Saturday, April 27, 2024

घोंषणा पत्र पर भड़के,मंगल सूत्र में अटके

 "सब भटक रहे हैं। भाजपा समेत समूचा विपक्ष। बीजेपी अपने मेनिफोस्टो में महंगाई और बेरोजगारी की जगह सपने दिखा रही है। उसे यकीन था कि 2014 से ज्यादा बड़ी जीत उसे मिलेगी। लेकिन पहले चरण के वोट ट्रेंड ने बीजेपी की धुकधुकी बढ़ा दी, मोदी कांग्रेस के घोषणा पत्र में मुस्लिम लीग की छाया बता कर भड़के और मंगल सूत्र में आकर अटके। बावजूइ इसके दूसरे चरण में भी वोट का ट्रेंड नहीं बदला। आगे भी यही स्थिति रही तो बीजेपी दो सौ सीट से नीचे जा सकती है।


-- रमेश कुमार ‘रिपु’
क्या आखिरी अश्वमेघ है। किराए की भाजपा का। हर राज्यों में कांग्रेस से भाजपा में आने वालों की भीड़ दिखी।इनके भरोसे भाजपा अपनी सेहत सुधारने का सपना पाल ली है। लेकिन पहले चरण की वोटिंग के ट्रेंड ने जय हो कि जगह,भय हो का माहौल बना दिया है। पहले चरण के 102 सीटों में भाजपा सिर्फ 42-46 सीट पा रही है। ऐसा सियासी आकलन है देश का। वोट का ट्रेण्ड बदलने के लिए मोदी ने भाषण का ट्रेंड ही बदल दिया। कांग्रेस के मेनिफेस्टो में मुस्लिम लीग की छाया बता कर भड़के। और मंगल सूत्र में आकर अटके। मुद्दे के लिए भटकती भाजपा एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम के चौराहे पर आ गयी। सब भटक रहे हैं। भाजपा समेत समूचा विपक्ष। बीजेपी अपने मेनिफोस्टो में महंगाई और बेरोजगारी की जगह सपने दिखा रही है। उसे यकीन था कि 2014 से ज्यादा बड़ी जीत उसे मिलेगी। लेकिन पहले चरण के वोट ट्रेंड ने बीजेपी की धुकधुकी बढ़ा दी है। दूसरे चरण में भी वोट का ट्रेंड नहीं बदला। आगे भी यही स्थिति रही तो पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की बात सच हो सकती है, कि बीजेपी दो सौ सीट से नीचे रहेगी। यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी के लीडर मोदी नहीं रहेंगी।  

धर्म के खेत पर राजनीति..
मोदी को भरोसा था कि हिन्दू-मुस्लिम राजनीति के पासे पौ बारह ही पड़ंगे। इसलिए सत्ता के हंसिये से वोट की फसल काटने के लिए राजनीति को धर्म के खेत पर खसीट लाए। कांग्रेस को अर्बन नक्सली कह दिया। कांग्रेस सत्ता में आई तो हिन्दू बहनों के मंगल सूत्र तक छीन लेगी। कांग्रेस लोगों की कमाई ज्यादा बच्चों वालों में बांट देगी। अल्पसंख्यक घुसपैठिए हैं। आतंकवादी हैं। कांग्रेस की सोच माओवादियों और कम्युनिस्टों की है। आपकी संपत्ति पर कांग्रेस अपना पंजा मारना चाहती है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, कि हमारे मेनिफोस्टो में विरासत टैक्स का कहीं जिक्र नहीं है। प्रधान मंत्री असत्यमेय जयते का प्रतीक हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस के मेनिफेस्टों को समझाने मोदी से समय मांगा। सवाल यह है, कि अल्पसंख्यक घुसपैठिए हैं तो कितने पकड़े गए। कितने के खिलाफ कार्रवाई हुई।
दूसरे चरण मे वोट में भी मोदी की कही बातों के बावजूद वोट का ट्रेंड नहीं बदला। विपक्ष उत्साहित है कि मतदाताओं ने सत्ता परिवर्तन का संकेत दे दिया है। यूपी की आठ सीट पर हुए चुनाव में मेरठ,बागपत, मथुरा,अमरोहा,अलीगढ़ की सीट बीजेपी की फंस गयी है। किसानो को बीजेपी ने निराश किया। वादे पूरे नहीं हुए। ऐसा वहां के वोटर कह रहे हैं। दूसरे चरण में 66.12 फीसदी वोट पड़े हैं। मध्यप्रदेश की होशंगाबाद को छोड़कर सभी जगह वोट पिछली बार की तुलना में कम हुए है। रीवा में दस फीसदी वोट कम पड़े हैं। दूसरे चरण के वोट के आधार पर यह माना जा रहा है कि बीजेपी और इंडिया दोनों को मतदाताओं ने तवज्जो दिया। अब तक के 190 सीट में इंडिया गठबंधन को फायदा ज्यादा होने के संकेत हैं।

किसने  छीने मंगल सूत्र..
मंगल सूत्र वाले बयान पर सोशल मीडिया पर प्रधान मंत्री के प्रति गुस्सा ज्यादा देखने को मिला है। वहीं   प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के मंगल सूत्र वाले बयान पर प्रियंका गांधी ने कहा,मेरी मां ने अपना मंगल सूत्र देश के नाम कुर्बान कर दिया। युद्ध के  दौरान मेरी दादी इंदिरा गांधी ने अपने गहने देश को समर्पित किये। कांग्रेस ने आज तक किसी मां -बहनों के मंगल सूत्र नहीं छीने। सवाल यह है कि क्या भाजपा अवसान पर है। उसका यह संक्रमण काल है। इसलिए मोदी ने धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए चुनाव में हर बार की तरह फिर हिन्दू,मुस्लिम की फसल काटना चाहते हैं। अंधेरे में लाठी भांज रही है भाजपा। किसान आंदोलन में 700 किसानों की मौत हुई। चीन के बार्डर पर गढ़वाल में कई सैनिक शहीद हुए। पोलवामा कांड में समय पर हवाई जहाज मोदी उपलब्ध करा देते तो हमारे कई भारतीय सैनिक शहीद न होते। क्या उन शहीद लोगों की विधवाओं के मंगल सूत्र का ध्यान मोदी को नहीं है। आखिर इतने सारे शहीदों की पत्नियों के मंगल सूत्र, किसकी वजह से बिना धागे के हो गए?क्या इन सवालों का जवाब बीजेपी के पास है?

बीजेपी के पेट में दर्द क्यों उठा..
भाजपा अपने आप को हिन्दू की पार्टी कहती है। कांग्रेस यदि मुस्लिमों की पक्षधर है,तो विवाद क्यों? सबकी राजनीति के अपने अपने तरीके हैं। फिर भी हर चुनाव में भाजपा यह कह कर हिन्दुओं को क्यों डराती है कि आज हिन्दू खतरे में है। देश का प्रधान मंत्री हिन्दू है। गृहमंत्री हिन्दू है। राज्य के मुख्यमंत्री हिन्दू हैं। फिर भी देश का हिन्दू खतरे में है। यदि हिन्दू खतरे में है तो इसके लिए मुठ्ठी भर अल्पसंख्यक दोषी हैं या फिर देश की सरकार! वोट डालने से पहले एक बार मनन जरूर करें।

देश पर 272 लाख करोड़ का कर्ज..
दस साल की भाजपाई सत्ता में देश का आर्थिक ढांचा चरमरा गया है। देश पर 272 लाख करोड़ का कर्ज है। सरकार ने कई उद्योगपतियों के कर्जे माफ कर दिये तो बैक डूब गए। ताले लग गए। ग्यारह लाख करोड़ रुपए से ज्यादा उद्योग पतियों के माफ किये गए। इलेक्टोरल बांड ने भाजपा की ईमानदारी छवि पर कालिख पोत दी। देश के छोटे से लेकर बड़े उद्योगपतियों को ईडी का डर दिखाकर उनसे चंदा लिया। बदले में उद्योगपतियों ने अपने- अपने उत्पादों की कीमत चार गुना बढ़ा दिया। बाजार में महंगाई का बूम आ गया। आम आदमी समझ ही नहीं पाया कि महंगाई अचानक से बढ़ कैसे गयी। सुप्रीम कोर्ट के दखल से देश के सामने न खाऊंगा और न खाने दूंगा कहने वालों की सच्चाई समाने आई। क्या नेहरू बोले कर गए थे बीजेपी को कि इलेक्टोरल बांड के जरिए चंदा एकत्र करना। कश्मीर से अब भी 370 हटी नहीं। केवल संशोधन किया गया है। ताकि अडानी जमीन खरीद सकें।

