Tuesday, June 25, 2019

मुझे खजुराहो बना दो...





तुम वाकय में अद्भुत हो। तुम्हारे आगे खजुराहो की क्या बिसात। पत्थरों से ज्यादा हरारत तो तुममे है। तुम चाहो तो अपनी हरारत से, कई खजुराहो बना दो। तुम्हारी अगड़ाई और कामुक आदाओं को इन निगाहों में कैद कर लिया है...। अब खजुराहो जाकर क्या करना। असली खजुराहो तो मेरे साथ है। बेजान पत्थरों में क्या रखा है!
तुम्हारी निगाहों ने जाना कैसे कि खजुराहो मुझमें है। मै तो एक धड़कती लाश हूं। धड़कना बंद कर दिया तो फिर मेरी सांसों की हरारत महसूस न होगी। इतना ही नहीं, तुम मोम सा जो पिघल जाते हो,ऐसा न होगा।

गजब की बातें कर लेती हो। तुम्हें तो पता भी नहीं है। तुम तो बेजान शीला थी। मेरे स्पर्श से जी उठी हो। मेरी होठों की नरमी से तुम्हारी देह हरिया गई। मेरे प्रेम में तुम इतिराने लगी हो। मेरे इश्क ने तुम्हें नदी बना दिया है। बहने लगी हो, इस घाट से उस घाट। मेरी मुहब्बत ने तुम्हें जंगल की हवा सा पागल कर दिया है। बौरा गई हो।
पहले मै धरती पर आई। उसके बाद खजुराहो बना। मेरी देह की तपिश को पत्थरों ने महसूस किया। उसमें आग तो मैने मुहब्बत के नग्मे गाकर भरे। प्यार के रंगी बिरंगी फूल मेरे लबों को चूमकर उजालों की परियों ने गढ़ा। मेरे कदम जहां, जहां पड़े, ये जमीं जन्नत जैसी हंसीन हो गई। तुम्हें पता भी है,ये दुनिया आज जिंदा है तो सिर्फ मेरी मुहब्बत की वजह से। वर्ना खजुराहो भी कब का ढह गया होता...।

मुझमें इतनी हरारत है कि किसी भी पत्थर को तराश कर ताजमहल बना दूं। किसी शिला पर अपनी ऊंगलियों से उकेर कर. तुम्हारी तरह अप्सरा बना दूं। इन आंखों में इतनी मुहब्बत है कि बेजान शिला को एक नजर देखकर धड़कना सिखा दूं। तुम थी ही क्या। तुम्हारी जिन्दगी में मै बहार बन कर आया। और तुम खिल गई, गुलाब की तरह। अब मुझे सांसो की मृदंग और देह की आग का ककहरा पढ़ा रही हो प्रिये...।

यदि पत्थर की मूर्तियां जी उठें तुम्हारे स्पर्श से। तुम्हारी सांसों की गरमी से मचल उठें। तुम्हारी प्रेम भरी नजरों से मचल उठें..। ऐसा तुम्हें मै वरदान दे दूं तो...।

मै जानता था। ऐसा जरूर कहोगी। लेकिन सोच लो। यदि खजुराहों की सभी मूर्तियां मेरे स्पर्श से जीं उठीं। मेरे आलिंगन से उनकी इच्छायें लहरों की तरह मचल उठीं। मेरे चुम्बन से उनके गाल गुलाबी हो गये। मेरी सांसों की खुशबू से दीवानी हो गई और मै वापस उनके पास से नहीं लौटा तो...। पत्थर जब तक तराशा न जाये तो कुछ भी नहीं है। तराश दो तो ताजमहल बन जाता है। बुत बन जाता है। देवता बन जाता है। औरत की देह भी पत्थर ही है। जब तक प्यार की हथौड़ी न पड़े तो शापित अहिल्या सी ही तो है। मै तुम्हारा इन्द्र हूं। चन्द्रमा और राम भी प्रिये।

तुम्हारी आंखों में जो मुहब्बत की चमक है। वो तुम्हारी नहीं है। मै तुम्हें अपने तन की खुशबू से रूबरू न कराती तो तुम्हारा मन बावरा न होता। मेरी निगाहें तुम्हें दीवाना न बनाती तो मुहब्बत क्या चीज है ,न तो तुम जानते और न ही दुनिया। वो भंवरा भी न जानता मुहब्बत क्या चीज है, जो समझता है कि फूल उसके दम पर खिलता है। तुम खजुराहो की किसी शिला से पूछना कि समुदर के सीने में किसका ज्वार है। मछलियों को उसकी लहरों से प्यार क्यों है। समुंदर रोता कब है..!

देह की उम्र होती है। प्यार की भी उम्र होती है। हर उम्र में प्यार होता है। कौन कहता है मुहब्बत 16 वें सावन से शुरू होती है। कभी इश्क करो तो जानो। औरत की काया में कितना सम्मोहन होता है। सिर्फ खुजराहो देखने से मुहब्बत नहीं होती। मुहब्बत के लिए खजुराहो बनना पड़ता है। मै चाहती हूं खजुराहो बनना। ताकि आदमी बार बार चाहे मुझसे मिलना। मेरे खजुराहो का दीदार करने हमेशा बेताब रहे...।

Wednesday, June 19, 2019

पत्रकारिता का पतन...


यकीन नहीं होता पर देख कर यकीन करना ही पड़ेगा। कुछ लोग पत्रकारिता का पतन करने का ठेका ले रखा है। बात करते है संवेदना की और खुद कोई पत्रकार संवेदनहीन हो जाये तो बड़ी शर्म आती है। आज तक की रिपोर्टर अंजना ओम कश्यप को इतनी भी तमीज नहीं है कि कोई डाॅक्टर मौत के कगार पर खड़े बच्चों के इलाज में जुटा है तो, उससे सवाल दर सवाल करना चाहिए कि नहीं? अंजना को इतनी तो समझ होनी चाहिए कि एक डाॅक्टर सिर्फ इलाज करता है,व्यवस्था नहीं करता है। अस्पताल में मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था अस्पताल प्रशासन करता है। अस्पताल का अधीक्षक की जवाबदेही होती है। प्रदेश के मुख्यमंत्री की जवाबदेही होती है। सरकार की होती है। लेकिन बिहार में चमकी बीमारी से बेहाल बच्चों के इलाज में जुटे एक चिकित्सक से कल वो लाइव सवाल कर रहीं थी,अभी जो बच्चा आया है,उसे कहां भर्ती करेंगे। बिस्तर तो है नहीं। कहां रखेंगे। आईसीयू में क्यों सीधे भर्ती नहीं कर रहे हैं। बेड यहां है नहीं,फिर बच्चे को किस बेड में रखोगे।
वो डाॅक्टर बार बार कह रहा है अभी जो बच्चा आया है, उसे नर्स देख रही है। और भी बच्चें हैं, आप देख रही हैं उन्हें भी इलाज की जरूरत है। एक एक करके देख रहे हैं। लेकिन अंजना ओम कश्यप न जाने किस हैसियत से उसे लताड़ रही थीं। मानो उस डाॅक्टर से बड़ी डाॅक्टर हैं। उन्हें सब कुछ पता है कि डाॅक्टर के इलाज में क्या खामियां है।
उनके सवाल देखिये, अभी अभी सी.एम यहां से गये हैं,यह आपकी व्यवस्था है। आप को पता होना चाहिए कि बच्चे को कौन सा इलाज तत्काल देना चाहिए। बताइये अभी तक कितने बच्चे मर चुके है। चिकित्सक ने कहा,आप विभाग में नीचे जाकर इसकी जानकारी ले सकती हैं। यह आईसीयू है। लेकिन अंजना उस डॅाक्टर को बीमार बच्चे की इलाज में रूकावट लगतार डाल रही थीं,उन्हें अपनी टीआरपी की पड़ी थी। अपनी पत्रकारिता झाड़ रही थीं। सच्चाई तो यह है कि आज तक का लेबल जब तक है, तभी तक उनकी पत्रकारिता है। उनकी पत्रकारिता कैसी है सारा देश कल देखा। सबने थू थू किया। ऐसे लोगों को यह समझ नहीं है कि कब, कहां,क्या सवाल करना चाहिए। पत्रकारिता ऐसे लोगों की हरकत से ही कलंकित हुई है।

आधी दुनिया की नई कहानियां


छत्तीसगढ़ की महिलाएं न केवल साहस की नई कहानियां गढ़ रही हैं बल्कि अपनी उपलब्धियों से   अपनी पहचान बनाते हुए एक नए भारत का निर्माण कर रही हैं। बदल रहे देश के साथ कामयाबी की पताका भी फहरा रही हैं।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                             छत्तीसगढ़ में माओवादियों के सबसे खतरनाक इलाका दरभा में सीआरपीएफ की 80 वीं






बटालियन में पहली बार सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडर की रूप में पदस्थ उषा किरन साहस की ऐसी कहानियां गढ़ रही हैं जो लाल गलियारे में अद्भुत और बेमिसाल है।  इसलिए कि माओवादियों के साथ महिला नक्सलियों को सबने देखा है। लेकिन सी.आर.पी.एफ में पहली बार असिस्टेंट कमांडर के पद पर कोई महिला आई है। उषा किरन कहती हैं सीआरपीएफ मेरे डीएनए में है। मेरे दादाजी सी.आर.पी.एफ में अपनी सेवाएं दे चुके हैं पिताजी विजय सिंह इंस्पेक्टर है। भाई भी फोर्स में हैं। मूल रुप से गुड़गांव की उषा अपने परिवार से सी.आर.पी.एफ ज्वाइन करने वाली तीसरी पीढ़ी हैं। इन्हें सी.ए.पी.एफ 2013 की परीक्षा में 295वीं रैंक मिली थी। वो ट्रिपल जंप में (गोल्ड मेडल ) राष्ट्रीय विजेता भी रह चुकी हैं। केमिस्ट्री बीएससी (अनर्स) 76 प्रतिशत के साथ उत्र्तीण की हैं। उषा ए.के 47 लिए लाल गलियारे के उस रास्ते में जवानों का बे खौफ नेतृत्व कर रही हैं जहां माओवादियों की तूती बोलती है। ऊषा किरन को 332 महिला बटालियन में नियुक्ति के लिए तीन विकल्प दिए गए थे। जम्मू एंड कश्मीर, नॉर्थ-ईस्ट और नक्सल बेल्ट। उषा अपने पिता विजय सिंह को प्रेरणस्त्रोत मानती हैं। वे 2008-09 के दौरान सुकमा में सी.आर.पी.एफ को अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पुलिस और लोगों के बीच दूरियां इसलिए है कि यहां समुचित विकास अभी नहीं हुआ है। वे बताती हैं जब माओवादी क्षेत्र भडरीमऊ गई तो महिलाओं ने मुझे घेर लिया। उनके चेहरे पर खुशी देकर मुझे ताज्जुब हुआ। सबने कहा, महिला अधिकारी की देखरेख में उनके घरों की जांच होती है तो उन्हें शिकायत नहीं रहेगी।

12 राज्यों में नाम किया रोशन
यूं तो तैराकी छोरों का खेल है, पर म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के‘‘। वाकय में युवराज को अपनी चारों बेटियां पर गर्व करना उनका हक बनता है। इनकी कहानी दंगल के महावीर सिंह फोगाट से अलग नहीं है। युवराज की चार बेटियां हैं पूजा,रेखा,नेहा और ऋतु। युवराज की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि अपनी बेटियों के सपनों को पूरा कर सकें। उनकी चारों बेटियां अपने मामा की तरह तैराकी में अवाॅर्ड और मैडल जीतने की चाह रखती थीं। उन्हें पता था कि उनके पिता स्वीमिंग पूल और डाइट का खर्च नहीं उठा सकते। जिससे कुछ वर्षो तक बेटियांें को तैराकी छोड़नी पड़ी। इस बीच बड़ी बेटी का तैराकी में प्रदेश स्तर पर सलेक्शन हो गया। जहां उसने आधा दर्जन मेडल जीते। पिता युवराज की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्हांेने बेटियों के सपनों को पूरा करने सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया। युवराज कहते हैं,यह मेरे लिए गर्व की बात है कि आज मेरी चारों बेटियां मेरा,राज्य और शहर का नाम रौशन कर रही है। युवराज की चारों बेटियां गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, गोवा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश पं बंगाल, ओडिशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश और पूर्वी राज्यों में आयोजित तैराकी गेम में बेस्ट प्रदर्शन कर दो सौ से ज्यादा मेडल जीतकर राज्य का नाम रोशन कर चुकी हैं। युवराज कहते हैं, तैराकी की शुरुआत में चारों बहनों को महराजबंद व बूढ़ातालाब में प्रैक्टिस कराया। युवराज उन दिनों को आज भी नहीं भूले हैं जब बेटियों की डाइट नॉन वेज, अंडा, सलाद और दूध आदि पूरा करने लोगों से पैसे उधार लिए। इससे पहले तक बेटियां डाइट में चना,मूंग भिगोकर खाती थीं। सरकार की ओर ऐसे खिलाड़ियों के लिए आर्थिक व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वे अपने लिए नया मुकाम बना सकें।
वर्कफोर्स मैग्जीन में बनाई जगह             
विश्व की 25 युवा प्रतिभाओं में कोरबा की अभिलाषा मालवीय ने जगह बनाकर एक नया रिकार्ड हिन्दुस्तान के नाम किया। क्यों कि पिछले छह साल में कोई भी भारतीय इस मुकाम तक नहंीं पहुंचा। यूएसए की वर्कफोर्स संस्था हर साल एक स्पर्धा आयोजित कराता है, जिसमें विश्व के 25 ऐसे युवाओं का चयन होता है जिनकी उम्र 40 से अधिक नहीं होती। युवा अपनी योग्यता के दम पर किसी फर्म या कंपनी की शाख को देश ही नहीं विदेश तक पहुंचाते हैं। ऐसे युवाओं में कोरबा के वाय. के. मालवीय की 31 वर्षीय बेटी अभिलाषा मालवीय ने आॅन लाइन भाग लिया। लाखों की संख्या में विश्व के युवाओं ने हिस्सा लिया। सबने अपनी अपनी उपलब्धियां प्रस्तुत की। वर्कफोर्स गेम चेजर्स अवार्ड 2016 के लिए अभिलाषा मालवीय का चयन हुआ। बेगलुरू के खालिद रजा और मुंबई की सबेरा पटनी को भी यह सम्मान मिला। यूएसए की वर्कफोर्स मैग्जीन ने इन तीनों प्रतिभाओं को जगह देकर सम्मानित भी किया। अभिलाषा वर्तमान में रायगढ़ स्थित जिंदल स्टील एंड पावर कंपनी में एच.आर. हैं। 
मै हूं मिसेज इंडिया              
यह आम धारणा है कि शादी के बाद महिलाओं की आजादी छिन जाती है। लेकिन प्राची अग्रवाल और उनका ससुराल ऐसा नहीं मानता। तभी तो प्राची को अपने सपने को साकार करने में उनका ससुराल और पति सहयोग करते हैं। उसी का नतीजा है कि चेन्नई में हुए मिसेज इंडिया 2017 के फाइनल राउंड में इंडिया से आए 46 कंटेस्टेंट को पीछे करते हुए रैंप पर जलवे बिखेरकर रायपुर की प्राची अग्रवाल ने ये खिताब अपने नाम कर लिया। ये कॉम्पिटिशन सितंबर 2016 में स्टेट लेवल पर हुआ था। जिसमें प्राची चैथे स्थान पर थीं। फिर इन्हें सेमी फाइनल राउंड में जाने का मौका मिला। योग व मार्शल आर्ट से खुद को पहले से ज्यादा फिट कर रैंप पर इस ताज की हकदार बनीं। प्राची इस कॉन्टेस्ट के फाइनल राउंड में वे ट्रेडिशनल आउटफिट के साथ मेक इन इंडिया थीम पर रैंप कैटवॉक की। मॉर्शल आर्ट में गल्र्स को ट्रेंड कर सेल्फ डिफेंस के लिए तैयार करने वाली प्राची को वहां सोशल वर्क के लिए भी अच्छे नम्बर मिले थे। प्राची कहती हैं,मुझे खुशी है कि ससुराल में मुझे आजादी है अपनी जिन्दगी को जैसा चाहूं गढ़ूं। तभी तो आज मै मिसेज इंडिया हॅू‘‘। मॉर्शल आर्ट और योग से खुद को फिट रखने वाली प्राची एक बच्चे की मां हैं। प्राची पति के बिजनेस में भी हाथ बंटाती हैं।

