Thursday, December 26, 2019

सत्ता की चाबी की चुनौती

     
नगरीय निकाय चुनाव में बड़ी भयावह हार भाजपा की नहीं रही है। जैसा कि विधान सभा के चुनाव में थी। और कांग्रेस की जीत भी कोई बड़ी जीत नहीं है। प्रदेश के 47 निकायों में सत्ता की चाबी निर्दलियों के हाथों में है। भाजपा और कांग्रेस के समक्ष सत्ता की चाबी को अपने पास रखने की चुनौती है।








0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
            राजधानी रायपुर के नगर निगम में कांग्रेस और भाजपा दोनों के समक्ष चुनौती थी अपनी अपनी पार्टी का मेयर बनाने की। चुनावी परिणाम ने दोनों ही बड़ी पार्टियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इसलिए कि दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिला। जनता ने सत्ता की चाबी निर्दलीय पार्षदों के हाथ में दे दी है। जाहिर सी बता है कि निर्दलीय पार्षदों की अहमियत बढ़ गई है। वहीं प्रदेश की राजधानी रायपुर में सरकार होने के बाद भी,कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दो सीट पीछे है। 34 कांग्रेस,29 भाजपा और 7 निर्दलीय पार्षद जीते हैं। रायपुर के सांसद सुनील सोनी और पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह का दावा है कि भाजपा का ही मेयर बनेगा। यदि ऐसा हो जाता है तो भूपेश सरकार की बड़ी हार होगी। जिसकी उम्मीद कम है। इस चुनाव में विपक्ष के अपने तीखे आरोप भी हैं। धन,बल और सत्ता का दुरूप्रयोग कांग्रेस ने किया है। बगैर आरोप के राजनीति नहीं चलती। सबसे बड़ा सवाल यह है कि धान के मामले पर जिस तरह भाजपा शहर से गांव तक धरना और प्रदर्शन की,उसका लाभ उसे उतना नहीं मिला। लेकिन वह कांग्रेस का पीछ करना नहीं छोड़ी। 47निकायों में सत्ता की चाबी निर्दलीय पार्षदों के हाथ में होने से एक बात साफ है कि जनता अभी कांग्रेस की पूरी तरह हुई नहीं है। धमतरी में तीन बागी पार्षद के कांग्रेस में शामिल हो जाने से कांग्रेस की लाज बच गई।
निर्दलीय बने किंगमेकर
नगरीय निकाय का चुनाव विपक्ष और सत्ता पक्ष की सियासी ताकत का एक तरीके से मूल्यांकन किया है,कहना गलत नहीं होगा। पंजा थोड़ा ऊपर है,कमल से। लेकिन कई स्थानों में कांग्रेस और भाजपा दोनों बराबर है। बलौदाबाजार के नगर पंचायत में दोनों दलों को 7-7 सीटें मिली है। नगर पंचायत साजा में 6-6 सीटें। नगर पंचायत गंडई,सहसपुर लोहारा,पिपरिया,दोरनपाल,नई लेदरी,बिल्हा नगर पंचायत,नगर पालिका तखतपुर और कटघोरा में भी दोनों दलों को 7-7 सीटें मिली है। जािहर सी बात है कि किसी भी दल के साथ निर्दलीय चले गये, तो अध्यक्ष उस पार्टी का बनेगा। पेंड्रा में स्थिति बड़ी अजीब है। कांगे्रस और भाजपा 4-4 सीट जीते हैं। लेकिन छजका 4 सीट जीती है। 3 निर्दलीय पार्षद भी है। यानी यहां छजका किंगमेकर की भूमिका में है। खरौद में भी भाजपा और कांग्रेस 5-5 सीटें जीती हैं। जबकि 5 सीटों पर निर्दलियों का कब्जा है।
अपने अपने दावे
निकाय चुनाव में पंजा थोड़ा सा ऊपर है। जबकि प्रदेश में उसकी सत्ता है, तो उसका जैसा जोर होना चाहिए था,वैसा नहीं दिखा। जैसा कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कहते हैं,‘‘ एक साल में भूपेश अलोकप्रिय हो गये’’। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम कहते हैं,‘‘ सभी दस नगर निगम में कांग्रेस के मेयर बनेंगे। जहां संख्या कम है, वहां निर्दलीय हमारे साथ हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,‘‘ हमारे नौजवानों ने भाजपा के सूरमाओं को पछाड़ दिया है। रायपुर में हम हैट्रिक करने जा रहे हैं। तीसरी बार यहां के निगम में कांग्रेस का कब्जा होगा। दुर्ग में पिछले 20 सालों से हम बाहर थे। सबसे बड़ी जीत दुर्ग में हमें मिली है। धमतरी में लगातार भाजपा जीतती रही थी। जहां इस बार कांग्रेस को सफलता मिली। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मेहनत सरकार के कामकाज पर जनता ने भरोसा जताया। राजनांदगांव एवं कवर्धा में कांग्रेस ने बाजी मारी। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के क्षेत्र में कांग्रेस को सफलता मिली। पिछली बार 6 नगर निगमों में कांग्रेस के महापौर जीते थे, लेकिन वहां पार्षदों की संख्या के हिसाब से बहुमत नहीं था। इस समय हर तरफ हमारा बहुमत है।
 वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने बैलेट पेपर से हुए चुनाव को कांग्रेस की साजिश बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि बैलेट पेपर से चुनाव कराकर कांग्रेस सरकार अपनी साजिश में सफल रही। मतगणना अधिकारी और कर्मचारियों पर राज्य सरकार का दबाव था। उन्होंने दावा किया कि आधे से अधिक निकायों में भाजपा के महापौर और अध्यक्ष चुने जाएंगे।
कोरबा में कांग्रेस हैरान
