Monday, June 17, 2024

रंग बदलता संघ

"मोदी जिनके दम पर प्रधान मंत्री बने हैं,अब वो इनकी चौकीदारी करेंगे,ताकि ये उनके सेक्यूलर काम काज को चोटिल न कर सकें।वहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुजरात लाॅबी को निशाने पर लेते हुए सीख दी कि अहंकार से संगठन और पार्टी नहीं चलती। मर्यादा जरूरी है। बीजेपी हमें अपना रंग न दिखाए। संघ है तो बीजेपी है। बगैर संघ के बीजेपी ढाई घर चलने का सपना छोड़ दे। वरना, उसकी स्थिति मौजूदा चुनाव से भी बदतर हो जाएगी।"
0 रमेश कुमार ‘रिपु’ इन दिनों देश के सियासी कैनवास पर एक नयी तस्वीर देखी जा रही है। संघ और बीजेपी के बीच तल्खी तस्वीर। यह तस्वीर अचानक नहीं बनी। तस्वीर की रेखाएं चुनाव से पहले ही बननी शुरू हो गयी थी। केवल इंतज़ार किया जा रहा था,कि सत्ता की तस्वीर कौन सी बनने जा रही है। सत्ताई तस्वीर 2014 और 2019 जैसी होगी,या फिर कुछ अलग हटकर। मोदी ने संसद में कहा था,अबकि बार चार सौ पार। कुछ हफ्ते पहले कहा था, कि मुझे परमात्मा ने भेजा है। अब कह सकते हैं,कि चुनाव परिणाम के बाद उनके पैर जमीन पर आ गए होंगे। विपक्ष को खत्म करने की सत्ताई साजिश मोहन भागवत को रास नहीं आ रही थी। मगर चुप रहे। मोदी ने चुनाव में भाषा का संस्कार भूल कर जिस तरीके से विपक्ष पर हमला बोले ,वो संघ के संस्कार की भाषा नहीं है। जबकि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं संघ की पृष्ठभूमि से हैं। चौथे चरण के चुनाव के बाद बीजेपी और संघ के बीच टकराव की तलवार जे.पी.नड्डा ने यह कहकर खींच दी,कि अब बीजेपी बड़ी पार्टी हो गयी है। उसे संघ की जरूरत नहीं है। एक झटके में नड्डा ने संघ को राजनीति का पाठ पढ़ा दिये। नड्डा के बयान से भाजपा में आए नेता भ्रमित हो गए। संघ कार्यकर्ता हाथ पर हाथ धरे रह गए। और किसी ने नड्डा के बयान पर कुछ कहा नहीं। सफाई भी नहीं दी। मोहन भागवत भी जानते हैं,जे.पी.नड्डा से यह बात किसने कहलवाया है। बावजूद इसके संघ प्रमुख चुप रहे। वो यह मान कर चल रहे थे,कि सामाजिक और सांस्कृतिक जमीन को मोदी को समझेंगे। लेकिन ऐसा पूरे चुनाव में नहीं में दिखा। उसका परिणाम यह रहा,कि मोदी की गारंटी का असर कई राज्यों में नहीं दिखा। वो स्चयं बहुत कम वोटों से चुनाव जीते। जबकि उससे अधिक वोटों से गैर राजनीतिक व्यक्ति किशोरी लाल अमेठी में एक लाख 67 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीते। अहंकारी नहीं होते सेवक - चुनाव के बाद संघ प्रमुख मोहन के तेवर और बयान चर्चा में हैं। उन्होंने कहा,सच्चा सेवक मर्यादा का पालन करता है। उसमें अहंकार नहीं होता, कि मैंने यह काम किया है। जो ऐसा नहीं करता है,सिर्फ उसे ही सच्चा सेवक कहा जा सकता है। इसे अलोचना नहीं सकारात्मक सलाह ही कहा जाएगा। यदि मोदी तीसरे कार्यकाल में इसे नहीं भूलेंगे तो बेहतर प्रधान मंत्री साबित हो सकते हैं। वैसेे पूरा चुनाव मोदी केंद्रित था। मोदी का परिवार से लेकर मोदी की गारंटी तक के प्रचार के तरीके के आगे मोदी का चेहरा दिखा। बस अड्डे से लेकर पेट्रोल पंपों तक मोदी का विज्ञापन दिखता था। अहंकार की सीमा इतनी लांधी की रामलला की प्राण प्रतिष्ठा साधु,संत महात्मा को करना चाहिए, स्वयं की। वैसे दूसरे कार्यकाल में ऐसा लगा,कि मोदी अपने आप को नेता कम, मसीहा ज्यादा समझने लगे हैं। मोहन भागवत के बयान के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। उन्होंने कहा, मणिपुर में हो रही हिंसा को रोका जाना चाहिए। संघ का मुख्यपत्र आर्गनाइजर ने भी बीजेपी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की आलोचना करते हुए लिखा,लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के अति आत्मविश्वासी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए आइना है। अयोघ्या हारे अपने अहंकार की वजह से। मोदी ने कई अच्छे काम किये हैं। लेकिन हिन्दू -मुसलमानों के बीच दरार पैदा की। लेकिन गोरक्षा के नाम पर जो हत्याएं हुई,मुस्लिम मांस व्यापारियों,पशु पालक,किसानों की,उसकी निंदा प्रधान मंत्री मोदी ने नहीं की। अमितशाह ने धमकी भरा भाषण दिये। उन्होंने कहा, कि बांग्लादेश से अवैध तरीके से आए लोग दीमक की तरह फैल गए है।दूसरे भाषण में कहा, नागरिकता के लिए रजिस्टर बनेगा। उन मुसलमानों को देश से निकाला जाएगा जिनके पास नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं होगा। संघ का ज्ञान - अटल बिहारी वाजपेयी ने सी.एम. नरेंद्र मोदी का राजधर्म का पाठ पढ़ाया था,तो इस बार संघ प्रमुख ने मर्यादा और सच्चे सेवक का ज्ञान देने का काम किया है। पी.एम. मोदी जो खुद संघ के इतने करीब रहे हैं,उनको लेकर इस प्रकार की बयानबाजी के पीछे आखिर कौन सी वजह है। या फिर किस मकसद से ऐसा कहा गया। सियासी गलियारों में ऐसे सवाल केरल में 31 जुलाई को होने वाली संघ की बैठक तक टहल कदमी करते रहेंगे। मोहन भागवत के बयान जब तक समझा जाता,संघ के कार्यकर्ता इन्द्रेश का बयान आग में घी डालने का काम किया है। जिस पार्टी ने भगवान राम की भक्ति की लेकिन अहंकारी हो गई,उसे 241 पर रोक दिया गया। जिनकी राम में कोई आस्था नहीं थी,उन्हें 234 पर रोक दिया गया। गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ से मोहन भागवत की मुलाकात से गुजरात लाॅबी के कान खड़े हो गए हैं। ऐसा होना स्वभाविक है। इसलिए कि अमित शाह, योगी आदित्यनाथ को यू.