कांग्रेस
के अध्यक्ष पद का नामांकन गहलोत ने भरा नहीं। सी.एम. पद से इस्तीफा भी
नहीं दिया। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने नये सी.एम.के चुनाव के लिए
पर्यवेक्षक भेजकर गलती कर दिया। गहलोत समर्थक विधायकों ने अपनी सियासी ताकत
की नुमाइश कर गांधी परिवार को संदेश दिया, कि राजस्थान में गहलोत ही सरकार
हैं। गहलोत ही कांग्रेस हैं।
0 रमेश कुमार 'रिपु'
एक
बार फिर राजस्थान में कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है। दो साल पहले भी यही
स्थिति थी। जब सचिन पायलट ने बगावत की थी। उस वक्त गहलोत सरकार धड़ाम होने
से बच गई थी। वही खेल एक बार फिर खेला जा रहा है। मगर इस बार खिलाड़ी बदल
गये हैं। कांग्रेसी पंडाल में सी. एम.की कुर्सी के लिए जोर आजमाइश का
सियासी शो चल रहा है। गहलोत की पसंद सचिन पायलट नहीं हैं,जबकि आलाकमान
चाहता है,सचिन ही राजस्थान के सी. एम.बनें। गहलोत के समर्थित विधायकों कहना
है कांग्रेस के गद्दार को पुरस्कार आलाकमान क्यों देना चाहता है? कांग्रेस
के 102 विधायकों में किसी को भी मुख्यमंत्री बना दिया जाए,हमें स्वीकार
है। लेकिन गांधी परिवार विधायकों की बातें सुनने को तैयार नहीं है।
विधायकों की नाराजगी को आलाकमान बगावत मानता है। देखा जाए तो राजस्थान में
सियासी बवाल आलाकमान की अदूरदर्शिता की वजह से हुआ है। तीन दिनों से
राजस्थान कांग्रेस की सियासी घटना सुर्खियों में है।
अभी
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा नहीं गया और
राजस्थान में नया मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने पर्यवेक्षक
भेज दिया। इस मामले में गहलोत से पूछा तक नहीं कि वे कब अध्यक्ष के लिए
नामांकन दाखिल कर रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस अध्यक्ष का परिणाम आने में
करीब तीन हफ्ते है। राजस्थान में क्या हो सकता है हाईकमान नहीं समझ सका,तो
यह एक बड़ी चूक है। यदि सोच समझ कर हाई कमान ने कदम उठाया है तो यह एक बड़ा
दांव है। क्यों कि राजस्थान में बीजेपी की सीट में बहुत ज्यादा अंतर नहीं
है। बीजेपी के 71 विधायक हैं। बीजेपी की नजर कांग्रेस के घटना क्रम पर है।
वो चाहती ही है,कांग्रेस में बगावत हो और विधायक टूटें। और वे लपक लें।
हैरानी वाली बात है,कि पर्यवेक्षकों को भी इतनी जल्दी क्यों थी,नया
सी.एम.का चुनाव कराने की? कांग्रेस के हाथ में दो राज्य हैं। राजस्थान की
तरह छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री पद के लिए भूपेश और टी.एस.सिंहदेव में
खटास है। राजस्थान में इतनी बड़ी अस्थिरता खतरनाक है। इसका असर छत्तीसगढ़ में
भी पड़ सकता है।
राजस्थान
में कांग्रेस के कुल 108 विधायक हैं। जिसमें से गहलोत समर्थक करीब 85
विधायकों ने गांधी परिवार के फैसले के खिलाफ विधान सभा अध्यक्ष सी.पी.जोशी
को इस्तीफा दे दिये हैं। गहलोत समर्थक विधायकों ने अपनी सियासी ताकत की
नुमाइश कर गांधी परिवार को संदेश दिया, कि राजस्थान में गहलोत ही सरकार
हैं। गहलोत ही कांग्रेस हैं। वे सीधे-सीधे दस जनपथ को चुनौती दे दिये हैं।
पर्यवेक्षक अजय माकन की नजर में यह अनुशासनहीनता है। अनुशासनहीनता कहने की
नौबत आ गई तो जाहिर है इसके बड़े खतरे हैं। गहलोत ने यह कहकर पल्ला झाड़
लिया,कि राजस्थान में जो कुछ हो रहा है,वो मेरे बस में नहीं है। जो कुछ कर
रहे हैं वो विधायक कर रहे हैं।
कांग्रेस
के देेह गोवा में कुछ दिनों पहले ही कट चुकी है। आपसी झगड़े की तपिश में
पंजाब में कांग्रेस झुलस चुकी है। जैसा कि शांती धारीवाल ने कहा,कुछ लोगों
की चाल है,वे चाहते हैं पंजाब की तरह राजस्थान से भी कांग्रेस चली जाए।
