Saturday, May 25, 2024

संघ से पंगा सस्ता या महंगा,

 


सांस्कृतिक ताकत से सियासी मशीन में तब्दील संघ के क्या बुरे दिन आने वाले हैं? अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं है कहकर जे.पी.नड्डा ने केवल  चौकाया ही नहीं है,बल्कि संकेत दे दिया है, कि पार्टी में अब आदेश नागपुर का नहीं, गुजरात लाॅबी का चलेगा। चार जून को बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो संघ प्रमुख गुजरात लाॅबी को दर्शक दीर्घा में बिठा देंगे और परिणाम उल्टा हुआ तो संघ का वजूद मोदी खत्म कर देंगे।  

-- रमेश कुमार ‘रिपु’
क्या वाकई में मोदी की बीजेपी बदल गयी है! उसकी चाल। उसका चेहरा। उसका चरित्र। और शुचिता अब 2014 जैसी नहीं है। इसीलिए अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं। क्या वाकई में अकेले अपने दम पर बीजेपी इतनी मजबूत हो गयी है,कि उसे संघ की जरूरत नहीं है। इसीलिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने संघ और बीजेपी में अंतर क्या है,इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये साक्षात्कार में देश को बताया। अटल बिहारी बजापेयी के समय बीजेपी को चलाने के लिए संघ की जरूरत थी। क्यों कि उस समय बीजेपी कम सक्षम और छोटी पार्टी हुआ करती थी। आज बीजेपी पहले से अधिक सक्षम है। बीजेपी अपने आप को चलाती है। बीजेपी के नेता अपने कर्तव्य और भूमिकाएं निभाते हैं। संघ एक सास्कृतिक और समाजिक संगठन है। जबकि बीजेपी राजनीतिक पार्टी है। संघ वैचारिक तौर पर काम करता है।हम अपने मामलों को अपने तरीके से संभालते हैं। और राजनीतिक दलों को यही करना चाहिए।

नागपुर के फैसले नहीं चलेंगे-सवाल यह है,कि ऐसा क्या हो गया इन दस सालों में,कि संघ की शाखा से निकली बीजेपी को आज संघ की जरूरत नहीं है।नड्डा ने संघ से पंगा लिया या फिर उन्हें कहा गया,कि संघ को बता दो ‘किंग ऑफ बीजेपी मोदी’ का दौर है। जिसमें बीजेपी को किसी के सहारे की जरूरत नहीं है।नड्डा के बयान पर न अमित शाह कुछ बोले औरे न ही मोदी का कोई बयान आया है। इसका सीधा मतलब है,कि अभी तक जो फैसले नागपुर से लिए जाते थे,वो अब बीजेपी के लिए दिल्ली से लिए जाएंगे।यानी कह सकते हैं,कि कभी डिफरेंट विथ अदर्स का घमंड करने वाली बीजेपी ‘पार्टी विद डिफरेंस’ बन गयी। क्या यह मान लिया जाए कि सांस्कृतिक ताकत से सियासी मशीन में तब्दील संघ के बुरे दिन आने वाले हैं? अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं है कहकर जे.पी.नड्डा ने केवल चौकाया ही नहीं है,बल्कि संकेत दे दिया है कि पार्टी में अब आदेश नागपुर का नहीं गुजरात लाॅबी का चलेगा। चार जून को बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो संघ प्रमुख गुजरात लाॅबी को दर्शक दीर्घा में बिठा देंगे और परिणाम उल्टा हुआ तो संघ का वजूद मोदी खत्म कर देंगे।  

मोदी और मोहन में संवादहीनता - नड्डा के बयान से एक बात साफ है,कि मोदी और मोहन भागवत के बीच मधुर संबंध नहीं हैं। उनके बीच संवाद ठप है। जबकि अभी दो चरण के मतदान होने हैं। यू.पी.महाराष्ट्र ही नहीं,पूरे देश में इस बार संघ ने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। उसने बीजेपी को इस बार के चुनाव में कोई सहयोग नहीं किया। संघ की मदद से बीजेपी को हर चुनाव में दस से पन्द्रह फीसदी वोट का फायदा हो जाया करता था।इस बार संघ की चुप्पी साध लेने की वजह से राहुल गांधी दावा कर रहे हैं,कि मोदी चार जून को पी.एम.नहीं रहेंगे। चार जून को कौन पी.एम.रहेगा या देश को नया पीएम मिलता है,सब कुछ सियासी पर्दे के अंदर है। लेकिन नड्डा के बयान से बीजेपी के अंदर ही हांडी खदबदाने लगी है। शिवराज सिंह चौहान,योगी आदित्यनाथ,नितिन गडकरी,वसुंधरा राजे सिधिया,डाॅ रमन सिंह,राजनाथ और मुख्तार अंसारी आदि की निगाहें चार जून पर टिकी है। यदि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो मोदी की वजह से जो हाशिये में डाल दिये गये हैं,वो सारे मोदी की सियासी रेखा को मिटाने आगे आ जाएंगे।