राम मंदिर बनने से क्या हो जाएगा..
राम मंदिर से रोटी नहीं मिलने वाली। राम केवल आस्था है। विश्वास है। भरोसा है। राम का मंदिर नहीं बना था, तब क्या देश नहीं चल रहा था। लोकतंत्र जिंदा नहीं था। भारत नहीं था। राम के लिए मंदिर बनाए हैं तो राम जैसा आचरण भी दिखाएं। तानाशाह क्यों बनते हैं? राम मंदिर बन जाने पर देश में क्या अंतर आ गया या आ जाएगा? जय किसकी और भय किसका होगा,अबकि चुनाव में। यह बात की बात है। मगर सवाल यह है,कि भाजपा अपने ही राज्यपाल के यहां सीबीआइ इसलिए भेज दे कि वो मोदी सरकार की बखिया उधेड़ने लगे हैं, तो जाहिर सी बात है कि दाल में कुछ काला नहीं,पूरी की पूरी दाल काली है।  

भाजपा ने यह भी कहा था..
भाजपा के मेनिफेस्टों में 2047 तक का सपना दिखाया गया है। महंगाई,बेरोजगारी, की कोई बात नहीं। जुमले से तालियां बजती है। सपने दिखाने से भूख नहीं मरती। एक वो भी सपना था, 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। गंगा साफ हो जाएगी। दो करोड़ नौकरी दी जाएगी। पेट्रोल चालीस रुपए लीटर मिलेगा। डाॅलर जमीन सूंघने लगेगा। रुपया डाॅलर से ऊपर होगा। चार सौ रुपए का गैस सिलेंडर किस राज्य में मिल रहा है? ऐसे कई सवाल हैं,जिनके जवाब इस चुनाव में अधूरे हैं।बुजुर्गो को रेल यात्रा में जो सुविधाएं मिलती थी,बंद कर देने से रेल मंत्रालय फायदे में चलने लगा क्या? छत्तीसगढ़ से होकर चलने वाली 6200 ट्रेनें क्यों बंद कर दी गयी। पी.एम.ने भी नहीं बताया। आयुष्मान योजना का लाभ मरीजों को निजी अस्पताल में नहीं मिलता। दवाइयां बाहर से मरीजों को खरीदना पड़ता है। मरीजों को जल्द से जल्द निजी अस्पताल के लोग डिस्चार्ज कर देते हैं। उनका इलाज सही तरीके से नहीं होता। पांच लाख तक के इलाज कराने की यह योजना कैसी है,सांसदों को भी पता करना चाहिए।

हैरान मत होना..
सियासी मुजरा खूब चल रहा है। हर दल में। सबसे अधिक डरी हुई है बीजेपी। तीसरी बार सियासी अश्वमेघ यज्ञ में आहूति मतदाता किसे दे रहा है। राम तीसरी बार सत्ता की कमान दिलाएंगे या नहीं। हिन्दुओं को बीजेपी फिर डरा रही है। क्या वाकई हिन्दू खतरे में है। क्या मतदाता मान रहा है कि ईडी,सीबीआइ और आई टी की कार्रवाई गलत है। देश को जैसा प्रधानमंत्री चाहिए,उसे वैसा मिला है। तीसरी बार बीजेपी आई तो संविधान बदल दिया जाएगा। इस बात को अशिक्षित लोग क्या समझ रहे हैं।रिक्शे वाले को,पान ठेला वाले को,सब्जी बेचने वाले को,सड़कों के किनारे चाट बेचने वाले को क्यों लगता है, फिर मोदी आएगा। ईवीएम पर देश के कितने लोगों को भरोसा है। चार सौ पार बीजेपी आएगी या फिर उसे 272 के भी लाले पड़ेंगे। दूसरे चरण के चुनाव से पहले बीजेपी मंगल सूत्र का मुद्दा गढ़ ली। तीसरे चरण के चुनाव में पुलवामा कांड जैसा कोई कांड हो जाए तो हैरान नहीं होना। क्यों कि अब देश में चुनाव मुद्दों पर नहीं, हिन्दू खतरे में है बता कर लड़ा जाएगा,जब तक देश में अल्पसंख्यक रहेंगे और पाकिस्तान रहेगा।

Wednesday, April 3, 2024

अबकि बार मोदी को 272 के भी लाले



 इंडिया गठबंधन लोकतंत्र बचाओ की बात कर रहा है। बीजेपी चार सौ के पार का नारा लगा रही है। जबकि 106 सीट पर वह कमजोर है। 36 फीसदी वोट पाने वाली बीजेपी 62 फीसदी वोट वाली पार्टी को शिकस्त देने हर ढीले सियासी पेंच को कस रही है। वहीं विपक्ष के सर्वे में बीजेपी को 186 सीट मिल रही है। यानी यह चुनाव मुद्दों पर हुआ तो मोदी के लिए सहज नहीं होगा।
 





रमेश कुमार ‘रिपु’
 भाजपा का दांव सबसे ऊंचा है। उसे तीसरी बार सत्ता की कमान चाहिए। इसलिए उसने एक नया नारा गढ़ कर अपने समर्थकों का मनोबल ऊंचा किया है। अबकि बार चार सौ के पार। जबकि बीजेपी के आंतरिक सर्वे में वह 106 सीटों पर कमजोर है। और सौ ऐसी सीटें है,जहां जीतना उसके लिए टेढ़ी खीर है। मोदी कहते हैं बीजेपी 370 के पार रहेगी। अमितशाह ने कहा सवा तीन सौ सीट बीजेपी को मिलेगी। जीत का विश्वास लेकर मोदी चुनावी समर में उतर रहे हैं। सीट अधिक से अधिक पाने बीजेपी हर सियासी पेंच को कस रही है। इसी लिए बीजेपी ऐसी पार्टियों से हाथ मिला रही है,जिसे पार्टी के लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। राज ठाकरे के समर्थकों ने यूपी और बिहार के लोगों के साथ मुंबई में जो जुल्म ढाए थे,उसे कोई भूला नहीं है। ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर क्या यूपी,बिहार वाले वोट करेंगे? महाराष्ट्र में बीजेपी एकनाथ शिंदे के भरोसे 48 सीट में अबकि बार, 41 सीट पाने से रही। इसलिए अब बीजेपी के साथ उद्धव ठाकरे नहीं हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना ने 18 सीट और एनसीपी ने 4 सीट 2019 में जीती थी। अबकि बार बीजेपी की सीट आधी होने के आसार हैं। पश्चिम बंगाल की 42 सीट में उसे 2019 में 18 सीट मिली थी। सीएए के जरिए उसकी सीट बढ़ेगी,ऐसा उसे भरोसा है। जबकि माना जा रहा है इस बार बीजेपी 10 सीट से ज्यादा नहीं पा रही है। पंजाब में कांग्रेस 13 सीट में आठ सीट जीती थी,आम आदमी पार्टी एक सीट। अकाली दल 2 और बीजेपी 2 सीट जीती थी। बीजेपी और अकाली दल फिर एक साथ हो गए है। संभावना है एक दो सीट मिल सकती है। दिल्ली की सातों सीट बीजेपी के खाते में गयी थी। इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में समझौता हो गया है। तीन सीट पर कांग्रेस और चार सीट पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ेगी । केजरीवाल को मोदी जेल भेजकर अच्छा नहीं किये हैं। केजरीवाल आंदोलन से निकला व्यक्ति है। दिल्ली में बीजेपी दो सीट पा जाए यही बहुत है।

