Monday, October 2, 2023

कांग्रेस की जमीन खिसकाने गुजरात रणनीति

"कांग्रेस कह रही है बीजेपी के सियासी गोदाम में जीताऊ उम्मीदवार नहीं हैं,इसलिए वह सांसद और केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव लड़ा रही है। जबकि बीजेपी हाईकमान ने एंटीइन्कम्बेसी को कम करने ऐसा कर रही है। जैसा कि गुजरात में किया था। मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों की टिकट काट दिये गये थे, और 156 सीटें जीती थी। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ चुनाव में टिकट किसी एक को मिलेगा। जीतेगा एक पक्ष, बाकी हारेंगे ही। हर पार्टी की टिकट देने की अपनी -अपनी रणनाीति है। मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने जा रहे चुनाव में बीजेपी अपना चोला बदल रही है। रणनीति बदल दी है।उसका अपना- अपना एजेंडा हैं। होना भी चाहिए। सांसदों को टिकट दिया गया है। केन्द्रीय मंत्रियों को टिकट दिया गया है। हो सकता है कई मंत्री और विधायकों को टिकट न भी मिले। अभी तक मध्यप्रदेश की जारी 78 उम्मीदवारों की सूची में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं है। इसके पीछे पार्टी की अपनी सियासी वजह है। यह माना जा रहा है,तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री रहे चेहरे को पार्टी टिकट नहीं देगी। डरी हुई है बीजेपी - कांग्रेस भगवा छत्तरी के नीचे क्या हो रहा है, उसे लेकर कांग्रेस खेमें खलबली है। मध्यप्रदेश में बीजेपी की दूसरी सूची जारी होने पर विपक्ष आकलन करना शुरू कर दिया। करना भी चाहिए। लेकिन जिस तरह वह प्रचार कर रहा है। वह हैरानी वाला है। कांग्रेस कह रही है,कि बीजेपी डरी हुई है। इसीलिए उसने तीन केन्द्रीय मंत्रियों सहित चार सांसदों को टिकट दिया है। क्या विपक्ष के प्रचार का सच यही है,या फिर मोदी की रणनीति कुछ और है? केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव बीजेपी हाईकमान लड़ा रहा है,तो इसके पीछे वजह भी है। पहला यह कि चार बार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी की 18 साल की सत्ता के एंटीइन्कम्बैसी की तपिश कम करने के लिए मोदी ने ऐसा किया है। दूसरा शिवराज सिंह चौहान को अप्रत्यक्ष रूप से यह बता दिया गया कि सी.एम की कुर्सी के स्वयंवर के लिए हमने उम्मीदवार उतार दिये हैं। जो जीत कर आएगा,उन्ही में से किसी को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी। बड़े नेताओं का दम.. केन्द्रीय गृहमंत्री प्रहलाद पटेल पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ेंगे। कैलाश विजयवर्गीय बीजेपी महासचिव हैं । दस साल बाद मध्यप्रदेश की सियासत का स्वाद चखेंगे। इनका कहना है, कि लड़ने की इच्छा नहीं थी। अब बड़े नेता हो गए हैं। कहां हाथ जोड़ने जाएंगे। फग्गन सिंह कुलस्ते छह बार लोकसभा और एक दफा राज्य सभा सांसद रह चुके हैं। तैंतीस साल बाद विधान सभा चुनाव लड़ेंगे। मंडला सीट से सांसद हैं । मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर मुरैना सीट से सांसद है। तीन दफा लोकसभा सांसद रह चुके हैं। दो बार विधायक भी। चुनाव प्रबंधन समिति के अघ्यक्ष हैं । जबलपुर के सांसद राकेश सिंह,सीधी की सांसद रीति पाठक,सतना सांसद गणेश सिंह और होशंगाबाद सांसद उदय प्रताप सिंह। बड़े नेताओ के दम पर बीजेपी चुनाव जीतना चाहती है। गुजरात माॅडल एम.पी.में.. ऐसा लगता है बीजेपी हाईकमान कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की चुनाव हार के बाद गुजरात माॅडल पर चुनाव लड़ना चाहती है।जैसा कि 2021 में गुजरात की सी.