Tuesday, April 28, 2020

प्रकृति के आए ‘अच्छे दिन’

      
पेड़ों की शाखें उदास थीं। क्यों कि उनके कंधों पर पंक्षी नहीं बैठते थे। दरिया की तह पर मछली,कछुआ रोया करते थे। क्यों कि  नदियों के पानी में आक्सिजन कम थी। पर्यावरण की सेहत सुधरी तो जंगली जानवर शहर पहुंच गए। लाॅक डाउन से जल,जंगल और जमीन में अच्छे दिन लौट आए हैं।

0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                         शोर की भीड़ में एक पीढ़ी ने पूरी जिन्दगी गुजार दी। कभी खामोशी की  दहलीज
शोर की भीड़ और मोटर कारों की कर्कस स्वरों के पैरों तले रोजी स्टर्लिंग,गुलाबी मैना और गौरैया की चहचाहट हर रोज रौंद दी जाती थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। आदमी घरों में कैद हुआ और सात समुंदर पार से इंसानी सरहदों को पार कर स्टर्लिग बिलासपुर पहुंच गई। इंसानों ने अपने लिए सरहदें बनाए हैं लेकिन, प्रकृति के आंगन में रहने वालों की कोई सरहद नहीं है। 
चहहचाने लगे पंक्षी
हवाओं के झूले में झूलने वाले पंक्षी के स्वरों का माधुर्य खो जाता था। बिलासपुर के वंदना पावर प्लांट के 18 एकड़ एरिया मंे झंुड के झुंड आसमानों में उढ़ते रोजी स्टर्लिग दिखते हैं, तो ऐसा लगता है कि आसमान इनके लिए स्वागत मंच सजाए हुए है। गीत गाते ये पेड़ों से विदा होते हैं और गीत गाते, शाम होते पेड़ों पर लौट आते हैं। इस पेड़ से उस पेड़ तक उड़ते हुए इनका चहचहाना, मन को मोह लेता है। आदमी भले घरों में कैद है लेकिन, ये आजाद हैं। आदमी जिस गाड़ी पर बैठकर सैर सपाटा करता था,उस पर ये सुबह-शाम बैठकर पंचायत लगाते दिख जाती हैं। हैरानी वाली बात है कि, दो पखवाड़े के बाद भी इनके पंखों में धूल नहीं है। मछलियां पकड़ने में इन्हें पसीना आ जाता था। लेकिन अब बड़ी आसानी से इनकी चोंच में मछली आ जाती है। तालाबों में न केवल जल बिहार करते हैं और अपन साथियों को बुला लेते हैं उनके साथ पानी में छपाक छपई करते हैं। कुछ गुनगुनाते हैं तो कबूतर भी गुटरगू करने लगते है। पपीहा पीऊ पीऊ करता है। बतख अपनी चोंच में पानी भर लाता है। जंगल के मोर का मन शहर में आ कर करता है कि, बादल छा जाए तो अपना नृत्य प्रस्तुत कर दे।
सात समुंदर पार से आई
यूरोप से आने वाली रोजी स्टर्लिग विशाल समूहों में रहने वाली नन्ही चिड़िया है। सैकड़ों की संख्या में रोजी स्टर्लिंग पहली बार 2013 में बेलमुंडी आए थे। स्वभाव से ये बेहद संवेदनशील होती हैं। फोटाग्राफर शिरीष डामरे ने बताया कि कुछ स्थानीय लोगों ने इन पर पत्थर से हमला किया, जिससे ये रूठ गईं। फिर ये 20014 में ये नहीं आईं। दरअसल खतरे का अंदेशा होने पर ये पंक्षी अपना स्थान बदल देते हैं। 2015 से बिलासपुर से 15 किलोमीटर दूर बेलमुंडी का रूख कर लिया। यहां तालाब है। और ऊंची ऊंची घास में विश्राम करती हैं।  









  पर बैठकर गौरैया, तोता,कबूतर, रोजी स्टर्लिंग, गुलाबी मैना,पपीहा या फिर मोर की आवाज नहीं सुनी। जब भी सुनी,डोर बेल में दर्ज इनकी कृत्रिम आवाज ही सुनी। कलयुगी बयार में,भौतिकवादी संस्कार में जिन्दगी से जुड़े वन्य जी के राग आज की आपाधापी में गुम हो गए या फिर हमसे दूर हो गए। दुनिया वही है। शहर और उसकी गलियां भी। गांव के नदी,पोखर,झरने,जंगल, पहाड़ और आदमी भी वही है। लेकिन कोरोना वाइरस की दस्तक से प्राकृतिक जीवन की तस्वीर बदल गई। 