दो विचारधारायें जन्मी - सन् 1925 में गठित संघ भाजपा की कमान अपने हाथ में रखने के मकसद से हर प्रदेश में संगठन मंत्री का पद देकर अपना एक प्रतिनिधि भेजता आया है। यही संगठन मंत्री धीरे-धीरे माल कमाने वाले नेताओं के रूप में भाजपा को चलाने लगे। तभी से संघ में राजनीति को लेकर दो विचारधाराएं आकार लेने लगी। संघ के लोग बीजेपी में आकर विलासी जीवन जीने लगे। ऐसे लोग वापस संघ में जाना नहीं चाहते।मोदी इस पर लगाम लगाना चाहते हैं। देखा जाए तो संघ स्वयं अपने गठन के सिद्धातों से दूर होता चला गया है। भाजपाइयों और सत्ता लोलुपता वालों पर संघ नकेल नहीं लगाता है। संघ का बीजेपी में पकड़ कमजोर करना चाहते हैं मोदी।पार्टी में कई नेता संगठन से बड़े बनने की कोशिश पहले भी करते आए हैं। यूपी में कल्याण सिंह,राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया,कर्नाटक में येदुरप्पा,मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह,नागपुर में नितिन गडकरी आदि। मोदी मानते हैं कि ऐसे लोगों की वजह से पार्टी को नुकसान होता है। मोदी अपनी शर्त पर काम करते हैं। मोदी की खिलाफत जो करता है,उसे वो किनारे करने में जरा भी देर नहीं करते। संजय जोशी का मामला सभी जानते हैं।
बीजेपी पर संघ का दबदबा रहा है। चाहे चुनाव के दौरान उम्मीदवारों का चयन हो या फिर भाजपा के शीर्ष नेता को बदलने का।मोदी अपनी जिद की करते रहे। मोहन भागवत के अति करीबी नितिन गडकरी से उनका कई विभाग छीन लिया। उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहते थे। सीएजी की रिपोर्ट के बाद एनएचएआई अधिकारी अरेस्ट किये गए। नितिन गडकरी को भी अरेस्ट करके मोदी अपने रास्ते से हटाना चाहते थे।लेकिन मोहन भागवत के दखल पर चुप हो गये। संघ चूंकि शाखाओं पर आधारित संगठन है।जो गांव से लेकर शहर तक फैला हुआ है। इन्हीं से निकल कर बीजेपी के नेता आते हैं। अब शाखाएं सिमट गयी तो बीजेपी के कार्य कर्ता बनने लगे। इससे इंकार नहीं है,कि सत्ता सुख की गोद में बैठने वाले संघ के लोग भाजपा पर निर्भर हैं।

बीजेपी से बड़े मोदी - सन् 1977 में जन संघ का जनता पार्टी में विलय हो गया था। जनता पार्टी छिन्न भिन्न हो गयी थी। तब जनसंघ की नीतियों की कोख से बीजेपी का जन्म हुआ। अटल बिहारी बाजपेयी जैसे शब्दों के जादूगर की अगुआई में बीजेपी ने चलना शुरू किया और सत्ता के मंजिल तक पहुंची। मोदी ने अटल की बीजेपी को एक नयी ऊंचाई तक पहुंचाया। देश की सबसे बड़ी पार्टी बनाया। राममंदिर बनाया। धारा 370 खत्म किया। तीन तालाक खत्म किया। कांग्रेस से लड़ते-लड़ते बीजेपी बीजेपी का कांग्रेसी करण हुआ। जो कुछ बचा था,उसे मोदी ने पूरा कर दिया। जिन कांग्रेसियों को भ्रष्ट नेता कहा जाता था,उन सभी को मोदी ने ई.डी.सीबीआइ और आइ.टी का डर दिखाकर बीजेपी में शामिल कर लिया। आज मोदी बीजेपी से भी बड़े बन गए है।

