Friday, December 28, 2012

चित्रकूट का बदल गया चित्र

.   
        

 मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में बम ब्लास्ट का आरोपी चित्रकूट स्थित ब्रम्हकुंड आश्रम में रामलखन महाराज के नाम पर भगवा चोला पहनकर पिछले डेढ़ साल से रह रहा था। उसके पकड़े जाने से यह बात साफ हो गई है कि धार्मिक नगरी चित्रकूट का चरित्र अब बदल गया है।क्यों कि अब यहां संत,महात्मा शंख,त्रिशूल की जगह बंदूकों के साथ रहते है।
           चित्रकूट का चरित्र और उसका चित्र अब बदल गया है। कभी यहां के घाटों पर संतों और महात्माओं का हुजूम देखने को मिलता था। साथ ही शंख,की आवाज कानों में भक्ति का रस घोलती थी। संतों और महात्माओं को त्रिशूल के साथ देखकर मन धार्मिक हो जाता था। अब उस चित्रकूट की फिजा बदल गई है। भगवा लिबास में ज्यादातर संत, महात्मा महलनुमा मठों में रहते हैं। पैदल नहीं लग्जरी गाड़ियांे में चलते हैं। त्रिशूल की जगह उनके हाथों में लाइसेंसी बंदूकें उनकी खास पहचान बन गई है। कई संत तो बंदूक लेकर ही अपने काफिले के साथ निकलते है। अध्यात्म के गलियारे में गूगल की महक के साथ गांजे का धुआं तैर रहा है। दबे पांव घुसे ऐश्वर्य,वैभव और विलास ने भक्त, भगवान और अध्यात्म के तारों को छिन्न-भिन्न कर दिया है। और इसी का फायदा यहां आकर उठाते हैं आतंकवादी,खूनी,डकैत और अनेक अपराधी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में बम ब्लास्ट का आरोपी राधे सिंह। जो यहां पिछले डेढ़ साल से ब्रम्हकुंड आश्रम में रामलखन महाराज के नाम से भगवा चोला पहनकर रह रहा था। किसी को अपने आचरण से उसने एहसास ही नहीं होने दिया कि वो आतंकवादी है। वो चित्रकूट आया अपनी आत्मा और विचार को शुद्ध करने, ऐसा नहीं है। वो चित्रकूट को अपने छुपने की सबसे महफूज जगह मानकर आया था। ऐसा चित्रकूट के लोगों का विश्वास है कि, कोई भी व्यक्ति यहां आता है राम की मर्जी से और जाता भी है तो उनकी ही मर्जी से। यह बात सुनने में अजीब लग सकती है। लेकिन धन सिंह पर यह बात सत्य प्रतीत होती है।
     सुबह चित्रकूट के आश्रमों में 17 दिसंबर को सनसनी फैल गई,जब नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी की गिरफ्त में आया मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में बम ब्लास्ट का आरोपी धन सिंह उर्फ रामलखन दास महाराज। यह आतंकवादी चित्रकूट में ब्रम्हकुण्ड के पास त्यागी बाबा की  कुटिया में रह रहा था। 32 वर्षीय धन सिंह उर्फ रामलखन दास महाराज, पुत्र शिव सिंह निवासी हातौद इंदौर का,नयागांव थाना पुलिस की मदद से नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) अफसरों ने उसे गिरफतार किया। पूछताछ में आरोपी ने बताया कि वह पूर्व में पकड़े गए आरोपी राजेन्द्र चौधरी उर्फ लक्ष्मणदास महाराज निवासी देवालपुर और इंदौर के ही रामजी व अमित के साथ मालेगांव में रैकी करता था। मोटर साइकिल के जरिए उसने एक्सप्लोसिव प्लांट किया था। पुलिस के अनुसार आरोपी धन सिंह और उसके साथियों का हाथ हैदराबाद, जयपुर, जम्मू तथा इंदौर में हुए बम धमाकों में भी है।
      मालेगांव ब्लास्ट के दौरान धन सिंह और राजेन्द्र के साथ इंदौर के ही रामजी उर्फ रामचन्द्र, अमित हकला उर्फ प्रिंस साथ थे। चारों ने वहां वारदात के बाद अलग-अलग हो गये। मालेगांव ब्लास्ट के आरोपी धन सिंह उर्फ रामलखन दास महाराज ने बताया कि राजेन्द्र उर्फ लक्ष्मणदास मास्टर माइंड था। जिसके इशारे पर रैली और एक्सप्लोसिव प्लांटेशन किया जाता था। आरोपी धन सिंह ने एनआईए को पूछताछ में यह भी बताया कि मालेगांव धमाके के बाद वह वापस अपने गांव हातौद चला आया। कुछ दिनों बाद पुलिस से बचते हुए वह ओेंकारेश्वर पहुंच गया। जहां करीब डेढ़ साल रहा। वहीं बातों ही बातों में पता चला कि   छुपने की सबसे महफूज जगह चित्रकूट है, इसलिए ओंकारेश्वर से चित्रकूट चला आया। आरोपी धन सिंह को नयागांव थाना में पदस्थ उप निरीक्षक सतीश तिवारी, प्रधान आरक्षक सुधीर त्रिवेदी, आरक्षक आशीष दुबे और सैनिक चंदिका प्रसाद ने पकड़ने के बाद नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) अधिकारी महेश लाड़ा, एएसपी श्री नेगी और इंस्पेक्टर बिजेन्दर सिंह के सुपुर्द करते हुए उसकी धारकुण्डी से गिरफ्तारी दिखाई।   