कोरबा के चुनाव परिणाम से कांग्रेस हैरान है। कोरबा में भाजपा को बड़ी लीड मिली। इस चुनावी परिणाम में सबसे चैकाने वाली बात रही कि जिले के प्रभारी मंत्री और विधायकों को अपने अपने क्षेत्र में करारी मात मिली। भाजपा की महासचिव सरोज पांडे भी अपने क्षेत्र में भाजपा को नहीं जीता पाईं। वहीं रायपुर में मेयर के प्रबल दावेदार संजय श्रीवास्तव को करारी मात मिली। भाजपा के प्रफुल्ल माहेश्वरी और भाजपा के जिला अध्यक्ष राजेन्द्र पांडे भी चुनाव हार गये। रायपुर में कांग्रेस का महापौर निर्दलीय के भरोसे ही बनने के आसार है। प्रदेश में कांग्रेस के 1283 पार्षद जीते और भाजपा के 1131 पार्षद। 103 नगर पंचायत में 48 में कांग्रेस और 40 में भाजपा विजयी रही। दस जगह बराबरी और पांच निर्दलीय जीते। 38 नगर पालिका में 18कांग्र्रेस और 17 में भाजपा का कब्जा और 3 में निर्दलियों का दबदबा है। 10नगर निगम में से 7 पर कांग्रेस विजयी रही और 2 में भाजपा और कांग्रेस बराबरी पर। बीजापुर नगर पालिका में कांग्रेस ने एक तरफा कब्जा किया। 15 वार्डो में 12 पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा ने जीत दर्ज की।
मेयर की दौड़ मेें
राजधानी में मेयर की दौड़ में तीन नाम हैं। एजाज ढेबर,प्रमोद दुबे वर्तमान में मेयर हैं और ज्ञानेश शर्मा। तीनों उम्मीदवारों में किसे मेयर बनाना है यह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निर्भर करेगा। लेकिन माना जा रहा है कि ज्ञानेश शर्मा इसके पहले कांग्रेस मीडिया के प्रमुख का दायित्व निभा चुके हैं। इसलिए वे मुख्यमंत्री के अति करीब हैं। लेकिन जाति कार्ड चला तो एजाज ढेबर का नाम पहले आ सकता है। चूंकि प्रमोद दुब पिछली दफा मेयर रह चुके हैं। इस बार वे 1500 वोटों से जीते हैं जबकि एजाज ढेबर सबसे अधिक वोटों से चुनाव जीते हैं। एजाज ढेबर पर सहमति दस जनपथ के कहने पर रही बन सकती है। लेकिन यह माना जा रहा है कि प्रमोद दुबे को मुख्यमंत्री दोबारा मेयर नहीं बनाना चाहेंगे। ज्ञानेश शर्मा मेयर नहीं बनाये गये तो सभापति बनाये जा सकते हैं।
बहरहाल निकाय चुनाव में भी डाॅ रमन सिंह कमल नहीं खिला सके। जाहिर सी बात है कि भाजपा को पूरे चार साल जनता के बीच जाकर कड़ी मेहनत और अपनी छाप बनाने की ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत है। जिला पंचायत के चुनाव तीन स्तरों पर होना है। यह चुनाव भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और डाॅ रमन सिंह के बीच प्रतिष्ठा का रहेगा।
मंत्री और विधायकों के क्षेत्र में कांग्रेस को मिली मात  फोटो-
निकाय चुनाव के परिणाम से कांग्रेस के मंत्री और विधायकों के काम काज और परफारमेंस पर सवाल उठ रहे हैं। जिन्हें स्थानीय स्तर पर चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वे पैदल भी साबित नहीं हुए। जबकि अपने विधान सभा क्षेत्र में बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। बेमेतरा जिले के साजा विधानसभा क्षेत्र के देवकर नगर पंचायत में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल गया है। 15 वार्डों के नगर पंचायत में 8 सीटों पर भाजपा, 6 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली हैण् आपको बता दें यह विधानसभा सीट मंत्री रविन्द्र चैबे की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम कोंडागांव नगर पालिका के चुनाव में उनके हिस्से करारी हार आई। कुल 21 वार्ड में भाजपा को 13 जबकि कांग्रेस 9 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा अभनपुर. विधायक धनेन्द्र साहू का निर्वाचन क्षेत्र है। यहां कुल 15 वार्ड में भाजपा को 10, निर्दलीय को 4 और कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट पर जीत सकी।
विधायक चंद्रदेव राय विधानसभा बिलाईगढ़. से है। यहाँ भी कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। कुल15 वार्ड में भाजपा को 7 निर्दलीय को 5 जबकि कांग्रेस को सिर्फ 3 सीट मिली है।
विधानसभा अहिवारा के विधायक रुद्र गुरु अपने निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस को हारने से नहीं बचा सके।   कुल 15 वार्ड में भाजपा को 10 कांग्रेस को 4 और निर्दलीय को 1 सीट पर जीत मिली है
विधानसभा डौंडीलोहारा विधायक अनिला भेड़िया का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ कुल 15 वार्ड में निर्दललियों को 7 भाजपा को 5 और कांग्रेस को महज 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा बेमेतरा,आशीष छाबड़ा का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ लगातार दूसरी बार कांग्रेस की करारी हार हुई। कुल 21 वार्ड में भाजपा को 12 कांग्रेस को 8 और निर्दलीय 1 सीट पर काबिज हुआ।
