Wednesday, September 23, 2020

कोविड की बाढ़,खतरे में जान


कोरोना के सक्रिय मरीजों के मामले में छत्तीसगढ़ ने देश के दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।   कोरोना पीड़ितों की संख्या 60 हजार से ऊपर हो गई है। कोविड इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं है। कई प्राइवेट अस्पतालों के पास सुविधाएं नहीं है। वहीं संविदा स्वास्थ्य कर्मी 19 सितंबर से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर रहेंगे। करीब पांच सैकड़ा मौत के बीच मुख्यमंत्री का दावा कि कोरोना की आधी लड़ाई जीत गए हैं।  

 0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’

 











         

   छत्तीसगढ़ के जिला जांजगीर.चांपा निवासी संजय साहू कहते हैं,मार्च में प्रदेश सरकार   फ्रंट में आकर बड़े बड़े दावा कर रही थी। लेकिन अब स्थिति ठीक विपरीत है। राज्य के सरकारी अस्पताल के बेड से कई गुना कोरोना के मरीज हैं। अब मरीजों को बेड का इंतजार करना पड़ रहा है। यह शिकायत सिर्फ संजय साहू की नहीं, प्रदेश के हजारों कोविड मरीजों की है। टेस्ट रिपोर्ट पाॅजिटिव आने के बाद मरीजों को अस्पताल जाने की मनाही है।
सरकार का आदेश है बेड खाली होने पर मोबाइल पर सूचना आएगी और एबुलेंस ले जाएगी। अब प्राइवेट अस्पताल भी कोविड का इलाज कर सकेंगे। इलाज की दर भी तय कर दी गई है। ए,बी,सी तीन श्रेणियां बनाई गई है। राजधानी में 6200 से 17 हजार रुपए प्रतिदिन इलाज का खर्च है। सबसे ज्यादा खर्च ए.श्रेणी के शहर के लिए तय किया गया है। ए श्रेणी में 6, बी श्रेणी में 8 और सी.श्रेणी में 14 जिलों को रखा गया है।
एनएबीएच मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों में सामान्य मरीजों के इलाज के लिए 6200 रुपए प्रतिदिन का शुल्क तय किया गया है। वहीं एनएबीएच से गैर मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों के लिए सामान्य गंभीर और अति गंभीर मरीजों के इलाज के लिए प्रतिदिन 6200 रुपए से 10 हजार और 14 हजार रुपए शुल्क तय किया गया है। जाहिर है कि आम आदमी कोरोना का इलाज कराने की हैसियत नहीं रखता।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि संक्रमितों को अस्पताल, एम्स और अंबेडकर हॉस्पिटल के आईसीयू में बेड नहीं मिल रहे। सरकार की महामारी से लड़ने इच्छा शक्ति कम है। प्रदेश में करीब 25 कोविड हास्पिटल हैं। निजी और शासकीय अस्पताल में केवल 11544 बिस्तर ही उपलब्ध हैं। राज्य में कोविड अस्पतालों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। पीड़ित परिवार इलाज के लिए भटक रहे हैं।’’  कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शुक्ला ने कहा, पूर्ववर्ती रमन सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं पर थोड़ा भी ध्यान दिया होता, कोरोना काल मे राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने में इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती। जिला अस्पतालों उपस्वास्थ्य केंद्रों तक चिकित्सकों और पैरा मेडिकल स्टाॅफ की भर्तियां नहीं की डॉक्टरों के 75ः पद खाली थे और मेडिकल कालेजों तक मे विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्तियां नहीं कर पाये थे।  
जांजगीर चांपा सहित अनेक जिलों में अभी किसी भी प्राइवेट अस्पताल के संचालकों ने इलाज करने की सहमति नहीं दी है। जिले में कोविड मरीजों की संख्या 18 सौ पार हो गई है। जिले के अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों में केवल एक ही इंट्रेस व एक्जिट गेट हैं। जबकि कोविड पेशेंट के आने,जाने के लिए अलग और स्टाफ के लिए अलग अलग रास्ते होना चाहिए। यह समस्या सिर्फ जांजगीर-चांपा जिले की नहीं,बल्कि प्रदेश के हर जिले की है।  
स्वास्थ्य कर्मी नाराज़
राज्य सरकार ने अपनेे चुनावी जन घोषणा पत्र में संविदा कर्मचारियों के नियमित करने का वादा किया  था। राज्य के सभी जिला चिकित्सालय,कोविड केयर सेंटर, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों,उपस्वास्थ्य केन्द्रों,ं सभी कार्यालयों में कर्मचारी 25 अगस्त से काली पट्टी लगाकर काम कर रहे थे। छत्तीसगढ़ प्रदेश कर्मचारी संघ के बैनर तले यह निर्णय लिया गया है कि राज्य के 13 हजार संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी नियमिती करण संबंधी मांगों को लेकर 19 सितंबर से हड़ताल पर चले जाएंगे। प्रदेश एनएचएम संघ अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से मिल चुके हैं। लेकिन कोई सार्थक आश्वासन नहीं मिला है। इस हड़ताल से कोरोना टेस्ट और इलाज प्रभावित होगा   प्रदेश एनएचएम संघ के महासचिव कौशलेश तिवारी कहते हैं,संविदा पदों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए थी किन्तु सरकार हमारी मांगांे को नजर अंदाज कर, वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग में 2100 पदों पर नियमित भर्ती कर रही है। जाहिर सी बात है कि सरकार का नजरिया ठीक नहीं है।’’  