18 दिसंबर को धमाके के आरोपी धन सिंह उर्फ रामलखन दास महाराज को जिला अस्पताल में मेडिकल जांच के बाद प्रथम श्रेणी न्यायिक दण्डाधिकारी मो. अरसद के न्यायालय में पेश किया गया।एनआईए के पुलिस अधीक्षक प्रेम सिंह बिष्ट कहते हैं, हमारी टीम के सामने ऐसी कोई बात नहीं आई जिससे यह कहा जा सके कि आरोपी आरएसएस से जुड़ा था। चित्रकूट से पकड़ा गया धन सिंह मालेगांव-समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लास्ट का आरोपी है। उसे यहां से ट्रांजिट रिमाण्ड पर  मुम्बई ले जा रहे हैं।
अधर्मी बाबाओं की नगरी
 चित्रकूट के मठ व आश्रमों में साधु के भेष में पनाह पाने वालों में धन सिंह उर्फ बाबा रामलखनदास उर्फ स्वामी पहला शख्स नहीं है। अपराध जगत से जुड़े ऐसे लोगों की लंबी सूची है। जो कानून व्यवस्था की आंखों में धूल झोककर यहां रहते आये हैं। कुख्यात व चर्चित अय्याश बाबा इच्छाधारी को पूरा देश अभी तक नहीं भूला है। लगभग पांच साल पहले निर्माेही अखाड़े से भी दिल्ली की एसटीएफ ने एक अपराधी को दबोचा था। यहां ऐसे दर्जनों साधु-संत महंत हैं, जिनके पास वैध-अवैध हथियार है। चित्रकूट सबसे अधिक शर्मिदा किया इच्छाधारी बाबा ने। चमरौंहा गांव निवासी राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ शिवा द्विवेदी उर्फ भीमानंद उर्फ इच्छाधारी बाबा ने राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी घिनौनी छाप बनाई जिससे संत समाज और चित्रकूट धाम दोनों ही अपमानित हुए हैं। चित्रकूट जिले के मानिकपुर कस्बे से 23 किलोमीटर दूर स्थित चमरौंहा गांव में इच्छाधारी बाबा का अपना साम्राज्य था। बाबा के पिता का कहना है कि तीन बार हाई स्कूल में फेल होने के बाद उनका बेटा शिवा द्विवेदी घर से भागकर आगरा चला गया। वहां के एक होटल में वेटर का काम करता था। 1997 में पहली बार भीमानंद ग्रेटर नोएडा पुलिस द्वारा सेक्स रैकेट में पकड़ा गया। चित्रकूट जिले के इस गांव से 500 मीटर पहले नदी तट के किनारे इच्छाधारी ने 2009 में 5 एकड़ जमीन खरीदी जिसके भूमिपूजन में दिल्ली और बम्बई की बार बालाएं भी बुलाई गईं थीं। इस आयोजन में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री दद्दू प्रसाद,दस्यु साम्राट ददुआ का पुत्र व तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष वीर सिंह और कई तेंदूपत्ता व्यापारियों ने शिरकत की थी। बाबा की इस जमीन पर तत्कालीन कलेक्टर हृदेश कुमार ने बाबा से खुश होकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना की राशि से 1500 पेड़ लगवा दिए थे। जहां वतर्मान में इच्छाधारी ने तीन मंजिला साई आश्रम मंदिर बनवाया है। वर्ष 2010 में दिल्ली पुलिस ने इस अधर्मी बाबा को सेक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया तो धाािर्मक नगरी चित्रकूट के माथे पर भी बदनामी के छीटे पड़े। समाजशास्त्री डा. महेश शुक्ला कहते हैं,चित्रकूट के महात्माओं के बीच अब प्रतिद्वंदिता बढ़ गई है।यह प्रतिद्वंदिता ज्ञान की नहीं बल्कि बाहुबल, जनबल व धनबल की है। यही वजह है कि चित्रकूट के तकरीबन हर आश्रम में त्रिशूल व शंख मिले या न मिले लेकिन दीवारों पर बंदूकें जरूर टंगी नजर आ जाएंगी।


Tuesday, December 18, 2012

पसंद पसंद की बात शिव को नहीं भाये प्रभात

 
   पसंद पसंद की बात
