Friday, September 22, 2023

सियासी हेंगर में लटका नारी शक्ति एक्ट

"मोदी सरकार नारी शक्ति वंदन विधयेक तैयारी करके लाती तो बीजेपी के लिए चुनावी मास्टर स्ट्रोक होता। अब यह विधेयक 2029 तक टल गया। जातिय जनगणना और परिसीमन बगैर महिला आरक्षण बिल केवल चुनावी जुमला है। वहीं रोहणी आयोग की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि देश में सैकड़ों जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा।"
रमेश कुमार रिपु .प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी सियासत के बाजीगर है। उन्हें पता है, सियासी बाजार में हलचल के लिए क्या करना चाहिए। और उन्होने वही किया। एक नया मुद्दा उछाल कर देश भर का ध्यान अपनी ओर खींचा। मुद्दे पर विपक्ष किस तरह हमला करेगा और मुद्दा कितने घंटे जिंदा रहेगा,इसकी चिंता नहीं करते। हैरानी वाला सवाल यह है,कि जब देश में जनगणना ही नहीं हुई है,फिर सरकार कैसे कल्याणकारी योजना बना लेती है। इतना ही नहीं, सरकार इसका आकलन कैसे कर लेती है, कि इतने लोगों को योजना का लाभ मिल रहा है। यह एक यक्ष प्रश्न है। प्रश्न तो यह भी है कि मोदी सरकार ने बिना जनगणना,परिसीमन के महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश कैसे कर दिया। क्या नई संसद भवन में एक सियासी इतिहास की पटकथा रचने के लिए ऐसा किया। जबकि सरकार के पास किस जाति की कितनी महिलाएं हैं,उसका डाटा नहीं है। मोदी ने नारी शक्ति वंदन विधेयक में ओबीसी का जिक्र नहीं किया। जबकि ओबीसी बीजेपी से नाराज है। बीजेपी को सन् 2014 के चुनाव में उच्च पिछड़ी जाति 30 फीसदी और 2019 में 41 फीसदी वोट की थी। निम्न पिछड़ी जाति 2014 में 42 फीसदी और 219 में 48 फीसदी वोट की थी। वहीं अन्य पिछड़ी जाति बीजेपी के साथ 2014 में 34 फीसदी और 2019 में 44 फीसदी वोट की। जाहिर है मोदी ने ओबीसी को नजर अंदाज कर बहुत बड़ी गलती की। और इंडिया गठबंधन ने इसकी वकालत कर सत्ता पक्ष को चोट दे दी। संसद में 85 सांसद ओबीसी हैं। दो दलित कैबिनेट मंत्री हैं। ग्यारह महिला मंत्री हैं। अति पिछड़ी जाति के 19 मंत्री हैं। ओबीसी के पांच कैबिनेट और 29 मंत्री हैं। हर राज्यों में वोट शेयरिंग से पता चलाता है, कि जिधर सत्ता रही ओबीसी उधर गए। ▪️सियासी भूगोल बदला.. देश की गंभीर समस्याओं से विपक्ष और देशवासियों का ध्यान भटकाने के लिए मोदी सरकर ने महिला आरक्षण बिल का झुनझुना लाई है। यह जानते हुए भी कि महिला आरक्षण बिल के रास्ते में परिसीमन और डेलिमिटेशन के रोड़े हैं। यह काम 2024 के आम चुनाव तक संभव नहीं है। एस.सी,एसटी और ओबीसी का कोटा कितना दिया जाए यह भी बगैर जातिय गणना के संभव नहीं है। हर दस साल बाद सियासी भूगोल बदल जाता है। मोदी सरकार नारी शक्ति वंदन विधेयक तैयारी करके लाती तो बीजेपी के लिए चुनावी मास्टर स्ट्रोक होता। अब यह विधेयक 2029 तक टल गया। जातिय जनगणना और परिसीमन बगैर महिला आरक्षण बिल केवल चुनावी जुमला है। वहीं रोहणी आयोग की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि देश में सैकड़ों जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा। ▪️बीजेपी ने लटकाया बिल.. सन् 2014 और 2019 में बीजेपी ने अपने घोषणापत्रों में महिलाओं को 33 आरक्षण देने का वादा किया था। लेकिन उसे लटकाए रखा। महिला आरक्षण बिल मोदी सरकार ने इसलिए लाया ताकि उसे चुनावी औजार बना सकें। लेकिन विपक्ष ने उसे भोथरा कर दिया। सदन में इससे पहले भी चार दफा महिला आरक्षण बिल लाया गया था। और उसकी भू्रण हत्या हो गयी। वर्ष 2010 में महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से पास हुआ लेकिन, बात आगे नहीं बढ़ी। उससे पहले विधेयक को 1998,1999, 2002 और 2003 में संसद से पारित कराने के प्रयास हुए थे। 12 सितंबर 1996 को एच.