Friday, July 26, 2019

अंडे के फंडे में घिरी सरकार

   
क्या भूपेश सरकार हिन्दुत्व की छवि के खिलाफ है या फिर ब्राम्हण विरोधी है?यदि ऐसा नही है तो फिर स्कूलों और आंगन बाड़ी केन्द्रों में बगैर राय शुमारी के अंडा परोसने का आदेश क्यों जारी किया? ब्राम्हण,जैन,अग्रवाल,महेश्वरी,और कबीर पंथी आदि समाज के लोग अंडा को छूना भी पाप समझते हैं। ऐसे में उनके बच्चों की थाली में अंडा परोसने के पीछे कौन सा राजनीतिक कारण है?

0 रमेश कुमार ’’रिपु’’
                 
जाहिर सी बात है कि भूपेश सरकार संडे हो या मंडे,खूब खाओ अंडे के इश्तिहार से प्रभावित होकर प्रदेश में 44 फीसदी कुपोषण को दूर करने के लिए स्कूली बच्चों और आंगन बाड़ी केन्द्रों में गर्भवती महिलाओं को अंडा वितरण का आदेश दिया।लेकिन ब्राम्हण,जैन,अग्रवाल,महेश्वरी,मारवाड़ी,कबीरपंथी आदि समाज के लोगों को अपने बच्चों की थाली में अंडा परोसा जाना, उनके गले नहीं उतरा और वो सरकार के निर्णय के खिलाफ सड़कों पर उतर आये। हर जिले में अंडा वितरण का विरोध सरकार के लिए मुसीबत बन गया। विपक्ष इस मुद्दे को लपक लिया। भूपेश सरकार पर ब्राम्हण विरोधी छवि का लेबल पहले से ही लगा हुआ है,ऊपर से स्कूलों में अंडा वितरण के आदेश ने सोने में सुहागा का काम कर दिया।
प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी शैलेष त्रिवेदी कहते हैं,’’कुपोषण की स्थिति में सुधार के लिए रमन सरकार ने जो काम किये वो पर्याप्त नहीं थे। अनुसूचित जनजाति के बच्चों में कुपोषण की यह दर 38 फीसदी से अधिक है। प्रदेश में 75 फीसदी से अधिक आबादी अंडे का सेवन करती है। प्रदेश में कुछ संस्था और जाति के लोग अंडा वितरण का विरोध कर रहे हैं जबकि देश के 15 से अधिक राज्यों में मध्यान्ह भोजन और आंगनबाड़ी केंद्रों में कई सालों से अंडे का वितरण किया जा रहा है। जाहिर सी बात है कि भूपेश सरकार की मंशा गलत नहीं है’’। वहीं ज्यादातर लोगों का कहना है कि तरीका गलता है।

  क्या भूपेश सरकार हिन्दुत्व की छवि के खिलाफ है या फिर ब्राम्हण विरोधी है? यदि ऐसा नहीं है तो फिर स्कूलों और आंगन बाड़ी केन्द्रों में बगैर राय शुमारी के अंडा परोसने का आदेश क्यों जारी किया? ब्राम्हण,जैन,अग्रवाल,महेश्वरी,मारवाड़ी और कबीरपंथी आदि समाज के लोग अंडा को छूना भी पाप समझते हैं। ऐसे में उनके बच्चों की थाली में अंडा परोसने के पीछे कौन सा राजनीतिक कारण है? इस सवाल पर शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह कहते हैं,’’अंडा मांसाहार है या शाकाहार, इसे लेकर भ्रम काफी पहले टूट चुका हैं। जो बच्चे अंडा खाना चाहेंगे, उन्हें अंडा दिया जाएगा और जो बच्चे अंडा नहीं चाहेंगे, उन्हें दूध,केला या उतनी ही कैलोरी का अन्य प्रोटीनयुक्त पदार्थ दिया जाएगा। स्कूलों में अंडा बंटेगा या नहीं, इसका फैसला शाला विकास समिति तय करेगी। जहां की समिति अंडा परोसने के पक्ष में होगी वहां स्कूलों में अंडा दिया जाएगा। जहां समिति नहीं चाहेगी, वहां बच्चों के घर अंडा पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी, लेकिन बच्चों को अंडा अवश्य दिया जाएगा’’।