जदयू को वजूद बचाने के लाले..
बिहार की 40 सीट में बीजेपी को नीतीश के साथ 39 सीट मिली थी। लेकिन पश्चिमी और पूर्वी बिहार में एनडीए की स्थिति पहले जैसी नहीं है। नीतीश से पूरा बिहार नाराज है। इस बार बिहार में जदयू को अपना वजूद बचाने के लाले पड़ने के आसार हैं। कोयरी,कुर्मी,अन्य पिछड़ा वर्ग, और मुस्लिम वोटर नीतीश से नाराज है। पूर्णिया में 39.47 फीसदी मुस्लिम और हिन्दू 60.94 फीसदी हैं। अररिया में मुस्लिम 42.95 और हिन्दू 56.68 फीसदी हैं। किशनगंज में मुस्लिम 67.98 और हिन्दू 31.43 फीसदी हैं।कटियार में44.47 फीसदी मुस्लिम और 54.85 फीसदी हिन्दू हैं। बिहार में मजहबी आंकआंकड़ा हिन्दू 82.69,मुस्लिम 16.87,ईसाई 0.12 और सिक्ख 0.02 फीसदी हैं। महागठबंधन के साथ यादव 83 फीसदी और एनडीए के साथ 13 फीसदी हैं। कुर्मी महागठबंधन के साथ 62 फीसदी और एनडीए के साथ 31 फीसदी। कोयरी 27 फीसदी एनडीए के साथ और महागठबंधन के साथ 41 फीसदी। मुस्लिम महागठबंधन के साथ 78 फीसदी और एनडीए के साथ 04 फीसदी। जाहिर सी बात है कि नीतीश के पाला बदलने से एनडीए को कोई खास बढ़त मिलती नहीं दिख रही है। समीकरण में सेंधमारी के लिए बीजेपी सीमांचल में तैयारी कर रही है। लेकिन उसे सफलता मिलते नहीं दिख रहा है। कहा जा रहा है,कि पलटू पाॅलिक्क्सि इस बार बीजेपी और जदयू दोनों को ले डूबेगा।

बीजेपी के साथ खेला होगा..
कर्नाटक की 28 सीट में 25 सीट पर बीजेपी जीती थी। एक-एक सीट कांग्रेस,जेडीएस और निर्दलीय को 2019 में मिली थी। लेकिन अब वहां कांग्रेस की सरकार है। यहां बीजेपी विधान सभा बहुत बुरी तरह हार चुकी है। जाहिर सी बात है,कि कर्नाटक उसके लिए कंटक साबित होगा। शिवकुमार चाणक्य की भूमिका में हैं। मोदी को अबकि 5-6 सीट के भी लाले हैं। दस राज्यों की कुल सीट 254 होती है। 2019 जैसी स्थिति अब बीजेपी के साथ नहीं है। यानी इन राज्यों में ही खेला हो गया तो कैसे चार सौ के पार एनडीए जाएगा। आन्ध्र प्रदेश की 25 सीट में वायएसआर 23 सीट और टीडीपी को 03 सीट मिली थी। कांग्रेस और बीजेपी को एक भी सीट नहीं। जगन रेड्डी की हर बात मोदी मानते हुए उनसे हाथ मिला। ताकि आन्ध्र में बीजेपी खाता खोल सके। ओड़िशा के नवीन पटनायक से भी हाथ मिला लिया है। ओड़िसा की 21 सीट में 12 सीट बीजेडी,8 बीजेपी और एक सीट कांग्रेस को 2019 में मिली थी। तेलंगाना के के. सी. आर. से भी समझौता कर लिया। यहां 17 सीट है। जिसमें चार सीट बीजेपी को 2019 में मिली थी। नौ सीट टीआरएस को। तीन सीट कांग्रेस को। एक सीट ओवैसी की पार्टी को। झारखंड में बीजेपी 14 में 12 सीट पाई थी। 2024 में सभी सीट जीतती यदि वो हेमंत सोरेन केा जेल न भेजती। उन्हें जेल भेजकर वो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। यहां उसे छह सीट से ज्यादा मिलने की संभावना नहीं है। यूपी में मुख्तार अंसारी की मौत के बाद बनारस में मोदी को इस बार रिकार्ड वोट नहीं मिलेगा। उनका वोट प्रतिशत गिरेगा। जिस तरह यू.पी. में योगी कर रहे हैं,उससे बीजेपी की सीट बढ़ने की बजाए घटेगी। अबकि बार 50-55 सीट ही बीजेपी को मिलेगी।

जीती सीट बीजेपी को बचाना होगा..
बीजेपी 2014 में 427 सीट पर चुनाव लड़ी थी,तब 282 सीट जीती थी। 2019 के चुनाव में 436 सीट पर चुनाव लड़ी और 303 सीट जीती। तब उसके साथ कई पार्टियां साथ थी। इस बार बीजेपी को 475 या फिर 500 सीटों पर चुनाव लड़ना होगा,तभी चार सौ पार की बात की जा सकती है। वैसी बीजेपी को अपनी जीती हुई सीट को बचाना बहुत टेढ़ी खीर है।यूपी,मध्यप्रदेश,गुजरात,और राजस्थान में अब पहले जैसी बात नहीं है। तीन सौ पार हो जाए यही बहुत बड़ी बात है। राम लला के उद्घाटन पर मोदी को हीरो हीरोइन लाना पड़ता है। मोदी सरकार ने वादे खूब किये,मगर जमीनी धरातल पर काम कम हुए हैं। बीजेपी वाले कहते हैं,मोदी को तीसरी बार पी.एम.बनाओ ताकि भारत विश्व गुरु बने सके। भारत पहले भी विश्व गुरु रहा है। देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। देश पर 272 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। वहीं बीजेपी के अंदर दूसरे दल से आए लोगों को टिकट मिलने सेे अंतरद्वंद बढ़ गया है।
जुमले की बारिश कब तक
मध्यप्रदेश की 29 सीट में सिर्फ एक सीट कांग्रेस जीती थी। छत्तीसगढ़ की 11 सीट में दो सीट कांग्रेस को मिली थी। राजस्थान की 25 सीटों में 24 बीजेपी और एक सीट सहयोगी पार्टी लोकतांत्रिक पार्टी जीती। इन राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी चुनावी लड़ाई है। इस बार इन राज्यों में बीजेपी सीट घट सकती है। लेकिन चुनाव से पहले बीजेपी ऐसा महौल बनाने में लगी है,कि विपक्ष चुनाव से पहले ही मैदान छोड़ दे। वैसे बीजेपी पूरे पांच साल चुनाव ही लड़ती है। जबकि विपक्ष आखिरी साल के छह माह चुनाव की तैयारी करती है। सवाल यह है कि दस साल के बीजेपी के सामने एंटीइन्कमबैसी भी है। पुलवामा कांड, बाला कोट, अच्छे दिन दूर क्यों है।,इलेक्टोरल बांड कांड,सरकारी एजेंसी का दुरूप्रयोग,अपने दस साल के काम काज पर श्वेत पत्र संसद में प्रस्तुत करना चाहिए,वो पुरानी सरकार के खिलाफ श्वेत पत्र पेश करते हैं। 2014 से पहले देश का क्या हाल था,यह बताना देश को हैरान करता है। सवाल यह है कि देश को भरमाने से क्या वोट मिल सकता है? गंगा साफ हो गयी। महंगाई कम हो गयी। दो करोड़ हर साल रोजगार मिलने लगा। काला धन आ गया। करेप्ट नेताओं का पैसा गरीबों में बांट देंगे। सब के जेब में 15 लाख रुपए आ गये। पश्चिम बंगाल के मनरेगा के 21 लाख मजदूरों का मजदूरी तीन साल से रोक रखा है। क्या वो मिल गया। सहारा का पैसा गरीबों को मिलने लगा? अमितशाह के पांच हजार करोड़ बांटने की बात जुमला साबित हुई। महिला आरक्षण बिल लाए क्यों? सवाल यह है कि जुमलों की बारिश आखिर कब तक?

