Thursday, December 6, 2012

मुस्लमानों पर सियासत कर रही कांग्रेसःगोटिया

     मुस्लमानों पर सियासत कर रही कांग्रेसःगोटिया

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद गोटिया कहते हैं कांग्रेस भाजपा पर आरोप लगाकर इस देश में मुस्लिम वोट अपने पक्ष में खड़ा करना चाहती है। जबकि वो आज की पीढ़ी से यह बात छुपा रही है कि इस देश में नेहरू और गांधी के समय 5 लाख मुस्लिम काटे गये हैं। साम्प्रदायिकता की नींव तो कांग्रेस ने इस देश में डाली है और आरोप भाजपा पर मढ़ रही है। कांग्रेस तो उसी दिन से मुस्लिम राजनीति करने लगी है जिस दिन से,इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से शादी की। कहीं नहीं लिखा है और न ही प्रमाण है कि फिरोज खान,गांधी हो गये। फिर कांग्रेसी, आज भी गांधी,गांधी की रट लगा रहे हैं। राजीव गांधी,संजय गांधी सभी फिरोज खान की संताने हैं,इसलिए मुस्लमानों पर कांग्रेस  सियासत कर रही है। तीखे सवालों के उन्होंने तीखे जवाब दिये। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश -

0क्या भाजपा रंग बदल रही है,नये अवतार में आने के लिए।
00 भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की हिमायती है। जब तक हिन्दुस्तान अपना रंग नहीं बदलेगा, तब तक भाजपा देश की आत्मा के रंग में ही रंगी रहेगी,उसके रंग बदलने का सवाल ही नहीं उठता।
0 हिन्दुस्तान किस तरह का रंग बदले,स्पष्ट करें।
00समृद्धशाली विकसित राष्ट्र के रूप में इस देश की पहचान बने। पूरी दुनिया उसे जाने। अनुकरणीय परंपराये राष्ट्र की शिराओं में लहू की तरह दौड़े।
0 दुनिया मंे देश का नाम तो है ही है,वो चाहे अटल जी के नाम से दुनिया भारत को जाने या फिर यूपीए के घोटाले से दुनिया,हिन्दुस्तान को जाने।
00 मै सोनिया या फिर राबर्ट वाड्रा की बात नहीं करना चाहता। ये सभी निर्विवाद व्यक्ति हैं,यानी भ्रष्टाचार के मसीहा है। ऐसे लोगों के नाम से देश की पहचान बने,यह तो हमारी देश और संस्कृति का अपमान है।
0 भाजपा अध्यक्ष नीतिन गडकरी पर भी तो भ्रष्टाचार के छीटे पड़े हैं।
00 गडकरी जी का मामला अलग हैं। वो सहकारिता के आधार पर ताना बना बुने हैं। यदि वो गलत होते तो,यह नहीं कहते कि जांच करा लो। यदि दोषी हॅू तो सजा दे दो। राबर्ट वाड्रा या फिर एसोसियेट जर्नल्स को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी बिना ब्याज के राशि दिये। यह कहना कि 700 लोगों के जीवन को बाचाने के लिए ऐसा किया। चंदा की राशि को धंधा बना देना गलत है। आज भी सैकड़ो कर्मचारियों का मामला कोर्ट में चल रहा है। यदि ये सही हैं तो इन्हें कहना चाहिए कि हमारी जांच करा लें जैसा कि गडकरी खुलकर बोल रहें है कि जैसा चाहो जांच करा लो।
0भाजपा धर्म निरपेक्ष होने के चक्कर में कई बार अपने कुर्त्ते में साम्प्रदायिकता की जेबें भी बनवाने का मोह नहीं छोड़ती ऐसा क्यो?
