Wednesday, July 3, 2019

अब भी नक्सल राज

     लाखों रूपयों के इनामी नक्सली मारे जा रहे हैं या फिर सरेंडर कर रहे हैं। दूसरी ओर राजनीतिक व्यक्तियों की हत्या कर माओवादी सरकार के सामने चुनौती खड़ी कर रहे हैं। नक्सलियों के लिए कोई फर्क नहीं पड़ा प्रदेश में भाजपा की सरकार हो या फिर कांग्रेस की। उनकी सलतनत अब भी कायम है।










0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                        नक्सलियों की सलतनत अब भी कायम है। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता राज्य में भाजपा की सरकार हो या फिर कांग्रेस की। लोकसभा चुनाव के दौरान दंतेवाड़ा के भाजपा विधायक भीमा मंडावी चुनाव प्रचार से वापस लौट रहे थे और नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट कर 9 अप्रैल को उनकी हत्या कर दी थी। राज्य में नक्सली राजनीतिक व्यक्तियों को टारगेट कर के चल रहे हैं। इसी कड़ी में विधान सभा में सपा प्रत्याशी संतोष पुनेम को माओवादियों ने अपहरण कर   धारदार हथियार से 19 जून को इलमिडी थाना क्षेत्र के मरिमल्ला गांव के पास उनकी हत्या कर दी। संतोष पुनम ठेकेदरी के चलते नक्सलियों के निशाने पर थे। मृतक संतोष पुनम का शव लेने उनकी पत्नी और भाई गये तो नक्सलियों ने उन्हें बैरंग लौटा दिया और शव को मरिमल्ला गांव के पास फेंक दिया। नक्सली आतंक का सिलसिला यहीं नहीं थमा। नक्सलियों ने सड़क निर्माण कार्य में लगे 4 वाहन डोजर, जेसीबी, ट्रेक्टर और बोलेरो को आग के हवाले कर दिया। नक्सलियों की यह वारदात कर एक बार फिर पुलिस की सफलता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
पीछे हटे नहीं हैं नक्सली
नक्सली अभी तक आम ग्रामीणों को पुलिस का मुखबिर बताकर हत्या करते आये हैं। लेकिन अब पुलिस कर्मी भी उनके निशाने पर हैं। 23 जून को अपने परिवार के साथ मिरतुर निवासी सहायक आरक्षक चैतु कड़की सब्जी खरीदने आया था। नक्सलियों ने उस पर चाकू से प्राण घातक हमला किया। दिया। अस्पताल लाते वक्त रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। ऐसी वारदातों से जाहिर है कि माओवादियों में अब कानून का डर नहीं रही गया है। लेकिन बीजापुर एसप.पी. दिव्यांग पटेल मानते है,’’ नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं। वे पहले से कमजोर हुए हैं। हताशा में ऐसी वारदातें कर अपने होने का एहसास करा रहे हैं। बारिश में नक्सली घने जंगलांे में या फिर कहीं और छिप जाते है। लेकिन पुलिस की सर्चिग पूरे बारिश के महीने में चलती रहती है। बस्तर में नक्सलवाद अब अंतिम पड़ाव में है’’। नक्सली वारदातों में कमी आई है। लेकिन नक्सली पीछे हटे नहीं है। नक्सल प्रभावित जिला कोंडागांव में पिछले छह सालों के आंकड़े बताते हैं कि 332 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। पांच दर्जन से अधिक नक्सली सबसे छोटा जिला नारायणपुर में सरेंडर किये। जिसमें 40 नक्सलियों को आरक्षक एवं अन्य पदों में नियुक्त किया गया। आठ लाख का इनामी नक्सली नक्सलवाद से नाता तोड़कर इन दिनो पर्यावारण के लिए काम कर रहा है। हजारों नक्सली समाज की मुख्यधारा से जुड़ गये हैं। बावजूद इसके नक्सलियों की आड़ में आदिवासी महिलाओं के साथ पुलिस के घिनौने वारदात के चलते बस्तर में नक्सलवाद खत्म नहीं हो रहा है। जल,जंगल और जमीन की लड़ाई इसे हवा दे रही है। ऐसी धारणा है यहां की।
