Friday, November 4, 2022

मरम्मत मांगती है देश की अर्थव्यवस्था




नोटबंदी से काला धन नहीं आया। मगर पांच सौ और दो हजार के 9.21 लाख करोड़ रुपये गायब हो गये। दूसरी ओर रुपया दुनिया के बाजर में गिर रहा है। ऐेसे में देश को ऊँची विकास दर की जरूरत है। लोगों को पाँंच किलो अनाज नहीं,नौकरी के जरिये पैसा चाहिए।  
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
दुनिया के बाजार में रुपया गिर रहा है। एक डालर 83 रुपये के पार हो गया है। भारत की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। आरबीआई ने हाथ खड़े कर दिये हैं। फिर भी न वजीरे आजम और न ही किसी भी राज्य के वजीरे आला के माथे पर कोई शिकन है। रिजर्व बैंक के अनुसार देश के 27 राज्यों में दस राज्य रेड जोन में है। यानी ये अपने दम पर अपनी सरकार चलाने की स्थिति में नहीं है। जीएसटी का पैसा मिलने के बाद भी। क्यों कि मिलने वाला टैक्स 80 फीसदी कम हो गया है। बिना टैक्स के कमाई की कोई योजना नहीं है। राज्यों के खर्चे 20 फीसदी से बढ़कर 55 फीसदी हो गया है। नोटबंदी से काला धन नहीं आया। मगर पांच सौ और दो हजार के 9.21 लाख करोड़ रुपये गायब हो गये। दूसरी ओर रुपया दुनिया के बाजार में गिरता जा रहा है। वहीं अर्थव्यवस्था संभाल नहीं रही है। देश को ऊँची विकास दर की जरूरत है। लोगों को पाँंच किलो अनाज नहीं,नौकरी के जरिये पैसा चाहिए।   
धनतेरस को ‘नौकरी तेरस’बताने प्रचार में छह करोड़ रुपये मोदी सरकर ने फूंक दिया। यह बताने के लिए,कि मोदी सरकार 75 हजार नौकरी बांट रही है। सुबह से एक दर्जन विभाग के मंत्री नौकरी के प्रचार की डुगडुगी पीट रहे थे। लगे हाथ घोंषणा भी कर दी,कि दिसम्बर 2023 तक दस लाख और नौकरियाँ सरकार देगी। हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वायदा था। यानी आठ साल में सोलह करोड़ नौकरियाँ। वो मिली नहीं। या कहें उसकी जवाबदारी नहीं निभा सके। जबकि सन् 1991 के बाद बैंक और रेल विभाग में 70 हजार से ज्यादा नौकरियांँ दी जाती थीं। कई बार इसकी संख्या एक करोड़ तक पहुंँची है।
सन् 2014 से अब तक 22 करोड़ 6 लाख लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया। सात लाख 22 हजार 311 लोगों को सरकारी नौकरी दी गई। विपक्ष का दावा है,कि अकेले केंद्र सरकार में ही करीब 30 लाख पद खाली पड़े हैं। सरकार की नियत ठीक नहीं है नौकरी देने में। वह एक-एक करके महत्वपूर्ण संस्थानों का निजीकरण करना चाहती है। सबसे कम नौकरी 2018-19 में महज 38100 लोगों को मिली। जबकि पांँच करोड़ 9 लाख 36 हजार 479 लोगों ने आवेदन किया था। हालांकि साल 2019-20 में 147096 युवाओं को सरकारी नौकरी मिली। अब अडानी चार सौ करोड़ रुपये रक्षा विभाग में इनवेस्ट करने जा रहे हैं। सवाल यह है कि सरकार के साथ दो-चार कारर्पोरेट रहेंगे,तो क्या अर्थव्यवस्था सुधर जायेगी? वहीं सरकार नौकरी देगी मगर पेंशन नहीं। इससे सरकार का 35 फीसदी पैसा बच जायेगा। जरूरी है कि सरकार विनिवेश को गति दे। बैंकिंग व्यवस्था में स्थिरता लाए। घरेलू और विदेशी निवेशकों के लिए प्रोत्साहन तंत्र दुरुस्त करें।
विभिन्न सरकारी विभागों में मार्च 2021 में करीब 978328 पद खाली हैं। गृहमंत्रालय में करीब 1.4 लाख पद खाली हैं। रेल मंत्रालय में करीब 2.94 लाख,रक्षा विभाग में 2.64 लाख, डाक विभाग में 90 हजार और राजस्व विभाग में करीब 80 हजार पद खाली हैं। कोरोना माहामारी के चलते सेना ने 2020-21 और 2021-22 में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित कर दिया था। केंद्र सरकार ने हाल ही में अग्निवीर योजना की घोषणा की है। जिसकी भर्ती प्रक्रिया जारी है। इसके अलावा दिल्ली के सारे दफ्तर में संघ से जुड़े करीब पांँच हजार लोग नौकरी कर रहे हैं।
