"देश
के विकास में ‘रेवड़ी कल्चर’ बाधक है,फिर भी 11 लाख करोड़ रुपये
उद्योगपतियों का लोन माफ कर दिया गया। जबकि देश के 28 राज्य घाटे में चल
रहे हैँ । वहीं पांँच साल में सिर्फ तीन पार्टियों ने चुनाव में पांँच हजार
करोड़ से ज्यादा फूक दिये। ऐसे में सवाल यह है,कि सरकारी खजाना लूटा और
लुटाया किस लिए जा रहा है।"
पैसों पर राजनीति पलती है और पैसों के दम पर पार्टी सत्ता
में आती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है, कि देश का खजाना राजनीति के
लिए या फिर देश और राज्य के विकास के लिए है? क्यों कि 2014 के बाद देश की
अर्थव्यवस्था में बूम नही आया। प्रधान मंत्री कहते हैं,‘रेवड़ी कल्चर‘ देश
के विकास में बाधक है। फिर भी 11 लाख करोड़ रुपये उद्योगपतियों का लोन माफ
कर दिया गया। जबकि देश के 28 राज्य घाटे में है। ‘रेवड़ी बांटने’ का सियासी
उपक्रम हर पार्टियों ने किया। चुनाव में जितना खर्च होता है,उतनी राशि से
किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था और विकास जगत में बूम आ सकता है।
चुनावों
में राजनीतिक पार्टियांँ दिल खोलकर पैसा खर्च करती हैं। साल 2019 के
लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। उससे पहले 2014 के
चुनाव में लगभग 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। वोट के लिए सियासी दल
जनता में रुपये,शराब,कंबल के अलाव अन्य चीजें बांटते हैं। 2014 के लोकसभा
चुनाव में उत्तर प्रदेश में 20 करोड़ रुपये और 2019 के लोकसभा चुनाव में 191
करोड़ रुपये नकद पकड़ा गया था। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में ही
115 करोड़ रुपये नकद मिला था। रेवड़ी कल्चर के जरिये वोटरों को लुभाने में
बीजेपी ने 5 साल में 3 हजार 585 करोड़ रुपये चुनावों में खर्च कर दिये।
कांग्रेस ने एक हजार 405 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च की। ये आंकड़ा
2015.16,17,18,19 और 2020 का चुनाव आयोग का है। जबकि इससे ज्यादा खर्च हुए
हैं। यानी पाँच साल में सिर्फ तीन पार्टियों ने चुनाव में पांँच हजार करोड़
से ज्यादा फूक दिये। साल 2021 में पश्चिम बंगाल,असम,केरल, तमिलनाडु,
पांडुचेरी में विधान सभा के चुनाव हुए। अकेले बीजेपी ने 252 करोड़ रुपये,
टीएमसी ने 154 करोड़ रुपये,और कांग्रेस ने 85 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च
किये। ऐसे में सवाल यह है,कि ‘रेवड़ी कल्चर’ सत्ता पाने के लिए है या फिर
गरीबी मिटाने के लिए?
देश में
‘रेवड़ी कल्चर’ की शुरूआत सबसे पहले आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री
एन.टी.रामाराव ने की। उन्होने दो रुपये किलो चावल देने की घोषणा की।
तमिलनाडु की राजनीति में इसका व्यापक स्वरूप देखने को मिला। क्षेत्रीय दलों
ने वोटरों को प्रभावित करने एक से बढ़कर एक घोंषणायें की। 100 यूनिट फ्री
बिजली,परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, कामकाजी महिलाओं को स्कूटी
खरीदने में सब्सिडी से लेकर प्रेशर कुकर, मिक्सर ग्राइन्डर, मंगलसूत्र तक
देने की घोषणा की गई थी।
हाल के समय में कर्नाटक
में कांग्रेस की सरकार के दौरान राजधानी बेंगलुरु में ‘इंदिरा कैंटीन’ में
रोज दो लाख से अधिक लोगों को सस्ता खाना दिया जाता था। तमिलनाडु की दिवंगत
मुख्यमंत्री जे.जयललिता ने अम्मा कैंटीन की शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री
गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत (नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट) 80 करोड़ राशन
कार्ड धारकों को मुफ्त राशन दिया जाता है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह
चैहान की सरकार अन्न उत्सव के जरिये 37 लाख गरीब परिवार जिनके पास राशन
कार्ड नहीं है,उन्हें एक रुपये प्रति किलो कीमत पर चावल, गेहूंँ और नमक
देती है। पांँच किलो अनाज प्रति महीना हर लाभार्थी को मिलता है। छत्तीसगढ़
में कांग्रेस सत्ता में आने के लिए किसानों से ढाई हजार रुपये क्विटल धान
खरीदने और किसानों का कर्जा माफ करने का वायदा की। इससे सरकार पर नौ सौ
करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ा।
केन्द्र सरकार ने