13 लाख का इनामी नक्सली 
दरअसल नक्सलियों की समानांतर सरकार के चलते आम आदमियों की सांसे दहशतजदा है। पुलिस लगतार नक्सलियों पर हमला कर रही है। जून महीने के प्रथम सप्ताह पुलिस ने चार नक्सलियों को मार गिराया। पुलिस के दबाव में बीजापुर जिले के मिरतुर थाना इलाके में लंबे समय से आतंक का पर्याय बना 13 लाख का इनामी ओड़िशा राज्य के कालाहांडी में सेंट्रल कमेटी सुरक्षा प्लाटून नंबर.3 का कमांडर गुड्डू उर्फ सुरेश,जनमिलिशिया कमांडर दिलीप पुनेम समेत 4 नक्सलियों ने 19 जून को   दंतेवाड़ा एसपी डॉ अभिषेक पल्लव के सामने सरेंडर किया। नक्सली गुड्डू पर ओड़िशा सरकार ने 8 लाख और छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 लाख का इनाम घोषित किया था। वहीं जनमिलिशिया कमांडर दिलीप पर एक लाख का इनाम था। दिलीप पुनेम भांसी क्षेत्र में सक्रिय था। हत्या रेलवे पटरी उखाड़ने जैसी घटनाओं में शामिल रहा है। गुड्डू बीजापुर जिले मंे 13 पुलिस जवानों की हत्या में भी शामिल था। 22 वाहनों में आगजनी एटपाल में एंबुश लगाकर पुलिस पार्टी पर हमला करने की घटना में शामिल था।
माओवादियों की बड़ी टीम
देखा जाए तो राज्य के 27 जिलों में 18 जिले नक्सली प्रभावित जिले है। अभी इन जिलों में नक्सली गतिविधियां तेज है, दंतेवाड़ा, कांकेर, बस्तर,बीजापुर, नारायणपुर ,राजनांदगांव, सरगुजा, जशपुर, कोरिया, धमतरी, महासमुंद, बालोद, कबीराम, रायगढ़ ,बलौदाबाजार, गरियाबदं, सूरजपुर और बलरामपुर। सरगुजा 2010 में नक्सल मुक्त घोषित किया गया था। लेकिन एक बार फिर से नक्सलियों की मूवमेंट ने सरकार को हैरानी में डाल दिया है। पुलिस अफसरों का कहना है कि लेवी वसूली और उगाही की शिकायतें मिलती है। अभी तक नक्सली झारखंड में वारदात करने के बाद यहां आ जाते थे, कुछ दिनों बाद चले जाते थे। लेकिन इस बीच देखा जा रहा है कि उनका मूवमेंट बढ़ रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि पड़ोसी राज्यों में नक्सलियों की उपस्थिति की वजह से छत्तीसगढ़ के कई जिले उनके रडार में है। रायगढ़ में नक्सली नहीं हैं,लेकिन नक्सली अब लाल आतंक के कॉरिडोर का विस्तार करने में लग गए है। ज्यादातर वारदातें बस्तर के सातों जिलों में होती है। लेकिन नक्सलियों ने सरकार और फोर्स का ध्यान बांटने के लिए अब छोटे जिलों में वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।
आठ लाख की इनामी थी सीमा
18 जून को धमतरी-कांकेर सीमा से लगे कट्टी गांव में एक अन्य घटना में आठ लाख की हार्ड कोर महिला नक्सली सीतानदी दलम कमांडर सीमा मंडावी को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। पिछले दस सालों से इसका आतंक था। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की रहने वाली सीमा उर्फ जरीना मंडावी उम्र 45 वर्ष 2005 में माड़ इलाके में नक्सली संगठन में काम कर रही थी। माड़ के कुतुल इलाके में सक्रिय सीमा के काम को देखते नक्सलियों ने उसे महिला एलजीएस का सेक्रेटरी बनाया था। इसी दौरान सीमा का माड़ इलाके में काम कर रहे राज्य कमेटी सदस्य पुसु से प्रेम प्रसंग हो गया था। उसके खराब चाल चलन की बात भी नक्सली संगठन में जोर पकड़ने लगी थी। इसलिए 2008 में डीवीसी रैंक से डिमोशन कर उसे मैनपुर एरिया कमेटी सदस्य बना दिया गया। 