"कभी
धारा 356 के जरिये केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया करती
थी। लेकिन अब राजनीति की धारा बदल गई है। बीजेपी की नई सियासी चाल के चलते
विपक्ष के समक्ष सियासी वजूद का संकट खड़ा हो गया है। कई राज्यों में बीजेपी
ने विपक्ष की सियासी दीवार में सेंध लगाकर उनके विधायकों को जोड़कर सरकार
बना ली।"
देश
में कई पार्टियों के समक्ष सियासी वजूद का संकट खड़ा हो गया है। विपक्ष का
कहना है ‘आॅपरेशन लोटस’ का खेल बीजेपी कर रही है। वह विपक्ष के सियासी
दीवार में सेंध मारकर उसके विधायकों को गेरूआई पंडाल में ला रही है। जाहिर
है,कांग्रेस मुक्त भारत के लिए यह एक नई रणनीति है। कभी धारा 356 के जरिये
केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया करती थी। लेकिन अब
राजनीति की धारा बदल गई है। विपक्षी दल के विधायक मंत्री बनने या फिर
मलाईदार पद पाने अपनी ही पार्टी के साथ बेवफाई करने में संकोच नहीं करते।
बीजेपी की सत्ताई धुन पर विधायक उसकी ओर खींचे चले आ रहे हैं। और बीजेपी
उनके सहयोग से सरकार बना रही है।
वहीं
बीजेपी की मौजूदा राजनीति पर समूचा विपक्ष एक सूर में कह रहा
है,ई.डी.सीबीआइ और आइ.टी का डर दिखाकर बीजेपी विपक्ष के विधायकों को तोड़
रही है। जैसा कि गोवा कांग्रेस के प्रभारी दिनेश गुंडू राव का आरोप है कि
बीजेपी ने कांग्रेस विधायकों को पार्टी बदलने के लिए 40-50 करोड़ रुपए की
पेशकश की थी। गौरतलब है कि गोवा कांग्रेस के आठ विधायकों के पाला बदलने से
पहले सन् 2019 में भी कांग्रेस के 15 में 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए
थे। इसमें नेता विपक्ष चंद्रकांत कावलेकर भी शामिल थे। पंजाब में बीजेपी
खेला न कर दे,इसलिए केजरीवाल डरे हुए हैं। और पंजाब के सारे विधायकों को
दिल्ली बुलाकर बैठक किये।
जाहिर है,बीजेपी की जिन
राज्यो में सरकार नहीं है,वहांँ सरकार बनाने पार्टी तोड़ने का सियासी उपक्रम
शुरू कर दिया है। कांग्रेस को मौजूदा समय में ‘जीत के हाथ’ की जरूरत है।
क्यों कि सन् 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद से अब तक कांग्रेस 17 विधान सभा
चुनाव हार चुकी है। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को कितना
सियासी फायदा होता है वक्त बतायेगा। क्यों कि इसी साल आठ राज्यों में चुनाव
होने हैं। वैसे कांग्रेस तमिलनाडु, महाराष्ट्र में सरकार की हिस्सा थी,
लेकिन वहाँं बीजेपी ने विपक्ष की सियासी दीवार में सेंध मारकर इनके
विधायकों को अपने पाले में करके सरकार गिरा दी। झारखंड में जरूर सरकार का
हिस्सा है,मगर कब तक यह राज्यपाल रमेश बैस पर निर्भर है।
‘भारत
जोड़ो’यात्रा को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं,और गोवा में कांग्रेस के आठ
विधायक बीजेपी केे तंबू में चले गये। बीजेपी को कहने का मौका मिल
गया,राहुल गांधी भारत जोड़ने नहीं,कांग्रेस छोड़ने यात्रा पर निकले हैं।
एक-एक करके कांग्रेस के बड़े नेता और विधायक दस जनपथ के पंजे को मरोड़ते हुए
गेरूआई टीका लगा रहे हैं। दरअसल राहुल की पकड़ अपनी पार्टी में नहीं है।
विधान सभा चुनाव से पहले 4 फरवरी 2022 को पणजी में कांग्रेस के सभी
उम्मीदवारों ने एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। हलफनामा में विधायकों ने
यह कहा था,पांच साल तक पार्टी नहीं छोड़ेंगे और कांग्रेस में रहकर गोवा की
जनता का सेवा करेंगे।
गोवा
में जो हुआ, उससे दस जनपथ को सबक लेना चाहिए। यही खेला झारखंड में भी हो
सकता है। वैसे भी कांग्रेस के तीन विधायक बंगाल में रुपयों के साथ पकड़े गये
