Monday, October 2, 2023

कांग्रेस की जमीन खिसकाने गुजरात रणनीति

"कांग्रेस कह रही है बीजेपी के सियासी गोदाम में जीताऊ उम्मीदवार नहीं हैं,इसलिए वह सांसद और केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव लड़ा रही है। जबकि बीजेपी हाईकमान ने एंटीइन्कम्बेसी को कम करने ऐसा कर रही है। जैसा कि गुजरात में किया था। मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों की टिकट काट दिये गये थे, और 156 सीटें जीती थी। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ चुनाव में टिकट किसी एक को मिलेगा। जीतेगा एक पक्ष, बाकी हारेंगे ही। हर पार्टी की टिकट देने की अपनी -अपनी रणनाीति है। मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने जा रहे चुनाव में बीजेपी अपना चोला बदल रही है। रणनीति बदल दी है।उसका अपना- अपना एजेंडा हैं। होना भी चाहिए। सांसदों को टिकट दिया गया है। केन्द्रीय मंत्रियों को टिकट दिया गया है। हो सकता है कई मंत्री और विधायकों को टिकट न भी मिले। अभी तक मध्यप्रदेश की जारी 78 उम्मीदवारों की सूची में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं है। इसके पीछे पार्टी की अपनी सियासी वजह है। यह माना जा रहा है,तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री रहे चेहरे को पार्टी टिकट नहीं देगी। डरी हुई है बीजेपी - कांग्रेस भगवा छत्तरी के नीचे क्या हो रहा है, उसे लेकर कांग्रेस खेमें खलबली है। मध्यप्रदेश में बीजेपी की दूसरी सूची जारी होने पर विपक्ष आकलन करना शुरू कर दिया। करना भी चाहिए। लेकिन जिस तरह वह प्रचार कर रहा है। वह हैरानी वाला है। कांग्रेस कह रही है,कि बीजेपी डरी हुई है। इसीलिए उसने तीन केन्द्रीय मंत्रियों सहित चार सांसदों को टिकट दिया है। क्या विपक्ष के प्रचार का सच यही है,या फिर मोदी की रणनीति कुछ और है? केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव बीजेपी हाईकमान लड़ा रहा है,तो इसके पीछे वजह भी है। पहला यह कि चार बार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी की 18 साल की सत्ता के एंटीइन्कम्बैसी की तपिश कम करने के लिए मोदी ने ऐसा किया है। दूसरा शिवराज सिंह चौहान को अप्रत्यक्ष रूप से यह बता दिया गया कि सी.एम की कुर्सी के स्वयंवर के लिए हमने उम्मीदवार उतार दिये हैं। जो जीत कर आएगा,उन्ही में से किसी को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी। बड़े नेताओं का दम.. केन्द्रीय गृहमंत्री प्रहलाद पटेल पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ेंगे। कैलाश विजयवर्गीय बीजेपी महासचिव हैं । दस साल बाद मध्यप्रदेश की सियासत का स्वाद चखेंगे। इनका कहना है, कि लड़ने की इच्छा नहीं थी। अब बड़े नेता हो गए हैं। कहां हाथ जोड़ने जाएंगे। फग्गन सिंह कुलस्ते छह बार लोकसभा और एक दफा राज्य सभा सांसद रह चुके हैं। तैंतीस साल बाद विधान सभा चुनाव लड़ेंगे। मंडला सीट से सांसद हैं । मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर मुरैना सीट से सांसद है। तीन दफा लोकसभा सांसद रह चुके हैं। दो बार विधायक भी। चुनाव प्रबंधन समिति के अघ्यक्ष हैं । जबलपुर के सांसद राकेश सिंह,सीधी की सांसद रीति पाठक,सतना सांसद गणेश सिंह और होशंगाबाद सांसद उदय प्रताप सिंह। बड़े नेताओ के दम पर बीजेपी चुनाव जीतना चाहती है। गुजरात माॅडल एम.पी.में.. ऐसा लगता है बीजेपी हाईकमान कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की चुनाव हार के बाद गुजरात माॅडल पर चुनाव लड़ना चाहती है।जैसा कि 2021 में गुजरात की सी.एम. विजय रूपणी सहित सभी मंत्रियों का टिकट काट दिया गया था। पहली बार भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया था और 156 सीटें बीजेपी जीती थी। वही सियासी रणनीति मोदी मध्यप्रदेश में भी अपना रहे है। यानी आने वाले सूची में कई मंत्रियों के टिकट कट सकते हैं। कई विधायकों को भी। शिवराज की घेराबंदी... कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रियों और अफसरों से बड़े बुझे मन से थैक्यू वेरी मच कहा। बात साफ है, कि पार्टी हाईकमान शिवराज सिंह चौहान को टिकट नहीं देना चाहती। मोदी ने शिवराज सिंह चौहान की एक तरीके से घेराबंदी की है। तीन केन्द्रीय मंत्री और चार सांसदों को टिकट देकर। मोदी की गुडबुक में शिवराज का नाम नहीं है। शिवराज को यह तभी समझ लेना चाहिए था,जब व्यापम मामले में उन्हें उनके खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश मोदी ने दिये थे। बहरहाल इन केन्द्रीय मंत्रियों के समक्ष भी बड़ी चुनौती है और उन्हें अपना सियासी दम दिखाना है, कि वो पार्टी के केवल बड़े नेता ही नहीं हैं,बल्कि जनता के बीच भी अपना दमखम रखते है। बीजेपी में दूसरी सूची में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम नही होने का मतलब है कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेरना। जैसा कि हाई कमान ने 2018 में कर्नाटक में बी.एस येदियुरप्पा को शिकारीपुरा से चुनाव लड़ाया था और बी श्रीरामुलु को मोलाकमुरू से, दोनो जीत गए थे। यानी एंटीइनकम्बेसी को कम करना है,तो नए उम्मीदवार उतार दो। पुराने चहेरे देख- देख कर जनता ऊब जाती है। टिकट वितरण में तब्दीली... मध्यप्रदेश में अभी तक 35 बीजेपी के बड़े नेता और पूर्व विधायक बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस कह रही है बीजेपी के सियासी गोदाम में जीताऊ उम्मीदवार नहीं हैं,इसलिए वह सांसद और केन्द्रीय मंत्रियों को विधान सभा चुनाव लड़ा रही है। क्यों कि उसे शिवराज पर अब भरोसा नहीं रहा। सवाल यह है कि केन्द्रीय मंत्री और सांसदों का विधान सभा का चुनाव लड़ने पर इसे सियासी प्रमोशन कहें या फिर डिमोशन। यह ताज्जुब वाली बात है कि बीजेपी केन्द्र के लिए अपनी पार्टी का चेहरा बताती है, मगर राज्य के चुनाव के लिए नहीं। 2018 के चुनाव में जनआर्शीवाद यात्रा में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने प्रमोट किया था,लेकिन 2023 केे चुनाव में नहीं। हिमाचल प्रदेश में काग्रेस ने अपनी सियासी रणनीति बदली थी। जो अपने क्षेत्र में चर्चित हैं। अपने क्षेत्र के क्षत्रप हैं। उन्हें टिकट दिया। बीजेपी भी इस बार ऐसा ही करती दिख रही है। रक्षात्मक मुद्रा में बीजेपी.. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी रक्षात्मक मुद्रा में है। क्यों कि तीन माह पहले तक बीजेपी की स्थिति जैसी थी, वैसी अब नहीं है। पार्टी यह मानकर चल रहा है,कि उसका वोट बिखर नहीं रहा है। केवल प्रत्याशी की नाराजगी है। क्यों न प्रत्याशी बदल दिए जाएं। यह सियासी प्रयोग गुजरात की तरह सफल भी हो सकता है। जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने छत्तीसगढ़,में पूरी ग्यारह सीट पर उम्मीदवार बदल दी थी। दस सीट जीती थी। यही मध्यप्रदेश और राजस्थान में हुआ। राजस्थान में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली और मध्यप्रदेश में सिर्फ एक सीट मिली। तो कांग्रेस को नुकसान... बीजेपी डरी है,यदि कांग्रेस यह सोच रही है, तो उसे नुकसान हो सकता है। बीजेपी में हलचल है,ऐसा कांग्रेस सोच सकती है। बीजेपी की नई रणनीति के तहत कांग्रेस को काऊंटर सोच विकसित करनी पड़ेगी। वहीं सांसद का चुनाव उम्मीदवार मोदी लहर में जीत गए, लेकिन विधान सभा चुनाव में मेहनत करनी पड़ेगी। सवाल यह है कि मोदी ने मास्टर स्ट्रोक खेला है या फिर सियासी प्रयोग किया है। वैसे मोदी भोपाल हो या फिर अन्य राज्यों में अपने एक घंटे के भाषण में पैतालीस मिनट कांग्रेस को कोसते है। सच यह है,कि मोदी कांग्रेस को कोस- कोस कर उसे खड़ा कर दिये हैं।