दुनिया गुलमोहर हो गई
गुलमोहर,टेसू और अमलतास की रंगत सबका मन मोह लेती है। यह सब हुआ है पर्यावरण की सेहत सुधार के चलते। पिछले बरस की तुलना इस बरस महुए कुछ ज्यादा ही खुशियों के आंसुओं की तरह टप टप गिर रहे हैं। आमों के पेड़ों के पत्तों की हरियाली देखकर तोता भी हैरान है कि मै ज्यादा हरा हूं या फिर पत्ते। गौरैया रोशनदान से झांक कर देखती है कि बच्चों के मोबाइल पर मेरे जैसी कौन है। बच्चे उससे क्या बातें कर रहे हैं। टीवी से सितार की आवाज जब झिंगुर के कानों में पड़ती तो वह भी यमन राग सुनाने लगता है। कोरोना वाइरस के चलते प्रकृति में कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कई तरह के रंग बिरंगी पंक्षी अब घरों के मुंडेर पर,लान के पौधों पर नृत्य करते दिखने लगे हैं। तोता मैना की कहानी केवल किताबों में पढ़ी और सुनी गई है। लेकिन आम के पेड़ों पर तोता मैना को चोंच लड़ाते देखकर मन कहता है,काश आदमी इनसे सीख पाता कैसे प्यार से रहना चाहिए। ये कभी किसी की बुराई नहीं करते। गौरैया किसी के खेत से, तोता किसी के पेड़ों से आम जरूरत से ज्यादा कभी नहीं ले गये। काश, ऐसा कोई ऐसा कैमरा होता, जिनमें इनकी दिलकश हरकतों को कैद कर लेते और बना लेता एक यादों का अलबम।
प्रदूषण में कमी आई
हवाई सफर रूकने से कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, बैंजीन आदि गैसों के उत्सर्जन में 22 फीसदी की कमी आई तो हवा स्वच्छ हो गई। धरती की ओजोन में बढ़ते छिद्र से वैज्ञानिक परेशान हो रहे थे। धरती गर्म होती जा रही थी। ऐसी स्थिति में सुधार हुआ है। उद्योगों का प्रदूषण और कचरा नदी,नाले में गिरना बंद हुआ तो 60 फीसदी पर्यावरण स्वच्छ हो गया। शहरों के नदी,तालाबों के घाट अब नहाने लायक हो गए हैं। रायपुर के सिलतरा में 350 फैक्ट्री है और उरला में डेढ़ सौ फैक्ट्रियां है। भिलाई स्टील प्लांट अलग से। जाहिर सी बात है कि, प्रकृति की हरियाली का हरापन लौटा और प्रदूषण घटा तो आसमान साफ हो गए। दिल्ली में आसमान में चांद सितारे दिखने लगे।  
थैक्यू कोरोना
मिस्टर कोरोना तुम्हें थैंक्यू करने का मन कर रहा है। तुम्हारी वजह से पूरी दुनिया लाॅक डाउन होने से गुस्सा है लेकिन, करीब 50 से 75 हजार लोग प्रीमैच्योर मौत से बच गए। साफ सुथरी हवा मिलने से 5 साल से कम उम्र के करीब 4000 बच्चे और 70 साल से नीचे के 51000 से 73000 वयस्कों की जिंदगी प्रदूषण की मुसीबत से बच गई। कई जगह गंगा का पानी निर्मल हो गया। जबकि गंगा को निर्मल करने के लिए चार हजार करोड़ रूपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। लेकिन राम की गंगा मैली की मैली रही। लॉकडाउन से नदी में औद्योगिक कचरे की डंपिंग में कमी आई है। गंगा का पानी ज्यादातर मॉनिटरिंग सेंटरों में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया है। 
दुर्ग जिले के पाटन क्षेत्र के बेलौदी, पहंदा, ठकुराइन टोला, रुही, मटंग एवं अन्य गांवों में माइग्रेटरी बर्ड्स, रोजी स्टर्लिंग, ब्लैक हेडेड, इबिस सैंड पाइपर, स्पून बिल स्टार्क, पेंटेड बिल स्टार्क, विस्लिंग डक, ग्रे हेरान, पर्पल हेरॉन आदि देखे गए हैं। जो यूरोप, चाइना, रूस, मंगोलिया, लद्दाख, तिब्बत और साइबेरिया जैसे देशों से हजारों किमी का सफर कर आए हैं। पाटन क्षेत्र का उत्तर पूर्वी इलाका खारुन नदी से घिरा हुआ है। गांवों के तालाबों में घोंघा और मछली खाने वाले पेंटेड बिल स्टार्क, स्पून बिल स्टार्क,ग्रे हेरान, पर्पल हेरान आदि को बेलौदी बांध, सेमरी बांध, मटंग बांध, बोरवाय बांध में इन पंक्षियों की जमघट लोगों को लुभा रही है। ओपन बिल स्टार्क लंबी और आकर्षक चोंच वाले ये पक्षी राजिम के पास लचकेरा, पथरियाय,मुंगेली के पास पड़ियाइन सहित कोरबा, रतनपुर, सैदा, पाली, हसदेव के किनारेे कनकी, कवर्धा, अकलतरा, नरियरा में बहुतायत से पाए जाते हैं। सिरपुर तालाब में माइग्रेटी बर्ड्स देखे जा सकते हैं। प्रशासन और गैरसरकारी संगठनों के साथ नागरिकों को भी अब यह बात समझ में आ गई कि प्रदूषण खत्म किया जाना जरूरी है ताकि, पंक्षियों के साथ आदमी का रिश्ता बन सके।  
ओडिशा तट पहुंचे 8 लाख कछुए         
ओड़िसा में समुंदर के किनारे धूप के गलीचे पर बैठ कर अंगडाई लेते ओलिव रिडले कछुओं का समूह गोवा के किनारे धूप लेती गोरियों की याद दिला रहे हैं। दरअसल इस बार ओड़िसा में प्रदूषण का स्तर कम होने से समुद्री जीवन में भी बदलाव देखा जा रहा है। प्रदूषण के अलावा नाव,बोट, से अपनी जान गवाने या फिर घायल होने वाले ये कछुए इस बार भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। 24 मार्च से पर्यटकों की आवाजाही नहीं होने से बेफिक्र होकर कछुए गहिरमाथा और रूसीकुल्य में छह करोड़ से ज्यादा अंडे दिए हैं। 


Tuesday, April 21, 2020

थैंक्यू मिस्टर कोरोना..



 0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’

मिस्टर कोरोना तुम्हें थैंक्यू करने का मन कर रहा है। तुम्हारी वजह से पूरी दुनिया लाॅक डाउन होने से गुस्सा है, लेकिन करीब 50 से 75 हजार लोग प्रीमैच्योर मौत से बच गए। साफ,सुथरी हवा मिलने से 5 साल से कम उम्र के करीब 4000 बच्चे और 70 साल से नीचे के 51000 से 73000 वयस्कों की जिंदगी प्रदूषण नहीं होने की मुसीबत से बच गई।