अंडा वितरण से इन्द्र नाराज
सरकार को घेरने विपक्ष को मौका चाहिए। उसने बच्चों की थाली में अंडा परोसने की योजना को हिन्दुत्व से जोड़ दिया। हिन्दुत्व की छवि खराब करने की साजिश करार दे दिया। और भाजपा ने मानसून सत्र में स्कूलों में अंडा परोसने के फैसले के खिलाफ काम रोको प्रस्ताव प्रस्तुत किया। गौरतलब है कि काम रोको प्रस्ताव तब लाया जाता है, जब वास्तव में कोई बड़ी घटना घटित हो। अंडा वितरण भाजपा के लिए बड़ी घटना है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सदन में आरोप लगाया कि सरकार कुछ व्यापारियों को लाभ पहुंचाने के मकसद से बच्चों की थाली में अंडा परोसना चाहती है। सरकार की यह योजना बच्चों कोें मांसाहार बना देगी। कबीरपंथी,ब्राम्हण जैन, अग्रवाल, वैष्णव, मारवाड़ी, माहेश्वरी समाज के लोग ज्ञान के मंदिर में अंडा वितरण किए जाने के खिलाफ हैं। सावन महीने में सरकार के अंडा बांटने के फैसले नेे इंद्रदेव को नाराज कर दिया, इसलिए पानी नहीं गिर रहा है। प्रदेश के 18 जिलों में सूखे की स्थिति है’’। इस पर आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कहा, छत्तीसगढ़ में जब पन्द्रह साल तक भाजपा की सरकार थीं, तब तो मुर्गी पालन और मछली पालन पर खूब जोर दिया गया। तब बृजमोहन ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया।
अंडा वितरण पर सर्वे हो
वहीं अंडा परोसे जाने के फैसले के खिलाफ आंदोलन करने वाले कबीरपंथियों के गुरु प्रकाश मुनि का कहना है कि ज्ञान के मंदिर में अंडा नहीं परोसा जाना चाहिए। सरकार को स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडा वितरण करने से पहले एक सर्वे करा लेती। जो बच्चे अंडा खाना चाहते हैं, सरकार उनके परिजनों को अंडा दें ताकि, वे अपने बच्चों को घर पर ही अंडा खिला सकें। बहुत से धार्मिक संगठन अंडा वितरण योजना को धर्म और आस्था के खिलाफ भी मान रहे हैं। कबीर धाम समिति के जिला अध्यक्ष ईश्वरीय साहू ने कहा सरकार की यह नीति बहुत गलत है। पूर्व काल में सद्गुरु कबीर साहब नें गाँव गाँव घूमकर मांसाहार बंद करने एवं शाकाहार का प्रचार किया है। नशा मुक्ति के लिए भी उन्होंने प्रयास किये हैं। जिन्हें आज शासन भूल गया है।
घर पहुंचायेगी अंडा सरकार
छत्तीसगढ़ में अंडे पर उबलती सियासत के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने स्पष्टीकरण में कहा कि जिन स्कूलों में मिड डे मील में अंडा दिए जाने को लेकर सहमति नहीं बनेगी, वहां बच्चों को अंडा घर पहुंचाकर दिया जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव गौरव द्विवेदी ने राज्य के सभी कलेक्टरों को पत्र लिखकर कहा है कि शाला विकास समिति और पालकों की बैठक में ऐसे छात्र,छात्राओं को चिन्हांकित किया जाये जो मिड डे मील में अंडा नहीं लेना चाहते।
अंडा का विकल्प
जिन स्कूलों में अंडे का वितरण किया जाएगा। वहां के शाकाहारी बच्चों के लिए प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ सुगंधित सोया, सुगंधित दूध, प्रोटीन क्रंच, फोर्टिफाइड बिस्किट, फोर्टिफाइड सोयाबीन, सोया मूंगफल्ली चिकी, सोया पापड़, फोर्टिफाइड दाल जैसे विकल्प रखे जाएं। 15 जनवरी 2019 को राज्य शासन ने स्कूली बच्चों में प्रोटीन और कैलोरी की पूर्ति के लिए मिड डे मील में सप्ताह में दो दिन अंडा, दूध या समतुल्य न्यूट्रिशन दिए जाने का निर्णय लिया था।
सरकार आंख दिखा रही