बैंक से छोटे पर्दे पर आ गई
मॉडलिंग का जुनून धृति पटेल पर इस कदर छाया कि वह स्टेट बैंक की नौकरी छोड़ कर इसे ही अपना कॅरियर बनाने की दिशा में चल पड़ी। आज छोटे पर्दे पर लाइफ ओके में प्रसारित होने वाला गुलाम सीरियल में मुख्य किरदार निभा रही हैं। माॅडलिंग में कई खिताब अपने नाम करने वाली धृति भारत-अफगानिस्तान पर आधारित फिल्म काबुली पठान में नायिका का किरदार निभा चुकी हैं। बचपन से ही शोहरत की ख्वाहिश रही इसलिए माॅडलिंग को चुना। इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रीकल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए वर्ष 2014 में मॉडलिंग की शुरूआत की। मिस ब्यूटीफुल छत्तीसगढ़, मिस ब्यूटीफुल रायपुर, मॉडल आफ द इयर आदि प्रमुख खिताब धृति को मिला। मॉडल ऑफ द इयर कॉम्पीटिशन में वे फस्र्ट रनरअप रहीं। मिस इंडिया की तैयारी भी कर रही हैं। वर्ष 2015 में नागपुर में आयोजित फेमिना मिस इंडिया कान्टेस्ट के लिए उनका चयन हुआ। बैंक की नौकरी छोड़कर मुंबई आ गई। मुंबई में उन्होंने हजारों प्रिंट शूट्स किए जिसके बाद गुजराती फिल्म का ऑफर मिला। इस फिल्म में बेहतर अभिनय के कारण उन्हें लाइफ ओके चैनल में प्रसारित गुलाम सीरियल में काम करने का ऑफर मिला।

माउंटेन गर्ल
नक्सल प्रभावित बस्तर की नैना धाकड़ अब बस्तर पुलिस की माउंटेन गर्ल हैं। इन्होंने बर्फ की चादर से ढकी 6 हजार 512 मीटर ऊंचे पहाड़ भागरीरथी 2 पर बस्तर पुलिस का झंडा फहरा कर न केवल एक नया इतिहास गढ़ी बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य का नाम भी रोशन किया। बस्तर पुलिस का झंडा एस.पी आरिफ शेख ने नैना को दिया था। नैना धाकड़ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बस्तर विश्वविघालय की टीम के साथ 2010 में जाने का मौका मिला था। इसके बाद नैना ने कुछ अलग करने का ठान लिया और 2015 में उत्तराखंड में माउंट क्लबिंग की ट्रेनिंग ली। नैना ने महज 16 दिनों में अपना पूरा सफर तय किया।

इंदू सरकार की रश्मि
मधुर भंडारकर की फिल्म इंदू सरकार में संजय गांधी से इंस्पायर्ड किरदार की गर्लफ्रेंड का रोल निभाने वाली रायपुर की रश्मि झा कहती हैं, इस फिल्म में उनका चयन इतनी आसानी से नहीं हुआ। इस रोल के लिए उन्होंने ऑडिशन दिया था। करीब 25 मॉडल और मौजूदा एक्ट्रेसेस इस ऑडिशन में शामिल हुईं थीं। दृअलग-अलग राउंड्स में टेस्ट लिए गए। तकरीबन 3 से 4 महीने के बाद ये रोल दिया गया। इतना ही नहीं रश्मि का लुक कैसा हो ये खुद मधुर भंडारकर ने तय किया। पांच बार हेयर स्टाइल 8 बार साड़ियों का स्टाइल वगैरह ट्राय करने के बाद फायनल लुक तय हुआ। जब ये रोल ऑफर हुआ तब इन्हें खुद भी नहीं पता था कि इस पर इतनी कंट्रोवर्सी होगी। रश्मि ने इस फिल्म को लेकर फैमिली से भी छुपाया। जब इन्हें इस रोल के लिए सलेक्ट किया गया तब इन्होंने इसके बारे में किसी को भी नहीं बताया। पूरी फिल्म शूट हो गई। जब ये तय हो गया कि फिल्म अब रिलीज होने वाली है तब इन्होंने अपनी मां और बहन से कहा,क्या आप लोगों को मधुर भंडारकर की फिल्में अच्छी लगती हैं। इनकी मां ने जवाब दिया हां बिल्कुल। रश्मि ने कहा, मैं इनकी अपकमिंग फिल्म इंदू सरकार में एक रोल में हूं। ये सुन इनकी बहन तो उछल पड़ी। बैंगलोर से ग्रैजुएशन खत्म करने के बाद मॉडलिंग के लिए पैरेंट्स राजी हो गए थे। कुछ रिश्तेदारों के बीच ये बात जरूर थी कि बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड के कैसे मुंबई में कुछ होगा लेकिन अब सब रश्मि को एप्रीशिएट कर रहे हैं।

बेटियों ने दिखाया दम
जिस इलाके को नक्सली खुद अपनी जागीर मानते थे,वहां बेटियों ने बंदूक की नोंक पर सड़के और पुलिया बनवाकर माओवादियों को झटका दे रही हैं। 2006 में बीजापुर जिले के भैरममगढ़ गांव के तहत कर्रेमरका से टिण्डोरी जाने वाले सड़क मार्ग को और पुलिया को माओवादियों ने तहस नहस कर दिया था। कोई भी ठेकेदार सड़कें और पुलिया को बनाने को तैयार नहीं था। बहादुर बेटियां जिन्हें महिला कमांडो के नाम से पुकारा जाता है, इन्होंने सड़कें और पुलिया अपने दम पर बनावाईं। बीजापुर कलेक्टर अय्याज तम्बोली एवं पुलिस अधीक्षक के एल धु्रव को स्थानीय नागरिकों ने बताया कि सड़कें और पुलिया नहीं है। चूंकि इस क्षेत्र में नक्सलियां का खतरा हर पल रहता है इसलिए सवाल यह था कि कौन बनाएगा। ऐसे में बीजापुर की महिला कमांडो को सुरक्षा का जिम्मा दिया गया। इन बेटियों ने बहादुरी का परिचय दिया। तेज धूप और बारिश के बीच  कर्रेमरका से टिण्डौरी तक सड़क मार्ग अपनी देख रेख में बनवाया। पुलिस महानिरीक्षक बस्तर रेंज विवेकानंद सिंह उप पुलिस महानिरीक्षक दक्षिण बस्तर रेंज सुंदरराज पी.ए पुलिस अधीक्षक बीजापुर के.एल धु्रव एवं जिला पंचायत सीईओ अभिषेक सिंह ने बेटियों के साहस को सलाम करते हुए कहा,आज नक्सलवाद दम तोड़ रहा है तो इन बेटियों की बहादुरी का ही कमाल है।

गरीब बच्चों की गुरू
कोई बच्चा गरीबी की वजह से अपनी पढ़ाई बंद न कर दे इसलिए पिछले 32 सालों से मां शंखिनी महिला उत्थान केंद्र की महिला टोली नक्सल जिला गीदम में ऐसे बच्चों को ढूंढ कर उनकी शिक्षित करने का दायित्व निभा रही है। संस्था की अध्यक्ष बुधरी ताती इस सामाजिक कार्य को करने अपना घर नहीं बसाया। उन्होंने तय कर लिया है कि आर्थिक अभाव के चलते जो बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं उन्हें पढ़ायेंगे। उनके पढ़ाए डेढ़ सौ बच्चे सरकारी नौकरी पर हैं। साथ ही ऐसे बच्चे संस्था को सेवा भी दे रहे हैं। संस्था को चलाने के लिए सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहंी मिलती,फिर भी वे गरीब बच्चों को भविष्य संवारने में जुटी हुई हैं।





अबला बन गई बला

             बस्तर की शर्मिली आदिवासी महिलाएं लज्जा छोड़कर बंदूक उठा ली हैं। पुलिस के रोजनामचे में इनामी हार्डकोर नक्सली बन गई हैं। कोई भी उन्हें अब अबला नहीं बल्कि, बला कहता है। खूंरेजी महिलाएं कही जाती हैं।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                         बस्तर में नक्सलियों के एक बड़े नेटवर्क का संचालन अब महिलाएं ही करती हैं। कभी ये आदिवासी महिलाएं बेहद शर्मिली हुआ करती थीें लेकिन अब इनके चेहरे पर लज्जा नहीं दिखती। बर्बरता और कू्ररता की एक मिसाल बन गई हैं। नक्सली महिलाओं के नाम से जानी जाती हैं। नक्सली नेता अपने संगठन में खूंरेजी महिलाओं को आरक्षण देते हुए उन्हें कैडर के हिसाब से पद देते हैं। पद,प्रतिष्ठा और अच्छे वेतन के लिए आदिवासी लड़कियां चूल्हा चैका और पढ़ाई छोड़कर माओवादी बन रही हैं। बस्तर के सातों नक्सल प्रभावित जिलों में ऐसी कई महिला नक्सली खूंखार लीडर हैं जो बेहतर तरीके से नक्सली मूवमेंट को अंजाम दे रही हैं। जंगल में रहते हुए इनका आचारण भी जंगली हो गया है। दया के भाव इनके चेहरे में नहीं झलकता। ममता की उम्मीद भी बेमानी है। पुलिस वालों की सख्त दुश्मन हैं। इनकी बर्बरता और हिंसक वारदात की वजह से पुलिस ने कई महिला नक्सलियों पर इनाम घोषित किया है। जिसमें कुमारी वनोजा पर 8 लाख, कुमारी सोढ़ी लिंगे पर 5 लाख एवं माड़वी मंगली की गिरफ्तारी पर 3 लाख रूपए का इनाम है।
नक्सली महिलाओं की हिंसक वारदात की वजह से अब उन्हें कोई भी अबला नहीं बल्कि कहता है। नक्सल प्रभावित जिला सुकमा के बुरकापाल में 24 अप्रैल को माओवादी और सुरक्षा बल के जवानों के बीच हुई मुठभेड़ में तीन सैकड़ा से अधिक माओवादी थे। जिसमें से आधे से अधिक वर्दी में महिला नक्सलीं थी। जो सुरक्षा बल के जवानों पर गोलियां चला रही थीं। चैकाने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में अब तक जितनी भी बड़ी वारदातें हुई हैं उसमें महिला नक्सलियों की अहम भूमिका रही है। दरभा के झीरम घाटी पर हुए कांग्रेसियों की परिवर्तन यात्रा हमले को भी नक्सली महिला लीडरों ने अंजाम दिया था। बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा को झीरम घाटी में बेरहमी से मारा गया था। उन्हें मारने वालों में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल थीं। महिला नक्सली कर्मा को पीटते हुए सड़क से लगभग आधा किलोमीटर अन्दर ले गई थीं और इस दौरान उनके चेहरे पर चाकुओं से वार भी करती रहीं। कर्मा की हत्या के बाद उनके शव पर डांस करने वाली भी महिला नक्सली ही थीं। ये क्रोध का चरम था।पिछले कई घटनाओं में महिला नक्सलियों के नाम सामने आने के बाद पुलिस ने भी अति संवेदनशील क्षेत्रों में संदिग्ध महिलाओं पर नजर रखना प्रारम्भ कर दिया है। बस्तर के पूर्व आई जी एस.आर.पी. कल्लूरी के समय सबसे अधिक महिला नक्सलियों ने सरेंडर किए। सरेंडर की  कुछ महिला नक्सलियों की शादी भी प्रशासन ने कराया। ताकि महिलाओं में समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की इच्छा जागे। यह अलग बात है कि उनके हटते ही लालगलियारे में महिला नक्सलियों की हलचल एक बार फिर तेज हो गई है।
महिलाएं आसानी से करती हैं रेकी
बस्तर संभाग के सातों जिले अतिसंवेदनशील हैं। सभी जिले में बंदूक चलाने में माहिर बड़ी संख्या में महिला नक्सलियों की भरती की गयी है। मारकाट में माहिर महिला नक्सलियों को बड़े ऑपरेशन की जिम्मेदारी भी दी जाती है। अब तक इनामी सैकड़ों नक्सली महिलाएं पुलिस के हत्थे भी चढ़ी हैं। जिन्होंने खुलासा किए हैं कि बड़े नक्सली लीडर ज्यादातर महिला नक्सलियों को ही अॅापरेशन की कमान सौंपते हैं। इसलिए कि महिलाएं बड़ी आसानी से फोर्स के कैम्पों तक पहुंच कर रैकी कर सकती हैं और बेखौफ होकर बाजार व शहरों में रहकर नेटवर्क तैयार कर सकती हैं। 
दलम की कमांडर हैं महिलाएं
बस्तर की जेलों में वर्तमान में लगभग 50 महिला नक्सली कैद हैं। जिन्हें सातों जिलों से पुलिस ने पकड़ा है। इनमें चार हार्डकोर नक्सली निर्मल्लका, सोनी सोढ़ी, पदमा एवं चंद्रिका हंै जो नक्सलियों के बड़े मूवमेेंट को आपरेट करती थीं। 2006 से महिला नक्सलियों को दलम में शामिल किया जा रहा है। बस्तर संभाग के दरभा, भेज्जी, फरसेगढ़, कुटरू, छोटेडोंगर, झारा घाटी, आवापल्ली, आमाबेड़ा, ओरछा सहित आधा दर्जन इलाकों में महिलाओं को एरिया कमांडर के पद पर तैनात कर नक्सली मूवमेंट को बढ़ाने और हिंसा फैलाने का काम सौंपा गया है। पुलिस भी मानती है कि इन दस सालों में बड़ी संख्या में महिलाएं नक्सली दलम मेें शामिल होकर संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई हैं। पुलिस की संदिग्ध महिलाओं पर पैनी निगाह है।
गजब की बसंती
कांकेर जिले के लोहारी गांव की रहने वाली नक्सली कमांडर संध्या उर्फ बसंती उर्फ जुरी गावड़े को पुलिस आज तक नहीं भूली है और न ही माओवादी नेता। सन् 2010 में ताड़मेटला में हुए नक्सल हमले में 76 जवान शहीद हुए थे। इस वारदात को अंजाम देने में बसंती का हाथ था। बसंती 2001 में नक्सलियों के बाल संगठन में शामिल हुई थी। इसके बाद संगठन में अलग-अलग जगहों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाने के बाद अपने गांव में जन मिलिशिया कमांडर के तौर पर काम कर रही थी। नक्सल नेताओं के शोषण से तंग आ कर बसंती ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसका प्रमुख काम पुलिस पार्टी पर हमला कर हथियार लूटना, सीनियर नक्सली नेताओं की सुरक्षा करना,संगठन के विस्तार में सहयोग करना और नक्सली संगठन के खिलाफ काम करने वालों को सजा देना था। उसने जो गंभीर वारदात को अंजाम दिया उसमें से दुर्गूकोन्दल, आमाबेड़ा, कोयलीबेड़ा और पखांजूर थाना क्षेत्र में कई जगह विस्फोट, आगजनी और एम्बुश लगाने की घटनाओं में शामिल। 13 सितंबर 2003 दंतेवाड़ा जिले के गीदम थाने में हमला और लूट। 2007 में बीजापुर जिले के रानीबोदली कैंप पर हमला। 2013 में मन्हाकाल निवासी जग्गु धुर्वा की हत्या प्रमुख है।
27 जवानों की जान ली सुकाय
प्रदेश के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के गीदम थाना क्षेत्र से सुकाय वेट्टी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया। सुकाय वेट्टी पिछले पांच सालों से नक्सलियों से जुड़ी थी। 2011 में एलजीएस सदस्य के रूप में वह संगठन से जुड़ी। पूर्वी बस्तर डिविजन के कुआनार में एल.जी.एस. की सक्रिय सदस्य थी। सन् 2010 में मुडपाल के जंगल में पुलिस पर एम्बुश लगाकर हमला,नारायणपुर के धौड़ाई इलाके में सीआरपीएफ के जवानों पर हमला इसमें 27 जवान शहीद हुए थे। 2013 में कोंडागांव के केशकाल थाना क्षेत्र में पुलिस नक्सली मुठभेड़ में शामिल थी। दस लाख की इनामी थी।
माओवादी महिला बना दिए
पिछले कुछ वर्षो से माओवादियों की टुकड़ियों में महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके पीछे सरकार विरोधी मानसिकता आदिवासी महिलाओं को माओवादी बना रही है,ऐसा कोई कारण नहीं है। बस्तर की आदिवासी महिलाएं बस्तरिया संस्कृति को ही ओढ़ती और बिछाती आई हैं। हाड़तोड़ मेहनत करना और पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेती किसानी से लेकर वनोपज एकत्र करना, हाट बाजारों में बेचने के अलावा घर गृहस्थी और बाल बच्चे संभालना यह उनका स्थायी गुण है। विषम परिस्थितियों में नहीं घबराना आदिवासी महिलाओं की विशेषता है। आदिवासी महिलाओं की यही विशेषता लालगलियारे की जरूरत बन गया। आदिवासी औरतों में अनुशासन और किसी भी काम को मन लगाकर करने की इच्छा शक्ति बहुत तेज होती है। उनकी इस खूबी का इस्तेेमाल माओवादी नेताओं ने खूंखार छापामार और कू्ररता में उन्हें तब्दील कर उन्हें माओवादी महिला बना दिए हैं।
नाबालिग युवतियांे की मांग
आन्ध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई कई बड़ी नक्सली वारदातों को अंजाम देने वाली रमोली ने पुलिस को जो बताया वह किसी अजूबा से कम नहीं है। रमोली कहती है,बड़े नेता नाबालिग युवतियों को संगठन में शामिल करने का दबाव बनाते हैं। पहले युवतियों में जोश भरा जाता है कि यह अपने लोगों के लिए हमारी लड़ाई है। लेकिन शामिल होने के बाद दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। जुगरी निवासी छिनारी नारायणपुर मर्दापाल एलओएस सदस्य के रूप में वर्ष 2008 में भर्ती हुई थी। वर्तमान में उसे भानपुरी एरिया कमेटी सदस्य की जिम्मेदारी दी गई थी। दोनो महिला नक्सलियों पर 50-50 हजार का इनाम था। माओवादियों को प्रेम और संतान पैदा करने की इजाजत नहीं होती। आठ लाख रूपए की इनामी नक्सली 20 वर्षीया आसमती को 10 लाख रूपए के इनामी नक्सली संपत से प्यार हो गया। इन दोनों की मुहब्बत परवान चढ ही रही थी,इसकी भनक कमेटी के सचिव राजू उर्फ रामचन्द्र रेड्डी को लग गई। दोनों को अलग कर दिया। आसमती को यह अच्छा नहंी लगा और वह घर बसाने के लिए लाल गलियारे से नाता तोड़ने के लिए संपत को विवश किया और दोनों ने हथियार डाल दिए। छत्तीसगढ़ सीमा से लगे ओडिशा राज्य के मलकानगिरी जिले में एसपी मित्रभानु महापात्रो के समक्ष दो महिला समेत पांच माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया। इसमें एक माओवादी सुभा मड़कामी उर्फ राजू पर एक लाख रुपए का इनाम घोषित था। बताया गया है कि सुभा मड़कामी 23 वारदातों में शामिल रहा। महिला माओवादी भिमे माड़ी उर्फ कुमारी आठ वारदात, सोमा पोडयामी उर्फ विक्रम पांच वारदात में शामिल था।
जनयुद्ध का प्रशिक्षण
पुलिस को शिकायत मिल रही है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र के गांवों से लगातार आदिवासी महिलाएं लापता हो रही हैं। वहीं नक्सली हर गांव में प्रत्येक घर से एक युवती मांग कर उन्हें हथियार संचालन का प्रशिक्षण के साथ विद्रोह का भी ज्ञान देते हैं। ताकि वे बंदूक उठा सकें और चला सकें। नक्सली कैम्पों में मिली किताबों से पता चला कि घने जंगलों में नक्सली युवतियों को क्रांति का पाठ पढ़ा रहे हैं। किताब में दंडकारण्य जनता विद्रोह का एक पाठ भी जोड़ा गया है। जाहिर है कि महिला माओवादियों के दम पर ही छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की दहशत है। जिस दिन नक्सलियों का साथ देना महिलाएं बंद कर देंगी माओवादी की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी।