Friday, September 22, 2023

एंकरों का बाॅयकाॅट,टी.आर.पी.को लगी वॉट

"क्या यह मान लिया जाए कि सन् 2014 के बाद से पत्रकारिता का चेहरा बदल गया है। उसे रतौंधी और दिनौधी हो गयी है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने नफरती एंकरों की दुकान का बाॅयकाॅट करने फैसला किया है।इंडिया गठबंधन ने जिस मीडिया को गोदी मीडिया का नाम दे रखा है,क्या उसका अंत हो जाएगा। अगला लोकसभा का चुनाव गोदी मीडिया बनाम इंडिया मीडिया के बीच होगा।" - रमेश कुमार "रिपु" क्या पत्रकारिता के नए युग की शुरूआत होने वाली है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने चौदह एंकरों का बाॅयकाॅट करने का फैसला किया है। इंडिया गठबधंधन के बैन करने से क्या देश की राजनीति की दिशा बदल जाएगी? या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया का स्वरूप। इंडिया गठबंधन ने जिस मीडिया को गोदी मीडिया का नाम दे रखा है,क्या उसका अंत हो जाएगा। अगला लोकसभा का चुनाव गोदी मीडिया बनाम इंडिया मीडिया के बीच होगा। ये सवाल नौ साल बाद उठ रहे हैं। जिन एंकरों के कार्यक्रमों में इंडिया गठबंधन ने अपने प्रवक्ताओं को नहीं जाने को कहा है,जाहिर सी बात है इससे न्यूज चैनलों की टीआरपी गिर जाएगी। इस समय जिन न्यूज एंकरों के शो को बाॅयकाॅट किया गया है वो एंकर भारी नाराज हैं। जैसा कि न्यूज एंकर रुबिका लियाकत ने इंडिया गठबंधन के बहिष्कार की लिस्ट में अपना नाम पर होने पर लिखा है, इसे बैन करना नहीं,डरना कहते हैं। बहिष्कार की वजह.. सवाल यह है कि दिल्ली में शरद पवार के घर पर हुई बैठक के बाद चौदह टी.वी.एंकरो की सूची क्यों बनी जिनके कार्यक्रम में इंडिया गठबंधन के नेताओ के नहीं जाने की बात कही गयी। इंडिया गठबंधन ने चौदह एंकरो का बाॅयकाॅट क्यों किया। जबकि मीडिया की ताकत से हर कोई परिचित है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक राजनीतिक संगठन ने मीडिया के बाॅयकाॅट का फैसला किया है। एक कहावत है, किसी की राजनीति को मार देना है तो उसका नाम ही न लो। तो क्या यह मान लिया जाए कि टी.वी. शो में जब इंडिया गठबंधन का कोई प्रवक्ता नहीं होगा तो बीजेपी की चर्चा नहीं होगी। कोई सियासी बहस नहीं होगा। नतीजा शाम को जो सियासी बहस का बाजार टी.वी. में दिखता है वो बंद हो जाएगा। यानी चुनाव तक विपक्ष टी.वी.पर नहीं आएगा। इंडिया गठबंधन का ऐसा फैसला लेने के पीछे वजह साफ है। टी.वी डिबेट शो में एंकर बीजेपी प्रवक्ताओं को ज्यादा समय देते हैं। और पूरा समय मोदी सरकार की तारीफ करते हैं। हैरानी वाली बात है कि एंकर स्वयं बीजेपी का प्रवक्ता बन जाते हैं। सवाल कुछ होता है और बीजेपी प्रवक्ता जवाब कुछ देते हैं,लेकिन एंकर उन्हीं का पक्ष लेते है। चित्रा त्रिपाठी,अंजना ओम कश्यप और रूबिया लियाकत अक्सर ऐसा ही करती है। टी.वी.में सार्थक बहस की बजाए सम्प्रदायिक तनाव वाली बातें होती है। जैसा कि कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, हर शाम पाँच बचे कुछ चैनलों पर नफरत का बाजार सज जाता है। पिछले नौ साल से यही चल रहा है। अलग-अलग पार्टियों के कुछ प्रवक्ता इन बाजारों में जाते हैं। कुछ एक्सपर्ट जाते हैं। कुछ विश्लेषक जाते हैं। लेकिन सच तो ये है कि, हम सब वहां उस नफरत बाजार में ग्राहक के तौर पर जाते हैं। पत्रकारिता बदल गयी.. क्या यह मान लिया जाए कि सन् 2014 के बाद से पत्रकारिता का चेहरा बदल गया है। उसे रतौंधी और दिनौधी हो गयी है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने नफरती एंकरों की दुकान का बाॅयकाॅट करने फैसला किया है। गौरतलब है कि 11 मार्च को सुधीर चौधरी के डीएनए प्रोग्राम में एक जिहाद चार्ट दिखाया गया था। जिसमें उन्होंने जिहाद के अलग-.