बीजेपी का नया वोट बैंक - बीजेपी ने संघ के हिन्दुत्ववादी ऐजेंडे से बाहर जाकर सोशल इंजीनियरिंग का एक नया वोट बैंक तैयार कर लिया है। इसलिए नड्डा ने कहा,कि अब भाजपा की मथुरा और काशी के विवादित स्थलों पर मंदिर बनाने की कोई योजना नहीं है। जबकि मोहन भागवत चाहते हैं,केन्द्र में हिन्दूवादी सरकार रहे।और भारत,हिन्दू राष्ट्र बने। चूंकि 2025 में संघ अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। लेकिन मोदी अपनी राह चुनने का फैसला किया है। सन् 2014 में मोदी जब पी.एम.बने वो संघ कार्यालय नहीं गए। जबकि मोहन ने कहा था,यह जीत किसी एक व्यक्ति की नहीं,इसमें लाखों करोड़ों संघ के लोगों का भी योगदान है। सन् 2015 में दिल्ली में मध्यप्रदेश सरकार के मध्याचंल भवन में केन्द्र सरकार के मंत्रियों की तीन दिन तक संघ प्रमुख ने एक -एक करके तलब किया था। भाजपा पर अपने नियंत्रण का प्रदर्शन किया था। मोदी को भी जाना पड़ा था। इसके बाद फिर ऐसी बैठक नहीं हुई। मोदी को यह अच्छा नहीं लगा। उसके बाद से गुजरात लाॅबी ने संघ को तवज्जो देना बंद कर दिया। राम मंदिर उद्घाटन के समय भी मोदी ने मोहन भागवत को पूजा स्थल पर बिठाने की बजाए दर्शक दिर्घा में बिठा दिया था। तत्कालीन सर संघ संचालक गुरु गोलवलकर ने भारतीय जनसंध की स्थापना के बाद 1951 में कहा था,जब तक इसकी जरूरत होगी चलाएंगे। वर्ना बंद कर देंगे। यानी पार्टी को यह अंदेशा था, आगे चलकर इसे बंद करना ही पड़ेगा। और मोदी इसी दिशा में अपना कदम बढ़ा दिये है।
मोदी मोदी कहना होगा - जे.पी.नड्डा के बयान के जरिये गुजरात लाॅबी ने यह संकेत दे दिया है कि बीजेपी में रहना है तो मोदी मोदी कहना होगा। जो लोग दावा कर रहे थे, कि भाजपा में व्यक्ति नहीं संगठन बड़ा है। उन्हें जे.पी.नड्डा के बयान से समझ लेना चाहिए।यह अलग बात है कि पीएम मोदी तमिलनाडु,उत्तराखंड के बाद महाराष्ट्र चुनाव प्रचार करने गए।दूसरे चरण के प्रचार के लिए वर्धा आकर नागपुर में जान बुझकर विश्राम किया। उनसे संघ और बीजेपी के छोटे पदाधिकारी और कार्यकर्ता राजभवन में मिलने गए। मगर नितिन गडकरी और मोहन भागवन नहीं मिले। दोनों का उनसे न मिलना मोदी को नागवार गुजरा। इस घटना का सियासी धमाका होना ही था। और दो चरणों के बकाए चुनाव से पहले जो धमाका गुजरात लाॅबी ने जेपी नड्डा के जरिए किया उससे पूरी बीजेपी स्तब्ध है। चार जून को मोदी का रथ नहीं रूका तो मोहन भागवत चाहकर भी मोदी की जगह किसी और को पी.एम.का दायित्व दे पाएंगे,इसमें संदेह है। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का संघ सरकार्यवाह होसबोले से बंद कमरे में एक घंटे बात करना और भैयाजी जोशी से चालीस मिनट तक बातें करना, कई सियासी संदेहों को जन्म देता है। जाहिर सी बात है शिवराज को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से गुजरात लाॅबी से वो नाराज हैं। वसुंधरा राजे सिधिया भी चार जून के चुनाव परिणाम का इंतजार कर रही है। वसुंधरा राजे सिंधिया सन् 2014 और 2019 में सक्रिय थी,तब बीजेपी को 25 में से 25 सीट राजस्थान में मिली थी। लेकिन इस बार करीब 18 सीटें मिलने का दावा किया जा रहा है। चुनाव परिणाम से पहले वसुंधरा राजे सिंधिया का संघ के ऑफिस और राजभवन पहुंचने से सियासी हलचलें तेज हो गयी हैं। वहीं अमितशाह दावा कर रहे हैं 380 सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी को 270 सीट मिल रही है। वहीं चुनाव आयोग जो बीजेपी के लिए चुनाव लड़ रहा है,उसने हर राज्य में वोट प्रतिशत बढ़ा कर विपक्ष को संशय में डाल दिया है। पिछली बार सीपीएम को कुल एक करोड़ सात लाख वोट मिले थे। चुनाव आयोग ने चार चरण के चुनाव के बाद इतना ही वोट बढ़ा दिया है। ऐसे में बीजेपी का रथ फंसता है या दिल्ली तक पहुंचता है,सबकी निगाहें टिकी है।

फिर संघ किसे आगे करेगा - मोहन भागवत वैसे भी चुनाव से पहले कह चुके हैं,कि केवल मोदी और हिन्दुत्व के भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकता।यदि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो संघ नितिन गडकरी को आगे कर सकता है। और इसका समर्थन योगी,शिवराज,वसुंधरा राजे सिंधिया,डाॅ रमन सिंह आदि करने से पीछे नहीं हटेंगे। मोदी और सघ के बीच तलवार अब खिंच गयी है। देखना यह होगा,कि आधुनिक और राजनीतिक रूप से असरकारी संगठन चार जून के बाद कितना मजबूत है। देश प्रेम की नयी आभा क्या रग दिखाती है।

Tuesday, May 21, 2024

दो लड़कों ने यू.पी.में बीजेपी की बाजी पलट दी

  



''मोदी-शाह के अभेद्य चुनावी कवच की दरारों को यू.पी.में अखिलेश और राहुल की जोड़ी ने उघाड़ दिया है।  चुनावी मतदान का प्रतिशत और मतदाताओं में बीजेपी विरोधी रूझान ने मोदी-अमितशाह को सियासी फलक से नीचे ला दिया है। फैलती भाजपा को अब खतरा महसूस होने लगा है। सवाल यह है कि दलित,पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम वर्ग क्या मोदी का रथ यूपी में ही रोक देगा?

