Saturday, August 27, 2022

मुँह खोले,दागे गोले,कोई क्या बोले..





‘‘किसी को लोकलाज की चिंता नहीं। लोकतंत्र शर्मिदा होता है,तो होये। नई राजनीतिक भाषा से लोकतंत्र की गरिमा गिरी है। व्यक्तिगत हमले और अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल करने की होड़ लगी है। संसद में बैठने वालों के भदेश आचारण और गंदी भाषा से एक नई संस्कृति ने आकर लिया  है। जिसमें आदर्श और सम्मान का मूल्य नहीं हैं।’’  

0 रमेश कुमार‘रिपु’

 राजनीति में कूटनीति सभी करते हैं। करनी भी चाहिए। तभी तो सुर्खियों में रहेंगे। सड़क से संसद तक सभी यही करते हैं। जब भी मुंह खोलते हैं,जहर उगलते हैं। ताकि बवाल हो। हल्ला मचे। टी.वी.चैनल्स में दिखें। टी.आर.पी. का सवाल है। सभी सियासी दलों को टी.आर.पी.चाहिए। विपक्ष के अधीर रंजन चैधरी हों या फिर सत्ता पक्ष की स्मृति इरानी। राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह दिया। भूल हो गई। जुबान फिसल गई। माफी मांग ली। लेकिन स्मृति इरानी इसे मुद्दा बना लीं। देश की अस्मिता से जोड़ दीं। सड़क से संसद तक बखेड़ा खड़ा करने में स्मृति इरानी भूल गई,वो संसद में क्या बोल रही हैं। संसद में जब तक बोलीं,एक बार भी मैडम राष्ट्रपति, माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती शब्द नहीं बोली। बार-बार द्रोपदी मुर्मू चिल्ला रही थीं। क्या यह माननीय राष्ट्रपति के पद का अपमान नहीं है? देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का अपमान संसद में भी हुआ। बाहर भी हुआ। शब्दों से। सियासियों की शब्दावली से। उनके हाव भाव से। उनके तर्क वितर्क चौकाते हैं। देश की राजनीति में भाषा का पतन चुनाव से लेकर संसद तक सैकड़ों दफा हुआ।

राममनोहर लोहिया ने कहा था,लोकराज,लोकलाज से चलता है। लेकिन अब राजनीति में  लाज के पर्दे तार-तार हो चुके हैं। ईरानी को अपनी स्मृति पर जोर देना चाहिए। उनकी ही पार्टी के बड़े नेताओं की भाषा से लोकतंत्र कई बार शर्मिदा हुआ है। जयपुर की एक रैली में प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी ने सोनिया गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा,वो कांग्रेस की कौन सी विधवा थी,जिसके खाते में पैसा जाता था। किसी महिला के वैधव्य का माखौल उड़ाना क्या सियासी संस्कृति है..?स्त्री सम्मान की दृष्टि से राजनीति की यह भाषा मर्यादाहीन है। पूर्व बीेजेपी नेता प्रमोद महाजन ने एक बार सोनिया गांधी की तुलना मोनिका लेविस्की से कर दी थी। कैलाश विजयवर्गीय ने एक ट्वीट किया था,हगामा होने पर हटा लिया। ट्वीट किया था, विदेशी माँ से उत्पन्न संतान कभी भी राष्ट्रभक्त नहीं हो सकती।

राजनीति में भाषा के संस्कार का चीरहरण होना नई बात नहीं है। भाषण में,संसद में और आरोप प्रत्यारोप के दौरान छीेटें उछालने वाली अमर्यादित भाषा के जरिये भीड़ एकत्र करने वाले को कामयाब नेता मान लिया गया है। इसीलिए अटजी को कहना पड़ा,राजनीति वेश्या हो गई। किसी को लोकलाज की चिंता नहीं। लोकतंत्र शर्मिदा होता है तो होये। नये दौर में सियासत और सियासी के लफ्ज नंगे हो गये हैं,और शोहरत गाली। सियासत में काॅमेडी का चलन बढ़ गया है। व्यक्तिगत हमले और अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल करने की होड़ लगी हैं। अपनी-अपनी राजनीति के गाल लवली दिखाने की प्रतिस्पर्धा में संसद में देश हित के मुद्दे नदारत है। सियासियों की नीयत़ बनावटी नहीं,बल्कि उसमें खोट है। महंगाई, बेरोजगाारी, जीएसटी,नकली शराब से मौतें जैसे विषयों पर बातें न हो। बिल पर बहस न हो। संसद से सड़क तक सरकार की भद्द न हो, इसलिए निरर्थक बातों पर सत्ता पक्ष विपक्ष से बहस करने लगा है।   
साल 2012 में चुनावी रैली में नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर के बारे में कहा था,वाह क्या गर्ल फ्रेंड है। आपने कभी देखी है 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड। क्या यह भाषा महिलाओं की इज्जत की पक्षधर है,इरानी को बताना चाहिए। शशि थरूर ने ट्वीट कर कहा,मोदी जी मेरी पत्नी 50 करोड़ की नहीं,बल्कि अनमोल है। आप को यह समझ में नहीं आएगा,क्योंकि आप किसी के प्यार के लायक नहीं हैं। यह विवाद उस समय सुर्खियों में था। गुजरात के मुख्यमंत्री थे नरेन्द्र मोदी,तब कहा था,मिडिल क्लास के परिवारों की लड़कियों को सेहत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की फिक्र होती है। अच्छे फिगर की चाहत में कम खाती हैं। एक बार मोदी की जबान विदेश मे फिसल गई थी। उन्होंने कहा था,पहले भारत में पैदा होने में भी शर्म आती थी। सवाल यह है कि सत्ता क्या व्यक्ति के संस्कार को लील जाती है। जैसा कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बोलीं. थी,ब्यूरोक्रेसी की औकात क्या है। वो हमारी चप्पलें उठाती है। असल बात ये है कि हम उसके बहाने अपनी राजनीति साधते हैं।’’