विधानसभा महासमुंद के विधायक विनोद चंद्राकर अपने निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस को हारने से नहीं बचा सके। कुल 30 वार्ड में भाजपा को 14 कांग्रेस को 8ए जोगी कांग्रेस को 2 और निर्दलियों को 5 और आप को 1 सीट पर जीत मिली है।
खल्हारी.बागबहार विधानसभा के विधायक द्वारिकाधीश यादव के निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेसे को 4 सीट मिली।  कुल 15 वार्ड में भाजपा को 6 निर्दलियों को 5 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा सरायपाली. किस्मत लाल नंद का निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस की सर्वाधिक बुरी गति हुई। कुल 15 वार्ड में भाजपा को 9 और कांग्रेस को 3 और निर्दलियों को 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा बसना. विधायक देवेन्द्र बहादुर का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ कुल 15 वार्ड में 7 में निर्दलियों को 5 में कांग्रेस को और 3 में भाजपा को जीत मिली है।
विधानसभा राजिम के विधायक अमितेष शुक्ल अपने निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस को हार से नहीं बचा सके। कुल 15 वार्ड में भाजपा को 6 कांग्रेस को 3 जेसीसीजे 1 और निर्दलियों को 5 सीटों पर जीत मिली
विधानसभा दंतेवाड़ा. की विधायक देवती कर्मा के निर्वाचन क्षेत्र में कुल 15 वार्ड में भाजपा को 8 निर्दलियों को 4 और कांग्रेस को सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा बस्तर. विधायक लखेश्वर बघेल का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ से भी कांग्रेस को करारी हार का सामना पड़ा है। कुल 15 वार्डों में निर्दलियों ने 10 कांग्रेस ने 4 और भाजपा ने सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली।
विधानसभा अंतगाढ़. विधायक अनूप नाग का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। कुल 15 वार्डों में भाजपा को 7 कांग्रेस को 5 और निर्दलियों को 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा नगरी.सिहावा लक्ष्मी धु्रव का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। कुल 15 वार्डों में भाजपा ने 9 कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की।
विधानसभा जशपुर. विधायक विनय भगत का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई है। कुल 20 वार्ड में भाजपा को 16, निर्दलियों को 3 और सिर्फ 1 सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है।
विधानसभा पत्थलगाँव. विधायक रामपुकार सिंह का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ भी कांग्रेस हार गई। कुल 15 वार्ड में 9 में भाजपा को, 5 में कांग्रेस को 1 में निर्दलीय को विजय मिली।
विधानसभा गुंडरदेही के विधायक कुँवर निषाद अपने निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस को नहीं जीता सके। 15 वार्ड में भाजपा को 8, कांग्रेस को 6 और निर्दलीय को 1 सीट पर जीत मिली।
 

पानी में मौत








        
डेढ़ हजार की आबादी वाले छत्तीसगढ़ के रायपुर से दो सौ पैंतीस किलोमीटर दूर गरियाबंद जिले के देवभोग तहसील के सुपेबेड़ा गांव में पिछले पांच सालों से शहनाई नहीं बजी। क्यों कि इस गांव का पानी किडनी का दुश्मन है। सैकड़ों लोगों की जानें चली गई। पन्द्रह सालों तक बीजेपी की सरकार ने पीने का पानी मुहैया नहीं करा सकी और अब कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री को गांव वाले उनके किये वायदों को याद दिला रहे हैं।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दो सौ पैतीस किलोमीटर दूर गरियाबंद जिले के देवभोग तहसील के सुपेबेड़ा गांव में पानी में मौत बसती है। सुनकर हैरानी होती है। पानी में मौत कैसे बसती है? दरअसल आजादी के इतने बरसों के बाद भी न तो रमन की सरकार और न ही भूपेश की सरकार ने मीठा पानी उपलब्ध करा सकी। यहां के किसी भी बोर का पानी जीवन नहीं है। डेढ़ हजार आबादी वाले इस गांव के लोगों का कहना है कि करीब सवा सौ लोगों की मौत हो चुकी है। साढ़े तीन सौ लोगों के रक्त की रिपोर्ट पाॅजिटीव आने से राज्यपाल अनुसुइया उइके हैरत में हैं। उन्हें जब इसकी जानकारी दी तो उन्हांेने कहा,’’मै हतप्रभ हूं कि सवा सौ लोगों की पानी की वजह से किडनी फेल हो जाने से जानें जा चुकी है। खबर चैकानें वाली थी इसलिए वहां जाकर इस गांव के लोगों से मिली। सरकार सुपेबेड़ा गांव के प्रति काफी गंभीर है। वह यहां के मरीजों के लिए सब कुछ करने को तैयार है। इसके बाद भी मेरी जरूरत महसूस होती है तो उन्हें व्यक्तिगत मदद को तैयार हूं’’। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,’’ राज्यपाल की चिंता वाजिब है। हम लोग भी चिंतित है। हम तो चाहते हैं कि उसके कारण का पता लगे।राज्यपाल सुपेबेड़ा की स्थिति देखने के बाद केन्द्र सरकार को भी कहें कि पता लगाये कि आखिर मौत की वजह क्या है’’?