अलग रूप बताए थे। हालाँकि इस शो के बाद सोशल मीडिया समेत कई जगहों पर इस कारण उन पर इस्लामिक कट्टरपंथियों और सेकुलरों ने निशाना साधा और उनके खिलाफ कार्रवाई की माँग की थी। उनके खिलाफ कर्नाटक में गंभीर धाराओं में मामला दर्ज हुआ। हाईकोर्ट ने कहा कि, पहली नजर में सुधीर के खिलाफ मामला बनता है। जांच में सही पाया गया तो कार्रवाई होगी। नया लोकतंत्र गढ़ा जा रहा.. मीडिया यदि फेक न्यूज के जरिए सत्ता पक्ष की छवि खराब करने की कोशिश करेगा तो उसे लोकतंत्र का निष्पक्ष पाया नहीं माना जा सकता। और यदि मीडिया किसी एक पार्टी के लिए काम करने लगेगा तो बात साफ है कि, वह किसी एक पार्टी को खत्म करने की सुपाड़ी ले रखा है। पूंजी का ऐसा खेल देश में पहली बार देखा जा रहा है। सवाल यह है कि चौदह एंकर ही क्यों,और क्यों नहीं? इंडिया गठबंधन का मानना है कि ये एंकर लोकतंत्र को खत्म करने का काम कर रहे हैं। इससे इंकार नहीं है कि, तमाम चैनलों के भीतर कारपोरेट का पैसा लगा हुआ है। सरकारी विज्ञापनों के लिए वो सरकार का पक्षधर हो गए हैं। एनडीडी टी.वी. अडानी का है और नेटवर्क 18 मुकेश अंबानी का। जाहिर सी बात है कि विपक्ष को मीडिया खत्म करने की जो रणनीति बनाई उसके जाल में फंसने से बचने इंडिया गठबंधन ने चुनाव से पहले एंकर के जरिए टी.वी.चैनल का बाॅयकाॅट किया है। वैसे चैनल के अपने दर्शक हैं। चैनल की अपनी साख है। स्वायता है। उसकी टी.आर.पी.है। उस पर नकेल कैसे लगाया जा सकता है। सत्ता के समानांतर एक लकीर खींचने के लिए इंडिया गठबंधन ने एंकरों के बाॅयकाॅट का फैसला किया। क्यों कि विपक्ष की बात चैनलों के जरिए जनता तक आ नहीं रही थी। इंडिया गठबंधन जनता को यह बताना चाहता है कि, एंकर सत्ता पक्ष के लिए लोकतंत्र गढ़ रहे है। चैनल यह मानते हैं कि वह केन्द्र सरकार के साथ रहेंगे तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी। घपले- घोटाले सामने नहीं आएगा। चैनल वालों का अपना बिजेनेस माॅडल बदल गया है। 2014 के बाद सरकार ने मीडिया पर चार गुना पैसा खर्च करने लगी। इडिया टीवी 638 करोड़,न्यूज सेंशन 177 करोड़ रुपए,टीवी18, 7808 करोड़ रुपए एनडीटीवी का सालाना 140 करोड़ रुपए आय है। अब सरकार ने जिन राज्यों में गैर बीजेपी की सरकार है, वहां इन चैनलों के विज्ञापन में कटौती करने का फैसला किया है। हो सकता है, आने वाले समय में इंडिया गठबंधन और एंकरो की सूची जारी करे। बीजेपी का कहना है कि, इंडिया गठबंधन एक नया लोकतंत्र गढ़ रहा है पत्रकारिकता के मूल्यों का हनन.. आरोप है कि इन एंकरो के कार्यक्रम में केवल एंकर ही नहीं, कुछ ऐसे लोग बुलाए जाते हैं जो आरएसएस और बीजेपी का समर्थन करते हैं। विपक्ष की खिलाफत करते हैं। ये सिर्फ राजनीतिक पक्षपात की बात नहीं है, ये पत्रकारिता के मूल्यों के उल्लंघन की भी बात है। मीडिया जगत में यह माना जाता है कि, सन् 2014 के बाद पत्रकारिता के मूल्य बदल गए। किसी भी टी.वी एंकर ने अमितशाह, नरेन्द्र मोदी,योगी आदित्यनाथ या फिर राजनाथ से महंगाई,बेरोजगारी,देश की अर्थ व्यवस्था,अच्छे दिन कब आएंगे, मणिपुर और अदानी मुद्दे पर कोई सवाल नहीं किया। सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं,सरकार के इशारों पर चलने वाले न्यूजरूम जो पीएमओ के चपरासी के वॉट्सऐप पर चलते हैं,उनके लिए मेरे मन में कोई सम्मान नहीं वो चरण चुंबन का काम करते हैं। इसलिए चरण चुंबक कहलाएंगे। इंडिया गठबंधन के इस फैसले पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा, न्यूज एंकरों की इस तरह लिस्ट जारी करना नाजियों के काम करने का तरीका है,जिसमें ये तय किया जाता है कि किसको निशाना बनाना है। अब भी इन पार्टियों के अंदर इमरजेंसी के समय की मानसिकता बनी हुई है।" शीर्ष अदालत ने कहा.. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कार्य शैली कटघरे में है, तभी तो प्रधान न्यायाधीश डी.आई.चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिग से लोगों को संदेह होता है कि आरोपी ने ही अपराध किया है। पीठ ने कहा कि मीडिया की रिपोर्टिग की आरोपी की नीजता का उल्लघंन कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय से पुलिस के मीडिया ब्रीफिंग को लेकर गाइडलाइंस बनाने के लिए कहा है। जाहिर सी बात है कि शीर्ष अदालत भी मानती है कि,कहीं न कहीं मीडिया भी एक नया लोकतंत्र गढ़ है। जो देशहित में नहीं है।