हिन्दुस्तान बचाने वाला चुनाव..
दिल्ली के रामलीला मैदान में 25 से ज्यादा दलों ने चुनाव से पहले बड़ी रैली की। रैली में गठबंधन के 21 नेताओं ने जनसभा को संबोधित किया। राहुल गांधी ने कहा,नरेंद्र मोदी जी इस चुनाव से पहले मैच फिक्सिंग की कोशिश कर रहे है। उन्होंने हमारी टीम से दो खिलाड़ियों को अरेस्ट करके अंदर कर दिया। नरेंद्र मोदी इस चुनाव से पहले मैच फिक्सिंग की कोशिश कर रहे है। उनका 400 का नारा बिना मैच फिक्सिंग के बिना सोशल मीडिया और मीडिया पर दबाव डाले 180 से ज्यादा नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। लेकिन हमारे अकाउंट्स फ्रीज करा लिए गए हैं। हमें पोस्टर छपवाने हैं,कार्यकर्ताओं को राज्यों में भेजना है,लेकिन हमारे अकाउंट्स फ्रीज हैं। ये पूरी की पूरी मैच फिक्सिंग की कोशिश की जा रही है। मेरी बात गौर से सुन लीजिए। अगर भाजपा जीती और उन्होंने संविधान को बदला तो इस पूरे देश में आग लग जाएगी। ये देश नहीं बचेगा। ये चुनाव वोट वाला चुनाव नहीं है। ये चुनाव हिंदुस्तान को बचाने वाला चुनाव है।
बहरहाल 25 से अधिक दलों की महारैली से एक बात साफ है, कि हाथ से हाथ मिल गए तो सरकार बदल जाएगी। इन नेताओं का करिश्मा मोदी की गारंटी के पांव उखाड़ सकते हैं। जनता का वोट सबसे बड़ी आदालत है। हमेशा अपनी गलती से ही सत्ता पक्ष मुंह की खाता है।

 

Sunday, March 31, 2024

भाने लगी भाजपा,‘हाथ’ का साथ छोड़ा

रमेश कुमार‘रिपु’
मतदान के पहले बीजेपी इस प्रयास में है कि अधिक से अधिक कांग्रेसियों के माथे पर गेरूआई राजनीति का गुलाल लगा कर उन्हें अपना बना लेना है। इससे जनता में यह संदेश जाएगा कि प्रदेश में विपक्ष कमजोर हो गया। वहीं कांग्रेसी कहते हैं,अब भारतीय जनता पार्टी,भारतीय जनता कांग्रेस पार्टी हो गयी है।राजनीति का यह पेशेवराना तरीका है। पार्टी को ऐसा लगता है, कि ऐसा करने से उसके मार्ग के सारे रोढ़े हट गए। तीसरी दफा बीजेपी उदय की बात अभी गांव तक, उतनी तेजी से नहीं पहुंची है। शहरी फिजा में दो तरह की बातें हैं। मोदी को रोकने वाले और मोदी को चाहने वाले। मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है। इसलिए मध्यप्रदेश की राजनीति करने वाले यह समझ रहे हैं कि आने वाला कल बीजेपी का ही है,इसलिए ऐसे लोगों के लिए विचारधारा कोई मायने नहीं रखती। उन्हें सत्ताई पार्टी के साथ रहना ज्यादा अच्छा लगता है। चूंकि प्रदेश की राजनीतिक हवा बदल रही है। बीजेपी का दावा है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी सहित 6 पूर्व विधायक,एक महापौर,207 पार्षद,सरपंच और 500 पूर्व जनप्रतिनिधियों सहित 17 हजार कांग्रेसी बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं। इसीलिए पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं,चुनाव तक 70 हजार से एक लाख कांग्रेसी बीजेपी में शामिल हो जाएंगे।गिनीज बुक में नाम दर्ज कराएंगे। भाजपाई बनाना है कांग्रेसियों को.. सवाल यह है कि क्या थोक में कांग्रेसियों को बीजेपी के खेमें में लाने से इस बार बीजेपी 29 सीट जीत जाएगी? मध्यप्रदेश अब शिवराज के हाथ में नहीं है लेकिन, उन्होंने कर्जदार प्रदेश डाॅक्टर मोहन यादव को दिया है। मोहन यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं,कि अर्थव्यवस्था बेहतर है। प्रदेश की बागडोर सही पार्टी के हाथ में है। ग्रामीण क्षेत्र हो या फिर शहरी क्षेत्र, उसे विकास के लिए अनाथ नहीं छोड़ा जाएगा। भले उन्हें एक साल में चार नहीं,दस बार कर्ज लेना पड़े। प्रदेश पर करीब चार लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।वहीं डिप्टी सी.एम राजेन्द्र शुक्ला रीवा की जमीन निजी हाथों को औने पौन दाम में देकर भाजपा का महाजन बन गए हैं। अभी रीवा संभाग में भाजपा ने चुनावी एजेंडे को सिर के बल खड़ा नहीं कर पाई है। लेकिन मोहन यादव मोदी की तरह हिन्दुत्व के भावनात्मक मुद्दे के उभार के जरिए वोट पाना चाहते हैं।मोहन यादव कहते हैं, हमें खुद मोदी बनना है। पारस पत्थर की तरह बनकर लोहा और दूसरी धातु को बीजेपी बनाना है। राजेन्द्र को सवालों से परहेज डिप्टी सीएम के भाषण में भिन्नता नहीं है। वो शिवराज सिंह की तरह एक ही बात हर बार दोहराते हैं। उनके भाषण रीवा संभाग से बाहर की सीमा को नहीं छूते। जबकि आज लोग यह जानना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड के संबंधी में जो कहा,उसका सच क्या है। क्या वाकयी में बीजेपी ने चंदा के नाम पर रिश्वत ली है। 16 हजार करोड़ रुपए जिन कंपनियों ने बीजेपी को चंदा दिया, उनके यहां ई.डी. ने छापा मारा तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई। ई.डी.चुनाव के वक्त ही सक्रिय क्यों होती है। मोदी की गारंटी महंगाई, बेरोजगारी,गिरते रुपये पर क्यों नहीं है। केन्द्रीय वित्त मंत्री का बजट जमीनी धरातल पर क्यों नहीं दिखता। प्रदेश कर्जदार प्रदेश क्यों बन रहा है। उनकी पार्टी के रीवा सांसद पर विपक्ष ने जो आरोप लगाए हैं, उसका सच जनता को क्यों नहीं बताते। क्यों जनार्दन मिश्रा ने ऐसा कोई सवाल संसद में नहीं उठाया, जिससे विंध्य न सही, रीवा की जनता का हित जुड़ा हो। आप के विकास के भूगोल में आम आदमी को जगह क्यों नहीं है? मध्यप्रेदश में 12876 स्कूलें बंद क्यों कर दी गयी। विकास के हब के साथ रीवा क्राइम का हब क्यों बन रहा है। सिंगापुर क्यों नहीं बन सका सिंगरौली। ऐसे कई सवाल हैं,जिनसे डिप्टी सीएम परहेज करते हैं। वो शिवराज सिंह चौहान से अलग नहीं है। इसीलिए बीजेपी हाईकमान की नजर में चुनावी महाजन हैं। अब देखना है कि विंध्य की कितनी सीट वो मोदी की झोली में डाल पाते हैं। अमहिया कांग्रेस भाजपा की हुई.. अमहिया में सत्ता अब भी है। कभी यहां अमहिया सरकार श्रीनिवास तिवारी की हुआ करती थी। अब राजेन्द्र शुक्ला की है। धीरे- धीरे अमहिया कांग्रेस का बीजेपी में विलय होता जा रहा है। सुन्दरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ ने इसकी शुरूआत की। बीजेपी में जाकर वो विधायक बन गए। श्रीनिवास तिवारी के पीए रमाशंकर मिश्रा उनके समर्थक और सिरमौर विधान सभा के कांग्रेस के एक दर्जन से अधिक पदाधिकारी भोपाल में वीडी शर्मा के हाथ बीजेपी की सदस्यता ली। दो अप्रैल को मुस्लिम नेता डाॅ मुजीब खान सहित और कई कांग्रेसी पदाधिकारी बीजेपी में डाॅ मोहन यादव की उपस्थिति में बीजेपी के हो जाएंगे। जाहिर सी बात है कि सेमरिया विधान सभा में कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा ने आधी बीजेपी को कांग्रेसी बना दिया,उसी तर्ज पर डिप्टी सी.एम. कर रहे हैं। वो कौन सी तरकीब है.. सवाल यह है कि अभय मिश्रा ने जो किया क्या वो डिप्टी सीएम कर पाएंगे। जनार्दन मिश्रा को लेकर बीजेपी के अंदर जो उहापोह की स्थिति है। नाराजगी के स्वर तेज हैं,क्या उसे मद्धिम कर पाएंगे। राजेन्द्र शुक्ला उन सभी को बांए कर दिये है,जिनसे उन्हें लगता है वो उनके विधान सभा में भीतरघात कर सकते हैं। उनके सियासी कद को कतर सकते हैं। ऐसे में जनार्दन मिश्रा के लिए व्यापक पैमाने पर अपने प्रबंधकीय चुनावी पैतरे से क्या सब कुछ आल इज वेल कर लेंगे। ऐसी कौन सी तरकीब है, उनके पास जिससे वो जनार्दन मे पक्ष में हवा बनाने के साथ वोटों को मजबूत करती है,शायद अमित शाह भी नहीं जानते होंगे। उस स्थिति में जब बसपा भी चुनावी समर में है। और उनका जिलाध्यक्ष अजय सिंह पटेल उनके और जनार्दन मिश्रा के साथ नहीं है। ऐसे में पटेल वोट किसकी झोली में जाएगी स्वयं राजेन्द्र शुक्ला भी नहीं जानते। त्रिकोंणीय स्थिति बनने पर फायदा इस बार भाजपा को मिलता नहीं दिख रहा है। रीवा में विचारधारा की लड़ाई नहीं बल्कि दो व्यक्त्विों की लड़ाई है। सियासी मामले में अभय से राजेन्द्र की बराबरी भला क्या हो सकती है।लेकिन कांग्रेस भी अनाड़ी नहीं है। अच्छे दिन की चमक खोने की उसने उम्मीदें लगा रखी है।