सुपेबेड़ा पूरे छत्तीसगढ़ में मौत के गांव के नाम से जाना जाता है। यही वजह है कि किडनी की बीमारी के कारण एक दशक से हालात बेहद खराब हैं। पांच साल से यहां किसी भी घर में शहनाई नहीं बजी।   किडनी की बीमारी के डर से इस गांव में न कोई अपनी लड़की ब्याहना चाहता है और न ही यहां की लड़की को कोई बहू बनाकर अपने घर ले जाना चाहता है। हैरान करने वाली बात यह है कि किडनी की बीमारी की वजह से हर घर में एक महिला की मांग उजड़ चुकी है। खुशी छिन चुकी है। अपने परिवार के 17 सदस्य को किडनी की बीमारी से खो चुके त्रिलोचन सोनवानी ने बताया कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर वाहवाही लूटने में लगी है। चाहे पूर्व बीजेपी की सरकार हो या वर्तमान कांग्रेस की सरकार। त्रिलोचन सोनवानी पहले व्यक्ति हैं जो गांव के 12 व्यक्तियों को रायपुर के मैकाहारा अस्पताल में भर्ती करवाया। जिसमें सात लोगांे की मौत हो गई और पांच अपने गांव सुपेबेड़ा लौट आये। क्यों कि उन्हें मैकाहारा में दवाई खरीदने के लिए बाध्य किया जाता था और अस्पताल में खाना भी नहीं मिलता था।
मौत का गांव
सुपेबेड़ा आज मौत के गांव के नाम से जाना जाता है। यहां ऐसा कोई घर नहीं बचा जहां किडनी से मौत न हुई हो। महेन्द्र मिश्रा के पिता के पिता जलंधर मिश्रा की मौत किड़नी की बीमारी से  हो चुकी है। 65 वर्षीय दामोदर मसरा की डेढ़ साल पहले रक्त परीक्षण में 4.4 पाॅजिटिव पाया गया। इनके भाई चैवन सिंह पत्नी शैलेन्द्र दामोदर की मौत 2018 में हो चुकी है। जलंधर मसरा भी किडनी रोग से ग्रसित है। अंकुर राम आडिल किडनी की बीमारी से ग्रस्त है। इलाज कराने के चक्कर में उसकी आधी जमीन बिक गई। देव प्रकाश पुरैना किडनी रोग में अपने पिता मोहन लाल पुरैना को 2016 में खो चुके हैं। घर में विधवा मां और बहन है। रोजगार का कोई साधन नहीं है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक अब तक 74 लोगों की मौत हो चुकी है। 
मशीनें हैं एक्सपर्ट नहीं 
डाॅ रमन सिंह के कार्यकाल में दो साल पहले डायलिसिस मशीन राजधानी से सुपेबेड़ा के लिए भेजा गया था लेकिन, मशीन चलाने के लिए एक्सपर्ट डॉक्टर नहीं होने की वजह से इसका फायदा किसी भी मरीज को नहीं मिला। जिन मरीजों को डायलिसिस की जरूरत है उन्हें राजधानी रायपुर के डीकेएस हॉस्पिटल और रामकृष्ण केयर भेजा जाता है। डाॅ रमन सिंह की सरकार ने इस गांव को इस समस्या से उबारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। बल्कि अलेक्जेड्राइड की खदानें अपने करीबी उद्योगपतियों को देकर पानी में विषैलों तत्वों में इजाफा किया। किडनी पीड़ितों के इलाज के लिए जो भी व्यवस्था की बात की वो सारे बेबुनियादी है। स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर जो डायलिसिस मशीन भेजी गई, वो आज तक चालू नहीं हुई। दो बोर कराये गये लेकिन, उसका भी पानी संक्रमित है।
निशाने पर थी रमन सरकार
तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल 18 जून 2018 में किडनी की बीमारी से प्रभावित गांव सुपेबेड़ा का दौरा किया था। उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और गांव के हालातों का जायजा लिया। सुपेबेडा के हालातों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था,’’ रमन सिंह विकास यात्रा छोड़कर सुपेबेडा आये और जो दूषित पानी यहां के लोग सालों से पी रहे है उसे पीकर दिखायें। सरकार सिर्फ वादे करती है पर कुछ करती नहीं है। सरकार ने लोगों को वादा तो बहुत किया लेकिन एक भी वादे पूरे नहीं कर सकी। फिर चाहे वो नदी से शुद्ध पेयजल मुहैया कराने का दावा हो या फिर गांव में ही मरीजों को डायलसिस की सुविधा उपलब्ध कराना हो। सरकार अपने किसी भी वादे को पूरा नहीं कर पायी है’’।
भूपेश वायदा भूले
हैरान करने वाली बात यह है कि तात्कालीन पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने चुनाव के वक्त इस गांव का दौरा करने के बाद एक एक घर से कहा था,’’ प्रदेश मंे कांग्रेस की सरकार बनी तो हर पीड़ित घर को दस लाख रूपये कर अनुदान और प्रभावित परिवार के प्रत्येक युवा को रोजगार दिया जायेगा’’। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने दस माह हो गये लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश अपना वायदा भूल गये हैं।
सरकार हरकत में आई