सियासी हेंगर में लटका नारी शक्ति एक्ट

"मोदी सरकार नारी शक्ति वंदन विधयेक तैयारी करके लाती तो बीजेपी के लिए चुनावी मास्टर स्ट्रोक होता। अब यह विधेयक 2029 तक टल गया। जातिय जनगणना और परिसीमन बगैर महिला आरक्षण बिल केवल चुनावी जुमला है। वहीं रोहणी आयोग की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि देश में सैकड़ों जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा।"
रमेश कुमार रिपु .प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी सियासत के बाजीगर है। उन्हें पता है, सियासी बाजार में हलचल के लिए क्या करना चाहिए। और उन्होने वही किया। एक नया मुद्दा उछाल कर देश भर का ध्यान अपनी ओर खींचा। मुद्दे पर विपक्ष किस तरह हमला करेगा और मुद्दा कितने घंटे जिंदा रहेगा,इसकी चिंता नहीं करते। हैरानी वाला सवाल यह है,कि जब देश में जनगणना ही नहीं हुई है,फिर सरकार कैसे कल्याणकारी योजना बना लेती है। इतना ही नहीं, सरकार इसका आकलन कैसे कर लेती है, कि इतने लोगों को योजना का लाभ मिल रहा है। यह एक यक्ष प्रश्न है। प्रश्न तो यह भी है कि मोदी सरकार ने बिना जनगणना,परिसीमन के महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश कैसे कर दिया। क्या नई संसद भवन में एक सियासी इतिहास की पटकथा रचने के लिए ऐसा किया। जबकि सरकार के पास किस जाति की कितनी महिलाएं हैं,उसका डाटा नहीं है। मोदी ने नारी शक्ति वंदन विधेयक में ओबीसी का जिक्र नहीं किया। जबकि ओबीसी बीजेपी से नाराज है। बीजेपी को सन् 2014 के चुनाव में उच्च पिछड़ी जाति 30 फीसदी और 2019 में 41 फीसदी वोट की थी। निम्न पिछड़ी जाति 2014 में 42 फीसदी और 219 में 48 फीसदी वोट की थी। वहीं अन्य पिछड़ी जाति बीजेपी के साथ 2014 में 34 फीसदी और 2019 में 44 फीसदी वोट की। जाहिर है मोदी ने ओबीसी को नजर अंदाज कर बहुत बड़ी गलती की। और इंडिया गठबंधन ने इसकी वकालत कर सत्ता पक्ष को चोट दे दी। संसद में 85 सांसद ओबीसी हैं। दो दलित कैबिनेट मंत्री हैं। ग्यारह महिला मंत्री हैं। अति पिछड़ी जाति के 19 मंत्री हैं। ओबीसी के पांच कैबिनेट और 29 मंत्री हैं। हर राज्यों में वोट शेयरिंग से पता चलाता है, कि जिधर सत्ता रही ओबीसी उधर गए। ▪️सियासी भूगोल बदला.. देश की गंभीर समस्याओं से विपक्ष और देशवासियों का ध्यान भटकाने के लिए मोदी सरकर ने महिला आरक्षण बिल का झुनझुना लाई है। यह जानते हुए भी कि महिला आरक्षण बिल के रास्ते में परिसीमन और डेलिमिटेशन के रोड़े हैं। यह काम 2024 के आम चुनाव तक संभव नहीं है। एस.सी,एसटी और ओबीसी का कोटा कितना दिया जाए यह भी बगैर जातिय गणना के संभव नहीं है। हर दस साल बाद सियासी भूगोल बदल जाता है। मोदी सरकार नारी शक्ति वंदन विधेयक तैयारी करके लाती तो बीजेपी के लिए चुनावी मास्टर स्ट्रोक होता। अब यह विधेयक 2029 तक टल गया। जातिय जनगणना और परिसीमन बगैर महिला आरक्षण बिल केवल चुनावी जुमला है। वहीं रोहणी आयोग की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि देश में सैकड़ों जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा। ▪️बीजेपी ने लटकाया बिल.. सन् 2014 और 2019 में बीजेपी ने अपने घोषणापत्रों में महिलाओं को 33 आरक्षण देने का वादा किया था। लेकिन उसे लटकाए रखा। महिला आरक्षण बिल मोदी सरकार ने इसलिए लाया ताकि उसे चुनावी औजार बना सकें। लेकिन विपक्ष ने उसे भोथरा कर दिया। सदन में इससे पहले भी चार दफा महिला आरक्षण बिल लाया गया था। और उसकी भू्रण हत्या हो गयी। वर्ष 2010 में महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से पास हुआ लेकिन, बात आगे नहीं बढ़ी। उससे पहले विधेयक को 1998,1999, 2002 और 2003 में संसद से पारित कराने के प्रयास हुए थे। 12 सितंबर 1996 को एच.