Saturday, August 27, 2022

'सत्ता के हाथ में‘रेवड़ी की पोटली’



"देश के विकास में ‘रेवड़ी कल्चर’ बाधक है,फिर भी 11 लाख करोड़ रुपये उद्योगपतियों का लोन माफ कर दिया गया। जबकि देश के 28 राज्य घाटे में चल रहे हैँ । वहीं पांँच साल में सिर्फ तीन पार्टियों ने चुनाव में पांँच हजार करोड़ से ज्यादा फूक दिये। ऐसे में सवाल यह है,कि सरकारी खजाना लूटा और लुटाया किस लिए जा रहा है।"

0  रमेश कुमार‘रिपु’


                  पैसों पर राजनीति पलती है और पैसों के दम पर पार्टी सत्ता में आती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है, कि देश का खजाना राजनीति के लिए या फिर देश और राज्य के विकास के लिए है? क्यों कि 2014 के बाद देश की अर्थव्यवस्था में बूम नही आया। प्रधान मंत्री कहते हैं,‘रेवड़ी कल्चर‘ देश के विकास में बाधक है। फिर भी 11 लाख करोड़ रुपये उद्योगपतियों का लोन माफ कर दिया गया। जबकि देश के 28 राज्य घाटे में है। ‘रेवड़ी बांटने’ का सियासी उपक्रम हर पार्टियों ने किया। चुनाव में जितना खर्च होता है,उतनी राशि से किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था और विकास जगत में बूम आ सकता है। 
चुनावों में राजनीतिक पार्टियांँ दिल खोलकर पैसा खर्च करती हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। उससे पहले 2014 के चुनाव में लगभग 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। वोट के लिए सियासी दल जनता में रुपये,शराब,कंबल के अलाव अन्य चीजें बांटते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 20 करोड़ रुपये और 2019 के लोकसभा चुनाव में 191 करोड़ रुपये नकद पकड़ा गया था। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में ही 115 करोड़ रुपये नकद मिला था। रेवड़ी कल्चर के जरिये वोटरों को लुभाने में बीजेपी ने 5 साल में 3 हजार 585 करोड़ रुपये चुनावों में खर्च कर दिये। कांग्रेस ने एक हजार 405 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च की। ये आंकड़ा 2015.16,17,18,19 और 2020 का चुनाव आयोग का है। जबकि इससे ज्यादा खर्च हुए हैं। यानी पाँच साल में सिर्फ तीन पार्टियों ने चुनाव में पांँच हजार करोड़ से ज्यादा फूक दिये। साल 2021 में पश्चिम बंगाल,असम,केरल, तमिलनाडु, पांडुचेरी में विधान सभा के चुनाव हुए। अकेले बीजेपी ने 252 करोड़ रुपये, टीएमसी ने 154 करोड़ रुपये,और कांग्रेस ने 85 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये। ऐसे में सवाल यह है,कि ‘रेवड़ी कल्चर’ सत्ता पाने के लिए है या फिर गरीबी मिटाने के लिए?
 