एम. विजय रूपणी सहित सभी मंत्रियों का टिकट काट दिया गया था। पहली बार भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया था और 156 सीटें बीजेपी जीती थी। वही सियासी रणनीति मोदी मध्यप्रदेश में भी अपना रहे है। यानी आने वाले सूची में कई मंत्रियों के टिकट कट सकते हैं। कई विधायकों को भी। शिवराज की घेराबंदी... कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रियों और अफसरों से बड़े बुझे मन से थैक्यू वेरी मच कहा। बात साफ है, कि पार्टी हाईकमान शिवराज सिंह चौहान को टिकट नहीं देना चाहती। मोदी ने शिवराज सिंह चौहान की एक तरीके से घेराबंदी की है। तीन केन्द्रीय मंत्री और चार सांसदों को टिकट देकर। मोदी की गुडबुक में शिवराज का नाम नहीं है। शिवराज को यह तभी समझ लेना चाहिए था,जब व्यापम मामले में उन्हें उनके खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश मोदी ने दिये थे। बहरहाल इन केन्द्रीय मंत्रियों के समक्ष भी बड़ी चुनौती है और उन्हें अपना सियासी दम दिखाना है, कि वो पार्टी के केवल बड़े नेता ही नहीं हैं,बल्कि जनता के बीच भी अपना दमखम रखते है। बीजेपी में दूसरी सूची में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम नही होने का मतलब है कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेरना। जैसा कि हाई कमान ने 2018 में कर्नाटक में बी.एस येदियुरप्पा को शिकारीपुरा से चुनाव लड़ाया था और बी श्रीरामुलु को मोलाकमुरू से, दोनो जीत गए थे। यानी एंटीइनकम्बेसी को कम करना है,तो नए उम्मीदवार उतार दो। पुराने चहेरे देख- देख कर जनता ऊब जाती है। टिकट वितरण में तब्दीली... मध्यप्रदेश में अभी तक 35 बीजेपी के बड़े नेता और पूर्व विधायक बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस कह रही है बीजेपी के सियासी गोदाम में जीताऊ उम्मीदवार नहीं हैं,इसलिए वह सांसद और केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव लड़ा रही है। क्यों कि उसे शिवराज पर अब भरोसा नहीं रहा। सवाल यह है कि केन्द्रीय मंत्री और सांसदों का विधान सभा का चुनाव लड़ने पर इसे सियासी प्रमोशन कहें या फिर डिमोशन। यह ताज्जुब वाली बात है कि बीजेपी केन्द्र के लिए अपनी पार्टी का चेहरा बताती है, मगर राज्य के चुनाव के लिए नहीं। 2018 के चुनाव में जनआर्शीवाद यात्रा में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने प्रमोट किया था,लेकिन 2023 केे चुनाव में नहीं। हिमाचल प्रदेश में काग्रेस ने अपनी सियासी रणनीति बदली थी। जो अपने क्षेत्र में चर्चित हैं। अपने क्षेत्र के क्षत्रप हैं। उन्हें टिकट दिया। बीजेपी भी इस बार ऐसा ही करती दिख रही है। रक्षात्मक मुद्रा में बीजेपी.. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी रक्षात्मक मुद्रा में है। क्यों कि तीन माह पहले तक बीजेपी की स्थिति जैसी थी, वैसी अब नहीं है। पार्टी यह मानकर चल रहा है,कि उसका वोट बिखर नहीं रहा है। केवल प्रत्याशी की नाराजगी है। क्यों न प्रत्याशी बदल दिए जाएं। यह सियासी प्रयोग गुजरात की तरह सफल भी हो सकता है। जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने छत्तीसगढ़,में पूरी ग्यारह सीट पर उम्मीदवार बदल दी थी। दस सीट जीती थी। यही मध्यप्रदेश और राजस्थान में हुआ। राजस्थान में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली और मध्यप्रदेश में सिर्फ एक सीट मिली। तो कांग्रेस को नुकसान... बीजेपी डरी है,यदि कांग्रेस यह सोच रही है, तो उसे नुकसान हो सकता है। बीजेपी में हलचल है,ऐसा कांग्रेस सोच सकती है। बीजेपी की नई रणनीति के तहत कांग्रेस को काऊंटर सोच विकसित करनी पड़ेगी। वहीं सांसद का चुनाव उम्मीदवार मोदी लहर में जीत गए, लेकिन विधान सभा चुनाव में मेहनत करनी पड़ेगी। सवाल यह है कि मोदी ने मास्टर स्ट्रोक खेला है या फिर सियासी प्रयोग किया है। वैसे मोदी भोपाल हो या फिर अन्य राज्यों में अपने एक घंटे के भाषण में पैतालीस मिनट कांग्रेस को कोसते है। सच यह है,कि मोदी कांग्रेस को कोस- कोस कर उसे खड़ा कर दिये हैं।