आंगन बाड़ी क्यों खोल रहे हैं
प्रदेश में 60 हजार से ज्यादा कोरोना के मरीज हैं,इलाज की व्यवस्था नहीं है। ऐसे समय में सरकार ने 7 सितंबर को आंगनबाड़ी खोलने का आदेश दिया। पूर्व मंत्री एंव विधायक बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं सरकार 5 साल से कम उम्र के बच्चों एवं गर्भवती माताओं के साथ,साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की जिंदगी से खिलवाड़ करने पर तुली हुई है। शहर से लेकर गांव तक संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस काम के लिए ना तो उनके पास थर्मामीटर है और ना ही थर्मल स्कैनर है और ना ही उन्हें पीपीई किट दिया गया है। फिर भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ऐसा निर्देश देकर सरकार उनकी जिंदगी से क्यों खिलवाड़ कर रही है?
छग कोरोना लड़ाई में पिछड़ा
कोविड को लेकर सबसे ज्यादा खराब स्थिति राजधानी रायपुर की है। स्वास्थ्य विभाग ने रोजाना 2400 सैंपल टेस्ट करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कोविड जांच केंद्रों की संख्या भी बढ़ाई गई है लेकिन, समय और एंटीजन किट के अभाव में यह संभव नहीं हो पा रहा है। दूसरी ओर कोरोना की लड़ाई में छत्तीसगढ़ देश के सबसे खराब राज्यों में दूसरे पायदान पर है। राजधानी रायपुर की स्थिति कोरोना संक्रमण को लेकर बिगड़ती जा रही है। सबसे ज्यादा मरीज यहीं मिल रहे हैं और मौतों का आंकड़ा भी। आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में अभी तक 77540 संक्रमित मिले हैं। इनमें से ठीक होने वालों की संख्या महज 21898 यानी रिकवरी रेट 45 फीसदी से कम है। इससे नीचे नार्थ ईस्ट का छोटा सा राज्य मेघालय है। 31 जुलाई तक कोरोना पॉजिटिव 9191 थे,लेकिनं 31 अगस्त तक आंकड़ा 31502 हो गया। ऐसा समझा रहा है कि सितंबर के अंत तक यह संख्या एक लाख के पार पहुंच सकती है। प्रदेश में हर 10 लाख की आबादी में 1097 पॉजिटिव मिल रहे। राष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या 2801 है। अभी प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 20280 टेस्ट हो रहे हैं। प्रदेश में टेस्ट पॉजिटिव रेट 5.4 फीसदी है जो कि राष्ट्रीय औसत का 8.6 फीसदी है।
समस्या यह भी
कोविड केयर सेंटर और कोविड अस्पताल में परिजनों को उनके मरीजों के स्वास्थ्य की जानकारी देने की व्यवस्था नहीं है। भिलाई के कोविड अस्पताल में न डिजिटल एक्सरे मशीन है। न ही सीटी स्कैन मशीन। एक्सरे फिल्म देखने विव बॉक्सेस भी नहीं है। आउट डेटेड कानवेंशनल एक्सरे मशीन लगाकर खानापूर्ति की जा रही है। प्रोटोकाल के अनुसार कोविड केयर सेंटर में आईसीयू डील करने के लिए परमानेंट निश्चेतना विशेषज्ञ और चेस्ट फिजिशियन,जनरल फिजिशियन नहीं हैं। पॉजिटिव मरीजों को ट्रेस कर अस्पताल पहुंचाने पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं है। प्रोटोकाल के अनुसार गंभीर मरीजों को रेफर करने के लिए परमानेंट एंबुलेंस का काम 108 एंबुलेंस को दिया गया है। यहां तक की कोविड केयर सेंटर में भी परामानेंट एंबुलेंस नहीं है।
सरकारी अस्पताल में खुदकुशी
कोविड सेंटर में खाने की व्यवस्था को लेकर भारी शिकायत है ही, सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था चरम पर है। मरीजों का ध्यान नहीं दिये जाने की वजह से अस्पताल में ही खुदकुशी की वारदात हो रही है। मुंगली जिले के मातृ एवं शिशु अस्पताल लोरमी में बलौदाबाजार निवासी 47 वर्षीय अनिल जायसवाल कोरोना पाॅजीटिव था, ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। सात सितम्बर से वह   अस्पताल में भर्ती था। तीन दिनों बाद मरीज वार्ड की खिड़की सेे अपने गमछे से फांसी लगाकर खुदकुशी कर लिया।  
बहरहाल इस बीमारी ने लोगों की जिन्दगी और आकांक्षाओं को बदल दिया है। वहीं सरकार से आम व्यक्ति को जो उम्मीदें थी, अब वो ध्वस्त हो गई है। रोजगार की किल्लत और वित्तीय अनिमितता से जूझ रहे प्रदेश के लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या है, कैसे कोविड से मुकाबला करें,इसलिए कि सरकार को लोगों की जान की परवाह नहीं है।
 