  शिव को नहीं भाये प्रभात
भोपाल,रमेश कुमार ‘रिपु‘
भाजपा ने आखिर किसके कहने पर,झा का जाप नहीं करने का निर्णय लिया? इस बात को जितनी शिद्दत से प्रभात झा समझ सकते हैं,कोई दूसरा नहीं। प्रदेश के सियासी इतिहास में खासकर भाजपा शासन में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक मुख्यमंत्री को विवश होकर अपना वीटो पावर का इस्तेमाल करना पड़ा। खासकर,अध्यक्ष के लिए। भाजपा हाई कमान को भी शिव के तर्क और बातों को बिना किसी कुतर्क के स्वीकार करना पड़ा। अंत तक प्रभात को शिवराज पता नहीं चलने दिया कि उनकी मंशा क्या है। उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी मीडिया से साफ साफ कह दिया कि प्रभात झा ही अध्यक्ष रहेंगे। इस दौड़ में कोई दूसरा शामिल नहीं। उनके ऐसा कहते ही प्रभात झा के मोबाइल पर बधाई संदेश आना शुरू हो गया। बिहारी बाबू समझ गये कि उनके जख्म में नमक छिड़कने के लिए किस तरह की मीठी राजनीति उनके साथ की गई है। एक तरफ अध्यक्ष की बधाई,दूसरी तरफ उन्हें भीड़ से अलग करके, तमाशा देखने मजा लेने वाले भीड़ में तब्दील हो रहे है। दिल्ली से मन मसोड़कर जब 13 तारीख की टेªन प्रभात ने पकड़ी और तोमर भी,दोनों अलग अलग टेªन से भोपाल पहुंचे,तभी सभी को एहसास हो गया कि पार्टी में झा का जाप अब नहीं होगा।
    भाजपा मामलों के अकेले नीति नियंता सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी तीन दिनों तक भोपाल के सियासी गलियारों में घूमते रहे और वो प्रभात के लिए काम करते रहे। यही बात शिवराज का पसंद नहीं आई। इसलिए भी कि सुरेश की मदद से ही प्रभात दिल्ली के रास्ते से भोपाल पहुंचे थे। ढाई साल में संगठन के ढांचे को जिस तरह बिहारी ताना बना से खड़ा किया और सरकार के समानांतर अपने आप को स्थापित किया,उससे शिव की बंद तीसरी ऑख खुल गई। शिव को प्रभात ने इस बात का एहसास करा दिया कि आप नहीं तो और सही। विधायक, जिला प्रतिनिधि,मंडल अध्यक्ष और सांसदों को घुड़की देने वाले प्रभात ने पार्टी को अपने गिरफ्त में ले लिया। प्रदेश में शिवराज की योजनायें से आम जनता के बीच बढ़ती उनकी लोकप्रियता पर धब्बा लगाने के लिए प्रभात ने पिछले साल गोपनीय चुनावी सर्वे कराया और रिपोर्ट लीक भी करवाया। रिपोर्ट थी कि आज चुनाव हो जाये तो भाजपा 135 स्थानों पर बेहद कमजोर है। यानी लाड़ली लक्ष्मी योजना के दम पर अमेरिका तक लोकप्रिय शिव को यह बताया गया कि उनकी योजना,और लोकप्रियता खोखली है। जमीनी हकीकत यह है कि प्रदेश में भाजपा की स्थिति बेहद खराब है। धैर्यवान शिवराज कुछ बोले नहीं। उनके माथे पर जरा भी शिकन नहीं आई तो प्रभात ने दूसरी चाल चली। विकास यात्रा के जरिये विधायकों की रिपोर्ट मंगवाई,जिसमें बताया गया कि प्रदेश के 65 विधायकों से जनता नाराज है। यानी इतनी सीट भाजपा के हाथ से निकल जायेगी। यह सब शिवराज को परेशान करने के लिए प्रभात ने किया। मीडिया में सुर्खियों की राजनीति के लिए प्रभात ने शिवराज को कई मामले मे निशाने पर लिया। लेकिन जब बात प्रदेश में प्रभात वर्सेस शिवराज होने लगी। आगामी मुख्यमंत्री प्रदेश के प्रभात झा। इसकी शिकायत कई बार दिल्ली जाकर शिवराज ने हाई कमान से की। प्रभात को हाई कमान ने तलब किया। लेकिन वो संगठन को सक्रिय करने की बात कहकर, अपना बाचाव कर लेते थे। लेकिन यह कब तक चलता। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की लगातर अनदेखी और उन्हें तवज्जो नहीं देने की प्रभात की सियासत से कई अपमानित हुए। प्रभात के चलते भाजपा प्रदेष में रंग बदलने लगी। सुर्खियों की सियासत प्रभात करने लगे,जबकि अध्यक्ष का काम होता है,संगठन को मजबूत करना,राजनीति नहीं। अपने पौने तीन साल के कार्यकाल में झा अपने बयान और कार्यप्रणाली को लेकर विपक्ष के निशाने पर अधिक रहे। वहीं तोमर के दामन पर ऐसा कोई धब्बा नहीं लगा। विधानसभा चुनाव के मौके पर शिवराज ऐसे व्यक्ति को अपना सारथी नहीं बनाना चाहते थे,जिससे दिक्कतों का सामना करना पड़ता। इसीलिए सुरेश सोनी की तीन दिनी भोपाल यात्रा को शिवराज ने तवज्जो नहीं दिया। प्रभात को इस बात का एहसास हो गया था कि शिवराज नहीं चाहते कि मै दुबारा अध्यक्ष बनूं,इसलिए उन्होंने सुरेश सोनी को भोपाल बुलाये। यह अलग बात है कि सोनी से प्रभात नहीं मिले और न ही सोनी मिले प्रभात से। यह सब सोची समझी चाल थी। सोनी को जब यह पता चल गया कि शिव की मंशा प्रभात को लेकर अनुकूल नहीं है तो वो भी अपना वीटो पॉवर का इस्तेमाल नहीं किये। जानते थे वीटो पॉवर फिजूल होगा।  
बहरहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पसंद का अध्यक्ष तोमर के बनने पर उन्होने यूं ही नहीं कहा कि कार्यकर्ताओं में विश्वास का संचार उनका मूलमंत्र रहा है। उनके नेतृत्व में पार्टी नई ऊंचाई पर पहुंचेगी। तोमर की स्वीकार्यता को साबित करने उनके नामांकन के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी के साथ पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण पांडे, सत्यनारायण जटिया जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ नई पीढ़ी के लोगों की मौजूदगी इस बात का संकेत है कि तीसरी बार सत्ता तक पहुंचने में सभी साथ साथ हैं।
क्यों जरूरी हुए तोमर
पार्टी का मानना है कि आगामी चुनाव जीतने के लिए हाई प्रोफाइल नहीं, लो प्रोफाइल की राजनीति करने वाले की जरूरत है। ताकि निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक संदेश जाये साथ ही उन्हें यह लगे भी कि उनके बीच का व्यक्ति उनका नेतृत्व कर रहा है। वैसे भी इस मेयार को छूने वाले अन्य नेताओं की अपेक्षा तोमर के मुकाबले कोई और नेता नहीं भी है। मुख्यमंत्री भी संगठन के मामले में तोमर पर ज्यादा भरोसा करते आये हैं। देखा जाये तो कई विषय ऐसे थे, जिन पर शिवराज ने प्रदेश भाजपा नेतृत्व के बजाए, तोमर से विचार विमर्श करना बेहतर समझा। शिवराज को तोमर इसलिए भी पसंद आये कि प्रदेश में पहले से स्ािापित और प्रभावशील होने के बाद भी तोमर ने कभी अपनी हदें पार नहीं की। आपसी भरोसा और तालमेल का आकर्षण उन्हें पुनः एक दूसरे के करीब ले आया। तोमर 2007 में अध्यक्ष बने तब भी केवल संगठन का ही काम देखते रहे,चुनाव के समय और सरकार बनने के बाद भी कभी शिवराज और अपने बीच यह स्थिति पैदा नहीं होने दिया कि मीडिया या फिर पार्टी के लोग कहें कि तोमर वर्सेस शिव। वहीं प्रभात झा मुख्यमंत्री को सेफ करने की रणनीति कम बनाते थे,फिर भी वो खुद को विपक्ष के निशाने से नहीं बचा  पाते थे। विवादों की सूची बेहद लंबी है उनकी विपक्ष के साथ, जो चुनाव के समय पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते थे। शिवराज निर्विवाद व्यक्तित्व वाला अध्यक्ष चाहते थे,इसलिए झा को नापसंद किया।

Thursday, December 6, 2012

मुस्लमानों पर सियासत कर रही कांग्रेसःगोटिया

     मुस्लमानों पर सियासत कर रही कांग्रेसःगोटिया

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद गोटिया कहते हैं कांग्रेस भाजपा पर आरोप लगाकर इस देश में मुस्लिम वोट अपने पक्ष में खड़ा करना चाहती है। जबकि वो आज की पीढ़ी से यह बात छुपा रही है कि इस देश में नेहरू और गांधी के समय 5 लाख मुस्लिम काटे गये हैं। साम्प्रदायिकता की नींव तो कांग्रेस ने इस देश में डाली है और आरोप भाजपा पर मढ़ रही है। कांग्रेस तो उसी दिन से मुस्लिम राजनीति करने लगी है जिस दिन से,इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से शादी की। कहीं नहीं लिखा है और न ही प्रमाण है कि फिरोज खान,गांधी हो गये। फिर कांग्रेसी, आज भी गांधी,गांधी की रट लगा रहे हैं। राजीव गांधी,संजय गांधी सभी फिरोज खान की संताने हैं,इसलिए मुस्लमानों पर कांग्रेस  सियासत कर रही है। तीखे सवालों के उन्होंने तीखे जवाब दिये। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश -

0क्या भाजपा रंग बदल रही है,नये अवतार में आने के लिए।
00 भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की हिमायती है। जब तक हिन्दुस्तान अपना रंग नहीं बदलेगा, तब तक भाजपा देश की आत्मा के रंग में ही रंगी रहेगी,उसके रंग बदलने का सवाल ही नहीं उठता।
0 हिन्दुस्तान किस तरह का रंग बदले,स्पष्ट करें।
00समृद्धशाली विकसित राष्ट्र के रूप में इस देश की पहचान बने। पूरी दुनिया उसे जाने। अनुकरणीय परंपराये राष्ट्र की शिराओं में लहू की तरह दौड़े।
0 दुनिया मंे देश का नाम तो है ही है,वो चाहे अटल जी के नाम से दुनिया भारत को जाने या फिर यूपीए के घोटाले से दुनिया,हिन्दुस्तान को जाने।
00 मै सोनिया या फिर राबर्ट वाड्रा की बात नहीं करना चाहता। ये सभी निर्विवाद व्यक्ति हैं,यानी भ्रष्टाचार के मसीहा है। ऐसे लोगों के नाम से देश की पहचान बने,यह तो हमारी देश और संस्कृति का अपमान है।
0 भाजपा अध्यक्ष नीतिन गडकरी पर भी तो भ्रष्टाचार के छीटे पड़े हैं।
00 गडकरी जी का मामला अलग हैं। वो सहकारिता के आधार पर ताना बना बुने हैं। यदि वो गलत होते तो,यह नहीं कहते कि जांच करा लो। यदि दोषी हॅू तो सजा दे दो। राबर्ट वाड्रा या फिर एसोसियेट जर्नल्स को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी बिना ब्याज के राशि दिये। यह कहना कि 700 लोगों के जीवन को बाचाने के लिए ऐसा किया। चंदा की राशि को धंधा बना देना गलत है। आज भी सैकड़ो कर्मचारियों का मामला कोर्ट में चल रहा है। यदि ये सही हैं तो इन्हें कहना चाहिए कि हमारी जांच करा लें जैसा कि गडकरी खुलकर बोल रहें है कि जैसा चाहो जांच करा लो।
0भाजपा धर्म निरपेक्ष होने के चक्कर में कई बार अपने कुर्त्ते में साम्प्रदायिकता की जेबें भी बनवाने का मोह नहीं छोड़ती ऐसा क्यो?
00 मुझे ताज्जुब होता है कि भाजपा पर बार बार कांग्रेस साम्प्रदायिकता का आरोप क्यों लगाती है। कभी अपने गिरेबान में भी तो झांक के देखे। आज तक जितनी बार भी भाजपा आरोप लगे हैं एक भी प्रमाणित नहीं हुए हैं। नेहरू और गांधी के समय तो इस देश में पांच लाख मुस्लमान काट दिये गये,उसे आज की पीढ़ी से कांग्रेस क्यों छिपा रही है। देश के बंटवारे का जो आधार कांग्रेस के समय तय किया गया,उसके स्वरूप में मै नहीं जाना चाहता,लेकिन किया किसी और ने और उसका दंड आज भी देश भोग रहा है। साम्प्रदायिकता की नींव तो कांग्रेस ने रखी। और आरोप भाजपा पर लगाया जा रहा है। कांग्रेस मुस्लिम वोट खड़ा करने की राजनीति कर रही है। मुस्लमानों को गरीब बताकर उन्हें रूपये बांट रही है। यह राजनीति नहीं तो और क्या है। कांग्रेस तो उसी दिन से मुस्लिम राजनीति करने लगी है जिस दिन से इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से शादी की। कहीं नहीं लिखा है और न ही प्रमाण है कि फिरोज खान,गांधी हो गये। फिर कांग्रेसी, आज भी गांधी,गांधी की रट लगा रहे हैं। राजीव और संजय तो फिरोज खान की संताने हैं,इसलिए मुस्लमानों पर कांग्रेस  सियासत कर रही है।
0 लाल कृष्ण आडवाणी तो भी मुस्लिमों को रिझाने के लिए जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष नेता कहा। उसके बाद पार्टी में बवाल मचा। क्या जिन्ना को भाजपा धर्म निरपेक्ष नहीं मानती?
0जो आडवाणी जी कहे उसका गलत अर्थ लगाया गया। उन्होंने वही कहा जो पार्लियामेंट में पहले भाषण में जिन्ना बोले थे। सेक्यूलर का अर्थ होता पंथ निरपेक्ष न कि धर्म निरपेक्ष, और आडावाणी जी जिन्ना को सेक्यूलर बोले,लेकिन उसका अर्थ वो नहीं था जो निकाला गया।
0 इस देश को मोदी चाहिए या फिर गडकरी?