डी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में ससंद में महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया था। उस समय यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी,जो 13 पार्टियों का गठबंधन था। लेकिन सरकार में शामिल जनता दल और अन्य कुछेक पार्टियों के नेता महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं थे। सियासत में महिलाओं की हिस्सेदारी कैसे बढ़े सदन में और सदन के बाहर बातें होती रही है। लेकिन राजनीति दलों में इच्छा शक्ति की कमी हमेशा देखी गयी। इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता, कि सियासी मर्द इसके पक्षधर नहीं हैं,कि राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़े। जैसा कि मुलायम सिंह यादव ने कहा था,कि महिलाओं की संख्या सदन में बढ़ जाने पर उन्हें देखकर पुरुष सीटी मारेंगे। सोच बदले तो देश बदले। जाहिर सी बात है,केवल बिल पास हो जाना ही महत्वपूर्ण नहीं है। व्यावारिकि रूप लेता भी दिखना चाहिए। सिफारिशें भी की गयी, कि लोकसभा और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी जाएं। इसे लेकर रूप रेखा भी बनी। संसद में उसे कानूनी दर्जा भी दिलाने की कोशिश होती रही हैं। लेकिन अलग- अलग सियासी दलों के विचारो में भिन्नता के चलते बिल मुकम्मल नहीं हो सका। पिछले सत्ताइश सालों से यह विधेयक अधर में था। सन् 2029 के आम चुनाव में यह बिल लागू हुआ तोे सदन में 82 की जगह 181 महिला सांसद दिखेंगी। नारी शक्ति वंदन विधेयक को केवल 15 सालों तक ही लागू रखने का प्रस्ताव है। इसके बाद राजनीति में महिलाओं की भागेदारी सशक्त रहने पर इस कानून की शायद जरूर न पड़े। ▪️विधेयक का विरोध क्यों.. महिला आरक्षण बिल पर केवल सामाजवादी और वामपंथी दलों ने खिलाफत की। उनका कहना था कि पिछड़े तबके की महिलाओं के संदर्भ में इस बिल में कोई स्पष्ट रूप रेखा तय नहीं की गयी है। देवगौड़ा के समय की बात हो या फिर राजीव गांधी के समय भी ऐसा ही था। और अब मोदी सरकार के समय भी इस बिल को लेकर यही सवाल उठा है। नारी शक्ति वंदन विधेयक में भी तैतीस फीसदी आरक्षण की बात की गयी है,लेकिन अलग- अलग जाति की महिलाओं का कोटा कितना होगा लोकसभा और विधान सभा के चुनाव में यह नहीं बताया गया है। आरक्षित सीटों से बाहर भी महिलाएं चुनाव लड़ती आई हैं,उसे कायम रखा गया है। विधयेक में अन्य पिछड़ी जातियों का कोटा निर्धारित नहीं होने से इसका विरोध हो रहा है। मोदी जानते थे,ऐसा होगा। सरकार की मंशा नारी शक्ति विधयेक को केवल उछालना था। इसीलिए उसने जनगणना 2022 में नहीं कराया और न ही परिसीमन। ▪️सोशल इंजीनियरिंग.. नारी शक्ति वंदन विधेयक के जरिए विपक्ष सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति करना चाहता है। वहीं सदन में स्मृति इरानी कहती हैं, कि संविधान के मुताबिक धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। विपक्ष भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है। अब विपक्ष महिला आरक्षण की लड़ाई ओबीसी कोटे तक ले आया है। प्रथम दृष्टया ये बिल आरक्षण देने की नीयत से नहीं लाया गया है। जैसा कि बसपा सुप्रीमों कहती हैं,कि महिला आरक्षण बिल तुरंत लागू नहीं किया जा सकता। यह बिल सन् 2029 से पहले तभी संभव है,जब एससी,एसटी और ओबीसी बड़ा दिल दिखाएं। वो 2024 के चुनाव में आरक्षण मिलने की वकालत न करें। यदि ऐसा हुआ तो फिर इसकी कोई गारंटी नहीं है, कि अगली सरकार तैंतीस फीसदी आरक्षण पर पुर्नविचार करे। चूंकि देश में ओबीसी जाति के वोटर बहुत हैं। इसलिए हर सियासी दल चाहता है कि ओबीसी को आरक्षण मिले। ▪️सियासी हेंगर में नारी शक्ति.. सवाल यह है कि नारी शक्ति वंदन विधेयक कैसे लागू होगा? संसद के दोनों सदनों में पास कराना होगा। आधे राज्यों की विधान सभा में पास हो। रोहणी आयोग की रिपोर्ट कहती है,38 जातियों का दूसरे पर एक चौथायी कब्जा है। सिर्फ 10 फीसदी जातियों को आरक्षण का लाभ दस फीसदी मिला हुआ है। 983 जातियों को आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला। 994 जातियों को महज 2.68 फीसदी आरक्षण मिला है। देश की 506 ऐसी जातियां है, जिन्हें करीब 22 फीसदी लाभ मिला। सियासी नजरिए से महिला आरक्षण से महिला सशक्तिकरण होगा, इसकी कल्पना बेमानी है। महिलाएं खुश हो सकती हैं,कि नए बिल से उन्हें समानता का अधिकार मिलेगा। जबकि अभी सियासी हेंगर में नारी शक्ति बिल लटका हुआ है।