 
 

आदिवासियों की अनदेखी











पेशा कानून और पांँचवी अनुसूची का पालन करने की बजाए,भूपेश सरकार ग्राम सभा से फर्जी अनुमति पत्र के जरिये आदिवासियों की जमीन उद्योगपतियों को दे रही हैं। खनन में माओवादी रोड़ा न बन सकें,निजी कंपनियों को पुलिस का संरक्षण दिया गया है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में था,सरकार बनने पर फर्जी आरोप में बंद, आदिवासी रिहा किए जाएंगे। आदिवासियों के हितों की अनदेखी से अब भूपेश सरकार कटघेरे में है।  
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
              छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार लाल लड़ाकों को उनके गढ़ में कैसे मात देगी,अभी तक कोई योजना नहीं बना सकी है। जगदलपुर समेत बस्तर के शहरी इलाकों के एकदम करीब तक, नक्सलियों के बैनर,पोस्टर लगने का यह सीधा संकेत है कि, नक्सलियों का सामाजिक जीवन में और दबाव बढ़ने का खतरा बढ़ा है। पिछले बीस साल में 1769 निर्दोष आदिवासी ग्रामीणों की माओवादियों ने जानें ले ली। मगर, लाल गलियारे का दायरा कम नहीं हुआ। दंतेवाड़,बीजापुर और नारायणपुर में नक्सलियों के उत्पात में कोई कमी नहीं आई। अपने हितों की अनदेखी पर अब नाराज आदिवासी विरोध प्रदर्शन कर सरकार को उनके घोषणा पत्र की ओर ध्यान खींचा है। बस्तर संभाग की 12 सीटों को जीतने कांग्रेस ने, अपने घोंषणा पत्र में लिखा था कि,उनकी सरकार बनने पर जेल में बंद सभी    फर्जी नक्सलियों को रिहा कर दिया जाएगा। दो साल बाद भी भूपेश सरकार ने अपने घोंषणा पत्र की ओर ध्यान नहीं दिया।
आदिवासियों ने खोला मोर्चा
नक्सल और जंगल से जुड़े कई मामलों में आदिवासियों को फंसा कर जेलों में बंद किये जाने पर उनकी रिहाई की मांग को लेकर 14 सितम्बर को बड़ी तादाद में महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे नकुलनार, श्यामगिरि,पालनार इलाके में 50-100 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके पहुंचे थे। ये ग्रामीण सरकार से अपने परिवार या गाँव के लोगों को रिहा करने की मांग कर रहे थे। इस प्रदर्शन में सुकमा, बीजापुर,नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले के हजारों ग्रामीण पैदल जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा जाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन दंतेवाड़ा से करीब 50 किलोमीटर पहले ही कुआकोंडा तहसील के श्यामगिरी गाँव में पुलिस जवानों ने इन्हें रोका और इनके साथ सख्ती से पेश आए। लाठी चार्ज में कई ग्रामीणों को चोटें आने पर जंगल और पहाड़ की ओर भाग गए। ग्रामीण आदिवासियों ने अपने नेताओं से संपर्क किया। दूसरे दिन अरविंद नेताम, सोनी सोरी और सुजीत कर्मा के नेेतृत्व में ग्रामीणों ने थाने का घेराव किया।  
ग्रामीणों की मांग