तुम्हारी वजह सेे पूरी दुनिया को यह बात समझ में आई कि भारत नमस्ते क्यों करता आया है। शाकाहारी बने,तंदुरूस्त रहें। ऐसा कहने के पीछे,भारत का राज क्या है? तुम धन्यवाद के हकदार हो। तुम्हारी वजह से कई जगह गंगा का पानी निर्मल हो गया। जबकि गंगा को निर्मल करने के लिए चार हजार करोड़ रूपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। लेकिन राम की गंगा मैली की मैली रही। लॉकडाउन से नदी में औद्योगिक कचरे की डंपिंग में कमी आई है। गंगा का पानी ज्यादातर मॉनिटरिंग सेंटरों में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया है।
हवाई सफर रूकने से कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, बैंजीन आदि गैसों के उत्सर्जन में 22 फीसदी की कमी आई है। हवा स्वच्छ हो गई। धरती की ओजोन में बढ़ते छिद्र से वैज्ञानिक परेशान हो रहे थे। धरती गर्म होती जा रही थी। लेकिन ऐसी सारी समस्या छू हो गई है। शिकायत रहती थी कि लोग अपने बच्चों को,पति,पत्नी एक दूसरे को समय नहीं दे पाते थे। भाग दौड़ की जिन्दगी में रिश्तों में दरार बढ़ गई थी। आज इसकी शिकायत किसी को नहीं है। आम आदमी कहता था कि कानून का राज कब आयेगा? अब रोजनामचे में एफआईआर नहीं दिख रही है। अपराधी किस बिल में घुस गये पुलिस को भी पता नहीं।
शहर से लेकर गांव तक खामोशी पसरी हुई है। इतनी खामोशी से जंगल के जानवर भी हैरान हो गए हैं। वे जंगल से शहर की सड़कों पर यह देखने निकल आए हैं कि आखिर हो क्या गया है। डायनासोर जिस तरह लुप्त हो गया है, कहीं आदमी भी लुप्त तो नहीं हो गए हैं? सड़कों पर मोर नाच रहे है। वो भी बेमौसम में। हिरण सड़कों पर धमाल कर रही हैं। हाथी झुंड के झुंड जंगलों से निकल कर शहरों में आ गए हैं। तुम्हारे आने से दहशत और मौत की एक तरफ तस्वीर है, तो दूसरी तरफ दुनिया की अदुभुत तस्वीर भी देखने को मिली।

हाय,मै निशा जिंदल..



 0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’


सुन्दर काया, सुन्दर चेहरे और इश्क से भी ज्यादा मीठी भाषा कहीं है, तो सिर्फ फेस बुक की अनदेखी दुनिया में है। सोशल मीडिया ने दो विपरीत दिलों को बहुत करीब ला दिया है। फेस बुक में तुम,तुम नहीं होना, पहली शर्त है, किसी के दिल तक जाने के लिए। अपना नाम निशा जिंदल रख लो। और दिलकश किसी पाकिस्तानी लड़की की तस्वीर पोस्ट कर दो। यानी लड़की की फोटो एकदम से झकास होनी चाहिए।
एक झलक देखते ही डाॅक्टर, पुलिस,पत्रकार,नेता,विधायक सभी आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दें। इतना ही नहीं, आपके बातें करने का लहजा शबनमी होना चाहिए। ऐसा लिख दें तो कमाल हो जाएगा। मै 32 साल की हूं, मन बहुत करता है शादी करने का। लेकिन क्या करूं,मेरा एक बेटा है पांच साल का। मेरे पति एक एक्सीडेंट में पांच साल पहले ही गुजर गये हैं। एक हमसफर की कमी का एहसास होता है। क्या कोई मेरा हमसफर बन सकता है? मै घर से संपन्न हूं। कई बार रात की तन्हाई मेरे अंग अंग में आग लगा देती है।
ऐसा भी लिख सकते हैं, मेरा मन करता है किसी के साथ भाग जाऊं। कोई मेरे साथ घर से भागना चाहेगा? चूंकि आपके फेस बुक में स्मार्ट और खूबसूरत लड़की की तस्वीर है। जाहिर सी बात है कि सलाह देने वाले और लाइक करने वाले दो तीन हजार हो सकते हैं। फालोवर दस हजार भी। मेरे दिल में छेद है। डाॅक्टर ने बताया हैं। आॅपरेशन के लिए मै आर्थिक मदद चाहती हूं। आप मेरे इस अकाउंट में मेरी मदद कर दीजिए प्लीज।
मै जो यह लिख रहा हूं कोई कल्पना वाली बात नहीं है। फेस बुक में ऐसे लोगों की भरमार है। रायपुर पुलिस ने ऐसे की एक लड़के को पकड़ा है, जो चार साल से इजीनियरिंग पास नहीं कर पा रहा है। दिमागी रूप से विक्षिप्त होने के साथ ही, देखने में भी रिक्शा वाले सा है। लेकिन उसके फेस बुक में हसीन लड़की की तस्वीर होने की वजह से ,उसके दस हजार फालोवर है। सैकड़ों कमेंटस और लाइक आते हैं।
झूठ तो झूठ ही होता है। निशा जिंदल के नाम से बनी फर्जी आईडी वाले महाशय ने कोरोना को लेकर जमातियों के खिलाफ ऐसा उल्टा सीधा लिखा कि, पुलिस को उस तक पहुंचना पड़ा और उसे जेल में डाल दिया, साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने के आरोप में।
देखिये आपके फेस बुक में कोई लड़की ,लेखक,डाॅक्टर और पुलिस आॅफिसर बनके आपको मूर्ख तो नहीं बना रही है। आज कल सोच समझ कर कमेंटस करें। एक यूजर शिवांगी बनके आज कल बहुतों को सेवईयां खिलाने वालों के घर में बुके लेकर जाने की बात कर रही है। मैसेजर बाॅक्स में मैसेज भी कर रही है। उसके चेहरे पर फिदा होकर उसकी बातें फालो मत कर लेना,आपको कोरोना हो सकता है।

किलर कोरोना के फाइटर

 छत्तीसगढ़ के 28 जिलों में 23 जिले ग्रीन जोन में हैं। यदि किलर कोरोना के फाइटर देवदूत बनकर मुस्तैदी से न जुटे होते, तो छत्तीसगढ़ के कई जिले दूसरा इंदौर बन जाते। सबने मिलकर लोगों के मन में उम्मीद की आशा जगाई और भरोसे का बीज बोए।

