Sunday, November 27, 2022

प्यार में धोखा,साजिश और खून आता कहांँ से है..!






'अभिभावकों से डरने वाला लड़का हो या फिर शर्मिली,नाजुक,भोली छवि वाली लड़की,अब कहीं गुम हो गई है। डर फिल्म के खलनायक की तरह समाज में प्रेमियों की संख्या बढ़ी है। प्यार,में धोखा,साजिश और खून के ऐसेे मामले समाज की नींव पर प्रहार है।'

0 रमेश कुमार ‘रिपु’
इक्कीसवी सदी में मुहब्बत की एक नई पीढ़ी का उदय हुआ है। जिसने संस्कार और मर्यादा की सारी हदें पार कर फिल्मी दुनिया को एक नई पटकथा दी। देश की राजधानी दिल्ली से लगे महरौली इलाके में आफताब ने लिव इन में रहने वाली श्रद्धा के 36 टुकड़े कर अपराध की दुनिया को चौका दिया। इसी तरह देहरादून में साॅफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की निमर्म तरीके से 72 टुकड़े किये थे। शव के टुकड़े डीप फ्रीजर में रखा। हर दिन एक टुकड़ा पाॅलीथीन में भरकर फेक आता था। इस हत्या में हाॅलीवुड फिल्म ‘साइलेंस आॅफ दी लैंड’ का भी रोल है। इस फिल्म का हीरो भी अपनी गर्ल फ्रेंड का बड़ी बेरहमी से हत्या करता है।

लखनऊ में सूफियान अपनी 19 वर्षीय प्रेमिका निधि गुप्ता पर धर्म बदलने का दबाव बनाया। उसके मना करने पर उसे चौथी मंजिल से नीचे फेक दिया। संगम विहार में रामवीर लिव इन रिलेशन में रह रही अपनी गर्ल फ्रेंड को लोहे के राड से पीट-पीट कर हत्या कर दिया। मध्यप्रदेश के एक रिसाॅर्ट में अभिजात पाटीदार ने अपनी 22 वर्षीय प्रेमिका की गला रेतकर हत्या कर दी। उक्त घटनाओं ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। आखिर प्यार में धोखा,साजिश और खून आता कहाँ से है? अपनी प्रेमिका या फिर पत्नी से प्यार करने वाले अचानक डर फिल्म के खलनायक शाहरूख खान कैसे बन जाते है? 

कन्नड़ फिल्मों की नायिका मारिया सुसैराज की दोस्ती सिनर्जी एकलैब्स में काम करने वाले नीरज ग्रोबर से हो गई। नौ सेना में काम करने वाले उसके पहले ब्वाॅय फ्रेंड जेरोम को यह दोस्ती नहीं भाई। उसने दोनों को एक साथ देख लिया। तकरार के बाद जेरोम ने छुरा भोंक कर ग्रोवर की हत्या कर दी। 

शहरी भारत में भावावेश में किये जाने वाले अपराध में तेजी ने समाज को झकझोर दिया है। सन् 1990 के बाद के दशक में तलाक की संख्या में बढ़ोतरी हुई तो 21वीं सदी में स्वच्छंदता और कामूकता मे भी इजाफा हुआ। इसके पीछे एक वजह यह भी है,कि तेजी से पंजाब, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों में शहरीकरण अधिक हुआ। और प्रेमकरण और यौन संबंधी हत्याओं की सबसे बड़ी वजह बनें। 

उभरती माॅडल और अभिनेत्री राउरकेला की रहने वाली अभिनेत्री मून दास ने अविनाश पटनायक से रिश्ते खत्म कर लिए थे। इस अपमान को अविनाश बर्दाश्त नहीं कर सका। वह मुंबई गया। प्रेमिका की माँ,और उसके मामा की हत्या कर दिया। जब मून दास फ्लैट में उसे बंद करके भाग गई,तो वह स्वयं को गोली मार लिया। 

दरअसल सामाजिक ताना बाना बदल गया है। नये इंडिया में एक नई संस्कृति ओढ़ने वाली पीढ़ी की धड़कन देश सुन रहा है। जो अपनी भौतिक,पेशागत और यौन महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए परंपरागत बंधनों को तोड़ कर लिव इन मे रहने लगा है। इसे बुरा भी नहीं मानता? देह उनके लिए उत्सव है। तू राजी, मैं राजी,फिर क्या डैडी, क्या अम्मा का मामला है। अभिभावकों के विरोध और उनकी समझाइश का कोई असर नहीं। ज्यादा बोलने पर दो टूक जवाब,यह मेरी लाइफ है। मेरी मर्जी,इसे जैसा जीऊँ। आप कौन होते हैं,मुझे मना करने वाले।
 
