Monday, May 20, 2024

अबकी बार अल्पमत सरकार




"अबकी बार मोदी बनाम जनता का चुनाव है। विपक्ष का दावा है कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिल रहा है। चार सौ पार का नारा महौल बनाने का था। इससे इंकार नहीं है कि सभी राज्यों में बीजेपी को नुकसान हो रहा है। बावजूद इसके बीजेपी बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी।"

-- रमेश कुमार ‘रिपु’
 विपक्षी खेमें में जश्न है। सभी क्षेत्रीय पार्टियों के क्षत्रप दावा करने लगे हैं, कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिल रहा है। जैसा कि राहुल गांधी कह रहे हैं,लिख कर ले लो,चार जून को मोदी प्रधान मंत्री नहीं बनने वाले। वो इस्तीफा देंगे। बीजेपी 180 सीट से ज्यादा नहीं पाएगी।ममता बनर्जी का दावा कर रही हैं कि इंडिया गठबंधन को 295 से 315 सीट मिल रही है। वहीं अखिलेश का कहना है,बीजेपी 140 सीट पर सिमट जाएगी। अमित शाह अभी भी कह रहे हैं,चार सौ के पार बीजेपी जा रही है। चार चरणों के मतदान के बाद इंडिया गठबंधन आत्मविश्वास से लबलब हो गया। सबके दावे दमदार हैं। किसकी जीत और किसकी हार होेगी, 4 जून को पता चलेगा। लेकिन चार चरणों के चुनाव की हवा बता रही है, कि सभी राज्यों में बीजेपी को नुकसान हो रहा है। बावजूद इसके बीजेपी बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी।

विपक्ष के दावे का सच चार जून को पता चलेगा। लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि हर राज्यों के क्षत्रपों के खिलाफ बीजेपी का कार्यकर्ता ,पदाधिकारी और उसका कैडर उस तरह खड़ा नहीं दिख रहा,जिस तरह वो 2014 और 2019 में खड़ा था। जाहिर सी बात है कि जिन क्षत्रपों के दम पर बीजेपी 2019 में 303 सीट पाई थी। और अपने सहयोगियों के साथ मिलाकर 352 सीटें पाई थी। इस बार का चुनाव मोदी बनाम जनता का हो जाने की वजह से मोदी के पक्ष में वो लहर  कहीं नहीं दिखी। सन् 2019 में चौथे चरण के चुनाव में बीजेपी 96 में से 42 सीट जीती थी। 11 सीट इंडिया गठबंधन के खाते में गयी थी। वहीं 35 ऐसी सीटें थी,जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। 2019 के चुनाव जैसा 2024 का चुनाव नहीं है। तब बीजेपी 379 सीट में 206 और एनडीए को 234 सीट मिली थी। कांग्रेस को 43,यूपीए को 84 अन्य के खाते में 61 सीट आई थी।

कांग्रेस का डर दिखाती रही - बीजेपी यह मानकर चल रही थी,कि 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन एनडीए से बहुत दूर रहेगा। जबकि यू.पी.,बिहार,राजस्थान,गुजरात,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और झारखंड हिन्दी बेल्ट वाले राज्यों में भी बीजेपी को भारी नुकसान हो रहा है। यही वजह है कि छोटे-छोटे शहर में मोदी रोड शो कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि उनमें हताशा है। चुनाव का मुकाबला करीबी नहीं रहा। बल्कि बहुत अंतर से बीजेपी के सत्ता से बाहर होने का अंदेशा बढ़ गया है। इसका असर शेयर बाजार में भी पड़ा है। लगातार गिर रहा है। मोदी दस साल से देश को कांग्रेस से डराते आ रहे हैं। जबकि सत्ता में बेजीपी है। इस चुनाव में भी जनता को अंधेरे में रखने का काम मोदी ने किया। जनता से झूठ बोले। कांग्रेस के घोंषणा पत्र में जो बात नहीं थी,उसे जनता के बीच जाकर हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति कर हिन्दुओं को डराने की कोशिश की। वोटों का धुव्रीकरण करने का प्रयास किया। कांग्रेस सत्ता में आई तो महिलाओं के मंगल सूत्र छीन कर मुस्लिमो को दे देगी। कांग्रेस के घोंषणा पत्र में मुस्लिम लीग की छाया है। कांग्रेस सत्ता में आई तो मुस्लिमों का आरक्षण बढ़ा देगी। लेकिन मतदाता न डरा और न ही बदला।

