Thursday, September 29, 2022

राजस्थान में बगावत,कांग्रेस में नई आफत







कांग्रेस के अध्यक्ष पद का नामांकन गहलोत ने भरा नहीं। सी.एम. पद से इस्तीफा भी नहीं दिया। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने नये सी.एम.के चुनाव के लिए पर्यवेक्षक भेजकर गलती कर दिया। गहलोत समर्थक विधायकों ने अपनी सियासी ताकत की नुमाइश कर गांधी परिवार को संदेश दिया, कि राजस्थान में गहलोत ही सरकार हैं। गहलोत ही कांग्रेस हैं।  

 
0 रमेश कुमार 'रिपु'
एक बार फिर राजस्थान में कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है। दो साल पहले भी यही स्थिति थी। जब सचिन पायलट ने बगावत की थी। उस वक्त गहलोत सरकार धड़ाम होने से बच गई थी। वही खेल एक बार फिर खेला जा रहा है। मगर इस बार खिलाड़ी बदल गये हैं। कांग्रेसी पंडाल में सी. एम.की कुर्सी के लिए जोर आजमाइश का सियासी शो चल रहा है। गहलोत की पसंद सचिन पायलट नहीं हैं,जबकि आलाकमान चाहता है,सचिन ही राजस्थान के सी. एम.बनें। गहलोत के समर्थित विधायकों कहना है कांग्रेस के गद्दार को पुरस्कार आलाकमान क्यों देना चाहता है? कांग्रेस के 102 विधायकों में किसी को भी मुख्यमंत्री बना दिया जाए,हमें स्वीकार है। लेकिन गांधी परिवार विधायकों की बातें सुनने को तैयार नहीं है। विधायकों की नाराजगी को आलाकमान बगावत मानता है। देखा जाए तो राजस्थान में सियासी बवाल आलाकमान की अदूरदर्शिता की वजह से हुआ है। तीन दिनों से राजस्थान कांग्रेस की सियासी घटना सुर्खियों में है। 

अभी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा नहीं गया और राजस्थान में नया मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने पर्यवेक्षक भेज दिया। इस मामले में गहलोत से पूछा तक नहीं कि वे कब अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल कर रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस अध्यक्ष  का परिणाम आने में करीब तीन हफ्ते है। राजस्थान में क्या हो सकता है हाईकमान नहीं समझ सका,तो यह एक बड़ी चूक है। यदि सोच समझ कर हाई कमान  ने कदम उठाया है तो यह एक बड़ा दांव है। क्यों कि राजस्थान में बीजेपी की सीट में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। बीजेपी के 71 विधायक हैं। बीजेपी की नजर कांग्रेस के घटना क्रम पर है। वो चाहती ही है,कांग्रेस में बगावत हो और विधायक टूटें। और वे लपक लें। हैरानी वाली बात है,कि पर्यवेक्षकों को भी इतनी जल्दी क्यों थी,नया सी.एम.का चुनाव कराने की? कांग्रेस के हाथ में दो राज्य हैं। राजस्थान की तरह छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री पद के लिए भूपेश और टी.एस.सिंहदेव में खटास है। राजस्थान में इतनी बड़ी अस्थिरता खतरनाक है। इसका असर छत्तीसगढ़ में भी पड़ सकता है।

राजस्थान में कांग्रेस के कुल 108 विधायक हैं। जिसमें से गहलोत समर्थक करीब 85 विधायकों ने गांधी परिवार के फैसले के खिलाफ विधान सभा अध्यक्ष सी.पी.जोशी को इस्तीफा दे दिये हैं। गहलोत समर्थक विधायकों ने अपनी सियासी ताकत की नुमाइश कर गांधी परिवार को संदेश दिया, कि राजस्थान में गहलोत ही सरकार हैं। गहलोत ही कांग्रेस हैं। वे सीधे-सीधे दस जनपथ को चुनौती दे दिये हैं। पर्यवेक्षक अजय माकन की नजर में यह अनुशासनहीनता है। अनुशासनहीनता कहने की नौबत आ गई तो जाहिर है इसके बड़े खतरे हैं। गहलोत ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया,कि राजस्थान में जो कुछ हो रहा है,वो मेरे बस में नहीं है। जो कुछ कर रहे हैं वो विधायक कर रहे हैं। 