0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
               छत्तीसगढ़ भी कोरोना वायरस के प्रकोप से बच नहीं पाया। लेकिन खुशी इस बात की है कि प्रदेश के 28 जिलों में 23 जिले कोरोना के कहर से बचे हुए हैं। किलर कोरोना के फाइटर डाॅक्टर,नर्स,पुलिस,समाज सेवी,सफाई कर्मी आदि मुसीबत की घड़ी में देवदूत बनकर छत्तीसगढ़ को कोरोना का रेड जोन बनने से रोका। वरना छत्तीसगढ़ के कई जिले इंदौर और भोपाल बन गए होते। आम लोगों को डंडा मारने और जबरिया चालान के लिए बदनाम पुलिस ने जनता की दिल से मदद की। इस वजह से जनता उनके स्वागत के लिए इंतजार करते देखी गई। बिलासपुर के हेमू नगर में पुलिस वालों के ऊपर पुष्प वर्षा की गई। वहीं तबलीगी जमात कामयाबी की राह में रोड़ा भी बने। प्रदेश के कुल 33 में से 24 केस कोरबा जिले के कटघोरा तहसील के तबलीगी जमात के हैं। कटघोरा को कोरोना का हाॅट स्पाॅट घोषित कर दिया गया है। कटघोरा से सबसे पहला मामला 4 अप्रैल को तबलीगी जमाती किशोर का ही सामने आया था। वह ठीक होकर महाराष्ट्र के कामठी चला गया है। सभी संक्रमितों का जमाती कनेक्शन है। वहीं राजधानी रायपुर में पांच केस, दुर्ग, राजनांदगावं और बिलासपुर में एक एक केस पाए गए। यहां के मरीज स्वस्थ्य होकर अपने घरों में क्वारंटाइन हैं।
कोरोना वायरस के संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए पुलिस के जवानों ने रात दिन एक कर हर तरह से लोगों के स्वास्थ्य की हिफाजत में अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी है। बिलासपुर में एक महिला का स्वास्थ्य खराब होने पर काफी देर तक एंबुलेंस नहीं आई, तो ड्यूटी पर तैनात एक पुलिस अफसर ने सड़क के किनारे खड़े एक रिक्शे पर बीमार महिला को बिठाकर अस्पताल पहुंचाया।   
कोरोना की नई फाइटर
अंबिकापुर की अनविता न तो डाॅक्टर है और न ही स्वास्थ्य कर्मी। लेकिन 11 वी की यह छात्रा कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए छोटेे बच्चों को प्रेरित ही नहीं, बल्कि जागरूक भी कर रही है। लाॅक डाउन के दौरान घर में रहते हुए वह छोटे बच्चों को टास्क देकर उन्हें पुरस्कृत कर रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उसके इस कार्य पर डब्ल्यू एच.ओ संस्था ने उसे ‘‘युवा कोरोना फाइटर’’ से पुरस्कृत कर प्रमाण पत्र जारी किया है। अनविता मेडिकल काॅलेज के माइक्रोबाॅयोलाजी विभाग में के डाॅ आर कृष्णामूर्ति की बेटी हैं । अभी तक अनविता 80 से अधिक बच्चों को जागरूक कर चुकी हैं। 
दीनदयाल रसोई
राजनीति से परे होकर बीजेपी ने राजधानी रायपुर में लॉक डाउन में जरूरतमंदों के सहयोग के लिए हेल्प डेस्क चलाया। गरीब परिवारों की सहायता के लिए 6 अप्रैल से भाजपा स्थापना दिवस से दीनदयाल रसोई प्रारंभ की गई है। दीनदयाल रसोई से प्रतिदिन 2000 पैकेट भोजन पका कर जरूरतमंद को बांटा जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने कार्यकर्ताओं को इस सेवा कार्य को तब तक करते रहने की अपील की जब तक यह संकट टल ना जाये।
दवाइयों की पूर्ति विमान से
रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट आम लोगों के लिए पूरी तरह से बंद है। मगर दवाइयों की सप्लाई के लिए विमान आ रहे हैं। कार्गो विमान से दवाएं एम्स में भेजी गईं। इस तरह का यह तीसरा विमान था। हवाई रास्ते से ही दवाएं और डॉक्टरों के लिए प्रोटेक्शन किट्स आ रहा है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया है कि केन्द्र सरकार ने अनुमति दे दी है इसलिए रायपुर के अंबेडकर अस्पताल की लैब में अब कोरोना के सैंपल की जांच होती है। अभी तक जांच की सुविधा रायपुर एम्स और जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में ही थी।
कोशिश रहती है बेटा न देखे
रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह बताते हैं उम्र दराज सास ससुर के साथ घर में दो छोटे बच्चे भी हैं। उनका छोटा बेटा जो सिर्फ एक वर्ष का हैं, अपने पापा के देर रात घर मे ड्यूटी से आते ही दूर से देखकर दौड़ कर पास आने के जिद करता हैं। लेकिन वो उससे बचते हुए घर के बाहरी हिस्से के कमरे में चले जाते हैं।   
जनसेवा पहले,शादी बाद में
कोरोना वायरस का असर अब होने वाले शादियों पर भी पड़ा है। जनपद पंचायत अभनपुर में पदस्थ सीईओ शीतल बंसल ने कोरोना वायरस के चलते अपने शादी टाल दी है। 26 मार्च को उनकी शादी भारतीय वन सेवा के आयुष जैन के साथ होने वाली थी। शीतल बंसल और उनके मंगेतर ने कोरोना के संक्रमण से अपने क्षेत्र को सुरक्षित रखने को प्राथमिकता देते हुए शादी की तारीख आगे बढ़ा दी है। शीतल बंसल 2017 बैच की राज्य प्रशासनिक सेवा की डिप्टी कलेक्टर हैं। 
नायाब तरीका
लोरमी एसडीएम रुचि शर्मा ने लॉक डाउन का उल्लंघन कर बिना ठोस वजह के सड़क में नजर आने या नियम को तोड़ने वाले लोगों को सबक सिखाने के लिए स्लोगन लिखी तख्तियां बनवाई हैं। जिसमें लिखा हुआ है कि मैं संक्रमण फैलाऊंगा पर सावधानी नहीं बरतूंगा। मैं अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए देश को खतरे में डाल सकता हूं। मैं लोरमी को सुरक्षित नहीं रहने दूंगा लोरमी का दुश्मन हूँ। मुझे अपने देश से प्यार नहीं है इसलिए मैं घर से बाहर निकलकर संक्रमण फैला रहा हूँ’’। ऐसी व्यवस्था से अब सड़कांे पर कोई नजर नहीं आता।
नक्सली गढ़ की देवदूत
अबूझमाड़ के नक्सलगढ़ में 43 गांव ऐसे हैं जहां सड़क.बिजली, पानी स्कूल और अस्पताल नहीं है।   स्वास्थ्य विभाग की कर्मचारी रानी मंडावी, सुनीत मरावी, सुमित्रा सोढ़ी, रत्नी ककेम कई किलोमीटर पैदल चलकर अबूझमाड़ के दुर्गम इलाके में थर्मल स्क्रीनिंग किट और मॉस्क लेकर गांव,गांव पहुंच रही हैं। इनकी तैनाती भैरमगढ़ इलाके में इंद्रावती नदी के पार अबूझमाड़ के सरहदी गांवों के चार उप स्वास्थ्य केंद्रों में है। नक्सल इलाके में महिला स्वास्थ्यकर्मी कोरोना को मात देने में जुटी हैं। कांकेर में 76 स्वसहायता समूहों की 207 महिलाएं मास्क बना रही हैं। समूहों को 50 हजार मास्क बनाने का आर्डर मिला है। लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों को घर,घर राशन व जरूरी सामान भी मुहैया करा रहा है। बस्तर में पहली बार पार्षद बनी कोमल सेना घर में खुद से मास्क बनाने में जुटी हुई है।
पत्तों के मास्क से सुरक्षा
कांकेर के आमाबेड़ा का ग्राम कुरूटोला आदिवासी बाहुल्य इस गांव से जागरूकता की नायाब मिसाल सामने आई है। संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनने की सलाह दी गई है। स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव होने की वजह सें ग्रामीणों ने देशी तरीका अपनाया और पेड़ के पत्तों से ही मास्क बना लिया है। ग्रामीण अब इसी का उपयोग कर रहे हैं। सरकार की ओर से जारी की गई एडवाइजरी को भी मान रहे हैं। 