राम वाले अच्छे दिन भी लाते - महाराष्ट्र में अबकी बार बीजेपी के प्रति लहर 2019 जैसी नहीं है। राम को जो लाए है,उन्हें ही लाना है। ऐसे नारों के जवाब में वोटर कह रहा है,जो राम को लाए हैं,वो अच्छे दिन भी लाते। दो करोड़ नौकरी भी देते। महंगाई कम करते। बेरोजगारी दूर करते। किसानों की आय दोगुना करते। गैस सिलेंडर चार सौ रुपए में देते। सिर्फ राम लाने से काम नहीं चलेगा। मंदिर बनने से पहले भी राम सबके मन में थे,आज भी हैं। दरअसल ,देश के वोटर की मानसिकता बदल गयी है। वो क्या सोचने लगा है औरंगाबाद लोकसभा सीट से समझा जा सकता है। औरंगाबाद कभी मराठा आंदोलन का केन्द्र था। 1988 में मराठा एंटी मुस्लिम में तब्दील हो गया था। औरंगाबाद मुस्लिम बाहुल सीट है। यहां एआईएमआईएम की पार्टी के इम्तियाज जलील को जनता वोट करती आई है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। उद्धव ठाकरे की पार्टी से चुनाव लड़ रहे चन्द्रकांत खैरे को मुस्लिमों ने वोट किया। उनका कहना है,इम्तियाज जलील हमारी जाति बिरादरी के हैं। लेकिन इस बार उद्धव ठाकरे को वोट करेंगे तो राहुल को जाएगा। उनका हाथ मजबूत होगा। एकनाथ शिंदे ने संदीपन भुमरे को उतारा है। औरंगाबाद सीट को अविभाजित शिवसेना ने 1989 के बाद से छह बार जीता है। एकनाथ शिंदे की शिवसेना और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। पूरे महाराष्ट्र की 48 सीट में 13 सीट पर उद्धव ठाकरे के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। यह चुनाव बतायेगा,असली शिवसेना कौन है। चुनाव की हवा बता रही है,उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में किंग मेकर हैं। जिस मोदी ने उद्धव ठाकरे की कुर्सी छीन ली। पार्टी का सिम्बल छीन लिया। उसके प्रति जनता में सैम्पैथी बेहद ज्यादा है। शरद पवार,उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी की जोड़ी मोदी पर भारी पड़ रही है। इस बार तीनों की जोड़ी की वजह से बीजेपी को 48 में से 12-15 सीट ही मिलती दिख रही है। उसकी वजह यह है कि बीजेपी बंटी हुई है। पूरे महाराष्ट्र में दूसरी पार्टी से बीजेपी में आने वालों की वजह से बीजेपी का जमीनी कार्यकर्ता घर बैठ गया है। यह स्थिति हर राज्य की है। संघ और बीजेपी के पुराने लोग नाराज हैं। जमीनी कार्यकर्ता कह रहे हैं,दो आदमी बीजेपी को नहीं चलाएंगे। बाहरी पार्टी से आए उम्मीदवारों को लेकर पार्टी में भारी असंतोष है। इन्ही वजहों से किसी भी राज्य में बीजेपी 2019 में जितनी सीट पाई थी, उतनी उसे नहीं मिल रही है।