नक्सलियों नें बदल ली जिन्दगी

   
राजनांदगांव पीटीएस में तीन सैकड़ा जवानों के साथ ग्यारह ऐसे जवान भी प्रशिक्षण ले रहे हैं जो कभी नक्सली थे। आत्मसमर्पण के बाद इनकी जिन्दगी बदल गई है। देश और कानून की रक्षा के लिए अब ये माओवादियों के खिलाफ लड़ेंगे।





0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                      राजनांदगांव पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र (पीटीएस) में 354 जवानों के साथ बस्तर संभाग से आए 11 ऐसे सिपाही भी हैं जो कभी नक्सली जीवन जीते थे। जिनके नाम से लोग डरते थे। अब वे नक्सली जीवन छोड़कर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो गए हैं। लेकिन कोई भी जब सूनता है कि वे नक्सली थे,तो एक बार चैंक जाता है। इसलिए कि नक्सली अब पुलिस की वर्दी में हैं। अब वे बंदूक भी उठाएंगे तो माओवादियों के खिलाफ। जाहिर है कि उनकी जिन्दगी और सोच बदल गई है। कानून और समाज की रक्षा में उनकी भूमिका क्या है, सिपाही की वर्दी पहने के बाद महसूस करते हैं। पुलिस अफसरों को भरोसा है कि लंबे समय तक माओवादियों के साथ रहने की वजह से प्रदेश में जितने भी माओवादियों ने समर्पण कर सिपाही बनकर समाज की सेवा करना चाहते हंै, वे नक्सली अभियान में मददगार साबित हो सकते हैं। इसलिए कि उन्हें माओवादी कैसे और किस तरह की योजनाएं बनातें हैं,अपनी योजनाओं को किस तरह अंजाम देते हैं, उससे परिचित हैं। उनकी योजनाओं को मात देने इनकी मदद कारागार साबित हो सकती है।
पूर्व माओवादी अब वर्दी में                                     
प्रदेश में तीन पीटीएस केन्द्र है। सभी पीटीएस केन्द्रों में इस समय विभिन्न जिलों में आत्म समर्पण कर यहां आए माओवादी प्रशिक्षित किए जा रहे हैं। करीब आधा सैकड़ा नक्सली हैं जो माना,चंदखुरी और राजनांदगांव पीटीएस में प्रशिक्षण पा रहे है। रमन सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले उन सभी नक्सलियों को जो शिक्षित हैं और सिपाही बनना चाहते है,उन्हे भर्ती करने का आदेश दिया है। राजनांदगाव पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र में जिला पुलिस बल के साथ माओवादी कानून की बारिकियों को तो समझ ही रहे हैं साथ ही, अन्य लोगों के साथ हर तरह का प्रशिक्षण भी ले रहे हैं। राजनांदगांव पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र की ए. एस.पी मोनिका ठाकुर कहती हैं,सभी जिले से यहां पुलिस कर्मी प्रशिक्षण के लिए आए हैं। साथ में वे माओवादी भी हैं जो समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर सरेंडर कर दिए हैं।   शिक्षित पूर्व माओवादियों कों शासन की ओर से सिपाही के पद पर भर्ती किया गया है। वे यहां अन्य सिपाहियों के साथ रहतेे हैं। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें उनके जिले में भेज दिया जाएगा। जिले के अधिकारी उनसे जैसी ड्यूटी चाहेंगे लेंगें‘‘।
एंबुश लगाने में माहिर
राजनांदगांव के पीटीएस ट्रेनिंग कैम्प में बस्तर के पूर्व 11 नक्सलियों को लड़ने को ट्रेनिंग दी जा रही है। ये नक्सली गोरिल्ला वार से लेकर एंबुश लगाए जाने की सभी तकनीक को अच्छी तरह जानते हैं। सभी नक्सली इनामी थे जो पुलिस के सामने सरेंडर करके भरोसा दिलाया है कि भविष्य में वे लाल गलियारा के खिलाफ बंदूक उठाएंगे। यह अलग बात है कि कभी सिपाही बने माओवादियों की अपने इलाके में दहशत थी लेकिन अब वे अपने टैंलेंट से पुलिस की मदद करेंगे। 
नक्सली इलाकों में होगी पोस्टिंग
पीटीएस में प्रशिक्षण ले रहे बस्तर के पूर्व 11 माओवादी जवानों की पोस्टिंग मार्च के बाद नक्सली इलाकों में होगी। इस ट्रेनिंग के बाद आने वाले समय में इन्हें दो महीने की जंगल में लड़ने की ट्रेंनिग भी दी जाएंगी। पीटीएस में सभी को नौ महीने की ट्रेनिंग दी जा रही है। नक्सल एक्टिवीज को बढ़ता देख अब ट्रेनिंग भी तेज हो गया है। बेसिक कोर्स के साथ ही फिटनेस और जंगल के हिसाब से रस्सा, बीम, ऑप्टिकल फ्रंट रोल के अलावा हथियारों की ट्रेनिंग दी जा रही है। इन जवानों को 10 की जगह 20 किलो मीटर की रनिंग कराई जा रही है। 50 डिप्स और पुशअप लगवाए जा रहे हैं। पीटीएस में 354 जवानों में 80 प्रतिशत बस्तर के हैं।
 नहीं लौटा तो भाई की कर दी हत्या
यहां ट्रेनिंग ले रहे तूर सिंह कांकेर के रहने वाले हैं। सरेंडर के बाद घर वापसी के लिए बार,बार नक्सलियों ने कई दबाव बनाया। बड़ा भाई फूलसिंह भी पुलिस में है। दो दिसंबर को ही नक्सलियों ने उनके छोटे भाई ढेलूराम धु्रव को मार डाला। पीटीएस के एस.पी बी.एल मनहर ने बताया कि नक्सल मूवमेंट बढ़ने की वजह से जवानों की ट्रेनिंग हार्ड कर दी गई है। मार्च में पास आउट के बाद इनकी पोस्टिंग बस्तर क्षेत्र में की जाएगी। पहले सें जंगल में रहने का अनुभव अब पुलिस के काम आएगा। सुकमा के रहने वाले 45 साल के सुभाष कोमरे गोरिल्ला वार के साथ निशाने बाजी में माहिर हैं। इन्हांेने बताया कि 1993 से 2014 तक डीवीसी मेंबर रहे। पांचवीं क्लास में थे तभी नक्सली साथ ले गए। उनकी पत्नी समबती भी नक्सली थीं। 2014 में कोमरे दंपति ने सरेंडर किया।
बदल गई सोच
सुकमा के एतरानपार के रहने वाले 30 साल के लोकेश कर्मा वर्ष 2001 से 2009 तक नक्सलियों के साथ रहे। वे एंबुश की प्लानिंग से लेकर सूचना जोड़ना, रैकी करना,भर्ती कराने का काम करते थे। अब यहां आने के बाद इनकी सोच बदल गई है। ट्रेनिंग से ये मजबूत हो रहे हैं।
नक्सली कमांडर को मारा
कांेडागंाव के अजय बधेल सन् 2006 से 2011 तक नक्सलियों के साथ रहे। पांच साल तक माओवादियों के साथ रहने और उनके विचार धाराओं से धीरे धीरे अजय का मोह भंग होने लगा। समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का उन्होंने एक दिन इरादा बनाया और अपने आप को सरेंडर कर दिया। वे बताते है नवंबर 2013 में एक मुठभेड़ के दौरान उनके दोनों पैरों में गोली लग गई थी। फिर भी वे गोली चालाते रहे। उन्हें लगा कि जंगल में रहकर देश की रक्षा के लिए गोली चलाना ज्यादा अच्छा है और  अपने आप को सरेंडर के लिए मजबूत किया। किसी को बताया तक नहीं। उनमें शुरू से सिपाही बनकर समाज की सेवा करने की इच्छा थी। भाई की हत्या की वजह से गलत राह पर चले गए थे। सिपाही में भर्ती होने के बाद वे 2015 में एक मुठभेड़ में एलओएस कमांडर को मार गिराया। कमकानार मंगालूर क्षेत्र के 27 वर्षीय गोपाल गुड्डू डिवीजन एक्शन कमांडर था।
65 फीसदी नक्सलियों का सफाया  बाॅक्स में
गृह सचिव वी.वी.आर सुब्रम्हण्यम ने कहा कि, साल 2017 में 300 से ज्यादा नक्सलियों को आपरेशंस के दौरान मार गिराया गया। पिछले 2 सालों में 1476 नक्सल आपरेशंस चलाए गए। इसमें 1994 नक्सलियों की गिरफ्तारी हुई। वहीं 1458 नक्सलियों को मार गिराया गया। नक्सलियों पर कुल 4 करोड़ का इनाम था। वहीं 1280 किलो की आईईडी 263 स्थानों से बरामद की गई। 100 हैंड ग्रेनेड और 2319 डेटोनेटर भी बरामद किये गये। इस दौरान 102 जवान शहीद भी हुए। जवानों के 43 हथियार लूटे गए। साल 2017 में 1017 नक्सली गिरफ्तार हुए। जिनमें 79 नक्सलियों पर इनाम था। इनामी नक्सलियों पर 1 करोड़ 41 लाख का इनाम था। 2022 तक नक्सलवाद पूरी तरह से खत्म कर दिया जायेगा। अब सिर्फ बीजापुर और सुकमा में नक्सलियों की मौजूदगी है। केंद्र और राज्य सरकार के 70 से 75 हजार जवान नक्सलियों से लड़ रहे हैं। 4 नई बटालियन में 5 हजार जवान मार्च तक तैनात किए जाएंगे। बस्तर में 60 से 65 फीसदी नक्सली का सफाया हो गया है। नक्सल आपरेशन के लिए साल 2017 को याद किया जायेगा क्योंकि ऑपरेशन प्रहार के दौरान जवान ताड़मेटला जैसे नक्सलियों के गढ़ तक पहुंचे और आपरेशन को अंजाम दिया। गोलाराम और भोपालपट्टनम, नगरकोलम, जैसी कई ऐसी जगह थी, जहां जवानों ने पहली बार अपनी मौजूदगी दिखायी। डीजीपी ए एन उपाध्याय ने बताया कि आपरेशंस के साथ-साथ डेवलपमेंट के भी काफी काम हुुुए। बस्तर में पुलिस की देखरेख में 2 साल में 700 किलोमीटर की रोड बनी, जबकि 1300 किलोमीटर रोड बनने का काम जारी है। वहीं 75 नए थाने भी खोले गये।