कांग्रेस के देेह गोवा में कुछ दिनों पहले ही कट चुकी है। आपसी झगड़े की तपिश में पंजाब में कांग्रेस झुलस चुकी है। जैसा कि शांती धारीवाल ने कहा,कुछ लोगों की चाल है,वे चाहते हैं पंजाब की तरह राजस्थान से भी कांग्रेस चली जाए।
इससे इंकार नहीं है कि गांधी परिवार के खिलाफ अदावत के लिए विधायक मोहरा हैं,जबकि पीछे गहलोत का चेहरा है। कल तक अशोक गहलोत को जो सियासत का जादूगर कहते थे,अब उनके लिए इस जादूगर का जादू खलने लगा है।

 सोनिया और राहुल गांधीे कल तक गहलोत पर विश्वास पात्र और भरोसा का दम भरते थे, उनके भरोसे को वो बेदम कर दिए। दस जनपथ उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष शायद ही बनाए। हो सकता है उन्हें मुख्यमंत्री पद से भी हटा दे। गेम प्लान करने वाले के खिलाफ दस जनपथ कौन सा गेम खेलता है,सब की नज़र है। 

सोनिया गांधी नहीं चाहेंगी कि पंजाब की तरह राजस्थान में कांग्रेस का हश्र हो इसलिए वे सारे विकल्प खुले रखना चाहेंगी। कांग्रेस हाईकमान के फैसले के खिलाफ गहलोत न जाएं इसके लिए पायलट और गहोलत को बिठाकर आमने.सामने बात कर सकती हैं। गहलोत पर पायलट के पक्ष में समर्थन के लिए दबाव बनाया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पायलट को खुश करने केन्द्रिय संगठन में उन्हें कोई पद देकर खुश करने की पहल हो सकती है। लेकिन पायलट मान जायेंगे,ऐसा नहीं लगता। पायलट की खिलाफत करने वाले विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की नोटिस या चेतावनी भी दी जा सकती है। लेकिन ऐसा करने पर अन्य राज्यों पर इसका विपरीत असर पड़ने का भी अंदेशा है। यह हो सकता है कि राज्यों के क्षत्रपों के अधिकार और पाॅवर में कटौती की जाए। 

बहरहाल अशोक गहलोत अलाकमान को अपनी तीन शर्तो के जरिये उलझाने का दांव खेला है। पायलट गुट के  विधायक को सी.एम.नहीं बनायें। सी.एम. का फैसला 19 अक्टूबर के बाद हो और तीसरी शर्त नया अध्यक्ष जो बने, वो ही राजस्थान का सी.एम.तय करे। पर्यवेक्षक अजय माकन का कहना था, विधायक बेवजह नाराज हो रहे हैं। ऑब्जर्वर्स तो केवल सी. एम. चयन का अधिकार हाईकमान पर छोड़ने का प्रस्ताव पारित करवाने आए हैं,किसी खास नेता को सी.एम. बनाने हम नहीं आए हैं। वहीं मंत्री और विधायकों ने कहा,राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले कोई बैठक नहीं होगी। 

गहलोत समर्थित विधायकों को संदेह है कि उनके नेता के साथ चुनाव में धोखा हो सकता है। इसलिए उन्होंने सलाह दी कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन न भरें। इससे पहले राहुल से गहलोत ने अध्यक्ष और सी.एम. दोनों पद अपने पास रखने की बात कही थी। राहुल कहना था, एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत कायम रहेगा। अशोक गहलोत जानते हैं,कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का मतलब क्या है?उनकी हैसियत कांग्रेस का अध्यक्ष बनने पर क्या रहेगी। मुख्यमंत्री का पद छीनेगा ही साथ पहचान भी बदल जायेगी। वे जानते हैं,दस जनपथ को दूसरा मनमोहन सिंह चाहिए। राजस्थान की मौजूदा तस्वीर से बात साफ है,कि गहलोत दूसरा मनमोहन सिंह नहीं बनना चाहते। इसलिए तीन शर्तो की दीवार खड़ी कर दी।

बहरहाल,दस जनपथ मानता है,राजस्थान की सियासी उथल पुथल से भारत जोड़ो यात्रा की छवि खराब हुई है। साथ ही गहलोत को लेकर 2024 के चुनाव की योजना पर पानी फिर गया। पायलट का विरोध करते-करते गहलोत माहौल खराब कर दिये। पार्टी अध्यक्ष बनने के पहले गहलोत का ऐसा तेवर है,तो अध्यक्ष बनने के बाद अपनी मर्जी के नहीं होंगे,इसकी क्या गारंटी? आज पार्टी,संगठन की पूरी बागडोर उन्हें दे रही है,ऐसे में उनकी क्या यह जवाबदारी नहीं बनती,कि वे राजस्थान में जो हो रहा है,उसे नियंत्रित करें। वहीं आलाकमान दूरगामी परिणाम को समझ कर रास्ता नहीं चुना तो राजस्थान का सियासी महाभारत कांग्रेस के हित में नहीं होगा।