पी.के मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते हैं। यूपी में हार का ठिकरा वो योगी पर फोड़ना चाहते हैं। अमितशाह के अति करीबी ओ.पी. राजभान,उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य,बृजेश पाठक और दिनेश योगी को तवज्जो देते नहीं। संघ मानता है,उप मुख्यमंत्री की जरूरत नहीं है। मौजूदा चुनाव में यू.पी.में योगी का नहीं गुजरात लाॅबी का था। अमितशाह ने 25 टिकट बांटे थे।बिसात अमितशाह ने बिछाया था। योगी को सजा क्यो मिले?दिल्ली योगी की बात सुनने को तैयार नहीं है। जबकि योगी गुलदस्ता लेकर नड्डा के घर गए।अमितशाह,राजनाथ और शिवराज के पास भी। संघ प्रमुख के मुखर होने पर अब बीजेपी का कोर कार्यकर्ता बोल रहा है। योगी आदित्यनाथ से पूछ कर टिकट नहीं दिया गया है। बीजेपी को सीट कम मिलने पर इसके लिए दोषी वो हैं,जिन्होंने टिकट बांटे। संघ की चिंता जायज - संघ को चिंता है। दस साल में बीजेपी का जो वोट बैंक बनकर तैयार हुआ है वो हरियाणा,महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में बिखर न जाए। उसे संजोना है। यदि इन तीन राज्यों मे बीजेपी हार गयी तो बहुत देर हो जाएगी। फिर बिहार भी हाथ से निकल सकता है। संघ नहीं चाहता,कि राज्य दर राज्य बीजेपी गंवा दे। संघ यही मान रहा है,कि यूपी में बीजेपी की हार की मूल वजह अमितशाह हैं। मौजूदा हालात से जाहिर है,कि जिस तरह अमितशाह यू.पी. में योगी आदित्यनाथ के काम काज पर दखल दे रहे हैं,उस स्थिति में यू.पी. में चुनाव हुए तो अखिलेश को कुछ ज्यादा नहीं करना पड़ेगा। यू.पी. की 80 सीट मायने रखता है। संघ मान रहा है,कि योगी पर नकेल लगाने से यूपी हाथ से निकल जाएगा। वैसे विदर्भ और नागपुर ही नहीं, पूरे महाराष्ट्र में बीजेपी को वोट नहीं मिला। सवाल यह है, कि इसकी गारंटी कौन लेगा। कांग्रेस को 13 सीट मिली। महाराष्ट्र में बीजेपी को 14 और एनडीए को 25 सीट का नुकसान हुआ। संघ को लगता है,एक नया सियासी चक्रव्यूह रचने का वक़्त आ गया है। संसदीय दल की बैठक में राज्य के मुख्यमंत्रियों की क्या जरूरत है? गुजरात लाॅबी को इस बात का अदेशा था,कि संसदीय दल की बैठक में यदि अपने लिए संघ से निकले सांसद नया नेता न चुन लिए तो मोदी नेहरू की बराबरी नहीं कर पाएंगे।केरल में 31 जुलाई को संघ की बैठक है। जाहिर है,वहां गुजरात लाॅबी की गतिविधियां और बीजेपी की कार्यशैली सहित अनेक सवालों पर चर्चा होगी। हो सकता है,कि वहां नीतिन गडकरी को पी.एम. बनाए जाने की बात उठे। और योगी को 2029 का चेहरा बनाने की बात हो सकती है। संघ को घृणा थी राजनीति से - इतिहास के पन्ने बताते हैं,कि भारतीय समाज की कायाकल्प के लिए संघ की स्थापना हुई थी। अपने आरंभिक दिनों में संघ मानता था,कि राजनीति घृणित चीज़ है।इसलिए संघ ने अपना सारा ध्यान चरित्र निर्माण की ओर केन्द्रित रखा। समय-समय पर संघ में बदलाव होते रहे। सन् 2013 का साल संगठन में बुनियादी बदलाव का गवाह बना। अमरावती की एक बैठक में संगठन ने तय किया,कि वो बीजेपी को सियासी सत्ता दिलाने अपनी शखाओं और स्वयं सेवकों के व्यापक नेट वर्क का चुनाव में इस्तेमाल करेगा। इस बदलाव के पीछे दो मकसद था। राजनैतिक सत्ता के पाने के साथ हिन्दू समाज को संगठित करना। अपातकाल के बाद हुए चुनाव को अपवाद मानें तो संघ ने कभी किसी राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लिया।लेकिन समय-समय पर बीजेपी और जनसंघ के भीतर पदों पर लोग तैनात किये जाते रहे हैं। बीजेपी आहिस्ता-आहिस्ता कामयाब होती गयी। और बीजेपी ने ही संघ को राजनीतिक दायरे के भीतर लाने का काम किया। संघ की मात्र इतनी भूमिका रही,कि अपने लोगों को बीजेपी के अंदर रखवाने की। सन् 2004 और 2009 की चुनावी हार के बाद संघ दखल देते हुए बीजेपी नेतृत्व परिवर्तन की वकालत की। सन् 2013 में संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा,‘‘ भारत में सामजिक,राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलाव तभी आ सकता है,जब बीजेपी सभी राज्यों की सत्ता पर काबिज हो। धीरे-धीरे बीजेपी दो दर्जन के करीब राज्यों में अपनी सरकार बना ली। बहरहाल मोदी जिनके दम पर प्रधान मंत्री बने हैं,अब वो इनकी चौकीदारी करेंगे,ताकि ये उनके सेक्यूलर काम काज को चोटिल न कर सकें। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुजरात लाॅबी को निशाने पर लेते हुए सीख दी कि अहंकार से संगठन और पार्टी नहीं चलती। मर्यादा जरूरी है। बीजेपी हमें अपना रंग न दिखाए। संघ है,तो बीजेपी है। बगैर संघ के बीजेपी ढाई घर चलने का सपना छोड़ दे। वरना,उसकी स्थिति मौजूदा चुनाव से भी बदतर हो जाएगी।

