Friday, September 22, 2023

एंकरों का बाॅयकाॅट,टी.आर.पी.को लगी वॉट

"क्या यह मान लिया जाए कि सन् 2014 के बाद से पत्रकारिता का चेहरा बदल गया है। उसे रतौंधी और दिनौधी हो गयी है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने नफरती एंकरों की दुकान का बाॅयकाॅट करने फैसला किया है।इंडिया गठबंधन ने जिस मीडिया को गोदी मीडिया का नाम दे रखा है,क्या उसका अंत हो जाएगा। अगला लोकसभा का चुनाव गोदी मीडिया बनाम इंडिया मीडिया के बीच होगा।" - रमेश कुमार "रिपु" क्या पत्रकारिता के नए युग की शुरूआत होने वाली है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने चौदह एंकरों का बाॅयकाॅट करने का फैसला किया है। इंडिया गठबधंधन के बैन करने से क्या देश की राजनीति की दिशा बदल जाएगी? या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया का स्वरूप। इंडिया गठबंधन ने जिस मीडिया को गोदी मीडिया का नाम दे रखा है,क्या उसका अंत हो जाएगा। अगला लोकसभा का चुनाव गोदी मीडिया बनाम इंडिया मीडिया के बीच होगा। ये सवाल नौ साल बाद उठ रहे हैं। जिन एंकरों के कार्यक्रमों में इंडिया गठबंधन ने अपने प्रवक्ताओं को नहीं जाने को कहा है,जाहिर सी बात है इससे न्यूज चैनलों की टीआरपी गिर जाएगी। इस समय जिन न्यूज एंकरों के शो को बाॅयकाॅट किया गया है वो एंकर भारी नाराज हैं। जैसा कि न्यूज एंकर रुबिका लियाकत ने इंडिया गठबंधन के बहिष्कार की लिस्ट में अपना नाम पर होने पर लिखा है, इसे बैन करना नहीं,डरना कहते हैं। बहिष्कार की वजह.. सवाल यह है कि दिल्ली में शरद पवार के घर पर हुई बैठक के बाद चौदह टी.वी.एंकरो की सूची क्यों बनी जिनके कार्यक्रम में इंडिया गठबंधन के नेताओ के नहीं जाने की बात कही गयी। इंडिया गठबंधन ने चौदह एंकरो का बाॅयकाॅट क्यों किया। जबकि मीडिया की ताकत से हर कोई परिचित है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक राजनीतिक संगठन ने मीडिया के बाॅयकाॅट का फैसला किया है। एक कहावत है, किसी की राजनीति को मार देना है तो उसका नाम ही न लो। तो क्या यह मान लिया जाए कि टी.वी. शो में जब इंडिया गठबंधन का कोई प्रवक्ता नहीं होगा तो बीजेपी की चर्चा नहीं होगी। कोई सियासी बहस नहीं होगा। नतीजा शाम को जो सियासी बहस का बाजार टी.वी. में दिखता है वो बंद हो जाएगा। यानी चुनाव तक विपक्ष टी.वी.पर नहीं आएगा। इंडिया गठबंधन का ऐसा फैसला लेने के पीछे वजह साफ है। टी.वी डिबेट शो में एंकर बीजेपी प्रवक्ताओं को ज्यादा समय देते हैं। और पूरा समय मोदी सरकार की तारीफ करते हैं। हैरानी वाली बात है कि एंकर स्वयं बीजेपी का प्रवक्ता बन जाते हैं। सवाल कुछ होता है और बीजेपी प्रवक्ता जवाब कुछ देते हैं,लेकिन एंकर उन्हीं का पक्ष लेते है। चित्रा त्रिपाठी,अंजना ओम कश्यप और रूबिया लियाकत अक्सर ऐसा ही करती है। टी.वी.में सार्थक बहस की बजाए सम्प्रदायिक तनाव वाली बातें होती है। जैसा कि कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, हर शाम पाँच बचे कुछ चैनलों पर नफरत का बाजार सज जाता है। पिछले नौ साल से यही चल रहा है। अलग-अलग पार्टियों के कुछ प्रवक्ता इन बाजारों में जाते हैं। कुछ एक्सपर्ट जाते हैं। कुछ विश्लेषक जाते हैं। लेकिन सच तो ये है कि, हम सब वहां उस नफरत बाजार में ग्राहक के तौर पर जाते हैं। पत्रकारिता बदल गयी.. क्या यह मान लिया जाए कि सन् 2014 के बाद से पत्रकारिता का चेहरा बदल गया है। उसे रतौंधी और दिनौधी हो गयी है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने नफरती एंकरों की दुकान का बाॅयकाॅट करने फैसला किया है। गौरतलब है कि 11 मार्च को सुधीर चौधरी के डीएनए प्रोग्राम में एक जिहाद चार्ट दिखाया गया था। जिसमें उन्होंने जिहाद के अलग-.