Tuesday, April 28, 2020

प्रकृति के आए ‘अच्छे दिन’

      
पेड़ों की शाखें उदास थीं। क्यों कि उनके कंधों पर पंक्षी नहीं बैठते थे। दरिया की तह पर मछली,कछुआ रोया करते थे। क्यों कि  नदियों के पानी में आक्सिजन कम थी। पर्यावरण की सेहत सुधरी तो जंगली जानवर शहर पहुंच गए। लाॅक डाउन से जल,जंगल और जमीन में अच्छे दिन लौट आए हैं।

0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                         शोर की भीड़ में एक पीढ़ी ने पूरी जिन्दगी गुजार दी। कभी खामोशी की  दहलीज
शोर की भीड़ और मोटर कारों की कर्कस स्वरों के पैरों तले रोजी स्टर्लिंग,गुलाबी मैना और गौरैया की चहचाहट हर रोज रौंद दी जाती थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। आदमी घरों में कैद हुआ और सात समुंदर पार से इंसानी सरहदों को पार कर स्टर्लिग बिलासपुर पहुंच गई। इंसानों ने अपने लिए सरहदें बनाए हैं लेकिन, प्रकृति के आंगन में रहने वालों की कोई सरहद नहीं है। 
चहहचाने लगे पंक्षी
हवाओं के झूले में झूलने वाले पंक्षी के स्वरों का माधुर्य खो जाता था। बिलासपुर के वंदना पावर प्लांट के 18 एकड़ एरिया मंे झंुड के झुंड आसमानों में उढ़ते रोजी स्टर्लिग दिखते हैं, तो ऐसा लगता है कि आसमान इनके लिए स्वागत मंच सजाए हुए है। गीत गाते ये पेड़ों से विदा होते हैं और गीत गाते, शाम होते पेड़ों पर लौट आते हैं। इस पेड़ से उस पेड़ तक उड़ते हुए इनका चहचहाना, मन को मोह लेता है। आदमी भले घरों में कैद है लेकिन, ये आजाद हैं। आदमी जिस गाड़ी पर बैठकर सैर सपाटा करता था,उस पर ये सुबह-शाम बैठकर पंचायत लगाते दिख जाती हैं। हैरानी वाली बात है कि, दो पखवाड़े के बाद भी इनके पंखों में धूल नहीं है। मछलियां पकड़ने में इन्हें पसीना आ जाता था। लेकिन अब बड़ी आसानी से इनकी चोंच में मछली आ जाती है। तालाबों में न केवल जल बिहार करते हैं और अपन साथियों को बुला लेते हैं उनके साथ पानी में छपाक छपई करते हैं। कुछ गुनगुनाते हैं तो कबूतर भी गुटरगू करने लगते है। पपीहा पीऊ पीऊ करता है। बतख अपनी चोंच में पानी भर लाता है। जंगल के मोर का मन शहर में आ कर करता है कि, बादल छा जाए तो अपना नृत्य प्रस्तुत कर दे।
सात समुंदर पार से आई
यूरोप से आने वाली रोजी स्टर्लिग विशाल समूहों में रहने वाली नन्ही चिड़िया है। सैकड़ों की संख्या में रोजी स्टर्लिंग पहली बार 2013 में बेलमुंडी आए थे। स्वभाव से ये बेहद संवेदनशील होती हैं। फोटाग्राफर शिरीष डामरे ने बताया कि कुछ स्थानीय लोगों ने इन पर पत्थर से हमला किया, जिससे ये रूठ गईं। फिर ये 20014 में ये नहीं आईं। दरअसल खतरे का अंदेशा होने पर ये पंक्षी अपना स्थान बदल देते हैं। 2015 से बिलासपुर से 15 किलोमीटर दूर बेलमुंडी का रूख कर लिया। यहां तालाब है। और ऊंची ऊंची घास में विश्राम करती हैं।  









  पर बैठकर गौरैया, तोता,कबूतर, रोजी स्टर्लिंग, गुलाबी मैना,पपीहा या फिर मोर की आवाज नहीं सुनी। जब भी सुनी,डोर बेल में दर्ज इनकी कृत्रिम आवाज ही सुनी। कलयुगी बयार में,भौतिकवादी संस्कार में जिन्दगी से जुड़े वन्य जी के राग आज की आपाधापी में गुम हो गए या फिर हमसे दूर हो गए। दुनिया वही है। शहर और उसकी गलियां भी। गांव के नदी,पोखर,झरने,जंगल, पहाड़ और आदमी भी वही है। लेकिन कोरोना वाइरस की दस्तक से प्राकृतिक जीवन की तस्वीर बदल गई। 