देश में ‘रेवड़ी कल्चर’ की शुरूआत सबसे पहले आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन.टी.रामाराव ने की। उन्होने दो रुपये किलो चावल देने की घोषणा की। तमिलनाडु की राजनीति में इसका व्यापक स्वरूप देखने को मिला। क्षेत्रीय दलों ने वोटरों को प्रभावित करने एक से बढ़कर एक घोंषणायें की। 100 यूनिट फ्री बिजली,परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, कामकाजी महिलाओं को स्कूटी खरीदने में सब्सिडी से लेकर प्रेशर कुकर, मिक्सर ग्राइन्डर, मंगलसूत्र तक देने की घोषणा की गई थी।  
हाल के समय में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार के दौरान राजधानी बेंगलुरु में ‘इंदिरा कैंटीन’ में रोज दो लाख से अधिक लोगों को सस्ता खाना दिया जाता था। तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे.जयललिता ने अम्मा कैंटीन की शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत (नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट) 80 करोड़ राशन कार्ड धारकों को मुफ्त राशन दिया जाता है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चैहान की सरकार अन्न उत्सव के जरिये 37 लाख गरीब परिवार जिनके पास राशन कार्ड नहीं है,उन्हें एक रुपये प्रति किलो कीमत पर चावल, गेहूंँ और नमक देती है। पांँच किलो अनाज प्रति महीना हर लाभार्थी को मिलता है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में आने के लिए किसानों से ढाई हजार रुपये क्विटल धान खरीदने और किसानों का कर्जा माफ करने का वायदा की। इससे सरकार पर नौ सौ करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ा। 
केन्द्र सरकार ने 2019 में फैसला किया कारपोरेट जगत से जो टैक्स वसूला जाता है,उसे कम कर देने से उन्हें फायदा होने पर नये उद्योग लगेंगे और लोगों को रोजगार मिलेगा। कारपोरेट जगत से तीस फीसदी टैक्स लिया जाता था,उसे एक झटके में बाइस फीसदी कर दिया गया। यानी 14.5 हजार करोड़ रुपये सरकारी खजाने को चूना लग गया। मगर बेरोजगारी दूर नहीं हुई। 
साल 2014 से 2018 के बीच 21 सरकारी बैंकों ने 3 लाख 16 हजार करोड़ रुपये के लोन माफ किए। यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है। यूपीए के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच सरकारी बैंकों ने 158994 करोड़ के कर्ज माफ किए। इसके अलावा निजी क्षेत्र के बैंकों ने 41391 करोड़ रुपये और विदेशी बैंकों का 19945 करोड़ कर्ज माफ किया गया। जबकि एनडीए के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कार्यकाल 2015-2019 के दौरान सरकारी बैंकों ने 624370 करोड़ के कर्ज माफ किए। जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों ने 151989 और विदेशी बैंकों ने 17995 करोड़ के कर्ज माफ किए।
आम आदमी के नेता संजय सिंह का सवाल  गलत नहीं है। क्या केंद्र ने 72000 हजार करोड़ का लोन अडानी का माफ करके,रेवड़ी नहीं बाटी। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने कुल 11 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर देश भर के बैंकों को कंगाल बना दिया है। डीएचएफआई ने 17 बैंकों से 34000 करोड़ रुपये का लोन लिया। और बदले में बीजेपी को 27 करोड़ रुपये का चंदा दिया। क्यों कि  बीजेपी का दोस्त हैं। यानी केन्द्र सरकार ने बैंको का 34000 करोड़ रुपये लुटवा दिया। अडानी को एसबीआई से 12000 करोड़ रुपये का लोन दिया गया। राज्य सरकारों से कहा जा रहा कि 10 परसेंट कोयला विदेश से खरीदें। जबकि भारत में कोयले का उत्पादन 32 फीसदी है। जब 3000 रुपये टन भारत में कोयला मिलता है,उसके बावजूद 30000 रुपये टन विदेशों से कोयला क्यों खरीदवा रहे है?
दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल की बातें देश का ध्यान खींचती है। क्या मैं फ्री की रेवड़ियां बांट रहा हूँ या देश की नींव रख रहा हूँ! गगन के पिता मजदूरी करते थे। आज गगन का एडमिशन आइआइटी धनबाद के कम्प्यूटर इंजीनियर में हुआ है। गगन से पूछिए कि मैं रेवड़ियां बांट रहा हूँ या देश का भविष्य संवार रहा हूँ। दिल्ली में 2 करोड़ लोगों का इलाज मुफ्त होता है। केजरीवाल फ्री में बिजली दे रहे हैं तो रेवड़ी है और मोदी सरकार मंत्रियों को 4000 यूनिट बिजली फ्री में दे,तो क्या रेवड़ी नहीं है।  
उद्योगपतियो को दिये गये लोन का रिकवरी रेट मात्र 14.2 फीसदी है। यानी एनपीए तेजी से बढ़ रहा है। 2014-15 में एनपीए 4.62 प्रतिशत था! क्या कारपोरेट का लोन माफ करना और लोकलुभावन चुनावी घोंषणा पत्र रेवड़ी कल्चर’ का हिस्सा नहीं है? चुनावी घोंषणा पत्र के जरिये सत्ता में आने वाली सरकार को अपना घोंषणा पत्र स्टाम्प पेपर में जारी करना चाहिए। ताकि घोषणाएं पूरी नहीं होने पर जनता उन्हें कोर्ट तक घसीट सके। सरकारी खजाने को लूटना और लुटाना भी तो रेवड़ी कल्चर है। पिछले 70 साल में सरकारो ने जो बनाया उसे उद्योगपतियों को बेचना,तोहफा देना ही है। 
 यूपी में बीजेपी की सरकार है। और यहांँ हर व्यक्ति पर 22,242 रुपये का कर्ज है। प्रदेश सरकार पर कुल 516 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है।  प्रदेश का विद्युत विभाग 90 हजार करोड़ रुपये के घाटे में है। लेकिन भाजपा ने किसानों को अगले पांच साल तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। मुफ्त देने की 72 घोषणायें संकल्प पत्र में है। कांग्रेस पार्टी भी प्रदेश की आधी आबादी को रिझाने के लिए लड़कियों को फ्री स्कूटी देने की बात की थी। रेवड़ी कल्चर और चुनावी घोषणाओं से क्या देश की गरीबी मिटेगी,महंगाई कम होगी और बेरोजगारी दूर होगी?  2000 से 2020 के बीच किसानों को फसल का उचित दाम नहीं मिलने से करीब 70 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे होगी,जिस देश में करपोरेट जगत को टैक्स में छूट देने और एनपीए बढ़ने से बैंक डूब रहे हों,देश का ‘रेवड़ी कल्चर’ भी नहीं जानता।
मो.7974304532

 

मुँह खोले,दागे गोले,कोई क्या बोले..