 

सियासी वजूद बचाने की चुनौती



 "कभी धारा 356 के जरिये केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया करती थी। लेकिन अब राजनीति की धारा बदल गई है। बीजेपी की नई सियासी चाल के चलते विपक्ष के समक्ष सियासी वजूद का संकट खड़ा हो गया है। कई राज्यों में बीजेपी ने विपक्ष की सियासी दीवार में सेंध लगाकर उनके विधायकों को जोड़कर सरकार बना ली।"

0 रमेश कुमार




‘रिपु’

देश में कई पार्टियों के समक्ष सियासी वजूद का संकट खड़ा हो गया है। विपक्ष का कहना है ‘आॅपरेशन लोटस’ का खेल बीजेपी कर रही है। वह विपक्ष के सियासी दीवार में सेंध मारकर उसके विधायकों को गेरूआई पंडाल में ला रही है। जाहिर है,कांग्रेस मुक्त भारत के लिए यह एक नई रणनीति है। कभी धारा 356 के जरिये केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया करती थी। लेकिन अब राजनीति की धारा बदल गई है। विपक्षी दल के विधायक मंत्री बनने या फिर मलाईदार पद पाने अपनी ही पार्टी के साथ बेवफाई करने में संकोच नहीं करते। बीजेपी की सत्ताई धुन पर विधायक उसकी ओर खींचे चले आ रहे हैं। और बीजेपी उनके सहयोग से सरकार बना रही है।

वहीं बीजेपी की मौजूदा राजनीति पर समूचा विपक्ष एक सूर में कह रहा है,ई.डी.सीबीआइ और आइ.टी का डर दिखाकर बीजेपी विपक्ष के विधायकों को तोड़ रही है। जैसा कि गोवा कांग्रेस के प्रभारी दिनेश गुंडू राव का आरोप है कि बीजेपी ने कांग्रेस विधायकों को पार्टी बदलने के लिए 40-50 करोड़ रुपए की पेशकश की थी। गौरतलब है कि गोवा कांग्रेस के आठ विधायकों के पाला बदलने से पहले सन् 2019 में भी कांग्रेस के 15 में 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। इसमें नेता विपक्ष चंद्रकांत कावलेकर भी शामिल थे। पंजाब में बीजेपी खेला न कर दे,इसलिए केजरीवाल डरे हुए हैं। और पंजाब के सारे विधायकों को दिल्ली बुलाकर बैठक किये। 
जाहिर है,बीजेपी की जिन राज्यो में सरकार नहीं है,वहांँ सरकार बनाने पार्टी तोड़ने का सियासी उपक्रम शुरू कर दिया है। कांग्रेस को मौजूदा समय में ‘जीत के हाथ’ की जरूरत है। क्यों कि सन् 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद से अब तक कांग्रेस 17 विधान सभा चुनाव हार चुकी है। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को कितना सियासी फायदा होता है वक्त बतायेगा। क्यों कि इसी साल आठ राज्यों में चुनाव होने हैं। वैसे कांग्रेस तमिलनाडु, महाराष्ट्र में सरकार की हिस्सा थी, लेकिन वहाँं बीजेपी ने विपक्ष की सियासी दीवार में सेंध मारकर इनके विधायकों को अपने पाले में करके सरकार गिरा दी। झारखंड में जरूर सरकार का हिस्सा है,मगर कब तक यह राज्यपाल रमेश बैस पर निर्भर है।
 
‘भारत जोड़ो’यात्रा को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं,और गोवा में कांग्रेस के आठ विधायक  बीजेपी केे तंबू में चले गये। बीजेपी को कहने का मौका मिल गया,राहुल गांधी भारत जोड़ने नहीं,कांग्रेस छोड़ने यात्रा पर निकले हैं। एक-एक करके कांग्रेस के बड़े नेता और विधायक दस जनपथ के पंजे को मरोड़ते हुए गेरूआई टीका लगा रहे हैं। दरअसल राहुल की पकड़ अपनी पार्टी में नहीं है। विधान सभा चुनाव से पहले 4 फरवरी 2022 को पणजी में कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों ने एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। हलफनामा में विधायकों ने यह कहा था,पांच साल तक पार्टी नहीं छोड़ेंगे और कांग्रेस में रहकर गोवा की जनता का सेवा करेंगे।