Wednesday, April 8, 2020

नाम बदलने की सियासत

     कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम बदलकर भूपेश सरकार ने चंदूलाल चंद्राकर कर दिया। तर्क दिया गया कि वे पत्रकार नहीं थे। जबकि देश में अनेक संस्थान हैं, जो गांधी परिवार के नाम है। जबकि उस संस्थान की प्रकृति से उनका कोई लेना देना नहीं है।





0 रमेश तिवारी ‘रिपु’
           छत्तीसगढ़ में एक बार फिर कांग्रेस सरकार और राजभवन के बीच टकराव की नींव बनती दिख रही है। वजह यह कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में बलदेव भाई शर्मा की नई नियुक्ति व बिलासपुर स्थित सुन्दरलाल शर्मा विश्वविद्यालय में वंशगोपाल सिंह की पुर्न नियुक्ति राज भवन से हुई है। भूपेश सरकार का कहना है कि दोनों नव नियुक्त कुलपति की पृष्ठ भूमि संघ से है। कंाग्रेस की सरकार में उच्च शिक्षण संस्थाओं के पद पर संघ की विचारधारा के व्यक्तियों की नियुक्ति पहली बार हुई है। जाहिर सी बात है कि भूपेश सरकार को यह नागवार गुजरी। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम बदलकर भूपेश सरकार ने चंदूलाल चंद्राकर के नाम कर दिया। तर्क दिया गया कि वे पत्रकार नहीं थे। जबकि देश में अनेक संस्थान हैं, जो गांधी परिवार के नाम है। जबकि उस संस्थान की प्रकृति से उनका कोई लेना देना नहीं है। 
विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति पर राज्यपाल का अधिकार खत्म करने संबंधी भूपेश सरकार के बिल का बीजेपी ने विधानसभा में विरोध किया। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा सरकार पूरक कार्यसूची में 28 विधेयक लेकर आई और बिना चर्चा के उसे पारित करा लिया। इसे बाद में भी लाया जा सकता था। जब से कांग्रेस की सरकार बनी है, तब से ही नई कार्यप्रणाली विकसित कर ली गई है। यह संसदीय परंपराओं के खिलाफ है। कांग्रेस सरकार लगातार संसदीय कार्यप्रणाली की धज्जियां उड़ा रही है। यह चिंता का विषय है’’।
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थियों का कहना है कि सरकार का यह फैसला समाज में द्वेष और वर्ग भेद को प्रेरित करने वाला है। पूर्व सांसद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकार स्व. चंदूलाल चंद्राकर कभी विवादों में नहीं रहे। उनका सभी सम्मान करते हैं। लेकिन सरकार ने राजनीतिक द्वेष के साथ उनका नाम विवादों से जोड़ दिया है। इससे पहले पं.दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर योजनाओं का नाम बदला गया था।
गौरतलब है कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय पन्द्रह साल से उसी नाम से चल रहा है । अब अचानक उसे चंदूलाल चंद्राकर के नाम जाना जाएगा। हो सकता है कि भाजपा की सरकार आने पर वह पुराना नाम वापस ले आएगी। कांग्रेस जब भी सत्ता में आएगी वैसा वो फिर करे। यह एक तरह से दुखद मजाक होगा। इस प्रवृत्ति से बचने की जरूरत है। यह नाम बदलना नहीं है, यह एक तरह से बदला लेना है। कायदे से कांग्रेस सरकार को उदारता दिखाते हुए कुशाभाऊ ठाकरे के नाम से ही विश्वविद्यालय चलने देना चाहिए था। इसलिए कि भाजपा सरकार ने पहले से चल रहे किसी विश्वविद्यालय का नाम बदलकर कुशाभाऊ ठाकरे के नाम नहीं किया। 
क्या राज्यपाल रोक देंगी बिल?
विधानसभा में पारित होने वाला बिल राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल की मंजूरी प्राप्त बिल को दोबारा सदन के पटल पर पेश किया जाता है। अधिकृत तौर पर बिल के प्रावधान तब ही लागू होना माने जाते हैं। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति संबंधी बिल क्या राज्यपाल रोक देंगी? सूत्रों का दावा है यूजीसी की गाइडलाइन स्पष्ट प्रावधान है कि विश्वविद्यालय पूरी तरह से स्वायत्त रहेंगे। सरकारों का दखल इस पर कम से कम होगा। ऐसे में यूजीसी की गाइडलाइन का सरकार उल्लंघन नहीं कर सकती।