राज्यपाल अनसुइया उइके के सुपेबेडा गांव के दौरे के बाद सरकार हरकत में आई। स्वास्थ्य एंव पंचायत मंत्री टीएस सिंह देव ने यहां आकर बड़ी बड़ी घोषणा कर गये हैं। उन्होंने ग्रामीणों से हाथ जोड़कर इलाज के लिए रायपुर चलने कहा। अपना मोबाइल नंबर दिया और बोले अब शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा। सुपेबेड़ा समेत आसपास के प्रभावित गांव मिस्टीगुड़ा, सेंधगुड़ा, खमारगुड़ा, खोकसरा, रेवापाली,सागौनबाड़ी,किरलीगुड़ा,फूलीगुड़ा,मोटापारा आदि सभी गांव की जिम्मेदारी हमारी है। उन्होंने कहा कि पूर्व सरकार में हुई चूक की मौजूदा सरकार पुनरावृत्ति नहीं करेगी। तीन माह के अंदर गांव से तीन किलोमीटर दूर तेल नदी से पाइप लाइन के जरिये गांव में पानी पहुंच जायेगा। जल्द अस्पताल खुल जायेगा। इसके अलावा विधवा महिलाओं के लिए कुटीर उद्योग खुल जायेगा। साथ ही बेरोजगार युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा’’। उन्होंने माना कि यहां उच्च स्तरीय शोध की आवश्यकता है, जिससे बीमारी के कारणों का पता लग सकेगा। उसके बाद ही इसका समाधान निकाला जा सकता है। सरकार की इस घोषणा का क्रियान्वयन कितना होता है यह वक्त बतायेगा। गांव के अंकुर राम आंडिल कहते हैं,’’ भूपेश बघेल ने गांवों वालों से जो वायदा कर गये थे,उसका क्या होगा’’।
क्रिएटिनिन लेबल 4 से ऊपर
डाॅ आशीष सिन्हा के नेतृत्व में डॉ चंद्रकांत दीवान, नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष पटेल समेत पांच चिकित्सकों की टीम ने सुपेबेड़ा के रिमूवल प्लांट का पानी और खाद्य सामग्रियों के जांच में पाया कि पानी में कैडिमयम व क्रोमियम जैसे हैवी मेटल भारी मात्रा में है। वहीं 400 रक्त नमूने लिए गए जिसमें 256 किडनी की बीमारी से पॉजिटिव पाए गए हैं। हैरानी वाली बात यह है कि लिये गये ब्लड नमूने में ज्यादातर में क्रिएटिनिन लेबल 4 से ऊपर पाया गया है। किडनी में डेढ़ प्रतिशत क्रिएटिनिन का बढ़ना सामान्य माना ताता है। इससे अधिक क्रिएटिनिन का होना खतरनाक माना जाता है। लेकिन यहां के लोेगों को 23 पांइट तक क्रिएटिनिन पाया गया। यहां के पानी में फ्लोराइड,आर्सेनिक,क्रोमियम,केडिनियम,इसके अलवा एथेन और मिथेन जैसे रासायनिक तत्व अधिक मात्रा में पाये गये हैं।
हैंण्ड पंप का पानी जानलेवा
डाॅ आशीष सिन्हा किडनी रोग से ग्रसित मरीज 62 वर्षीय पूरनधर पुरैना ने बातें की तो उसने चैकाने वाला खुलासा किया। पुरैना ने बताया कि जब तक गांव वाले नदी व कुएं का पानी पी रहे थे, तब तक किसी को कोई बीमारी नहीं थी। लेकिन सरकारी हैंडपम्प से पानी पीना शुरु किया उसके बाद से ही यहां किडनी की बीमारी फैली। पानी में फ्लोराइड, आयरन, आर्सेनिक,क्रोमियम,केडिनियम,और दूसरे भारी तत्वों की अधिकता की वजह से लगभग सभी कि हड्डियां कमजोर हो गई हैं। दांत पीले और कई लोगों के कमर झुक गई है। कई लोग सीधे खड़े नहीं हो सकते। 2005 से 2018 तक किडनी बीमारी से मरने वाले परिजनों को संसदीय सचिव स्वेच्छानुदान से 20 हजार और मुख्यमंत्री से 50,50 हजार की सहायता राशि दी गई। 
ग्रामीण मिलेंगे सीएम से
सुपेबेड़ा गांव की पहचान केवल छत्तीसग ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक किडनी प्रभावित गांव के रूप में रही है। गांव में अब तक किडनी की बीमारी से तत्कालीन सरकार ने ग्रामीणों की हर संभव मदद का दावा किया,लेकिन ग्रामीणों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। कांग्रेस की सरकार बनते ही सुपेबेड़ा के लोगों में एक बार फिर बेहतर जीवन की उम्मीद जगी। भूपेश बघेल को उनका वादा याद दिलाने के लिए ग्रामीणों का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही उनसे मिलने की तैयारी में है। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के सुप्रीमो अजीत जोगी ने कहा,’’ जब तक सुपेबेड़ा के दर्द का इलाज नहीं हो जाता राज्योत्सव नहीं मनाया जाना चाहिए।
बहरहाल मौत का गांव सुपेबेड़ा’’को इस नाम से निजात पाने में कितने दिन लगेंगे गांव वाले भी नहीं जानते। भूपेश सरकार इस गांव को जीवनदान देने की दिशा में क्या, क्या करती है,पूरे प्रदेश की नजर है।
  

सवालों के घेरे में सरकार






सत्ता पाने के लिए काग्रेस ने जनता से जो वादे किये थे,वो सत्ताई भंवर में उलझ कर रह गये हैं। सरकार अपने वायदे पर उम्मीद से कम खरी उतरी। डाॅ रमन सिंह कांग्रेस सरकार के एक बरस को बुरे सपने जैसा करार देते हैं। वहीं अजीत जोगी कहते हैं नरवा, गुरवा और बाड़ी में ही उलझी रही सरकार। सवाल यह है कि भूपेश सरकार नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने में कितने कदम चली। 

0 रमेश कुमार’’रिपु’’