जेसीसी (जनता छत्तीसगढ़ कांग्रेस) विधायक धर्मजीत सिंह ने विधानसभा में अंडा वितरण का मामला शून्यकाल में उठाते हुए कहा, स्कूली बच्चों को अंडा दिया जाना जरूरी नहीं है। वर्ग संघर्ष की स्थिति बनने न दिया जाए। जिद्द से राजनीति नहीं होती। कबीर और गुरु घासीदास की धरती को बचाना चाहिए। सरकार आज अंडा खाने कह रही है, कल को बीफ खाने का निर्देश जारी कर देगी। चैकाने वाली बात है कि चुनाव में कांग्रेसी जाते है तो कबीरपंथी समाज के सामने घुटने टेकते हैं और अब जब अंडा देने का समाज विरोध कर रहा है तो आंखें दिखा रहे हैं। पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा सरकार ने अंडे का विकल्प रखा है। जिन्हें अंडा नहीं खाना है, उनके लिए दूध की व्यवस्था की गई है। बीजेपी विधायक शिवरतन शर्मा ने कहा राज्य में 35 लाख कबीरपंथी निवासरत हैं। इस समाज मे अंडा.मांसाहार प्रतिबंधित है। समाज की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उनकी मांगों को सुना जाना चाहिए।
कई संगठन चाहते हैं अंडा बंटे
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 38 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं। जबकि अनुसूचित जनजाति के बच्चों में कुपोषण की दर सर्वाधिक 44 फीसदी है। आदिवासी बहुल इलाकों में बच्चों को अंडा दिए जाने की मांग की जाती रही है। राज्य सरकार भी कुपोषण खत्म करने के लिहाज से अंडा वितरित किए जाने के फैसले को वापस नहीं लेना चाहती। वहीं आधा सैकड़ा संगठनों ने मिड डे मील में अंडा दिए जाने के सरकार के फैसले पर अपना समर्थन किया है।
सरकार चिंतन करेःरमन
मिड डे मिल में अंडा दिये जाने का भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ रमन सिंह ने विरोध करते हुए कहा, सरकार को इस फैसले पर चिंतन करने की जरूरत है। क्यांे कि ये धार्मिक आस्था और वैचारिक बात है। ये ऐसे लोग हैं जो कबीर पंथ को मानते है जो किसी जाति या धर्म से नही हैं, ये उचित नही है। 
क्या है अंडे में
अंडों को खिलाने के ऊपर चल रहे विवाद के चलते पीपल फॉर एनीमल मेनका गांधी की संस्था रायपुर इकाई की कस्तूरी बलाल ने बताया की बहुत सारे लोग यह नहीं जानते कि भारतीय पोल्ट्री में पाई जाने वाली मुर्गियां व अंडे बहुत ही निम्न गुणवत्ता के होते हैं। मुर्गियों को जिस जगह रखा जाता है वह बहुत ही गंदी रहती हैं। वहां पर ना पर्याप्त हवा होती है ना सूर्य की रोशनी। मुर्गियों को लगातार लाइट के उजाले में रखा जाता है। जिसके कि ज्यादा अंडे दे सकें। मुर्गियों को खाने में मरी मुर्गियों का मांस,रसायन में मिलाकर दिया जाता है, साथ में एंटीबायोटिक दिए जाते हैं। यह मुर्गियां अपने ही मल की गंदगी पर बैठती है। जिससे उन्हें घाव हो जाते हैं। अमूमन विभिन्न प्रकार के कीड़े लग जाते हैं। इन मुर्गियों में ब्रोंकाइटिस, इनफ्लुएंजा न्यू कैटल डिजीजए ैंसउवदमससं एक प्रकार का बैक्टीरिया जिससे टाइफाइड तथा पानी जनित रोग होते हैं, पाया जाता है। कम पोशक आहार देने से मुर्गियों के अंडों के शैल अंडे का बाहरी हिस्सा कमजोर हो जाते हैं। जिससे बाहर पाए जाने वाले बैक्टीरिया अंडे के अंदर चले जाते हैं। मुर्गियों को दी जाने वाली एंटीबायोटिक की कुछ मात्रा भी अंडो के अंदर चली जाती है। इनका असर अंडे के गर्म करने पर भी खत्म नहीं होता। लगातार ऐसे अंडों को खाने से मानव में उन एंटीबायोटिक्स के लिए रेजिस्टेंस डिवेलप हो जाता है, जो अंडों के खाने के कारण मानव शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं। विभिन्न रिसर्च में ऐसी मुर्गियों के अंडों में विभिन्न प्रकार के पेस्टिसाइड जैसे डीडीटीएचसीएच भारी मेटल जैसे लेड, केडीलियम पाए गए हैं। मानव शरीर पर इनका असर दूरगामी होता है। धीरे.धीरे यह मानव के किसी भी अंग को जैसे किडनी इत्यादि को नुकसान पहुंचाती हैं। बच्चों का रेजिस्टेंस कम होता है। अतः उन्हें नुकसान पहुंचने की ज्यादा संभावना रहती है।