‘‘किसी को लोकलाज की चिंता नहीं। लोकतंत्र शर्मिदा होता है,तो होये। नई राजनीतिक भाषा से लोकतंत्र की गरिमा गिरी है। व्यक्तिगत हमले और अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल करने की होड़ लगी है। संसद में बैठने वालों के भदेश आचारण और गंदी भाषा से एक नई संस्कृति ने आकर लिया  है। जिसमें आदर्श और सम्मान का मूल्य नहीं हैं।’’  

0 रमेश कुमार‘रिपु’

 राजनीति में कूटनीति सभी करते हैं। करनी भी चाहिए। तभी तो सुर्खियों में रहेंगे। सड़क से संसद तक सभी यही करते हैं। जब भी मुंह खोलते हैं,जहर उगलते हैं। ताकि बवाल हो। हल्ला मचे। टी.वी.चैनल्स में दिखें। टी.आर.पी. का सवाल है। सभी सियासी दलों को टी.आर.पी.चाहिए। विपक्ष के अधीर रंजन चैधरी हों या फिर सत्ता पक्ष की स्मृति इरानी। राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह दिया। भूल हो गई। जुबान फिसल गई। माफी मांग ली। लेकिन स्मृति इरानी इसे मुद्दा बना लीं। देश की अस्मिता से जोड़ दीं। सड़क से संसद तक बखेड़ा खड़ा करने में स्मृति इरानी भूल गई,वो संसद में क्या बोल रही हैं। संसद में जब तक बोलीं,एक बार भी मैडम राष्ट्रपति, माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती शब्द नहीं बोली। बार-बार द्रोपदी मुर्मू चिल्ला रही थीं। क्या यह माननीय राष्ट्रपति के पद का अपमान नहीं है? देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का अपमान संसद में भी हुआ। बाहर भी हुआ। शब्दों से। सियासियों की शब्दावली से। उनके हाव भाव से। उनके तर्क वितर्क चौकाते हैं। देश की राजनीति में भाषा का पतन चुनाव से लेकर संसद तक सैकड़ों दफा हुआ।

राममनोहर लोहिया ने कहा था,लोकराज,लोकलाज से चलता है। लेकिन अब राजनीति में  लाज के पर्दे तार-तार हो चुके हैं। ईरानी को अपनी स्मृति पर जोर देना चाहिए। उनकी ही पार्टी के बड़े नेताओं की भाषा से लोकतंत्र कई बार शर्मिदा हुआ है। जयपुर की एक रैली में प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी ने सोनिया गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा,वो कांग्रेस की कौन सी विधवा थी,जिसके खाते में पैसा जाता था। किसी महिला के वैधव्य का माखौल उड़ाना क्या सियासी संस्कृति है..?स्त्री सम्मान की दृष्टि से राजनीति की यह भाषा मर्यादाहीन है। पूर्व बीेजेपी नेता प्रमोद महाजन ने एक बार सोनिया गांधी की तुलना मोनिका लेविस्की से कर दी थी। कैलाश विजयवर्गीय ने एक ट्वीट किया था,हगामा होने पर हटा लिया। ट्वीट किया था, विदेशी माँ से उत्पन्न संतान कभी भी राष्ट्रभक्त नहीं हो सकती।

राजनीति में भाषा के संस्कार का चीरहरण होना नई बात नहीं है। भाषण में,संसद में और आरोप प्रत्यारोप के दौरान छीेटें उछालने वाली अमर्यादित भाषा के जरिये भीड़ एकत्र करने वाले को कामयाब नेता मान लिया गया है। इसीलिए अटजी को कहना पड़ा,राजनीति वेश्या हो गई। किसी को लोकलाज की चिंता नहीं। लोकतंत्र शर्मिदा होता है तो होये। नये दौर में सियासत और सियासी के लफ्ज नंगे हो गये हैं,और शोहरत गाली। सियासत में काॅमेडी का चलन बढ़ गया है। व्यक्तिगत हमले और अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल करने की होड़ लगी हैं। अपनी-अपनी राजनीति के गाल लवली दिखाने की प्रतिस्पर्धा में संसद में देश हित के मुद्दे नदारत है। सियासियों की नीयत़ बनावटी नहीं,बल्कि उसमें खोट है। महंगाई, बेरोजगाारी, जीएसटी,नकली शराब से मौतें जैसे विषयों पर बातें न हो। बिल पर बहस न हो। संसद से सड़क तक सरकार की भद्द न हो, इसलिए निरर्थक बातों पर सत्ता पक्ष विपक्ष से बहस करने लगा है।   
साल 2012 में चुनावी रैली में नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर के बारे में कहा था,वाह क्या गर्ल फ्रेंड है। आपने कभी देखी है 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड। क्या यह भाषा महिलाओं की इज्जत की पक्षधर है,इरानी को बताना चाहिए। शशि थरूर ने ट्वीट कर कहा,मोदी जी मेरी पत्नी 50 करोड़ की नहीं,बल्कि अनमोल है। आप को यह समझ में नहीं आएगा,क्योंकि आप किसी के प्यार के लायक नहीं हैं। यह विवाद उस समय सुर्खियों में था। गुजरात के मुख्यमंत्री थे नरेन्द्र मोदी,तब कहा था,मिडिल क्लास के परिवारों की लड़कियों को सेहत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की फिक्र होती है। अच्छे फिगर की चाहत में कम खाती हैं। एक बार मोदी की जबान विदेश मे फिसल गई थी। उन्होंने कहा था,पहले भारत में पैदा होने में भी शर्म आती थी। सवाल यह है कि सत्ता क्या व्यक्ति के संस्कार को लील जाती है। जैसा कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बोलीं. थी,ब्यूरोक्रेसी की औकात क्या है। वो हमारी चप्पलें उठाती है। असल बात ये है कि हम उसके बहाने अपनी राजनीति साधते हैं।’’