-रमेश कुमार ‘रिपु’
क्या उत्तर प्रदेश में खाक से उठ खड़ी होगी अबकी बार कांग्रेस! पिछले दो चुनाव में कांग्रेस को झन्नाटेदार हार के पराजय का मुंह देखना पड़ा था। बेल की तरह फैल चुकी बीजेपी से एनडीए के सहयोगी दलों का मोहभंग होने के बाद मोदी विरोधी दलों का गठबंधन कमल को नोचने लगेगें,इसकी कल्पना मोदी-अमितशाह कभी नहीं किये थे।अबकी बार यूपी की सियासी जमीन से कमल को जड़ से उखाड़ने के लिए राहुल और अखिलेश ने जो रणनीति अपनाई है,उससे बीजेपी के तंबू में सनाका खिंच गया है।इसलिए कि यूपी में जो सियासी हवा चल रही है,उसे रोकने की काट गुजरात लाॅबी के पास नहीं है। यह बात अब तक के हुए चुनाव ने साफ कर दिया। मोदी का रथ यू.पी.से दिल्ली जा पाएगा,इसमें संदेह गहरा गया है। सन् 2014 में मोदी की जो लहर थी,वैसी लहर सन् 2019 में नहीं थी। बावजूद इसके 65 सीट बीजेपी पा गयी थी।  अबकी बार न लहर है। और न ही हवा है।यही वजह है कि मोदी-शाह के अभेद्य चुनावी कवच की दरारों को यू.पी.में अखिलेश और राहुल की जोड़ी ने उघाड़ दिया है। चुनावी मतदान का प्रतिशत और मतदाताओं में बीजेपी विरोधी रूझान ने मोदी-अमितशाह को सियासी फलक से नीचे ला दिया है। फैलती भाजपा को अब खतरा महसूस होने लगा है। सवाल यह है कि दलित,पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम वर्ग क्या मोदी का रथ यूपी में ही रोक देगा?

गुजरात लाॅबी का भरेासा टूटा - वैसे गुजरात लाॅबी को पूरा भरोसा था,कि राहुल गांधी के जातिगत जनगणना और आरक्षण का मुद्दा राम मंदिर की लहर में उड़ जाएगा। अखिलेश के अगड़े- पिछड़े की की राजनीति जो राम को लाए हैं,उन्हें लाएंगे के नारे में नहीं ठहरेगा। लेकिन गुजरात लाॅबी को हवा तक नहीं लगी कि इंडिया गठबंधन वाले चुनाव को संविधान बचाने की लड़ाई से जोड़,कर बीजेपी की पसली को चोटिल कर देंगे। दलित,अति दलित,पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग में संविधान बचाने की बात ने इतना असर डाला, कि अंबेडकर जयंती में गांव-गांव में बैठक कर बीजेपी के खिलाफ हवा बना दी।इसका असर यह हुआ,कि जो दलित,अति दलित और पिछड़ा वर्ग बीजेपी का वोटर था,वो सपा या फिर कांग्रेस को वोट कर दिया। चार चरणों के चुनाव में अचानक मतदाताओं के बदलते रूख को गुजरात लाॅबी नहीं भांप पाई। आगे के चुनाव में बीजेपी कामयाबी का कोई सियासी रास्ता नहीं ढूंढ सकी, तो उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। क्यों कि अखिलेश और राहुल गांधी मोदी और अमित शाह के बयानों से वोटर प्रभावित न हो इसका तत्काल जवाब मंच से देने लगे हैं।

बाजी पलटने की रणनीति - बीजेपी और मायावाती का जो बेस वोटर था,उसमें जागरूकता आई। उसे यकीन हो गया, कि बसपा की सरकार बन नहीं सकती। इसलिए कुर्मी, कुशवाहा, कटियार, वर्मा, मौर्य, पटेल,       चौहान,साकेत,मुसलमान वोटर सायकिल पर बैठने लगा। 'हाथ' से हाथ मिलाने लगा। बीजेपी आश्वस्त थी,कि राम मंदिर बनने के बाद यूपी में 75 सीट आएगी। दूसरे चरण के चुनाव से मोदी के चाणक्य अमितशाह को रिपोर्ट मिली कि अंबेडकर जयंती पर सारे दलित और पिछड़ा वर्ग गांव गांव बैठक कर तय किया है कि यदि बीजेपी की सरकार आई तो संविधान बदल देगी। बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिष्ठा का सवाल है। और वो सबके सब बीजेपी की बाजी को पलटने में लग गए।