सियासी लड़ाई में कांग्रेस आगे,बीजेपी पीछे

स रमेश कुमार‘रिपु’ राजनीति का रंग हमेशा एक सा नहीं होता है। वो गिरगिट की तरह बदलता रहता है। संभागीय मुख्यालय रीवा में बीजेपी की पार्टी का रंग भी विधान सभा चुनाव के बाद एकदम से बदल गया है। लोकसभा में हर विधान सभा के विधायक और पूर्व महापौर को सियासी लड़ाई की मोर्चेबंदी से बीजेपी ने दूर कर दिया है। इस वजह से लोकसभा की सियासी लड़ाई में बीजेपी अभी पीछे दिख रही है। उसकी वजह कई है। बीजेपी का दावा है, कि दो अप्रैल को मुख्यमंत्री मोहन यादव के आने के बाद गेरूआई राजनीति की पताका दिखने लगेगी। अभी सियासी बैठक और कार्यक्रम में कांग्रेस आगे है। लोकसभा की
लड़ाई कांग्रेस से नीलम अभय मिश्रा के नाम की घोषणा होते ही डिप्टी सी.एम राजेन्द्र शुक्ला और अभय मिश्रा की हो गयी है। जनार्दन मिश्रा ने पूर्व पार्षदों को याद किया, मगर राजेन्द्र शुक्ला ने पूर्व महापौर को दरकिनार कर दिये हैं। जाहिर सी बात है डिप्टी सी.एम.जिस शहर में हो वहां का सियासी गिरगिट उनके अनुसार रंग नहीं बदला तो फिर कैसा पाॅवर और कैसी सियासत। दो अप्रैल को मुख्यमंत्री मोहन यादव रीवा में रहेंगे। जनार्दन मिश्रा नामांकन दाखिल करेंगे। और एक हूंकार भरेंगे,अबकि बार फिर मोदी सरकार। मोदी सरकार चार सौ के पार होगी या नहीं,यह तो मोहन यादव भी नहीं जानते। इसलिए कि कांग्रेस यदि जीतने की रणनीति के साथ चुनाव लड़ी तो वह विधान सभा चुनाव के जीत के अनुसार कम से कम सात से दस सीट जीत सकती है। जबकि कमलनाथ कह रहे है, कांग्रेस 12 सीट जीतेगी। हर वार्डो में महिलाएं घूमेंगी.. कांग्रेस की जन नेत्री कविता पांडे कहती हैं,नीलम मिश्रा के पर्चा दाखिल करने के बाद रीवा शहर के 45 वार्डो में महिला कांग्रेस नेत्रियों का प्रचार शुरू हो जाएगा। कांग्रेसी उत्साहित हैं। अभय मिश्रा के समय कांग्रेस को 52 हजार वोट मिला था और इंजीनियर राजेन्द्र शर्मा के समय कांग्रेस को 56 हजार वोट मिले। लोकसभा में कांग्रेस रीवा विधान सभा में 60 हजार ज्यादा वोट पाएगी। इस बार आठों विधान सभा में कांग्रेस का एक -एक कार्य कर्ता झूठे वायदे पर भारी साबित होगा। कांग्रेस प्रचार में आगे.. कांग्रेस की चुनावी तैयारी बताती है कि इस बार की जंग सचमुच कुरूक्षेत्र का रण होने जा रहा है।यह डिजिटल युग का युद्ध है। और इस मामले में काग्रेस सबसे आगे है। यह कह सकते हैं,कि कांग्रेस दिमाग से चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्र में आगे है जबकि बीजेपी पीछे है। कांग्रेस आठों विधान में बैठक कर चुकी है। ब्लाक स्तर पर उसके कई विधान सभा में कार्यक्रम हो चुके हैं। सेक्टर स्तर पर कार्यक्रम चल रहे हैं। सूचना तकनीक के इस चहचहाते दौर में कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश में लगी है। ग्रामीण क्षेत्र में सांसद जनार्दन मिश्रा के प्रति नाराजगी का आलम घना है। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार नीलम अभय मिश्रा ग्रामीणों को कांग्रेस को वोट देने के लिए प्रेरित करने के लिए अभियान में जुटी हैं। जिला ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष इंजीनियर राजेन्द्र शर्मा जिले भर में कांग्रेस के पक्ष में कार्यक्रम कराने और व्यक्तिगत संपर्क बना रहे हैं। आठों विधान सभा में कांग्रेस के प्रत्याशी बीजेपी को शिकस्त देने सांसद जनार्दन मिश्रा के नकारात्मक कामों का प्रचार कर रहे हैं। बीजेपी अपनी दुखती रगों की उधाड़े जाने से बचाने की चिंता कर रही है। कांग्रेस छोड़ेंगे... मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव दो अप्रैल को आएंगे। इस दिन कांग्रेस के दो बड़े नेता बीजेपी में शामिल होंगे। एक रीवा से डाॅ. मुजीब खान दूसरे सेमरिया विधान सभा से पूर्व विधान सभा प्रत्याशी। इन दोनों नेताओं के बीजेपी में जाने से बीजेपी को फायदा होगा। मुस्लिम वोटर अभी तक कांग्रेस को वोट करता आया है। इस बार बीजेपी को कर सकता है। मुसलमान हुकूमत में हिस्सेदार केवल चुनावी समझौते के जरिए बन सकता है। मुल्क की कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है,जिसे मुसलमानों ने वोट नहीं किया हो। इसके बावजूद नतीजा शून्य रहा। मुस्लिम वोट बीजेपी को सत्ता में आने से नहीं रोक सका। असल में सेकूलर वोटों का बंटवारा ही भाजपा को सत्ता में लाने का सबब बना। सीएए से मुस्लिम नाराज हैं। कोर्ट में याचिका भी दायर है। किधर मुसलमान वोटर... एक बार फिर रीवा जिले के 27 हजार मुसलमानों में मंथन चल रहा है,कि उनके वोट किधर जाएं। यदि बीजेपी बुरी है,तो भली पार्टी कौन है? क्या राजेन्द्र शुक्ला को देखकर बीजेपी को वोट कर दें? अभय मिश्रा कहते हैं,मुसलमानों में एक नई जागृति आ रही है। वे बीजेपी के लुभावने वादे और घोंषणाओं के सुनहरे जाल में नहीं फंसना चाहते। उन्हें एक सच्चे दोस्त की तालाश है। पूर्व मेयर वीरेन्द्र गुप्ता कहते हैं,पार्टी का प्रयास है,कि मुसलमान वोट बैंक की राजनीति से बाहर निकलकर आत्म विश्वास और राष्ट्रवाद की राजनीति की मुख्यधारा में आएं। बीजेपी नहीं चाहती कि लोग उन्हें शक की नज़र से देखें। बबीता साकेत बाहर... कांग्रेस की गुड बुक में बबीता साकेत नहीं है। वो मनगवां विधान में संगठन का काम देख रहे रवि तिवारी की अक्सर खिलाफत करती फिरती है। कांग्रेस प्रत्याशी नीलम अभय मिश्रा ने फोन पर उससे बातें भी की। लेकिन वह यही कही कि वो बीजेपी में नहीं जा रही है। उसके मन में क्या चल रहा है, कोई नहीं जानता। लेकिन यह माना जा रहा है कि उसे कोई जवाबदारी देने से वो भीतरघात कर सकती है। उसके विधान सभा में कांग्रेस प्रत्याशी का गढ़,मनगवां,और लालगांव में कार्यक्रम हो चुके हैं और हो रहे हैं,लेकिन उसे खबर नहीं। कांग्रेस का कोई भी व्यक्ति उस पर भरोसा नहीं कर रहा है खासकर ब्राम्हण वोटर और कांग्रेस कार्य कर्ता । जाहिर सी बात है कि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव दिमाग से लड़ रही है,वहीं बीजेपी मोदी के नाम पर। बीजेपी एक व्यक्ति के भरोसे सारा दांव लगाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही है। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी नीलम अभय मिश्रा बीजेपी प्रत्याशी पर हमला करने में मुखर हैं। वो हर विधान सभा में बीजेपी के विधायकों को विकास,और युवाओं के रोजगार के साथ राष्ट्रीय मसले पर भी बात कर रही हैं। बीजेपी ने ईडी का डर दिखाकर कंपनियों से चंदा नहीं,रिश्वत ली। इलेक्टरोरेट बांड की सच्चाई देश के सामने आ गयी। सांसद जनार्दन मिश्रा ने अपनी जेबें भरी, रीवा की जनता की अनदेखी की। जाहिर सी बात है एक पार्टी की चमक दिख रही है,दूसरी पार्टी का अभी पता नहीं है। अभी केन न्यूज़ के नेशनल हेड रमेश कुमार 'रिपु' की रीवा से रिपोर्ट

