्दुस्तान में हमारे सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ दोस्ती है। लोकतंत्र में दुश्मनी नहीं,दोस्ती ही होती है। जाहिर है कि उनके मन में संदेह है। एक डर है। घबराहट है। मोदी का रथ यू.पी में ही फंस गया तो धक्का देने कौन आगे आएगा?  क्यो  कि अबकी बार विपक्ष बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रहा। मतदान का रूझान देखकर इडिया गठबंधन उत्साहित है।
अपनी अपनी रणनीति - नरेन्द्र मोदी तीसरी बार चुनाव के सिकंदर नहीं बने तो बीजेपी के पंडाल में भगदड़ मच सकती है।   गुजरात लाॅबी की नजर है कि नवीन पटनायक कमजोर हो तो उन्हें फांस लिया जाए। विधान सभा चुनाव से पता चलेगा कि ओड़िसा की राजनीति की दशा और दिशा। वैसे सीताराम येचूरी से नवीन पटनायक कह चुके हैँ कि मोदी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। जो लोग न्यूटल हैं,उन्हें बीजेपी के पंडाल में लाने हर सियासी प्रयास होंगे। मसलन बसपा,बीजद,वाईएसआर कांग्रेस, बीआरएस आदि। इन सब के बीच तेजस्वी यादव कह रहे हैं पिछड़ों की राजनीति को बचाने और अपनी पार्टी को बचाने नितिश कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। नितिश एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। सरकार बनाने के लिए राहुल गांधी इंडिया गठबंधन के 28 दलों की बैठक एक जून को कर रहे हैं। इसमें शरद पवार,अखिलेश यादव,उद्धव ठाकरे,केजरीवाल आदि इस बैठक में बताएंगे उनकी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती है। सवाल यह भी आएगा,कि यदि बहुमत नहीं मिला तो कौन नवीन पटनायक को लाएगा। एक दो सीट अकाली दल को मिला तो कौन उनसे मिलेगा।ममता बनर्जी कह ही चुकी हैं,कि वो इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनना पसंद करेंगी। आंन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.सी.आर. दोनों न्यूटल है।लेकिन केसीआर ये नहीं भूले हैं,कि मोदी की वजह से उनकी बेटी कविता जेल में है। ये किसका साथ देंगे। चन्द्रबाबू नायडू किसका साथ जाएंगे। इस पर भी बात होगी। सरकार बनाने के लिए एक तरफ बीजेपी की चाणक्य मंत्रणा हेागी तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन की अपनी रणनाीति होगी।

गुजरात लाॅबी को संशय - इस समय सोशल मीडिया में चर्चा है कि अपने बूते पर बीजेपी की सरकार नहीं बन रही। हर राज्यों में उसकी सीट घट रही है। सवाल है,कि घट रही सीट की पूर्ति किस राज्य में होगी? यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र को मिलाकर कुल 248 सीट होती है। सन् 2019 बीजेपी अपने सहयोगी दलों की मदद से 215 सीट जीती थी। लेकिन जिन सहयोगी दलों के बूते बीजेपी सत्ता की सीढ़ी चढ़ी थी,वो उससे अलग हो गए हैं। यूपी,महाराष्ट्र,और बिहार सबसे अधिक सीट वाले राज्य हैं। इन राज्यों में बीजेपी के खिलाफ खेला होने पर बीजेपी बीमार हो सकती है। गुजरात लाॅबी को सरकार को लेकर संशय में है। दुविधा है। यदि चुनाव पलटा तो किसके हाथ में होगी सत्ता। संघ की भी नजर 4 जून की चुनाव परिणाम पर है, यदि सरकार नहीं बनी तो संघ नितिन गडकरी को आगे कर सकता है.एक जून को अंतिम चुनाव है। मोदी एक जून को खुद पर फोकस कराने के लिए वे कन्याकुमारी में 48 घंटे का ध्यान कर रहे हैं। ये भी वोट पाने का हथकंडा है। पिछले एक पखवाड़े से अस्थिर सरकार के अंदेशे में शेयर बाजार गिर रहा है। सोने-चांदी की कीमतें बढ़ रही है।