Thursday, June 13, 2024

नए साथी करेंगे फेवर या दिखाएंगे तेवर

"एनडीए सरकार बनाने में फेवर करने वाले दलों के तेवर स्पीकर के चुनाव तक संयमित रहेगा,इसमें संदेह है। तोल- मोल की सरकार कितने घर चलेगी न मोदी जानते हैं ,न ही नीतिश और न ही चन्द्रबाबू नायडू। मोहन भागवत से लेकर पूरा विपक्ष इंतजार कर रहा है अपने टाइम का।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ सरकार वही।चेहरे वही।मोहरे वही।पासे भी वही हैं। सिर्फ कुछ साथी नए हैं। अब बीजेपी की नहीं, एनडीए की सरकार है। सरकार का नाम बदला है। मजबूरी है। विवशता है। क्यों कि सबको साथ लेकर चलना है। सरकार बनाने में साथ देने वाले साथियों के दम पर मोदी सियासी पहाड़ चढ़ने का मन बनाए हैं। सौ दिन के सियासी एजेंडे का खाका भी खींच लिये हैं। सरकार चल पड़ी है। प्रधान मंत्री मोदी ने इसका संकेत दे दिया है। किसानों को सौगात दी। पीएम किसान सम्मान निधि की 17वीं किस्त जारी की।9.3 करोड़ किसानों को लाभ होगा और करीब बीस हजार करोड़ रुपए बांटे जाएंगे। आवास योजना के तहत 3 करोड़ ग्रामीण और शहरी घरों के निर्माण किये जाएंगे।अभी तक दस वर्षो में कुल 4.21 करोड़ घर बनाये गए हैं। चुनाव में बेरोजगारी मुद्दा छाया रहा। इसलिए रोजगार पर खास ध्यान रहेगा। बुनियादी सवाल - मगर राजनीति के कुछ बुनियादी सवाल हैं। जो 18 जून को सांसदों के शपथ के बाद 20 जून को होने वाले स्पीकर चुनाव में विपक्ष के साथ देश की नज़र है। क्यों कि प्रधान मंत्री मोदी इस बार नए अवतार में हैं। होना भी चाहिए। नए सोच के साथ खड़े हैं । उन्हें सबका साथ चाहिए। और सबका विकास करना है। मोदी के लिए 140 करोड़ लोग परमात्मा का स्वरूप हो सकते हैं। लेकिन, जिन्हें लेकर सियासी पहाड़ चढ़ना है। दूर तक चलना है। क्या वो बीस जून को चलते-चलते ठहर कर नहीं कहेंगे, कि स्पीकर तो हमारा होगा? आप ने बीजेपी सांसदों को गृह मंत्रालाय,वित्त मंत्रालय,रक्षा मंत्रालय,कृषि विभाग,परिवहन मंत्रालय दे दिया। कोई बात नहीं। सभी बड़े और सम्मानीय विभाग बांट लिये। फिर भी हम कुछ नहीं बोले। लेकिन स्पीकर भी आप की ही पार्टी का हो, ऐसा नहीं चलेगा। सियासत की ढाई चाल सिर्फ आप ही नहीं,हम भी चलना जानते हैं। राजनीतिक सीन में इंडिया गठबंधन है ही साथ, अब एनडीए के घटक दलों में नीतीश और चन्द्रबाबू नायडू भी है। इन्हें एनडीए सरकार की फिल्म में मेहमान कलाकार नहीं कह सकते। असली खेला होना बकाया है। राजनीति में कुछ सवाल ऐसे हैं,जिन्हें नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता। उनमें से एक सवाल यह है,कि बीस जून को यदि टीडीपी नेता चन्द्र बाबू नायडू अड़ गए कि स्पीकर हमारी पार्टी से होगा, नीतीश भी यही चाहते हैं। डीटीपी ने स्पीकर का अपना उम्मीदवार उतार दिया, चुनाव करा लेते हैं। ऐसे में टीडीपी के पीछे पूरा इंडिया गठबंधन खड़ा दिखे तो कोई आश्चर्य नहीं। जदयू भी साथ हो तो हैरानी नहीं। ऐसे में बीजेपी का स्पीकर उम्मीदवार चुनाव हार गया तो पूरी एनडीए सरकार एक पल में ताश के पत्ते के महल की तरह ढह जाएगी। चन्द्र बाबू नायडू और नीतिश कुमार दोनों मोदी और अमितशाह के खेल से वाकिफ हैं। दोनों की बिसात को भी जानते हैं। यदि बीजेपी का स्पीकर हुआ तो बीजेपी को 240 से 272 होने में कोई ताकत नहीं है, जो रोक सके। सारा खेल छह माह के भीतर हो जाएगा। उनके पास हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं बचेगा। सवाल यह भी है,कि चन्द्र बाबू नायडू क्या आन्ध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिये जाने की शर्त पर स्पीकर पद से पीछे हट जाएंगे। और हट गए तो इसकी क्या गारंटी है,कि उनकी पार्टी के सांसद टूट कर बीजेपी में शामिल नहीं होंगे। मोदी की गारंटी जनता को मिले या न मिले, मगर बीजेपी को बहुमत मिलने की पूरी संभावना है। पार्टी टूटने का भय - जब किसी पार्टी की सरकार बनती है,तो वैसे भी छोटे- मोटे दल सरकार के साथ बगैर न्यौता दिये मिल जाते हैं। छोटे-छोटे राज्यों के गैर बीजेपी के सांसद मिल ही जाएंगे। वो बाहर से सरकार को समर्थन देने में पीछे नहीं हटेंगे।वो चाहे केन्द्र में एनडीए की सरकार हो या फिर इंडिया गठबंधन की। बीजेपी का स्पीकर होने पर सभी को अपनी पार्टी टूटने का डर है। और कोई ऐसे वक्त का इंतजार नहीं करना चाहता। सभी को वक्त का इंतजार - मंत्रिमंडल के गठन के बाद विभाग बंटवारे को लेकर नाराजगी एनडीए में देखी जा रही है। जाहिर है,बात खुश करने की है। अखिलेश यादव वैसे कह ही चुके हैं,कि यदि किसी को खुश करने से सरकार बनती है,तो हमें खुश करने में कोई दिक्कत नहीं है। जिसे जो विभाग चाहिए ले ले। शरद पवार वक्त का इंतजार कर रहे हैं। वो एनडीए सरकर के गिरने की राह देख रहे हैं। सभी को वक़्त का इंतजार है। एक नाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना के पास सात सांसद है। जिसे प्रधान मंत्री मोदी असली शिवसेना कहते हैं। लेकिन उनकी पार्टी से केवल एक व्यक्ति को मंत्री बनाया गया। जबकि जतिन राम माझी अपनी पार्टी के अकेले सांसद हैं,उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। प्रफुल्ल पटेल पिछली बार कैबिनेट मंत्री थे,इस बार उन्हें राज्य मंत्री बनाए जाने का आफर था। अजीत पवार ने कहा,सरकार चलाने का अनुभव हमारे पास है।हमें फुसलाने की कोशिश न करें। ऐसे नहीं चलेगा। लल्लन सिंह को पशुपालन विभाग मिला है। जबकि इन्हें कोई बड़ा विभाग मिलने की उम्मीद थी। जाहिर सी बात है, कि इनका सियासी अपमान किया गया है। उद्धव ठाकरे कह रहे हैं, पी.एम. के रूप में मोदी पसंद नहीं हैं। नीतिन गडकरी हों तो विचार करेंगे। यानी गुजरात मानुस और मराठा मानुस में टकराहट वाली बात है। दिल्ली अपने अनुरूप यू.पी. में राजनीति करना चाहती है। योगी को हटाना चाहती है।योगी राजनाथ,नीतिन गडकरी,और जेपी नड्डा से भी मिले।25 टिकट अमित शाह ने दिये और सीट नहीं आई तो योगी आदित्यनाथ का इसमें क्या दोष? जबकि महाराष्ट्र बीजेपी के हाथ से निकल गया है। बीजेपी सरकार के अल्पमत होने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी पर निशाना साधा। जिस विचार धारा के पालने में बीजेपी पली, वही अब संघ को आंखें दिखाए,ऐसा नहीं चलेगा। मोहन भागवत ने दो टुक कह दिया। मणिपुर में पिछले कई माह से अशांति का वातावरण है। मगर उसे हल करने कोशिश नहीं की गयी।इसे प्राथमिकता में रखते हुए शांति बहाली का प्रयास किया जाना चाहिए। इस मामले में विपक्ष संसद में भी पूछता रहा,कि प्रधान मंत्री मणिपुर पर खामोश क्यों हैं? एक वर्ष से भी अधिक समय बीत गया, मगर मणिपुर में हिंसा कायम है। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष चल रहा है। अपनी -अपनी चाहत - नीतीश चाहते हैं जब महाराष्ट्र,हरियाणा और झारखंड के चुनाव की घोंषणा हो तो बिहार का भी। वो जानते हैं,अब वोट बीजेपी में स्थानांतरित नहीं हो रहा है बिहार में। पिछले विधान सभा में भी यही हुआ था। विधान सभा चुनाव हो जाने पर वो स्वतंत्र हो जाएंगे। जबकि बिहार में चुनाव अगले साल होना है। नीतीश के मन का नहीं होने पर नाराजगी का ठिकरा भी फूटेगा। वैसे जेडीयू अपनी नाराजगी का संकेत देना शुरू कर दिया है। जेडीयू के प्रवक्ता के. सी. त्यागी ने अग्निवीर और यूनिफार्म सिविल कोड पर सवाल उठा दिए हैं। त्यागी ने साफ- साफ कहा,कि अग्निवीर योजना को लेकर लोगों में नाराजगी है।हमारी पार्टी इस पर विस्तार से चर्चा चाहती है। मुस्लिम आरक्षण खत्म करना,वन नेशन वन इलेक्शन,प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में बदलाव,वक्फ बोर्ड खत्म करना,सीएए का कम्पलीट इम्प्लिमेंटेशन और यूनिफाॅर्म सिविल कोड पर जेडीयू चर्चा चाहती है। टीडीपी भी इन सभी मुद्दों पर बीजेपी के पक्ष में नहीं है। खासकर मुस्लिम आरक्षण,महिला आरक्षण,वक्फ बोर्ड को खत्म करना,प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को खत्म करना। जाहिर सी बात है कि एनडीए सरकार बनाने में फेवर करने वाले दलों के तेवर स्पीकर के चुनाव तक संयमित रहेगा,इसमें संदेह है। तोल- मोल की सरकार कितने घर चलेगी न मोदी जानते हैं ,न ही नीतीश और न ही चन्द्रबाबू नायडू। मोहन भागवत से लेकर पूरा विपक्ष इंतजार कर रहा है, अपने टाइम का।