राज्यों में बेरोजगारी दर घटी नहीं है। हरियाणा की बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा 26.7 फीसदी है। जबकि राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में यह 25.25 फीसदी है। बिहार में 14.4 प्रतिशत,त्रिपुरा में 14.1,पश्चिम बंगाल में 5.6,कर्नाटक और गुजरात में सबसे कम 1.8 फीसदी बेरोजगारी है। जून 2022 में पूरे देश के लेवल पर बेरोजगारी दर 7.80 फीसदी थी। बेरोजगारी का यह आंकड़ा शहरी क्षेत्र में 7.30 और ग्रामीण क्षेत्र में 8.03 रहा। जून महीने में ही कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 1.3 करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा। सन् 2020 में महामारी की पहली लहर में 1.45 करोड़, दूसरी लहर में 52 लाख और तीसरी लहर में 18 लाख लोगों की नौकरी गई। केन्द्र सरकार का दावा था,2022 तक किसानों को खेती लाभ का सौदा साबित होगी। लेकिन आन्ध्र में 93 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं। तेलंगाना में खनिज सपदा के मामले में बहुत आगे फिर भी यहांँ 91.7 फीसदी,ओड़िसा में 60 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं। कमोवेश हर राज्य में कर्ज वाले किसानों का आंकड़ा उम्मीद से ज्यादा है।
हालात इतने खराब कभी नहीं थे। मरम्मत मांगती है अर्थव्यवस्था। पिछले बरस 638 अरब डालर विदेशी मुद्रा का भंडार देश में था। इस बरस 528 अरब डालर रह गया। वहीं ग्यारह लाख करोड़ रुपये कर्ज सरकार ने उद्योगपतियों के एक झटके में माफ कर दिया। इससे बैंक और कंगाल हो गए।  
कमजोर होती अर्थव्यवस्था से अब तक 1.3 लाख लोग देश की नागरिकता छोड़ कर बाहर चले गए। इस साल अभी तक 88 हजार लोग नागरिकता छोड़ चुके हैं। आठ लाख विद्यार्थी विदेशों में पढ़ रहे हैं। विदेशों में पढ़ाई और महंगी हो गई। क्यों कि डालर की वजह से रुपया अधिक देना पड़ रहा है। देश की अर्थव्यवस्था की मरम्मत नहीं की गई तो महंगाई के साथ बेरोजगारी और बढ़ेगी। भारत का आयात महंगा हो गया है। जिससे   घरेलू बाजार में कीमतों के दाम बढ़ रहे हैं। आरबीआई ब्याज दर बढ़ाने की स्थिति में नहीं। इसलिए निवेशक अपना पैसा निकाल कर दूसरे देश में जमा कर रहे हैं। अनुमान है  कि देश की अर्थव्यवस्था 2035 से पहले नहीं सुधर सकती। जीडीपी दर में कमी हो तो महंगाई कम हो। पाँच किलो अनाज देने से देश की इकोनामी नहीं सुधर सकती। इससे वोट बैंक प्रभावित हो सकता है। साढ़े आठ हजार करोड़ के विमान में सफर करने से न देश की जीडीपी सुधरेगी और न ही डालर के मुकाबले रुपया मजबूत होगा। राज्यों को जीएसटी का पैसा नहीं दिया जा रहा है। सब्सिडी देने वाली कई योजनाओं को बंद कर दिया गया है,लेकिन लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करने वाली योजनाओं की कमी है।
रेवड़ियाँ बांटने से राज्य सरकारों का घाटा बढ़ता गया। आजयू.पी. में 82.8 फीसदी,एम.पी. में 82,बिहार में 85, झारखंड में 82,पंजाब में 90,हरियाणा में 85,पश्चिम बंगाल में 89,राजस्थान 40, और आंन्ध्र प्रदेश में 38 फीसदी रेवड़ी बांटी जाती है। जनता के हित में सरकार बहुत कम खर्च करती है। एम.पी.मे ं4.9 प्रतिशत,झारखंड में 5.8,यूपी में 5.2,हरियाणा में 7.5,पश्चिम बंगाल में 9.7 केरल में 1.2 फीसदी खर्च होता है। दूसरी ओर सियासी दल चुनाव जीतने के लिए सत्ता में आने पर किसानों के कर्जे माफ करने की बात करते हैं। यानी ग्रामीण बैंक,कमर्शियल बैंक से कर्ज लीजिये,जो भी पार्टी आयेगी कर्जे माफ कर देगी। यानी राजनीति ही अर्थव्यवस्था के सिस्टम को खोखला कर रही है।
 

सरकार गिराने की साजिश में अव्वल बीजेपी