इससे
इंकार नहीं है कि गांधी परिवार के खिलाफ अदावत के लिए विधायक मोहरा
हैं,जबकि पीछे गहलोत का चेहरा है। कल तक अशोक गहलोत को जो सियासत का जादूगर
कहते थे,अब उनके लिए इस जादूगर का जादू खलने लगा है।
सोनिया
और राहुल गांधीे कल तक गहलोत पर विश्वास पात्र और भरोसा का दम भरते थे,
उनके भरोसे को वो बेदम कर दिए। दस जनपथ उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष
शायद ही बनाए। हो सकता है उन्हें मुख्यमंत्री पद से भी हटा दे। गेम प्लान
करने वाले के खिलाफ दस जनपथ कौन सा गेम खेलता है,सब की नज़र है।
सोनिया
गांधी नहीं चाहेंगी कि पंजाब की तरह राजस्थान में कांग्रेस का हश्र हो
इसलिए वे सारे विकल्प खुले रखना चाहेंगी। कांग्रेस हाईकमान के फैसले के
खिलाफ गहलोत न जाएं इसके लिए पायलट और गहोलत को बिठाकर आमने.सामने बात कर
सकती हैं। गहलोत पर पायलट के पक्ष में समर्थन के लिए दबाव बनाया जा सकता
है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पायलट को खुश करने केन्द्रिय संगठन में उन्हें कोई
पद देकर खुश करने की पहल हो सकती है। लेकिन पायलट मान जायेंगे,ऐसा नहीं
लगता। पायलट की खिलाफत करने वाले विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की नोटिस या
चेतावनी भी दी जा सकती है। लेकिन ऐसा करने पर अन्य राज्यों पर इसका विपरीत
असर पड़ने का भी अंदेशा है। यह हो सकता है कि राज्यों के क्षत्रपों के
अधिकार और पाॅवर में कटौती की जाए।
बहरहाल
अशोक गहलोत अलाकमान को अपनी तीन शर्तो के जरिये उलझाने का दांव खेला है।
पायलट गुट के विधायक को सी.एम.नहीं बनायें। सी.एम. का फैसला 19 अक्टूबर के
बाद हो और तीसरी शर्त नया अध्यक्ष जो बने, वो ही राजस्थान का सी.एम.तय
करे। पर्यवेक्षक अजय माकन का कहना था, विधायक बेवजह नाराज हो रहे हैं।
ऑब्जर्वर्स तो केवल सी. एम. चयन का अधिकार हाईकमान पर छोड़ने का प्रस्ताव
पारित करवाने आए हैं,किसी खास नेता को सी.एम. बनाने हम नहीं आए हैं। वहीं
मंत्री और विधायकों ने कहा,राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले कोई बैठक
नहीं होगी।
गहलोत समर्थित
विधायकों को संदेह है कि उनके नेता के साथ चुनाव में धोखा हो सकता है।
इसलिए उन्होंने सलाह दी कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन न भरें। इससे
पहले राहुल से गहलोत ने अध्यक्ष और सी.एम. दोनों पद अपने पास रखने की बात
कही थी। राहुल कहना था, एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत कायम रहेगा। अशोक
गहलोत जानते हैं,कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का मतलब क्या है?उनकी हैसियत
कांग्रेस का अध्यक्ष बनने पर क्या रहेगी। मुख्यमंत्री का पद छीनेगा ही साथ
पहचान भी बदल जायेगी। वे जानते हैं,दस जनपथ को दूसरा मनमोहन सिंह चाहिए।
राजस्थान की मौजूदा तस्वीर से बात साफ है,कि गहलोत दूसरा मनमोहन सिंह नहीं
बनना चाहते। इसलिए तीन शर्तो की दीवार खड़ी कर दी।
बहरहाल,दस
जनपथ मानता है,राजस्थान की सियासी उथल पुथल से भारत जोड़ो यात्रा की छवि
खराब हुई है। साथ ही गहलोत को लेकर 2024 के चुनाव की योजना पर पानी फिर
गया। पायलट का विरोध करते-करते गहलोत माहौल खराब कर दिये। पार्टी अध्यक्ष
बनने के पहले गहलोत का ऐसा तेवर है,तो अध्यक्ष बनने के बाद अपनी मर्जी के
नहीं होंगे,इसकी क्या गारंटी? आज पार्टी,संगठन की पूरी बागडोर उन्हें दे
रही है,ऐसे में उनकी क्या यह जवाबदारी नहीं बनती,कि वे राजस्थान में जो हो
रहा है,उसे नियंत्रित करें। वहीं आलाकमान दूरगामी परिणाम को समझ कर रास्ता
नहीं चुना तो राजस्थान का सियासी महाभारत कांग्रेस के हित में नहीं होगा।