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। शुरू में संसदीय बहसों में कम बोलने की वजह समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया उन्हें गूंगी गुड़िया कहा करते थे। 2011 के विधान सभा चुनाव मे केरल के पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद ने कहा था,राहुल एक अमूल बेबी हैं। जो दूसरे अमूल बेबियों के लिए प्रचार करने आए हैं। साल 2002 में गोधरा कांड को लेकर गुजरात विधान सभा चुनाव में सोनिया गांधी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था।  
दरअसल नई राजनीतिक भाषा से लोकतंत्र की गरिमा गिरी है। संसद में बैठकर देश हित में,जनहित में कानून बनाने वालों का भदेश आचारण और भाषा से एक नई संस्कृति ने आकर लिया है। जिसमें आदर्श और सम्मान का मूल्य नहीं हैं। राजस्थान विधान सभा चुनाव के दौरान जदयू के नेता शरद यादव ने कहा था,वसुंधरा मोटी हो गई हैं। अब उन्हें आराम करना चाहिए। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने गुजरात चुनाव के वक्त कहा था,नरेन्द मोदी एक नीच किस्म का व्यक्ति है। हाँलाकि बाद में मोदी ने इस बयान को काफी भुनाया। नेता की अपने शहर में,राज्य में लोगों के बीच, और परिवार में पहचान है। उसकी कही बातें सुनी जाती है। कई लोग उनका अनुसरण भी करते होंगे। जाहिर है, कि उनकी भाषा शैली के बड़े खतरे हैं। रीवा के बीजेपी सांसद जनार्दन मिश्रा ने कहा, कलेक्टर को थप्पड़ जड़ देने पर दो साल के लिए राजनीति चमक जाती है। इससे पहले उन्होंने एक बयान मे कहा था,पी.एम.आवास नरेन्द्र मोदी के दाड़ी से निकलते हैं।  

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हार्दिक पटेल ने कहा, धर्म की राजनीति करने वालों को थप्पड़ मारना चाहिए। योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में कहा था, मुस्लिम समुदाय की संख्या जितनी ज्यादा है, वहांँ उतने ही बड़े दंगे होते हैं। बात जून 1997 की है। संसद में महिला आरक्षण बिल पर शरद यादव ने कहा,इस बिल से सिर्फ पर कटी औरतों को फायदा पहुंँचेगा। ये परकटी शहरी महिलाएँ हमारी ग्रामीण महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी? साल 2017 में उन्होंने वोट के संदर्भ में कहा,वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी है। बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गांँव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी,अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सूबे की इज्जत चली जाएगी। पश्चिम बंगाल के जांगीपुर से कांग्रेस सांसद रह चुके अभिजीत मुखर्जी ने कहा था,दिल्ली में 23.वर्षीय युवती के साथ बलात्कार के विरोध में प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही छात्राएं सजी-संवरी महिलाएं हैं। जिन्हें असलियत के बारे में कुछ नहीं पता। हाथ में मोमबत्ती जला कर सड़कों पर आना फैशन बन गया है। ये सजी संवरी महिलाएं पहले डिस्कोथेक में गईं और फिर इस गैंगरेप के खिलाफ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंँच गईं।

अब चुनावी भाषणों में संवेदनाएंऔर इज्जत नहीं रहीं। आजम खान ने रामपुर में एक चुनावी जनसभा  में जयाप्रदा का नाम लिये बगैर कहा था,जिसको हम ऊँगली पकड़कर रामपुर लाए। उसने हमारे ऊपर क्या-क्या इल्जाम नहीं लगाए। उनकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे। मैं 17 दिन में पहचान गया,कि इनके नीचे का अंडरवियर खाकी रंग का है। 
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने शराब पीना स्टेटस सिंबल है कहा था। अपराध शराब पीकर डगमगाने से बढ़ते हैं,पीने से नहीं। शराब पीना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। बीजेपी अध्यक्ष के दौरान अमितशाह ने कहा था,राजनेताओं का काम सरहदों में रहने वाले फौजियों से अधिक जोखिमवाला होता है। उनकी बहुत खिलाफत हुई थी। गोवा के मुख्यमंत्री मनेाहर पार्रीकर ने लाल कृष्ण आडवाणी को बासी अचार कह दिया था। जुबान कब किसकी कहांँ फिसल जाये नहीं कह सकते। रामकृपाली यादव ने मोदी को आतंकवादी और हत्यारा कहा था। कांग्रेसी नेता लाल सिंह ने हदें पार कर दी थी। हम तो कुत्ते भी नस्ल देखकर लेते हैं,मोदी की क्या औकात है।’’ 