निगाहें नितिश पर - चुनाव परिणाम से पहले आज तक के राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप गुप्ता का दावा है 2019 जैसी बीजेपी की स्थिति है। प्रशांत किशोर कह रहे हैं 303 सीट बीजेपी कोे मिलेगी। वहीं एबीपी न्यूज के यशवंत देशमुख कह रहे हैं,बीजेपी की सरकार बनेगी। जबकि योगेन्द्र यादव कह रहे हैं बीजेपी को 240-250 सीट मिलेगी। चूंकि इस बार हर राज्यों के क्षत्रप 2019 की तुलना में कहीं अधिक मजबूत हैं। वो बीजेपी से सीटें छीन रहे हैं। महाराष्ट्र में गुजराती और मराठी अस्मिता का सवाल है। वहीं बिहार में मोदी से पूरे चुनाव में नितिश नाराज रहे । मोदी ने उनके साथ मंच साझा नहीं किया। नितिश धर्म निरपेक्षता और सामाजिकता की बात की। जबकि मोदी ने चुनाव में जाति धर्म को ले आए। जेडीयू का वोटर बीजेपी में शिफ्ट हुआ नहीं। यदि नितिश इस बार 16सीट में 10-12 सीट जीत गए और बीजेपी को बहुमत के लिए इतनी ही सीट की जरूरत पड़ने पर क्या वो पलटी मार सकते हैं? उनका कहना था,जो 2014 में आए हैं,वो 2024 में नहीं आएंगे। जैसा कि तेजस्वी ने कहा कि चार जून को चचा कोई बड़ा फैसला लेंगे। वैसे जेडीयू में दो खेमें हैं। लल्लन सिह और विजेन्द्र यादव आरजेडी के साथ जाना चाहेंगे। कुछ लोग बीजेपी के पक्षधर हैं। जबकि सामाजवादी विचारधारा वालों का जेडीयू में बहुमत है। नितिश को जरा भी संदेह हुआ कि उनकी पार्टी को खत्म करने की साजिश हो रही है तो वो पाला बदल देंगे।

क्षत्रपों की राजनीति बुरे दौर में - मोदी ने ज्यादातर दलों के घर ईडी,सीबीआइ और आइटी भेजकर परेशान किया। यानी मोदी के समय राज्यों के क्षत्रपों की राजनीति बुरे दौर में थी। उत्तराखंड,गोवा,कर्नाटक,मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की राजनीति को विपक्ष भूला नहीं है। राहुल जिस आरोप के बूते खड़े रहे पूरे चुनाव में,उसनेे विपक्ष को ताकत दिया है। हिम्मत दिया है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा के साथ न्याय गारंटी न लाते तो वोटर का नजरिया न बदलता। वैसे भी मोदी के शासन में 651 योजनाओं को पैसा लाभार्थियों तक गया नहीं।

बीजेपी की रफ्तार धीमी हुई - देश की राजनीति में तीन नेताओं ने अपनी रेखाएं खींच दी है। अखिलेश यादव,उद्धव ठाकरे और तेजस्वी यादव। इन तीन नेताओं की वजह से बीजेपी और एनडीए की रफ्तार धीमी हुई है। मोदी ने उद्धव ठाकरे की पार्टी तोड़ दी। उनकी सरकार गिरा दी। उनकी पार्टी का सिंबल छीन लिया। ऐसे में मोदी का साथ उद्धव नहीं देंगे।शरद पवार चार जून के बाद अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर देंगे। कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि उसे 100-120 सीट मिल रही है।

बीजेपी की हार की वजह - बीजेपी की सरकार नहीं बनने की वजह स्वयं बीजेपी के नेता चार जून के बाद गिनाने लगेंगे। लेकिन देखा जाए तो बीजेपी के नेताओं से कई गंभीर चूक हुई है। मसलन बीजेपी राम मंदिर को लेकर अति आत्मविश्वास में आ गयी। राम मंदिर मुद्दा नहीं बना तो वो कांग्रेस के घोषण पत्र में मुस्लिम लीग की छाया बताकर वोटरों को मोदी ने दिगभ्रमित किया। पूरे चुनाव को हिन्दू- मुस्लिम में बदलने की कोशिश किया। चुनाव का ध्रुवीकरण  करने की कोशिश की गयी लेकिन सफल नहीं हुए। हिन्दू को डराने कीे कोशिश किया। मोदी ने इस चुनाव में भाषा का संस्कार भूल गए। मुजरा तक आ गए। इस बार पुलवामा कांड जैसा कुछ नहीं हुआ। इस वजह से बीजेपी को राष्ट्र भक्ति का वोट नहीं मिला। विपक्ष जनहित के मुद्दों को आधार बनाया। संविधान बचाने की बात से लेकर बेरोजगारी और महंगाई को मुद्दा बनाया।
बहरहाल मोदी को शिकस्त देने मोदी विरोधी दल इस चुनाव में लामबंद हुए हैं। और अपनी ताकत की नुमाइश भी किये हैं।वहीं मोदी की छवि को इस चुनाव में उनके बयान से जबरदस्त धक्का लगा है। हिलोरें मारता विपक्ष का आत्मविश्वास बीजेपी के चार सौ पार के नारे के बीच लोकतंत्र की एक नयी तस्वीर बनाने आतुर है।

 

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