गोवा में जो हुआ, उससे दस जनपथ को सबक लेना चाहिए। यही खेला झारखंड में भी हो सकता है। वैसे भी कांग्रेस के तीन विधायक बंगाल में रुपयों के साथ पकड़े गये हैं। उन्हें इस शर्त पर जमानत मिली है, कि तीन माह तक बंगाल छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे। दरसअल दस जनपथ में कांग्रेस के कुछ नेताओं का अपना एक घेरा है,और उस घेरे को तोड़कर जो भी कांग्रेसी अंदर जाने की कोशिश करता है,उसे गुलाम नहीं, आजाद बनकर निकलना पड़ता है।
दस जनपथ ने गोवा में माइकल लोबो को नेता प्रतिपक्ष बनाकर विधायकों को नाराज कर दिया। क्यों कि नेताप्रतिपक्ष की दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत थे। कांग्रेस हाईकमान के इस फैसले से विधायक और दिंगबर कामत के नाराज होने से कांग्रेस टूटी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सदानंद तनवड़े ने सभी विधायकों को भाजपा की सदस्यता दिलाने में देर नहीं की। दस जनपथ ने एक नहीं कई गलतियांँ की। गोवा में हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष गिरीश  से इस्तीफा ले लिया। लेकिन प्रदेश प्रभारी दिनेश गुंडूराव पर कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि गुंडूराव से पार्टी के कई सीनियर चुनाव के पहले से नाराज चल रहे थे। दस जनपथ ने पी.चिदंबरम को कांग्रेस का ऑब्जर्वर बनाकर भेजा था। लेकिन कांग्रेस के अंदर चल रहे सियासी द्वंद को वे हल नहीं निकाल पाए। पार्टी के अंदर हाथ मिलाने की सियासत के बजाय ‘पंजा लड़ाने’ की सियासत तेज हो गई। गोवा कांग्रेस के नए अध्यक्ष अमित पाटकर को लेकर पार्टी के अंदर खेमेबाजी शुरू हो गई। और उसका असर राष्ट्रपति चुनाव में भी देखा गया। पार्टी के चार विधायकों ने क्रास वोटिंग की लेकिन पार्टी ने डैमेज कंट्रोल का कदम नहीं उठाया। दस जनपथ ने जुलाई में पार्टी विरोधी साजिश में शामिल होने का आरोप लगाकर दिगंबर कामत और माइकल लोबो पर कार्रवाई की थी। उस वक्त हाई कमान ने कांग्रेस को टूटने से बचने के लिए अपने पांँच विधायकों को चेन्नई शिफ्ट कर दिया था।

कांग्रेस सिर्फ गोवा में ही नहीं टूटी। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कांग्रेस की सरकार चली गई। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंद ने पार्टी से बगावत कर के शिवसेना के सियासी वजूद पर संकट खड़ा कर दिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लिये। कांग्रेस सरकार से बाहर हो गई। झारखंड में कांग्रेस सरकार में है,लेकिन देर सबेर वहांँ भी सत्ता परिवर्तन की संभावना है। कर्नाटक,तमिलनाडु में कांग्रेस की देह को पार्टी के विधायक काट चुके हैं। दरअसल बीजेपी ने देश के राज्यों में अपनी सरकार बनाने के लिए जो सियासी खेल खेला है,उससे विपक्ष औधे मुंह गिरते जा रहा है।

 सिर्फ काग्रेस ही नहीं अन्य पार्टी में भी सेंध लगाने का सियासी उपक्रम बीजेपी का चला। 2016 से 2020 तक एनसीपीपी के 14 विधायकों ने पार्टी छोड़ी। वहीं बीजेपी के  19 विधायको ने पार्टी छोड़ी। सबसे ज्यादा कांग्रेस के विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा। 2016 से 2022 तक में 178 विधायकों  ने पार्टी छोड़ी। बीएसपी के 17 विधायकों ने हाथी पर सवारी करना छोड़ दिया। और टीडीपी के 17 विधायकों ने पार्टी छोड़ी। इसके पीछे वजह रही बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता में बने रहना। तीसरा मोर्चा गठन के लिए एक ओर नीतीश बीजेपी मुक्त भारत के लिए तमाम क्षेत्रीय दलों के प्रमुख से मिल रहे हैं, बिहार में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद सी.एम. नीतीश कुमार के साथ बीजेपी ने खेला कर दिया। मणिपुर में जेडीयू के 5 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं। बीजेपी का कहना है जो विधायक अपनी पार्टी से संतुष्ट नहीं हैं वे बीजेपी में आ रहे हैं। न कोई भय है और न आॅपरेशन लोटस है।