मोहन भागवत यूपी में अगस्त 2016 में शिक्षको की रैली के दौरान कहा,अगर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है तो हिन्दुओ को ज्यादा से ज्यादा बच्चे  पैदा करना चाहिए। बीजेपी वाले 1992 में मुलायम सिंह यादव को मुस्लिम परस्त होने पर मौलाना मुलायम यादव कहने लगे थे। इसका सियासी लाभ भी उन्हे मिला। 1999 में नये नये आये राजेश खन्ना ने अटल बिहारी बाजपेयी पर बिलो द बेल्ट टिप्पणी करते हुए कहा था औलाद नहीं है पर दामाद हैं.ये पब्लिक सब जानती है। नरसिम्हा राव को सभी मौनी बाबा कहते थे। बाद में यही शब्द मनमोहन सिंह के संदर्भ में भी कहा जाने लगा।


 

अच्छे दिन के लिए चाहिए जादू




नोटबंदी के बाद भी लोग अपनी काली कमाई की न कर पाएं सफाई इसके लिए जादू चाहिए। देश की पीलियाग्रस्त अर्थव्यव स्था को जादू चाहिए,ताकि वो दौड़ सके। देश को जादूगर चाहिए जो एक पल में महंगाई की ऊचांई को कम कर दे। कंगाल हो रहे बैंकों को मालामाल कर दे। घाटे में चल रहे देश के 27 राज्यों और सार्वजनिक संस्थाओं में पैसे का बूम आ जाये।इसके लिए जादू चाहिए।

0 रमेश कुमार ‘रिपु’

  देश ईडी,सी.बी.आई.और आईटी के छापे से नहीं चलता। विपक्ष के सड़क पर उतरने से भी देश नहीं चलता। चुनाव में  करोड़ों रुपये फूंक देने से भी देश नहीं दौड़ता। विधायकों की खरीद फरोख्त से किसी पार्टी की राजनीति का हेमेग्लोबिन ठीक हो सकता है। टांग खिंचाई राजनीति से सरकार गिर सकती है,बन सकती है,मगर इससे अर्थ व्यवस्था की धड़कन ठीक नहीं हो सकती। बातों के जलपान से जनता खुश हो सकती है,मगर कंगाल हो रहे बैंक के चेहरे पर चमक नहीं लौट सकती। लोकतंत्र के लिए राजनीति चाहिए,मगर देश को चलाने के लिए लंका जैसी अर्थव्यवस्था नहीं चाहिए। इस समय देश की अर्थव्यवस्था लंका जैसी नहीं है,मगर लंका जैसी होने को हैं। इससे बचने के लिए देश को जादू चाहिए। एक ऐसा जादूगर चाहिए,जो नोटबंदी के बाद भी अपनी काली कमाई की सफाई करने वालों को पकड़ सके। यानी काले धन की सफाई के लिए जादू चाहिए। देश की पीलियाग्रस्त अर्थव्यवस्था को जादू चाहिए,ताकि वो दौड़ सके। देश को जादूगर चाहिए,जो एक पल में महंगाई की ऊचांई को कम कर दे। कंगाल हो रहे बैंको को मालामाल कर दे। घाटे में चल रहे देश के 27 राज्यों और सार्वजनिक संस्थाओं में पैसे का बूम आ जाये। इसके लिए जादू चाहिए।

सवाल ये है,कि राजनीति के किस जेब में जादू की छड़ी है? क्यों कि महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ कांग्रेस सड़कों पर उतरी,तो वजीरे आजम को कहना पड़ा,कि पांच अगस्त को कुछ लोग काले जादू की ओर मुड़ते नजर आए। देश ने देखा कैसे काला जादू फैलाने का प्रयास किया गया। काला जादू पर जो विश्वास करते हैं,वे कभी लोगों का विश्वास नहीं जीत पायेंगे। काला,पीला,सफेद किसी भी रंग का जादू हो,देश के कृषि क्षेत्र को भी चाहिए। क्यों कि जून 2022 में कृषि सेक्टर में 1.3 करोड़ लोग रोजगार से हाथ धो बैठे।ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर मई में 6.62 फीसदी थी,जो बढ़कर जून 2022 में 8.03 फीसदी हो गई। वहीं शहरी बेरोजगारी दर एक माह पहले 7.12 थी,जो अब 7.30 प्रतिशत है। बढ़ती बेरोजगारी को रोकने और वेतनभोगी कर्मचारियों को भी जादू चाहिए। जून 2022 में 25 लाख नौकरियों में गिरवाट आई। बढ़ती बेरोजगारी पर राज्य सरकारों ने हाथ खड़े कर दिये हैं। हरियाणा में 30.7 फीसदी,राजस्थान में 29.9 फीसदी, असम में 17.4 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 17.4 फीसदी और बिहार में 18 फीसदी से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं। देश में दिसम्बर 2021 तक बेरोजगार लोगों की संख्या 5.3 करोड़ थी। जिसमें 1.7 करोड़ महिलायें हैं। आज जादू 3.8 करोड़ लोगों को चाहिए,जो लगातार काम तलाश रहे हैं। केन्द्र में बीजेपी के आठ साल के कार्यकाल में 22 करोड़ लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया और मात्र 7 लाख 22 हजार लोगों को नौकरी मिली। बावजूद इसके नौकरी के साथ ही शिक्षा क्षेत्र में भी जादू चाहिए।