मोदी से मुस्लिम खफा - प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दू कार्ड भी खेला। उन्होंने हिदुओं को सावधान करते हुए कहा,कांग्रेस की सरकार आई तो वो राम मंदिर में बाबरी ताला लगा देगी। लेकिन मोदी की बातों का कोई असर नहीं दिखा। केन्द्रीय गृहमंत्री,यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित बीजेपी कई मंत्रियों ने कांग्रेस के घोषणा पत्र को कटघरे में रखा। सबने जोर शोर से मंच पर कहा,कि कांग्रेस की सरकार आई तो देश में सरिया कानून लागू हो जाएगा। महिलाओं के मंगल सूत्र छीन लिए जाएंगे। जिनके पास दो घर उसमें एक घर लेकर अल्पसंख्यकों को दे दिया जाएगा। यहां तक एक से ज्यादा कार होने पर उसे ले लिया जाएगा। जबकि कांग्रेस के घोषणा पत्र में ऐसा कहीं नहीं लिखा था। बीजेपी के केन्द्रीय मंत्रियों के झूठ से भी बीजेपी के पक्ष में हवा नहीं बनी। लेकिन यूपी के 21.26 फीसदी मुस्लिम वोटर मोदी से नाराज हो गया। बागपत में 27 फीसदी,अमेठी में 20 फीसदी, अलीगढ़ में 19 फीसदी,गोंडा में 19.6,लखीमपुरी खीर में20 फीसदी,लखनऊ में21.46 फीसदी,पीलीभीत में 24.11 फीसदी,सिद्धार्थ नगर में 29.33 महाराजगंज में 17.48 फीसदी और मुरादाबाद,रामपुर में 50.8 फीसदी,मजफ्फर नगर में 41 फीसदी,बिजनौर में 43 फीसदी,अमरोहा में 41 फीसदी,बलरामपुर में38.51 इसके अलावा बरेली, बहराइच, संभल,हापुड़ आदि जिलों के मुस्लिमों को मोदी ने नाराज कर दिया।। यूपी के 75 जिलों में मुस्लिम वोटर की संख्या इतनी है कि वो किसी भी पार्टी की हार जीत की दिशा बदल सकते हैं। काशी के तीस लाख मुस्लिम वोटर इस बार मोदी को वोट करेंगे इसमें संदेह है।  

राम मंदिर मुद्दा नहीं बना - बीजेपी राम मंदिर को मुद्दा नहीं बना सकी। सन् 2014 के चुनाव में रायबरेली ही विपक्ष के पास था। बीजेपी 2024 के चुनाव में इस सीट को जीतना चाहती है। अदिति सिंह लखनऊ में प्रचार कर रही हैं। मगर वो अयोध्या, और अमेठी नहीं गयी। संजय सिंह अमित शाह से मिलने के बाद भी निष्क्रिय दिखाई दे रहे हैं। राजा भैया ने बकायदा अपने समर्थकों को कह दिया है,जो प्रत्याशी आपको बेहतर लगे उसका प्रचार करें और वोट दें। उनके समर्थक और वोटर समझ गए कि राज भैया किसे वोट करने को कह रहे हैं। कौशाम्बी बीजेपी की सीट फंस गयी है। पांचवे चरण की 14 सीट में 13 सीट बीजेपी के पास है। इसमें सात सीटों में कोंटे का टक्कर है। लोकसभा की 14 सीटों में विधान सभा की कुल 71 सीटें आती है। जिसमें 45 सीट बीजेपी के पास है।  
यूपी मे नरेटिव बदलता रहा- उत्तर प्रदेश में गेरूआई राजनीति की पताका उम्मीद से कम लहरा रही है। उसकी वजह यह है कि योगी आदित्यनाथ ने हाथ खींच लिया है। क्यों कि उन्हें पता है कि अमितशाह लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें सी.एम.पद से हटा देगे। यूपी में नरेटिव बदलता जा रहा है। अमेठी में जो कह रहे थे,कि राहुल गांधी के चुनाव नहीं लड़ने से स्मृति इरानी को वाॅक ओवर मिल गया,अब वही आकलन कर रहे हैं,कि किशोरी लाल शर्मा कितने लाख से स्मृति को हराएंगे। बीजेपी के खिलाफ बाजी पलटने का सबब बीजेपी के नेता हैं। जनवरी मे जो उत्साह बना था,उसी उत्साह में मोदी ने कहा था कि अबकी बार चार सौ पार।अनंत हेगड़े,अरूण गोविल,लल्लू सिंह और ज्योति मिरधा ने कहा,संविधान बदलने के लिए मोदी को चाहिए चार सौ के पार सीट। इस बात को इंडिया ने लपक लिया। और अपने हर मंच पर संविधान बदलने की बात जोर-शोर से कहने लगे। उसका असर यह हुआ कि बीजेपी का वोटर उनके हाथ से फिसल गया। बीजेपी को लगा,राहुल गांधी की बातों को वोटर गंभीरता से लेता नहीं। अखिलेश यादव पांच साल तक निष्क्रिय रहे,इसलिए राम मंदिर की लहर में उनकी बात दब जाएगी।
अखिलेश की सोशल इंजीनियरिंग - अखिलेश यादव ने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत टिकट बांटा। दस कुर्मी,आठ मौर्य,पांच कश्यप,पांच निषाद,और अपने परिवार को छोड़कर किसी यादव को टिकट दिया नहीं।मेरठ,फैजाबाद की सामान्य सीट पर भी उन्होने दलित को टिकट दिया। उसका नतीजा यह रहा है कि दलित,पिछड़ा वर्ग और मुस्लमान वोटर सपा और कांग्रेस को जा रहा है। बीस फीसदी दलित,दस फीसदी ओबीसी और पन्द्रह फीसदी मुस्लिम वोटर इंडिया गठबंधन को जा रहा है यानी 45 फीसदी वोट पा रहे हैं। ठाकुर और ब्राम्हण वोटर को जोड़ दें तो यह प्रतिशत और ज्यादा हो जाता है। राजपूत भी बीजेपी से नाराज है। करणी सेना भी यूपी में सक्रिय हो गयी है बीजेपी के खिलाफ। ऐसे में बीजेपी का फिसलना ही था।
बीजेपी की साख पर संकट - बीजेपी ने देश को बड़ा करने का सपना दिखाया। दूसरी ओर देश को कर्ज में डूबाते गए। देश पर मोदी  के दस साल के कार्यकाल में 272 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। खाद्यान योजना बिल कांग्रेस ने लाया था। आज मोदी सरकार देश में 85 करोड़ गरीब जनता को पांच किलो का अनाज दे रही है। राहुल ने कहा,हमारी सरकार आएगी तो दस किलो देंगे।वहीं हर गरीब महिला को लखपति बनाएंगे। हर पार्टी का अपना अपना घोषणा पत्र है। बीजेपी को मात देने इंडिया गठबंधन ने विशेष रणनीति बनाई। हर दिन कोई न कोई पार्टी देश में बीजेपी के खिलाफ पहले प्रेस कांफ्रेस करती है,उसके बाद चुनाव प्रचार।धर्म आधारित राजनीति बीजेपी करने की योजना बनाई थी, लेकिन  कामयाब नहीं होने से बीजेपी की साख पर संकट गहरा गया है। मोदी ने देश से पचास दिन मांगे थे।अब दस साल बाद यूपी का बेरोजगार वोटर उनके काम काज पर आंकलन करने लगा है। बेरोजगारी,मंहगाई,संविधान बदलने, आरक्षण,और जातिगत जनगणना कि बात करके  यूपी में दो सियासी लड़के  बीजेपी की चुनावी बाजी पलट दिये हैं ।