00 मोदी और गडकरी की तरह देश की सेवा करने वाले ऐसे सभी नौजवानों की जरूरत है जो राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ सके और देश की संस्कृति को समझता हो।
0क्या अब भाजपा कांग्रेस होने लगी है या फिर हो गई है?
00 कांग्रेस से भाजपा अलग है। वो कभी न तो कांग्रेस हो सकती है और न ही दूसरी पार्टी। अपने सीने मं लिखा रखा है पार्टी विथ द डिफरेंस तो फिर,भाजपा कांग्रेस कैसी हो जायेगी।
0क्या भाजपा आरएसएस के शिकंजे में या फिर उसका रिमोट कंट्रोल नागपुर में है।
00 जब भाजपा और आरएसएस का जन्म हुआ था तब रिमोट कंट्रोल नहीं बना था। भाजपा और संध के बीच मर्यादा है। दोनों अपनी मर्यादाओं के बीच काम करते हैं। यह कहना गलत है कि भाजपा,संघ के शिकंजे में है।

भाजपा में झा का जाप बंद

  भाजपा में झा का जा प बंद
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेकर पार्टी की सांस अभी भी अटकी हुई है। वहीं प्रदेषाध्यक्ष को लेकर एक राय पर मतभेद है। जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्षों के चुनाव में आम राय का विवाद हाई कमान तक पहुंचने के बाद भाजपा के अंदर अभी भी विरोध का कुहरा थमा नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय चुनाव प्रभारी थावरचंद गहलोत ने सांसद सुमित्रामहाजन को अध्यक्ष बनाने पर अपनी मोहर लगा दी है,वहीं मुख्यमंत्री शिवराज ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है। वो नरेन्द्र सिंह तोमर की प्रदेश में धकमाकेदार वापसी चाहते हैं। प्रभात झा के खिलाफ सुमित्रा ताई,रघुनंदन शर्मा सहित प्रदेश के कई मंत्री और पांच दर्जन विधायक खिलाफ हैं। इससे शिवराज की सांस नहीं समा रही है कि वो भाजपा में फिर से झा के नाम का प्रभात होने दें कि नहीं। आखिर झा का विरोध प्रदेश भर में करने की लॉबिंग कौन कर रहा है। कौन नहीं चाहता प्रभात के नाम का घंटा भाजपा में बजे। प्रभात के नाम का जाप न हो,प्रभात के अध्यक्ष बनने से किसे नुकसान होगा,किसे फायदा, ऐसे कई सवालों का लिहाफ उठाती यह रिपोर्ट ... 
0  रमेश कुमार ‘रिपु‘
     यह कोई नहीं जानता कि प्रभात झा ने विभिन्न पदों के लिए पार्टी में चुनाव की जगह आम राय को क्यों महत्व दिया था। इसके पीछे उनका कोई न कोई मकसद रहा होगा। लेकिन उन्होने अपने कार्यकाल में जिस बिहारी अंदाज में पार्टी के संगठन के ढीले पुर्जों को कसा और विपक्ष को लपेटे में लेते हुए सुर्खियों की राजनीति की,उससे पार्टी का भला हुआ या फिर उनका? यह सवाल अब केवल उनके विरोधी ही नहीं, राजनीतिक समीक्षक और स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी कर रहे हैं। इसलिए भी कि ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा, जब प्रभात झा ने कांग्रेस पर हमला करने के बहाने शिवराज पर भी निशाना न साधा हो। वो चाहे ओरछा में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में विवश होकर शिवराज को मंच पर कहना पड़े कि झा जी, आप संगठन देखें, मै सरकार चला लूंगा। इसके बाद सज्जन वर्मा ने नर्मदा नदी के संदर्भ में भद्दी टिप्पणी की तो, प्रभात ने हमला किया,सज्जन सहित कांग्रेस पर। लेकिन तीर लगा शिवराज को। इसलिए कि नर्मदा तो विदिशा से भी लग कर बहती हैं। वहां नर्मदा के किनारे अवैध उत्खनन हो रहा है तो जाहिर है कि प्रभात कुछ बोलेंगे तो तीर शिवराज को भी लगेगा। और उन्होंने यही किया। बिहारी बाबू की कार्यशैली से न तो ताई सुमित्रा महाजन खुश हैं और न ही रघुनंदन शर्मा और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। आज मुख्यमंत्री हाथ मल रहे हैं कि प्रभात के कहने पर बेवजह नरेन्द्र सिंह तोमर को केन्द्र की राजनीति करने के लिए उन्हें दिल्ली भिजवा दिया भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनवाकर। प्रदेश में उनके बगैर न केवल शिवराज अकेले पड़ गये,बल्कि नरेन्द्र के समर्थक भी खाली कारतूस हो गये।