यह बिल क्यूं लाया गया
अभी तक विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति और हटाने का अधिकार राज्यपाल के पास था। कुलपति की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार तीन नामों का पैनल राज्यपाल को भेजती थी। इन नामों में से किसी एक नाम को राज्यपाल की मंजूरी मिलती थी। लेकिन कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय और पं सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति  के पहले राजभवन ने सरकार से अभिमत भी नहीं लिया। भूपेश सरकार ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। और राज्यपाल की इस नियुक्ति पर सरकार सहमत नहीं हुई। राज्यपाल के अधिकार मे कटौती करने यह बिल लाया गया।
कानूनी अभिमत के बाद पेश हुआ बिल
यह माना जा रहा है कि सरकार ने तमाम लीगल मुद्दों पर चर्चा करने के बाद ही यह बिल विधानसभा में प्रस्तुत किया था। राजभवन से बिल लौटाए जाने की स्थिति में इसे दोबारा मंजूरी के लिए भेजे जाने का नियम है। ऐसी स्थिति में राज्यपाल को बिल को मंजूरी देनी होगी। कई बार यह भी देखा गया है कि राज्यपाल बिल को कई साल तक रोक रखे हैं।
दुर्ग के पत्रकार मनविंदर सिंह भाटिया कहते हैं,ठाकरे जी पत्रकार नहीं थे,लेकिन यह जरूरी नहीं है कि किसी संस्थान का नाम किसी व्यक्ति के नाम पर रखा जाय, तो संबंधित व्यक्ति उस विधा से जुड़ा भी हो। देश में अनेक संस्थान चल रहे हैं गांधी परिवार के नाम से। जबकि उस संस्थान की प्रकृति से उनका कोई लेना,देना नहीं है। चंद्राकर जी के नाम से प्रदेश सरकार कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय में कोई शोध पीठ, ग्रंथ अकादमी या विश्वविद्यालय का नामकरण कर सकती थी। 
वहीं यह भी मांग उठी है कि राज्य सरकार को नवा रायपुर में महानदी और इंद्रावती भवन के बीच चैक में उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित करने और छत्तीसगढ़ संवाद भवन का नाम चंदूलाल जी के स्मृति में रखने पर विचार करना चाहिए। बदलापुर राजनीति से महापुरुषों के नाम पर बेवजह विवाद पैदा होता है जो पीड़ादायक है।।
 बहरहाल सवाल यह भी है कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्व विद्यालय के नाम से जिनके पास डिग्री है,तो क्या उसे फर्जी मान ली जाएगी? करोड़ों रूपये विश्वविद्यालय की ब्रांडिंग में लगा, यानी उसका अब कोई औचित्य नहीं। कायदे से भूपेश सरकार चंदूलाल चन्दाकर के नाम से कोई और शिक्षण संस्थान बनाती तो अच्छा रहता। देखना यह है कि कांग्रेस व छात्रों के विरोध के बीच पदभार ग्रहण करने वाले बल्देव शर्मा कब तक पद पर बने रहते हैं।
गांधी परिवार के नाम पर संस्थान
राज्य सरकार की 25 योजनाएं राजीव गांधी और 27 इंदिरा गांधी के नाम पर हैं। खेल प्रतियोगिताएं 23 राजीव गांधी, 4 इंदिरा और 2 जवाहरलाल नेहरू के नाम पर है। शैक्षणिक संस्थान 55 राजीव गांधी, 21 इंदिरा गांधी 22 जवाहर लाल नेहरू के नाम। 74 सड़क, जगह, इमारतें और 37 संस्थान,चेयर,फेस्टिवल राजीव गांधी के नाम और इंदिरा गांधी के नाम 51 एवार्ड और 39 चिकित्सा संस्थान और अस्पताल है। 15 स्काॅलरशिप राजीव के नाम पर दिये जा रहे हैं,और इंदिरा के नाम 15 नेशनल पार्क हैं। इंदिरा गांधी के नाम पर 5 एयर पोर्ट और बंदरगाह,16 राजीव गांधी के नाम पर है।  देश में 8 इंदिरा गांधी,3जवाहर लाल नेहरू के नाम पर योजनाएं चल रही हैं। इसके अलावा 600 से अधिक सरकारी योजनाएं राजीव,इंदिरा और जवाहरलाल नेहरू के नाम पर हैं।

Thursday, April 2, 2020

क्यों होते हैं नक्सली हमले?

       
     एक बार फिर सुकमा में लाल आतंक का नरसंहार ने साबित कर दिया कि नरम उपाय नाकाम हो गए हैं। सन् 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। आखिर उसके बाद से सुरक्षा बल को जवाबी कार्रवाई में कोई बड़ी सफलता क्यों नहीं मिली ?