Monday, May 20, 2024

अबकी बार अल्पमत सरकार




"अबकी बार मोदी बनाम जनता का चुनाव है। विपक्ष का दावा है कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिल रहा है। चार सौ पार का नारा महौल बनाने का था। इससे इंकार नहीं है कि सभी राज्यों में बीजेपी को नुकसान हो रहा है। बावजूद इसके बीजेपी बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी।"

-- रमेश कुमार ‘रिपु’
 विपक्षी खेमें में जश्न है। सभी क्षेत्रीय पार्टियों के क्षत्रप दावा करने लगे हैं, कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिल रहा है। जैसा कि राहुल गांधी कह रहे हैं,लिख कर ले लो,चार जून को मोदी प्रधान मंत्री नहीं बनने वाले। वो इस्तीफा देंगे। बीजेपी 180 सीट से ज्यादा नहीं पाएगी।ममता बनर्जी का दावा कर रही हैं कि इंडिया गठबंधन को 295 से 315 सीट मिल रही है। वहीं अखिलेश का कहना है,बीजेपी 140 सीट पर सिमट जाएगी। अमित शाह अभी भी कह रहे हैं,चार सौ के पार बीजेपी जा रही है। चार चरणों के मतदान के बाद इंडिया गठबंधन आत्मविश्वास से लबलब हो गया। सबके दावे दमदार हैं। किसकी जीत और किसकी हार होेगी, 4 जून को पता चलेगा। लेकिन चार चरणों के चुनाव की हवा बता रही है, कि सभी राज्यों में बीजेपी को नुकसान हो रहा है। बावजूद इसके बीजेपी बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी।

विपक्ष के दावे का सच चार जून को पता चलेगा। लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि हर राज्यों के क्षत्रपों के खिलाफ बीजेपी का कार्यकर्ता ,पदाधिकारी और उसका कैडर उस तरह खड़ा नहीं दिख रहा,जिस तरह वो 2014 और 2019 में खड़ा था। जाहिर सी बात है कि जिन क्षत्रपों के दम पर बीजेपी 2019 में 303 सीट पाई थी। और अपने सहयोगियों के साथ मिलाकर 352 सीटें पाई थी। इस बार का चुनाव मोदी बनाम जनता का हो जाने की वजह से मोदी के पक्ष में वो लहर  कहीं नहीं दिखी। सन् 2019 में चौथे चरण के चुनाव में बीजेपी 96 में से 42 सीट जीती थी। 11 सीट इंडिया गठबंधन के खाते में गयी थी। वहीं 35 ऐसी सीटें थी,जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। 2019 के चुनाव जैसा 2024 का चुनाव नहीं है। तब बीजेपी 379 सीट में 206 और एनडीए को 234 सीट मिली थी। कांग्रेस को 43,यूपीए को 84 अन्य के खाते में 61 सीट आई थी।

