"लाभ
के पद के मामले में हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता तब तक राज्यपाल
रद्द नहीं करेंगे,जब तब बीजेपी को झारखंड में कोई ‘शिंदे’ नहीं मिल
जाता,अथवा कांग्रेस को छोड़कर हेमंत बीजेपी के समर्थन से सरकार न बना लें।
ऐसा नहीं होने पर राज्यपाल राष्ट्रपति राज की सिफारिश कर सकते हैं।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
झारखंड
की राजनीति विचित्र है। विचित्र इसलिए है,कि सरकार गिरने की स्थिति में
है। बावजूद इसके जिन्हें सरकार बनाना है,उनकी रणनीति पर्दे में है। यानी
राज्यपाल रमेश बैस भाजपा को सरकार बनाने के लिए पूरा मौका दे रहे हैं। एक
सप्ताह बाद भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव आयोग की सिफारिश पर
राज्यपाल रमेश बैस ने कोई कार्रवाई नहीं की। लाभ के पद के मामले में हेमंत
सोरेन की विधान सभा की सदस्यता रद्द किये जाने की कोई सूचना या फिर पत्र
राज भवन से उन्हें नहीं मिला। मीडिया से जानकारी मिलने के बाद हेमंत अपनी
सरकार बचाने और ‘हार्स ट्रेडिंग’ के डर से विधायकों को रायपुर छत्तीसगढ़ भेज
दिये हैं। रायपुर के मेफेयर रिसॉर्ट में ठहरे कांग्रेस के 18 में से 12
विधायक ही रायपुर पहुंचे थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19 विधायक रिसॉर्ट
में हैं। कांग्रेस के तीन विधायक बंगाल में भारी कैश के साथ पकड़े गए थे।
उन्हें तीन महीने तक कोलकाता छोड़कर नहीं जाने की शर्त पर जमानत मिली है।
वहीं एक विधायक हाल ही में मां बनी हैं,इसलिए वे नहीं आ पाईं।
दो
सितम्बर को भारतीय जनता युवा मोर्चा,छत्तीसगढ़ ने ‘मेफेयर रिजॉर्ट’ को घेर
लिया। भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष अमित साहू ने कहा,झारखंड के विधायक रायपुर
में आकर फाइव स्टार रिजॉर्ट में अय्याशी कर रहे हैं। झारखंड में लॉ एंड
ऑर्डर की स्थिति बिगड़ी हुई है। ताज्जुब होता है,अंकिता हत्याकांड के बाद भी
विधायक और मंत्री इतने असंवेदनशील हैं। यहांँ अय्याशी कर रहे हैं। हम इन
विधायकों को खदेड़ने आए हैं। पुलिस बल को भारी मशक्त करनी पड़ी भाजयुमो के
कार्य कर्ताओं को हटाने में।
गौरतलब है कि किशोरी
अंकिता को शाहरुख नाम के युवक ने उसे घर में पेट्रोल डालकर जला दिया। इस
मामले में एसडीओपी ने आरोपी को बचाने का प्रयास किया। विपक्ष के हल्ला
मचाने पर मुख्य मंत्री ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिये। जबकि यह घटना
मुख्यमंत्री के विधान सभा क्षेत्र की है। इस घटना के बाद पूरी सरकार रायपुर
छत्तीसगढ़ में पिकनिक मना रही है। असंवेदनशील सरकार को इसकी चिंता नहीं है।
इस घटना को लेकर जनता में रोष है।
छत्तीसगढ़ के
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,भाजपा ईडी,आईटी का डर दिखाकर विपक्ष के
विधायक खरीदनेे की राजनीति कर रही है। चुनाव आयोग की चिट्ठी आई है तो
राज्यपाल उसे रोके क्यों हैं? अगर नहीं आई है,तो स्पष्ट करें। इसका मतलब है
कि आप 'हॉर्स ट्रेडिंग' करना चाहते हैं। ताकि चिट्ठी खुले उसके पहले सब
खरीद फरोख्त कर लें। रमन सिंह को और भाजपा को इसमें सफलता नहीं मिली,इसलिए
कह रहे हैं कि माथा शर्म से झुक गया। वे खरीद फरोख्त कर लेते तो उनका सिर
ऊंचा हो जाता। आखिर कांग्रेस के तीन विधायक पश्चिम बंगाल में पैसा लेकर
पकड़े गए। उन्हें कौन खरीद रहा था,तब भाजपा नेताओं का सिर शर्म से नहीं
झुका। बंगाल में पकड़े गये तीन विधायकों को इस शर्त पर जमानत मिली है कि तीन
माह तक बंगाल छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे।
मौजूदा
सियासत से जाहिर है,कि हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता तब तक नहीं
जायेगी,जब तब बीजेपी को झारखंड में कोई ‘शिंदे’ नहीं मिल जाता,अथवा हेमंत
कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी के समर्थन से सरकार न बना लें। यदि चुनाव आयोग ने
मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए खुद के नाम पर खदान लीज लेने को भ्रष्टाचार
मान लिया तो सत्ता और विधायकी दोनों जायेगी। अगर चुनाव आयोग खदान लीज को
सरकारी लाभ मानता है,तो हेमंत को विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। इससे
हेमेंत को राजनीतिक नुकसान कम होगा, बशर्ते विधायक उन्हें दोबारा नेता चुन
लें। ऐसे में अगले छह माह में उन्हें चुनाव लड़कर विधायक बनना होगा,तब तक वे
सीएम बने रहेंगे। यदि चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 9 (अ)
के तहत कार्रवाई की अनुशंसा कर एक सर्टिफिकेट जारी करता है,तो राज्यपाल
हेमेंत सोरेने को तीन से पांच साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा सकते हैं।
हेमंत
सोरेन चाहेंगे,कि सत्ता की कमान घर में ही रहे। ऐसे में वे अपनी पत्नी
कल्पना सोरेन का नाम आगे कर सकते हैं। कल्पना ओड़िसा की हैं,झारखंड की नहीं
हैं। आदिवासी भी नहीं हैं। वहीं घर के अंदर इसका विरोध भी हो रहा है। हेमंत
सोरेन की भाभी सीता सोरेन चाहती हैं मुख्यमंत्री बनना। दूसरा विकल्प हेमंत
के पास है,अपने पिता शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बना दें। हेमंत
मुख्यमंत्री उसे ही बनायेंगे जिस पर उन्हें भरोसा है।
हेमंत
सोरेन के इस्तीफा देने के बाद यदि राज्यपाल को लगता है,कि झामुमो के
नेतृत्व वाले गठबंधन के पास मेजॉरिटी नहीं है,तो वह झामुमो के बहुमत का
समर्थन करने वाले पत्रों के दावे को नहीं मानते हुए नए सीएम को पद की शपथ
दिलाने से इंकार कर सकते हैं। इस परिस्थति में वे राष्ट्रपति शासन की
सिफारिश कर सकते हैं।
विधान सभा में बीजेपी के 26
विधायक हैं। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30,कांग्रेस के 18 विधायक हैं।
जिसमें तीन विधायक बंगाल पुलिस के शिकंजे में है। जाहिर सी बात है झारखंड
में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए 41 विधायक चाहिए। दो निर्दलीय बीजेपी के
साथ जा सकते हैं,लेकिन अन्य दल के विधायकों को बीजेपी अपने खेमें में आने
के लिए हार्स ट्रेडिंग का इस्तेमाल कर सकती है। और यही डर हेमंत सोरेन को
है। बीजेपी चाहेगी कि हेमंत सोरेन कांग्रेस के समर्थन की बजाय बीजेपी के
समर्थन से सरकार बना लें।
दरअसल जन प्रतिनिधित्व
अधिनियम 1951 की धारा 9 और 9 अ के तहत हेमंत सोरेने की विधान सभा की
सदस्यता उलझ गई है। 28 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवरदास ने चुनाव आयोग
को एक शिकायत में कहा था, हेमंत ने अनगड़ा में अपने नाम से0.88 एकड़ पत्थर
खदान की लीज ली है और चुनाव आयोग को दिए शपथ पत्र में यह जानकारी छिपाई है।
सी.एम. सरकारी सेवक हैं,इसलिए लीज लेना गैरकानूनी है। जन प्रतिनिधित्व
अधिनियम 1951 का उल्लंघन है। बीजेपी नेताओं ने 11 फरवरी को राज्यपाल से
मिलकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की मांग की
थी।
वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है,जब
ओवदन किया था,तब वे किसी लाभ के पद पर नहीं थे। बीजेपी की ओर से मामला उठाए
जाने पर खनन लीज को सरेंडर कर दिया है। उस पर कोई खनन भी नहीं हुआ है। ऐसे
में लाभ के पद के दुरुपयोग का मामला नहीं बनता है। अयोग्य करार नहीं दिया
जा सकता।’’
बहरहाल हेमंत सोरेन विधान सभा की सदस्यता
रद्द होने पर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं । सुप्रीम कोर्ट पहले भी
अपने दो फैसलों में कह चुका है,कि खदान लीज पर लेना भ्रष्टाचार नहीं है।
लेकिन राज्यपाल के आदेश पर उससे पहले इस्तीफा देना पड़ेगा।
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