Wednesday, June 12, 2024

अबकी बार खत्म हुआ मोदी का एकाधिकार





"तीसरी बार मोदी सरकार मजबूत या फिर मजबूर,यह सवाल संसद में विश्वास मत हासिल करने तक कायम रहेगा। साथ ही मोदी की अग्नि परीक्षा भी है, गठबंधन की सरकार चलाना। क्यों कि एनडीए के घटक दलों की विचार धारा बीजेपी से मेल नहीं खाती है। उन्हें कड़े फैसले लेने में भी जदयू और टीडीपी से सहमति लेनी पड़ेगी।क्यों कि अबकी बार मोदी का एकाधिकार खत्म हो गया है।"
- रमेश कुमार 'रिपु'
अबकी सरकार में सियासी दलों के एजेंडे अपने-अपने हैं। सब अलग भी हैं। जुड़े भी हैं। दबंग चन्द्रबाबू नायडू मोदी के साथ हैं भी,नहीं भी हैं। नितिश ने मोदी का पैर छूकर सम्मान दिया मगर, कब पलट जाएंगे, इसका एहसास मोदी की मंडली को है। सभी छुट्टे हैं। पाला बदलने में एक मिनट की भी देरी नहीं करेंगे।लेकिन सुविधानुसार।सहूलियत के हिसाब से सांप सीढ़ी वाली राजनीति में अपने पासे फेंकेंगे।नितिश और चन्द्रबाबू नायडू कब तक साथ रहेंगे, यह लोकतंत्र की सियासत का वक़्त भी नहीं जानता। कल तक मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री थे। अब एनडीए के प्रधान मंत्री रहेंगे।दरअसल सत्ता की थैली में चिल्हर ज्यादा हो गए हैं। आगे भी रहेंगे। इंडिया गठबंधन की थैली हो या फिर एनडीए की थैली। दोनों एक समान है।राष्ट्रीय रुतबे का अवसान हो रहा है तेजी से। दोनों हताश हैं। क्या कांग्रेस और क्या भाजपा। लेकिन सबकी अपनी- अपनी रणनीतियां हैं। इस बार विपक्ष पिछली दफ़ा से कहीं अधिक मजबूत है। वहीं मोदी का अबकी बार एकाधिकार भी खत्म हो गया। मजबूर हैं और रहेंगे । क्यों कि पेंच बहुत है। पैतरे बाजी भी अनगिनत। कहने को नौ जून को प्रधान मंत्री पद के शपथ तक और मंत्रिमंडल के गठन तक सभी जुड़े हैं।मगर अलग भी हैं।

शर्तो की राजनीति - कुछेक ऐसे सवाल है,जिनसे आज नहीं, तो कल रूबरू होना पड़ेगा। मोदी को। पूरे देश को। पूरे विपक्ष को। शर्तो की राजनीति या फिर कहें शर्तो की बुनियाद पर टिकी एनडीए की सरकार। एनडीए के सांसदों की बैठक में मोदी ने कहा, एनडीए की सरकार बनने जा रही है। इसके पहले 2014 और 2019 में बीजेपी की सरकार कहा था। अटल जी की सरकर की तरह मोदी की सरकार के दिन भी आ सकते हैं। कई दलों की बग्गी वाली सरकार, एक ही दिशा में कब तक चलेगी, मोदी भी नहीं जानते। क्यों कि मोदी कभी ऐसी राजनीति किये नहीं। गुजरात में मुख्यमंत्री थे,तब भी वो एकाधिकार की राजनीति किये हैं। पिछले दस साल में उन्होंने ऐसा कोई दल नहीं,जिसे ठगा नहीं। और कोई ऐसा दल नहीं,जिसे खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।गोवा,महाराष्ट्र,उत्तराखंड और मध्यप्रदेश को कोई भूला नहीं है। गिरते शेयर बाजार और गिरते रुपए की तरह इस चुनाव में मोदी की साख गिरी है। पिछली बार छह लाख वोट से जीतने वाले मोदी इस बार डेढ़ लाख वोट पर सिमट गए। शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की बजाए किनारे कर दिया था, वो आठ लाख बीस हजार वोट से जीते। जाहिर सी बात है, भाजपा के अंदर इस चुनाव ने कई खेमे बनने की रेखा खींच दी है। आज नहीं तो कल दिखेगी।