आम व्यक्ति की नजर में देश की सबसे बड़ी समस्या मंहगाई है,उसके बाद बेरोजगारी। गरीबी तीसरे नम्बर पर है। सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, कि जून में खुदरा महंगाई दर में मई की तुलना में 0.3 फीसदी की कमी आई है। यानी महंगाई दर 7.01 फीसदी है। जबकि जीएसटी अब कई वस्तुओं में लग जाने से महंगाई दर 7.08 हो गई है। डाॅलर के मुकाबले गिरते रुपये ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम और कठिन कर दिया है। डालर महंगा होने से आयात महंगा होता जा रहा है। जिसका असर घरेलू बाजार पर दिख रहा है। तुअर की जो दाल जून में सौ रुपये किलो थी, वो अगस्त में 120-130 रुपये किलो मिल रही है। आरबीआई का कहना है,महंगाई कम करना है तो लोग खरीददारी कम कर दें। यानी आरबीआई को भी जादू चाहिए। इसलिए कि लोन लेेने वालों के  ब्याज दर में कटौती नहीं हो सकती। सरकार यह यकीन दिलाने की कोशिश कर रही है,कि जादू चल जायेगा। जबकि आरबीआई हाथ खड़े कर दिया है। क्यों कि सरकार ने उद्योगपतियों के ग्यारह लाख करोड़ रुपये माफ कर दी है। बैंक कंगाल हो रहे हैं,रुपया आ नहीं रहा हैं। बैंक घाटे पर चल रहे हैं। क्यों कि आरबीआई रेपो रेट बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। यानी निवेश करने वालों को ज्यादा ब्याज देने की स्थिति में नहीं है। जिससे निवेशक अपना डालर निकाल कर वहां निवेश करने लगे हैं,जहां उन्हें अधिक ब्याज मिल रहा है। जिसके चलते रुपया लगातार कमजोर हो रहा है,वहीं आयात बढ़ने से महंगाई बढ़ रही है। आरबीआई ने सरकार को लाभ पहुंचाने के लिए कोविड के समय ज्यादा रुपये छाप दिये,ताकि कर्ज लेने में दिक्कत न आये। और उसके चलते भी महंगाई बढ़ गई। बैंक को भी जादू चाहिए ताकि पैसा आ जाये। महंगाई पर नकेल लग जाये, ऐसा जादू चाहिए। 

केन्द्र सरकार ने 1568 प्रोजेक्ट की घोषणा की है। लेकिन रुपये नहीं होने से प्रोजेक्ट अधूरे हैं या फिर चालू ही नहीं हुए। पेट्रोलियम मंत्रालय के 149 प्रेाजेक्ट में 91 अटक गये हैं। रेल मंत्रालय के 211 प्रोजेक्ट में 127 अटके पड़े हैं। सड़क परिवहन के 843 प्रोजेक्ट में 301 अटके पड़े हैं। स्थिति यह है,कि 22 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट की फंडिग की व्यवस्था नहीं होने से प्रोजेक्ट की लागत बढ़कर 26 लाख करोड़ हो गई हैं। यदि ये सभी प्रोजेक्ट 2024 तक पूरे नहीं हुए तो इनकी लागत 30 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो जायेगी। जाहिर सी बात है प्रोजेक्ट जल्द पूरे हो जायें इसके लिए भी जादू चाहिए। 

सरकार को यकीन है कि 2024 में भी जादू चलेगा। चुनाव जीतने का जादू उसके पास हो सकता है। भले वजीरे आजम रेवड़ी कल्चर का विरोध करते हैं,लेकिन यूपी में योगी ने दोबारा सरकार बनाने के लिए दिल खोलकर रेवड़ी बांटी। पांँच किलो मुफ्त अनाज बांटने में यूपी में 40-42 हजार करोड़ रुपये खर्च हुआ। बिहार में 22 हजार करोड़ रुपये,पश्चिम बंगाल में 19 हजार करोड़ रुपये उत्तराखंड में 2000 करोड रुपए और झारखंड में नौ हजार करोड़ रुपये। आगे भी मुफ्त अनाज बांटने के लिए रुपये चाहिए,बगैर जादू के कैसे होगा,आरबीआई को भी पता नहीं। सरकार को कर्मचारियों के वेतन, पेशन,अदालत के भवनों के अलावा अन्य सरकारी दफ्तरों का किराया देने के लिए जादू चाहिए। 

देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर भले न आये मगरं देश-विदेश में घूमने के लिए नौ हजार करोड़ रुपये जहाज के लिए खर्च हो गया। देश की पेट्रोलियम कंपनी लगातार घाटे में चल रही है। हिन्दुस्तान पेट्रोलियम 10196 करोड़ रुपये के घाटे में है,भारत पेट्रोलियम 6291 करोड रुपये के घाटे में है। इसी तरह इंडियन आॅयल कारपोरेशन 1992 करोड़ रुपये के घाटे में चल रहे हैं। जाहिर सी बात है,जून 2022 तक के आंकड़े के अनुसार 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक के घाटे पर है पेट्रोलियम कंपनियांँ। जादू से ही इनका घाटा पूरा किया जा सकता है। इनके अच्छे दिन 2024 तक नहीं आये तो देश में महंगाई की सूनामी आने से कोई रोक नहीं सकता। सन् 2014 में अच्छे दिन आयेंगे कहने वाले न तो गैस सिलेंडर को चार सौ रुपये के नीचे ला पाये और न ही महंगाई को पटकनी दे पाये और न ही डालर पर रुपये को सवार कर सके। सब ठीक हो जाये इसके लिए कौन सा जादू करना पड़ेगा लोकतंत्र नहीं जानता,शायद सरकार को पता हो। इसीलिए वजीरे आजम ने जादू की चर्चा की है। बहरहाल, जिनकी सरकार है,उनकी फिर सरकार बन गई,तो मोजूदा अर्थव्यवस्था उन्हीं को ढोना पड़ेगा और सरकार चली गई,तो बनने वाली सरकार खून के आंँसू रोयेगी। 
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नेता बने डाॅन, किसे चुने अवाम..!





"संसद में हर दूसरी कुर्सी पर क्रीमनल सांसद बैठे हैं। इन्हें कोर्ट से सजा हो जाए तो कइयों की ताउम्र जेल में बीत जाए। अपराधियों के हाथ में देश और प्रदेश की कमान है। हर पार्टी में रेपिस्ट,गुंडे,डकैत, भूमाफिया, अपहरणकर्ता,और हत्या के आरोपी हैं। सवाल यह है,कि दागी नेता चुनाव नहीं लड़ सकें,क्या ऐसा कानून बन पायेगा?

0 रमेश कुमार  ‘रिपु’

बिहार में कानून मंत्री के पद की शपथ कार्तिक कुमार के लेते ही,देश में सनाका खिंच गया। क्यों कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट था। और बिहार पुलिस के लिए वो लापता थे। उनके कानून मंत्री बनने पर पूर्व केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर ने कहा,‘बिहार में जंगल राज लौट आया है।’राजनीति में उंगली उठाना बड़ा सहज है। रविशंकर यह भूल गए, कि मोदी के मंत्रीमंडल में 78 मंत्री हैं। जिसमें 33 के खिलाफ क्रीमनल केस दर्ज है और 24 के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं। एक मंत्री के खिलाफ हत्या का और चार पर हत्या का प्रयास और अपहरण का आरोप है। ऐसे में वजीरे आजम का यह रोना हैरान करता है,कि संसद में ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले हों तो लोकतंत्र की साख बनती है। सवाल यह हैै कि ऐसे लोग मिलेंगे कहाँ? हर पार्टी में एक से बढ़कर एक डाॅन हैं। सिर्फ बिहार ही नहीं, हर राज्य में ऐसे कई नेता हैं,जो अपने इलाके के डाॅन हैं। मगर जमानत पर हैं। और संसद में या फिर विधान सभा में बैठकर देश और प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था पर सवाल करते हैं। कानून बना रहे हैं।   