2014 में छिंदखड़क स्कूल के चपरासी पर पुलिस मुखबिर होने का आरोप लगाकर की थी हत्या। 2017 में रावस सरपंच के पुत्र का अपहरण कर उसकी भी हत्या करने में शामिल रही।
नक्सल संगठन की खुलेगी पोल 
जगदलपुर,महाराष्ट्र और तेलंगाना की पुलिस ने संयुक्त ऑपरेशन के तहत 70 लाख के इनामी नक्सली नर्मदा और उसके पति किरण को गिरफ्तार किया है। इनकी गिरफ्तारी से नक्सल संगठन को एक बड़ा आघात पंहुचा है। जिसके पीछे की वजह बताई जा रही है कि नर्मदा नक्सलियों के दंडकारण्य जोन के चप्पे.चप्पे से वाकिफ है। दंडकारण्य और गढ़चिरौली के क्षेत्र में होने वाली बड़ी नक्सल घटनाओं में तैयार की जाने वाली रणनीति में इसकी अहम भूमिका रहती थी। बस्तर के डीआईजी सुंदरराज पी ने बताया कि छत्तीसगढ़ पुलिस भी पूछताछ के लिए एस.पी स्तर के अधिकारियों की टीम गठित कर महाराष्ट्र भेजेगी। जिससे उन्हें उम्मीद है कि दोनों ही बड़े नक्सलियों से कुछ अहम सुराग हाथ लग सकते हैं। नर्मदा डीकेएफजेडसी की भी सदस्य है और उसके पति किरण नक्सलियों की प्रचलित पत्रिका प्रभात के लिए लंबे समय से लिखता रहा है। जिससे पुलिस अधिकारियों को उम्मीद है कि इन दोनों के पास से छत्तीसगढ़ के नक्सल संगठन की अहम जानकारियां हो सकती हैं।
नक्सली सिस्टम में शहरी
एक तरफ नक्सलियों की सलतनत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है प्रदेश में किसी की भी सरकार आये या जाये। दूसरी ओर शहरी नक्सली और जंगली नक्सली को लेकर सियासी बहस ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। जैसा कि मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने बीजेपी के संकल्प पत्र में सिस्टम में शहरी नक्सली घुसने के आरोपों पर कहा कि यदि वो आज हैं तो रमन सिंह को उनके नाम सार्वजनिक करना चाहिए और प्रमाणित करना चाहिए। उन्होंने रमन सिंह से पूछा कि जब शहरी, नक्सली सिस्टम में घुसा तो 15 साल तक क्या कर रहे थे। यदि उन्हें मालूम था तो क्या कार्रवाई की। रमन सिंह पर हमला करते हुए भूपेश बघेल ने कहा कि जिस अधिकारी वी.के चैबे ने शहरी नक्सलियों के नेटवर्क को तोड़ा उसकी मौत की जांच रमन सिंह की सरकार ने नहीं कराई। इस घटना में 29 जवान शहीद हो गए और अधिकारी को गालंट्री एवार्ड दे दिया गया। भाजपा की ऐसी कार्यशैली हो सकती है लेकिन कांग्रेस की नहीं।
जाहिर है कि नक्सलियों की बढ़ती वारदातें और कुछ इनामी नक्सलियों के सरेंडर कर देने से नक्सलवाद खत्म नहीं होगा। माओवादियों के खिलाफ नरम उपाय के बजाय दोतरफा आक्रमण की रणनीति को अंजाम देना होगा। ऐसे कदम उठाए जाएं ताकि नक्सली हिंसा का सफाया किया जा सके।



स्काई वाॅक पर राजनीति

  
डाॅ रमन सिंह की स्काई वाॅक योजना को सरकार भ्रष्टाचार का स्मारक बताते हुए इसे जमीं दोज करने जा रही है। सवाल यह है कि डेढ़ किलोमीटर के स्काई वाॅक को नष्ट कर देने से सरकार और जनता को मिलेगा क्या?


