कोरोना के सक्रिय मरीजों के मामले में छत्तीसगढ़ ने देश के दूसरे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। कोरोना पीड़ितों की संख्या 60 हजार से ऊपर हो गई है। कोविड इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं है। कई प्राइवेट अस्पतालों के पास सुविधाएं नहीं है। वहीं संविदा स्वास्थ्य कर्मी 19 सितंबर से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर रहेंगे। करीब पांच सैकड़ा मौत के बीच मुख्यमंत्री का दावा कि कोरोना की आधी लड़ाई जीत गए हैं।
0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
छत्तीसगढ़ के जिला जांजगीर.चांपा निवासी संजय साहू कहते हैं,मार्च में प्रदेश सरकार फ्रंट में आकर बड़े बड़े दावा कर रही थी। लेकिन अब स्थिति ठीक विपरीत है। राज्य के सरकारी अस्पताल के बेड से कई गुना कोरोना के मरीज हैं। अब मरीजों को बेड का इंतजार करना पड़ रहा है। यह शिकायत सिर्फ संजय साहू की नहीं, प्रदेश के हजारों कोविड मरीजों की है। टेस्ट रिपोर्ट पाॅजिटिव आने के बाद मरीजों को अस्पताल जाने की मनाही है।
सरकार का आदेश है बेड खाली होने पर मोबाइल पर सूचना आएगी और एबुलेंस ले जाएगी। अब प्राइवेट अस्पताल भी कोविड का इलाज कर सकेंगे। इलाज की दर भी तय कर दी गई है। ए,बी,सी तीन श्रेणियां बनाई गई है। राजधानी में 6200 से 17 हजार रुपए प्रतिदिन इलाज का खर्च है। सबसे ज्यादा खर्च ए.श्रेणी के शहर के लिए तय किया गया है। ए श्रेणी में 6, बी श्रेणी में 8 और सी.श्रेणी में 14 जिलों को रखा गया है।
एनएबीएच मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों में सामान्य मरीजों के इलाज के लिए 6200 रुपए प्रतिदिन का शुल्क तय किया गया है। वहीं एनएबीएच से गैर मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों के लिए सामान्य गंभीर और अति गंभीर मरीजों के इलाज के लिए प्रतिदिन 6200 रुपए से 10 हजार और 14 हजार रुपए शुल्क तय किया गया है। जाहिर है कि आम आदमी कोरोना का इलाज कराने की हैसियत नहीं रखता।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि संक्रमितों को अस्पताल, एम्स और अंबेडकर हॉस्पिटल के आईसीयू में बेड नहीं मिल रहे। सरकार की महामारी से लड़ने इच्छा शक्ति कम है। प्रदेश में करीब 25 कोविड हास्पिटल हैं। निजी और शासकीय अस्पताल में केवल 11544 बिस्तर ही उपलब्ध हैं। राज्य में कोविड अस्पतालों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। पीड़ित परिवार इलाज के लिए भटक रहे हैं।’’ कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शुक्ला ने कहा, पूर्ववर्ती रमन सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं पर थोड़ा भी ध्यान दिया होता, कोरोना काल मे राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने में इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती। जिला अस्पतालों उपस्वास्थ्य केंद्रों तक चिकित्सकों और पैरा मेडिकल स्टाॅफ की भर्तियां नहीं की डॉक्टरों के 75ः पद खाली थे और मेडिकल कालेजों तक मे विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्तियां नहीं कर पाये थे।
जांजगीर चांपा सहित अनेक जिलों में अभी किसी भी प्राइवेट अस्पताल के संचालकों ने इलाज करने की सहमति नहीं दी है। जिले में कोविड मरीजों की संख्या 18 सौ पार हो गई है। जिले के अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों में केवल एक ही इंट्रेस व एक्जिट गेट हैं। जबकि कोविड पेशेंट के आने,जाने के लिए अलग और स्टाफ के लिए अलग अलग रास्ते होना चाहिए। यह समस्या सिर्फ जांजगीर-चांपा जिले की नहीं,बल्कि प्रदेश के हर जिले की है।
स्वास्थ्य कर्मी नाराज़
राज्य सरकार ने अपनेे चुनावी जन घोषणा पत्र में संविदा कर्मचारियों के नियमित करने का वादा किया था। राज्य के सभी जिला चिकित्सालय,कोविड केयर सेंटर, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों,उपस्वास्थ्य केन्द्रों,ं सभी कार्यालयों में कर्मचारी 25 अगस्त से काली पट्टी लगाकर काम कर रहे थे। छत्तीसगढ़ प्रदेश कर्मचारी संघ के बैनर तले यह निर्णय लिया गया है कि राज्य के 13 हजार संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी नियमिती करण संबंधी मांगों को लेकर 19 सितंबर से हड़ताल पर चले जाएंगे। प्रदेश एनएचएम संघ अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से मिल चुके हैं। लेकिन कोई सार्थक आश्वासन नहीं मिला है। इस हड़ताल से कोरोना टेस्ट और इलाज प्रभावित होगा प्रदेश एनएचएम संघ के महासचिव कौशलेश तिवारी कहते हैं,संविदा पदों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए थी किन्तु सरकार हमारी मांगांे को नजर अंदाज कर, वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग में 2100 पदों पर नियमित भर्ती कर रही है। जाहिर सी बात है कि सरकार का नजरिया ठीक नहीं है।’’
आंगन बाड़ी क्यों खोल रहे हैं
प्रदेश में 60 हजार से ज्यादा कोरोना के मरीज हैं,इलाज की व्यवस्था नहीं है। ऐसे समय में सरकार ने 7 सितंबर को आंगनबाड़ी खोलने का आदेश दिया। पूर्व मंत्री एंव विधायक बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं सरकार 5 साल से कम उम्र के बच्चों एवं गर्भवती माताओं के साथ,साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की जिंदगी से खिलवाड़ करने पर तुली हुई है। शहर से लेकर गांव तक संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस काम के लिए ना तो उनके पास थर्मामीटर है और ना ही थर्मल स्कैनर है और ना ही उन्हें पीपीई किट दिया गया है। फिर भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ऐसा निर्देश देकर सरकार उनकी जिंदगी से क्यों खिलवाड़ कर रही है?