डी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में ससंद में महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया था। उस समय यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी,जो 13 पार्टियों का गठबंधन था। लेकिन सरकार में शामिल जनता दल और अन्य कुछेक पार्टियों के नेता महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं थे। सियासत में महिलाओं की हिस्सेदारी कैसे बढ़े सदन में और सदन के बाहर बातें होती रही है। लेकिन राजनीति दलों में इच्छा शक्ति की कमी हमेशा देखी गयी। इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता, कि सियासी मर्द इसके पक्षधर नहीं हैं,कि राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़े। जैसा कि मुलायम सिंह यादव ने कहा था,कि महिलाओं की संख्या सदन में बढ़ जाने पर उन्हें देखकर पुरुष सीटी मारेंगे। सोच बदले तो देश बदले। जाहिर सी बात है,केवल बिल पास हो जाना ही महत्वपूर्ण नहीं है। व्यावारिकि रूप लेता भी दिखना चाहिए। सिफारिशें भी की गयी, कि लोकसभा और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी जाएं। इसे लेकर रूप रेखा भी बनी। संसद में उसे कानूनी दर्जा भी दिलाने की कोशिश होती रही हैं। लेकिन अलग- अलग सियासी दलों के विचारो में भिन्नता के चलते बिल मुकम्मल नहीं हो सका। पिछले सत्ताइश सालों से यह विधेयक अधर में था। सन् 2029 के आम चुनाव में यह बिल लागू हुआ तोे सदन में 82 की जगह 181 महिला सांसद दिखेंगी। नारी शक्ति वंदन विधेयक को केवल 15 सालों तक ही लागू रखने का प्रस्ताव है। इसके बाद राजनीति में महिलाओं की भागेदारी सशक्त रहने पर इस कानून की शायद जरूर न पड़े। ▪️विधेयक का विरोध क्यों.. महिला आरक्षण बिल पर केवल सामाजवादी और वामपंथी दलों ने खिलाफत की। उनका कहना था कि पिछड़े तबके की महिलाओं के संदर्भ में इस बिल में कोई स्पष्ट रूप रेखा तय नहीं की गयी है। देवगौड़ा के समय की बात हो या फिर राजीव गांधी के समय भी ऐसा ही था। और अब मोदी सरकार के समय भी इस बिल को लेकर यही सवाल उठा है। नारी शक्ति वंदन विधेयक में भी तैतीस फीसदी आरक्षण की बात की गयी है,लेकिन अलग- अलग जाति की महिलाओं का कोटा कितना होगा लोकसभा और विधान सभा के चुनाव में यह नहीं बताया गया है। आरक्षित सीटों से बाहर भी महिलाएं चुनाव लड़ती आई हैं,उसे कायम रखा गया है। विधयेक में अन्य पिछड़ी जातियों का कोटा निर्धारित नहीं होने से इसका विरोध हो रहा है। मोदी जानते थे,ऐसा होगा। सरकार की मंशा नारी शक्ति विधयेक को केवल उछालना था। इसीलिए उसने जनगणना 2022 में नहीं कराया और न ही परिसीमन। ▪️सोशल इंजीनियरिंग.. नारी शक्ति वंदन विधेयक के जरिए विपक्ष सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति करना चाहता है। वहीं सदन में स्मृति इरानी कहती हैं, कि संविधान के मुताबिक धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। विपक्ष भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है। अब विपक्ष महिला आरक्षण की लड़ाई ओबीसी कोटे तक ले आया है। प्रथम दृष्टया ये बिल आरक्षण देने की नीयत से नहीं लाया गया है। जैसा कि बसपा सुप्रीमों कहती हैं,कि महिला आरक्षण बिल तुरंत लागू नहीं किया जा सकता। यह बिल सन् 2029 से पहले तभी संभव है,जब एससी,एसटी और ओबीसी बड़ा दिल दिखाएं। वो 2024 के चुनाव में आरक्षण मिलने की वकालत न करें। यदि ऐसा हुआ तो फिर इसकी कोई गारंटी नहीं है, कि अगली सरकार तैंतीस फीसदी आरक्षण पर पुर्नविचार करे। चूंकि देश में ओबीसी जाति के वोटर बहुत हैं। इसलिए हर सियासी दल चाहता है कि ओबीसी को आरक्षण मिले। ▪️सियासी हेंगर में नारी शक्ति.. सवाल यह है कि नारी शक्ति वंदन विधेयक कैसे लागू होगा? संसद के दोनों सदनों में पास कराना होगा। आधे राज्यों की विधान सभा में पास हो। रोहणी आयोग की रिपोर्ट कहती है,38 जातियों का दूसरे पर एक चौथायी कब्जा है। सिर्फ 10 फीसदी जातियों को आरक्षण का लाभ दस फीसदी मिला हुआ है। 983 जातियों को आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला। 994 जातियों को महज 2.68 फीसदी आरक्षण मिला है। देश की 506 ऐसी जातियां है, जिन्हें करीब 22 फीसदी लाभ मिला। सियासी नजरिए से महिला आरक्षण से महिला सशक्तिकरण होगा, इसकी कल्पना बेमानी है। महिलाएं खुश हो सकती हैं,कि नए बिल से उन्हें समानता का अधिकार मिलेगा। जबकि अभी सियासी हेंगर में नारी शक्ति बिल लटका हुआ है।

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