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। शुरू में संसदीय बहसों में कम बोलने की वजह समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया उन्हें गूंगी गुड़िया कहा करते थे। 2011 के विधान सभा चुनाव मे केरल के पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद ने कहा था,राहुल एक अमूल बेबी हैं। जो दूसरे अमूल बेबियों के लिए प्रचार करने आए हैं। साल 2002 में गोधरा कांड को लेकर गुजरात विधान सभा चुनाव में सोनिया गांधी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था।  
दरअसल नई राजनीतिक भाषा से लोकतंत्र की गरिमा गिरी है। संसद में बैठकर देश हित में,जनहित में कानून बनाने वालों का भदेश आचारण और भाषा से एक नई संस्कृति ने आकर लिया है। जिसमें आदर्श और सम्मान का मूल्य नहीं हैं। राजस्थान विधान सभा चुनाव के दौरान जदयू के नेता शरद यादव ने कहा था,वसुंधरा मोटी हो गई हैं। अब उन्हें आराम करना चाहिए। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने गुजरात चुनाव के वक्त कहा था,नरेन्द मोदी एक नीच किस्म का व्यक्ति है। हाँलाकि बाद में मोदी ने इस बयान को काफी भुनाया। नेता की अपने शहर में,राज्य में लोगों के बीच, और परिवार में पहचान है। उसकी कही बातें सुनी जाती है। कई लोग उनका अनुसरण भी करते होंगे। जाहिर है, कि उनकी भाषा शैली के बड़े खतरे हैं। रीवा के बीजेपी सांसद जनार्दन मिश्रा ने कहा, कलेक्टर को थप्पड़ जड़ देने पर दो साल के लिए राजनीति चमक जाती है। इससे पहले उन्होंने एक बयान मे कहा था,पी.एम.आवास नरेन्द्र मोदी के दाड़ी से निकलते हैं।  

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हार्दिक पटेल ने कहा, धर्म की राजनीति करने वालों को थप्पड़ मारना चाहिए। योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में कहा था, मुस्लिम समुदाय की संख्या जितनी ज्यादा है, वहांँ उतने ही बड़े दंगे होते हैं। बात जून 1997 की है। संसद में महिला आरक्षण बिल पर शरद यादव ने कहा,इस बिल से सिर्फ पर कटी औरतों को फायदा पहुंँचेगा। ये परकटी शहरी महिलाएँ हमारी ग्रामीण महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी? साल 2017 में उन्होंने वोट के संदर्भ में कहा,वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी है। बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गांँव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी,अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सूबे की इज्जत चली जाएगी। पश्चिम बंगाल के जांगीपुर से कांग्रेस सांसद रह चुके अभिजीत मुखर्जी ने कहा था,दिल्ली में 23.वर्षीय युवती के साथ बलात्कार के विरोध में प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही छात्राएं सजी-संवरी महिलाएं हैं। जिन्हें असलियत के बारे में कुछ नहीं पता। हाथ में मोमबत्ती जला कर सड़कों पर आना फैशन बन गया है। ये सजी संवरी महिलाएं पहले डिस्कोथेक में गईं और फिर इस गैंगरेप के खिलाफ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंँच गईं।

अब चुनावी भाषणों में संवेदनाएंऔर इज्जत नहीं रहीं। आजम खान ने रामपुर में एक चुनावी जनसभा  में जयाप्रदा का नाम लिये बगैर कहा था,जिसको हम ऊँगली पकड़कर रामपुर लाए। उसने हमारे ऊपर क्या-क्या इल्जाम नहीं लगाए। उनकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे। मैं 17 दिन में पहचान गया,कि इनके नीचे का अंडरवियर खाकी रंग का है। 
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने शराब पीना स्टेटस सिंबल है कहा था। अपराध शराब पीकर डगमगाने से बढ़ते हैं,पीने से नहीं। शराब पीना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। बीजेपी अध्यक्ष के दौरान अमितशाह ने कहा था,राजनेताओं का काम सरहदों में रहने वाले फौजियों से अधिक जोखिमवाला होता है। उनकी बहुत खिलाफत हुई थी। गोवा के मुख्यमंत्री मनेाहर पार्रीकर ने लाल कृष्ण आडवाणी को बासी अचार कह दिया था। जुबान कब किसकी कहांँ फिसल जाये नहीं कह सकते। रामकृपाली यादव ने मोदी को आतंकवादी और हत्यारा कहा था। कांग्रेसी नेता लाल सिंह ने हदें पार कर दी थी। हम तो कुत्ते भी नस्ल देखकर लेते हैं,मोदी की क्या औकात है।’’ 

मोहन भागवत यूपी में अगस्त 2016 में शिक्षको की रैली के दौरान कहा,अगर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है तो हिन्दुओ को ज्यादा से ज्यादा बच्चे  पैदा करना चाहिए। बीजेपी वाले 1992 में मुलायम सिंह यादव को मुस्लिम परस्त होने पर मौलाना मुलायम यादव कहने लगे थे। इसका सियासी लाभ भी उन्हे मिला। 1999 में नये नये आये राजेश खन्ना ने अटल बिहारी बाजपेयी पर बिलो द बेल्ट टिप्पणी करते हुए कहा था औलाद नहीं है पर दामाद हैं.ये पब्लिक सब जानती है। नरसिम्हा राव को सभी मौनी बाबा कहते थे। बाद में यही शब्द मनमोहन सिंह के संदर्भ में भी कहा जाने लगा।


 

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