कांग्रेस का डर दिखाती रही - बीजेपी यह मानकर चल रही थी,कि 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन एनडीए से बहुत दूर रहेगा। जबकि यू.पी.,बिहार,राजस्थान,गुजरात,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और झारखंड हिन्दी बेल्ट वाले राज्यों में भी बीजेपी को भारी नुकसान हो रहा है। यही वजह है कि छोटे-छोटे शहर में मोदी रोड शो कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि उनमें हताशा है। चुनाव का मुकाबला करीबी नहीं रहा। बल्कि बहुत अंतर से बीजेपी के सत्ता से बाहर होने का अंदेशा बढ़ गया है। इसका असर शेयर बाजार में भी पड़ा है। लगातार गिर रहा है। मोदी दस साल से देश को कांग्रेस से डराते आ रहे हैं। जबकि सत्ता में बेजीपी है। इस चुनाव में भी जनता को अंधेरे में रखने का काम मोदी ने किया। जनता से झूठ बोले। कांग्रेस के घोंषणा पत्र में जो बात नहीं थी,उसे जनता के बीच जाकर हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति कर हिन्दुओं को डराने की कोशिश की। वोटों का धुव्रीकरण करने का प्रयास किया। कांग्रेस सत्ता में आई तो महिलाओं के मंगल सूत्र छीन कर मुस्लिमो को दे देगी। कांग्रेस के घोंषणा पत्र में मुस्लिम लीग की छाया है। कांग्रेस सत्ता में आई तो मुस्लिमों का आरक्षण बढ़ा देगी। लेकिन मतदाता न डरा और न ही बदला।

राम वाले अच्छे दिन भी लाते - महाराष्ट्र में अबकी बार बीजेपी के प्रति लहर 2019 जैसी नहीं है। राम को जो लाए है,उन्हें ही लाना है। ऐसे नारों के जवाब में वोटर कह रहा है,जो राम को लाए हैं,वो अच्छे दिन भी लाते। दो करोड़ नौकरी भी देते। महंगाई कम करते। बेरोजगारी दूर करते। किसानों की आय दोगुना करते। गैस सिलेंडर चार सौ रुपए में देते। सिर्फ राम लाने से काम नहीं चलेगा। मंदिर बनने से पहले भी राम सबके मन में थे,आज भी हैं। दरअसल ,देश के वोटर की मानसिकता बदल गयी है। वो क्या सोचने लगा है औरंगाबाद लोकसभा सीट से समझा जा सकता है। औरंगाबाद कभी मराठा आंदोलन का केन्द्र था। 1988 में मराठा एंटी मुस्लिम में तब्दील हो गया था। औरंगाबाद मुस्लिम बाहुल सीट है। यहां एआईएमआईएम की पार्टी के इम्तियाज जलील को जनता वोट करती आई है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। उद्धव ठाकरे की पार्टी से चुनाव लड़ रहे चन्द्रकांत खैरे को मुस्लिमों ने वोट किया। उनका कहना है,इम्तियाज जलील हमारी जाति बिरादरी के हैं। लेकिन इस बार उद्धव ठाकरे को वोट करेंगे तो राहुल को जाएगा। उनका हाथ मजबूत होगा। एकनाथ शिंदे ने संदीपन भुमरे को उतारा है। औरंगाबाद सीट को अविभाजित शिवसेना ने 1989 के बाद से छह बार जीता है। एकनाथ शिंदे की शिवसेना और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। पूरे महाराष्ट्र की 48 सीट में 13 सीट पर उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। यह चुनाव बतायेगा,असली शिवसेना कौन है। चुनाव की हवा बता रही है,उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में किंग मेकर हैं। जिस मोदी ने उद्धव ठाकरे की कुर्सी छीन ली। पार्टी का सिम्बल छीन लिया। उसके प्रति जनता में सैम्पैथी बेहद ज्यादा है। शरद पवार,उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी की जोड़ी मोदी पर भारी पड़ रही है। इस बार तीनों की जोड़ी की वजह से बीजेपी को 48 में से 12-15 सीट ही मिलती दिख रही है। उसकी वजह यह है कि बीजेपी बंटी हुई है। पूरे महाराष्ट्र में दूसरी पार्टी से बीजेपी में आने वालों की वजह से बीजेपी का जमीनी कार्यकर्ता घर बैठ गया है। यह स्थिति हर राज्य की है। संघ और बीजेपी के पुराने लोग नाराज हैं। जमीनी कार्यकर्ता कह रहे हैं,दो आदमी बीजेपी को नहीं चलाएंगे। बाहरी पार्टी से आए उम्मीदवारों को लेकर पार्टी में भारी असंतोष है। इन्ही वजहों से किसी भी राज्य में बीजेपी 2019 में जितनी सीट पाई थी, उतनी उसे नहीं मिल रही है।