Wednesday, June 12, 2024

अबकी बार खत्म हुआ मोदी का एकाधिकार





"तीसरी बार मोदी सरकार मजबूत या फिर मजबूर,यह सवाल संसद में विश्वास मत हासिल करने तक कायम रहेगा। साथ ही मोदी की अग्नि परीक्षा भी है, गठबंधन की सरकार चलाना। क्यों कि एनडीए के घटक दलों की विचार धारा बीजेपी से मेल नहीं खाती है। उन्हें कड़े फैसले लेने में भी जदयू और टीडीपी से सहमति लेनी पड़ेगी।क्यों कि अबकी बार मोदी का एकाधिकार खत्म हो गया है।"
- रमेश कुमार 'रिपु'
अबकी सरकार में सियासी दलों के एजेंडे अपने-अपने हैं। सब अलग भी हैं। जुड़े भी हैं। दबंग चन्द्रबाबू नायडू मोदी के साथ हैं भी,नहीं भी हैं। नितिश ने मोदी का पैर छूकर सम्मान दिया मगर, कब पलट जाएंगे, इसका एहसास मोदी की मंडली को है। सभी छुट्टे हैं। पाला बदलने में एक मिनट की भी देरी नहीं करेंगे।लेकिन सुविधानुसार।सहूलियत के हिसाब से सांप सीढ़ी वाली राजनीति में अपने पासे फेंकेंगे।नितिश और चन्द्रबाबू नायडू कब तक साथ रहेंगे, यह लोकतंत्र की सियासत का वक़्त भी नहीं जानता। कल तक मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री थे। अब एनडीए के प्रधान मंत्री रहेंगे।दरअसल सत्ता की थैली में चिल्हर ज्यादा हो गए हैं। आगे भी रहेंगे। इंडिया गठबंधन की थैली हो या फिर एनडीए की थैली। दोनों एक समान है।राष्ट्रीय रुतबे का अवसान हो रहा है तेजी से। दोनों हताश हैं। क्या कांग्रेस और क्या भाजपा। लेकिन सबकी अपनी- अपनी रणनीतियां हैं। इस बार विपक्ष पिछली दफ़ा से कहीं अधिक मजबूत है। वहीं मोदी का अबकी बार एकाधिकार भी खत्म हो गया। मजबूर हैं और रहेंगे । क्यों कि पेंच बहुत है। पैतरे बाजी भी अनगिनत। कहने को नौ जून को प्रधान मंत्री पद के शपथ तक और मंत्रिमंडल के गठन तक सभी जुड़े हैं।मगर अलग भी हैं।

शर्तो की राजनीति - कुछेक ऐसे सवाल है,जिनसे आज नहीं, तो कल रूबरू होना पड़ेगा। मोदी को। पूरे देश को। पूरे विपक्ष को। शर्तो की राजनीति या फिर कहें शर्तो की बुनियाद पर टिकी एनडीए की सरकार। एनडीए के सांसदों की बैठक में मोदी ने कहा, एनडीए की सरकार बनने जा रही है। इसके पहले 2014 और 2019 में बीजेपी की सरकार कहा था। अटल जी की सरकर की तरह मोदी की सरकार के दिन भी आ सकते हैं। कई दलों की बग्गी वाली सरकार, एक ही दिशा में कब तक चलेगी, मोदी भी नहीं जानते। क्यों कि मोदी कभी ऐसी राजनीति किये नहीं। गुजरात में मुख्यमंत्री थे,तब भी वो एकाधिकार की राजनीति किये हैं। पिछले दस साल में उन्होंने ऐसा कोई दल नहीं,जिसे ठगा नहीं। और कोई ऐसा दल नहीं,जिसे खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।गोवा,महाराष्ट्र,उत्तराखंड और मध्यप्रदेश को कोई भूला नहीं है। गिरते शेयर बाजार और गिरते रुपए की तरह इस चुनाव में मोदी की साख गिरी है। पिछली बार छह लाख वोट से जीतने वाले मोदी इस बार डेढ़ लाख वोट पर सिमट गए। शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की बजाए किनारे कर दिया था, वो आठ लाख बीस हजार वोट से जीते। जाहिर सी बात है, भाजपा के अंदर इस चुनाव ने कई खेमे बनने की रेखा खींच दी है। आज नहीं तो कल दिखेगी।

मनमाफिक मंत्री पद चाहिए - नरेन्द्र मोदी के प्रधान मंत्री के पद की शपथ लेने से पहले ही सियासी उथल पुथल की झलक दिखने लगी है। नितिश और चन्द्रबाबू नायडू दोनों को अपने-अपने प्रदेश के लिए विशेष दर्जा चाहिए। उनकी अपनी सियासी शर्त भी है। चन्द्रबाबू नायडू को लोकसभा का अध्यक्ष पद चाहिए। वो जानते हैं, मोदी और अमितशाह का भरोसा नहीं। उनके सांसदों को कभी भी तोड़ सकते हैं। बीजेपी का स्पीकर होगा तो मोदी की ही सुनेंगे।जगन रेड्डी के चार सांसद बीजेपी की ओर जा रहे हैं, अभी से हल्ला है. नायडू को परिवहन मंत्रालय चाहिए। गृहमंत्रालय चाहिए। ताकि पुलिस और सीबीआई उनके साथ रहे। सभावना है कि नागरिक उड्डयन,इलेक्ट्रानिक,आईटी,शहरी विकास और स्टील मंत्रालय मिल सकता है। नितिश को रेल मंत्रालय और वित्त विभाग चाहिए। ताकि ईडी उनके पास रहें। पंचायती राज ग्रामीण विकास,कृषि जैसे मंत्रालय मिल सकता है। एनडीए के घटक दलों में नायडू और नितिश इस बार मोदी का एकाधिकार खत्म करने वाले विभाग चाहते हैं। इनकी पार्टी के सांसदों को कौन सा मंत्री पद मिलता है,दो तीन दिन बाद पता चलेगा। वैसे मोदी नहीं चाहेंगे कि रक्षा,वित्त,गृह और विदेश मंत्रालय एनडीए के दलों के पास हो। बीजेपी के प्रवक्ताओं की ओर से कहा जा रहा है,कि गठबंधन का प्रेशर बीजेपी नहीं लेगी। किसी सहयोगी की अतार्किक    अनावश्यक मांग के आगे नहीं झुकेगी। गठबंधन के नियमों और गठबंधन धर्म के तहत काम होगा।