मनमाफिक मंत्री पद चाहिए - नरेन्द्र मोदी के प्रधान मंत्री के पद की शपथ लेने से पहले ही सियासी उथल पुथल की झलक दिखने लगी है। नितिश और चन्द्रबाबू नायडू दोनों को अपने-अपने प्रदेश के लिए विशेष दर्जा चाहिए। उनकी अपनी सियासी शर्त भी है। चन्द्रबाबू नायडू को लोकसभा का अध्यक्ष पद चाहिए। वो जानते हैं, मोदी और अमितशाह का भरोसा नहीं। उनके सांसदों को कभी भी तोड़ सकते हैं। बीजेपी का स्पीकर होगा तो मोदी की ही सुनेंगे।जगन रेड्डी के चार सांसद बीजेपी की ओर जा रहे हैं, अभी से हल्ला है. नायडू को परिवहन मंत्रालय चाहिए। गृहमंत्रालय चाहिए। ताकि पुलिस और सीबीआई उनके साथ रहे। सभावना है कि नागरिक उड्डयन,इलेक्ट्रानिक,आईटी,शहरी विकास और स्टील मंत्रालय मिल सकता है। नितिश को रेल मंत्रालय और वित्त विभाग चाहिए। ताकि ईडी उनके पास रहें। पंचायती राज ग्रामीण विकास,कृषि जैसे मंत्रालय मिल सकता है। एनडीए के घटक दलों में नायडू और नितिश इस बार मोदी का एकाधिकार खत्म करने वाले विभाग चाहते हैं। इनकी पार्टी के सांसदों को कौन सा मंत्री पद मिलता है,दो तीन दिन बाद पता चलेगा। वैसे मोदी नहीं चाहेंगे कि रक्षा,वित्त,गृह और विदेश मंत्रालय एनडीए के दलों के पास हो। बीजेपी के प्रवक्ताओं की ओर से कहा जा रहा है,कि गठबंधन का प्रेशर बीजेपी नहीं लेगी। किसी सहयोगी की अतार्किक    अनावश्यक मांग के आगे नहीं झुकेगी। गठबंधन के नियमों और गठबंधन धर्म के तहत काम होगा।