        प्रभात झा ने नरेन्द्र सिंह तोमर के हटते ही पार्टी के अंदर संगठनात्मक ढांचा अपने अनुसार तैयार किया है। आम राय की स्थिति झा ने इसलिए पैदा कि ताकि पार्टी के अंदर चुनाव न हो। वो जिसका नाम लिखकर दे देंगे या कह देंगे उसे हर हाल में भाजपा जिला अध्यक्ष बनाना है। कोई विरोध करता है तो पार्टी अनुशासन हीनता की नोटिस की धमकी देकर उसकी आवाज बंद कर दो। यही हर जिले में भाजपा जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष चुनाव में हुआ। इसका विरोध ताई सुमित्रा महाजन और रघुनंदन शर्मा ने खुलकर किया। यह बात हाई कमान तक गई। भाजपा के राष्ट्रीय चुनाव प्रभारी थावरचंद गहलोत भी मानते हैं कि पार्टी संविधान में निर्वाचन का ही प्रावधान है। आम राय जैसी कोई बात नहीं है। मुझे यह बताया गया है कि प्रदेश संगठन में जो रायशुमारी हो रही है उसका स्वरूप भी निर्वाचन जैसा ही है। यह अलग बात है कि कुछ स्थानों पर मंडल अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष को लेकर विरोध हुआ है,विवाद के चलते कुछ स्थानों पर फैसला रोक लिया गया है। वहीं इस मामले पर पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रघुनंदन शर्मा कहते हैं,‘‘ पार्टी के विधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि आम राय से पदाधिकारी थोपे जायें। पार्टी विधान में राय शुमारी नाम का कोई शब्द नहीं है। उसमें साफ लिखा है कि चुनाव होना चाहिए। ऐसा करने के पीछे निश्चय ही किसी न किसी का हित जुड़ा हो सकता है‘‘। राय शुमारी के पीछे क्या निहार्थ हो सकते हैं के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस मामले पर निर्वाचन अधिकारी को जांच करना चाहिए। यदि जांच होती है तो यकीन के साथ कह सकता हॅू कि राय शुमारी से चुने गये जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष की वजह सामने आ जायेगी।
बहरहाल प्रदेशाध्यक्ष बनने की चाह को लेकर एक बार फिर ताई सुमित्रा सामने हैं। अबकि बारी नारी, का नारा के साथ सुमित्रा अपनी दावेदारी जता रही हैं। थावरचंद गहलोत भी ताई के नाम पर अपनी मोहर लगा दिये हैं। वहीं प्रभात झा के खेमें के लोगों का कहना है कि प्रदेशाध्यक्ष के लिए महिलाओं का क्या काम। पिछली बार भी ताई ने प्रदेशाध्यक्ष बनने का दम खम दिखाया था,लेकिन समझाने पर शांत हो गई थीं,लेकिन इस बार ताई अध्यक्ष बनने के लिए एड़ी चोटी एक की हुई हैं। यह अलग बात है कि उन्हें अभी किसी और बड़े नेता का समर्थन नहीं है। समझा जाता है कि यदि पार्टी के अंदर अन्य बातें समान्य रहीं तो अनूप मिश्रा,झा नरोत्तम,और कैलाश विजयवर्गीय को पटकनी देने के लिए ताई का साथ दे सकते हैं। वहीं प्रदेश में इस समय 65 विधायक झा से नाराज चल रहे है। यदि सीधे चुनाव की स्थिति आई तो झा को इतने विधायक तो वोट नहीं ही देंगे। एक सवाल यहां यह भी है कि आखिर झा ने रायशुमारी की नींव क्यों रखी। जानकारों का कहना है कि ताकि उनके समर्थक अधिक से अधिक चुन कर आयें और वो सभी उनकी एक आवाज पर उनके पक्ष में वोट डाल सकें।
शिवराज नहीं खोल रहे हैं पत्ते
   शिवराज अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। जबकि सबकी नजर उन पर लगी हुई है। वो इस बात को भी समझ रहे हैं कि यदि झा दुबारा अध्यक्ष बने तो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ जायेगी। झा उन्हें भी नरेन्द्र सिंह तोमर की तरह केन्द्र की राजनीति के लिए प्रस्तावित कर देंगे। पार्टी उन्हें राष्ट्रीय महासचिव तो बना ही देगी। फिर उनकी भी स्थिति तोमर की तरह हो जायेगी। केन्द्र में पार्टी की सरकार बनी तो ठीक है,नहीं तो कहीं के न रह जायेंगे। इसलिए कि विदिशा तो उनके हाथ से छूट ही गया है। यहां सुशमा स्वराज का कब्जा है। उनके हाथ में केवल बुधनी विधान सभा है। यहां से अगली दफा साधना सिंह विधान सभा का चुनाव लड़ सकती