कई मोर्चे पर चिंतन - देखा जाए तो सरकार नितिश और नायडू के पर्स में हैं। यानी इस बार भाजपा लस्त पस्त है। लकवाग्रस्त है। नेता हैं,पर निष्प्रभ। कम सीटें आने से पार्टी के नेता हताश हैं। एक साथ कई मोर्चे पर चिंतन चल रहा है। मोदी से भी अधिक वोटों से जीत कर आने वाले नेताओं की भरभार है। कहने को तो सामूहिक नेतृत्व। पर लचर,लाचार। संघ की निगाहें टिकी है मंत्रिमंडल के गठन पर। इस बार मोदी संघ की कितनी सुनते हैं,सवाल यह भी है। नड्डा बोल ही चुके हैं,बीजेपी बड़ी पार्टी हो गयी है,उसे संघ की जरूरत नहीं है। यदि मोहन भागवत ने संघ वाले सांसदों से कह दिया,कि वो मोदी को अपना नेता न चुनें तो बीजेपी के अंदर की सियासत बदल जाएगी। इस बार पूरी पार्टी मोदी की जेब में नहीं है। मोदी के मंत्रिमंडल में नितिन गडकरी को स्थान नहीं मिलने पर चाल चरित्र और चेहरा की बात करने वाली पार्टी की तस्वीर भी बदल सकती है। भाजपा मोदी की जागीर है या फिर संघ की। यह सवाल देर सबेर धूल की तरह उढ़ सकता है।
बीजेपी के 14 सहयोगियों के पास 53 सीटें हैं। पी.एम.आवास में हुई बैठक में इन्होंने लिखकर दिया है कि हमारा समर्थन मोदी के साथ है। सबके मन में मंत्री बनने की चाह है। छोटे- छोटे राज्यों के दलों को भी जोड़ने में बीजेपी लगी है। गठबंधन धर्म सरकार चलाने में रोड़ा बन सकते हैं। अभी से सियासी कयास लगाए जाने लगे हैं। क्यों कि कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर मोदी अपने कदम पीछे नहीं किये तो सरकार गिर जाएगी। उन्हें भी समझौता करना पड़ सकता है। मसलन - एक देश एक चुनाव। इसके खिलाफ है टीडीपी, जबकि जदूय इसके समर्थन में है। विपक्ष भी नहीं चाहता एक देश एक चुनाव। परिसीमन के भी विरोध में है टीडीपी। बीजेपी ने 2029 तक महिला आरक्षण का वादा किया है। यह परिसीमन पर ही लागू होगा। इसी तरह युनिफार्म सिविल कोड को बीजेपी पूरे देश में लागू करना चाहती है। उत्तराखंड में लागू हो चुका है। मोदी इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता से अलग कर सकते हैं। राम मंदिर बनने का लाभ बीजेपी को देश में क्या यूपी में भी नहीं मिला। अयोध्या,चित्रकूट,सीतापुर,बस्ती,प्रयागराज,सुल्तानपुर,रामटेक,कोप्पल,रामेश्वरम,नासिक, में बीजेपी हार गयी है। इसलिए काशी मथुरा का दावा अब बीजेपी नहीं करेगी। टीडीपी ने सन्2018 में आंध्र को विशेष दर्जा नहीं दिये जाने पर बीजेपी से नाता तोड़ लिया था। इसी तरह मुस्लिमों को चार फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर दोनों पार्टियों में टकराव हो सकता है। जदयू सार्वजननिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश के खिलाफ है। बीजेपी को अपने कदम पीछे करना पड़ सकता है।अग्निवीर मामले में बीजेपी को अपना फैसला बदलना पड़ सकता है। जदयू नेता के.सी.त्यागी ने कह दिया है,बनने पर सरकार इस पर विचार करे।
तीसरा कार्यकाल चुनौती भरा - मोदी का तीसरा कार्यकाल चुनौती भरा है। क्यो कि एनडीए घटक दलों को मोदी खुश किये बगैर कोई भी फैसला नहीं ले पाएंगे। मोदी सरकार पर आने वाले तीन महीने चुनौती भरे होंगे। इसलिए कि इसी साल महाराष्ट्र,हरियाणा और झारखंड में चुनाव है। हरियाणा में 2019 में बीजेपी की दस सीटें थी। इस बार घटकर पांच सीट हो गयी है। कांग्रेस को पांच सीट मिली है। जाहिर है हरियाणा जीतना मुश्किल हो सकता है। झारखंड में झामुमो और कांग्रेस की सरकार है। वहां भी दलित आरक्षण मुद्दा विधान सभा तक कायम रहा तो बीजेपी के लिए नुकसान हो सकता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। उसे दस सीट मिली है। जाहिर है कि मोदी के लिए सरकार चलाना अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। अभी तो बवाल इसी बात के लिए है कि कम सांसद वाले नेताओं को मंच पर बिठाया गया और ज्यादा सांसद वालों को दर्शक दिर्घा में। यू.पी. के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को लेकर अमितशाह भारी नाराज हैं। जबकि मोदी ने उनकी पीठ थपथपा दी है। यानी मोदी समझ रहे हैं, कि नेहरू के तीन बार प्रधान मंत्री बनने के रिकार्ड की बराबरी करना है,तो सबको खुश करके चलना पड़ेगा।

 

Thursday, June 6, 2024

अबकी बार बैसाखियों पर सरकार

 


केन्द्र में अबकी बार मोदी या फिर बीजेपी की नहीं बल्कि, एनडीए की सरकार होगी। लेकिन बैसाखियों के सहारे चलने वाली सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी पहले की तरह ताकतवर नहीं रहेंगे। नितिश के पास बहुत विकल्प हैं। चंन्द्रबाबू नायडू और नितिश की विचारधारा मोदी से मेल नहीं खाती। इसलिए हमेशा संशय बना रहेगा सरकार के गिरने का।

- रमेश कुमार ‘रिपु’
अबकी बार चार सौ पार वाला नारा चार जून की शाम को बूढ़ा हो गया। इसी के साथ मोदी की राजनीति के चेहरे पर झुर्रियां आ गयी। और उनकी सत्ताई सियासत बैसाखी पर आ गयी। अपने मन की बात कहने वाले को अब दूसरे के मन की बात सुननी पड़ेगी। मोदी प्रधान मंत्री बनेंगे या फिर संघ किसी और को आगे करेगा। यह सवाल अभी दो -चार दिन सियासी गलियारे में दौड़ते रहंगे। वैसे मोदी ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्म को इस्तीफा दे दिया है।साथ ही मंत्रिमंडल भंग करने सिफारिश कर दी है। अब सबकी निगाहें टिकी है कि एनडीए का जो हिस्सा हैं,वो क्या मोदी को प्रधान मंत्री आसानी से बन जाने देंगेे या फिर बारगनिंग करेंगे? चंद्रबाबू नायडू और नितिश के हाथ में सत्ता की चाबी है। सबसे बड़ा सवाल यह है, कि नितिश के साथ मोदी ने जो किया क्या वो भूल जाएंगे? चंन्द्रबाबू नायडू को जेल में डाल दिया गया था।उनके खिलाफ जीएसटी, इंटेलिजेंस,आईटी,ईडी सहित कई एजेसियां इसकी जांच कर रही हैं।

