तीन
राज्य। तीन चुनाव। तीन पार्टियाँ। तीन परिणाम। ऐसे में सवाल यह है,कि अगले
चुनाव में कौन सा माॅडल चलेगा। गुजरात, दिल्ली या फिर हिमाचल का। गुजरात
में मोदी मैजिक चला। मगर दिल्ली और हिमाचल में मोदी बेअसर रहे। हिमाचल
प्रदेश में ‘हाथ’ ने कमल नोचे। आप ने दिल्ली में ‘कमल’ पर झाड़ू मार दिया।
तीन
राज्यों में तीन तरह के चुनाव हुए। परिणाम भी तीन तरह के आए। गुजरात में
मोदी मैजिक से कांग्रेस बाहर हो गई। और आप पांँच सीट पाकर राष्ट्रीय पार्टी
बन गई। हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हार से राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा
की प्रतिष्ठा धुमिल हुई। संभावना है, कि जनवरी के बाद अब ये अध्यक्ष नहीं
रहेंगे। दिल्ली में एम.सी.डी.चुनाव में आप ने ‘कमल’ पर झाड़ू मार दिया।
बीजेपी के भ्रष्ट पार्षदों का सियासी लाभ 'आप' को मिला। वहीं हिमाचल प्रदेश
में आप के 68 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। गुजरात में मोदी मैजिक
चला। मगर दिल्ली और हिमाचल में मोदी बेअसर रहे। हिमाचल प्रदेश में ‘हाथ’ ने
कमल नोचे। आप ने दिल्ली में ‘कमल’ पर झाड़ू मार दिया। जबकि दिल्ली के
एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने मोदी के पोस्टर बैनर का खूब इस्तेमाल किया था ।
गुजरात
विधान सभा चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और आप तीनों ने रिकार्ड बनाया। आप
ने कांग्रेस को बीस सीटों पर सीधे नुकसान पहुंँचाया। आप को 13 फीसदी और
कांग्रेस को 28 फीसदी वोट मिले। आप के चुनावी समर में न होने पर उसे 41
फीसदी वोट मिलते। सन् 2017 केे चुनाव में कांग्रेस इतना ही वोट पाकर 77 सीट
पाई थी। इस बार राहुल गांधी सिर्फ दो चुनावी सभा को संबोधित किया,जबकि
2017 के चुनाव में 30 रैलियांँ की थी। तब कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी।
मोदी पिछली दफा 34 रैली किये थे। तब 99 सीट बीेजेपी को मिली थी। इस बार 31
रैली और अहमदाबाद में सबसे लंबा 54 किलोमीटर का रोड शो किया। बीजेपी को 156
सीट मिली। वहीं आम आदमी पार्टी के सुप्रीमों केजरीवाल ने 19 रैली की।
बीजेपी ने एंटीइन्कम्बेंसी को पलटने का भी रिकार्ड बनाया। चुनाव से 14 माह
पहले मुख्यमंत्री सहित सूबे के 22 मंत्रियों को बदल दिया। टिकट वितरण में
182 में 103 नए चेहरो को टिकट दिया। पांँच मंत्री और 38 विधायको के टिकट
काट दिये। जाहिर सी बात है,कि बीजेपी इस फार्मूले को मध्यप्रदेश, राजस्थान
और छत्तीसगढ़ में अपनाएगी। खबर है,कि बीजेपी राजस्थान में अपने 71 विधायकों
में 40 विधायकों की टिकट काटेगी और करीब सौ नए उम्मीदवारों को टिकट देगी।
गुजरात
विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बीस सीटों पर मिले वोट से जाहिर
हैं,कि अगली बार गुजरात में कांग्रेस नहीं,बल्कि आप ही बीजेपी की मुख्य
प्रतिद्वंदी रहेगी। इस बार आप ने विपक्ष के वोट को रेवड़ी नीति की चाकू से
काट दिया। जिन वोटरों पर कांग्रेस का दावा करती है,उनमें आप ने सेंध मारी।
आदिवासी की 33 सीटों में आप को एक सीट,कांग्रेस को तीन और बीजेपी को 26 सीट
मिली।
आप ने जातीय
राजनीति के पंडाल में सेंध लगाकर कांग्रेस को बाहर कर दिया। महुआ सीट में
बीजेपी को 49 फीसदी,कांग्रेस को 29 और आप को 21 फीसदी वोट मिले। व्यारा सीट
पर बीजेपी को 41 कांग्रेस को 27 और आप को भी 27 फीसदी वोट मिले। जाहिर सी
बात है यदि आप चुनावी मैदान में न होती तो कांग्रेस जीत जाती। डांग सीट पर