00 मुझे ताज्जुब होता है कि भाजपा पर बार बार कांग्रेस साम्प्रदायिकता का आरोप क्यों लगाती है। कभी अपने गिरेबान में भी तो झांक के देखे। आज तक जितनी बार भी भाजपा आरोप लगे हैं एक भी प्रमाणित नहीं हुए हैं। नेहरू और गांधी के समय तो इस देश में पांच लाख मुस्लमान काट दिये गये,उसे आज की पीढ़ी से कांग्रेस क्यों छिपा रही है। देश के बंटवारे का जो आधार कांग्रेस के समय तय किया गया,उसके स्वरूप में मै नहीं जाना चाहता,लेकिन किया किसी और ने और उसका दंड आज भी देश भोग रहा है। साम्प्रदायिकता की नींव तो कांग्रेस ने रखी। और आरोप भाजपा पर लगाया जा रहा है। कांग्रेस मुस्लिम वोट खड़ा करने की राजनीति कर रही है। मुस्लमानों को गरीब बताकर उन्हें रूपये बांट रही है। यह राजनीति नहीं तो और क्या है। कांग्रेस तो उसी दिन से मुस्लिम राजनीति करने लगी है जिस दिन से इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से शादी की। कहीं नहीं लिखा है और न ही प्रमाण है कि फिरोज खान,गांधी हो गये। फिर कांग्रेसी, आज भी गांधी,गांधी की रट लगा रहे हैं। राजीव और संजय तो फिरोज खान की संताने हैं,इसलिए मुस्लमानों पर कांग्रेस  सियासत कर रही है।
0 लाल कृष्ण आडवाणी तो भी मुस्लिमों को रिझाने के लिए जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष नेता कहा। उसके बाद पार्टी में बवाल मचा। क्या जिन्ना को भाजपा धर्म निरपेक्ष नहीं मानती?
0जो आडवाणी जी कहे उसका गलत अर्थ लगाया गया। उन्होंने वही कहा जो पार्लियामेंट में पहले भाषण में जिन्ना बोले थे। सेक्यूलर का अर्थ होता पंथ निरपेक्ष न कि धर्म निरपेक्ष, और आडावाणी जी जिन्ना को सेक्यूलर बोले,लेकिन उसका अर्थ वो नहीं था जो निकाला गया।
0 इस देश को मोदी चाहिए या फिर गडकरी?
00 मोदी और गडकरी की तरह देश की सेवा करने वाले ऐसे सभी नौजवानों की जरूरत है जो राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ सके और देश की संस्कृति को समझता हो।
0क्या अब भाजपा कांग्रेस होने लगी है या फिर हो गई है?
00 कांग्रेस से भाजपा अलग है। वो कभी न तो कांग्रेस हो सकती है और न ही दूसरी पार्टी। अपने सीने मं लिखा रखा है पार्टी विथ द डिफरेंस तो फिर,भाजपा कांग्रेस कैसी हो जायेगी।
0क्या भाजपा आरएसएस के शिकंजे में या फिर उसका रिमोट कंट्रोल नागपुर में है।
00 जब भाजपा और आरएसएस का जन्म हुआ था तब रिमोट कंट्रोल नहीं बना था। भाजपा और संध के बीच मर्यादा है। दोनों अपनी मर्यादाओं के बीच काम करते हैं। यह कहना गलत है कि भाजपा,संघ के शिकंजे में है।

भाजपा में झा का जाप बंद

  भाजपा में झा का जा प बंद
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेकर पार्टी की सांस अभी भी अटकी हुई है। वहीं प्रदेषाध्यक्ष को लेकर एक राय पर मतभेद है। जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्षों के चुनाव में आम राय का विवाद हाई कमान तक पहुंचने के बाद भाजपा के अंदर अभी भी विरोध का कुहरा थमा नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय चुनाव प्रभारी थावरचंद गहलोत ने सांसद सुमित्रामहाजन को अध्यक्ष बनाने पर अपनी मोहर लगा दी है,वहीं मुख्यमंत्री शिवराज ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है। वो नरेन्द्र सिंह तोमर की प्रदेश में धकमाकेदार वापसी चाहते हैं। प्रभात झा के खिलाफ सुमित्रा ताई,रघुनंदन शर्मा सहित प्रदेश के कई मंत्री और पांच दर्जन विधायक खिलाफ हैं। इससे शिवराज की सांस नहीं समा रही है कि वो भाजपा में फिर से झा के नाम का प्रभात होने दें कि नहीं। आखिर झा का विरोध प्रदेश भर में करने की लॉबिंग कौन कर रहा है। कौन नहीं चाहता प्रभात के नाम का घंटा भाजपा में बजे। प्रभात के नाम का जाप न हो,प्रभात के अध्यक्ष बनने से किसे नुकसान होगा,किसे फायदा, ऐसे कई सवालों का लिहाफ उठाती यह रिपोर्ट ... 