गुजरात लाॅबी की मजबूरी - लोकसभा चुनाव के समय मोदी ने नितिश को मंच में साझा नहीं किया था। उनका सियासी अपमान खूब किये थे। क्या वो अब जब मोदी की जरूरत बने हुए है,उनके साथ जाएंगे? चंद्राबाबू नायडू और मोदी की विचार धारा में भिन्नता है। यही स्थिति नितिश की है। दोनों सेक्यूलर हैं। मोदी इस बार चुनाव में खुले मंच से मुस्लिमों की खिलाफत किये हैं। वो टोपी पहनते नहीं। उन्हें मुसलमानों का वोट चाहिए नहीं। वो जातीय गणना के खिलाफ है। मुस्लिम आरक्षण के खिलाफ हैं। ऐसे में ये दोनों नेता क्या मोदी को प्रधान मंत्री की शपथ आसनी से ले लेने देंगे। यदि ले भी लिये, तो कितने दिन मोदी प्रधान मंत्री की कुर्सी में रहेंगे? सबसे बड़ा सवाल यह है, कि गुजरात लाॅबी से जिसने भी हाथ मिलाया,उसका सियासी वजूद खत्म हो गया। या खत्म करने में कोई कमी नहीं की गुजरात लाॅबी ने। ऐसा कोई भी नहीं है,जिसे गुजरात लाॅबी ने ठगा न हो। उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री कुर्सी से हटा दिया। उनकी पार्टी तोड़ दी। उनका सियासी सिंबल छीन लिया। शरद पवार के साथ भी यही हुआ। उनकी पार्टी तोड़ दी। अजीत पवार को ही असली एनसीपी बना दिया। नवीन पटनायक की आज जो सियासी हालत हुई,वो गुजरात लाॅबी की वजह से हुई। मोदी ने केजरीवाल और हेमंत सोरेन को जेल भेज दिया। इंडिया गठबंधन में ऐसा कोई सियासी दल नहीं है,जो मोदी से प्रताड़ित न हो। ऐसे में इंडिया गठबंधन वाले मोदी का साथ देंगे,इसमे संदेह है। बीजेपी केा इतनी सीट नहीं मिली कि मोदी प्रधान मंत्री अकेले अपने दम पर बन सके। मोदी की सोच और विचारधारा नायडू और नितिश सेे मेल नहीं खाती। ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि नितिश उप प्रधान मंत्री अथवा गृहमंत्री के पद के साथ ही बिहार में जेडीयू का मुख्यमंत्री बने, इसकी मांग कर सकते हैं। यदि ऐसा हो भी गया तो मोदी को अपनी विचार धारा और लीडर शिप से अलग जाकर हर दिन नायडू और नितिश को फोन करके,उनका सियासी हाल चाल पूछना पड़ेगा। यानी आज के सियासी हालात में नितिश और नायडू किंग मेकर की भूमिका में है।  
संघ की पसंद बदल गयी तो..- मौजूदा सियासी हालात मोदी के पक्ष में नहीं। यदि बात नहीं बनी तो संघ मोदी को किनारे कर नीतिन गडकरी को आगे कर सकता है। वैसे भी मोहन भागवत और मोदी में पिछले छह माह से कुछ ज्यादा ही छत्तीस का सियासी रिश्ता हो गया है। नागपुर में मोदी से मोहन भागवत और गडकरी बुलाने के बावजूद नहीं मिले। यह बात मोदी को बुरी लगी। और वो वहां से आने के बाद नड्डा के जरिये कहलवा दिये कि अब बीजेपी को संघ की जरूरत नहीं है। बीजेपी बड़ी पार्टी हो गयी है। बीजेपी अटल के दौर से आगे निकल गयी है। लेकिन चुनाव परिणाम बता रहे हैं,कि मोदी की बीजेपी,अटल की तरह हो गयी है। उसे भी सियासी बैसाखी की जरूरत पड़ गयी है।मोदी चट मंगनी पट व्याह चाहते हैं। ताकि संघ को मौका न मिले। मोदी की बैठक में अमितशाह,राजनाथ सिंह और जेपी नड्डा ही थे। गडकरी नहीं थी। मोदी फटाफट सरकार बन जाए,इसके फिराक में है। छोटे- छोटे राज्यों की पार्टी का समर्थन लेना मोदी की विवशता रहेगी। मेघालय, नागालैण्ड,मिजोरम,मणिपुर आदि राज्य की पार्टियों से अमितशाह और मोदी बात कर रहे हैं। यदि ये इंडिया गठबंधन के साथ चले गए तो मोदी के बुरे दिन आ जाएंगे। राफेल कांड,जस्टिस रोया की हत्या कांड,पीएम फंड घोटाला, इलेक्टोरल बांड,अडानी को बेची गयी संपत्तियां,उद्योगपतियों के माफ किये कर्ज आदि मामले उठेगें। वैसे इडिया गठबंधन ने दो टुक कह दिया है कि डीएमके के लिए दरवाजे खुले हैं।

बैसाखी टूटने का संशय - केन्द्र में अबकी बार मोदी या फिर बीजेपी की नहीं बल्कि एनडीए की सरकार होगी। लेकिन बैसाखियों के सहारे चलने वाली सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी पहले की तरह ताकतवर नहीं रहेंगे। नितिश के पास बहुत विकल्प हैं। चंन्द्रबाबू नायडू और नितिश की विचारधारा मोदी से मेल नहीं खाती। इसलिए हमेशा संशय बना रहेगा सरकार के गिरने का। फ्लोर टेस्ट में मोदी को विश्वास मत हासिल करना होगा। अपना लोक सभा अध्यक्ष बनाना मोदी को इस बार कठिन हो सकता है। इतना ही नहीं रेड कारपोरेट पर मोदी को अपनी बैसाखी देने वालों का रेट ज्यादा रहेगा। वैसे भी नितिश ने छह माह पहले ही कह दिया था, कि जो 2014 में आए हैं,वो 2024 में नहीं आएंगे। यानी कह सकते हैं कि अबकी बार मोदी को प्रधान मंत्री बनने के लिए नायडू,नितिश और मोहन भागवत तीनों की जरूरत है। तेजस्वी यादव की बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि चचा चार जून के बाद कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।