बीजेपी 47 कांग्रेस को 33 फीसदी और आप को 16 फीसदी वोट मिले। कपराड़ा सीट पर
बीजेपी को 42 फीसदी वोट मिला। कांग्रेस को 27 और आप को 25 फीसदी वोट मिला।
देखा जाए तो गुजरात चुनाव में कम सीट के बावजूद आप ने रिकार्ड बनाए। मसलन,
चोरयासी, मंगरोल,भिलोडा,देवगढ़बोरिया,फते हपुर,झालोद में आप दूसरे
नम्बर पर हैं। कांग्रेस की 67 सीटों पर मोदी ने चुनाव प्रचार कर 54 सीटें
जीत ली। पाटीदार 28 विधान सभा सीटों को प्रभावित करते हैं। पाटीदार वोटर
बीजेपी पर ज्यादा भरोसा किया। इसलिए बीजेपी को 24,कांग्रेस और आप को दो-दो
सीटें मिली। वहीं सौराष्ट्र में आम आदमी पार्टी की इंट्री कल को बीजेपी के
लिए खतरा बन सकती है। वैसे बीजेपी में यहां 48 सीट में 39 सीट जीती है।
जमजोधपुर में कांग्रेस को 15 हजार वोट मिले जबकि, आप को 71 हजार वोट मिले।
गरियाधार में कांग्रेस को 15 हजार और आप को 60 हजार मत मिले। बोटाद में
कांग्रेस को 19 हजार और आप को 80 हजार वोट। ये वोट बताते हैं कि कांग्रेस
को अपनी जमीन बनाने में भारी मशक्कत करनी पड़ेगी।
कांग्रेस
ने गुजरात जीतने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। जो प्रत्याशी जीते वो अपने
कार्यकर्ता के दम पर जीते। यह माना जा रहा है राहुल गांधी का टारगेट लोकसभा
चुनाव है। इसीलिए प्रियंका गांधी भी चुनाव प्रचार का हिस्सा नहीं बनी। यह
कह सकते हैं,कि लोकसभा चुनाव से पहले एक और हार का अपयश राहुल नहीं लेना
चाहते थे। सवाल यह है कि क्या 2023 में मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ और
कर्नाटक के चुनाव में राहुल गांधी दूर रहेंगे? हिमाचल माॅडल के दम पर
कांग्रेस इन राज्यों में चुनाव लड़ेगी?
गुजरात
में कांग्रेस ने किसी भी स्थानीय नेता को फ्रंट पर नहीं लाया। बीजेपी
विकास और हिन्दूत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ी। अरविंद केजरीवाल रेवड़ी नीति पर
चुनाव लड़े। बिजली बिल माफ, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और मुफ्त
अच्छी शिक्षा आदि वायदों के दम पर कांग्रेस वोटर को दो फाड़ करने में कामयाब
रहे। लेकिन गुजरात माॅडल के आगे दिल्ली माॅडल फेल हो गया।
सवाल
यह है कि तीन राज्यों के चुनाव परिणाम से क्या 2024 के ट्रेंड का अनुमान
लगाया जा सकता है? वैसे संभावनाओं पर ही राजनीति चलती है। कांग्रेस अध्यक्ष
मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं, अब संपूर्ण विपक्ष को एक सियासी पंडाल के
नीचे आ जाना चाहिए। हिमाचल और दिल्ली के चुनाव परिणाम से क्या यह मान लिया
जाए कि मोदी का सियासी रेट गिरा है। चूंकि दीगर राज्यों में क्षत्रपों का
राज्य है। बीजेपी की उनसे बनती नहीं है। उद्धव ठाकरे,नीतिश कुमार, अकाली
दल, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव,मायावती, केजरीवाल, नवीन पटनायक,हेमंत सोरेन
और दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में केसीआर, आंन्ध्र के वाय. एस. जगमोहन
रेड्डी, तमिलनाडु के एम. के.स्टालिन आदि राज्यों के क्षत्रपों से बनती नहीं
है। कर्नाटक की बोम्बई सरकार भ्रष्टाचार के लिए बदनाम है। ऐसे में 2024 का
चुनाव बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर हो सकती है। सवाल यह है कि 2022 का चुनाव
जीतने वाली पार्टियों के सियासी माॅडल का ट्रेंड 2024 के चुनाव में भी
दिखेगा क्या ? ऐसा होने पर त्रिशंकू संसद की आशंका ज्यादा है।