दुनिया गुलमोहर हो गई
गुलमोहर,टेसू और अमलतास की रंगत सबका मन मोह लेती है। यह सब हुआ है पर्यावरण की सेहत सुधार के चलते। पिछले बरस की तुलना इस बरस महुए कुछ ज्यादा ही खुशियों के आंसुओं की तरह टप टप गिर रहे हैं। आमों के पेड़ों के पत्तों की हरियाली देखकर तोता भी हैरान है कि मै ज्यादा हरा हूं या फिर पत्ते। गौरैया रोशनदान से झांक कर देखती है कि बच्चों के मोबाइल पर मेरे जैसी कौन है। बच्चे उससे क्या बातें कर रहे हैं। टीवी से सितार की आवाज जब झिंगुर के कानों में पड़ती तो वह भी यमन राग सुनाने लगता है। कोरोना वाइरस के चलते प्रकृति में कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कई तरह के रंग बिरंगी पंक्षी अब घरों के मुंडेर पर,लान के पौधों पर नृत्य करते दिखने लगे हैं। तोता मैना की कहानी केवल किताबों में पढ़ी और सुनी गई है। लेकिन आम के पेड़ों पर तोता मैना को चोंच लड़ाते देखकर मन कहता है,काश आदमी इनसे सीख पाता कैसे प्यार से रहना चाहिए। ये कभी किसी की बुराई नहीं करते। गौरैया किसी के खेत से, तोता किसी के पेड़ों से आम जरूरत से ज्यादा कभी नहीं ले गये। काश, ऐसा कोई ऐसा कैमरा होता, जिनमें इनकी दिलकश हरकतों को कैद कर लेते और बना लेता एक यादों का अलबम।
प्रदूषण में कमी आई
हवाई सफर रूकने से कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, बैंजीन आदि गैसों के उत्सर्जन में 22 फीसदी की कमी आई तो हवा स्वच्छ हो गई। धरती की ओजोन में बढ़ते छिद्र से वैज्ञानिक परेशान हो रहे थे। धरती गर्म होती जा रही थी। ऐसी स्थिति में सुधार हुआ है। उद्योगों का प्रदूषण और कचरा नदी,नाले में गिरना बंद हुआ तो 60 फीसदी पर्यावरण स्वच्छ हो गया। शहरों के नदी,तालाबों के घाट अब नहाने लायक हो गए हैं। रायपुर के सिलतरा में 350 फैक्ट्री है और उरला में डेढ़ सौ फैक्ट्रियां है। भिलाई स्टील प्लांट अलग से। जाहिर सी बात है कि, प्रकृति की हरियाली का हरापन लौटा और प्रदूषण घटा तो आसमान साफ हो गए। दिल्ली में आसमान में चांद सितारे दिखने लगे।  
थैक्यू कोरोना
मिस्टर कोरोना तुम्हें थैंक्यू करने का मन कर रहा है। तुम्हारी वजह से पूरी दुनिया लाॅक डाउन होने से गुस्सा है लेकिन, करीब 50 से 75 हजार लोग प्रीमैच्योर मौत से बच गए। साफ सुथरी हवा मिलने से 5 साल से कम उम्र के करीब 4000 बच्चे और 70 साल से नीचे के 51000 से 73000 वयस्कों की जिंदगी प्रदूषण की मुसीबत से बच गई। कई जगह गंगा का पानी निर्मल हो गया। जबकि गंगा को निर्मल करने के लिए चार हजार करोड़ रूपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। लेकिन राम की गंगा मैली की मैली रही। लॉकडाउन से नदी में औद्योगिक कचरे की डंपिंग में कमी आई है। गंगा का पानी ज्यादातर मॉनिटरिंग सेंटरों में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया है। 
दुर्ग जिले के पाटन क्षेत्र के बेलौदी, पहंदा, ठकुराइन टोला, रुही, मटंग एवं अन्य गांवों में माइग्रेटरी बर्ड्स, रोजी स्टर्लिंग, ब्लैक हेडेड, इबिस सैंड पाइपर, स्पून बिल स्टार्क, पेंटेड बिल स्टार्क, विस्लिंग डक, ग्रे हेरान, पर्पल हेरॉन आदि देखे गए हैं। जो यूरोप, चाइना, रूस, मंगोलिया, लद्दाख, तिब्बत और साइबेरिया जैसे देशों से हजारों किमी का सफर कर आए हैं। पाटन क्षेत्र का उत्तर पूर्वी इलाका खारुन नदी से घिरा हुआ है। गांवों के तालाबों में घोंघा और मछली खाने वाले पेंटेड बिल स्टार्क, स्पून बिल स्टार्क,ग्रे हेरान, पर्पल हेरान आदि को बेलौदी बांध, सेमरी बांध, मटंग बांध, बोरवाय बांध में इन पंक्षियों की जमघट लोगों को लुभा रही है। ओपन बिल स्टार्क लंबी और आकर्षक चोंच वाले ये पक्षी राजिम के पास लचकेरा, पथरियाय,मुंगेली के पास पड़ियाइन सहित कोरबा, रतनपुर, सैदा, पाली, हसदेव के किनारेे कनकी, कवर्धा, अकलतरा, नरियरा में बहुतायत से पाए जाते हैं। सिरपुर तालाब में माइग्रेटी बर्ड्स देखे जा सकते हैं। प्रशासन और गैरसरकारी संगठनों के साथ नागरिकों को भी अब यह बात समझ में आ गई कि प्रदूषण खत्म किया जाना जरूरी है ताकि, पंक्षियों के साथ आदमी का रिश्ता बन सके।  
ओडिशा तट पहुंचे 8 लाख कछुए         
ओड़िसा में समुंदर के किनारे धूप के गलीचे पर बैठ कर अंगडाई लेते ओलिव रिडले कछुओं का समूह गोवा के किनारे धूप लेती गोरियों की याद दिला रहे हैं। दरअसल इस बार ओड़िसा में प्रदूषण का स्तर कम होने से समुद्री जीवन में भी बदलाव देखा जा रहा है। प्रदूषण के अलावा नाव,बोट, से अपनी जान गवाने या फिर घायल होने वाले ये कछुए इस बार भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। 24 मार्च से पर्यटकों की आवाजाही नहीं होने से बेफिक्र होकर कछुए गहिरमाथा और रूसीकुल्य में छह करोड़ से ज्यादा अंडे दिए हैं।