Sunday, July 7, 2019

संतुलन साधने की कोशिश


जनता और नौकरशाही के बीच संतुलन साधने के साथ ही दर्जनों चुनौतियां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने मुंह बाये खड़ी है। आर्थिक संकट से गुजर रही सरकार के समक्ष नक्सल समस्या,बेरोजगारी समस्या,किसानों से धान खरीदी की समस्या,हजारों गांव में बिजली नहीं, मिट्टी तेल का कोटा आधा हो जाने पर उसका हल ढूंढना और केन्द्र में बीजेपी की सरकार के साथ संतुलन भी साधना बड़ी चुनौती है।

0 रमेश कुमार ’’रिपु’’
                    छत्तीसगढ़ के गंावों को स्वालंबी बनाने और सीधे किसानों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी ड्रीम योजना नरवा,गरुवा,घुरवा और बाड़ी योजना को हर गांव तक पहुंचाना चाहते हैं। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में दो छत्तीसगढ़ का निर्माण किये। एक शहरी और दूसरा ग्रामीण। भूपेश बघेल इसके उलट पूरे राज्य का एक सा चेहरा बनाने की दिशा में पूरी प्रशासनिक मशीनरी को लगा दिये हैं। लेकिन चांैकाने वाली बात है कि इनकी ड्रीम योजना को ज्यादातर अधिकारी जानते नहीं हैं। जो जानते हैं वो इसे बकवास कहते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लगता है कि उनकी इस योजना से ग्रामीण खुश हो जायेंगे। इससे किसान वोट बैंक कांग्रेस के खाते में बढे़गा। जैसा कि वे कहते है
परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर के गृह जिला कबीरधाम के चार विकासखंडों में 74 गोठान बनाये जाने हैं। लकिन बिरपुर गौठान पहली ही बारिश में ढह गया और डबरी (तालाब नुमा) में तब्दील हो गया। भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष पूनम चन्द्राकर कहते हैं,’’ गौठान महज फोटो सेशन के लिए किसी फिल्मी सेट की मानिंद तैयार किया गया था। जो गौठान वहां बनाया गया था, उसमें गायों के लिए कोई शेड नहीं था। बारिश का पानी भर जाने की वजह से गायेें भाग गईं। नरवा,गरुवा,घुरवा, और बाड़ी के नारे की यह सच्चाई सरकार की विफलता की परिचायक है’’। जाहिर है ऐसे में न तो गांव स्वालंबी बन सकेंगे और न ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था बेहतर हो सकेगी।
छह माह की भूपेश सरकार के समक्ष जनता को खुश करने की चुनौती है। इसलिए कि छह माह में तीन माह लोकसभा चुनाव की तैयारी में निकल गये। तीन माह में सरकार ने कांग्रेस के घोंषणा पत्र के कुछ वायदों को पूरा किया है। लेकिन अब भी कई वायदे अधर में है। 17 जून को भूपेश बघेल ने अपनी सरकार के काम काज का ब्यौरा इस तरह पेश किया, जैसे सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया है। मीडिया के समक्ष अपने काम काज का बही खाता इस तरह पेश किया मानो जनता को याद दिलाने के लिए कि सरकार ने ये काम किये। विधान सभा चुनाव में वायदा किये थे कि कांग्रेस की सरकार बनी तो किसानों के ऋण माफ किये जायेंगे। लोकसभा चुनाव सामने था, जनता के बीच भरोसा कायम करने के लिए आधे किसानों का ऋण माफ किया। चूंकि वायदा पूरा नहंीं निभाया, इसलिए कांग्रेस बहुत अधिक भाजपा का नुकसान नहीं कर पाई।
शराब बंदी गले की हड्डी