2019 में फैसला किया कारपोरेट जगत से जो टैक्स वसूला जाता है,उसे कम कर
देने से उन्हें फायदा होने पर नये उद्योग लगेंगे और लोगों को रोजगार
मिलेगा। कारपोरेट जगत से तीस फीसदी टैक्स लिया जाता था,उसे एक झटके में
बाइस फीसदी कर दिया गया। यानी 14.5 हजार करोड़ रुपये सरकारी खजाने को चूना
लग गया। मगर बेरोजगारी दूर नहीं हुई।
साल 2014 से
2018 के बीच 21 सरकारी बैंकों ने 3 लाख 16 हजार करोड़ रुपये के लोन माफ किए।
यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना
है। यूपीए के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच सरकारी बैंकों ने 158994
करोड़ के कर्ज माफ किए। इसके अलावा निजी क्षेत्र के बैंकों ने 41391 करोड़
रुपये और विदेशी बैंकों का 19945 करोड़ कर्ज माफ किया गया। जबकि एनडीए के
नेतृत्व वाली सरकार के पहले कार्यकाल 2015-2019 के दौरान सरकारी बैंकों ने
624370 करोड़ के कर्ज माफ किए। जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों ने 151989 और
विदेशी बैंकों ने 17995 करोड़ के कर्ज माफ किए।
आम
आदमी के नेता संजय सिंह का सवाल गलत नहीं है। क्या केंद्र ने 72000 हजार
करोड़ का लोन अडानी का माफ करके,रेवड़ी नहीं बाटी। आरटीआई से मिली जानकारी के
अनुसार केंद्र सरकार ने कुल 11 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर देश भर के
बैंकों को कंगाल बना दिया है। डीएचएफआई ने 17 बैंकों से 34000 करोड़ रुपये
का लोन लिया। और बदले में बीजेपी को 27 करोड़ रुपये का चंदा दिया। क्यों कि
बीजेपी का दोस्त हैं। यानी केन्द्र सरकार ने बैंको का 34000 करोड़ रुपये
लुटवा दिया। अडानी को एसबीआई से 12000 करोड़ रुपये का लोन दिया गया। राज्य
सरकारों से कहा जा रहा कि 10 परसेंट कोयला विदेश से खरीदें। जबकि भारत में
कोयले का उत्पादन 32 फीसदी है। जब 3000 रुपये टन भारत में कोयला मिलता
है,उसके बावजूद 30000 रुपये टन विदेशों से कोयला क्यों खरीदवा रहे है?
दिल्ली
के मुख्य मंत्री केजरीवाल की बातें देश का ध्यान खींचती है। क्या मैं फ्री
की रेवड़ियां बांट रहा हूँ या देश की नींव रख रहा हूँ! गगन के पिता मजदूरी
करते थे। आज गगन का एडमिशन आइआइटी धनबाद के कम्प्यूटर इंजीनियर में हुआ है।
गगन से पूछिए कि मैं रेवड़ियां बांट रहा हूँ या देश का भविष्य संवार रहा
हूँ। दिल्ली में 2 करोड़ लोगों का इलाज मुफ्त होता है। केजरीवाल फ्री में
बिजली दे रहे हैं तो रेवड़ी है और मोदी सरकार मंत्रियों को 4000 यूनिट बिजली
फ्री में दे,तो क्या रेवड़ी नहीं है।
उद्योगपतियो
को दिये गये लोन का रिकवरी रेट मात्र 14.2 फीसदी है। यानी एनपीए तेजी से बढ़
रहा है। 2014-15 में एनपीए 4.62 प्रतिशत था! क्या कारपोरेट का लोन माफ
करना और लोकलुभावन चुनावी घोंषणा पत्र रेवड़ी कल्चर’ का हिस्सा नहीं है?
चुनावी घोंषणा पत्र के जरिये सत्ता में आने वाली सरकार को अपना घोंषणा पत्र
स्टाम्प पेपर में जारी करना चाहिए। ताकि घोषणाएं पूरी नहीं होने पर जनता
उन्हें कोर्ट तक घसीट सके। सरकारी खजाने को लूटना और लुटाना भी तो रेवड़ी
कल्चर है। पिछले 70 साल में सरकारो ने जो बनाया उसे उद्योगपतियों को
बेचना,तोहफा देना ही है।
यूपी में बीजेपी की सरकार
है। और यहांँ हर व्यक्ति पर 22,242 रुपये का कर्ज है। प्रदेश सरकार पर कुल
516 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है। प्रदेश का विद्युत विभाग 90 हजार
करोड़ रुपये के घाटे में है। लेकिन भाजपा ने किसानों को अगले पांच साल तक
मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। मुफ्त देने की 72 घोषणायें संकल्प पत्र
में है। कांग्रेस पार्टी भी प्रदेश की आधी आबादी को रिझाने के लिए लड़कियों
को फ्री स्कूटी देने की बात की थी। रेवड़ी कल्चर और चुनावी घोषणाओं से क्या
देश की गरीबी मिटेगी,महंगाई कम होगी और बेरोजगारी दूर होगी? 2000 से 2020
के बीच किसानों को फसल का उचित दाम नहीं मिलने से करीब 70 लाख करोड़ का
नुकसान हुआ है। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे होगी,जिस देश में
करपोरेट जगत को टैक्स में छूट देने और एनपीए बढ़ने से बैंक डूब रहे हों,देश
का ‘रेवड़ी कल्चर’ भी नहीं जानता।
मो.7974304532