चुनाव से पहले कांग्रेस सरकार ने आश्वासन दिया था कि,फर्जी एनकाउंटर और फर्जी मुठभेड़ बंद होगी। निर्दोष आदीवासी बंदी और विचारधीन बंदी,कैदियों के रिहाई की जाएगी। सरकार की ओर से अनदेखी किए जाने से नाराज आदिवासियों ने अपनी प्रमुख माँंगों को लेकर सड़कों पर उतरे। इनकी मांँग है कि जेल में तीन साल से अधिक फर्जी नक्सली मामले में जेल काट रहे आदिवासी बंदियों को निशर्त रिहा किया जाए। आदिवासियों पर यूएपीए की धाराएं लगाना बंद किया जाए। कोरोना महामारी संकट से कैदियों का जान बचाने के लिए जमानत पर तुरंत रिहा किया जाये। जेल में बंद कैदियों को उनके परिवार वालो से मित्रो से मुलाकात करने का मौका देना चाहिए और उन्हें जरूरतमंद सामान दिया जाए। जेल में क्षमता के अनुरूप ही कैदियों को रखा जाए। जेल में अपनी समस्या बता रहे कैदियों को बर्बर तरीके से पीटा जा रहा है, इस गैर कानूनी अमानवीय कृत्य को रोकना जाए। पेशा कानून और पांचवीं अनुसूची का पालन किया जाए। शिक्षा और स्वस्थ्य विकास की मांग को पूरा किया जाए। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि, पटनायक समिति के माध्यम से छोटे,छोटे प्रकरणों में जेल में बंद आदिवासियों की रिहाई के लिए कार्रवाई का आदेश दिया गया है। पटनायक समिति के समक्ष 625 प्रकरण प्रस्तुत किए गए थे। जिनमें 404 प्रकरणों में समिति ने अनुशंसा की है। न्यायालय से 206 प्रकरण निराकृत किए गए हैं।‘‘  
आर,पार की लड़ाई लड़ेंगे: सोरी  
रिहाई मंच की प्रमुख सोनी सोरी ने बताया,‘‘पुलिस ने प्रदर्शन में शामिल कई ग्रामीणों को बर्बरता से मारा,पीटा है। हम खाली हाथ ही आये थे। क्योंकि हम सिर्फ सरकार से बात करना चाहते थे। मगर वो भी हमें नहीं करने दिया गया और हम लोगों को बुरी तरह खदेड़ा गया। घायल ग्रामीणों को देखकर इस बार हमें मजबूरन लौटना पड़ रहा है। मगर हमने हार नहीं मानी है। अगली बार हम सरकार से आर,पार की लड़ाई लड़ेंगे।‘‘
खनन के ठेका का विरोध  
भूपेश बघेल सरकार आदिवासियों के हितों की जगह उद्योगपतियों को ज्यादा तरजीह दीे रही है। जैसा कि दंतेवाड़ा के गुमियापाल पंचायत के आश्रित ग्राम आलनार के पहाड़ में लौह अयस्क की खदान है। जिसे आरती स्पंज आयरन कम्पनी को खनन के लिए दिया गया है। नक्सली गतिविधियों की वजह से   आरती स्पंज आयरन कम्पनी अब तक लौह अयस्क का खनन नहीं कर सकी है। कंपनी के खनन में आदिवासी रोड़ा न बनें,इसलिए सरकार ने गुमियापाल में पुलिस का नया कैंप स्थापित किया है।   ग्रामीणों ने कहा कि सुरक्षाबलों का काम, हमारी सुरक्षा करना है लेकिन,इनसे बड़ी कंपिनयों के लिए जमीन अधीग्रहण का काम लिया जा रहा है। बैलाडीला क्षेत्र के ग्रामीण माइंस और जमीन अधिग्रहण का विरोध करते हुए हजारों ग्रामीण किरंदुल थाना क्षेत्र के ग्राम गुमियापाल में इकट्ठे हुए। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन वास्तविक ग्रामसभा की बजाए, फर्जी तरीके से ग्राम सभा करके, लौह अयस्क खनन के अलावा दूसरे काम भी कर रहे हैं। जनपद सदस्य राजू भास्कर ने कहा कि ग्रामीणों की मांँग है कि आलनार ग्रामसभा को भी हिरोली की तरह शून्य घोषित कर आरती स्पंज आयरन कंपनी को दी गई लीज को निरस्त किया जाए।