                 ‘‘नवा छत्तीसगढ़ गढ़बों’’। भूपेश सरकार का यह नारा आज भी प्रदेश के हर जिले में विज्ञापन के रूप में चश्पा है। एक साल में भूपेश सरकार कितने घर चली, विपक्ष सरकार से पूछ रहा है। क्या एक साल में भूपेश का कद बढ़ा या फिर कांग्रेस का, अथवा सरकार का। वैसे देखा जाये तो प्रदेश सरकार ने अपने एक बरस सुर्खियों की राजनीति में ही गंवाये। एक साल की सरकार ने प्रदेश की जनता को क्या दिया। उसके घोषणा पत्र के कितने वायदे पूरे हुए। कांग्रेस के नवा छत्तीसगढ़ गढ़बों के नारे का सच, कितना सच है,इसका सही मूल्यांकन जनता और विपक्ष करता है। वैसे विपक्ष का एक सूत्रीय काम होता है सरकार की खामियां ढूंढना। बावजूद इसके देखा जाये तो भूपेश सरकार पूर्व सरकार के ज्यादातर मामले की जांच के लिए एसआइटी का गठन करते एक बरस बिता दिये। आठ एसआईटी गठित की गई। हाई कोर्ट ने सात एसआईटी को न केवल रद्द किया बल्कि, जांच पर भी रोक लगा दी। सरकार सत्ता में आने के लिए किसानों से ढाई हजार रूपये प्रति क्ंिवटल की दर से धान खरीदने का वायदा किया था। लेकिन अब वह प्रदेश की 2048 केन्द्रों में 1815 और 1835 रुपए की दर पर धान 15 फरवरी तक खरीदेगी। इस साल 54 नए खरीदी केन्द्र बनाए गए हैं। जबकि 48 मंडियों एवं 76 उपमंडियों के प्रांगण का उपयोग भी खरीदी के लिए किया जाएगा। इस साल प्रदेश के 19 लाख 56 हजार किसानों ने धान बेचने के लिए अपना पंजीयन कराया है। जो कि पिछले साल की तुलना में दो लाख 58 हजार ज्यादा है। सरकार द्वारा घोषित 25 सौ रुपए मंेे से अंतर की राशि किसानों को अलग से दी जायेगी। लेकिन कैसे दी जायेगी,यह सरकार ने अभी तक नहीं बताया। अलबत्ता प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को अंतर की राशि देने के लिए पांच मंत्रियों की कमेटी बनाई है। जो तेलंगाना की रइत बंधु और ओडिशा की कादिया पॉलिसी का अध्ययन करेगी। कमेटी आगामी बजट सत्र के पहले सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। सीएम भूपेश कहते हैं कि, किसानों को हर हाल में 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जाएगा। सरकार ने शीतकालीन सत्र के अनुपूरक बजट में 205 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। जाहिर सी बात है यदि अंतर की राशि प्रदेश सरकार अपनी जेब से देती है, तो उसे 600 करोड़ रूपये का नुकसान होगा। 
किसानों का गुस्सा सड़कों पर
प्रदेश में किसानों से सरकार 1815 और 1835 रुपए की दर पर धान खरीदने का आदेश जारी किया तो विपक्ष ने हंगामा किया। किसानों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया। कवर्धा में धान खरीदी शुरू होने के दूसरे हफ्तें विवाद बढ़ा। कवर्धा के किसानों ने सरकार की खिलाफ़त की और कहा पूरा धान खरीदने का वायदा करने के बाद, तय सीमा में धान लिया जा रहा है। बचा हुआ धान सरकारी सख्ती की वजह से किसान किसी और को भी नहीं बेच सकते। जिले के झिरौनी केंद्र में किसानों ने मुख्यमंत्री का पूतला फूंका। किसानों का कहना है कि सॉफ्टवेयर को ऐसे सेट कर दिया गया है कि, वह एक सीमा तक ही धान खरीदी की एंट्री कर रहा है। जबकि सरकार और इसके अधिकारी पूरा धान लेने  की बात कह रहे हैं। प्रदेश के आधे से अधिक धान खरीदी केन्द्रों में किसानों ने बहिष्कार किया। बावजूद इसके सरकार ने इस साल 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा है।
बुरे सपने जैसी सरकारः रमन
पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह कहते हैं,‘‘ पूरा एक वर्ष छत्तीसगढ़ के लिए एक बुरे सपने जैसा रहा है। गेड़ी चढ़ने,भौरा चलाने और सोंटा मारने से विकास नहीं होता। दरअसल हाल ही में लोक संस्कृति के त्योहार हरेली और गौरा,गौरी पूजन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गेड़ी चलाई थी और सोंटा (चाबुक) भी खुद को मरवाया था। इस सरकार की जो सबसे खतरनाक बात रही, वह ये कि जिन वर्गों को बड़े सपने दिखा कर सत्ता में आई,सबसे ज्यादा उन्हें ही परेशान किया। 2500 रुपया प्रति क्ंिवटल कीमत धान की किसानों को देने से सदन में मुकर गए। धान खरीदी केन्द्रों में अराजकता की स्थिति है। सरकार केवल एक कमेटी का गठन करके धान खरीदी को लेकर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहती है। किसानों का कर्जा माफ करने में फर्जीवाड़ा किया गया। जिस किसान ने कर्जा लिया ही नहीं था, उसे ऋण माफी का प्रमाण पत्र थमा दिया गया। राष्ट्रीयकृत व व्यवसायिक बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों का एक रुपया भी माफ नहीं किया गया। 