यू.पी.में बीजेपी पिछड़ रही - देश में सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश राजनीति में धुरी की भूमिका निभाता है। क्यों कि यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं। अब तक 14 प्रधानमंत्री में से नौ इसी राज्य ने दिये। इस बार यू.पी बदला हुआ है। यहां वोट का प्रतिशत सात फीसदी कम है। जबकि दो फीसदी कम मतदान होने पर सरकार बदल जाती है। यही ट्रेंड अगले तीन चरण के चुनाव में रहा तो बीजेपी की सीट 2019 से भी कम हो जाएगी। माना जा रहा है बीजेपी को अधिकतम 45- 48 सीट मिल रही है।
कहावत है,जिसने जीता यू.पी.उसने संभाला देश। इस बार हालात बीजेपी के पक्ष में नहीं। योगी की चल नहीं रही है। मिशन 75 का लक्ष्य करने अमितशाह ने राजा भैया को बुलाया। कौशाम्बी,जौनपुर और प्रतापगढ़ में ठाकुर राजा भैया की ही सुनते हैं। धनजंय सिह बीजेपी के लिए काम करने को तैयार हो गए हैं,मगर राजा भैया न्यूटल हो गए हैं। जाहिर है प्रतापगढ़ में बीजेपी ही हवा टाइट हो गयी है। यूपी में 41 सीट के चुनाव होने हैं। यूपी में दलित और मुसलमान बीजेपी के खिलाफ चला गया है। यू.पी. का दलित कह रहा है,संविधान को बचाना है। बाबा साहब अंबेडकर की इज्जत का सवाल है। बूथ से ऐसे लोगों को भगाया जा रहा है। छोटे दुकानादार,किसान,और युवा परेशान हैं। उन्हें लगता था,मोदी महंगाई कम कर देंगे, बेरोजगारी कम कर देंगे,पर ऐसा हुआ नहीं।

विपक्ष बिखरा नहीं - सन् 2019 की तरह विपक्ष बिखरा नहीं है। उन्नाव, कानपुर, अकबरपुर, सीतापुर, मथुरा, सम्भल, बरेली, सीकरी, आगरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, बदायूं, एटा,आंवला, और हाथरस आदि ऐसे स्थान हैं,जहां मतदाताओं ने सत्ता बदलने का मन बना लिया है। राजनीति के ठेकेदारों के हाथ से यह चुनाव निकल गया। विधान सभा चुनाव में गाजीपुर की सात सीट में बीजेपी के पास एक भी नहीं। आजमगढ़ की दस सीट में भी यही हाल रहा। अयोध्या की चार सीट में दो सीट है बीजेपी के पास,बलिया की सात सीट में सिर्फ दो सीट बीजेपी जीती थी। ऐसे दर्जनों विधान सभा में बीजेपी की सीट है नहीं या फिर बहुत कम है। जाहिर सी बात है कि बीजेपी सीट लाएगी कहां से।
पश्चिम बंगाल में अमितशाह 42 में से 35 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है। यहां ममता का एंटी वोट जो था,वो पिछली बार बीजेपी में गया। इस बार सीपीएम और कांग्रेस में जा रहा है। 2019 में बीजेपी को 18 सीट मिली थी,जो इस बार घटकर 15 होने की आशंका है। बिहार में चार फेस के चुनाव में जेडीयू की स्थिति ठीक नहीं है। अगड़ा बनाम पिछड़ा की यहां लड़ाई है। कुर्मी,यादव,मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं कर रह है। इसी से समझा जा सकता है कि नीतिश के दाये हाथ लल्लन सिंह चुनाव हार रहे हैं। मोदी का रथ बिहार में भी फंस गया है। नीतिश एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ में इंडिया को चार सीटें मिलनें की संभावना है। दक्षिण में सिर्फ कर्नाटक में 10-12 सीट बीजेपी को मिल सकती है। बाकी अन्य राज्यों में संभावना नहीं है। दिल्ली और हरियाणा में 1-2 सीट से ज्यादा नहीं पा रही है। यानी विपक्ष की साझेदारी सियासी ताकत के आगे एनडीए अबकी कमजोर हो गया।

जनता में नाराजगी -एनडीए के प्रति वोटरों में नाराजगी है। वोटर मानता है,कि मोदी अमीर के समर्थक हैं। वे फिरकापरस्त और अल्पसंख्यक विरोधी हैं। वे दूसरों पर अपना रोब-दाब चलाते हैं। वे सामूहिक नेतृत्व में यकीन नहीं करते। वो जुमलेबाज हैं। वे किसान विरोधी हैं। वे बड़े मुद्दों पर खामोश रहते हैं। नोटबंदी करके मोदी ने छोटे धंधे चौपट कर दिये। काला धन नहीं आया। उनकी फैसले से रोजगार घटा और किसान परेशान हुए। चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी पर लगाम लगाने में मोदी असफल हुए। किसानों की खुदकुशी के साथ कृषि संकट,मोदी की नाकामियों की फेहरिस्त में सबसे आगे है।