0 रमेश कुमार ’’रिपु‘‘
            मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक बार फिर विपक्ष की नजर में किरकिरी बने हुए हैं। वजह यह है कि करीब पचास करोड़ की लगात से बन रहे स्काई वाॅक को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तोड़ने के संकेत दे दिये हैं। वैसे भी स्काईवाॅक परियोजना को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह हरी झंडी दिखाये थे, उस दौरान प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सहित कई सामजिक कार्यकत्र्ताओं ने इसके विरोध में धरना और प्रदर्शन किया था। लेकिन तात्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह एवं लोकनिर्माण मंत्री राजेश मूणत ने किसी की भी मांगें नहीं मानी थी। स्काई वाॅक योजना के पीछे मंशा यह थी कि इससे पैदल चलने वाले यात्रियों को सुविधा होगी और ट्रैफिक दबाव कम होगा। निर्माण कार्य सतत जारी रहा। इस परियोजना को दिसंबर 2018 तक पूरा करना था। इस परियोजना का ठेका एक्सप्रेस वे लिमिटेड लखनऊ स्थित कंपनी को दिया गया है। प्रदेश में सरकार बदली तो एक बार फिर स्काई वाॅक का मुद्दा गरमाया। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समक्ष स्काई वाॅक की बात रखी और उन्होंने उनकी मांगी मान ली। मेकाहारा चैक से शास्त्री चैक होते हुए जय स्तंभ चैक तक बन रहे डेढ़ किलोमीटर लंबे स्काई वॉक को तोड़कर जमींदोज करने का निर्णय लिया गया है।
स्काई वाॅक के तोड़े जाने के निर्णय को भाजपा बदलापुर की राजनीति करार दे रही है। तत्कालीन लोकनिर्माण मंत्री राजेश मूणत कहते हैं,यह हमारी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। यदि इसे तोड़ा जायेगा तो पार्टी शांत नहीं बैठेगी। नयी सरकर पूर्व सरकार के काम काज पर बदले की भावना से ऊंगली उठा रही है। काम काज का यह तरीका जायज नहीं है’’। सवाल यह है कि इसकी उपयोगिता भविष्य में होगी कि नहीं, इस पर सरकार को आम लोगों की राय शुमारी लेनी चाहिए। महापौर प्रमोद दुबे आम लोगों से बातचीत कर उनका पक्ष जानने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा के प्रवक्ता एवं एनआरडीए के पूर्व चेयरमैन संजय श्रीवास्तव कहते हैं,उनकी राय शुमारी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वो सरकार के पक्ष की ही बात करेंगे और उसी के अनुसार ही काम करेंगे। कांग्रेस की सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है। डॉक्टर रमन सिंह की सरकार ने शहर में पैदल यात्रा करने वालों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए,इस महत्वाकांक्षी योजना की नींव रखी थी। उसे तोड़ना न केवल सरकारी धन की बर्बादी है,बल्कि इससे पदयात्रियों को शहर में मिलने सुविधाएं भी नहीं मिल सकेंगी’’।
सोशल मीडिया में बहस
आरटीआई एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने इसे जनहित की लड़ाई मानते हैं।   जिस इलाके में इसका निर्माण करवाया जा रहा था, वह पहले से शहर का सबसे अधिक भीड़भाड़ और भारी ट्रैफिक दवाब वाला क्षेत्र है। स्काई वॉक सरकारी धन की फिजूल खर्ची थी। इससे शहर की सुन्दरता खराब हो रही है’’। गौरतलब है कि 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद मुख्यमंत्री बनने पर भूपेश बघेल ने स्काई वाॅक के निर्माण पर रोक लगाते हुए कहा था कि जनता की रायशुमारी के बाद इस दिशा में ठोस निर्णय लिया जायेगा। स्काईवॉक के तोड़ने की घोषणा होते ही सोशल मीडिया में एक बहस शुरू हो गई है कि इसका क्या किया जाये। बहुत लोग इसके पूर्ण निर्माण के पक्ष में है और कुछ सरकार के निर्णय को सही ठहरा रहे हैं।