फर्जी ग्रामीण सभा
ग्रामीणों के मुताबिक पूर्व में हिरोली की ग्रामसभा आखिर फर्जी साबित हुई और आलनार ग्रामसभा की स्थिति भी वैसी ही है। पूरे बस्तर सभंग में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(1) पांचवीं अनुसूची लागू है। इसके बावजूद ग्रामसभा की अनुमति लिए बगैर गांँवों के जमीन का अधिग्रहण कर सरकार लीज पर दे रही है। यह आदिवासियों के अधिकार पर प्रहार है।  
आदिवासी युवाओं को मिलेगी वर्दी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सलवा जुडूम की तर्ज पर बस्तर विशेष बल के गठन का निर्देश दिए हैं। इस विशेष बल में बस्तर के संवेदनशील क्षेत्रों की ग्राम पंचायतों के स्थानीय युवाओं को भर्ती किया जाएगा। भूपेश सरकार इसे नक्लवाद के खात्मे के लिए एक बड़ा प्लान मानती है। बस्तर अंचल की कठिन भौगोलिक परिस्थितियां और स्थानीय भाषा की जानकारी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है। मुख्यमंत्री का तर्क है कि अंदरूनी गांँवों के युवाओं को भर्ती करने से पुलिस का काम आसान हो जाएगा। जाहिर सी बात है कि एक तरफ नक्सली आदिवासी दूसरी तरफ पुलिस आदिवासी। दोनों एक दूसरे के सीने में गोली दागेंगे।
आदिवासियों की अनदेखीः  संजय
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि नक्सली उन्मूलन के लिए लगभग दो साल में भी कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई जा सकी है। नक्सलियों के प्रति प्रदेश सरकार का नरम रुख कई संदेह और सवाल खड़े कर रहा है। रिहाई की मांग को लेकर नक्सलियों के दबाव से जूझती प्रदेश सरकार इन लोगों की रिहाई से जुड़ी तकनीकी दिक्कतों को लेकर हिचकिचा रही है, और खुद की परेशानी से बचने के लिए अब नक्सलियों से अपनी मित्रता निभाती दिख रही है।’’  
बस्तर पुलिस का प्रति प्रचार युद्ध   
पुलिस महानिरीक्षक बस्तर रेंज सुंदरराज पी. का मानना है कि माओवादियों के विकास विरोधी एंव जन विरोधी का चेहरा उजागर होना जरूरी है। इसलिए उनके खिलाफ प्रति प्रचार युद्ध किया जा रहा है। क्षेत्रीय बोली और भाषा में बैनर पोस्टर, लघु चलचित्र, ऑडियों क्लिप, नाच-गाना, गीत-संगीत एवं अन्य प्रचार,प्रसार के माध्यम से माओवादियों के काले कारनामों को उजागर किया जायेगा। यह सब स्थानीय गोंडी भाषा एवं हल्बी भाषा में किया जा रहा है। यह अभियान स्थानीय नक्सल मिलिशिया कैडर्स एवं नक्सल सहयोगियों को हिंसा त्याग कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने आत्मसमर्पण हेतु प्रेरित करेगा। माओवादियों को लेकर चित्रों के माध्यम से यह बताने और समझाने की कोशिश पुलिस ने किया है कि माओवादी सड़क, स्कूल, पुल उद्योंगो का विरोध कर विकास का विरोध करते हैं। माओवादियों की कू्ररता को बताने उनकी हत्या का भी जिक्र पोस्टर में किय गया है।
बहरहाल आदिवासियों को नाराज करके कोई भी सरकार बस्तर से नक्सलियों को नहीं खदेड़ सकती। इसी का फायदा नक्सली उठा रहे हैं।