Monday, January 1, 2024

अर्श से फर्श पर कांग्रेस के नायक

"मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 'हाथ' से सत्ता जाने के बाद सियासत में कांग्रेस के सुहाने दौर की हवा खराब हो गयी है। कांग्रेस के नेताओं के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है। मध्यप्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ ही सब कुछ थे। भूपेश बघेल की अनुमति के बगैर छत्तीसगढ़ कांग्रेस सांसें नहीं ले सकती थी। राजस्थान में अशोक गहलोत को कांग्रेस सियासत का जादूगर कहती थी। उनका जादू नहीं चला। यानी कि गांधी परिवार के दुलारों के प्रति जनता की आस्थाएं अब दरक चुकी है।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ तीन दिसम्बर 2023 से पहले कांग्रेस का मनोबल बहुत ऊंचा था। कई नेता यह मानकर चल रहे थे, कि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ’हाथ’ में सत्ता आने पर कांग्रेस एक रिकार्ड बनाएगी। राजस्थान की जनता सियासी रिवाज पलट देगी। इसका दावा राहुल गांधी भी कर रहे थे। चुनावी विश्लेषक भी यही मानकर चल रहे थे,कि छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार दोबारा बनेगी। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह दावा कर रहे थे, कि इस बार कांग्रेस 150 से ऊपर सीट पाएगी। कोई विधायक नहीं खरीद सकेगा। पता नहीं ऐसा वो दावा कांग्रेस के लिए किये थे, या फिर भाजपा के लिए। चुनाव परिणाम के बाद से संकट के भंवर में कांग्रेस और कांग्रेसी हैं। तीन राज्यों में कांग्रेस की करारी हार से उसकी हवा बिगड़ी हुई है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस खड़ी कैसे हो,गांधी परिवार को कुछ सूझ नहीं रहा है। तीनों राज्यों में अगुआई करने वाले चेहरों की रणनीति कांग्रेस को जीत नहीं दिला सकी। जाहिर सी बात है, कि कांग्रेस के अंदर कुछ ऐसी खामियां थी, जिसे गांधी परिवार ने नजर अंदाज किया या फिर गांधी परिवार को अंधेरे में रखा गया। जवाबदारी नहीं दिखी.. मध्यप्रदेश में कमलनाथ ही सब कुछ थे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और स्वयं मुख्यमंत्री का चेहरा भी। कांग्रेस में पद से लेकर टिकट बंटवारे तक सब कुछ वो स्वयं फैसला करते थे। हैरानी वाली बात है, कि उन्होंने तीन -तीन सर्वे के बाद प्रत्याशियों को टिकट दिया, फिर कांग्रेस हार कैसे गयी? दिग्विजय सिंह ने कहा था, कि कांग्रेस जिन 66 सीटों पर कभी चुनाव नहीं जीती,उन सीटों पर कांग्रेस को जीताने की मेरी जवाबदारी। उनकी जवाबदारी किसी भी विधान सभा में नहीं दिखी। वर्ना कांग्रेस को 120 से अधिक सीट मिली होती। 66 सीट पर ही न सीमट जाती। सबको क्लीन चिट.. सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस की कमान तीन लोगों के हाथ में थी। उस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे। लेकिन 2023 के चुनाव में कांग्रेस की कमान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के हाथ में थी।कमलनाथ कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे को ठीक नहीं कर पाए केवल बयान बाजी करते रहे गये। शिवराज की अच्छे से विदायी करेंगे। दरअसल 2023 के चुनाव में लाड़ली बहना का अंडर करेंट था। जिसकी वजह से बीजेपी को 13 फीसदी वोट अधिक मिले। कांग्रेस को यह दिखा नहीं। 2003 के चुनाव में बीजेपी को 173 सीट मिली थी। तब संघ सक्रिय था। यह अलग बात है, कि कांग्रेस की हार की समीक्षा में किसी ने भी हार की जवाबदारी नहीं ली। और न ही गांधी परिवार ने किसी को दोषी ठहराया। उसकी वजह यह है कि पार्टी को फंड कमलनाथ,भूपेश बघेल और अशोक गहलोत मुहैया कराते थे। कमलनाथ बड़े व्यवसायी है। उन्हें गांधी परिवार निशाने पर ले नहीं सकता। मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को बनाया गया है। लोकसभा चुनाव के लिए कमलनाथ को फ्री करने के लिए। प्रदेश की 29 सीट में कितनी सीट कमलनाथ,दिग्विजय सिंह और जीतू पटवारी दिला सकते हैं गांधी परिवार भी नहीं