नये इंडिया में सरकार हड़पने की साजिश तेज है। यह दौर पैसे के दम पर सरकार गिराने और बनाने का है। आन्ध्र में विधायकों को खरीदने का भंडाफोड़ होने के बाद अब गैर बीजेपी शासित राज्यों के कान खड़े हो गए हैं। मौजूदा राजनीति इशारा कर रही है,आने वाले समय में चार राज्यों की सरकार गिर सकती है।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
वोट से बनने वाली सरकार को प्रभावित करने वाली राजनीति के आकार लेने से लोकतंत्र का चेहरा बदलने लगा है। क्यों कि चुनी गई सरकार को गिराने की साजिश पैसे वाली राजनीति करने लगी है। यानी नये इंडिया में पैसे पर राजनीति पलने लगी। और पैसे के दम पर सरकार गिरने और बनने लगी है। केन्द्र सरकार किसी भी राज्य की सरकार के काम काज और उसकी व्यवस्था पर ऊंगली नहीं उठाना चाहती। तोहमत लगने से बचना चाहती है। कानून के जरिये हटाना जरूरी नहीं समझती। जैसा कि बाबरी मस्जिद गिरने के बाद नरसिम्हा राव सरकार ने कानून व्यवस्था के मुद्दे पर यू.पी.की कल्याण सिंह सरकार, हिमाचल प्रदेश की शांता कुमार,राजस्थान की भैरों सिंह शेखावत और एम.पी. की सुंदर लाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया था। अब ऐसा नहीं होता। नये इंडिया में सरकार हड़पने की साजिश तेज है। यह दौर पैसे के दम पर सरकार गिराने और बनाने का है। आन्ध्र में विधायकों को खरीदने का भंडाफोड़ होने के बाद अब गैर बीजेपी शासित राज्यों के कान खड़े हो गए हैं।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे कितने दिनों के मुख्यमंत्री हैं,खुद शिंदे भी नहीं जानते। क्यांे कि उनके बाइस विधायक बीजेपी में शामिल होने को आतुर हैं। इसके पीछे वजह यह है, कि सरकार में वे शिंदे गुट के हैं। लेकिन अपने विधान सभा क्षेत्र में वे शिवसेना के विधायक हैं। एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों की फजीहत हो रही है। इससे बचने वे बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं। कम से कम मौजूदा राजनीति की कालिख लगने से बच जायेंगे। क्यों कि महाराष्ट्र के चार प्रोजेक्ट गुजरात शिफ्ट करने के बावजूद शिंदे ने केन्द्र सरकार से कुछ नहीं कहा।
टाटा एयरबस परियोजना 22000 करोड़ रुपये की है, महाराष्ट्र से गुजरात स्थानांतरित कर दिया गया। अब वायुसेना के लिए टाटा एयरबस द्वारा सी.295 परिवहन विमान का निर्माण गुजरात के वड़ोदरा शहर में होगा। उद्धव सरकार ने कोविड के समय 6.5 लाख करोड़ रुपए और दावोस से 80000 करोड़ रुपए का निवेश लाए थे। इसी तरह देश का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट जिसकी कुल लागत 154000 करोड़ रुपये है। अब महाराष्ट्र की बजाय गुजरात के अहमदाबाद जिले में लगेगा। दो अन्य प्रोजेक्ट भी गुजरात शिफ्ट कर दिया गया। इन वजहों से देर सबेर एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों दो फाड़ की संभावना ज्यादा है। एकनाथ शिंदे के नाम के आगे से मुख्यमंत्री शब्द भी हटने की आशंका है।   
विपक्ष चीख-चीख कर कह रहा है। जनता के वोट से बने लोकतंत्र को दो चार काॅरपोरेट के लोग अपने तरीके से गढ़ने लगे हैं। देश की हर राज्य सरकार के मन में भय ब्याप्त हो गया है, कि अगली सुबह उनकी सरकार रहेगी या नहीं। बहुमत वाली सरकार के कब बुरे दिन आ जाएं,वह भी नहीं जानती। ईडी, आईटी और सीबीआई के छापे का खौफ अपनी जगह है। एक नया खौफ गैर बीजेपी सरकार को हो गया है। जैसा कि दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कहते हैं,उनकी सरकार को अस्थिर करने की साजिश बीजेपी कर रही है। आडियो टेप में दिल्ली सरकार के 43 विधायकों को खरीदने की बात सामने आई है। तेलंगाना के टी.आर.एस. के विधायकों को खरीदने के आरोप में गिरफ्तार तीन लोगों ने इस साजिश का पर्दाफाश किया। आडियो टेप में शाह और बी.