0  रमेश कुमार ‘रिपु‘
     यह कोई नहीं जानता कि प्रभात झा ने विभिन्न पदों के लिए पार्टी में चुनाव की जगह आम राय को क्यों महत्व दिया था। इसके पीछे उनका कोई न कोई मकसद रहा होगा। लेकिन उन्होने अपने कार्यकाल में जिस बिहारी अंदाज में पार्टी के संगठन के ढीले पुर्जों को कसा और विपक्ष को लपेटे में लेते हुए सुर्खियों की राजनीति की,उससे पार्टी का भला हुआ या फिर उनका? यह सवाल अब केवल उनके विरोधी ही नहीं, राजनीतिक समीक्षक और स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी कर रहे हैं। इसलिए भी कि ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा, जब प्रभात झा ने कांग्रेस पर हमला करने के बहाने शिवराज पर भी निशाना न साधा हो। वो चाहे ओरछा में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में विवश होकर शिवराज को मंच पर कहना पड़े कि झा जी, आप संगठन देखें, मै सरकार चला लूंगा। इसके बाद सज्जन वर्मा ने नर्मदा नदी के संदर्भ में भद्दी टिप्पणी की तो, प्रभात ने हमला किया,सज्जन सहित कांग्रेस पर। लेकिन तीर लगा शिवराज को। इसलिए कि नर्मदा तो विदिशा से भी लग कर बहती हैं। वहां नर्मदा के किनारे अवैध उत्खनन हो रहा है तो जाहिर है कि प्रभात कुछ बोलेंगे तो तीर शिवराज को भी लगेगा। और उन्होंने यही किया। बिहारी बाबू की कार्यशैली से न तो ताई सुमित्रा महाजन खुश हैं और न ही रघुनंदन शर्मा और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। आज मुख्यमंत्री हाथ मल रहे हैं कि प्रभात के कहने पर बेवजह नरेन्द्र सिंह तोमर को केन्द्र की राजनीति करने के लिए उन्हें दिल्ली भिजवा दिया भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनवाकर। प्रदेश में उनके बगैर न केवल शिवराज अकेले पड़ गये,बल्कि नरेन्द्र के समर्थक भी खाली कारतूस हो गये।
        प्रभात झा ने नरेन्द्र सिंह तोमर के हटते ही पार्टी के अंदर संगठनात्मक ढांचा अपने अनुसार तैयार किया है। आम राय की स्थिति झा ने इसलिए पैदा कि ताकि पार्टी के अंदर चुनाव न हो। वो जिसका नाम लिखकर दे देंगे या कह देंगे उसे हर हाल में भाजपा जिला अध्यक्ष बनाना है। कोई विरोध करता है तो पार्टी अनुशासन हीनता की नोटिस की धमकी देकर उसकी आवाज बंद कर दो। यही हर जिले में भाजपा जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष चुनाव में हुआ। इसका विरोध ताई सुमित्रा महाजन और रघुनंदन शर्मा ने खुलकर किया। यह बात हाई कमान तक गई। भाजपा के राष्ट्रीय चुनाव प्रभारी थावरचंद गहलोत भी मानते हैं कि पार्टी संविधान में निर्वाचन का ही प्रावधान है। आम राय जैसी कोई बात नहीं है। मुझे यह बताया गया है कि प्रदेश संगठन में जो रायशुमारी हो रही है उसका स्वरूप भी निर्वाचन जैसा ही है। यह अलग बात है कि कुछ स्थानों पर मंडल अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष को लेकर विरोध हुआ है,विवाद के चलते कुछ स्थानों पर फैसला रोक लिया गया है। वहीं इस मामले पर पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रघुनंदन शर्मा कहते हैं,‘‘ पार्टी के विधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि आम राय से पदाधिकारी थोपे जायें। पार्टी