0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                छत्तीसगढ़ का नक्सली जिला सुकमा एक बार फिर दहशतजदा है। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। 21 मार्च को करीब तीन सौ नक्सलियों ने जवानों को चारो तरफ से घेर कर उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई। जिसमें 17 जवान शहीद हुए और 14 घायल हुए। जबकि नक्सलियों ने अपनी प्रेस नोट में कहा कि हमारे तीन कामरेड सकरू,राजेश और कामरेड सुक्कू मारे गये है। जिनका अंतिम संस्कार कर दिया गया है। डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व फोर्स) के जवानों को पहली बार इतना बड़ा नुकसान हुआ है। डीआरजी स्थानीय युवकों द्वारा बनाया गया सुरक्षा बलों का एक दल है। नक्सलियों ने इस मुठभेड़ के बाद जवानों से 16 हथियार जिसमें 11 नग ए.के 47 और 1550 कारतूस भी लूट लिए।   सवाल यह है कि आखिर कब तक शहीदों की संख्या गिनने का काम सरकार करेगी। इसलिए कि चिंतागुफा, बुर्कापाल और ताड़मेटला वह इलाका है,जहां सुरक्षा बल के जवान सबसे अधिक हताहत हुए हैं। सन् 2010 में ताडमेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। उसके बाद से जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बल को कोई बड़ी सफलता आज तक नहीं मिली। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि नक्सलियों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाने की जगह, नरम उपाय अपनाये गये। जो कि नाकाम हो चुके हैं।
देखा जाये तो पिछले तीन सालों में पुलिस प्रशासन यह बताने का प्रयास किया कि भारी संख्या में इनामी नक्सली और हार्ड कोर नक्सलियों ने समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए आत्मसमर्पण किए। इनकी संख्या तीन सौ से अधिक थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इनामी नक्सलियों ने हथियार डाले, तो फिर माओवादियों के छापामार दस्ते कहां से आ गये? सुकमा में अब भी इनका दबदबा क्यों है? जाहिर सी बात है कि, नक्सलवाद से निपटने के लिए केन्द्र सरकार से मिलने वाली राशि को गोल माल करने की यह एक बड़ी साजिश है। 
सच्चाई कुछ और
डीजीपी डी.एम अवस्थी और सरकार दावा हैं कि, आॅपरेशन प्रहार से नक्सली कमजोर हुए हैं। यदि दोनों की बातें पर यक़ीन कर लिया जाये, तो इसका मलतब यह हुआ कि नक्सलवाद अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है? इसके उलट देखा जाये, तो सच्चाई कुछ और है। जैसा कि दंतेवाड़ा की कांग्रेस विधायक देवती कर्मा कहती हैं,‘‘नक्सलवाद पहले भी था, आगे भी रहेगा। इसको खत्म करना मुश्किल हैं। क्यों कि नक्सलियों की समस्या को खत्म करना बहुत मुश्किल है’’। वहीं प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू कहते हैं,‘‘प्रदेश में जितने भी नक्सली हैं,वे आन्ध्र प्रदेश या फिर तेलंगाना के हैं। यदि वे पकड़े जाते हैं,तो छत्तीसगढ़ से नक्सल राज़ खत्म हो जायेगा। छत्तीसगढ़ का कोई भी आदिवासी नक्सली नहीं है। हमारी सरकार नक्सल समस्या से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है’’।
नक्सली वारदात में कमी आईः भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने युगवार्ता को बताया कि,‘‘नक्सल घटनाओं में और सुरक्षाबलों की शहादत में 62 प्रतिशत एवं आम नागरिकों की हत्याओं में 48 प्रतिशत की कमी आयी है। विगत एक वर्ष में 48 नक्सली लीडर मारे गए। इन नक्सली नेताओं के ऊपर एक करोड़ 92 लाख रूपए का इनाम रखा गया था। इस दौरान 131 नक्सली लीडर गिरफ्तार किए गए। जिन पर दो करोड़ 88 लाख रूपए का इनाम था। इसी तरह 126 नक्सली लीडर आत्मसम्पर्ण किए। इन नेताओं पर दो करोड़ 85 लाख रूपए का इनाम था। पिछले एक वर्ष में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कुल 161 हथियार बरामद किए गए। इनमें एके.47, जी.3 रायफल, इंसास रायफल, एसएलआर रायफल, 303 रायफल, 9 एमएम कार्बाइन एवं पिस्टल शामिल है। नक्सल घटनाओं में वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 40 प्रतिशत की कमी आयी है। सरकार का दायित्व है कि पिछड़े इलाकों में विकास की नींव रखे और काम करे। ऐसे कड़े कदम भी उठाये जिससे नक्सली हिंसा का खात्मा भी हो.दंतेवाड़ा संहार की पुनरावृति न हो।
जंगल में सर्च ऑपरेशन
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने. बताया कि जवानों को एंबुश में फंसा कर नक्सलियों ने घटना को अंजाम दिया। पूरे बस्तर में पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) के करीब 800 हथियार बंद नक्सली हैं। जो घटना के बाद महाराष्ट्र,तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश के इलाके में चले जाते हैं। 21 मार्च को जिस नक्सली दल ने जवानों पर हमला किया, वह कंपनी नंबर एक के नक्सली हैं। जिनका लीडर हिड़मा है जिस पर 50 लाख का इनाम है। यह ताड़मेटला,बुरकापाल,झीरम सहित अन्य बड़ी वारदातों में शामिल था। बस्तर संभाग में पैरा मिलिट्री और छत्तीसगढ़ पुलिस के करीब 50 हजार जवान तैनात हैं। यानी एक नक्सली के लिए करीब 50 जवान हैं। इनामी नक्सली लीडर हिड़मा और नागेश सहित अन्य की मौजूदगी की सूचना पर सीआरपीएफ,एसटीएफ और डीआरजी के लगभग 500 जवान सर्चिग के लिए निकले थे। एल्मागुंडा के नजदीक कोराजगुड़ा पहाड़ियों में सशस्त्र बल और पुलिस की संयुक्त टीम जैसे पहुंची, नक्सलियों ने इस टीम पर तुरंत हमला बोल दिया। एल्मागुंडा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 450 किमी दूरी पर स्थित है।
सरकार सबक नहीं ली