Friday, September 8, 2023

एम.पी में बीजेपी का ढोल फट रहा

एम.पी में बीजेपी का ढोल फट रहा कांग्रेस के सर्वे में बीजेपी 85 सीटो में सिमटी रमेश कुमार ‘रिपु’
मध्यप्रदेश में बीजेपी का ढोल फट रहा है। यह कांग्रेस का सर्वे बता रहा है। कांग्रेस ने तीन टीमों से सर्वे कराया। दक्षिण भारत,यूपी और मध्यप्रदेश की टीम के जरिए। सर्वे बता रहे हैं कि लाड़ली बहना की वजह से बीजेपी के खाते में पांच फीसदी वोटों में इजाफा हुआ है। इस वजह से बीजेपी की सीट बढ़कर 80 से 85 तक हो गयी है। अभी चुनाव होने में दो माह का वक्त है। बीजेपी कितना कवर करती है मोदी भी नहीं जानते। कांग्रेस के सर्वे को सच मान लिया जाए तो बीजेपी के ढोल फटने की वजह कई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिह चैहान इतना परेशान कभी किसी सी चुनाव में नहीं हुए। जितना इस बार के विधान सभा चुनाव को लेकर है। उसकी वजह कई हैं। बीजेपी एंटी इन्कम्बैसी के दौर से गुजर रही है। यह एंटी इन्कम्बैसी की वजह मोदी हैं। महंगाई,बेरोजगारी और झूठे वायदे के लिए केद्र सरकार जिम्मेदार है। वहीं प्रदेश में भ्रष्टाचार के लिए शिवराज सिंह। प्रदेश में 18 साल के कार्यकाल में शिवराज के समय 230 घोटाले हुए हैं। शिवराज पहले मुख्यमंत्री है,जिनके खिलाफ मोदी ने व्यापम घोटाले के लिए सीबीआई जांच का आदेश दिया। शिवराज घोंषणा का रिकार्ड बना दिये हैं। अपने कार्यकाल में अब तक तीस हजार से अधिक घोंषणाएं कर चुके हैं। विपक्ष उन्हें घोंषणावीर कहता है। मोदी को चुनावी दूल्हा बनने परहेज आर एस एस पहले ही कह चुका है कि मोदी चुनावी चेहरा इस बार नहीं हैं। संघ मानता है कि न तो मोदी चेहरा काम आ रहा है और न ही हिन्दुत्व कार्ड। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनाव हारने के बाद मोदी बैकफुट में आ गए हैं। मोदी ही जब बीजेपी हैं। मोदी हैं तो संघ है। जैसा प्रचारित किया जा रहा है तो फिर दो राज्यों की हार की भी जिम्मेदारी मोदी को लेनी चाहिए। मोदी इसके लिए तैयार नहीं है। वे चुनावी दूल्हा बनना नहीं चाहते। और शिवराज चुनावी घोड़ी से उतरना चाहते हैं। इस बार जनदर्शन यात्रा में शिवराज को पार्टी ने प्रमोट नहीं किया है। इसीलिए चित्रकूट में जेपी नड्डा ने जनदर्शन आर्शीवाद यात्रा को हरी झंडी दिखाई। सीधी कांड से आदिवासियों को साधने के लिए ऐसा किया गया है। विंध्य क्षेत्र की 30 सीटों में 23 सीटें ऐसी है जहां ब्राम्हणों की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है। सीधी पेशाब कांड में प्रवेश शुक्ला के घर बुलडोजर चला देने से ब्राम्हण समाज बीजेपी के खिलाफ हो गया है। सन् 2018 के चुनाव में बीजेपी आदिवासी बाहुल इलाके के 84 सीटों में 34 ही जीत पाई थी। जबकि 2013 के चुनाव में 59 सीट जीती थी। अब आदिवासियों का विश्वास जीतने में बीजेपी लगी है। मध्यप्रदेश देश में पहले नम्बर पर है जहां आदिवासियो ंके खिलाफ 2627 मामले दर्ज हुए हैं। दलितों के मामले में तीसरे स्थान पर है,7214 मामले दर्ज हुए हैं। रेप मामले में दूसरे स्थान पर है,कुल 2947 मामले दर्ज हुए हैं। यह स्थिति 2022 की है। एनसीआर की रिपेार्ट के मुताबिक 2021 में 17008 बच्चे क्राइम के शिकार हुए थे। शिवराज विरूद्ध बीजेपी सन् 2014 में पी.एम.की दौड़ में शिवराज और डाॅ रमन सिंह थे। मोदी और अमितशाह की जोड़ी ने दोनों को किनारे कर दिया। छत्तीसगढ़ में रमन कुछ नहीं कर पाए। सिंधिया के चलते मध्यप्रदेश में बीजेपी ने सरकार बना ली। मुख्यमंत्री शिवराज बन गए लेकिन इनके चारो ओर इनके विरोधी खड़े हो गए। यह सब मोदी की रणनीति के तहत हुआ। वी.डी शर्मा,नरोत्तम मिश्रा,ज्योतिरादित्य सिंधिया,और कैलाश विजयवर्गीय। ये सभी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। कैलाश विजयवर्गीय ने तो खुलकर कह दिया था कि मुझे मुख्यमंत्री बनाया जाए। वी.डी शर्मा मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, सोशल मीडिया में खबरे खूब वायरल हुई थी। जाहिर सी बात है कि बीजेपी में जबरदस्त की गुंटबंदी है। शिवराज की अमितशाह से जम नहीं रही है। आत्मविश्वास डगमगाया है। और प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है। अमितशाह हावी हैं इस बार भारी एंटी इन्कमबैसी की वजह से बीजेपी हाईकमान भी मान कर चल रहा है कि मध्यप्रदेश में भगवा छतरी तनने में दुविधा है। वहीं अमितशाह का दावा है कि जनआर्शीवाद यात्रा जब समाप्त होगी, तब बीेजेपी 150 सीट जीतेगी। जबकि बीजेपी अपने अच्छे दिनों में भी इतनी सीट नहीं जीती थी। हो सकता है कि बीजेपी के कई प्रत्याशी पांच-सात सौ वाटों से जीतें। कलेक्टर कुछ भी कर सकते हैं। इसी आशंका को देखते हुए दिग्विजय सिंह ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन को एक पत्र देकर कहा कि जहां भी हार जीत का फैसला एक हजार वोटो के अंदर हो वहां पुर्न मतगणना कराया जाए। प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल बैस दो बार सेवा वृद्धि ले चुके हैं। उनके नेतृत्व में निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद कम है। इसलिए उनकी सेवाएं खत्म की जाए। बीजेपी में भगदड़ बीजेपी के नेता और विधायक कांग्रेस में जा रहे हैं। भाजपा के 31 बडे नेता अब तक कांग्रेस में जा चुके हैं। इसमें से 25 फीसदी सिंधिया गुट के हैं। वीरेन्द्र रघुवंशी,भ्ंावर सिंह शेखावत,गिरिजाशंकर,माखन सिंह सोलंकी,राधेलाल बघेल,दीपक जोशी पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र हैं,देशराज सिंह,हेमंत लहरिया,कमल पटेल के राइट हैंड दीपक सारण,धु्रव प्रताप सिंह,अवधेश नायक,रोशनी यादव,समंदर पटेल,बैजनाथ सिंह यादव,रघुराज धाकड़, राकेश गुप्ता, गगन दीक्षित,यदुराज सिंह यादव आदि लोगों ने बीजेपी छोड़ दी। वजह बताते हैं,पार्टी अपने मूल सिद्धतों को भूल गयी। भ्रष्टाचार और गुटबाजी हावी है। भाजपा तानाशाही की सरकार चलाती है। सिंधिया समर्थकों का दबदबा बढ़ गया है। चुनाव नजदीक आते ही ज्यादातर बीजेपी के नेता पार्टी छोड़ रहे है। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस के सर्वे पर बीजेपी नेता भी भरोसा कर रहे हैं कि शिवराज अब खत्म होने जा रहा है।

Wednesday, July 19, 2023

पुष्पराज तुरुप कितना कारगर...