जानता। भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेस.. छत्तीसगढ़ में भूपेश हैं ,तो भरोसा है के नारे की हवा निकल गयी। गांधी परिवार को पूरा भरोसा था,कि उनका एटीएम बंद नहीं हो सकता। लेकिन जनता को भूपेश सरकार का भ्रष्टाचार रास नहीं आया। महादेव एप,कोयला घोटाला,शराब घोटाला और गोठान घोठाला ने गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की बखिया उधेड़ दी। जबकि पिछड़ा वर्ग की राजनीति को भूपेश धार दे रहे थे। राहुल गांधी भी पिछड़े वर्ग की बात करते थे। कमलनाथ संशय में थे, कि कहीं राहुल गांधी मध्यप्रदेश में किसी पिछड़े वर्ग के नेता को सीएम न बना दें। इसलिए उन्होंने पूरे चुनाव में पिछड़े वर्ग का जिक्र नहीं किया। छत्तीसगढ़ में टी.एस सिंह देव और भूपेश के बीच सियासी समझौता हुआ था, कि ढाई- ढाई साल मुख्यमंत्री रहने का। लेकिन भूपेश ने गांधी परिवार का ऐसा विश्वास जीता कि टी.एस सिंह देव का मुख्यमंत्री बनने का नम्बर नहीं लगा। प्रधान मंत्री आवास मामले की आवाज जब टी.एस सिंह देव ने उठाई तो उन्हे उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। लेकिन दोनो के बीच पूरे पांच साल रस्साकशी की स्थिति रही। जिसका फायदा बीजेपी को मिला। राहुल गांधी और सोनिया गांधी हैराल्ड मामले में जमानत पर है। देर सबेर भूपेश बघेल महादेव एप सहित अन्य घोटाले के मामले में फंस सकते हैं। उन्हें जेल जाने से गांधी परिवार भी नहीं बचा सकता। टी.एस सिंह देव बच जाएंगे। लेकिन कांग्रेस के कई अन्य नेता फंस सकते हैं। झगड़े में उलझी रही कांग्रेस.. राजस्थान में राहुल गांधी बड़े- बड़े दावे कर रहे थे, कि सियासी रोटी इस बार जनता नहीं पलटेगी गहलोत की सरकार फिर बनेगी। जबकि साचिन पायलट और अशोक गहलोत में तनातनी थी। प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान सचिन ने पूरी मेहनत की और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन गुजरात में राहुल गांधी के सलाहकार रहे अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के रूप में इनाम मिला। तीन बार मुख्यमंत्री रहे। हर बार उनके नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव लड़ी और मुॅंह की खायी। 2023 का चुनाव अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस लड़ी, मगर कांग्रेस के लिए सुहाना सियासी दौर लौट कर नहीं आया। जबकि अशोक गहलोत को कांग्रेस सियासत का जादूगर कहती थी। उनका जादू नहीं चला। जाहिर सी बात है,कि सचिन पायलट खुश हुए होंगे। दरअसल गांधी परिवार ने तीनों राज्यों में अपने नेताओं के बीच चल रहे सियासी द्वंद का हल नहीं निकाल सकी। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच के सियासी झगड़े का हल निकाल लेती तो पन्द्रह महीने में कमलनाथ की सरकार न गिर जाती। राजस्थान में सचिन और अशोक गहलोत के बीच सुलह का कोई रास्ता निकाल लेती तो वहां कांग्रेस का 'हाथ' कमजोर न होता। यही स्थिति छत्तीसगढ़ की थी। टी.एस सिंह देव सरगुजा के राजा हैं। 2018 के चुनाव में 14 सीट कांग्रेस जीती थी,इस बार सभी सीट हार गयी। स्वयं टी.एस सिंह देव भी चुनाव हार गये। कांग्रेस में गिरावट.. जाहिर सी बात है कि कांग्रेस में गिरावट लगातर आ रही है। सन् 1975 की इमरजेंसी के बाद की स्थिति हो या फिर 2004 से 2014 के बीच की स्थिति हो। बहुमत से दूर होती गयी। कांग्रेस में कई खेमे हैं, जो अपने -अपने तरीके से कांग्रेस को भेड़ की तरह हांक रहे हैं। अच्छे नेतृत्व की कमी है। कांग्रेस का भविष्य कैसा होगा, स्वयं गांधी परिवार भी नहीं जानता। तीन राज्यों में कांग्रेस की कमान जिनके हाथो में थी, उनकी राजनीति आज फर्श पर है। तीन राज्यों में ‘हाथ’ से सत्ता जाने के बाद सियासत में कांग्रेस के सुहाने दौर की हवा खराब हो गयी है। कांग्रेस के नेताओं के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है। यानी कि गांधी परिवार के दुलारों के प्रति जनता की आस्थाएं अब दरक चुकी है।

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