छग कोरोना लड़ाई में पिछड़ा
कोविड को लेकर सबसे ज्यादा खराब स्थिति राजधानी रायपुर की है। स्वास्थ्य विभाग ने रोजाना 2400 सैंपल टेस्ट करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कोविड जांच केंद्रों की संख्या भी बढ़ाई गई है लेकिन, समय और एंटीजन किट के अभाव में यह संभव नहीं हो पा रहा है। दूसरी ओर कोरोना की लड़ाई में छत्तीसगढ़ देश के सबसे खराब राज्यों में दूसरे पायदान पर है। राजधानी रायपुर की स्थिति कोरोना संक्रमण को लेकर बिगड़ती जा रही है। सबसे ज्यादा मरीज यहीं मिल रहे हैं और मौतों का आंकड़ा भी। आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में अभी तक 77540 संक्रमित मिले हैं। इनमें से ठीक होने वालों की संख्या महज 21898 यानी रिकवरी रेट 45 फीसदी से कम है। इससे नीचे नार्थ ईस्ट का छोटा सा राज्य मेघालय है। 31 जुलाई तक कोरोना पॉजिटिव 9191 थे,लेकिनं 31 अगस्त तक आंकड़ा 31502 हो गया। ऐसा समझा रहा है कि सितंबर के अंत तक यह संख्या एक लाख के पार पहुंच सकती है। प्रदेश में हर 10 लाख की आबादी में 1097 पॉजिटिव मिल रहे। राष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या 2801 है। अभी प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 20280 टेस्ट हो रहे हैं। प्रदेश में टेस्ट पॉजिटिव रेट 5.4 फीसदी है जो कि राष्ट्रीय औसत का 8.6 फीसदी है।
समस्या यह भी
कोविड केयर सेंटर और कोविड अस्पताल में परिजनों को उनके मरीजों के स्वास्थ्य की जानकारी देने की व्यवस्था नहीं है। भिलाई के कोविड अस्पताल में न डिजिटल एक्सरे मशीन है। न ही सीटी स्कैन मशीन। एक्सरे फिल्म देखने विव बॉक्सेस भी नहीं है। आउट डेटेड कानवेंशनल एक्सरे मशीन लगाकर खानापूर्ति की जा रही है। प्रोटोकाल के अनुसार कोविड केयर सेंटर में आईसीयू डील करने के लिए परमानेंट निश्चेतना विशेषज्ञ और चेस्ट फिजिशियन,जनरल फिजिशियन नहीं हैं। पॉजिटिव मरीजों को ट्रेस कर अस्पताल पहुंचाने पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं है। प्रोटोकाल के अनुसार गंभीर मरीजों को रेफर करने के लिए परमानेंट एंबुलेंस का काम 108 एंबुलेंस को दिया गया है। यहां तक की कोविड केयर सेंटर में भी परामानेंट एंबुलेंस नहीं है।
सरकारी अस्पताल में खुदकुशी
कोविड सेंटर में खाने की व्यवस्था को लेकर भारी शिकायत है ही, सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था चरम पर है। मरीजों का ध्यान नहीं दिये जाने की वजह से अस्पताल में ही खुदकुशी की वारदात हो रही है। मुंगली जिले के मातृ एवं शिशु अस्पताल लोरमी में बलौदाबाजार निवासी 47 वर्षीय अनिल जायसवाल कोरोना पाॅजीटिव था, ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। सात सितम्बर से वह अस्पताल में भर्ती था। तीन दिनों बाद मरीज वार्ड की खिड़की सेे अपने गमछे से फांसी लगाकर खुदकुशी कर लिया।
बहरहाल इस बीमारी ने लोगों की जिन्दगी और आकांक्षाओं को बदल दिया है। वहीं सरकार से आम व्यक्ति को जो उम्मीदें थी, अब वो ध्वस्त हो गई है। रोजगार की किल्लत और वित्तीय अनिमितता से जूझ रहे प्रदेश के लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या है, कैसे कोविड से मुकाबला करें,इसलिए कि सरकार को लोगों की जान की परवाह नहीं है।