Sunday, June 16, 2019

अमीर धरती,गरीब लोग

 
       अमीर धरती,गरीब लोग
छत्तीसगढ़ की धरती में कीमती रत्नों का भंडार है। बावजूद इसके यहां का अदिवासी गरीब और बेहाल है। सरकार आदिवासियों को उजाड़कर उनकी जमीन पर कब्जा कर ली। लेकिन रत्नों से लदी इस धरती की हिफाजत नहीं कर पा रही है। पायलीखंड की हीरा खदान और बेहराडीह,कोदोमाली से सरकार की तिजोरी तो नहीं भरी लेकिन,तस्करों की चांदी है।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                                
प्यारे सिंह बताते हैं अलेक्जेन्ड्राइट उनकी जिन्दगी के लिए अभिशाप बन गया। जमीन का पट्टा होने के बाद भी खेती नहीं कर सकते थे। एक दिन कुछ अफसर आए और बोले तुम्हारे जमीन में अरबों रूपए का पत्थर है,जमीन सरकार को दे दो। तुम दोनों भाइयों को खदान की रखवाली के लिए चैकीदार बना देंगे। जमीन तुम्हें अब नहंीं मिलेगी, इसलिए 12 हजार रूपए रख लो। कुछ दिनों तक खदान का गार्ड बनाने के बाद हटा दिए। एक फूटी कौड़ी भी नहीं दिए। अरबों की जमीन से प्यारे सिंह खदेड़ दिए गए और अब फिर रहे हैं मारे मारे। जमीन भी गई और दो वक्त की रोटी भी छिन गई।
हीरा ले लो,रहने को जमीन दे दो
नैन सिंह नेताम के खेत में हीरे तो निकले लेकिन इनकी जिन्दगी मंे केवल दर्द ही दर्द हंै। कुरेदने पर बताते हैं, बचपन में एक दिन दादी ने कहा था कि अपने खेत में सोना नहीं, हीरा है। यह हीरा हमें हर लिया। कहीं का नहीं छोड़ा। हमारी खड़ी फसल को बड़ी बेरहमी से काट दिया गया। अफसर बोले,यहां फिर दिखे तो तुम्हारी टांगे तोड़ देंगे। बाहरी लोगांे का तो बाल बांका तक नहीं हुआ। हमारे खेत की मिट्टी  भर कर ट्रकों से ले गए। वे ऐश कर रहे हैं। नैन सिंह नेताम घने जंगल के बीच पायलीखंड के उस हीरे की भंडार की मालिक है जिसे तस्कर लूट कर ले गए। नैन सिंह के साथ ज्यादती करने वाली सरकार को हीरा का एक टुकड़ा भी नहीं मिला। नैन सिंह अब बड़े किसानों के यहां मजदूरी करते हैं। आज भी छोटी सी झोपड़ी में रहती हैं। नैन सिंह की मां कहती हैं कि खेत को ऐसा खोदा कि किसी काम का नहीं रह गया है। हमें पैसा नहीं चाहिए,बस जमीन का कहीं टुकड़ा दे दें ताकि बेटा,बहू को कहीं आसरा मिल जाए सिर छुपाने को।
प्यारे सिंह और नैन सिंह की इस कहानी में छत्तीसगढ़ के मैनपुर-देवभोग इलाके के लोगों के दर्द के साथ  विडंबना छिपी है। इस इलाके के लोगों की जिन्दगी में खुशियों की बहार नहीं आ सकी क्यों कि सरकार ने इस दिशा में कोई स्पष्ट योजना नहीं बना सकी। यही वजह है कि इस संपदा पर तस्करों की गिद्ध नजर गड़ी हुई है। जमीनों की अवैध खुदाई कर भारी मुनाफा अपनी जेबों भर रहे हैं और गांव वालों को नाम मात्र की मजूदरी देते आ रहे हैं। इसके चलते उपेक्षा,हताशा और शोषण की तस्वीर से निजात इस क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे हुई तस्करी की दस्तक
देवभोग के गांव लाटापारा जहां रक्तमणि(गारनेट) का भंडार है। यहां के लोग अजनबी चेहरोें को शक की निगाहों से देखते हैं। इस गांव के देवानंद कश्यप,रामधनी और भानुमति,दुलारी कहती हैं,‘‘सरकार ठीक से काम करती तो गांव के बहुत से लोग सिर्फ गारनेट बेचकर ही अपनी गरीबी दूर कर लेते। लोगों को जंगल के कंद मूल खाने की नौबत नहीं आती। यहां के लोगों से मिलने के बाद पायलीखंड गांव की ओर रवाना हुआ। गौरतलब है कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र के आधार पर भूगर्भ शास्त्री टी.एल.वाकर ने 1900 में एक सर्वे किया था। उनके अनुसार यहां हीरे के अलावा अन्य रत्नों के भंडार की संभावना है। वाकर के बाद ओड़िसा राज्य के प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक विश्वनाथ ने भी इन्द्रावन क्षेत्र में फैले रत्न भंडार पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। ऐसा कहा जाता है कि 1986-89 के बीच उनकी रिपोर्ट की नकल कीमती पत्थरों के सौदागरों ने हासिल कर ली थी। उसके बाद ही इलाके में तस्करी क शुरूआत हुई। पायलीखंड ऐसा इलाका है जहां हीरे की चाह में दूर से लोग खींचे चले आते हैं। जांगड़ा गांव से होकर पायलीखंड पहुंचना पड़ता है। इन्द्रावन यहां की प्रमुख नदी है। इसे पार करने के बाद खदान तक पहुंचा जा सकता है।
सुरक्षा भगवान भरोसे
हीरा खदान की सुरक्षा सन् 2009 तक पुलिस के जवानों ने की। एक दिन यह खबर फैली कि नक्सली इधर आ रहे हैं। पुलिस बल इसलिए हटा लिया गया कि कहीं वे हथियार न लूट लें। गांव के लोगों का कहना है कि यह सब साजिश थी,ताकि अवैध खनन किया जा सके। छह वर्ष पहले हीरा खदान में 50 हेक्टेयर क्षेत्र को कटीले तारों से घेरा गया था। अब कटीले तार नहीं दिखते। संरक्षित क्षेत्र में कोई भी आ जा सकता है। खनिज विभाग के पास फंड नहीं होने की वजह से कटीले तार दोबार नहीं लगाया गया।     गरियाबंद जिले में पायलीखंड के अलावा बेहराडीह,कोदोमाली में भी हीरे मिलने की वजह से जगह जगह सैकड़ों की तादाद में गड्ढे बन गए है। 
इस तरह हुआ सर्वे
गरियाबंद और देवभोग में रत्न भंडार के सर्वे के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम बनी। भौमिक एवं खनिज कर्म संचालनालय के भू वैज्ञानिक दत्ता माईणकर, जयंत कुमार पसीने,दिनेश वर्मा,विजय कुमार सक्सेना,संजय खरे, पी.के.पदमवार, हरविंदर पाल और आर.आर.विसेन ने दो वर्षो में सर्वे कर पता लगाया कि किन किन क्षेत्रों मंे कीमती रत्न हैं। इन वैज्ञानिकों ने मैनपुर ब्लाक के बेहराडीह, कोसममुरा, कोदोमाली, पायलीखंड, जांगड़ा, बाजीघाट और बस्तर क्षेत्र में तोकापाल,भेजीपदर में किंबरलाइट मिलने की पुष्टि की। ज्यादातर पहले हीरा मिलता है,उसके बाद किंबरलाइट चट्टान लेकिन, कभी कभी पहले किंबरलाइट चट्टान उसके बाद हीरा मिलता है।
हीरे की निविदा पर राजनीतिक ग्रहण    (फोटो दिग्गी राजा और अजीत जोगी की बाॅक्स में मैटर)
छत्तीसगढ़ में हीरा मिलने की पुष्टि होने के बाद मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्गविजय सिंह ने 1992  में निविदा आमंत्रित की। दिग्गी राजा ने डी-बियर्स कंपनी को मंजूरी दे दी। प्रोस्पेक्टिंग लायसेंस (पीएल)   के लिए केन्द्र की देवगौड़ा सरकार को पत्र भेज दिया गया। इस बीच कांग्रेस नेता अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री दिग्गी राजा पर 50 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया और इसकी शिकायत सोनिया गांधी से की। आरोपों के साक्ष्य के बतौर अजीत जोगी ने कहा,‘‘डी बियर्स के निमंत्रण पर दिग्विजय सिंह,प्रदेश के तत्कालीन सचिव शरदचंन्द्र बेहार, खनिज सचिव एस. लक्ष्मीकृष्णन के साथ दक्षिण अफ्रीका के प्रवास पर गए हुए थे। इस प्रवास का पूरा खर्चा कंपनी ने उठाया है। हीरा खनन पर राजनीति होने से अनुबंध समाप्त कर दिया गया। 12 मार्च 1998 को एक बार फिर निविदा निकाली गई। जिसमें चार कंपनियां नेशनल मिनरल डेवलमेंट कार्पोरेशन,डी बियर्स, रियो टिंटो और बी विजय कुमार ने मैनपुर ब्लाक के  डी-7 ब्लाक के लिए निविदा भरी। बी विजय कुमार की निविदा मंजूर होने पर भाजपा सांसद रमेश बैस का अरोप था कि बगैर सर्वेक्षण के हीरों की कटिंग-पालिश का काम करने वाले ट्रेडर्स को काम दिया गया है। इसके अलावा यह भी आरोप लगा कि जिन खदानों का ठेका मंजूर किया गया है वहां सिर्फ हीरा ही नहीं अन्य कीमती धातुएं जैसे कोरडंम,गारनेट,स्पाटिक आदि मिलती हैं। इस मामले पर सरकार और बी विजय कुमार के बीच कोई अनुबंध नहीं हुआ कि आखिर इसका लाभ किसे मिलेगा। केन्द्र से सन् 2000 में प्रोस्पेक्ंिटग लायसेंस बी. विजय कुमार को मिल गया। छत्तीसगढ़ राज्य इसी वर्ष बनने पर अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। कंपनी को प्रदेश के खनिज विभाग ने क्षेत्र के सर्वे में गफलतबाजी करने आरोप लगाकर नोटिस थमा दिया। बी.विजय कुमार को लगा कि हाथ से काम छिन जाएगा तो उन्होंने बिलासपुर हाई कोर्ट में मामला दायर किया। 2008 से यह मामला दिल्ली ट्रिब्यूनल मिनिस्ट्री आफ माइंस के पास विचाराधीन है। वहीं मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह कहते हैं,खदान के बारे में किसी भी तरह का निर्णय लेने के पहले फैसला तो देखना ही पड़ेगा‘‘।
तस्करों को खुली आजादी
पायलीखंड अब भी लोग आते हैं हीरे की तलाश में। चैकाने वाली बात है कि खदान में सुरक्षा के नाम पर सीमेंट की दो जर्जर खंभे हैं,जबकि दूसरा गेट टूटा हुआ है। हीरा निकालने के लिए कोई भी तस्कर खदान में आ जा सकता है। उसकी किस्मत में हीरा है तो आसनी से मिल जाएगा। बारिश में इन्द्रावती नदी में बाढ़ आ जाने से गांव कट जाता है। जिससे पुलिस की पहुंच से यह गांव दूर हो जाता है। जिला खनिज अधिकारी एस.के.मारवा कहते हैं,‘‘1991 के सर्वेक्षण में यहां 3 हजार कैरेट के हीरे की संभावना जताई गई थी। कुछ प्रशासनिक कारणों की वजह से खुदाई का मामला आगे नहीं बढ़ सका। ओड़िसा सीमा पर बसा वन ग्राम पायलखंडी और सेदमुड़ा दोनों स्थानों पर दुलर्भ कीमती रत्न अलेक्जेंड्राइट मिलता है। यह क्षेत्र पर्वतों से घिरा हुआ है। रेल मार्ग यहां नहीं है। मैनपुर ब्लाक में पायलखंडी और सेंदमूड़ा देवभोग ब्लाॅक में आता है। मैनपुर में उच्च कोटि के सागौन के जंगल हैं,जबकि देवभोग चावल के लिए प्रसिद्ध है।
गांव की तस्वीर नहीं बदली
सेंदमुड़ा की धरती में अलेक्टजेंड्राइट पत्थर होने की जानकारी मिली तो तस्करों का काफिला आने लगा। सरकार ने भी लोगों की जमीन छीन ली लेकिन इस गांव की तकदीर नहंीं बदली। खनिज विभाग के सेवा निवृत क्षेत्रीय अधिकारी एन.के चद्राकर कहते हैं,1987 में यहां कीमती पत्थर अलेक्टजेंड्राइट के होने की पुष्टि हुई थी। 1992 मंे इस पूरे क्षेत्र को पुलिस कस्टडी में लेकर मध्यप्रदेश खनिज विभाग को सौंप दिया गया। देवभोग जनपद उपाध्यक्ष देशबंधु नायक कहते हैं,‘‘खनिज विभाग के अधीन होने की वजह से पहले पांच साल तक यहां अवैध खनन होता रहा। 1992 में विभाग की देख रेख में उत्खनन का काम शुरू हुआ। कितने पत्थर निकाले और कितना बताए, कोई नहीं जानता। गांव वाले नहीं जानते कि इस पत्थर की क्या उपयोगिता है,कितना कीमती है। इसलिए गांव वालों को इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
खनन पर रोक लगी
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर 20 फरवरी 2009 को उदंती-सीतानदी अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया है। 851 वर्ग किलोमीटर कोर जोन है। पायलीखंड की हीरा खदान भी इसी जोन के तहत आती है। वन्य जीव कानून के तहत टाइगर की सुरक्षा को देखते हुए मंत्रालय ने खनन पर रोक लगा दी है। जबकि यहां का हीरा पन्ना की तरह है। बावजूद इसके तस्कर यहां आते हैं। पायलखंडी में नैन सिंह के खेत की तस्वीर सब कुछ कह देती है कि तस्कर जमीन को पोला अब भी हीरे की तलाश में कर रहे हैं। हीरे के लिए पानी की जरूरत अधिक पड़ती है। तस्कर स्थानीय मजदूरों के जरिए मिट्टी खुदवाते हैं। उसके बाद उसे बोरे में भरकर साइकिल के जरिए नदी तक ले जाते हैं। मजदूर घनी जाली में मिट्टी को डालकर उसे धोते हैं। मिट्टी बह जाती है। जाली में कंकर रह जाता है। जिसे सूखाकर या फिर प्लास्टिक की चादर में फैलाकर उसे चावल की तरह बीना जाता है। सूरज की रोशनी में चमकने वाला पत्थर हीरा होता है। मजदूरों को एक हीरा तलाशने में दो से तीन सौ रूपए मिलता है।
रत्नों का अकूत भंडार
गरियाबंद के देवभोग,सरगुजा के सफा, बीजापुर के भोपालपट्टनम और जशपुर के कुनकुरी, वनखेता एवं दीवानपुर में पारदर्शी हीरा पाया जाता है। गरियाबंद जिले के पायलीखंड,जागड़ा,बेहराडीह,कोदेमाली और बाजाघाटी में हीरे की किबंरलाइट है। बस्तर के तोकापालव, भेजरीपदर और जशपुर के फरसबहार, मैनी नदी, सारंगगढ़, पिथौरा, बेहराडीह, कंाकेर-केशकाल,नारायणपुर,छोटा डोंगर,तोकापाल में भी हीरा पाया जाता है। उथली खदान होने की वजह से तस्कर इसका फायदा उठा रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी रत्नों के भंडार है। बीजापुर जिले के भोपालपट्टनम में कोरन्डम (माणिक और नीलम) दबे हैं। सुकमा जिले के सोन कुकानार और गरियाबंद के केदूबाय गांव में माणिक पाए गए हैं। गरियाबंद के गोहेकला,धूप कोट,लाटापारा और केदूबाय में रक्तमणि के भंडार मिले हैं। इसके अलावा बीजापुर के कुचनुर और सरगुजा के बिशनपुर में भी इसके भंडार मिले हैं।
पांचवी सबसे बड़ी खदान!
दुनिया भर में हीरे की 22 खदाने हैं। यदि मैनपुर ब्लाक के तहत पायलीखंड की खदान शुरू होती है तो यह विश्व की पांचवा सबसे बड़ा खदान होगी। इस खदान से छत्तीसगढ़ सरकार को सालाना करीब 10 हजार करोड़ का मुनाफा हो सकता है। यह खदान 50 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यहां साउथ आफ्रिका की खदानों जैसे ही हीरे हैं। नई राजधानी में जेम्स एंड ज्वेलरी पार्क शुरू होने से हर व्यक्ति के लाभान्वित होने की उम्मीद है। रोजगार बढ़ने से लोगों की आमदनी और लाइफस्टाइल तो बेहतर होगी हीए भारी.भरकम राजस्व से प्रदेश में डेवलपमेंट की नई तस्वीर भी उभर सकती है। दरसअल छत्तीसगढ़ सरकार पिछले वर्ष सोनाखान की नीलामी की है। इससे संभावना है कि अब जल्द ही यहां माइनिंग शुरू हो जाएगी। सोनाखान के शुरू होने पर मैनपुर के हीरा खदान को भी हरी झंडी मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। यदि ऐसा होता है तो मैनपुर देश का इकलौता हीरा खदान बन जाएगा। यहां करीब 1 लाख कैरेट हीरा मिलने का अनुमान है।
नए बाजार की संभावनाएं
सोनाखान में सोने और पायलीखंड में हीरा खदानों की पुष्टि होने के बाद सूरत और मुंबई की तर्ज पर ही सराफा की नई इंडस्ट्रीज के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने नई कवायद शुरू कर दी है। छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम सीएसआईडीसी और एक निजी कंपनी रामकी समूह के बीच एक एमओयू हुआ है। इसके तहत कंपनी 3 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर नया रायपुर में रत्न एवं आभूषण उद्योग, हर्बल और औषधीय पार्क तथा खाद्य प्रसंस्करण पार्क बनाएगी। इसमें सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट जेम्स एंड ज्वेलरी पार्क का है। इसके लिए नया रायपुर में जमीन आवंटित कर दी गई थी लेकिन मामला अब तक ठंडा ही था। सोने के खान की नीलामी ने इस पार्क की संभावनाओं में नई जान फूंकी है।