यू.पी.में बीजेपी पिछड़ रही - देश में सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश राजनीति में धुरी की भूमिका निभाता है। क्यों कि यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं। अब तक 14 प्रधानमंत्री में से नौ इसी राज्य ने दिये। इस बार यू.पी बदला हुआ है। यहां वोट का प्रतिशत सात फीसदी कम है। जबकि दो फीसदी कम मतदान होने पर सरकार बदल जाती है। यही ट्रेंड अगले तीन चरण के चुनाव में रहा तो बीजेपी की सीट 2019 से भी कम हो जाएगी। माना जा रहा है बीजेपी को अधिकतम 45- 48 सीट मिल रही है।
कहावत है,जिसने जीता यू.पी.उसने संभाला देश। इस बार हालात बीजेपी के पक्ष में नहीं। योगी की चल नहीं रही है। मिशन 75 का लक्ष्य करने अमितशाह ने राजा भैया को बुलाया। कौशाम्बी,जौनपुर और प्रतापगढ़ में ठाकुर राजा भैया की ही सुनते हैं। धनजंय सिह बीजेपी के लिए काम करने को तैयार हो गए हैं,मगर राजा भैया न्यूटल हो गए हैं। जाहिर है प्रतापगढ़ में बीजेपी ही हवा टाइट हो गयी है। यूपी में 41 सीट के चुनाव होने हैं। यूपी में दलित और मुसलमान बीजेपी के खिलाफ चला गया है। यू.पी. का दलित कह रहा है,संविधान को बचाना है। बाबा साहब अंबेडकर की इज्जत का सवाल है। बूथ से ऐसे लोगों को भगाया जा रहा है। छोटे दुकानादार,किसान,और युवा परेशान हैं। उन्हें लगता था,मोदी महंगाई कम कर देंगे, बेरोजगारी कम कर देंगे,पर ऐसा हुआ नहीं।

विपक्ष बिखरा नहीं - सन् 2019 की तरह विपक्ष बिखरा नहीं है। उन्नाव, कानपुर, अकबरपुर, सीतापुर, मथुरा, सम्भल, बरेली, सीकरी, आगरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, बदायूं, एटा,आंवला, और हाथरस आदि ऐसे स्थान हैं,जहां मतदाताओं ने सत्ता बदलने का मन बना लिया है। राजनीति के ठेकेदारों के हाथ से यह चुनाव निकल गया। विधान सभा चुनाव में गाजीपुर की सात सीट में बीजेपी के पास एक भी नहीं। आजमगढ़ की दस सीट में भी यही हाल रहा। अयोध्या की चार सीट में दो सीट है बीजेपी के पास,बलिया की सात सीट में सिर्फ दो सीट बीजेपी जीती थी। ऐसे दर्जनों विधान सभा में बीजेपी की सीट है नहीं या फिर बहुत कम है। जाहिर सी बात है कि बीजेपी सीट लाएगी कहां से।
पश्चिम बंगाल में अमितशाह 42 में से 35 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है। यहां ममता का एंटी वोट जो था,वो पिछली बार बीजेपी में गया। इस बार सीपीएम और कांग्रेस में जा रहा है। 2019 में बीजेपी को 18 सीट मिली थी,जो इस बार घटकर 15 होने की आशंका है। बिहार में चार फेस के चुनाव में जेडीयू की स्थिति ठीक नहीं है। अगड़ा बनाम पिछड़ा की यहां लड़ाई है। कुर्मी,यादव,मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं कर रह है। इसी से समझा जा सकता है कि नीतिश के दाये हाथ लल्लन सिंह चुनाव हार रहे हैं। मोदी का रथ बिहार में भी फंस गया है। नीतिश एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ में इंडिया को चार सीटें मिलनें की संभावना है। दक्षिण में सिर्फ कर्नाटक में 10-12 सीट बीजेपी को मिल सकती है। बाकी अन्य राज्यों में संभावना नहीं है। दिल्ली और हरियाणा में 1-2 सीट से ज्यादा नहीं पा रही है। यानी विपक्ष की साझेदारी सियासी ताकत के आगे एनडीए अबकी कमजोर हो गया।

जनता में नाराजगी -एनडीए के प्रति वोटरों में नाराजगी है। वोटर मानता है,कि मोदी अमीर के समर्थक हैं। वे फिरकापरस्त और अल्पसंख्यक विरोधी हैं। वे दूसरों पर अपना रोब-दाब चलाते हैं। वे सामूहिक नेतृत्व में यकीन नहीं करते। वो जुमलेबाज हैं। वे किसान विरोधी हैं। वे बड़े मुद्दों पर खामोश रहते हैं। नोटबंदी करके मोदी ने छोटे धंधे चौपट कर दिये। काला धन नहीं आया। उनकी फैसले से रोजगार घटा और किसान परेशान हुए। चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी पर लगाम लगाने में मोदी असफल हुए। किसानों की खुदकुशी के साथ कृषि संकट,मोदी की नाकामियों की फेहरिस्त में सबसे आगे है।

 

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