क्या भूल जाएंगे - नितिश क्या इस बात को भूल जाएंगे  मोदी उनकी पार्टी को तोड़ कर बीजेपी की सरकार बिहार में बनाने जा रहे थे। उनके लोगों को गुजरात लाॅबी अपने पक्ष में कर लिया था। नितिश को भनक लग गयी और वो राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री बन गए। नितिश मोदी को सबक सिखाने ममता बनर्जी,उद्धव ठाकरे,केजरी वाल,अखिलेश यादव सहित अन्य 28 दलों को एक मंच पर लाए। इंडिया की नीव की नितिश ने ही रखी थी। यह अलग बात है कि बीते जनवरी में पाला बदल कर फिर एनडीए में शामिल हो गए। जाहिर है कि उनके लोग यानी उनकी पार्टी के सारे विधायक मोदी के साथ जाने के पक्ष में नहीं है। नितिश सेक्यूलर विचारधारा के समर्थक है। लल्लन सिंह और विजेन्द्र प्रसाद का कहना कि नितिश मोदी के साथ न जाए।
 चन्द्रबाबू नायडू को आठ माह पहले स्किल डेवलपमेंट घोटाले (कोशल विकास मामला) पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। दो महीने तक जेल में थे। आंध्र प्रदेश सरकार ने स्किल डेवलपमेंट एक्सीलेंस सेंटर की स्थापना के लिए सीमेेंस और डिजाइन टेक के साथ 3356 करोड़ रुपए का समझौता किया था।समझौते के मुताबिक टेक कंपनी को इस प्रोजेक्ट में 90 फीसदी हिस्सेदारी वहन करनी थी। लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ी। आंध्र प्रदेश सरकार ने अपने हिस्से की हिस्सेदारी 371 करोड़ रुपए जारी कर दिया था। आंध्र की सीआईडी ने कौशल विकास के लिए जारी फंड को दुरूप्रयोग का आरोप लगाते हुए कहा था,सीमेंसे प्रोजेक्ट की लागत को बढ़ा चढ़ाकर 3300 करोड़ रुपए कर दिया था। पुलिस का कहना था, कि इस प्रोजेक्ट की वास्तविक लागत 58 करोड़ रुपए थी। जीएसटी, इंटेलिजेंस,आईटी,ईडी सहित कई एजेसियां इसकी जांच कर रही हैं। मोदी के समक्ष नायडू भी कई शर्ते रख सकते हैं।
एक समय नितिश और नायडू दोनों मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। दोनों सियासत के मजे उस्ताद हैं। यानी अब मोदी अपनी मनमानी नहीं कर पाएंगे। सत्ता में जिनकी भागेदारी रहेगी,यदि उनकी नहीं सुनी गयी, तो हाथ खींच कर सरकार गिरा भी सकते हैं।  
ममता दोनों एन से करेंगी बात - इंडिया गठबंधन का कहना है कि एनडीए घटक दलों के भी दरवाजे खुल हैं। वैसे शरद पवार नितिश और चंद्रबाबू नायडू से बातें कर रहे हैं। ममता बनर्जी को राहुल गांधी कहेगे कि वो नायडू और नितिश से बातें करें। इसलिए कि ममता बनर्जी की इन दोनों नेताओं से पटती है। जयराम  रमेश ने चंन्द्रबाबू नायडू को 2014 में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के उस वायदे को याद दिलाया जिसमें आन्ध्र प्रदेश को पांच साल तक स्पेशल स्टेटस देने की बात कही गयी थी। उन्होंने ट्वीट किया, जिसमें चंन्द्र बाबू नायडू यह कह रहे हैं,कि सभी नेता मोदी से बेहतर हैं। चन्द्रबाबू नायडू ने कहाथा,कि आन्ध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस नहीं मिलने की वजह से उन्होंने बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया था।
एक सच ऐसा भी - सुबह सबेरे के 18 मई के अंक में मैंने लिखा था कि अबकी बार अल्पमत सरकार। उसमें जिन बातों का जिक्र किया था, वो सारी बातें सटीक रही। बहरहाल केन्द्र में नयी सरकार के गठन तक नित्य कई बयान चौकाने वाले आएंगे। जैसा कि जेडीयू के एलएलसी अनवर खालिद ने कहा कि नितिश से बेहतर प्रधान मंत्री और कौन हो सकता है? वहीं आम आदमी पार्टी के नेता गोपाल राय ने नितिश और चन्द्र बाबू नायडू से सही फैसला लेने की अपील की है। नितिश के 12 सांसद और चन्द्र बाबू नायडू के 16 सांसद मोदी के साथ नहीं जाते हैं तो एनडीए 264 पर आ जाएगी। अकेले बीजपी की 240 सीट है। यानी उसे 32 सीट और चाहिए। इंडिया गठबंधन के पास 234 सीट है। बैठक में इंडिया गठबंधन फैसला करेगा कि वो विपक्ष में बैठेगा या फिर कोई खेला करना चाहिए।

 

Monday, June 3, 2024

बीजेपी के बीमार होने पर कौन होंगे सियासी डाॅक्टर




"मोदी बनाम अन्य का मुकाबला अबकी बार दिलचस्प रहा। सवाल यह है कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने पर वो बीमार हो गयी तो उसके इलाज के लिए किस- किस दल के नेता डाॅक्टर की भूमिका में होंगे।क्यों कि बीजेपी की हर राज्य में सीटें कम हो रही है। गुजरात लाॅबी आखिर करेगी क्या?

0 रमेश कुमार ‘रिपु’
 लोकतंत्र की तस्वीर बदलने वाली है। सोशल मीडिया में यही शोर है। वैसे मोदी बनाम अन्य का मुकाबला अबकी बार दिलचस्प रहा। सवाल यह है कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने पर वो बीमार हो गयी तो उसके इलाज के लिए किस- किस दल के नेता डाॅक्टर की भूमिका में होंगे?क्यों कि बीजेपी की हर राज्य में सीटें कम हो रही है। ऐसे में गुजरात लाॅबी करेगी क्या?मोदी ने एएनआई को दिये गये साक्षात्कार में कहा कि हिन्दुस्तान में हमारे सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ दोस्ती है। लोकतंत्र में दुश्मनी नहीं,दोस्ती ही होती है। जाहिर है कि उनके मन में संदेह है। एक डर है। घबराहट है। मोदी का रथ यू.पी में ही फंस गया तो धक्का देने कौन आगे आएगा?  क्यो  कि अबकी बार विपक्ष बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रहा। मतदान का रूझान देखकर इडिया गठबंधन उत्साहित है।
अपनी अपनी रणनीति - नरेन्द्र मोदी तीसरी बार चुनाव के सिकंदर नहीं बने तो बीजेपी के पंडाल में भगदड़ मच सकती है।   गुजरात लाॅबी की नजर है कि नवीन पटनायक कमजोर हो तो उन्हें फांस लिया जाए। विधान सभा चुनाव से पता चलेगा कि ओड़िसा की राजनीति की दशा और दिशा। वैसे सीताराम येचूरी से नवीन पटनायक कह चुके हैँ कि मोदी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। जो लोग न्यूटल हैं,उन्हें बीजेपी के पंडाल में लाने हर सियासी प्रयास होंगे। मसलन बसपा,बीजद,वाईएसआर कांग्रेस, बीआरएस आदि। इन सब के बीच तेजस्वी यादव कह रहे हैं पिछड़ों की राजनीति को बचाने और अपनी पार्टी को बचाने नितिश कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। नितिश एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। सरकार बनाने के लिए राहुल गांधी इंडिया गठबंधन के 28 दलों की बैठक एक जून को कर रहे हैं। इसमें शरद पवार,अखिलेश यादव,उद्धव ठाकरे,केजरीवाल आदि इस बैठक में बताएंगे उनकी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती है। सवाल यह भी आएगा,कि यदि बहुमत नहीं मिला तो कौन नवीन पटनायक को लाएगा। एक दो सीट अकाली दल को मिला तो कौन उनसे मिलेगा।ममता बनर्जी कह ही चुकी हैं,कि वो इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनना पसंद करेंगी। आंन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.सी.आर. दोनों न्यूटल है।लेकिन केसीआर ये नहीं भूले हैं,कि मोदी की वजह से उनकी बेटी कविता जेल में है। ये किसका साथ देंगे। चन्द्रबाबू नायडू किसका साथ जाएंगे। इस पर भी बात होगी। सरकार बनाने के लिए एक तरफ बीजेपी की चाणक्य मंत्रणा हेागी तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन की अपनी रणनाीति होगी।