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0 रमेश कुमार 'रिपु" रियासत नहीं रही। मगर,बघेली जनता के लिए अब भी पुष्पराज सिंह महाराज हैं। वैसे लोकतंत्र में जनता ही महाराज है।वहीं रंग बदलती सियासत के दौर में भी सुर्खियों में रहने की सियासत करने में पुष्पराज सिंह माहिर हैं। कांग्रेस में थे तब भी और नहीं थे,तब भी। पुष्पराज सिंह एक बार फिर भाजपा में आ गए हैँ । कांग्रेस के कईयों को लगता है कि वे सेमरिया या फिर गुढ़ विधान सभा से चुनाव लडेंगें। जबकि ऐसा नहीं है। बीजेपी ने बहुत सोच समझ कर पुष्पराज सिंह को प्रोडेक्ट कर रही है। पुष्पराज सिंह पर इस बार जिम्मा है बीजेपी को आठों विधान सभा की सीट दिलाना। बीजेपी उनका पूरा राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है। बीजेपी के लिए और उनके लिए भी, यह एक सुनहरा मौका है। सुनहरी कामयाबी का जिम्मा. सन् 2023 के विधान सभा चुनाव में पुष्पराज सिंह के सक्रिय होने से चुनाव बेहद रोचक हो जाएगा। वहीं बीजेपी एंटीइन्कम्बैसी से गुजर रही है। रीवा की आठों विधान सभा के लिए पुष्पराज सिंह पर बीजेपी दांव खेलने जा रही है। सवाल यह है कि बीजेपी को बढ़त मिलेगी या फिर भगवा छतरी कम जगह ही तन पाएगी। बीजेपी के लिए पुष्पराज सिंह कितना तुरुप कारगर होगें,इस पर आकलन कांग्रेस में होने लगा हैं। बीजेपी की रणनीति के मुताबिक पुष्पराज सिंह आठों विधान सभा में बीजेपी के लिए वोट मांगेंगे। सीटों के संभावित नुकसान को यदि पुष्पराज सिंह कम करने में कामयाब हो गए,तो लोकसभा की टिकट उनकी तय है। विधान सभा चुनाव के परिणाम ही बताएंगे कि पुष्पराज सिंह कितने कामयाब सियासी खिलाड़ी हैं। रीवा जिला महाराजमय होता है या फिर कमलनाथमय,यह हर कोई देखना चाहता है। कैसा और कहां होगा असर.. रिमही जनता आज भी पुष्पराज सिंह को महाराज कहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी पकड़, सियासी उम्मीद से ज्यादा है। पुष्पराज सिंह को न तो नागेन्द्र सिंह,न ही राजेन्द्र शुक्ला और न ही जनार्दन मिश्रा नकार सकते हैं। शिवराज सिंह चौहान को भी पता है कि रीवा में कोई कार्ड चल सकता है तो वो है पुष्पराज सिंह। उनके खुलकर बीजेपी के लिए वोट मांगने से भगवा राजनीति का तापमान बढ सकता है। उनकी हाजिर जवाबी,सभी जाति के वोटरों से सीधा जुड़ाव, और कांग्रेस का हर नेता उनके कद की इज्जत करता है। चूंकि कांग्रेस में मंत्री रहे हैं,कांग्रेस की राजनीति की है। ऐसे में कांग्रेस के पाले से अल्पसंख्यक ओबीसी,एससी,एसटी वोटर को खींचना होगा। अल्पसंख्यक वोटर रीवा में करीब 25 हजार है। इन वोटरों के बीच उनका आकर्षण है। युवाओं और महिलाओं के बीच उनकी अपनी लोकप्रियता है। पुष्पराज का गणराज्य.. पुष्पराज को बीजेपी विधान सभा चुनाव नहीं लड़ाएगी। ऐसे में उनका विरोध किसी भी विधान सभा में नहीं होगा। पुष्पराज सिंह को रीवा जिले की जनता के लिए नया एजेंडा तय करना होगा। साथ ही विराट सोच के साथ, सियासी पिच पर उतरना होगा। सवाल यह है कि जिला ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा और शहर कांग्रेस अध्यक्ष लखनलाल खंडेलवाला क्या पुष्पराज सिंह के किसी बयान का विरोध करेंगे? क्यों कि दोनों का इनसे साहब सलाम का सियासी रिश्ता बरसों से है। राजेन्द्र शर्मा क्या श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी की भूमिका में पुष्पराज के सामने आ सकेंगे? राजेन्द्र शुक्ला को घेरने के लिए कांग्रेस के पास बहुत सारी बातें हैं। लेकिन पुष्पराज सिंह के खिलाफ बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। बीजेपी का हो या फिर कांग्रेस का अथवा बसपा का कोई भी नेता महाराज के बायें चलने की सियासत कम से कम सामने से करने की हिम्मत नहीं करता। क्या इतने भर से पुष्पराज सिंह भगवा छतरी रीवा की आठों विधान सभा में तान लेंगे? ंइजीनियर राजेन्द्र शर्मा कहते हैं,कांग्रेस चार सीट सीधे -सीधे जीत रही है। लेकिन जनता में बदलाव का जो जोश देखने को मिल रहा है उससे कह सकते हैं कि आठों सीट कांग्रेस के हाथ में होगी। गौरतलब है सुन्दर लाल तिवारी ने 2018 के चुनाव में कहा था,कि हम सात सीट जीतेंगे। अमहिया काग्रेस ने जो राजनीति 2018 में की थी,यदि वही की, तो पुष्पराज सिंह का सियासी कद 2023 के चुनाव में बढ़कर मोदी और अमितशाह के साथ खड़े होने की हो जाएगी। दो ठाकुर आमने- सामने होंगे.. विंध्य में कुंवर अर्जुन सिंह को जो सम्मान मिलता था,उनके चलते अजय सिंह राहुल को भी मिलता है। पुष्पराज सिंह बीजेपी के लिए ठाकुरों से वोट मांगेगे और अजय सिंह राहुल कांग्रेस के लिए। ठाकुर राजनीति का टकराव सिर्फ रीवा ही नहीं, पूरे रीवा संभाग की सीटों पर असर डालेगी। अजय सिंह राहुल मोदी और शिवराज के वादे और भ्रष्टाचार का लेखा- जोखा रखेंगे तो पुष्पराज सिंह मोदी के कामकाज की बातें करेंगे। लाड़ली बहना और संविदा कर्मियों के अलावा शिवराज सरकार की योजनाओं की बातें करेंगे, मोदी को ईमानदार और मेहनती होने की बात करेंगे। लेकिन पुष्पराज सिंह को इसका भी जवाब देना होगा कि अल्पसंख्यक बीजेपी के दौर में अपने आप को डरा महसूस क्यों कर रहा है? मैराथन मैन.. सवाल यह है कि पुष्पराज सिंह मैराथन मैन बन पाएंगे या फिर भगवा तिलक और गमछा लेकर घूमते रह जाएंगे। जिले की राजनीति से पुष्पराज सिंह पन्द्रह सालों से कटे हुए हैं। नया वोटर उन्हें पहचानता भी नहीं। युवा लड़के और लड़कियों के बीच उनका अपना कोई जनाधार नहीं है। वो प्रियंका,राहुल गांधी और मोदी को जानता है। उनके पास ऐसा क्या है, जो नयी सदी के युवाओं को रिझा सकें। उन्हें मना सकें कि बीजेपी को वोट देना ही हितकर है। नई नस्ल की वोट की फसल को काटने के लिए रीवा जिले के लिए क्या अलग से घोषणा पत्र लेकर उनके पास पहुंचेंगे। जबकि कई कांग्रेसी पुष्पराज सिंह को किचन सियासी कहते हैं। पुष्पराज सिंह महाराज छवि से बाहर कितना निकल पाएंगे,शायद वो खुद भी नहीं जानते। उनके साथ कई ऐसे विवाद भी हैं। जिन्हें बीजेपी ने कभी खोला था चुनाव में। वही विवाद कांग्रेस ने खोला तो पुष्पराज सिंह के लिए संकट खड़ा हो जाएगा। बहरहाल पुष्पराज सिंह अपनी सियासत की नई पारी एक बार फिर से बीजेपी में खेलने जा रहे हैं। सच तो यह है कि बीजेपी के लिए और उनके लिए भी, यह एक मौका है।