  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 230 किलोमीटर दूर एक गांव सेंदमुड़ा है। आज से तीस साल पहले इस गांव में प्यारे सिंह और प्यारेलाल नाम के दो भाई रहते थे। इनके पास दो एकड़ खेत था। जिसमें धान उगाया करते थे। प्यारे सिंह को हल चलाते वक्त एक चमकीला पत्थर मिला। उसे  उलट पलट कर देखा। कुछ समझ में नहीं आया तो घर ले आए। बच्चों को खेलने के लिए दे दिया। गांव के बच्चे इसे कंचा बनाकर खेलने लगे। प्यारे सिंह को यह पता नहीं था कि जिस पत्थर को वे बच्चों को खेलने के लिए दिए हैं वह कीमती पत्थर अलेक्जेन्ड्राइट है। जो कृत्रिम रोशनी में रंग बदलता है। धीरे,धीरे इस क्षेत्र में दूसरे गांव के खेतों में भी यह पत्थर निकलने लगा। बात गांव से बाहर शहर तक पहुंची तो जौहरी आने लगे। जौहरी बच्चों को चाकलेट,बिस्कुट देकर पत्थर ले लेते थे। फिर कुछ रूपए दिए जाने लगे। धीरे,धीरे गांव वालों को भी यह बात समझ में आने लगी कि पत्थर असाधारण नहीं है। धीरे,धीरे इस पत्थर की कीमत मिलने लगी।

काठ के घोड़े पर छाॅलीवुड

            काठ के घोड़े पर छाॅलीवुड
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक करीब दो से अधिक फिल्में बनीं लेकिन, बाॅक्स आफिस पर गिनती की ही फिल्में धमाल मचा सकीं। सवाल यह है कि 50 करोड़ से अधिक खर्च होने के बाद भी छत्तीसगढ़ी फिल्में अन्य भाषाओं की फिल्मों की तरह क्यों नहीं चमकीं। जबकि छत्तीसगढ़ के कई कलाकर बड़े पर्दे पर जौहर बिखेर रहे हैं।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘





    छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक डेढ़ सौ से अधिक फिल्में बनीं लेकिन, बाॅक्स आफिस पर गिनती की ही फिल्में धमाल मचा सकीं। सवाल यह है कि आखिर छत्तीसगढ़ी बोली की फिल्में लगातार पिट क्यों रही हैं। जबकि भोजपुरी,बंगाली और मराठी फिल्में ना केवल जल्वा बिखेर रही हैं बल्कि बाॅक्स आॅफिस पर रिकार्ड भी बना रही हैं। छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता और निर्देशकों की शिकायत है कि सरकार नहीं चाहती है कि छाॅलीवुड भी चमके। यहां के कलाकार रंगीन पर्दे पर अपनी कला का जौहर बिखरते हुए छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करें। देखा जाए तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक डेढ़ सौ से भी अधिक फिल्में बन चुकी हैं। इन दिनों छाॅलीवुड बचाओ‘ की आवाज तेज हुई है। माना जा रहा है कि मल्टीप्लेक्स आने की वजह से यह उद्योग दम तोड़ने लगा है। हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने पिछले चुनाव में अपने घोषणा पत्र में दावा किया था कि सरकार बनी तो छत्तीसगढ़ी फिल्म विकास बोर्ड का गठन किया जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य बने डेढ़ दशक के बाद भी इस दिशा में सरकार ने सार्थक पहल नहीं की। निर्माता निर्देशक सतीश जैन कहते हैं,‘‘ सरकार को लगता है कि फिल्म विकास बोर्ड का गठन होने के बाद लोकप्रिय कलाकारों के राजनीति में आने से वे चुनौती बन सकते हैं‘‘।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के प्रमुख कलाकार पद्म श्री अनुज शर्मा कहते हैं,‘‘राज्य में अब मात्र 50-60 थियेटर बचे हैं। राजधानी में कई थियेटर टूट गए। मल्टीप्लेक्स का दौर आ गया हे। मध्य छत्तीसगढ़ में ही छत्तीसगढ़ी बोली बोली जाती है। ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ी फिल्में बाॅलीवुड की फिल्मों की तरह नहीं बनती। ग्लैमर का तड़का,आइटम साॅंग,मारधाड़,ड्रामा,मधुर धुन और सुन्दर दृश्यों से छत्तीसगढ़ी फिल्में भी लदी होती हैं बावजूद इसके, निर्माता निर्देशकांे की यह शिकायत है कि छत्तीसगढ़ के लोग ही फिल्में देखने छविगृह नहीं जाते। इस वजह से छत्तीसगढ़ी फिल्में बेबस हैं बाॅक्स आॅफिस पर रिकार्ड बनाने के लिए‘‘।़ बावजूद इसके छत्तीसगढ़ बोली की कई फिल्मों ने रिकार्ड भी बनाया है। मोर छइंया भुइंया,टूरा रिक्शा वाला,बीए फस्ट ईयर, मितान 420, महूं दिवाना, तहूं दीवानी, राजा छत्तीसगढ़िया, दूलाफा डू कुछ ऐसी फिल्में हैं जिन्हें दर्शक मिले और लोगों के बीच चर्चा में भी रहीं। ऐसी स्थिति में यह कहना गलत होगा कि छत्तीसगढ़ी फिल्में लोग देखने नहीं जाते। वहीं इससे इंकार भी नहीं है कि फिल्मों को लेकर दर्शकों का नजरिया बदला है। राजधानी रायपुर में पांच दशक पहले 14 छविगृह थे आज गिनती के ही बचे हैं। छविगृह टूट कर काम्पलेक्स में तब्दील हो गए हैं। फिल्मी दर्शक कौशलेश तिवारी कहते हैं,‘‘ छत्तीसगढ़ी भाषा में फिल्में बन रही हैं,बंद नहीं होंगी। दिक्कत यह है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों को टाॅकीज नहीं मिल रहे हैं। श्याम,अमरदीप और प्रभात टाॅकीज में से किसी एक छविग्रृह में छत्तीसगढ़ फिल्में लगती है। जबकि सभी छविगृहों में लगनी चाहिए‘‘।
सरकार सब्सिडी देः योगेश
छत्तीसगढ़ फिल्म एसोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष योगेश अग्रवाल कहते हैं,‘‘दरअसल ग्रामीण इलाके में छविगृह नहीं है,जबकि साउथ के हर गांव में टाॅकीजें हैं। सिनेमा हाल जिला से पंचायत स्तर तक खुलना चाहिए। सरकार से हमारा आग्रह है कि वे हमें सब्सिडी दे और टैक्स में छूट दे ताकि हमारे लोग टाॅकीज खोल सकें। फिल्म विकास बोर्ड अब बन जाने की उम्मीद है। कलाकारों से सुझाव मांगा गया है। कलाकार चाहते हैं कि उनका बीमा होना चाहिए। छत्तीसगढ़ फिल्म उद्योग में करीब पांच हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है। सरकार से मदद मिलने के बाद रोजगार के और रास्ते इजाद होंगे। प्रदेश छोटा है। ढाई करोड़ की आबादी है। ज्यादातर लोग हिन्दी बोलते हैं। बावजूद इसके हमारे यहां अब पहले से अच्छी फिल्में बनने लगी हैं,मुंबई के कलाकार भी छत्तीसगढ़ी फिल्में में काम करने लगे हैं। इससे इंकार नहीं है कि   छत्तीसगढ़ी फिल्मों का भविष्य उज्जवल है‘‘।
ज्यादा फिल्मीकरण ठीक नहीं
हिट फिल्म मेकर सतीष जैन कहते हैं,फिल्में ऐसी होनी चाहिए जो लोगों का मनोरंजन करे। दर्शकों को पसंद आए। ज्यादा फिल्मीकरण कर देने से फिल्में पिट जाती हैं। भोजपुरी और मराठी फिल्मों को ओपनिंग मिलती है लेकिन छत्तीसगढ़ी फिल्मों को नहीं। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सबसे बड़ा स्टार अनुज हैं लेकिन, उनकी भी फिल्मों को ओपनिंग नहीं मिलती। कोई अपनी टाॅकीज में छत्तीसगढ़ी फिल्म तभी लगायेगा जब फिल्म अच्छी हो। अच्छी फिल्में बनाने वालों की कमी है। फिल्म विकास निगम बना देने से छत्तीसगढ़ी फिल्मों को कोई लाभ नहीं मिलने वाला। सरकार के प्रभाव वाले और आयोग के लोगों का ही भला होगा। 
करोड़ों रूपए दांव पर
छत्तीसगढ़ी फिल्में ‘‘कहि देबे संदेश‘‘ और ‘घर द्वार‘ को छोड़ दें तो राज्य बनने के बाद ‘‘मोर छइंया भुइंया के बाद से लगातार फिल्में बनती आ रही हैं। छाॅलीवुड जिंदा रहे इसलिए लोग फिल्में बना रहे हैं। 16 साल बाद भी छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री मजबूती से खड़ी नहीं हो पाई है। जबकि बाॅलीवुड और टीवी धारावाहिक के कई स्थापित कलाकारों को लेकर फिल्में बनाई गईं और बन भी रही हैं। बावजूद इसके कामयाब फिल्में गिनती की हैं। अब तक छाॅलीवुड में 50 करोड़ से अधिक पूंजी लग चुकी हैं और करोड़ों रूपए अभी भी दांव पर हैं।
कम बजट का प्रयोग फेल
छत्तीसगढ़ के फिल्म मेकर्स को लगता है कि फिल्मों का ग्लैमर लोगों को अपनी ओर खींचता है। इसलिए नए कलाकारों को लेकर कम बजट में आसानी से फिल्म बनाई जा सकती हैं। लेकिन यह प्रयोग लगातर फेल हो रहा है। अच्छे कलाकार और अच्छी पटकथा नहीं होने की वजह से फिल्में अपनी लागत नहीं निकाल पा रही हैं। आम दर्शकों का कहना है कि जब फिल्म ही देखना है तो फिर बाॅलीवुड की फिल्में क्यों न देखें। टिकट का पैसा तो उतना ही लगना है। दरअसल फिल्म निर्माता बनने की चाह में लोग अपना पैसा छाॅलीवुड में लगा तो रहे हैं, लेकिन दर्शकों को पर्दे तक खींचने वाली फिल्में नहीं बना पा रहे हैं।   छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने वाले अब भोजपुरी या फिर हिन्दी फिल्मों की ओर रूख कर लिए हैं। जाहिर सी बात है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों को विकसित होने में अभी वक्त लगेगा।
सरकार का सहयोग जरूरी
छत्तीसगढ़ी फिल्म के निर्माता और निर्देशक मनोज वर्मा भी छत्तीसगढ़ी फिल्म की जगह स्थानीय कलाकारों को लेकर ‘पिपली लाइव’ तर्ज पर एक हिन्दी फिल्म बना रहे हैं। इनका कहना है छत्तीसगढ़ी फिल्म से ही मै पैदा हुआ हॅू, इसलिए इसे नहीं छोड़ सकता। दरअसल बाहर निकलना जरूरी था। आखिर कब तक कुंए में रहोगे। छत्तीसगढ़ी फिल्मों को सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा है। जहां दर्शक हैं, वहां टाॅकीज नहीं हैं,जहां टाॅकीज है, वहां दर्शक नहीं है। निर्माता आखिर कब तक अपने घर का पैसा लगायेगा। दीगर भाषाओं की फिल्मों के लिए 20 सेंटर एक साथ मिला जाते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ी फिल्मों के साथ ऐसा नहीं है। बुद्धिजीवी वर्ग छत्तीसगढ़ी फिल्म देखता नहीं और दूसरों को भी देखने से मना करता है। 50 दिन छत्तीसगढ़ी फिल्म के चलने पर ही पैसा वसूल होगा। लेकिन मुश्किल से 10 थियेटर में चलती हैं, वह भी एक सप्ताह चल जाए बहुत है। सरकार का जब तक सहयोग और सब्सिडी नहीं मिलेगी छाॅलीवुड डायलसिस पर रहेगा। यहां के कलाकारों मंे समर्पण की भावना है जिसकी वजह से छत्तीसगढ़ी फिल्में बन रही हैं। मेरी अगली फिल्म बक्शी जी के उपन्यास पर आधारित है। ’’भूलन कांदा‘‘। जिसमें चार गाने छत्तीसगढ़ी में और अन्य गाने हिन्दी में है। फिल्म में गांव का व्यक्ति शहर में आकर भीा छत्तीसगढ़ी भाषा बोलता है। गांव की मिट्टी का आदमी हूं,अपनी मिट्टी को कैसे भूल सकता हॅूं। ‘‘महूं दिवाना,तहूं दिवानी‘‘ फिल्म को यू ट्यूब पर दो लाख लोग देख चुके हैं। हर रोज मुझे 50 फोन आते हैं और फिल्म की बड़ी तारीफ करते हैं। इंटरनेट पर फिल्म देखी जाएगी तो उससे निर्माता निर्देशक को कुछ नहीं मिलेगा। लोग छविगृह जाएं और मनोरंजन करें‘‘।
फिल्म को दर्शक चाहिए
फिल्म निर्माता चन्द्रशेखर चैहान कहते हैं,‘‘ फिल्में बनाने मात्र से छाॅलीवुड का कल्याण नहीं होगा। जरूरी है कि उसे दर्शक मिलें। 16 साल से फिल्में बन रही हैं। जाहिर सी बात है कि फिल्में बनना बंद नहीं होगा, इसलिए कि लोगों में जुनून है। फिर भी छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रति लोगों में लगाव होना जरूरी है। दर्शकों के मनांेरजंन को ध्यान में रखकर जब तक फिल्में नहंीं बनेंगी वो टाॅकीज में ज्यादा दिन नहीं चलेंगी।   भोजपुरी,मराठी और बंगाली आदि भाषाओं में फिल्में बन रहीं हैं और चल भी रही हैं,इसलिए कि सरकार का उन्हें सहयोग मिल रहा है।
छत्तीसगढ़ी फिल्में माॅल में भी चलें
फिल्म अभिनेत्री तान्या तिवारी कहती हैं,छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए दर्शक के साथ सेंटर का अभाव है। पटकथा और निर्देशन अच्छा होने पर ही फिल्में चलती हैं। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के प्रचार प्रसार से अधिक जरूरी है इस भाषा का प्रचार। सरकार को चाहिए कि माॅल में चलने वाली फिल्मों के लिए ऐसी व्यवस्था करे कि चार शो में एक शो छत्तीसगढ़ी फिल्म का हो। फिल्में लगातार फ्लाप होती हैं तो माहौल पर असर पड़ता है। फिर भी लगातार फिल्में बनती रहेंगी तो सुधार होगा। छत्तीसगढ़ी फिल्मों में सबसे बड़ी खामी यह है कि भूमिका के अनुसार कलाकारों का चयन नहीं किया जाता। रूपए बचाने के चक्कर में नए कलाकारों को ले लिया जाता है। नए कलाकारों को यदि अवसर ही देना है तो उन्हें ऐसे कलाकारों के साथ काम करने का अवसर दें जिनके साथ वे अपने आप को समायोजित कर सकें और पात्र को पर्दे पर जीवंत बना सकें। नए कलाकारों को उम्दा तरीके से लाॅच किया जाना चाहिए। चैकानी वाली बात यह भी है कि जो निर्माता हैं वहीं फिल्म का हीरो भी बन जाता है। वह ही तय करता है कि फिल्म में कौन नायिका होगी और कौन कौन कलाकार। जबकि फिल्म की पटकथा के अनुसार कलाकारों का चयन होना चाहिए‘‘।