Thursday, January 25, 2024

राजेन्द्र ने कांग्रेस को कोमा में पहुंचा दिया

रीवा। मध्यप्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने संभागीय मुख्यालय रीवा में कांग्रेस को कोमा में पहुंचा दिया। सेमरिया विधान सभा मुश्किल से कांग्रेस जीत कर भी मरी हुई है। विधान सभा चुनाव हार चुके इंजीनियर राजेन्द्र शर्मा लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं,वो भी भक्ति के दौर में। जबकि असम में न्याय यात्रा को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने पर रीवा में धरना प्रदर्शन स्थल पर मुश्किल से दो दर्जन कांग्रेसी थे। विधान सभा चुनाव लड़ने वाले एक भी प्रत्याशी धरना स्थल पर नहीं पहुंचे। अभय का सियासी सूचकांक गिरा.. धरना स्थल पर केवल महापौर पहुंचे। उनके जाने के बाद धरना स्थल पर सन्नाटा पसर गया। जाहिर सी बात है कि रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ला के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेसियों को सांप सूंघ गया है। कल तक अभय मिश्रा अपना सियासी सूचकांक बढ़ाने दावा कर रहे थे, कि राजेन्द्र शुक्ला के सारे काले चिट्ठे मैं मीडिया को दूंगा। लेकिन उन्हें गार्ड मिलने में देरी हुई तो उनकी धड़कन बढ़ गयी। उन्हें यह बात समझ में आ गयी, कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। अभय का सियासी सूचकांक शेयर बाजार की तरह अब गिर गया है। यह बात सभी कांग्रेसी समझ गए। इसीलिए धरना स्थल पर कोई भी विधान सभा चुनाव लड़ा प्रत्याशी नहीं पहुंचा। तस्वीर देखकर समझ सकते हैं,कि आने वाले समय में कांग्रेस सत्ता पक्ष की खिलाफत करने या फिर राहुल गांधी के लिए सड़क पर उतरी तो क्या स्थिति रहेगी। कांग्रेस हार के कोमा में.. कांग्रेसी विधान सभा चुनाव में दावा कर रहे थे कि आठ सीट जीतेंगे। सेमरिया जीत कर भी कांग्रेस हार के कोमा में है। वैसे भी अभय मिश्रा को न जिला कांग्रेस के पदाधिकारी तवज्जो देते हैं और न ही वो जिला कांग्रेस को। हैरानी वाली बात है कि आज कलेक्ट्रेट के सामने कांग्रेसी कार्य कर्ता बड़े उत्साह से राहुल गांधी के खिलाफ असम में एफआईआर दर्ज होने के विरोध में पहुंचें। लेकिन शहर कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर जिला ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष तक धरना स्थल पर नहीं थे। जाहिर सी बात है, कि प्रदेश कांग्रेस के आदेश पर रीवा जिला कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता धरना स्थल पर पहुंच गए। लेकिन विरोध जैसा कुछ भी नहीं था। भक्ति युग का दौर है.. जिला कांग्रेस का कोई माई बाप नहीं। सेमरिया से लेकर पूरे आठों विधान सभा में कांग्रेस का नगाड़ा बजाने वाला कोई नहीं है। सेमरिया में सन्नाटा है। सेमरिया के स्वास्थ्य केन्द्र बीड़ा को एनक्यूएस सार्टिफिकेट मिला और उसका श्रेय के पी त्रिपाठी ले गए। रीवा में तेज गति से नए नए काम की शुरूआत हो गयी। कल तक इंजीनियर राजेन्द्र शर्मा व्यवस्थिति विकास की बात कर रहे थे। अब वो किसी भी विकास पर उंगली उठाने से बच रहे हैं। मगर दिग्विजय सिंह के पास फाइल बनाकर ले गए थे, यह बताने के लिए कि लोकसभा चुनाव कांग्रेस जीत सकती है।कांग्रेस को 26फीसदी वोट मिले है। बसपा को 19 फीसदी और भाजपा को 32 फीसदी। भाजपा को हरा सकते हैं। त्रिकोंणीय संघर्ष जिस विधान सभा में रहा वहां बीजेपी हार गयी। यानी बसपा का दमदार उम्मीदवार होने पर बीजेपी हार जाएगी। जनार्दन मिश्रा को टिकट मिलती है तो वो कमजोर प्रत्याशी साबित होंगे। जाहिर सी बात है, कि राजेन्द्र शर्मा लोकसभाा चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं,भक्ति युग के दौर में।