हैं। उन्हें इस शर्त पर जमानत मिली है, कि तीन माह तक बंगाल छोड़कर कहीं
नहीं जायेंगे। दरसअल दस जनपथ में कांग्रेस के कुछ नेताओं का अपना एक घेरा
है,और उस घेरे को तोड़कर जो भी कांग्रेसी अंदर जाने की कोशिश करता है,उसे
गुलाम नहीं, आजाद बनकर निकलना पड़ता है।
दस जनपथ ने
गोवा में माइकल लोबो को नेता प्रतिपक्ष बनाकर विधायकों को नाराज कर दिया।
क्यों कि नेताप्रतिपक्ष की दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत थे।
कांग्रेस हाईकमान के इस फैसले से विधायक और दिंगबर कामत के नाराज होने से
कांग्रेस टूटी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सदानंद तनवड़े ने सभी विधायकों को
भाजपा की सदस्यता दिलाने में देर नहीं की। दस जनपथ ने एक नहीं कई गलतियांँ
की। गोवा में हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष गिरीश से
इस्तीफा ले लिया। लेकिन प्रदेश प्रभारी दिनेश गुंडूराव पर कोई कार्रवाई
नहीं की। जबकि गुंडूराव से पार्टी के कई सीनियर चुनाव के पहले से नाराज चल
रहे थे। दस जनपथ ने पी.चिदंबरम को कांग्रेस का ऑब्जर्वर बनाकर भेजा था।
लेकिन कांग्रेस के अंदर चल रहे सियासी द्वंद को वे हल नहीं निकाल पाए।
पार्टी के अंदर हाथ मिलाने की सियासत के बजाय ‘पंजा लड़ाने’ की सियासत तेज
हो गई। गोवा कांग्रेस के नए अध्यक्ष अमित पाटकर को लेकर पार्टी के अंदर
खेमेबाजी शुरू हो गई। और उसका असर राष्ट्रपति चुनाव में भी देखा गया।
पार्टी के चार विधायकों ने क्रास वोटिंग की लेकिन पार्टी ने डैमेज कंट्रोल
का कदम नहीं उठाया। दस जनपथ ने जुलाई में पार्टी विरोधी साजिश में शामिल
होने का आरोप लगाकर दिगंबर कामत और माइकल लोबो पर कार्रवाई की थी। उस वक्त
हाई कमान ने कांग्रेस को टूटने से बचने के लिए अपने पांँच विधायकों को
चेन्नई शिफ्ट कर दिया था।
कांग्रेस
सिर्फ गोवा में ही नहीं टूटी। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की
वजह से कांग्रेस की सरकार चली गई। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंद ने पार्टी से
बगावत कर के शिवसेना के सियासी वजूद पर संकट खड़ा कर दिया और बीजेपी के साथ
मिलकर सरकार बना लिये। कांग्रेस सरकार से बाहर हो गई। झारखंड में कांग्रेस
सरकार में है,लेकिन देर सबेर वहांँ भी सत्ता परिवर्तन की संभावना है।
कर्नाटक,तमिलनाडु में कांग्रेस की देह को पार्टी के विधायक काट चुके हैं।
दरअसल बीजेपी ने देश के राज्यों में अपनी सरकार बनाने के लिए जो सियासी खेल
खेला है,उससे विपक्ष औधे मुंह गिरते जा रहा है।
सिर्फ
काग्रेस ही नहीं अन्य पार्टी में भी सेंध लगाने का सियासी उपक्रम बीजेपी
का चला। 2016 से 2020 तक एनसीपीपी के 14 विधायकों ने पार्टी छोड़ी। वहीं
बीजेपी के 19 विधायको ने पार्टी छोड़ी। सबसे ज्यादा कांग्रेस के विधायकों
ने कांग्रेस का साथ छोड़ा। 2016 से 2022 तक में 178 विधायकों ने पार्टी
छोड़ी। बीएसपी के 17 विधायकों ने हाथी पर सवारी करना छोड़ दिया। और टीडीपी के
17 विधायकों ने पार्टी छोड़ी। इसके पीछे वजह रही बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता
में बने रहना। तीसरा मोर्चा गठन के लिए एक ओर नीतीश बीजेपी मुक्त भारत के
लिए तमाम क्षेत्रीय दलों के प्रमुख से मिल रहे हैं, बिहार में बीजेपी से
गठबंधन तोड़ने के बाद सी.एम. नीतीश कुमार के साथ बीजेपी ने खेला कर दिया।
मणिपुर में जेडीयू के 5 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं। बीजेपी का कहना
है जो विधायक अपनी पार्टी से संतुष्ट नहीं हैं वे बीजेपी में आ रहे हैं। न
कोई भय है और न आॅपरेशन लोटस है।
No comments:
Post a Comment