एल संतोष से बातचीत में कह रहे हैं,अलग से पैसा रखा है। तेलंगाना में चार विधायकों को खरीदने के लिए 25-25 करोड़ रुपये दिये जा रहे थे। दिल्ली सरकार के 43 विधायकों को खरीदने के लिए 1075 करोड़ रुपये का अरेंज किया गया। यह अलग बात है कि कोर्ट ने पुलिस को तीनो आरोपियों रामचन्द्र भारती,संत डी सिम्हजी ओर व्यपारी नंदकुमार को हिरासत में लेने के आदेश को खारिज करते हुए रिहा करने आदेश दिया। नदकुमार को विधायक पी रोहित रेड्डी के मोहनाबाद स्थित फार्म हाउस से गिरफ्तार किया गया था।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी रकम पर ईडी और इनकम टैक्स चुप क्यों है? यह पता लगाया जाना चाहिए कि आखिर इतनी राशि आई कहांँ से। आडियो में बी.एल संतोष का नाम आया है तो ईडी को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। चुप्पी कई संदेहों की ओर इशारा कर रही है। जाहिर सी बात है, कि पंजाब में भी सरकार को अस्थिर पैसे के दम पर करने की कोई योजना हो सकती है।  
पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में करीब 3 महीने पहले झारखंड सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी,राजेश कच्छप और नमन विक्सल,ड्राइवर और एक सहयोगी कोे गिरफ्तार किया गया था। इन्हें हेमंत सोरेन सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए 48 लाख रुपये रिश्वत दिया गया था। सरकार गिरने के बाद दस करोड़ रुपये और मंत्री पद का वायदा था। रांची के अरगोड़ा थाने में तीनों विधायको के खिलाफ एफ.आई.आर.दर्ज की गई। कांग्रेस ने तीनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है।
गौरतलब है,कि बीजेपी ने हेमंत सोरेन को आफर दिया था कि वो कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी के समर्थन से सरकार बना लें। अभी हेमंत सोरेन की विधायकी का मामला राज्यपाल के पास है। चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से रिपोर्ट दे दी है। फैसला राज्यपाल को करना है। जाहिर सी बात है राज्यपाल हेमंत सोरेन के खिलाफ तब तक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे,जब तक बीजेपी सरकार बनाने के लिए किसी योजना के अंजाम तक नहीं पहुंँच जाती है। यानी झारखंड सरकार में बीजेपी को किसी शिंदे की तलाश है।    
देश की राजनीति में हाॅर्स टेªेडिंग का खेल में अचानक बड़ी तेजी से उभरा। कर्नाटक, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश जैसे बड़़े राज्यो में विधायकों को खरीद कर चुनी गई सरकार को गिरा कर नई सरकार बनाने की राजनीति हुई है। प्रलोभन के जरिये विधायकों को पार्टी छोड़ने के लिए उकसाया गया। जिन पार्टियों से विधायक गए उन्होंने सामने वाली पार्टियों पर विधायकों को खरीदने का आरोप लगाया। सबसे अधिक चैंकाने वाला खेल मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुआ। कमलनाथ की सरकार ज्योतिरादित्य की वजह से गिर गई और उद्धव की महाविकास अघाड़ी सरकार एकनाथ शिंदे की बगावत से गिर गई। दोनों की सरकार को गिराने में बीजेपी का अहम रोल रहा। वहीं कर्नाटक में सरकार बनने और गिरने का खेल कई बार हुआ। छब्बीस जुलाई 2019 को बीएस येदियुरप्पा चैथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस वक्त बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री हैं।
आने वाले समय में चुनी सरकार को इसी तरह गिराने का खेल चलने से भारतीय राजनीति वह नहीं रह जायेगी,जिसे जनता जानती है। जिस देश में सत्ता की बागडोर छीनने की साजिश वाली राजनीति आकार लेगी, वहाँ काॅरपोरेट जगत के लोग चाहेंगे कि केन्द्र ही नहीं राज्यो में भी सरकार उनके दम पर बने। इससे काला धन को सफेद करने वालों की संख्या बढ़ेगी। जो एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के हित में नहीं है।