संस्कृति विभाग के निदेशक आशुतोष मिश्रा कहते हैं,‘‘छत्तीसगढ़ी फिल्में चलें और छाॅलीवुड ंिजंदा रहे, ऐसी सरकार की भी मंशा है। छत्तीसगढ़ी फिल्म विकास बोर्ड के लिए काफी काम हो चुके हैं। ड्राफ्ट आदि तैयार हो गया है। संस्कृति विभाग कलाकारों को प्रोत्साहन देते आया है। उम्मीद है आने वाले समय में और भी अच्छे काम इस दिशा में होेंगे और छाॅलीवुड से जुड़े कालाकारों को लाभ मिलेगा। हाल ही में सलहाकार समिति की बैठक बुलाई गई थी। विचार किया जा रहा है कि बोर्ड क्या काम करेगा। अगली बैठक में संभवतः कुछ ठोस नतीजे आने की उम्मीद है‘‘।
फिल्मों की सफलता के लिए आज बड़े बजट की फिल्म का टेंªड चल निकला है। ऐसा भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ी फिल्म के निर्माताओं ने भव्य फिल्में नहीं बनाई। लेकिन भव्य फिल्मों का टेंªंड ‘झन भूलो मां बाप ला‘‘ फिल्म से खत्म हो गया। छोटे बजट की फिल्मों का दौर आया। इस दौर में कुछ फिल्में चली तो फिर छोटे बजट की फिल्मों की बाढ़ आ गई। नतीजा दर्शकों ने नकारना शुरू कर दिया। फिल्म राजा छत्तीसगढ़िया,और मया को दर्शकांे का अच्छा प्यार मिला। लेकिन कम बजट की फिल्मों में उम्दा कलाकार और पटकथा लेखक अच्छे नहीं होने से फिल्में दम तोड़ने लगीं। जाहिर है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए आगे, अभी और कठिन डगर है।


Saturday, June 15, 2019

नहीं चलेगी बदलापुर की राजनीति: डाॅ रमन

 नहीं चलेगी बदलापुर की राजनीति: डाॅ रमन
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाॅ रमन सिंह कहते हैं कि बीजेपी की इतनी बड़ी जीत मोदी और राष्ट्र भक्तों की है। भूपेश बघेल राष्ट्रीय नेता बनने का ख्वाब देख रहे थे। जबकि वे अपने ही विधान सभा के बूथ को नहीं बचा सके। प्रदेश में बदलापुर की राजनीति नहीं चल सकती। कांग्रेस की झूठ में पड़कर जनता उसे विधान सभा में वोट कर दिया था,लेकिन लोकसभा में उसने राष्ट्रवाद को मजबूत करने वाली पार्टी बीजेपी को वोट किया। डाॅ रमन सिंह से    रमेश कुमार ‘‘रिपु’’      हुई बातचीत के प्रमुख अंश 

0 प्रदेश में बीजेपी की सरकार नहीं होने के बाद भी, कांग्रेससे अधिक सीट लोकसभा में बीजेपी को मिलने की वजह आप क्या मानते हैं।
00 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के झूठे वादे के चक्कर में पड़कर लोगों ने वोट दिया था लेकिन, ये अब भ्रम टूट गया है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में हमने यह विश्वास व्यक्त किया था की राज्य की जनता एग्जिट पोल से भी बेहतर समर्थन दे चुकी है और परिणाम आने पर यह बात सत्य साबित हुई है। एग्जिट पोल से ही यह संकेत मिल गए थे कि छत्तीसगढ़ सहित देश की जनता ने मोदी जी के नेतृत्व में स्वाभिमानी सरकार चुनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह भारत की जीत है। भारत के जनता की जीत है।
0 क्या भूपेश बघेल सरकार के बदलापुर राजनीति का भी कोई असर था?
00 बदलापुर की सरकार वाली मानसिकता छत्तीसगढ़ में नहीं चल सकती। देश नये युग में प्रवेश कर रहा है। नया इतिहास रचा गया है। यह दूसरा अवसर है जब किसी पार्टी को अपने बूते सरकार बनाने का अवसर जनता ने दिया। जनता झूठ के सब्ज बाग दिखाने वाली पार्टी को पसंद नहीं करती। कंाग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा था यदि हम सात सीट नहीं जीते तो हमें समीक्षा करना पड़ेगा। अब कांग्रेस को समीक्षा करनी चाहिए कि वे पांच महीने पहले विधान सभा में 68 सीट जीते थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा 66 विधान सभा सीटों में बढ़त कैसे बना ली।
0 भाजपा की इतनी बड़ी जीत को आप किस रूप में लेते  है।
00 बीजेपी की इतनी बड़ी जीत मोदी और राष्ट्र भक्तों की है। भूपेश बघेल प्रधान मंत्री को आइना भेजे थे। अब एक बार उस आइने में अपना चेहरा देख लें। प्रधान मंत्री को किये ट्वीट की भाषा देखिये, लिखा, अरे प्रधान मंत्री जी रिजल्ट का इंतजार कर लेते। अभी से झोला उठाकर चल दिये। झोला उठाकर जाने की जरूरत अब उन्हें है।
0 भूपेश बघेल इस चुनाव में कई स्थानों में कांग्रेस का प्रचार करके राष्ट्रीय नेता बन गये। कुछ कहेंगे।
00 हंसते हुए कहा, प्रदेश समेत देश के दूसरे हिस्से में जहां,जहां भूपेश बघेल के पांव पड़े, वहां कांग्रेस की लुटिया डूब गई। अमेठी में राहुल को जीता नहीं पाए। भोपाल में दिग्विजय के साथ भी यही हुआ। लखनऊ गए और वहां भी हार मिली। जबलपुर में भी कांग्रेस हार गई। छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ी हार दुर्ग से हुई, जो खुद सीएम का गढ़ है। भूपेश बघेल की अपनी बूथ में विधानसभा में कांग्रेस चुनाव हार गई। भूपेश बघेल राष्ट्रीय स्तर के नेता बनने का ख्वाव देख रहे थे। 5 महीने के इनके कार्यकाल को छत्तीसगढ़ की जनता ने नकार दिया है।
0 राज्य में प्रदेश के सांसदों की क्या भूमिका रहेगी।
00 राज्य के विकास के लिए छत्तीसगढ़ के सांसदों की अहम भूमिका होगी। उम्मीद है इतनी बड़ी जीत में यहां से किसी को मंत्री बनाया जा सकता है। उसका लाभ प्रदेश को मिलेगा। सांसद यहां के लिये नेशनल हाइवे और रेलवे के प्रोजेक्ट को स्वीकृत कराने का प्रयास करेंगे। ताकि प्रदेश को इसका लाभ मिल सके।

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‘हाथ’ में खिला ‘कमल’

   

