Thursday, May 26, 2022

जंगल से जंगली बर्ताव




सरकार ने तय कर लिया है कि जंगल को जंगल नहीं रहने देंगे। इसलिए हसदेव अरण्य क्षे़त्र में कोयला के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश को ठेगा दिखाते हुए पाँच लाख हरे पेड़ों की हत्या की अनुमति दे दी।
0 रमेश कुमार ‘रिपु’









                जंगल है तो हरियाली है। हरियाली है तो पानी है। पानी है तो जीवन है। जीवन है तो राष्ट्र है। मगर सरकार हजारों आदिवासियों की जिन्दगी और जानवरों की जान को नज़र अंदाज कर जंगल के साथ जंगली बर्ताव कर रही है। धड़ल्ले से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश को ठेगा दिखा कर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मान ली। और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड कंपनी जो कि अडानी समूह की है,उसे छत्तीसगढ़ सरकार ने परसा ईस्ट केते बासन खदान और परसा खदान के खनन की अनुमति दे दी है। इसमें 4 लाख 50 हजार पेड़ काटे जाएंगे। इससे हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ेगा। कोयला खदान शुरू होने पर बांगो परियोजना पर खतरे की आशंका है। हसदेव नदी में जो पानी आता है,वह इसी जंगल और पहाड़ से होकर आता है। इसी के दम पर बांगो परियोजना संचालित है। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव मानते हैं,कि हसदेव के बचाव के लिए ‘नो गो एरिया’ ही एकमात्र तरीका है।
दरअसल विकास की अवधारणा पर जोर देने वाली सरकार प्राकृतिक संसाधनों पर अपना हक़ समझती है। इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार ने केन्द्र सरकार के समक्ष अपना परिवाद भी नहीं भेजी। वैसे कई मामले में छत्तीसगढ़ सरकार का केन्द्र सरकार से तनातनी रहती है। इतना ही नहीं कांग्रेस अडाणी समूह का हमेशा विरोध करती है। जाहिर सी बात है कि भूपेश सरकार की इस मामले में मौन सहमति है। जबकि सात महीने पहले हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के लोग सरगुजा, कोरबा और सूरजपुर जिले से पैदल चलकर राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश से मिले थे। समिति के अध्यक्ष उर्मेश्वर सिंह आर्मो ने  मुख्यमंत्री को याद दिलाया,कि 2015 में राहुल गांधी मदनपुर आये थे। उन्होंने कहा था, इस क्षेत्र को बचाने का संघर्ष कर रहे हैं, तो हम आपके साथ खड़े हैं। मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि गांँव और जंगल को उजड़ने नहीं देंगे। ग्राम सभा के फर्जी प्रस्ताव से खनन स्वीकृति पाने के आरोपों की भी जाँंच की बात कही थी। अब अडानी के पक्ष में फर्जी ग्रामसभा करके कोल ब्लॉक की स्वीकृति दी जा रही है। जाहिर सी बात है 841.538 हेक्टेयर वन भूमि पर इस परियोजना के शुरू होने से पूरे क्षेत्र में पेड़ों की कटाई होगी। वहीं सैकड़ों ग्रामीणों को अपना गांँव-घर छोड़कर जाना पड़ेगा। जंगलों में रहने वाले जानवरों को भी अपना ठिकाना बदलना पड़ेगा।  
प्रदेश के मुखिया की चुप्पी पर हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने खनन को रोकने  हाई कोर्ट में याचिका दायर की। लेकिन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 11 मई 2020 को भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इससे ही जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार,राज्य सरकार,राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड और परसा केते कॉलरीज को चार सप्ताह में नोटिस का जवाब मांगा है। इससे हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की उम्मीद जगी है। सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर है।  
केन्द्र ने अनदेखी किया