अलग रूप बताए थे। हालाँकि इस शो के बाद सोशल मीडिया समेत कई जगहों पर इस कारण उन पर इस्लामिक कट्टरपंथियों और सेकुलरों ने निशाना साधा और उनके खिलाफ कार्रवाई की माँग की थी। उनके खिलाफ कर्नाटक में गंभीर धाराओं में मामला दर्ज हुआ। हाईकोर्ट ने कहा कि, पहली नजर में सुधीर के खिलाफ मामला बनता है। जांच में सही पाया गया तो कार्रवाई होगी। नया लोकतंत्र गढ़ा जा रहा.. मीडिया यदि फेक न्यूज के जरिए सत्ता पक्ष की छवि खराब करने की कोशिश करेगा तो उसे लोकतंत्र का निष्पक्ष पाया नहीं माना जा सकता। और यदि मीडिया किसी एक पार्टी के लिए काम करने लगेगा तो बात साफ है कि, वह किसी एक पार्टी को खत्म करने की सुपाड़ी ले रखा है। पूंजी का ऐसा खेल देश में पहली बार देखा जा रहा है। सवाल यह है कि चौदह एंकर ही क्यों,और क्यों नहीं? इंडिया गठबंधन का मानना है कि ये एंकर लोकतंत्र को खत्म करने का काम कर रहे हैं। इससे इंकार नहीं है कि, तमाम चैनलों के भीतर कारपोरेट का पैसा लगा हुआ है। सरकारी विज्ञापनों के लिए वो सरकार का पक्षधर हो गए हैं। एनडीडी टी.वी. अडानी का है और नेटवर्क 18 मुकेश अंबानी का। जाहिर सी बात है कि विपक्ष को मीडिया खत्म करने की जो रणनीति बनाई उसके जाल में फंसने से बचने इंडिया गठबंधन ने चुनाव से पहले एंकर के जरिए टी.वी.चैनल का बाॅयकाॅट किया है। वैसे चैनल के अपने दर्शक हैं। चैनल की अपनी साख है। स्वायता है। उसकी टी.आर.पी.है। उस पर नकेल कैसे लगाया जा सकता है। सत्ता के समानांतर एक लकीर खींचने के लिए इंडिया गठबंधन ने एंकरों के बाॅयकाॅट का फैसला किया। क्यों कि विपक्ष की बात चैनलों के जरिए जनता तक आ नहीं रही थी। इंडिया गठबंधन जनता को यह बताना चाहता है कि, एंकर सत्ता पक्ष के लिए लोकतंत्र गढ़ रहे है। चैनल यह मानते हैं कि वह केन्द्र सरकार के साथ रहेंगे तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी। घपले- घोटाले सामने नहीं आएगा। चैनल वालों का अपना बिजेनेस माॅडल बदल गया है। 2014 के बाद सरकार ने मीडिया पर चार गुना पैसा खर्च करने लगी। इडिया टीवी 638 करोड़,न्यूज सेंशन 177 करोड़ रुपए,टीवी18, 7808 करोड़ रुपए एनडीटीवी का सालाना 140 करोड़ रुपए आय है। अब सरकार ने जिन राज्यों में गैर बीजेपी की सरकार है, वहां इन चैनलों के विज्ञापन में कटौती करने का फैसला किया है। हो सकता है, आने वाले समय में इंडिया गठबंधन और एंकरो की सूची जारी करे। बीजेपी का कहना है कि, इंडिया गठबंधन एक नया लोकतंत्र गढ़ रहा है पत्रकारिकता के मूल्यों का हनन.. आरोप है कि इन एंकरो के कार्यक्रम में केवल एंकर ही नहीं, कुछ ऐसे लोग बुलाए जाते हैं जो आरएसएस और बीजेपी का समर्थन करते हैं। विपक्ष की खिलाफत करते हैं। ये सिर्फ राजनीतिक पक्षपात की बात नहीं है, ये पत्रकारिता के मूल्यों के उल्लंघन की भी बात है। मीडिया जगत में यह माना जाता है कि, सन् 2014 के बाद पत्रकारिता के मूल्य बदल गए। किसी भी टी.वी एंकर ने अमितशाह, नरेन्द्र मोदी,योगी आदित्यनाथ या फिर राजनाथ से महंगाई,बेरोजगारी,देश की अर्थ व्यवस्था,अच्छे दिन कब आएंगे, मणिपुर और अदानी मुद्दे पर कोई सवाल नहीं किया। सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं,सरकार के इशारों पर चलने वाले न्यूजरूम जो पीएमओ के चपरासी के वॉट्सऐप पर चलते हैं,उनके लिए मेरे मन में कोई सम्मान नहीं वो चरण चुंबन का काम करते हैं। इसलिए चरण चुंबक कहलाएंगे। इंडिया गठबंधन के इस फैसले पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा, न्यूज एंकरों की इस तरह लिस्ट जारी करना नाजियों के काम करने का तरीका है,जिसमें ये तय किया जाता है कि किसको निशाना बनाना है। अब भी इन पार्टियों के अंदर इमरजेंसी के समय की मानसिकता बनी हुई है।" शीर्ष अदालत ने कहा.. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कार्य शैली कटघरे में है, तभी तो प्रधान न्यायाधीश डी.आई.चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिग से लोगों को संदेह होता है कि आरोपी ने ही अपराध किया है। पीठ ने कहा कि मीडिया की रिपोर्टिग की आरोपी की नीजता का उल्लघंन कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय से पुलिस के मीडिया ब्रीफिंग को लेकर गाइडलाइंस बनाने के लिए कहा है। जाहिर सी बात है कि शीर्ष अदालत भी मानती है कि,कहीं न कहीं मीडिया भी एक नया लोकतंत्र गढ़ है। जो देशहित में नहीं है।

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