   ‘हाथ’ में खिला ‘कमल
विधान सभा चुनाव में सियासत का सिंकदर बनकर उभरे भूपेश बघेल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों में हार का तंबुरा कैसे थमा दिये? क्या एसआइटी की चाबुक चलाने की सियासी प्रक्रिया जनता को पसंद नहीं आई। न्यूनतम आय गारंटी योजना को दरकिनार कर जनता ने कांग्रेस के हाथ में क्यों कमल खिला दिया? कांग्रेस की किसान कर्ज माफी रणनीति के बावजूद उसका वोट बैंक बढ़ा क्यों नहीं? ऐसे सवालों का जवाब ढूंढती यह रिपोर्ट।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                       ’’गढ़बो नया छत्तीसगढ़‘‘। यही नारा है भूपेश बघेल की सरकार का। सवाल यह है कि यह नारा आकार क्यों नहीं ले पाया लोकसभा चुनाव तक?लोकसभा चुनाव के चार महीने पहले 68 विधान सभा जीतने वाली कंाग्रेस 66 विधान सभा चुनाव कैसे हार गई? भूपेश सरकार का दावा है कि सत्ता में आने के दसवें दिन ही प्रदेश के 3 लाख 57 हजार किसानों के कर्ज माफ कर दिये गये। किसानों के खाते में 1248 करोड़ डालने के बाद भी आखिर कांग्रेस लोकसभा चुनाव में चारों खाने चित क्यों हो गई?भूपेश बधेल विधान सभा चुनाव में सियासत का सिंकदर बनकर उभरे थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेसियों के हाथों में हार का तंबुरा दे दिये। जबकि चुनाव से पहले सरकार का दावा था कि 11 सीट जीतेंगे। कांग्रेस के हाथ में जीत की लकीर आखिर भूपेश बघेल लोकसभा में क्यों नहीं बना सके। जबकि प्रदेश में उनकी सरकार है। चूक गये या धोखा खा गये। बड़े दांव का खिलाड़ी बनने का दावा तो ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंह देव भी किये थे। सी.एम बनने की चाह थी। चरणदास महंत भी इसी दौड़ में शामिल थे। वे एक नई रेस जीत गये हैं। टी.एस सिंह देव यहां तक कह दिये थे कि प्रदेश में कांग्रेस कम से कम सात सीट नहीं जीतती है तो,यह कांग्रेस की हार है। यह हार कांग्रेस की है या फिर भूपेश बघेल सरकार की अथवा कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं की? आखिर हारा कौन? भूपेश बघेल तो अभी तक नहीं कहे कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस हारी है। जबकि राहुल गांधी ने कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा की पेशकश भी की। यह अलग बात है कि उनका इस्तीफा कार्यसमिति मंजूर नहीं करेगी। लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा करके एक संदेश तो दे ही दिये क्षत्रपों को कि हार की जवाबदारी स्वीकार कर इस्तीफा दो। उनके सियासी संकेत को क्या कोई नहीं समझा?
नाराज किया किसने..
कांग्रेस की नाव सत्ताई समुंदर में है। हार का मंथन करती है तो विरोध का जहर ही निकलना है। और कांग्रेस के क्षत्रप नहीं चाहेंगें कि ऐसा हो। वजह सब जानते हंै। कांग्रेस की हर शाख पर कालिदास बैठे हैं। ऐसे में क्या यह मान लिया जाये कि कार्यकत्र्ताओं की नाराजगी से कांग्रेस हारी। गौरतलब है कि विधान सभा चुनाव भाजपा हारी थी तो पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक और डाॅ रमन सिंह ने हार का ठीकरा भाजपा कार्यकत्र्ताओं पर फोड़ा। इस बयान पर भाजपा दो फाक हो गई थी। सवाल यह है कि कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं को नाराज किया किसने। प्रदेश कांगे्रस प्रभारी पीएल पुनिया को यह जानना चाहिए। संगठन की कमान तो भूपेश बघेल के हाथ में है।
कांग्रेस के समक्ष यक्ष प्रश्न
कांग्रेस के समक्ष यक्ष प्रश्न है कि कार्यकत्र्ताओं को निगम मंडल के पद देने और अपने विधायकों को नाराज कर देने से पी.एल पुनिया नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव कांग्रेस को जीता लेंगे,या फिर भूपेश बघेल की सरकार? वैसे राजीव भवन में हर दिन एक मंत्री कार्यकत्र्ताओं के साथ बैठक कर जानने का प्रयास करेगें कि उनकी नाराजगी की वजह क्या है? वजह जानने से पहले निगम मंडल में उन्हें ओहदा देने की बात चांैकाती है। जबकि कांग्रेस को तो यह जानना चाहिए कि किसान उससे छिटका कैसे। जनता उसे नजर अंदाज क्यों की। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में जनता का रूख क्या लोकसभा जैसा है। यदि ऐसा है तो जाहिर है कि भूपेश बघेल सराकर से जनता नाराज है। और वो अपना जिला सरकार का दायित्व कांग्रेस को नहीं,भाजपा को दे सकती है।
भाजपा की जड़ हरी हुई
सियासी सवाल कई हैं, पर जवाब कांग्रेस के पास नहीं,भाजपा के पास है। जैसा कि भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाॅ रमन सिंह कहते हैं,‘‘बदलापुर की राजनीति प्रदेश में न चली है और न ही चलती है’’। भाजपा की जड़े लोकसभा चुनाव के परिणाम से एक बार फिर हरी हो गई’’। लोकसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस का वोट बैंक खिसक गया है। जबकि किसानों के दम पर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। किसानों के कर्जा माफी की घोषणा से कांग्रेस को लाभ तो मिला लेकिन, मोदी के राष्ट्रवाद ने भूपेश सरकार के काम काज की बखिया उधेड़ दी। जाहिर सी बात है कि भूपेश सरकार का काम काज जनता के अनुकूल नहीं था। सुर्खियों की राजनीति के लिए पूर्व सरकार के कामकाजों की जांच के लिए नई सरकार एसआइटी की चाबुक घूमाती रही। और जनता ने मोदी पर दांव लगा दिया। दरअसल भाजपा की चुनावी रणनीति पूरी तरह मोदी ब्रांड पर केन्द्रित थी। प्रदेश में डाॅ रमन सिंह ने भूपेश बघेल को मात दे दिये। अभी तक प्रदेश की जनता लोकसभा चुनाव में उसे ही वोट करती आई है जिसकी प्रदेश में सरकार रहती है। भूपेश बघेल आकलन इसी आधार पर कर रहे थे,और उन्हें भरोसा था कि कांग्रेस की हथेली में 11 नहीं तो दस सीट आ जायेगी। लेकिन इस बार इस ट्रेंड को जनता ने बदल दिया। भूपेश बघेल ही नहीं,डाॅ रमन सिंह को भी हैरत में जनता ने डाल दिया।  जबकि भूपेश बघेल की सरकार ने 15000 शिक्षकों,1345 सहायक प्रोफेसरों और 61 खेल अधिकारियों की भर्ती की भी घोषणा की,हालांकि राज्य की बेरोजगारी के अनुसार यह पर्याप्त नहीं है। इससे बेरोजगारी दूर नहीं होगी। जनता को यह एहसास कराने की पहल सरकार ने की कि जनता के लिए वो दरवाजे खोल रही है। पर भूपेश सरकार के जादुई पिटारे से जो निकला उससे जनता खुश नहीं हुई।
बढ़ सकता है सियासी घाटा
अब सामने जिला पंचायत और निकाय चुनाव हैं। कांग्रेस का वोट बैंक खिसक गया है। किसान नाराज है। किसानों का बिजली बिल आधा कर देने का दावा सरकार कर रही है, वहीं बस्तर,धमतरी और राजनांदगावं के किसानों को खाद नहीं मिल रही है। मुख्यमंत्री के समक्ष आने वाले समय में एक नहीं कई चुनौतियां हैं। बेरोजगारों को रोजगार और बेरोजगारी भत्ता भी। किसानों को खाद नहीं मिलने पर सवाल यह है कि सरकार किसानों को रिझायगी कैसे। वैसे भी किसान सरकार के कर्ज माफी की रणनीति से खुश नहीं है। दो लाख कर्ज माफ किया गया है, जबकि चुनाव से पहले कांग्रेस का कहना था कि सत्ता में आते ही दस दिनों में किसानों के सारे कर्जे माफ कर दिये जायेंगे। सत्ता मिली तो कर्ज की अवधि और सीमा सरकार तय कर दी। जाहिर सी बात है डाॅ रमन सिंह की सरकार ने किसानों के मूड को समझ नहीं सकी और भूपेश सरकार किसानों को रिझा नहीं सकी। जिससे कांग्रेस को राजनीतिक घाटा हुआ। सियासी घाटा बढ़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
ये तो सियासी बहाना है
लोकसभा चुनाव ने राजनीतिक समीकरण बिगाड़ दिया है। खासकर कांग्रेस का। कांगे्रस को अपनी दशा और राजनीतिक दिशा बदलनी होगी। दुर्ग लोकसभा उसके हाथ से छिटक जाना इस बात का संकेत है। इस जिले से मुख्यमंत्री और गृहमंत्री दोनों आते हैं। कांग्रेस बाजी जीतने में असफल हो गई। आखिर वजह क्या है? कांग्रेस के एक विधायक ने कहा कार्यकत्र्ताओं की नाराजगी की वजह से कांग्रेस को दो सीट लोकसभा में मिली। तर्क में दम नहीं है। चरणदास महंत यह कह सकते हैं। इसलिए कि कोरबा और कांकेर में तो ऐसा नहीं हुआ। हैरत वाली बात है कि दुर्ग में मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के बावजूद कार्यकत्र्ता नाराज क्यों हुए। क्या कांग्रेस सत्ता में आने के बाद अपने कार्यकत्र्ताओं को भूल गई। कांग्रेस का संगठनात्मक ढाचा ढीला हो गया। जबकि संगठन की कमान भूपेश बघेल के हाथ में रही। यदि इस बात से कांग्रेसी सहमत नहीं हैं तो, कांग्रेस विधान सभा चुनाव अपने कार्यकत्र्ताओं के दम पर नहीं जीती? जनता ने उसे डाॅ रमन सिंह सरकार की जगह एक मौका दिया है। पन्द्रह साल बहुत हो गया,बदलाव की चाह में सरकार बदली। लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार उसकी पहली प्राथमिकता रही इसलिए उसने बीजेपी को नौ सीट दे दी। कंाग्रेस वहां जीती जहां,उसके लिए जीत आसान थी।
शीर्ष नेतृत्व पर नजर
कांग्रेस के पंडाल में एक सियासी बाजीगर के रूप में चरणदास महंत उभरे। शीर्ष नेतृत्व में यदि परिवर्तन होता है,जिस तरह स्व.इंदिरा गांधी ने 1970 और 1977 में अपने सिपहसालारों को पार्टी का अध्यक्ष बनाया,राहुल गांधी भी वैसा कर सकते है। ऐसे में मुमकिन है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जा सकते हैं। यानी कांग्रेस में पंडाल में टकराव का चिमटा बजने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव भूपेश बघेल की राजनीति का भविष्य तय करेंगे। यदि इन चुनावों में भी हाथ में कमल खिल गया तो एक बात साफ है कि प्रदेश मंे कांग्रेस की राजनीति का भविष्य मोदी ही लिखेंगे। जैसा कि वे ममता बनर्जी को कह चुके हैं कि दीदी आपके 40 विधायक भाजपा के साथ हैं’’। बहरहाल कांग्रेस का नेतृत्व भाजपा की जड़ों के बीच है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पी.एल पुनिया भी शीर्ष नेतृत्व के निशाने पर है। पी.एल पुनिया यू.पी के प्रभारी रहते कांग्रेस को डूबा चुका हैं। प्रदेश मंे कांगे्रस की सरकार है,लेकिन पुनिया और भूपेश से वो सारे विधायक बायें चल रहे हैं जो मंत्री बनने की लाइन में थे। राजनीति हमेशा संभावनाओं पर चलती है। कांगे्रस में बगावत नई सियासत की कथा लिख सकती है।
 भूपेश पर संदेह
कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक जिन्हें मंत्री नहीं बनाया गया है,वे खासे नाराज हैं। सवाल करते हुए कहा, चुनाव से पहले भूपेश बघेल 11 सीट जीतने का दावा कर रहे थे। उनके समर्थक भी कह रहे थे कि किसानों का कर्जा माफ कर दिया गया है। धान की कीमत 2500 रूपये प्रति क्विंटल हो गया है। किसानों का बिजली बिल हाफ कर दिया गया है। इतना सब किया गया है तो फिर कांग्रेस को 11 सीटे मिली क्यों नहीं?यानी केवल मुंह से ही सब कुछ हुआ। यही वजह है कि जनता ने कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया। ऐसे में भूपेश बघेल को हार की जवाबदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए’’। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कहते हैं,’’प्रदेश की जनता ने नये भारत के निर्माण के लिए मोदी के हाथ को मजबूत किया। कांग्रेस केवल झूठ का गुब्बारा फूलाती रही। मोदी जी ने पांच सालों में गांव की गरीब महिलाएं,गरीब किसानों के लिए जितना किया,उतना कांग्रेस की सरकारों ने कभी नहंीं किया’’।
एक सच ऐसा भी
प्रदेश के करीब 34 लाख किसान हर साल लगभग 7 हजार कारोड़ कर्ज लेते हंै। 10 लाख किसानों पर अभी भी करीब 15 हजार करोड़ कर्ज बकाया है। 10 हजार करोड़ तो बीते दो साल का बकाया है। दरअसल फसल बीमा का लाभ किसी भी सरकार में किसानों को मिला नहीं। इसलिए किसान कर्जदार हुए। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 34 लाख किसानों में से करीब 1.51 लाख ने ही फसल बीमा कराया। इनमें से आधे राजनांदगांव जिले से हैं। बस्तर के 7 जिलों में से सुकमा, नारायणपुर और बीजापुर में दो.दो किसानों ने ही बीमा कराया। बस्तर में किसानों ने फसल बीमा नहीं कराया। बस्तर के किसानों ने चना, गेंहूं, अलसी, सरसों, तिवरा और आलू की फसल ली पर बीमा नहीं कराया। किसानों के साथ सरकार का रवैया हितकर नहीं है। यही वजह है कि राज्य में वर्ष 2015 से 30 जून 2017 तक कुल 11826 आत्महत्या के प्रकरण दर्ज किए गए हैं। जिसमें 1271 किसानों ने तथा 10,555 अन्य व्यक्तियों ने आत्महत्या की है। इस अवधि में राज्य के सूरजपुर जिले में 198 किसानों ने, बलौदाबाजार जिले में 181 किसानों ने, बालोद जिले में 170 किसानों ने, महासमुंद जिले में 153 किसानों ने तथा बलरामपुर जिले में 138 किसानों ने आत्महत्या की। किसानों की मांग है कि उन पर लगातार बढ़ते कर्ज का सरकारें उपाय करें। उनकी फसलों का उचित मूल्य मिले। किसानों पर लदे कर्ज माफ किए जाएं। किसानों की फसलों का बीमा हो और सिंचाई,बीज आदि की सुविधाएं को सुगम बनाया जाए।
कब कर्ज होगा माफ
दुर्ग के किसान संजय साहू कहते हैं हाथ में सत्ता आ जाये इसके लिए कांग्रेस ने किसानों के साथ छल किया। मध्य प्रदेश में 31 मार्च 2018 तक के किसानों के कर्जें माफ किए गए हैं, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में 30 नवंबर 2018 तक का कर्ज माफ किया गया है। कांग्रेस ने किसानो के साथ कर्ज माफी पर राजनीति कर गई। किसानों के सिर्फ अल्पकालीन कृषि ऋण ही माफ किये गये हैं। यह सिर्फ 6100 करोड़ रुपए का कर्ज है’’। दरअसल खेतों की जमीन की निराई,गुड़ाई जैसे काम के लिए किसान अल्पकालीन कर्ज लेता हैं। जो 20,30 हजार रुपये का होता है। दीर्घकालीन और फसल ऋण माफ नहीं किये गये। इसलिए कि दोनों तरह के कर्ज का दायरा कहीं ज्यादा बड़ा और गंभीर है। दीर्घकालीन कर्ज में किसान कृषि उपकरण, टैक्टर.ट्रॉली, हार्वेस्टर कल.पुजे आर्दि खरीदते हैं। जिसे 3 से 5 साल या उससे अधिक अवधि में चुकाना होता है। फसल कर्ज की अवधि बुवाई से कटाई तक की होती है। इसका इस्तेमाल बुवाई के दौरान बीज, फर्टिलाइजर, और दवा आदि खरीदने के लिए होता है। इस कर्ज की वसूली फसल बेचने के दौरान कर ली जाती है।
क्या चाहते हैं किसान
किसान अब मांग रहे कर रहे हैं कि कर्ज माफी मतलब पूरे कर्ज की माफी है। जिसमें दीर्घकालीन और फसल लोन भी शामिल हो। अधिकतर किसान कृषि लोन के मामले में ही डिफॉल्टर हैं क्योंकि कभी बारिश अधिक होने, तो कभी सूखा पड़ने से फसल को नुकसान होता है। जिससे कर्ज नहीं चुका पाते। चुनाव के समय कांग्रेस के घोषणा पर किसानों को भरोसा हुआ कि उनके सिर पर जो कर्ज है वह माफ हो जायेगा। लेकिन कांग्रेस ने कर्जमाफी के आदेश में नियम व शर्तें लगा दी। उससे किसान ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सरकार ने 16.50 लाख किसानों को 6100 करोड़ कर्ज माफ करने का वादा किया था। हुआ आधा भी नहीं। 3.57 लाख किसानों के खाते में 1248 करोड़ रुपये डाले गये हैं। किसानों के साथ कांग्रेस सरकार ने धोखा किया तो जनता ने कांग्रेस के साथ। उसका न केवल वोट बैंक खिसक गया बल्कि किसान नाराज हैं। कंाग्रेस की न्यूनतम गारंटी योजना को जनता ने कर्ज माफी योजना की तरह ही लिया। जबकि मोदी न किसानों को हर साल 6 हजार रूपये देने की घोषणा की। उसकी पहली किस्त यानी 2018 की चुनाव से पहले सबके खाते में आ गई। जाहिर सी बात है कि मोदी के दीर्घ अवधि के सुधार पर जनता ने भरोसा किया।



  


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Thursday, June 13, 2019

राख में दबी प्रदूषण की चिंगारी

      