Wednesday, January 17, 2024

राम मंदिर से किसे मिलेगी मात और किसे सौगात

"क्या मान लिया जाए कि अयोध्या से इस बार खुलेगा दिल्ली का द्वार। इसीलिए बीजेपी बोल रही है,अबकि बार चार सौ के पार। राम नाम से यदि सत्ता का कमल खिलता है,तो फिर बाबरी मस्जिद गिरने पर कल्याण की सरकार की वापसी होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर भी इंडिया गठबंधन राम मंदिर के उद्घाटन से डरा हुआ है। उसे लगता है सियासी इवेंट बताने से आस्था का आवेग रूक जाएगा। जबकि यह दौर धर्म की राजनीति का है। और बीजेपी भी,मोदी के दौर की है। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ धर्म की राजनीति या फिर राजनीति का धर्म। यह सवाल एक बार फिर हवा में है। राम के नाम पर राजनीति या फिर राजनीति राम पर। राम का सियासीकरण या फिर राम मय भारत। विपक्ष का आरोप है,कि राम के आसरे बीजेपी देश की सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को बदलना चाहती है। राम का राजनीतिकरण कर रही है। रामलला के उद्घाटन को सियासी इवेंट बना दिया है। जबकि इस देश में राम के प्रति आस्था रखने वालों के लिए राम मंदिर, धार्मिक भावना है। जब राम मंदिर नहीं बना था,तब विपक्ष कहता था बीजेपी वाले राम मंदिर बनाएंगे,मगर तारीख नहीं बताएंगे। अब जब 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन का दिन निहित हो गया तो इसे इंडिया गठबंधन सियासी इवेंट कह रहा है। दरअसल राम मंदिर को लेकर विपक्ष में एक सियासी खौफ है। कहीं धर्म की राजनीति हावी न हो जाए 2024 के चुनाव में। इंडिया गठबंघन की बातें और उनके डर से,क्या यह मान लिया जाए कि अयोध्या से इस बार खुलेगा दिल्ली का द्वार। इसीलिए बीजेपी बोल रही है, अबकि बार चार सौ के पार। राम नाम से यदि सत्ता का कमल खिलता है,तो फिर बाबरी मस्जिद गिरने पर कल्याण की सरकार की वापसी होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इंडिया गठबंधन को लगता है,राम मंदिर के उद्घाटन सियासी इवेंट बताने से आस्था का आवेग रूक जाएगा। जबकि यह दौर धर्म की राजनीति का है। मंदिर का है। और बीजेपी भी,मोदी के दौर की है। राम के आसरे.. बीजेपी का हिन्दू और हिन्दुत्व दोनों नये दौर में उफान पर है। यही परिदृश्य सन् 1980 में शिवसेना को लेकर था। उसे हिन्दू राजनीति वाली पार्टी मान लिया गया था। लेकिन अब वो इंडिया गठबंधन में है। बाल ठाकरे जिस मकसद से शिवसेना का गठन किया था,अब वो मकसद गुम हो गया। बीजेपी हिन्दू राजनीति के घोड़े पर सवार है। इसलिए मोदी कह रहे हैं,देश के 140 करोड़ देशवासियों 22 जनवरी को जब अयोध्या में रामलला विराज रहे हों, तब अपने-अपने घरों में राम ज्योति जलाएं। खुद को नयी ऊर्जा से भरना है। जाहिर है कि, बीजेपी राम के आसरे 2024 का चुनाव जीतना चाहती है। यानी यह मान लिया जाए कि 22 जनवरी के बाद देश देश का राजनीतिक मंजर बदल जाएगा । राजनीति का धर्म भी बदल जाएगा । कहा यही जा रहा है कि यह दौर आस्था का है। मंदिर का है। धर्म की राजनीति का है। तभी तो विपक्ष के 146 सांसदों को निलंबित कर दिये जाने के बाद भी, देश में एक आवाज तक नहीं उठी। सिवाय विपक्ष के। तमिलनाडु में सनातन को लेकर बवाल मचा हुआ है। मोदी गुजरात से आकर बनारस में चुनाव लड़ सकते हैं,तो फिर रामेश्वरम से क्यों नहीं। दक्षिण को साधना भी है। क्यों कि बीजेपी को राम के आसरे अपनी हिदुत्व की परिभाषा भी बदलना है।़ आदिवसियों में नया नारा.. सवाल यह है कि क्या बीजेपी राम के आसरे पश्चिम बंगाल,महाराष्ट्र और बिहार को साधेगी। देश में हिन्दू राष्ट्र का शोर विपक्ष मचा रहा है। वहीं आदिवासियों के भीतर एक नारा उठ रहा है। कुल देवी तुम जाग जाओ। धार्मातरण तुम भाग जाओ। जो भोले नाथ का नहीं, वो हमारी जाति का नहीं। जाहिर सी बात है कि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,झारखंड,ओड़िसा,राजस्थान और त्रिपुरा आदि राज्यों में आदिवासियों को प्रभावित करने वाला नारा अपनी एक अलग पहचान बना रहा है। मणिपुर के धार्मिक स्थलों में आग लगाए जा रहे हैं। आदिवासियों को अपनी ओर खीचने के लिए। वहीं हिन्दी पट्टी को बीजेपी अपने रंग में रंगना चाहती है। राम के आसरे वह कितने राज्यों को जीत लेगी,स्वयं बीजेपी भी नहीं जानती। राजनीति में व्यापक बदलाव.. भारत की राजनीति में व्यापक बदलाव आया है। तीन राज्यों में बीजेपी की जीत ने राजनीति की करवट बदल दी। देश का मिजाज बता रहा है,कि लोकसभा चुनाव में राम बाण विपक्ष पर चलेगा। राम मंदिर के उद्घाटन का न्यौता मिलने पर विपक्ष खिलाफत करके बीजेपी के हिन्दुत्व उभार को और बढ़ा दिया है। यह कोई नयी बात नहीं है। सावरकर के समय से हिन्दुत्व की हवा बह रही है। विहिप ने 1980 में आयोध्या का आंदोलन किया था। अशोक सिंघल ने अपने हाथ से विश्वहिन्दू परिषद गठन किया था। उस समय बीजेपी ऐसी नहीं थी,जिस तरह मोदी के दौर में है। विहिप का राम आंदोलन आज आस्था में तब्दील हो गया है। कमण्डल और रथ यात्रा से होती हुई राजनीति, आज धर्म में तब्दील हो गयी है। नयी सियासत में धर्म की राजनीति का उदय हुआ है। यह कह सकते हैं, कि धर्म की राजनीति भी बदल गयी है। तीन राज्यों के चुनाव के नतीजे आने से पहले तक संघ बड़े पशोपश में था। अब उसे भी लगता है कि 2024 में हिन्दू राजनीति काम कर जाएगी। बीजेपी के समक्ष सवा लाख मंदिर बानाने का लक्ष्य है। मंदिर बीजेपी के लिए वोट बैंक बढ़ाने का मंत्र है। विपक्ष कह रहा है कि राम मंदिर एक बहाना है। बीजेपी का मकसद हिन्दू राष्ट्र बनाना है। ताकि भविष्य में फिर कभी विपक्ष में न लौट सके। अब मोदी के पीछे संघ.. मोदी ने बीजेपी की राजनीति का दिशा और दशा बदल दिए हैं। अब संघ को मोदी के पीछे -पीछे चलना पड़ेगा। शिवसेना एक मात्रा हिन्दू पार्टी थी वो भी अपना सियासी लिबास बदल कर इंडिया गठबंधन के शिविर में चली गयी। ऐसे में हिन्दुत्व पार्टी एक मात्र बीेजेपी है। हिन्दुत्व वोट का बंटवारा बीजेपी नहीं चाहती। इसलिए उसने उद्वव ठाकरे को न्यौता नहीं दिया। उद्वव को यह बात चुभ गयी। इसलिए उन्होंने कहा, कि राम किसी एक पार्टी के नहीं है। इस देश के हर हिन्दू के राम हैं।" एतराज नहीं होना चाहिए.. राहुल की न्याय यात्रा से कांग्रेस को वोट मिल सकता है,तो फिर राम मंदिर से बीजेपी के पक्ष में राजनीति के करवट बदलने पर एतराज क्यों? विरोध क्यों? खिलाफत क्यों? राम जब सबके हैं,तो इंडिया गठबंध को यह नहीं कहना चाहिए, कि राम के आसरे बीजेपी देश की राजनीति का मिजाज बदलना चाहती है। जिन्हें लगता है,कि बीजेपी न होती तो राम मंदिर न बनता, वो बीजेपी के साथ हो लेंगे। और जिन्हें लगता है,कि राम मंदिर बनने से देश का सामजिक परिदृष्य और सांस्कृतिक धारणाएं नहीं बदलेंगी,उन्हें विरोध नहीं करना चाहिए। अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा का अधिकार साधु-संत और शंकराचार्यो का है। देश के प्रधान का नहीं। उनके तर्क से जो सहमत होंगे 2024 के चुनाव में उनके वोट किसी और को जाएंगे। जाहिर सी बात है कि राजनीति सिर्फ राम आसरे नहीं की जा सकती। मगर,मतदाता की सोच को कोई भी पार्टी नहीं बदल सकती।