हसदेव अरण्य जंगल ‘नो गो एरिया’ पहले से ही घोषित है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में परसा ईस्ट केते बासन खदान को दी गई अनुमति को ही रद्द कर दिया था। ट्रिब्यूनल ने भारतीय वन्यजीव संस्थान और इंडियन काउंसिल आफ फारेस्ट्री रिसर्च से इस क्षेत्र में खनन से क्या प्रभाव पड़ेगा,उसका अध्ययन कराने को कहा था। लेकिन केन्द्र सरकार ने अध्ययन कराए बिना ही खदानों के खनन की अनुमति दे दी। अब सात साल बाद वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट अपनी 277 पेज की रिपोर्ट में कहा, देश के एक प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में हैं। यहांँ हाथियों और इंसानों के संघर्ष में औसत हर बरस 15 जन हाॅनि केवल छत्तीसगढ़ में होती है। इस क्षेत्र में पूरे वर्ष भर हाथी के अलावा अन्य वन्य जीव रहते हैं। कोरबा वन मंडल में हसदेव अरण्य कोलफील्ड क्षेत्र के पास बाघ भी देखा गया है। यह क्षेत्र अचानकमार टाइगर रिजर्व, भोरमदेव वन्यजीव अभ्यारण और कान्हा टाइगर रिजर्व से जुड़ा हुआ है।  
रिपोर्ट नहीं ली गई
भारत सरकार की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 की गई अनुशंसा को निरस्त कर दिया था। जबकि एक हजार 898 हेक्टेयर में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की थी। लेकिन सन् 2012 में स्टेज 2 का फाइनल क्लीयरेंस जारी होने पर 2013 में खनन शुरू हो गया। छत्तीसगढ़ के सुदीप श्रीवास्तव ने इसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल  प्रिंसिपल बेंच में अपील दायर की। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भारतीय वानिकी अनुसंधान, शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान से अध्ययन कराने की सलाह दी। वर्ष 2017 में केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केते एक्सटेंशन का अप्रूवल इस शर्त के साथ जारी किया कि दोनों संस्थाओं से हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड की जैव विविधता पर रिपोर्ट ली जाएगी।
खत्म हो जायेगा जंगल
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का कहना है,सरकार ने परसा कोयला खदान के साथ परसा ईस्ट केंते बासन एक्सटेंशन खदान के दूसरे चरण को भी मंजूरी दे दी है। इसकी वजह से एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में समृद्ध जैव विविधता वाला जंगल बर्बाद हो जाएगा। इसका असर नदियों पर भी पड़ेगा। सैकड़ों लोगों को अपने गांँव से उजड़ना पड़ेगा। वहीं हसदेव अरण्य की चिंता केवल देश में ही नहीं, दुनिया  भर के पर्यावरण प्रेमी को है। इसलिए विरोध कर रहे हैं। ब्रिटेन,आस्टेªलिया में लोगों ने हसदेव अरण्य को बचाने के लिए सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया। बस्तर के ग्रामीण इलाकों के हजारों आदिवासी सरकार के इस अव्यावहारिक निर्णय का विरोध कर रहे हैं। बिजली के लिए कोयला बहुत जरूरी है,लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा उससे भी ज्यादा जरूरी है। भीषण गर्मी में छत्तीसगढ़ का पारा 46-47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंँच जाता है। ऐसे में जंगल की कटाई से बिलासपुर,कोरबा,सरगुजा में तापमान 50 डिग्री सिल्सियस तक पहुंँच सकता है। और हरित छत्तीसगढ़ बनाने की योजना को भी नुकसान होने का अंदेशा है। जरूरी है कि कोयला के लिए खनन वहांँ होना चाहिए,जहांँ जंगल कम है,बसाहट नहीं है और जंगली जानवर कम हैं।
भूपेश मान गये
एक ओर सरकार कहती है कि हमने अनुसूचित जनजाति को वन अधिकार के तहत पट्टे दे दिए हैं और दूसरी ओर वहांँ रहने वाले ग्रामीण विकास की तथाकथित आंधी में उजाड़ दिए जाते हैं। अबूझमाड़ की रावघाट संघर्ष समिति का भी दर्द यही है। वह भी हसदेव के परसा कॉल ब्लॉक में होने वाली पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं। गौरतलब है,राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोतं रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से अप्रैल में मुलाकात कर कहा, उनके राज्य में कोयला संकट खड़ा होने से बिजली घरों के संचालन में दिक्कत आ रही है। भूपेश सरकार ने उनकी बात मान ली और परसा कोयला खदान के लिए वन भूमि देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। केंद्र सरकार ने 2019 में ही मंजूरी दे दी थी। बहरहाल जंगल कब तक जंगल रहेंगे,ंयह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्भर करता है।