तोड़ने पर दस करोड़ लगेंगे
भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे पर आमने सामने आ गए हैं। भाजपा शुरूआत से ही भूपेश बघेल पर बदलापुर की राजनीति करने का आरोप लगा रही है। स्काई वाॅक का लगभग 65 प्रतिशत निर्माण हो गया है। ऐसी स्थिति में इसे यदि तोड़ा जाता है तो करोड़ों का नुकसान होगा। भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य विजय जयसिंघानी कहते हैं इसे तोड़ने में करीब दस करोड़ का खर्चा आयेगा। जैसा कि सरकार का कहना है कि पैदल चलने वालों के लिए यह उपयोगी नहीं है तो इसे फुटकर बाजार के रूप में भी उपयोग लाया जा सकता है। राय शुमारी यदि इसके तोड़े जाने में पक्ष में है तभी इसे तोड़ा जाय। साहित्यकार गिरीश पंकज कहते हैं, इसे स्काई बाजार बना दिया जाय। मालवीय रोड पर बैठने वाले दुकानदार यहाँ दुकान सजाएं। कपड़ा, फल, चश्मा, पर्स, खिलौने सब यहाँ बिके। व्यापारी अरूण शुक्ला कहते हैं,इसे तोड़कर ओवरब्रिज बनाना या अंडर वे बनाना सर्वोत्तम विकल्प है। 
भ्रष्टाचार का स्मारक हैः शुक्ला
प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि स्काई वाॅक भारतीय जनता पार्टी के बेलगाम कमीशनखोर अदूरदर्शी विकास का परिणाम है। राजधानी रायपुर के सीने पर स्काई वॉक ऐसा नासूर बन चुका है, जिसका निदान बिना बड़ी शल्य क्रिया के सम्भव नहीं है। रमन सरकार के भ्रष्टाचार का बड़ा स्मारक है स्काई वाॅक कहें तो गलत नहीं होगा। बताया गया था कि इसके निर्माण से जनसामान्य को पैदल चलने में आसानी होगी। लेकिन इस स्काई वॅाक ने अम्बेडकर अस्पताल से लेकर पुराने बस स्टैंड तक की सड़क के दोनों छोर की दूरियांे को भी बढ़ा दिया है। सड़क के इस पार से उस पार भी पैदल चलने वाले नहीं जा सकते। स्काई वाॅक के नीचे पांच फी गड्ढे वाला और तीन फीट ऊंचा डिवाइडर बना दिया गया है। स्काई वाॅक पर चढ़ने के लिए बीस से पच्चीस फिट ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना पड़ेगा। जो कि बुजुर्गो के लिए कष्टदायी होगा। स्काई वाॅक के कारण सड़क की चैड़ाई भी कम हो गयी। कायदे से अदूरदर्शीपूर्वक स्काई वाॅक का निर्माण कर जनता के पैसे की बर्बादी और परेशान करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह एवं पूर्व लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत को अपनी गलती स्वीकार कर रायपुर की जनता से माफी मांगनी चाहिए।
 जिम्मेदारों से हो वसूलीः डॉ गुप्ता
आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ राकेश गुप्ता ने कहा कि इसको बनाने में जिन जिन लोगों ने इसका प्रस्ताव दिया। निरीक्षण किया और वे तमाम लोग जिनके हस्ताक्षर इस प्रोजेक्ट पर मौजूद हैं। उन सभी से इसकी भरपाई होनी चहिए। इसके अलावा उनके विरुध्द अपराधिक प्रकरण भी दर्ज किया जाना चाहिए। भाजपा को तो खुश होना चाहिए कि उसकी सरकार की गलती को मुख्यमंत्री सुधार रहे हैं।