गुजरात लाॅबी को संशय - इस समय सोशल मीडिया में चर्चा है कि अपने बूते पर बीजेपी की सरकार नहीं बन रही। हर राज्यों में उसकी सीट घट रही है। सवाल है,कि घट रही सीट की पूर्ति किस राज्य में होगी? यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र को मिलाकर कुल 248 सीट होती है। सन् 2019 बीजेपी अपने सहयोगी दलों की मदद से 215 सीट जीती थी। लेकिन जिन सहयोगी दलों के बूते बीजेपी सत्ता की सीढ़ी चढ़ी थी,वो उससे अलग हो गए हैं। यूपी,महाराष्ट्र,और बिहार सबसे अधिक सीट वाले राज्य हैं। इन राज्यों में बीजेपी के खिलाफ खेला होने पर बीजेपी बीमार हो सकती है। गुजरात लाॅबी को सरकार को लेकर संशय में है। दुविधा है। यदि चुनाव पलटा तो किसके हाथ में होगी सत्ता। संघ की भी नजर 4 जून की चुनाव परिणाम पर है, यदि सरकार नहीं बनी तो संघ नितिन गडकरी को आगे कर सकता है.एक जून को अंतिम चुनाव है। मोदी एक जून को खुद पर फोकस कराने के लिए वे कन्याकुमारी में 48 घंटे का ध्यान कर रहे हैं। ये भी वोट पाने का हथकंडा है। पिछले एक पखवाड़े से अस्थिर सरकार के अंदेशे में शेयर बाजार गिर रहा है। सोने-चांदी की कीमतें बढ़ रही है।

निगाहें नितिश पर - चुनाव परिणाम से पहले आज तक के राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप गुप्ता का दावा है 2019 जैसी बीजेपी की स्थिति है। प्रशांत किशोर कह रहे हैं 303 सीट बीजेपी कोे मिलेगी। वहीं एबीपी न्यूज के यशवंत देशमुख कह रहे हैं,बीजेपी की सरकार बनेगी। जबकि योगेन्द्र यादव कह रहे हैं बीजेपी को 240-250 सीट मिलेगी। चूंकि इस बार हर राज्यों के क्षत्रप 2019 की तुलना में कहीं अधिक मजबूत हैं। वो बीजेपी से सीटें छीन रहे हैं। महाराष्ट्र में गुजराती और मराठी अस्मिता का सवाल है। वहीं बिहार में मोदी से पूरे चुनाव में नितिश नाराज रहे । मोदी ने उनके साथ मंच साझा नहीं किया। नितिश धर्म निरपेक्षता और सामाजिकता की बात की। जबकि मोदी ने चुनाव में जाति धर्म को ले आए। जेडीयू का वोटर बीजेपी में शिफ्ट हुआ नहीं। यदि नितिश इस बार 16सीट में 10-12 सीट जीत गए और बीजेपी को बहुमत के लिए इतनी ही सीट की जरूरत पड़ने पर क्या वो पलटी मार सकते हैं? उनका कहना था,जो 2014 में आए हैं,वो 2024 में नहीं आएंगे। जैसा कि तेजस्वी ने कहा कि चार जून को चचा कोई बड़ा फैसला लेंगे। वैसे जेडीयू में दो खेमें हैं। लल्लन सिह और विजेन्द्र यादव आरजेडी के साथ जाना चाहेंगे। कुछ लोग बीजेपी के पक्षधर हैं। जबकि सामाजवादी विचारधारा वालों का जेडीयू में बहुमत है। नितिश को जरा भी संदेह हुआ कि उनकी पार्टी को खत्म करने की साजिश हो रही है तो वो पाला बदल देंगे।

क्षत्रपों की राजनीति बुरे दौर में - मोदी ने ज्यादातर दलों के घर ईडी,सीबीआइ और आइटी भेजकर परेशान किया। यानी मोदी के समय राज्यों के क्षत्रपों की राजनीति बुरे दौर में थी। उत्तराखंड,गोवा,कर्नाटक,मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की राजनीति को विपक्ष भूला नहीं है। राहुल जिस आरोप के बूते खड़े रहे पूरे चुनाव में,उसनेे विपक्ष को ताकत दिया है। हिम्मत दिया है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा के साथ न्याय गारंटी न लाते तो वोटर का नजरिया न बदलता। वैसे भी मोदी के शासन में 651 योजनाओं को पैसा लाभार्थियों तक गया नहीं।

बीजेपी की रफ्तार धीमी हुई - देश की राजनीति में तीन नेताओं ने अपनी रेखाएं खींच दी है। अखिलेश यादव,उद्धव ठाकरे और तेजस्वी यादव। इन तीन नेताओं की वजह से बीजेपी और एनडीए की रफ्तार धीमी हुई है। मोदी ने उद्धव ठाकरे की पार्टी तोड़ दी। उनकी सरकार गिरा दी। उनकी पार्टी का सिंबल छीन लिया। ऐसे में मोदी का साथ उद्धव नहीं देंगे।शरद पवार चार जून के बाद अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर देंगे। कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि उसे 100-120 सीट मिल रही है।

बीजेपी की हार की वजह - बीजेपी की सरकार नहीं बनने की वजह स्वयं बीजेपी के नेता चार जून के बाद गिनाने लगेंगे। लेकिन देखा जाए तो बीजेपी के नेताओं से कई गंभीर चूक हुई है। मसलन बीजेपी राम मंदिर को लेकर अति आत्मविश्वास में आ गयी। राम मंदिर मुद्दा नहीं बना तो वो कांग्रेस के घोषण पत्र में मुस्लिम लीग की छाया बताकर वोटरों को मोदी ने दिगभ्रमित किया। पूरे चुनाव को हिन्दू- मुस्लिम में बदलने की कोशिश किया। चुनाव का ध्रुवीकरण  करने की कोशिश की गयी लेकिन सफल नहीं हुए। हिन्दू को डराने कीे कोशिश किया। मोदी ने इस चुनाव में भाषा का संस्कार भूल गए। मुजरा तक आ गए। इस बार पुलवामा कांड जैसा कुछ नहीं हुआ। इस वजह से बीजेपी को राष्ट्र भक्ति का वोट नहीं मिला। विपक्ष जनहित के मुद्दों को आधार बनाया। संविधान बचाने की बात से लेकर बेरोजगारी और महंगाई को मुद्दा बनाया।
बहरहाल मोदी को शिकस्त देने मोदी विरोधी दल इस चुनाव में लामबंद हुए हैं। और अपनी ताकत की नुमाइश भी किये हैं।वहीं मोदी की छवि को इस चुनाव में उनके बयान से जबरदस्त धक्का लगा है। हिलोरें मारता विपक्ष का आत्मविश्वास बीजेपी के चार सौ पार के नारे के बीच लोकतंत्र की एक नयी तस्वीर बनाने आतुर है।