राज्य में शराब बंदी सरकार के गले की फांस बन गई है। क्यों कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में राज्य की करीब 96 लाख महिला मतदाताओं से शराब बंदी का वायदा किया गया था। सरकार की चुप्पी से जाहिर है कि शराब बंदी केवल वोटों की राजनीति से प्रेरित थी। यह एक ऐसा मामला है जिसे रमन सरकार भी हाथ लगाने से बचती रही। विधान सभा चुनाव करीब था, और जब रमन सरकार ने खुद शराब बेचने का फैसला किया तो, भूपेश बघेल को सियासी मुद्दा मिल गया। उन्होंने रमन सरकार के फैसले की तीखी आलोचना करते हुए शराब नीति पर सवाल खडे़ किए। इतना ही नही उन्होंने आरएसएस प्रमुख को पत्र लिख कर रमन सरकार को घेरने की कोशिश की। अब शराब बंदी को लेकर हर जिले में स्कूली बच्चों से लेकर महिलायें प्रदर्शन कर रही हैं। 4700 करोड़ रूपये का राजस्व का लक्ष्य तय करने वाली सरकार, नहीं लगता है कि राज्य में पूर्ण शराब बंदी पर मोहर लगा देगी। हालांकि सरकार ने इस पर विचार करने विधायक सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी   गठित की है। लेकिन यह कमेटी भी इस दिशा में कुछ कर पायेगी, ऐसा नहीं लगता। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बघेल कहे थे कि पहले प्रदेश में दूध की नदियाँ बहनी चाहिए फिर शराब की बिक्री बंद होगी। उसी का नतीजा था कि कांग्रेस को 90 में 68 सीटें मिली।
अफसरशाही पर नकेल नहीं
डाॅ रमन सिंह की सरकार पर आरोप लगते रहें हैं कि नौकरशाही के शिकंजे में हैं। कांग्रेस की सरकार बनने से पहले तक बस्तर के पूर्व आईजी एस.आर. कल्लूरी भूपेश की आंखों की किरकिरी थे, लेकिन,एस आर कल्लूरी की ईओडब्लयू में पदस्थापना पर सरकार की बड़ी आलोचना हुई। कुछ दिनों बाद थोक में तबादले ने कई सवाल खड़े कर दिये। उनकी पारदर्शिता पर उंगलियां उठी। कई जिला कलेक्टरों को नई पदस्थापना के हफ्ते दो हफ्ते में पुनः नई पदस्थापना के आदेश दिये गये। राजधानी रायपुर में एस.पी. नीतू कमल पन्द्रह दिन नहीं रह पाई, उन्हें हटा दिया गया। जाहिर है कि सरकार खुद तय नहीं कर पा रही है कि नौकरशाही से कैसे काम लिया जायेगा। नौकरशाही पर नकेल लगाने में आशंकित है। अफरशाही और सरकार के बीच संतुलन बिठाकर काम करना भूपेश सरकार के लिए चुनौती है। फोन टैपिंग मामले में गंभीर आरोपों का सामना कर रहे आईपीएस मुकेश गुप्ता के मामले को लेकर सरकार उहापोह की स्थिति में है। अंतागढ़ का कांटा सरकार के पैरों मंे चुभा है,लेकिन कैसे निकलेगा सरकार भी नहीं जानती। भूपेश सरकार ने डीजीपी ए. एन. उपाध्याय को हटाकर डी.एम अवस्थी को डीजीपी बनाया तो पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह ने एतराज किया। उन्होंने कहा इस सरकार ने डी.जी को पटवारी समझ लिया है। जब चाहे हटा दें। डीजीपी की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट कीे गाइडलाइन का पालन नहीं किया गया। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि नई सरकार चीफ सिकरेट्री को बदल सकती है। मगर डीजीपी को नहीं। डीजीपी अगर बदलना भी है तो यूपीएससी को पहले पेनल भेजना होगा।
चर्चा में पहला जन चैपाल
सरकार बनने के बाद सी.एम भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री निवास में पहला जन चैपाल रखा। जिसमें प्रदेश भर से लोग अपनी समस्याओं को लेकर पहुंचे थे। लेकिन सीएम हाउस में दाखिल होने से पहले ही उनका गमछा,दुपट्टा और पगड़ी उतरवा लिया गया। कांग्रेस ने इस गलती के लिए सुरक्षाकर्मियों को जिम्मेदार ठहराया। भाजपा प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि गमछा,दुपट्टा और पगड़ी तो छत्तीसगढ़ के लोकजीवन में आत्मसम्मान के प्रतीक हैं। छत्तीसगढ़ के सम्मान की डींगे हांकने वाले मुख्यमंत्री ने अपने जन चैपाल कार्यक्रम में इसी सम्मान के साथ घिनौना खिलावाड़ सुरक्षा के नाम पर होने दिया जो मुख्यमंत्री के दोहरे राजनीतिक मापदंडों का परिचायक है।
सरकार के समक्ष चुनौती