निर्णय स्वागत योग्यःविकास उपाध्याय
पश्चिम विधानसभा रायपुर के विधायक विकास उपाध्याय ने कहा कि पूर्व लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत की हठधर्मिता की स्मारक के रूप में स्काई वॉक खड़ी हुई है। जनता स्काई वॉक निर्माण के समय से लेकर अब तक इसका विरोध कर रही है। राजधानी में स्काई वॉक की कोई उपयोगिता नहीं है। जिस स्थान पर स्काई वॉक बनाया गया है असल में वहां फ्लाईओवर ही बनना था, जो ट्रैफिक समस्या को निजात दिलाता। 
स्काई वाॅक को बहुउपयोगी बनायें
स्काई वाॅक सत्ता पक्ष की नजरों में जायज नहीं है। सवाल यह है कि पैदल चलने वाले इसे कैसे स्वीकार करें। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि स्काई वाॅक के निमार्ण से पहले भविष्य में इसकी उपयोगिता किस तरह हो सकती है, भावी उपयोगकर्ताओं से परामर्श लेना चाहिए था। प्रथम प्रवक्ता आम लोगों ने अपनी राय साझा की। उनके अनुसार पैदल यात्रियों को मेट्रो या ओवरब्रिज का उपयोग नहीं करने के लिए जाना जाता है। क्योंकि उन्हें सीढ़ियों पर बातचीत करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है। इसलिए चढ़ाई या नीचे आने के लिए एस्केलेटर जरूरी है। यह समझा जाता है कि कुछ एस्केलेटर योजना का एक हिस्सा हैं,लेकिन ये बहुत ही अपर्याप्त होंगे। उनकी संख्या बढ़ानी होगी। पैदल चलने वाले लोग सड़क के दोनों ओर स्थित दुकानों,और अन्य कार्य स्थलों पर जाने के लिए बाजार में आते हैं। वे दुकान आदि के लिए निकटतम मार्ग लेने वाले स्काईवॉक का उपयोग करने के बजाय सड़क पर चलना चाहेंगे। यह आवश्यक है कि प्रत्येक 150-200 मीटर पर दोनों तरफ एस्केलेटर की व्यवस्था की जाए ताकि, उन्हें स्काईवॉक पर आकर्षित किया जा सके। स्काई वाॅक से यह होगा कि कहीं भी सड़क पार करने की आदत को हर जगह खत्म कर देगा, जैसा कि वे वर्तमान पैदल यात्री कर कर रहे हैं। यदि इसे नहीं तोड़ना है तो फिर क्रासिंग पैदल यात्री को मुक्त बनाने के लिए रोड क्रॉसिंग सिग्नल के दोनों ओर एस्केलेटर होना चाहिए। हमें स्काईवॉक के उपयोगकर्ताओं से दूरियां चलने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इसलिए स्काईवॉक पर चलती बेल्ट प्रदान करना अनिवार्य है। क्योंकि हमने उन्हें बैंकॉक और दिल्ली हवाई अड्डे के टी 3 टर्मिनल सहित विभिन्न हवाई अड्डों पर देखा है। इसे मूविंग वॉकवे, ऑटोवॉक, ट्रैवलेटर या ट्रैवलर कहा जाता है। यह एक धीमी गति से चलने वाला कन्वेयर तंत्र है। ये अक्सर जोड़े में स्थापित होते हैं। दोनों दिशाओ के लिए एक।स्काईवॉक को खारिज करना एक वांछनीय विकल्प नहीं है। यह सार्वजनिक निधियों का परिहार्य अपव्यय है। जाहिर है कि सुझाई गई सुविधा को पूरा करने में अतिरिक्त खर्च आयेगा साथ ही एक लम्बा रास्ता भी तय करना होगा। सड़ाकों को पैदल यात्री रहित बनाना होगा। स्काई वाॅक तोड़ने की बजाय इसे बहुउपयोगी बनाया जाये।
बहरहाल स्काई वाॅक दो सियासी दलों की दांतों के बीच फंस गया है। कांग्रेस इसे तोड़ कर अपनी ताकत की हैसियत का परिचय देना चाहती है और भाजपा इसे बचाकर बताना चाहती है कि उसका निर्णय सही था। कायदे से सरकार और विपक्ष को इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए,इसलिए कि दोनों परिस्थितियों में दांव पर जनता का पैसा लगा है।