निर्भया जैसी स्थिति हर जिले में
डाॅ रमन सिंह ने कहा,सत्ता में आयी सरकार केवल बदला और तबादले को ही बदलाव समझ बैठी है। पुलिसिंग का हाल तो ऐसा बेहाल है कि दुष्कर्म और हत्या आदि की घटनाएं रुक ही नहीं रही हैं। खुद सरकार द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार साल भर में 80 हजार से अधिक अपराध छत्तीसगढ़ में दर्ज किये गए हैं। जबकि अभी भी यह साल बचा हुआ है। केवल रायपुर में रेप,हत्या की 80 से अधिक जघन्य वारदात हो चुकी हैं। डॉ रमन ने कहा कि छत्तीसगढ़ में किसी भी जिले में महिलायें, बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। आये दिन हो रहे अनाचार, हत्याए व छेड़छाड़ की घटनाओं से छत्तीसगढ़ की पहचान अब अपराध गढ़ के रूप में होने लगी है। राज्य के रायपुर संभाग में ही 448 रेप व 664 अपहरण के मामले दर्ज किये गये हैं। बिलासपुर संभाग में 891 रेप व 1377 अपहरण के मामले दर्ज किये गये हैं। कुल 27 जिलों में 7 महिने के भीतर ही 35954 अपराध के मामले दर्ज हैं। हर कोने से निर्भया जैसी वारदातें सामने आ रही हैं। इसी विधानसभा में हमने अपने विधायक भीमा मंडावी जी को खोया है। उनकी नृशंस हत्या की एनआई जांच रोकने के लिए एड़ी,चोटी का जोर लगा दिया था। आखिर किस बात की परदेदारी है। क्या छिपाना चाहते हैं ये। अब हाई कोर्ट ने एनआईए जांच का रास्ता साफ किया है। जांच होने दीजिये पता चलेगा। यही कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए झीरम का सबूत अपनी जेब में होने की बात करते थे, कहाँ है साक्ष्य, अभी तक एजेंसियों को दिया क्यों नहीं।
दिल्ली के वकीलों को पैसा लुटाया
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कहते हैं,‘‘ पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी को केवल बदलापुर की राजनीति के लिए झोंक दिया गया। विधानसभा में सवाल पूछने पर चैंकाने वाली जानकारी सामने आयी कि केवल कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को ही 60 लाख रूपये की फीस दे दी गई ताकि, झूठा मामला बना कर हमें फंसाया जा सके। ऐसे आरोपियों पर प्रदेश की गाढ़ी कमाई लुटाना कहां का न्याय है। इसके अलावा भी दिल्ली के कांग्रेसी वकीलों पर करोड़ों लुटाये गए। अधिकांश मामलों पर कोर्ट में सरकार को मुंह की खानी पड़ी। प्रदेश सरकार ने नेशनल हेराल्ड को दिया 50 लाख का विज्ञापन। जो जनहित में नहीं है।
सरकार के पास विजन नहीं: जोगी
देखा जाये तो विपक्ष का हर नेता भूपेश सरकार की खिलाफत कर रहा है। उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया है जिसे विपक्ष कहे कि यह काम ठीक था। छजका के सुप्रीमों अजीत जोगी कहते हैं, 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में आई लेकिन, पूरा एक साल हताशा एवं निराशा से भरा रहा। सरकार के पास कोई विजन नहीं है। इस सरकार ने एक साल नरवा, घुरवा, और बाड़ी में ही गुम रही। युवाओं को रोजगार, किसानों को परेशानी, महंगाई पर नियंत्रण, स्वास्थ्य शिक्षा समेत हर क्षेत्र में सरकार कुछ नहीं कर पाई। सरकार कहती है बिजली बिल आधा कर दिया गया है। भरपूर बिजली दी जा रही है। लेकिन लो वोल्टेज की परेशानी के चलते बालोद जिले के डौंडी विकास खंड के ग्राम पंचायत मथेना में 40 किसानों की 140 एकड़ फसल सूख गई। पुलिस कर्मियों को मिलने वाले नक्सल भत्ते को बंद कर दिया गया। यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। 
खत्म हो जायेगा नक्सलवादः भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं समीक्षा के नजरिये से एक साल की अवधि कम है। प्रदेश की जनता के साथ छल नहीं किया। रमन सरकार 20 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता की बात करते रहे, जबकि हमारी क्षमता 11 लाख हेक्टेयर की है। ग्रामीणों को रोजगार दे रहे हैं। ई टेंडर बंद कर दिया गया है। नक्सल समस्या में 50 फीसदी की कमी आई है। पूरी उम्मीद है कि पांच साल में नक्सल समस्या खत्म हो जायेगा। प्रदेश की जनता को 450 करोड़ की बिजली बांटी। धान खरीदी के लिए 21 हजार करोड़ खर्च किया गया है। नरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के लिए 4000 करोड़ का फंड दिया गया है। गोठान सरकारी योजना नहीं है। इसका संचालन गांव वालों को ही करना है। हरेली,तीजा और पोरा जो इस प्रदेश का त्योहार है। छुट्टियां घोषित की। मंत्रिमंडल के काम काज की समीक्षा पार्टी हाई कमान और बड़े नेता कर रहे हैं। यह प्रक्रिया चलती रहेगी। हमारी देनदारी 50 हजार करोड़ की है। किसानों का कर्जा माफी,धान खरीदी,मानक बोरा संग्रहण दर बढ़ाया है। इस वजह से  सभी सेक्टरों में उछाल आया है। आदिवासियों की जमीन छीनी जाती रही है। उनको 4200 एकड़ जमीन वापस करने का काम पहली बार हुआ। स्वच्छता दीदी योजना के तहत मानदेय बढ़कर छह हजार किया। जमीन की गाइड लाइन दर में 30 फीसदी की कमी की गई। छोटे भूखंडों की के क्रय विक्रय से रोक हटाया गया। 1250 करोड़ की लागत के 28694 नवीन आवास स्वीकृत किये गये।