Monday, January 1, 2024

हाथ’ में खिल गया कमल

'मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ‘हाथ’ से सत्ता जाने के बाद सवाल यह है, कि कांग्रेस क्या खुद को उबार पाएगी? भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे, कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी मंत्रियों से गुस्साई जनता ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। 0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु‘‘ किसी ने नही सोचा था कि मध्यप्रदेश,राजथान और छत्तीसगढ़ के चुनाव भाजपा के लिए आनंददायी टी पार्टी साबित होगी। खासकर छत्तीसगढ़ में। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह यह मान लिए थे, कि इस बार शिवराज की बिदाई तय है। लेकिन कांग्रेस के ये दोनों नेता जनता के मूड और उनकी सोच को नहीं समझ सके। यही हाल छत्तीसगढ़ में भूपेश का था। उन्हें यकीन था कि गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का उनका स्लोगन,गोबर खरीदी,गो मूत्र खरीदी,किसानों की धान खरीदी योजना,किसानों का कर्जा माफ और आदिवासी को लुभाने वाली नीति उनके खाते में जाएगी। इसीलिए भूपेश और प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलेजा कहती थीं इस बार 75 के पार। यह तो नहीं हो सका । मगर हाथ से सत्ता चली गयी। छत्तीसगढ़ में भूपेश की गृहलक्ष्मी योजना देर से प्रचारित हुई,जबकि भाजपा महतारी योजना फार्म छपवाकर जनता से भरवाने लगी। मध्यप्रदेश के लाड़ली बहना योजना जैसा ही यह था और यह योजना सियासी गेम चेज करने का सबसे बड़ा कारक बना। भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे, कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी नौ मंत्रियों से गुस्साए प्रदेश वासियों ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। भूपेश से कर्मचारी नाराज.. छत्तीसगढ़ में महतारी योजना ने सियासी गेम चेंज कर दिया। मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तरह। बारह दिन बाद भूपेश ने गृहलक्ष्मी योजना के तहत पन्द्रह हजार रुपए सालाना देने की घोंषणा की। वहीं भूपेश सरकार ने अपने घोंषणा पत्र को पूरा नहीं किये। प्रदेश के छत्तीसगढ़ सर्वे विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ 45 हजार हैं। संविदा अनियमित,दैनिक वेतन भोगी प्लेस मेट,ठेका कर्मचारियों को मिलाकर यह संख्या ढाई लाख से ऊपर है। कर्मचािरयों ने भूपेश के खिलाफ वोट किया। भूपेश सरकार छह लाख वोट से हार गयी। जबकि इन्ही कर्मचारी और उनके परिवार की संख्या ही दस लाख से ज्यादा है। अन्य कर्मचारियों को मिला दें तो यह संख्या पच्चीस लाख हो जाती है। केन्द्र की आयकर टीम और ईडी ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के करीबियों के यहां छापा मार कर सियासी स्थिति बिगाड़ दी। चर्चा थी, कि आने वाले समय में बिहार के चुनाव की फंडिग छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से होना था। कांग्रेस के खिलाफ हवा.. छत्तीसगढ़ में चुनावी नतीजे के सर्वे यही बता रहे थे, कि वहां भूपेश सरकार फिर से लौट रही है। लेकिन भूपेश सरकार का जाना यह बताता है कि ईडी का छापा गलत नहीं था। महादेव ऐप झूठा नहीं था। कोयला घोटाला सही था। भूपेश सरकार के नौ मंत्री बुरी तरह हार गये। वो जनता से कटे हुए थे। भूपेश स्वयं सारे विभाग के मंत्रियों को काम करने की छूट नहीं दी। हर जिले में कलेक्टर मुख्यमंत्री का एजेंट बतौर काम कर रहे थे। उनका राजनीतिक मीडिया प्रभारी हो या फिर मीडिया प्रमुख ने पत्रकारों के दो खेमे बना दिये। पत्रकारों को मुख्यमंत्री से दूर रखा। जिससे मुख्यमंत्री को सही जानकारी नहीं मिल सकी। लाड़ली बहना का अंडर करेंट.. मध्यप्रदेश में सन् 2018 में कांग्रेस की सरकर बनने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ज्योतिरादत्यि सिंधिया को नाराज न किये होते तो न सरकार जाती और न ही कांग्रेस की इतनी बुरी गत होती। इसलिए भी कि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य से बड़ा लोकप्रिय कोई युवा नेता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साढ़े तीन साल तक केवल बयान बाजी करते रहे। जिला स्तर पर कांग्रेस को रिचार्ज करने का काम नहीं किया। संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं किया। चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था,कि जिन 60 सीटों पर कभी कांग्रेस चुनाव नहीं जीती उन्हें जीताने की जवाबदारी मेरी है। हैरानी वाली बात है, कि ऐसी सीटों को जीताने के लिए कुछ किया नहीं। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर है यही कहते रहे। बाहर इसका शोर था। लेकिन अंदर लाड़ली बहन का करेंट तेज है, कांग्रेस के बड़े नेता नहीं भाप सके। मध्यप्रदेश में कांग्रेस अनाथ रही.. कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद छिंदवाड़ा,भोपाल और इंदौर से कहीं बाहर नहीं गए। दिग्विजय सिंह के प्रति अब भी जनता में रोष है। कमलानाथ जिले में पार्टी संगठन का ढांचा नहीं खड़ा कर सके। जिले में कांग्रेस के पास जमीनी कार्य कर्ता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की लोकप्रियता गिर गयी है। मीडिया में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को जय वीरू की जोड़ी का नाम मिला। आपसी गुटबाजी और बड़े नेताओं के बीच आपसी खींचतान मीडिया में दिखा। लाड़ली बहना योजना का अंडर करेंट इतना भयावह निकला कि पंजा चारो खाने चित हो गया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में उसी बात का जिक्र था, जिसे शिवराज चुनाव से पहले की पूरा कर दिये थे। कमलनाथ का सर्वे भाजपा को 85 सीट से ज्यादा नहीं दे रहा था,स्थिति ठीक उल्टी हो गयी कांग्रेस की। प्रदेश में कमलनाथ का सियासी प्रचार तंत्र कमजोर रहा। कई संभाग में बड़े नेता एक बार भी नहीं गये। संघ ने पूरे प्रदेश में एक लाख से अधिक बैठकें की चुनाव से पहले। उसने जनता की नब्ज को परखा। कई उम्मीदवारों को टिकट संघ के कहने पर मिला। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेताओं की कमी है। दिग्विजय सिंह को रिटायर हो जाना चाहिए। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश को अब नए सिरे से कांग्रेस को खड़ा करना चाहिए। राहुल को भी समझना चाहिए कि केवल भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस उदय नहीं होगा। यदि ऐसा ही लोकसभा में रहा तो सियासी जगत से कांग्रेस का अंतिम संस्कार हो जाएगा। क्यों कि सन् 2014 के बाद से कांग्रेस की राज्यों से पकड़ कमजोर होती जा रही है। 2004 में 14 राज्यों में कांग्रेस काबिज थी। 2009 में 11 राज्य,2014 में उसकी सत्ता 9 राज्यों तक सिमट गई। 2019 में चुनाव में 6 राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन 2020 में मध्यप्रदेश उसके ‘हाथ’ से निकल गया। 2023 में तीन राज्य हाथ से निकल गये।