 

झारखंड की राजनीति में ‘शिंदे' की जरूरत





"लाभ के पद के मामले में हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता तब तक राज्यपाल रद्द नहीं करेंगे,जब तब बीजेपी को झारखंड में कोई ‘शिंदे’ नहीं मिल जाता,अथवा कांग्रेस को छोड़कर हेमंत बीजेपी के समर्थन से सरकार न बना लें। ऐसा नहीं होने पर राज्यपाल राष्ट्रपति राज की सिफारिश कर सकते हैं।

0 रमेश कुमार ‘रिपु’
   
झारखंड की राजनीति विचित्र है। विचित्र इसलिए है,कि सरकार गिरने की स्थिति में है। बावजूद इसके जिन्हें सरकार बनाना है,उनकी रणनीति पर्दे में है। यानी राज्यपाल रमेश बैस भाजपा को सरकार बनाने के लिए पूरा मौका दे रहे हैं। एक सप्ताह बाद भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव आयोग की सिफारिश पर राज्यपाल रमेश बैस ने कोई कार्रवाई नहीं की। लाभ के पद के मामले में हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता रद्द किये जाने की कोई सूचना या फिर पत्र राज भवन से उन्हें नहीं मिला। मीडिया से जानकारी मिलने के बाद हेमंत अपनी सरकार बचाने और ‘हार्स ट्रेडिंग’ के डर से विधायकों को रायपुर छत्तीसगढ़ भेज दिये हैं। रायपुर के मेफेयर रिसॉर्ट में ठहरे कांग्रेस के 18 में से 12 विधायक ही रायपुर पहुंचे थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19 विधायक रिसॉर्ट में हैं। कांग्रेस के तीन विधायक बंगाल में भारी कैश के साथ पकड़े गए थे। उन्हें तीन महीने तक कोलकाता छोड़कर नहीं जाने की शर्त पर जमानत मिली है। वहीं एक विधायक हाल ही में मां बनी हैं,इसलिए वे नहीं आ पाईं।
दो सितम्बर को भारतीय जनता युवा मोर्चा,छत्तीसगढ़ ने ‘मेफेयर रिजॉर्ट’ को घेर लिया। भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष अमित साहू ने कहा,झारखंड के विधायक रायपुर में आकर फाइव स्टार रिजॉर्ट में अय्याशी कर रहे हैं। झारखंड में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ी हुई है। ताज्जुब होता है,अंकिता हत्याकांड के बाद भी विधायक और मंत्री इतने असंवेदनशील हैं। यहांँ अय्याशी कर रहे हैं। हम इन विधायकों को खदेड़ने आए हैं। पुलिस बल को भारी मशक्त करनी पड़ी भाजयुमो के कार्य कर्ताओं  को हटाने में।
गौरतलब है कि किशोरी अंकिता को शाहरुख नाम के युवक ने उसे घर में पेट्रोल डालकर जला दिया। इस मामले में एसडीओपी ने आरोपी को बचाने का प्रयास किया। विपक्ष के हल्ला मचाने पर मुख्य मंत्री ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिये। जबकि यह घटना मुख्यमंत्री के विधान सभा क्षेत्र की है। इस घटना के बाद पूरी सरकार रायपुर छत्तीसगढ़ में पिकनिक मना रही है। असंवेदनशील सरकार को इसकी चिंता नहीं है। इस घटना को लेकर जनता में रोष है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,भाजपा ईडी,आईटी का डर दिखाकर विपक्ष के विधायक खरीदनेे की राजनीति कर रही है। चुनाव आयोग की चिट्ठी आई है तो राज्यपाल उसे रोके क्यों हैं? अगर नहीं आई है,तो स्पष्ट करें। इसका मतलब है कि आप 'हॉर्स ट्रेडिंग' करना चाहते हैं। ताकि चिट्ठी खुले उसके पहले सब खरीद फरोख्त कर लें। रमन सिंह को और भाजपा को इसमें सफलता नहीं मिली,इसलिए कह रहे हैं कि माथा शर्म से झुक गया। वे खरीद फरोख्त कर लेते तो उनका सिर ऊंचा हो जाता। आखिर कांग्रेस के तीन विधायक पश्चिम बंगाल में पैसा लेकर पकड़े गए। उन्हें कौन खरीद रहा था,तब भाजपा नेताओं का सिर शर्म से नहीं झुका। बंगाल में पकड़े गये तीन विधायकों को इस शर्त पर जमानत मिली है कि तीन माह तक बंगाल छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे।  