सरकार के समक्ष चुनौतियां
इससे इंकार नहीं है कि प्रदेश सरकार को स्थायी रूप से नक्सल समस्या मिली है। सरकार के पास देनदारी अधिक है। घाटे से उबारना और आय बढ़ाना है। 7.18 फीसदी ब्याज दर पर सरकार ने 2 हजार करोड़ का कर्ज लिया। केन्द्र सरकार ने किसानों को बोनस देने से इंकार कर दिया है। लेकिन कांग्रेस के घोंषणा पत्र में ऐसे कई वायदे हैं, जो उसके लिए चुनौती है। हर साल 2500 रूपये क्विंटल किसानों से धान खरीदना। प्रदेश के 40 लाख बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देना या फिर उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करना। दस लाख बेरोजगारों को ढाई हजार रूपये बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही थी। नरवा,घुरवा और बाड़ी योजना को जमीनी धरातल पर सफल करना। कुपोषण दूर करना। शराब बंदी के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट को लागू करना।शराब बंदी का वादा करके सत्ता में आई कांग्रेस अब 1 साल बाद भी शराब बंदी को लेकर कोई भी फैसला नहीं ले पाई। बल्कि दो घंटे और शराब दुकानें खोलने की सीमा बढ़ा दी गई। वहीं शराब से आय का लक्ष्य बढ़ा कर 4700 हजार करोड़ किया गया है। पूरे प्रदेश में ओवर रेट पर शराब बिक रही है उसके करीब 5420 मामले दर्ज किये गये हैं। स्काई वाॅक को तोड़ने की बात कही थी,कमेटी भी गठित की गई। लेकिन हुआ कुछ नहीं। पुलिस भर्ती बल .की परीक्षाओं का परिणाम लंबे समय से रोक कर रखा गया है। 61 हजार नौजवानों का भविष्य अंधकार में है। दो वर्ष की सेवाओं के उपरांत शिक्षाकर्मियों को नियमित करने का वादा भी झूठा साबित हुआ। सरकारी नौकरियों पर एक साल की रोक लगा दी गई। सरकार ने वादा किया था कि महिला स्व सहायता समूहों का कर्जा माफ किया जायेगा। इस वक्त 1 लाख से भी ज्यादा महिला स्व सहायता समूहों का लगभग 1100 करोड़ रुपया कर्जा है। सरकार ने एक फूटी कौड़ी माफ नहीं की। विधवा महिलाओं को 1 हजार रुपए पेंशन देने का वादा था, वो भी पूरा नहीं किया गया। पीड्ल्यूडी विभाग के माध्यम से होने वाले बड़े विकास के कार्य आज प्रदेश भर में रुके हुए हैं। रेल कारिडोर का पैसा रोक कर प्रदेश के विकास को बाधित किया गया है। स्मार्ट सिटी के सभी प्रोजेक्ट रुके। उच्च न्यायालय ने सरकार के कई फैसले को निरस्त किया,मसलन, सहकारी संस्थाओं को भंग करने का मामला हो, आरक्षण बढ़ाने का विषय हो प्रमोशन में आरक्षण देने का मामला हो, अनुसूचित जाति आयोग व महिला आयोग की सदस्यों की नियुक्ति का मामला हो, पूर्व मुख्य सचिव अमन सिंह के खिलाफ एसआईटी गठित करने का मामला हो। पाटन और कवर्धा के 700 किसान अब भी कर्जदार। सहकारी बैंक के सीइओ ने नोटिस दिया है। सरकार के कर्ज माफी घोषणा पर यह प्रश्न चिन्ह है। गन्ना किसान खेत में आग लगा रहे हैं। बंपर पैदावार के बाद भी शक्कर कारखाने में पर्ची नहीं मिलने से किसान परेशान हैं। जनता को लाभ पहुचाने वाली 22 तरह की योजनाओं पर सरकार ने रोक लगा दी।
 सियासी प्रतिशोध में बिताः कौशिक
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा,कांग्रेस सरकार के एक साल का कार्यकाल राजनीतिक प्रतिशोध का रहा है। प्रदेश सरकार के काम की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री डॉण् रमन सिंह के खिलाफ बदलापुर से शुरू हुई और डॉ रमन सिंह के खिलाफ फिर दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के साथ एक साल इस सरकार ने पूरा किया है। पूरे साल भर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगाकर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सरकार के चरित्र हनन में ही लगे रहे। 
बहरहाल भूपेश सरकार ने एक साल में ढाई घर भले नहीं चली विपक्ष की नजरों में लेकिन अपनी छाप प्रदेश की जनता के बीच छोड़ी। इससे इंकार नहीं कि कांग्रेस सरकार को अपने घोषणा पत्र के कई कामों को अभी करना बाकी है। यदि उसे पूरा नहीं की तो सरकार के प्रति जनता में नाराजगी बढ़ सकती है।