सुप्रीम कोर्ट की पांँच जजों की संविधान पीठ का कहना था, आरोप तय होने मात्र से किसी को चुनाव लड़ने से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। संसद में कानून लायें,ताकि अपराधी राजनीति से दूर रहें। ऐसा दिन कब आयेगा,संसद भी नहीं जानती। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने वेबसाइट,इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में ऐसे प्रत्याशियों को अपने अपराधिक मामले को सार्वजनिक करने के निर्देश दिए हैं।  
सवाल यह है कि लोकतंत्र के मंदिर में जनता किसे बिठाये? इसलिए कि हर दल में चुनाव के वक्त इस बात की होड़ रहती है, बताने के लिए कि उसके खेमें में कितने बाहुबली, रेपिस्ट, हत्यारे, नक्सली,भू माफिया और गुंडें़ है। क्यों कि पार्टी के यही आधार स्तंभ है। पार्टी इनके ही दम पर चलती है। चुनाव की दिशा इनकी ताकत,दहशत,पैसा और गुंडई के दम पर बदलती है। इसका प्रमाण है लोकसभा के 542 सासदों में 233 के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज हैं । वहीं 159 ऐसे हैं,जिन्हें सजा हो जाए तो सारी उम्र जेल में ही बीत जायेगी, मगर सजा पूरी नहीं होगी। वहीं राज्य सभा में 228 सांसदो में 51 सांसदों के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज है। और 20 के खिलाफ संगीन अपराध दर्ज है। यानी रेपिस्ट हैं,अपहरण का आरोप है,हत्या के आरोपी हैं ।
ऐसे में सवाल यह हैं, कि जंगल राज की कमान किसके हाथ में नही हैं। वोटर बलात्कारी को चुनें या फिर हत्यारे को अथवा अपहरणकत्र्ता को। उसे वोट इन्हीं में से किसी एक को देना है। उसकी मजबूरी है। उनका विरोध भी नहीं कर सकता। कोई बड़ा डाॅन है,कोई छोटा डाॅन है। यह कह सकते हैं, कि देश के हर राज्य के विधायक और सांसद की कुर्सी पर नजर डालें तो हर दूसरी कुर्सी पर बैठे माननीय के खिलाफ जुर्म दर्ज है। 
वजीरे आजम ने संदन में कहा था,कि दागी नेता स्वस्थ्य राजनीति की धोतक नहीं है।यानी साफ सुथरी राजनीति की बात केवल जुबानी है। सच्चाई यह है, कि राजनीतिक पार्टियांँ जमकर दागी नेताओं को टिकट बांटते हैं। 353 सांसद एनडीए के हैं। भाजपा के 116 सांसदों पर क्रिमिनल केस दर्ज है। और एनडीए को शामिल कर लें तो 159 सांसदों के खिलाफ संगीन अपराध दर्ज हैं। और अकेले बीजेपी के 59 सांसदों के खिलाफ संगीन मामले कोर्ट में चल रहे हैं। बीजेपी के पांँच सांसदो पर हत्या का आरोप है,जबकि बसपा और कांग्रेस के दो सांसदों पर। कांग्रेस के 29 सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के 22 सांसदों में से 9 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। बसपा के 10 में से 5 सांसदों पर भी आपराधिक मामले चल रहे हैं। सपा के भी पांँच सांसदों में से दो पर केस दर्ज हैं।  बिहार में जदयू के 16 सांसदों में 13 सांसदों पर जुर्म दर्ज है। 
छत्तीसगढ़ के 90 विधायकों में से 24 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 13 के खिलाफ गंभीर अपराधिक मामले हैं। कांग्रेस के 72 विधायकों में 19 के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज है। वहीं भाजपा के तीन और छजका के दो विधायकों में एक पर गंभीर अपराधिक मामला दर्ज हैं। बेमेतरा सीट से कांग्रेस के विधायक आशीष छाबरा के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है। वहीं  पाटन सीट से विधायक भूपेश बघेल के खिलाफ सरकारी कर्मचारी को अपने कार्य से रोकने और आपराधिक षड्यंत्र का मामला दर्ज है। इसके अलावा जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार क्षेत्र के विधायक प्रमोद कुमार शर्मा के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज है।  
दरअसल देश में हर साल अपराधिक सांसदों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में सुप्रीेम कोर्ट का चिंतित होना स्वाभाविक है। अपराधिक नेताओं के माननीय बनने की बढ़ती संख्या से जाहिर है,कि जनता की मजबूरी है,इन्हें वोट करना। साल 2009 में 162 सांसदों के खिलाफ मामले दर्ज थे,जिसमें 76 के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज थे। यानी सजा हो जाए तो सारी जिन्दगी जेल में बितानी पड़े। सन् 2014 में यह संख्या बढ़ गई। 185 सांसदों के खिलाफ क्रीमनल मामले और 112 पर गंभीर मामले थे। और 2019 के चुनाव में संसद पहुंँचे 233 सांसंदों के खिलाफ विभिन्न प्रकार के मामले दर्ज हैं। 

राज्यों की स्थिति भी बहुंत अच्छी नहीं है। यूपी में 403 विधायकों  में 205 के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज हैं। और 165 ऐसे विधायक हैं,जिन्हें सजा हो जाने पर सपने में भी कभी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। यानी अपराधियों की बहुमत वाली सरकार है। तमिलनाडु में 325 विधायकों में 178 के खिलाफ क्रीमनल मामले हैं। बिहार में 150 विधायकों पर क्रीमनल मामले हैं दर्ज हैं। 89 विधायकों के खिलाफ सीरियस मामले दर्ज हैं। महराष्ट्र में 27 मंत्रियों के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं। पश्चिम बंगाल में 142 के खिलाफ क्रीमनल मामले चल रहे हैं। जिसमें 60 के खिलाफ गंभीर मामले हैं। यानी सजा हो जाए तो राजनीति खत्म हो जाये. राजस्थान में 67 के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज हैं और 19 के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं। यानी हत्या,रेप,हत्या का प्रयास,अपहरण,लूट आदि। गुजरात में 47 के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज हैं,जबकि 22 के खिलाफ सीरियस मामले दर्ज हैं। एम.पी. में बीजेपी के 28 विधायकों के खिलाफ सीरियस मामले दर्ज हैं। वहीं कांग्रेस के 15 विधायकों पर। क्रीमनल केस वाले कांग्रेस के 56 विधायक हैं,जबकि बीजेपी के 34 विधायक हैं। सदन में इतने अपराधिक सांसद और विधायकों के होने से वजीरे आजम का भावुक होना जायज है। महिलाओं के खिलाफ अपराध में राज्यवार सासंदों और विधायकों की बात करें तो महाराष्ट्र के 12 सासंदों- विधायकों के ऊपर महिलाओं से संबंधित अपराध के मामले दर्ज हैं। बिहार, गुजरात, तमिलनाडु में दो,एम.पी. में पाँच,यू.पी. में तीन,उत्तराखंड में तीन,ओड़िसा में 16, और बंगाल में भी इतने ही के खिलाफ मामले दर्ज हैं।        

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा संकेत दिया है,कि संगीन अपराधों में जिन नेताओं के खिलाफ चार्ज फ्रेम हो जाएं उनको चुनाव लड़ने से रोका जाए। और गंभीर अपराधों में, मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए कराई जाए। लेकिन यह दिन कब आयेगा,संसद भी नहीं जानती।