 मौजूदा सियासत से जाहिर है,कि हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता तब तक नहीं जायेगी,जब तब बीजेपी को झारखंड में कोई ‘शिंदे’ नहीं मिल जाता,अथवा हेमंत कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी के समर्थन से सरकार न बना लें। यदि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए खुद के नाम पर खदान लीज लेने को भ्रष्टाचार मान लिया तो सत्ता और विधायकी दोनों जायेगी। अगर चुनाव आयोग खदान लीज को सरकारी लाभ मानता है,तो हेमंत को विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। इससे हेमेंत को राजनीतिक नुकसान कम होगा, बशर्ते विधायक उन्हें दोबारा नेता चुन लें। ऐसे में अगले छह माह में उन्हें चुनाव लड़कर विधायक बनना होगा,तब तक वे सीएम बने रहेंगे। यदि चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 9 (अ) के तहत कार्रवाई की अनुशंसा कर एक सर्टिफिकेट जारी करता है,तो राज्यपाल हेमेंत सोरेने को तीन से पांच साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा सकते हैं। 
हेमंत सोरेन चाहेंगे,कि सत्ता की कमान घर में ही रहे। ऐसे में वे अपनी पत्नी कल्पना सोरेन का नाम आगे कर सकते हैं। कल्पना ओड़िसा की हैं,झारखंड की नहीं हैं। आदिवासी भी नहीं हैं। वहीं घर के अंदर इसका विरोध भी हो रहा है। हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन चाहती हैं मुख्यमंत्री बनना। दूसरा विकल्प हेमंत के पास है,अपने पिता शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बना दें। हेमंत मुख्यमंत्री उसे ही बनायेंगे जिस पर उन्हें भरोसा है। 
हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने के बाद यदि राज्यपाल को लगता है,कि झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास मेजॉरिटी नहीं है,तो वह झामुमो के बहुमत का समर्थन करने वाले पत्रों के दावे को नहीं मानते हुए नए सीएम को पद की शपथ दिलाने से इंकार कर सकते हैं। इस परिस्थति में वे राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं।  
विधान सभा में बीजेपी के 26 विधायक हैं। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30,कांग्रेस के 18 विधायक हैं। जिसमें तीन विधायक बंगाल पुलिस के शिकंजे में है। जाहिर सी बात है झारखंड में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए 41 विधायक चाहिए। दो निर्दलीय बीजेपी के साथ जा सकते हैं,लेकिन अन्य दल के विधायकों को बीजेपी अपने खेमें में आने के लिए हार्स ट्रेडिंग  का इस्तेमाल कर सकती है। और यही डर हेमंत सोरेन को है। बीजेपी चाहेगी कि हेमंत सोरेन कांग्रेस के समर्थन की बजाय बीजेपी के समर्थन से सरकार बना लें।  
दरअसल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 और 9 अ के तहत हेमंत सोरेने की विधान सभा की सदस्यता उलझ गई है। 28 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवरदास ने चुनाव आयोग को एक शिकायत में कहा था, हेमंत ने अनगड़ा में अपने नाम से0.88 एकड़ पत्थर खदान की लीज ली है और चुनाव आयोग को दिए शपथ पत्र में यह जानकारी छिपाई है। सी.एम. सरकारी सेवक हैं,इसलिए लीज लेना गैरकानूनी है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 का उल्लंघन है। बीजेपी नेताओं ने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। 
वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है,जब ओवदन किया था,तब वे किसी लाभ के पद पर नहीं थे। बीजेपी की ओर से मामला उठाए जाने पर खनन लीज को सरेंडर कर दिया है। उस पर कोई खनन भी नहीं हुआ है। ऐसे में लाभ के पद के दुरुपयोग का मामला नहीं बनता है। अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता।’’ 
बहरहाल हेमंत सोरेन विधान सभा की सदस्यता रद्द होने पर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं । सुप्रीम कोर्ट पहले भी अपने दो फैसलों में कह चुका है,कि खदान लीज पर लेना भ्रष्टाचार नहीं है। लेकिन राज्यपाल के आदेश पर उससे पहले इस्तीफा देना पड़ेगा।