 राख में दबी प्रदूषण की चिंगारी

  छत्तीसगढ़ में काला सोना की अधिकता के चलते बिजली सयंत्रों की बाढ़ आ गई है। बिजली घरों से हर साल दो करोड़ सात लाख मीट्रिक टन राखड़ निकलती है। 30 फीसदी भी इसका इस्तेमाल नहीं होता। निर्देशों के बावजूद फ्लाई ऐश के निबटान की कोई योजना नहीं है। जबकि इस प्रदूषण से टी.बी,अस्थमा,दमा जैसी गंभीर बीमारियों से जिन्दगी राख हो रही हैं। पाॅवर हब के चलते जिन्दगी के ढेर पर आ बैठी है। 
 0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
                      छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी कोरबा, को अब आम लोग राखधानी कहने लगे है। एक ओर यहां के लोग विकास की कीमत अदा कर रहे हैं,तो दूसरी ओर कोयला की वजह से यहां बिजली सयंत्र की बाढ़ आ गई है। यही स्थिति रायगढ़ और राजधानी रायपुर के सिलतरा की है। छोटे बड़े मिलाकर एक सैकड़ा के करीब बिजली सयंत्र है। लगभग जितनी भी स्टील फैक्ट्रियां है, सबके अपने अपने बिजली सयंत्र हैं। बिजली सयंत्र के आस पास जितने भी गांव हैं, वहां एक भी मवेशी स्वस्थ्य नहीं दिखेंगे। कोरबा के 30 वर्षीय अमर साहू कहते हैं,‘‘दो वर्ष दो गाय खरीद कर लाये थे। कुछ दिनों में उनकी गायें बीमार रहने लगीें। डाॅक्टरों से पता चला कि नदी,तालाब,का प्रदूषित पानी पीने से गायों के पेट में राख जमा हो रही है। कुछ दिनों बाद अमर की दोनों गायें मर गईं। यह तो जानवरों का हाल है। यहां के लेागों का हाल और भी बुरा है। बिजलीघरों से निकली कोयले की राख आसपास की नदियों और जलाशयों को बना रही जहरीली। इस प्रदूषण से टी.बी,अस्थमा,दमा जैसी गंभीर बीमारियों से जिन्दगी राख हो रही हैं।   फिर भी सरकार में बैठे जवाबदार लोग समस्या को नजर अंदाज कर रहे हैं। निर्देशों के बावजूद फ्लाई ऐश के निबटान की कोई योजना नहीं। छत्तीसगढ़ में बढ़ते उद्योगों की वजह से जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण को लेकर सरकार पर जब दबाव बढ़ा तो वर्ष 2012 में उद्योग व पर्यावरण मंत्री राजेश मूणत विधान सभा में कहा, प्रदेश में उद्योगों से निकलने वाले फ्लाई ऐश के उपयोग के लिए सरकार कार्य योजना बना रही है। ताकि लोगों को प्रदूषण में राहत मिल सके’’। लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था आज तक नहीं हो सकी।
हर दसवां व्यक्ति राख से पीड़ित
एसीबी इंडिया लि.कंपनी पावर प्लांट चाकाबुरा गांव में स्थित है। इस बिजली संयत्र से करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर राख का ढेर है। आस पास बस्तियां हैं। खेत हैं। राख के ढेर को दबाने के लिए मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। ताकि गिर कर फैले नहीं। लेकिन हवा चलती है तो राख उढ़ के घरों के अंदर और आंगन में बिछ जाती हैं। फूलझड़,रंजना,तिवरता और चैतमा गांव तक राखड़ का प्रतिकूल असर दिखाई देता है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहते है कि कोरबा और रायगढ़ सबसे अधिक प्रदूषित शहर हंै। प्रदूषण रोकने के लिए जो मापदंड तय हैं, उसे अमल में नहीं लाया जाता है। जाहिर सी बात है कि सिस्टम फेल हो गया है। कोरबा,जांजगीर,रायगढ़ में फ्लाई ऐश की वजह से राख हो रही है जिन्दगी। पाॅवर की अंधी दौड़ लोगों के फेफड़ों को खोखला कर रही है‘‘। बिजली घर के जहरीले राख के कण टीबी का कहर बनकर टूटे हैं। यही वजह है कि कोरबा और रायगढ़ में हर दसवा व्यक्ति राख के प्रदूषण का शिकार है।
कोरबा में कहर
कोरबा के पुरेनाखार गांव के पांचवी के छात्र विनय कहते हैं, पावर प्लांट से निकलने वाली राख से उसे बुखार होता है। गांव का पानी खराब हो गया है। सांस लेने में तकलीफ होती है। यहां तक कि खाने में भी राखड़ ही होता है। विनय की थाली में मौजूद राख उस 2.7 करोड़ टन राख का महज एक चुटकी भर ही है, जो साल भर में कोरबा में मौजूद बड़े 14 ताप बिजलीघर पैदा करते हैं। कटघोरा ब्लॉक का पुरेनाखार एनटीपीसी और छत्तीसगढ़ पावर की ऐश डाइक से एकदम सटा हुआ गांव है। ऐश डाइक से बमुश्किल 200 मीटर दूर मौजूद गांव के प्राइमरी स्कूल की प्रभारी प्रिसिंपल भुनेश्वरी देवी बताती हैं।र्राख की वजह से यहां के लोगों खासकर बच्चों में पेट दर्द, खांसी और चमड़ी से संबंधित कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। पिछले 7 साल से पढ़ाने आने की वजह से मैं भी कई बीमारियों का शिकार हो गयी हूं। इस उडन राख ने इलाके की खेती भी चैपट कर दी है। सीपीसीबी(केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड) के आंकड़े बताते हैं कि कोरबा देश के पांच सबसे प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्रों में शामिल हैं। पर्यावरण मंत्रालय की 2014.15 की सालाना रिपोर्ट में भी कोरबा को देश में तीसरा सबसे नाजुक रूप से प्रदूषित क्षेत्र बताया गया है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे दिनेश कुशवाहा कहते हैं, यहां राख के तालाब देखकर लोगों को हैरानी हो सकती है। पर यहां जिन्दगी मुश्किल हो गई है।
राख के पहाड़
कोरबा से गेवरा,लक्ष्मणपुर,कुसुमुडा या फिर दीपिका जाने के रास्ते में राख के पहाड़ पड़ते हैं। ये ऐसे पहाड़ हैं कि बारिश के पानी में घुल कर नदी नाले से होते हुए खेतों तक पहुंचते हैं। राखड़ की इतनी अधिकता है कि आस पास के खेतों पर भी इसका असर पड़ा है। खेतों की उर्वरक क्षमता मर गई है। नियम तो कहता है कि जहां भी कोयला की राख फेंकी जाए वहां वृक्षारोपड़ किए जाएं। लेकिन ऐसा कहीं भी नहीं है। केवल बोर्ड जगह जगह लगाए गए हैं। फ्लाई ऐश से बने पहाड़ों में वृक्षारोपण नहीं किया गया है। कोरबा रेल्वे स्टेशन से रेल्वे फाटक तक आने के बाद दीपिका नगर पंचायत तक जाने के रास्ते में यानी दस किलोमीटर तक किनारे किनारे कोयले की राख के पहाड़ हैं। कोरबा हो या फिर रायगढ़ दोनों जिलों में बिजली सयंत्रों के आस पास कोयला की राख कई सवाल खड़े करती है कि क्या प्रदूषण विभाग और पर्यावरण कानून भी राख के पहाड़ की ढेर में कहीं दब गया है? इसलिए कि हर बिजली सयंत्र के पास राखड़ का ढेर है। एसीबी इंडिया लि.कंपनी के जनरल मैनेजर संजय मालवीय कहते हैं,‘‘ हमारे बिजली सयंत्र में कोयला के जलने पर प्रदूषण न फैले इसकी व्यवस्था है। चिमनी से काला धुुंआ नहीं निकलता है। इलेक्ट्रो स्टेटिक प्रैसिपिटेटर की व्यवस्था है। राख के निष्पादन के सवाल पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
कानून को ठेंगा
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 5 फरवरी 2014 को एक आदेश जारी किया था कि 17 प्रकार के प्रदूषणकारी उद्योगों में प्रदूषण को नियंत्रित एवं निगरानी करने के लिए 31 मार्च 2015 तक आॅनलाइन स्टैक इमिशन सिस्टम स्थापित कर लें। लेकिन जिले में मात्र 46 और प्रदेश में 133 औद्योगिक संस्थानों ने ही यह सिस्टम लगाया है। प्रदेश के 563 संस्थानों ने इसे नहीं लगाया। दरअसल इस सिस्टम के जरिए उद्योगों में चिमनी से निकलने वाले धुंए आदि राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सर्वर पर आॅनलाइन करना था। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अनुसार 17 प्रकार के उद्योग हैं जो प्रदूषण फैलाते हैं। मसलन स्टील प्लांट,पाॅवर प्लांट,सीमेंट प्लांट,डाईइंटरमीडिएट,पेस्टीसाइड,पेट्रोकेमिकल,बड़े विद्युत संयंत्र,जिंक, कापर, पेपर पलंट, आॅयल रिफायनरी, डिस्टलरी,शक्कर,चमड़ा आदि उद्योग। इन उद्योगों में आॅन लाइन स्टैक मानीटरिंग तथा एम्बीएंट एयर क्वालिटी मानीटरिंग सिस्टम लगाया जाना था। प्रदेश में 188 ऐसे उद्योग हैं जहां से खतरनाक कचरा प्रतिदिन लगभग 54900 टन निकलता है।
तीस फीसदी राख का उपयोग
एक चैकाने वाली बात है कि प्रदेश के बिजली घरों से दो करोड़ सात लाख मीट्रिक टन राखड़ निकलती है। लेकिन मात्र 30 फीसदी राख का ही इस्तेमाल होना शुरू हुआ है। जबकि पश्चिम बंगाल में 80 फीसदी राखड़ का उपयोग होता है। महाराष्ट्र में 60 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी फ्लाई ऐश का इस्तेमाल होता है। जाहिर सी बात है कि अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में राखड़ की मांग कम है। बीते साल में 25 लाख 42 हजार मीट्रिक टन राखड़ सीमेंट फैक्ट्रियों में इस्तेमाल हुआ। एसीबी इंडिया लि.बिजली सयंत्र में 270 मेगावाट बिजली पैदा होती है। इस सयंत्र से हर दिन 220 ट्रक कोयले की राख निकलती है। जाहिर सी बात है कि प्रदेश की 35 अन्य बड़े बिजली सयंत्र से निकलनी वाली राखड़ हर वर्ष कुल 22 मिलियन टन से अधिक होती है। जबकि नियमानुसार शत प्रतिशत राखड़ का निष्पादन की शर्त पर ही बिजली कंपनी को क्लियरेंस मिलता है। राखड़ को कोयले की खाली खदानों में भरने का प्रावधान है। रायगढ़ और कोरबा की खदानों में पहले रेत भरने का टेंडर हुआ करता था,अब बंद हो गया है। फ्लाई ऐश दो तरह की होती है। मोटी राखड़ से तालाब या फिर गडढ्े भरे जाते है। चिकनी राख ईंट बनाने और सड़क निर्माण के काम में लायी जाती हैं। कोयला उत्पादन कंपनी एसईसीएल और बिजली उत्पादन कंपनी एनटीपीसी पर फ्लाई ऐश के उपयोग और उसके निष्पादन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। एनजीटी राज्य सरकार को राख के मामले में कई बार फटकार लगा चुकी है। क्यों कि प्रदेश में बिजली सयंत्रों से निकलने वाली 14 मिलियन टन राखड़ का उपयोग नहीं होता। 
खेतों को नुकसान
कृषि वैज्ञानिक डाॅ. के.के.साहू कहते हैं,फ्लाई ऐश का डिस्पोजल नहीं होने के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा कोयले की राख की वजह से पौधे के स्टोमेटा ढंक जाते हैं। इससे उसका श्वसन तंत्र कमजोर होने की स्थिति मंे पौधों की वृद्धि रूक जाती है। राखड़ मिट्टी की पोरोसिटी को भी कम कर देती। रायगढ़ जिले के खरसियां क्षेत्र में कारखानों से निकले अपशिष्ट एवं फ्लाई ऐश की वजह खेतांे की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। खरसियां शहर के छपरीजंग स्थित नवीन स्कूल के पीछे शासकीय और वन भूमि में अवैध रूप से स्थानीय कारखानों से निकले अपशिष्ट एवं फ्लाई एश को अवैध रूप से डंप किया जा रहा है। 
एक दर्द आदिवासियों का
कोरबा हो या फिर रायगढ़ जिला के आदिवासियों को उद्योगपतियों ने नौकरी देने का सब्ज बाग दिखाकर उनकी जमीनें ले लीं। अच्छे दिन की चाह में आदिवासियों ने अपनी जमीनें कंपनियों को दे दी लेकिन, बदले में कंपनियों उन्हें नौकरियां दी नहीं। एसीबी इंडिया लि. कंपनी को अपनी दस एकड़ जमीन देने वाले भारत यादव,रामेश्वर यादव का परिवार कहता है,,चपरासी अथवा साफ सफाई करने की नौकरी देकर ठग लिया गया है। ऐसा यहां सभी पाॅवर प्लांट के मालिकों ने किया है। सस्ते में जमीन दे दी। कईयों का मामला कोर्ट में चल रहा है। कहीं जा नहीं सकते इसलिए पाॅवर प्लंाट के पास अपनी जमीन पर घर बना लिए। लेकिन कंपनियां अपनी पाॅवर प्लांट की राख को घर के पास डंप कर रही हैं। जिससे जीना मुहाल हो गया है‘‘। मनोज सिंह ठेकेदार के अंडर में काम करते हैं। इन्द्रजाल,विजय गोंड,फूलबाई और सविता गांेड को झाडूं पोंछा का काम मिला है, जो कि नौकरी से निकाल देने के लिए धमकाता रहता है। कुसमुंडा खदान के पासवाले पालविया गाँव के लोग विस्थापन के विरोध की लड़ाई अभी भी लड़ रहे हैं। यहां के लोगों ने बताया कि पिछले डेढ़ दशक में इन खदानों के लिए लोगों को 3-4 बार विस्थापित किया जा चुका है लेकिन उसका उचित मुआवजा अब तक नहीं मिला है।
कोयला उत्पादन में छग प्रथम
प्रदेश में 52 खदानें एसईसीएल की है। कुसमुंडा कोयला खदान 2,382 हेक्टेयर तक फैला हुआ है।   कोरबा में गेवरा माइंस,लक्ष्मणपुर,दीपिका में खुली खदानें है। जबकि बाकी मोगरा, सुरा कक्षार, डेलवारीह, बलगी औरबगदेवा में अंडर ग्राउंड खदानें हैं। सबसे बड़ी गेवरा मांइस हैं। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने 2020 तक कोयले के उत्पादन को दोगुना करने का आदेश दे रखा है। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ में कोयले का उत्पादन बढ़ेगा। एक अनुमान के अनुसार यहां 52 हजार मिलियन टन से भी अधिक कोयले का भंडार है। कोरबा में 10 भूमिगत खदान हैं और दो खुली खदान है। कुसमंुडा,गेवरा,दीपिका में एक-एक खुली खदान है। रायगढ़ में एक भूमिगत खदान है और 3 खुली खदान है। 2017-18 में भूमिगत खदान से 17.086 मिलियन टन और खुली खदान से 114.239 मिलियन टन कोयला का उत्पादन हुआ। गेवरा क्षेत्र साऊथ ईस्टर्न कोलफिल्डस का सर्वाधिक कोयला उत्पादन करने वाला क्षेत्र है। गेवरा परियोजना में विश्व की आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस परियोजना में वर्ष 2017-18 में 46 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ था। 
श्वसन सबंधी बीमारियां बढ़ रही
अंबेडकर अस्पताल के श्वसन विशेषज्ञ डाॅ रविन्द्र पंडा कहते हैं,‘‘फैक्ट्री से निकलने वाला गंदा पानी, धुंआं, राखड़ और कैमिकल सीधे जल स्त्रोत को प्रभावित करते हैं। कई जगह भूमिगत संक्रमित जल में लेड की मात्रा भी पाई गई है। जल में मैग्नीशियम व सल्फेट की अधिकता से आंतों में जलन पैदा होती है। नाइट्रेट की अधिकता से बच्चों में मेटाहीमोग्लाबिनेमिया नामक बीमारी हो जाती है तथा आंतों में पहुंचकर नाइट्रोसोएमीन में बदलकर पेट का केंसर उत्पन्न कर देता है। फ्लोरीन की अधिकता से फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है। प्रदूषित गैस कार्बन डाइअॅाक्साइड तथा सल्फर डाइआॅक्साइड जल में घुसकर जलस्रोत को अम्लीय बना देते हैं। फ्लाईऐश के कण पार्टीकुलेट मैटर के रूप में हवा तैरते हैं। इन अति सूक्ष्म कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है। इसलिए उन्हें पी.एम 2.5 कहा जाता है। जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर से कम होता है उन्हें पीएम 10 कहा जाता है। फलाईऐश के कणों का पी.एम 2.5 स्तर का 60 से अधिक होने पर ये सूक्ष्म कण आसानी से सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और खून में आॅक्सीजन की मात्रा कम कर देते हैं। सर्दी के मौसम में ब्रोंकाइटिस की आशंका अधिक रहती है। दमा बढ़ जाता है।  पाॅवर प्लांट के करीब 400 किलोमीटर के दायरे में विसर्जित फलाई ऐश में 2.5 माइक्रो ग्राम से भी कम व्यास वाले पर्टिकुलेट मैटर,सल्फर डाइआॅक्साइड, नाइट्रोजन आॅक्साइड, कार्बन मोनो आॅक्साइड कार्बन यौगिक वातावरण में जहर घोल का काम करते हैं। इससे सांस लेने में तकलीफ होती है। इस वजह से श्वसन संबंधी बीमारियां होती है। आंकड़ों के मुताबिक बीते 5 साल में राखड़ प्रभावित 10 ब्लॉकों के 14 हजार से ज्यादा लोगों में जांच के दौरान टीबी के लक्षण पाए गए।
राखड़ में खतरनाक रेडिऐशन
एनजीटी में राखड़ निष्पादन के मुद्दे पर याचिका डालने वाले लक्ष्मी चैहान कहते हैं, कोयला परिवहन के लिए प्रस्तावित रेल काॅरिडोर के तहत कोरबा और रायगढ़ में उत्सर्जित राखड़ के उपयोग को भी सुनिश्चत किया जाए। लक्ष्मी चैहान के अनुसार 3000 से 4000 एकड़ जमीन तक फ्लाई ऐश फैला पड़ा है। जिससे वातावरण विषेला हो गया है। पावर प्लांट कोयला की राख को देंगुर नाला में बहा देते हैं। यह नाला हसदेव नदी से मिलता है। फ्लाई ऐश की वजह से कई प्रकार की मछलियां जैसे मोंगराई, कोटराई, गोराई, नौरी, देवा, सिअर, झोरी, चिन्ना व पुथी अब नहीं दिखती। सिर्फ जल ही नहीं कोरबा की हवा भी प्रदूषित हो गई हैं। 
कोरबा की तरह रायगढ जिला की भी स्थिति है। ज्यादातर कोयला खदान वन क्षेत्र में है। इस वजह से 40 फीसदी वन घट गया है। खेतो में हरियाली की जगह कोयले की राख जमी हुई है। यहां कई स्थानों से निकलने वाली राख इतना ज्यादा है कि जगह जगह टीले बन गए है। जिले में करीब 31 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती हुआ करती थी। लेकिन राख की वजह से अब किसानों की उस जमीन पर राखड़ डंप किया जा रहा है जो इन्हें पट्टे पर मिली हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार य.ूपी, महाराष्ट, पश्चिम बंगाल के मुकाबले छत्तीसगढ़ राख छोड़ने में सबको पीछे छोड़ दिया है।