है,यदि वो केन्द्र में भेज दिये गये तो। नहीं तो बुधनी ही उनके हिस्से में आयेगा। वहीं वो इस बात को भी समझ रहे हैं कि इस बिहारी बाबू की नजर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी हुई है। इसलिए पूरे पांच साल तक संगठन को सक्रिय करने की आड़ में प्रदेश में अपनी जड़े जमाने में झा लगे रहे हैं। अब जब वो शिवराज की तरह प्रदेश के संगठन में अपनी बैठ जमा लिये हैं तो उन सभी को हटाने की तिकड़म कर रहे हैं,जिससे उन्हें खतरा है। जानकारों का कहना है कि शिवराज 2008 में अपनाये गये फामूर्ले के तहत 2013 का चुनाव लड़ना चाहते है। वो हाई प्रोफाइल की राजनीति करने वालों से बचते हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर इसी लाइन के नेता है। जबकि झा हाई प्रोफाइल के नेता है। वैसे भी नरेन्द्र सिंह तोमर को प्रदेश का हर व्यक्ति जानता है,ऐसी स्थिति में उनके अध्यक्ष बनने से न तो पार्टी को नुकसान है और न ही शिवराज को। प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन से इस मामले में शिवराज ने अभी तक कोई बात नहीं की है। जबकि दिसंबर में हर हाल में अध्यक्ष चुना जाना है। समझा जाता है कि शीतकालीन सत्र के बाद ही शिवराज इस दिशा में सभी से बातें करेंगे।
      भाजपा के खेमें में न केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रभात को पुनः अध्यक्ष के रूप में नहीं देखना चाहते बल्कि रघुनंदन शर्मा भी नहीं चाहते कि झा दुबारा अध्यक्ष बने। इसलिए कि उन्हें बेवजह अपमानित करके झा ने प्रदेश उपाध्यक्ष के पद से हटा दिया था। शर्मा सिर्फ इतना ही बोले थे शिवराज के संदर्भ में कि मुख्यमंत्री को घोषणावीर मंत्री नहीं बनना चाहिए। उन्होंने केवल सलाह दी थी। लेकिन झा उसे बड़ा मुद्दा बना दिया था। वहीं जानकारों का दावा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी का प्रभात को वरदहस्त प्राप्त है। ऐसी संभावना है कि वो  प्रभात का पक्ष लेंगे। सोनी लंबे समय से झा को जानते हैं। उन्होंने ही झा को दिल्ली भेजा था। लेकिन इस बार झा के खिलाफ हवा चलने की वजह से वो भी अरविंद मेनन और मुख्यमंत्री शिवराज से बातें करने के बाद ही कुछ बोलेंगे। वहीं यह जाहिर हो गया है कि नीतिन गडकरी की तरह पार्टी के अंदर झा का भी विरोध है। यह अलग बात है कि झा पर नितिन गडकरी जैसा आरोप नहीं है,पर बिहारी सियासी संस्कृति की वजह से पार्टी में रोश है। जिसे पार्टी नजरअंदाज नहीं करना चाहती,आगामी चुनाव को देखते हुए।
16 को तय होगा अध्यक्ष
प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का चुनाव 16 दिसंबर को होगा। 15 दिसंबर को नामांकन होगा और अगले दिन सुबह दस बजे तक नाम वापसी और आवश्यक होगा तो मतदान होगा अन्यथा आम सहमति पर अध्यक्ष चुने जायेंगे। मतदान हुआ तो 12 बजे से शाम 4 बजे तक होगा। लगभग 200 मतदाता,जिला प्रतिनिधि और प्रदेश प्रतिनिधि 180   विधायक दल प्रतिनिधि 16 और सांसद प्रतिनिधि 3 होंगे जो मतदान करेंगे। प्रदेश चुनाव अधिकारी नंदकुमार सिंह चौहान ने बताया कि 16 दिसंबर की तारीख तय की गई है। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार से भी बात की जायेगी। जरूरी समझा गया तो तारीख बदल सकती है। अभी तक प्रदेश के 44 जिलों के जिला अध्यक्षों का चुनाव हो गया है। शेष जिलों का भी चुनाव से पहले हो जायेगा।
कलराज या रविशंकर होंगे पर्यवेक्षक
भाजपा के प्रदेशाघ्यक्ष के लिए सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ने राष्ट्रीय महासचिव और भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद अथवा कलराज मिश्र में से किसी एक को पर्यवेक्षक के रूप में प्रदेश भेेज सकती है। राष्ट्रीय चुनाव अधिकारी थावरचंद गहलोत के अनुसार गुजरात चुनाव की व्यवस्तता को देखते हुए बड़े नेताओं अभी प्रदेश के पर्यवेक्षक का नाम तय नहीं किया है। जल्द ही तय हो जायेंगे।