अभिभावकों से डरने वाला लड़का हो या फिर शर्मिली,नाजुक,भोली छवि वाली लड़की अब कहीं गुम हो गई है। भेदभाव और दुर्व्यवहार  पर महिलाओं के पलटवार को अपनी बेइज्जती समझते हैं। श्रद्धा का विरोध आफताब बर्दाश्त नहीं कर सका और उसके 36 टुकड़े कर डाला। प्यार,में धोखा,साजिश और खून के ऐसेे मामले समाज की नींव पर प्रहार है। 

बाली उमर का बुखार लड़कियों को दिमाग से सोचने नहीं देता? सिर्फ दिल से सोचती हैं। जबकि लड़के दिमाग से सोचते हैं। यही वजह है,कि ज्यादातर जवाँं उमर की मुहब्बत की कहानी खून में भीगी होती हैं? परिपक्व उमर वालों की भी मुहब्बत में धोखा,साजिश और खून है। जैसा,कि मध्यप्रदेश का एक खूनी प्रेम त्रिकोंण, जिसने आरटीआई एक्टिविस्ट शहला मसूद की जान ले ली। दो बच्चों की मांँ जाहिदा परवेज ध्रुव  नारायण को दिल बैठी या कहें उनसे व्यावसायिक रिश्ते को दैहिक रिश्ते में बदल ली। और जब उसे लगा,कि ध्रुव नारायण से शहला मसूद भी प्यार की पींगे बढ़ा रही है। उसकी वजह से उसे न केवल प्यार बल्कि, व्यावसायिक नुकसान भी है,तो उसने पेशेवर हत्यारे के जरिये उसकी हत्या करा दी। लेकिन आफताब और श्रद्धा का मामला अलहदा है। यहांँ आफताब स्वयं प्रेमी है और अपनी प्रेमिका का हत्यारा भी है।

आफताब की क्रूरता से स्पष्ट है,कि श्रद्धा के प्रति आफताब में कोई श्रद्धा नहीं थी। उसकी लाश के 36 टुकड़े करने पर उफ तक नहीं किया। आफताब ‘डर’ फिल्म के खलनायक से भी अधिक खतरनाक किस्म का प्रेमी निकला। वहीं आफताब ने कई बार श्रद्धा के साथ मारपीट किया। फिर भी श्रद्धा का झुकाव उसके प्रति कम नहीं हुआ। अभिभावक कितना भी अपने बच्चों से नाराज हों,मगर दुश्मन नहीं है। यदि वो अपने घर वालों से बात करती,तो बच सकती थी। 

भारत की यौन क्रांति का यह भयावह चेहरा है। जहाँं जुनून में लोग अपना होशो हवाश खो रहे हैं। खाने पीने की चीजों की तरह अब यौन सुख का बाजारीकरण हो गया है। दाम्पत्य जीवन के मूल्य छिन्न भिन्न हो गए हैं। सामाजिक मान्यता और मर्यादा से जकड़े संबंधों के दिन अब लद गए। गर्ल फ्रेंड और ब्वाॅय फ्रेंड रखना स्टेट्स सिंबल बन गया है। बाद में नतीजा जो भी हो।

नई पीढ़ी को इससे कोई मतलब नहीं,कि कविता में भाषा क्या करती है। मुहब्बत में गालिब की आतिश के क्या मायने हैं। सास भी कभी बहू थी सीरियल में खलनायिका मदिरा एक रात के लिए मिहिर को संबंध के लिए ललचाती है। वहीं तुलसी और पार्वती मध्यम वर्ग को नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। जबकि नई पीढ़ी की बहुएं और बेटियांँ परंपरागत पतिव्रता पत्नियां अब नहीं रही। अनुपमा,इमली,जैसे धारावाहिक में नैतिकता का चोला उतारने वाले पात्र सात फेरों की पवित्रता को दागदार कर रही हैं। टी.वी.और फिल्मों की नैतिकता से भारत भले न बदले,मगर उसका दृष्टकोंण बखूबी बदला है।

 

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