विधान में राय शुमारी नाम का कोई शब्द नहीं है। उसमें साफ लिखा है कि चुनाव होना चाहिए। ऐसा करने के पीछे निश्चय ही किसी न किसी का हित जुड़ा हो सकता है‘‘। राय शुमारी के पीछे क्या निहार्थ हो सकते हैं के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस मामले पर निर्वाचन अधिकारी को जांच करना चाहिए। यदि जांच होती है तो यकीन के साथ कह सकता हॅू कि राय शुमारी से चुने गये जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष की वजह सामने आ जायेगी।
बहरहाल प्रदेशाध्यक्ष बनने की चाह को लेकर एक बार फिर ताई सुमित्रा सामने हैं। अबकि बारी नारी, का नारा के साथ सुमित्रा अपनी दावेदारी जता रही हैं। थावरचंद गहलोत भी ताई के नाम पर अपनी मोहर लगा दिये हैं। वहीं प्रभात झा के खेमें के लोगों का कहना है कि प्रदेशाध्यक्ष के लिए महिलाओं का क्या काम। पिछली बार भी ताई ने प्रदेशाध्यक्ष बनने का दम खम दिखाया था,लेकिन समझाने पर शांत हो गई थीं,लेकिन इस बार ताई अध्यक्ष बनने के लिए एड़ी चोटी एक की हुई हैं। यह अलग बात है कि उन्हें अभी किसी और बड़े नेता का समर्थन नहीं है। समझा जाता है कि यदि पार्टी के अंदर अन्य बातें समान्य रहीं तो अनूप मिश्रा,झा नरोत्तम,और कैलाश विजयवर्गीय को पटकनी देने के लिए ताई का साथ दे सकते हैं। वहीं प्रदेश में इस समय 65 विधायक झा से नाराज चल रहे है। यदि सीधे चुनाव की स्थिति आई तो झा को इतने विधायक तो वोट नहीं ही देंगे। एक सवाल यहां यह भी है कि आखिर झा ने रायशुमारी की नींव क्यों रखी। जानकारों का कहना है कि ताकि उनके समर्थक अधिक से अधिक चुन कर आयें और वो सभी उनकी एक आवाज पर उनके पक्ष में वोट डाल सकें।
शिवराज नहीं खोल रहे हैं पत्ते
   शिवराज अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। जबकि सबकी नजर उन पर लगी हुई है। वो इस बात को भी समझ रहे हैं कि यदि झा दुबारा अध्यक्ष बने तो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ जायेगी। झा उन्हें भी नरेन्द्र सिंह तोमर की तरह केन्द्र की राजनीति के लिए प्रस्तावित कर देंगे। पार्टी उन्हें राष्ट्रीय महासचिव तो बना ही देगी। फिर उनकी भी स्थिति तोमर की तरह हो जायेगी। केन्द्र में पार्टी की सरकार बनी तो ठीक है,नहीं तो कहीं के न रह जायेंगे। इसलिए कि विदिशा तो उनके हाथ से छूट ही गया है। यहां सुशमा स्वराज का कब्जा है। उनके हाथ में केवल बुधनी विधान सभा है। यहां से अगली दफा साधना सिंह विधान सभा का चुनाव लड़ सकती है,यदि वो केन्द्र में भेज दिये गये तो। नहीं तो बुधनी ही उनके हिस्से में आयेगा। वहीं वो इस बात को भी समझ रहे हैं कि इस बिहारी बाबू की नजर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी हुई है। इसलिए पूरे पांच साल तक संगठन को सक्रिय करने की आड़ में प्रदेश में अपनी जड़े जमाने में झा लगे रहे हैं। अब जब वो शिवराज की तरह प्रदेश के संगठन में अपनी बैठ जमा लिये हैं तो उन सभी को हटाने की तिकड़म कर रहे हैं,जिससे उन्हें खतरा है। जानकारों का कहना है कि शिवराज 2008 में अपनाये गये फामूर्ले के तहत 2013 का चुनाव लड़ना चाहते है। वो हाई प्रोफाइल की राजनीति करने वालों से बचते हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर इसी लाइन के नेता है। जबकि झा हाई प्रोफाइल के नेता है। वैसे भी नरेन्द्र सिंह तोमर को प्रदेश का हर व्यक्ति जानता है,ऐसी स्थिति में उनके अध्यक्ष बनने से न तो पार्टी को नुकसान है और न ही शिवराज को। प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन से इस मामले में शिवराज ने अभी तक कोई बात नहीं की है। जबकि दिसंबर में हर हाल में अध्यक्ष चुना जाना है। समझा जाता है कि शीतकालीन सत्र के बाद ही शिवराज इस दिशा में सभी से बातें करेंगे।
      भाजपा के खेमें में न केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रभात को पुनः अध्यक्ष के रूप में नहीं देखना चाहते बल्कि रघुनंदन शर्मा भी नहीं चाहते कि झा दुबारा अध्यक्ष बने। इसलिए कि उन्हें बेवजह अपमानित करके झा ने प्रदेश उपाध्यक्ष के पद से हटा दिया था। शर्मा सिर्फ इतना ही बोले थे शिवराज के संदर्भ में कि मुख्यमंत्री को घोषणावीर मंत्री नहीं बनना चाहिए। उन्होंने केवल सलाह दी थी। लेकिन झा उसे बड़ा मुद्दा बना दिया था। वहीं जानकारों का दावा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी का प्रभात को वरदहस्त प्राप्त है। ऐसी संभावना है कि वो  प्रभात का पक्ष लेंगे। सोनी लंबे समय से झा को जानते हैं। उन्होंने ही झा को दिल्ली भेजा था। लेकिन इस बार झा के खिलाफ हवा चलने की वजह से वो भी अरविंद मेनन और मुख्यमंत्री शिवराज से बातें करने के बाद ही कुछ बोलेंगे। वहीं यह जाहिर हो गया है कि नीतिन गडकरी की तरह पार्टी के अंदर झा का भी विरोध है। यह अलग बात है कि झा पर नितिन गडकरी जैसा आरोप नहीं है,पर बिहारी सियासी संस्कृति की वजह से पार्टी में रोश है। जिसे पार्टी नजरअंदाज नहीं करना चाहती,आगामी चुनाव को देखते हुए।
16 को तय होगा अध्यक्ष
प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का चुनाव 16 दिसंबर को होगा। 15 दिसंबर को नामांकन होगा और अगले दिन सुबह दस बजे तक नाम वापसी और आवश्यक होगा तो मतदान होगा अन्यथा आम सहमति पर अध्यक्ष चुने जायेंगे। मतदान हुआ तो 12 बजे से शाम 4 बजे तक होगा। लगभग 200 मतदाता,जिला प्रतिनिधि और प्रदेश प्रतिनिधि 180   विधायक दल प्रतिनिधि 16 और सांसद प्रतिनिधि 3 होंगे जो मतदान करेंगे। प्रदेश चुनाव अधिकारी नंदकुमार सिंह चौहान ने बताया कि 16 दिसंबर की तारीख तय की गई है। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार से भी बात की जायेगी। जरूरी समझा गया तो तारीख बदल सकती है। अभी तक प्रदेश के 44 जिलों के जिला अध्यक्षों का चुनाव हो गया है। शेष जिलों का भी चुनाव से पहले हो जायेगा।
कलराज या रविशंकर होंगे पर्यवेक्षक
भाजपा के प्रदेशाघ्यक्ष के लिए सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ने राष्ट्रीय महासचिव और भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद अथवा कलराज मिश्र में से किसी एक को पर्यवेक्षक के रूप में प्रदेश भेेज सकती है। राष्ट्रीय चुनाव अधिकारी थावरचंद गहलोत के अनुसार गुजरात चुनाव की व्यवस्तता को देखते हुए बड़े नेताओं अभी प्रदेश के पर्यवेक्षक का नाम तय नहीं किया है। जल्द ही तय हो जायेंगे।