कई मोर्चे पर चिंतन - देखा जाए तो सरकार नितिश और नायडू के पर्स में हैं। यानी इस बार भाजपा लस्त पस्त है। लकवाग्रस्त है। नेता हैं,पर निष्प्रभ। कम सीटें आने से पार्टी के नेता हताश हैं। एक साथ कई मोर्चे पर चिंतन चल रहा है। मोदी से भी अधिक वोटों से जीत कर आने वाले नेताओं की भरभार है। कहने को तो सामूहिक नेतृत्व। पर लचर,लाचार। संघ की निगाहें टिकी है मंत्रिमंडल के गठन पर। इस बार मोदी संघ की कितनी सुनते हैं,सवाल यह भी है। नड्डा बोल ही चुके हैं,बीजेपी बड़ी पार्टी हो गयी है,उसे संघ की जरूरत नहीं है। यदि मोहन भागवत ने संघ वाले सांसदों से कह दिया,कि वो मोदी को अपना नेता न चुनें तो बीजेपी के अंदर की सियासत बदल जाएगी। इस बार पूरी पार्टी मोदी की जेब में नहीं है। मोदी के मंत्रिमंडल में नितिन गडकरी को स्थान नहीं मिलने पर चाल चरित्र और चेहरा की बात करने वाली पार्टी की तस्वीर भी बदल सकती है। भाजपा मोदी की जागीर है या फिर संघ की। यह सवाल देर सबेर धूल की तरह उढ़ सकता है।
बीजेपी के 14 सहयोगियों के पास 53 सीटें हैं। पी.एम.आवास में हुई बैठक में इन्होंने लिखकर दिया है कि हमारा समर्थन मोदी के साथ है। सबके मन में मंत्री बनने की चाह है। छोटे- छोटे राज्यों के दलों को भी जोड़ने में बीजेपी लगी है। गठबंधन धर्म सरकार चलाने में रोड़ा बन सकते हैं। अभी से सियासी कयास लगाए जाने लगे हैं। क्यों कि कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर मोदी अपने कदम पीछे नहीं किये तो सरकार गिर जाएगी। उन्हें भी समझौता करना पड़ सकता है। मसलन - एक देश एक चुनाव। इसके खिलाफ है टीडीपी, जबकि जदूय इसके समर्थन में है। विपक्ष भी नहीं चाहता एक देश एक चुनाव। परिसीमन के भी विरोध में है टीडीपी। बीजेपी ने 2029 तक महिला आरक्षण का वादा किया है। यह परिसीमन पर ही लागू होगा। इसी तरह युनिफार्म सिविल कोड को बीजेपी पूरे देश में लागू करना चाहती है। उत्तराखंड में लागू हो चुका है। मोदी इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता से अलग कर सकते हैं। राम मंदिर बनने का लाभ बीजेपी को देश में क्या यूपी में भी नहीं मिला। अयोध्या,चित्रकूट,सीतापुर,बस्ती,प्रयागराज,सुल्तानपुर,रामटेक,कोप्पल,रामेश्वरम,नासिक, में बीजेपी हार गयी है। इसलिए काशी मथुरा का दावा अब बीजेपी नहीं करेगी। टीडीपी ने सन्2018 में आंध्र को विशेष दर्जा नहीं दिये जाने पर बीजेपी से नाता तोड़ लिया था। इसी तरह मुस्लिमों को चार फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर दोनों पार्टियों में टकराव हो सकता है। जदयू सार्वजननिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश के खिलाफ है। बीजेपी को अपने कदम पीछे करना पड़ सकता है।अग्निवीर मामले में बीजेपी को अपना फैसला बदलना पड़ सकता है। जदयू नेता के.सी.त्यागी ने कह दिया है,बनने पर सरकार इस पर विचार करे।
तीसरा कार्यकाल चुनौती भरा - मोदी का तीसरा कार्यकाल चुनौती भरा है। क्यो कि एनडीए घटक दलों को मोदी खुश किये बगैर कोई भी फैसला नहीं ले पाएंगे। मोदी सरकार पर आने वाले तीन महीने चुनौती भरे होंगे। इसलिए कि इसी साल महाराष्ट्र,हरियाणा और झारखंड में चुनाव है। हरियाणा में 2019 में बीजेपी की दस सीटें थी। इस बार घटकर पांच सीट हो गयी है। कांग्रेस को पांच सीट मिली है। जाहिर है हरियाणा जीतना मुश्किल हो सकता है। झारखंड में झामुमो और कांग्रेस की सरकार है। वहां भी दलित आरक्षण मुद्दा विधान सभा तक कायम रहा तो बीजेपी के लिए नुकसान हो सकता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। उसे दस सीट मिली है। जाहिर है कि मोदी के लिए सरकार चलाना अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। अभी तो बवाल इसी बात के लिए है कि कम सांसद वाले नेताओं को मंच पर बिठाया गया और ज्यादा सांसद वालों को दर्शक दिर्घा में। यू.पी. के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को लेकर अमितशाह भारी नाराज हैं। जबकि मोदी ने उनकी पीठ थपथपा दी है। यानी मोदी समझ रहे हैं, कि नेहरू के तीन बार प्रधान मंत्री बनने के रिकार्ड की बराबरी करना है,तो सबको खुश करके चलना पड़ेगा।

 

No comments:

Post a Comment