राज्य सरकार सीआरपीएफ के जवानों का इस्तेमाल सड़क के निर्माण कार्यों की सुरक्षा के लिए करती है। जबकि सड़क निर्माण में लगे सुरक्षा बलों पर दर्जनों बार नक्सली हमला कर चुके हैं। जबकि यहां तैनात जवानों पर हमला होने की स्थिति में उन तक मदद कभी भी वक्त पर नहीं पहुंची। छत्तीसगढ़ पिछले 18 साल से नक्सलवाद से जूझ रहा है लेकिन,इतने नक्सली हमले के बाद भी सरकार कोई सबक नहीं ली। प्रदेश के 28 जिलों में 18 जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं।
सरकार हर नक्सली हमले पर यही कहती है,शहीदों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। लेकिन नक्सलवाद के खिलाफ जैसी लड़ाई लड़ी जानी चाहिए, वैसी लड़ाई अब तक नहीं लड़ी गई। जरूरी है कि नक्सलियों को मिलने वाले हथियार पर रोक लगे। 21 मार्च को हुए हमले में पता चला कि नक्सलियों को हथियार आन्ध्र और तमिलनाडु से मिलते हैं। सरकार जब कहती है कि नक्सली समस्या खत्म होने के कगार पर हैं, तो नक्सली इसकी प्रतिक्रिया में कोई गंभीर वारदात करते हैं। राज्य पुलिस के पास और केंद्रीय बलों के पास भी इंटेलिजेंस नेटवर्क है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चूक कैसे हो जाती है। जाहिर सी बात है कि दोनों में तालमेल का अभाव है। बहरहाल लाल आतंक के खिलाफ आक्रमक अभियान की जरूरत है।        
 अब तक हुई बड़ी नक्सली वारदातें
 सितम्बर 2005     गंगालूर रोड पर एंटी लैंडमाइन वाहन के ब्लास्ट में 23 जवान शहीद हुए थे।
 28 फरवरी 2006 को नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के एर्राबोर गांव में लैंडमाइन ब्लास्ट किया। जिसमें 25 लोगों की जान गई थी।
16 जुलाई 2006 को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में एक राहत शिविर पर हमला किया। जिसमें 29 लोगों की जान गई थी।
15 मार्च 2007 में नक्सलियों ने बस्तर क्षेत्र में पुलिस बेस कैंप पर करीब 350 की संख्या में हमला किया। इस हमले में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल  के 15 जवान शहीद हुए थे। 9 सलवा जुडूम के आदिवासी युवक थे। 
जुलाई 2007 एर्राबोर अंतर्गत उरपलमेटा एम्बुश में 23 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे।
अगस्त 2007 को तारमेटला में मुठभेड़ में थानेदार सहित 12 जवान शहीद हुए।
6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में एक के बाद एक ब्लास्ट किया था। जिसमें 76 जवानों को शहीद हुए थे। 
8 मई 2010 छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पुलिस की एक गाड़ी को उड़ा दिया था। जिसमें भारतीय अर्धसैनिक बल के 8 जवान शहीद हुए थे।
 25 मई साल 2013 में नक्सलियों ने दरभा की झीरम घाटी में बहुत बड़ा हमला किया। नक्सलियों के इस हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस का पूरा शीर्ष नेतृत्व खत्म हो गया था। प्रदेश कांग्रेस के 25 नेताओं की मौत हुई थी। इस हमले में विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल जैसे बड़े नेताओं को कांग्रेस ने खोया था।
28 फरवरी 2014 को नक्सल हमले में 6 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।
11 मार्च 2014 को झीरम घाटी हमले के करीब एक साल बाद नक्सलियों ने उससे कुछ ही दूरी पर एक और हमला किया। इसमें 15 जवान शहीद हुए थे। और एक ग्रामीण की भी इसमें मौत हो गई थी। 
12 अप्रैल 2014 को लोकसभा चुनाव के दौरान बीजापुर और दरभा घाटी में आईईडी ब्लास्ट में पांच जवानों समेत 14 लोगों की मौत हो गई थी। मरने वालों में सात मतदान कर्मी भी थे। 
दिसंबर 2014 सुकमा जिले के चिंतागुफा इलाके में एंटी नक्सल ऑपरेशन चला रहे सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला उस वक्त किया था, जब सीआरपीएफ के जवान अपने साथी जवानों के शव ढूंढ रहे थे। घात लगाकर किए गए इस हमले में 14 जवान शहीद और 12 घायल हुए थे।
11 मार्च 2014 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में झीरम घाटी के घने जंगलों में नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया, इसमें सीआरपीएफ के 11 जवान और 4 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। 
1 मार्च 2017 नक्सलियों के हमले में अर्धसैनिक बल के 11 कमांडो शहीद हुए थे। 3 पुलिसकर्मी घायल हुए थे।
11 मार्च 2017 सुकमा जिले में अवरुद्ध सड़कों को खाली करने के काम में जुटे सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में 11 जवान शहीद हुए और 3 से ज्यादा घायल हो गए।
25 अप्रैल  2017 को  सुकमा में हुए सीआरपीएफ के जवानों पर हमले में कुल 25 जवान शहीद हुए   और 7 जवान घायल हुए।
 24 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले में सीआरपीएफ के अधिकारी सड़क निर्माण करने वालों की रखवाली कर रहे थे। इस दौरान नक्सलियों ने अफसरों पर अटैक किया। 25 जवान शहीद हो गए और 7 घायल हुए थे।
 13 मार्च 2018  सुकमा में नक्सलियों ने बड़ा हमला कर सीआरपीएफ के 9 जवानों को मौत के घाट उतार डाला। होली के दिन सीआरपीएफ ने 10 नक्सलियों को घेरकर ढेर कर दिया था। माना जा रहा है कि ये हमला उसी का बदला था।
 27 अक्टूबर 2018 में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 4 जवान शहीद हुए थे।
 30 अक्टूबर 2018 को दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमेल में दूरदर्शन के कैमरामैन की मौत हुई और 2 जवान शहीद हुए थे।
 9 अप्रैल को नक्सलियों भाजपा विधायक भीमा मंडावी को निशाना बनाया। इस हमले में उनकी जान चली गई।