प्रदेश सरकार के समक्ष घोषणा पत्र में किये गये वायदों को पूरा करने में आर्थिक संकट सबसे बड़ा रोड़ा है। वहीं कुछ ऐसे भी मामले हैं जो डाॅ रमन सिंह की घोषणा की वजह से सरकार के लिए कंटक है। मसलन डाॅ रमन सिंह ने चुनाव जीतने के लिए शिक्षाकर्मियो की हड़ताल को देखते हुए उनके वेतन में जबरदस्त बढ़ोतरी की घोंषणा की थी। जाहिर सी बात है कि दो साल के धान का बोनस और शिक्षाकर्मियों का वेतन,धान खरीदी की मूल्य और किसानों के कर्ज माफी को जोड़ दिया जाये तो सरकार का बजट बिगड़ जाता है। धान बेचने वाले किसानों से अब तक 11 अरब 63 करोड़ 21 लाख रुपए से अधिक का धान खरीदा जा चुका है। यही राशि किसानों को अब वापस की जानी है। इसके बाद भी अभी किसानों से सहकारी बैंकों को 285 करोड़ रुपए वसूलना शेष है। छत्तीसगढ़ के बजट में 2018-19 में 83,000 करोड़ रूपये की कुल आमदनी आंकी गई थी,जिसमें 32,000 करोड़ रूपये विभिन्न मदों से राजस्व आने हैं। वहीं आर्थिक संकट से गुजर रही भूपेश सरकार के समक्ष नक्सल उन्मूलन हेतु राज्य में तैनात केन्द्रीय सुरक्षा बलों पर होने वाले खर्च के 6400 करोड़ रूपये का भुगतान गले की हड्डी बन गया है। केन्द्र सरकार ने मिट्टी तेल का कोटा घटा दिया। प्रदेश के 4 हजार गांवों में बिजली नहीं है। मनरेगा में काम नहीं मिलने की वजह से हर साल लाखों की संख्या में प्रदेश से लोग रोजगार की तालाश में पलायन करते हंै। रोजगार नहीं मिलने पर पलायन सबसे बड़ी समस्या है। ऐसा रास्ता ढूंढना होगा ताकि पलायन रूक सके। प्रदेश में 26 लाख शिक्षित बेरोजगार हैं। कंाग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के अनुसार सभी को ढाई हजार रूपये पेंशन हर माह देगी। जबकि सरकार के पास इसके लिए अभी अलग से बजट नहीं है। आम जनता का कहना है कि यह समस्या का स्थायी हल नहीं है। बल्कि रोजगार की व्यवस्था करना चाहिए। रमन सरकार ने 2022 तक नक्सलवाद खत्म की बात किये थे। लेकिन अब कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सवाल यह है कि प्रदेश में 18 जिले कब नक्सल समस्या से मुक्त होंगे। इसे दूर करने के लिए सरकार को नक्सली नेताओं से बातचीत के लिए पहल करनी होगी। केवल बातचीत के रास्ते खुले हैं, कहने से समस्या का हल नहीं होगा।
कर्ज से लदी सरकार
कई जिलों को पीने का पानी मुहैया कराना,बेरोेजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने के अलावा नौकरी की व्यवस्था करना भी सरकार के सामने चुनौती है। इसके अलावा पार्टी के अंदर की चुनौती से निपटना सबसे बड़ी समस्या है। सरकार ने राज्य के किसानों का 6100 करोड़ का कर्ज माफ किया है। अब कर्ज माफी की इस रकम को चुकाने के लिए सरकार को रिजर्व बैंक से कर्ज लेना पड़ रहा है। कर्ज की इस रकम को चुकाने के लिए राज्य सरकार अपनी प्रतिभूतियों की नीलामी कर रही है। नवगठित कैबिनेट की पहली बैठक में सरकारी काम,काज में खर्च को कम करने संबंधि प्रस्ताव पास किया गया है। तीन माह में सरकार दो बार कर्ज ले चुकी है। सरकार ने एक हजार करोड़ का कर्ज रिजर्व बैंक से दूसरी बार ली। अनुपूरक बजट मिलाकर राज्य का बजट कुल 1 लाख,5 हजार 170 करोड़ का हो गया है। दूसरी ओर कांग्रेस के घोंषणा पत्र में 2500 रूपये प्रति क्ंिवटल धान खरीदने की बात कही थी। जिसे केन्द्र सरकार ने मना कर दिया है। मुख्यमंत्री ने इस संदर्भ में प्रधान मंत्री को पत्र लिखे हैं। यदि स्वीकृति नहीं मिली तो भूपेश सरकार के सामने विषम स्थिति निर्मित हो सकती है।








,’ गौठान, घुरूवा और बाड़ी हमारे पुरखों की परम्परा रही हैं। गोठानों से पशुओं की नस्ल सुधार, जैविक खेती के साथ गांव समृद्ध बनेंगे। गायों के नस्ल सुधार के साथ ही किसानों और समूह की महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण साबित होंगे’’। लेकिन विपक्ष का दावा है कि सरकार का यह गोठान  भ्रष्टाचार की नई कहानी लिखने लगा है।