शिवराज ने जनता भरोसा खो दिए हैंः राहुल

सर्वे में बीजेपी पच्चपन सीट पा रही है रीवा। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने कहा कि दस बारह साल पहले शिवराज सिहं चौहान जो कहते थे तो उनकी बातों पर जनता भरोसा करती थी। लेकिन अब वो जनता का भरोसा खो दिए हैं। यही वजह कि बीजेपी के हर सर्वे में उसकी सीट कम होते जा रही है। लाड़ली बहना योजना का लाभ मिलने की बजाए, बीजेपी को नुकसान हो गया है। वीकेन न्यूज से एक चर्चा के दौरान मध्यप्रदेश के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह
ने यह बात कही। उन्होनें कहा कि जनवरी में बीजेपी ने आंतरिक सर्वे कराया था। जिसमें उसे सौ सीट मिल रही थी। इसके बाद मई के सर्वे में उसे 65 सीट मिल रही थी। लगातर सीट घटने पर शिवराज सिंह ने सोचा कि महिलाओं को किसी बहाने अपनी ओर खींचा जाए तो शायद एंटीइन्कम्बैसी कम हो जाए। वो लाड़ली बहना योजना ले आए। उसके बाद के सर्वे में बीजेपी की दस सीट और कम हो गयी है। ऐसा लगता है कि सदन में इस बार बीजेपी मजबूत विपक्ष की हैसियत में भी नहीं रहेगी। ▪️राहुल की टीम सर्वे कर रही.. एक सवाल के जवाब में उन्होने ने कहा कि पूरे प्रदेश में राहुल गांधी की टीम सर्वे कर रही है। जो उम्मीदवार उनके सर्वे में जीत रहा है, उसे टिकट दिया जाएगा। यह कोई मायने नहीं रखता कि जिला कांग्रेस अध्यक्ष या फिर शहर कांग्रेस अध्यक्ष ने पैनल में किसी का नाम दिया है या नहीं। ▪️अल्पसंख्यक को टिकट मिलेगा.. दिग्विजय सिंह का कहना है कि अल्पसंख्यक नेताओं को टिकट कांग्रेस नहीं देगी। उन्हें टिकट देने से बीजेपी चुनाव जीत जाती है, सवाल पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता दिग्विजय सिंह यह बात किस संदर्भ में कही। लेकिन मेरा मानना है अल्पसंख्यक नेताओं को भी टिकट दी जाएगी। ▪️पुष्पराज चैथे नम्बर पर.. पुष्पराज सिंह सपा से लोकसभा से चुनाव लड़े थे, तो 85 हजार वोट पाए थे। इस बार कांग्रेस से बीजेपी में आ गए हैं। हर विधान सभा में महाराज होने के नाते दस से पन्द्रह हजार उनके वोट है। यह वोट बीजेपी में चले गए तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है, सवाल पर अजय सिंह राहुल ने कहा कि राजनीति की हवा हमेशा एक सी नहीं होती। पुष्पराज सिंह उस समय चौथे नम्बर पर थे। इस बार भी वो चौथे नम्बर पर ही रहेंगे। ▪️आदिवासी बीजेपी से खफा.. आदिवासी वोटर को लुभाने बीजेपी जी जान से जुटी है। आदिवासी वोटर को लुभाने अमितशाह शहडोल संभाग का दौरा कर चुके हैं। शिवराज भी इस बार अधिक से अधिक सीट जीतना चाहते हैं। क्या इसलिए राहुल गांधी ब्योहारी आ रहे हैं? आदिवासी वोटर बीजेपी के हाथ से छिटक गया है। इसी से समझ सकते हैं कि बीजेपी 2018 के चुनाव में आदिवासी की 47 सीट में 31 सीट कांग्रेसी जीती। बीजेपी को सिर्फ 16 सीट मिली। 2003 के चुनाव में सोनिया गांधी व्यौहारी आई थीं। इस बार शिवराज कुछ भी कर लें आदिवासी सीट वो महाकौशल,और विंध्य में भी कम ही पाएंगे। आदिवासी वोटर उनसे बेहद नाराज है। ▪️बीजेपी को बीजेपी हाराएगी.. एक समय कहा जाता था कि कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती थी है। इस बार भी यह कहावत क्या जिंदा रहेगी। नेता प्रतिपक्ष ने हंसते हुए कहा इस बार जनता कहेगी कि भाजपा ही भाजपा को हराती है। इस बार विंध्य क्षेत्र में जिस तरह जनता शिवराज सरकार से नाराज है उससे यही लगता है कि 20-22 सीट कांग्रेस को मिलेगी। वी केन न्यूज के नेशनल हेड रमेश कुमार द्धारा सर्वे में बीजेपी पच्चपन सीट पा रही है रीवा। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने कहा कि दस बारह साल पहले शिवराज सिहं चौहान जो कहते थे तो उनकी बातों पर जनता भरोसा करती थी। लेकिन अब वो जनता का भरोसा खो दिए हैं। यही वजह कि बीजेपी के हर सर्वे में उसकी सीट कम होते जा रही है। लाड़ली बहना योजना का लाभ मिलने की बजाए, बीजेपी को नुकसान हो गया है। वीकेन न्यूज से एक चर्चा के दौरान मध्यप्रदेश के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने यह बात कही। उन्होनें कहा कि जनवरी में बीजेपी ने आंतरिक सर्वे कराया था। जिसमें उसे सौ सीट मिल रही थी। इसके बाद मई के सर्वे में उसे 65 सीट मिल रही थी। लगातर सीट घटने पर शिवराज सिंह ने सोचा कि महिलाओं को किसी बहाने अपनी ओर खींचा जाए तो शायद एंटीइन्कम्बैसी कम हो जाए। वो लाड़ली बहना योजना ले आए। उसके बाद के सर्वे में बीजेपी की दस सीट और कम हो गयी है। ऐसा लगता है कि सदन में इस बार बीजेपी मजबूत विपक्ष की हैसियत में भी नहीं रहेगी। ▪️राहुल की टीम सर्वे कर रही.. एक सवाल के जवाब में उन्होने ने कहा कि पूरे प्रदेश में राहुल गांधी की टीम सर्वे कर रही है। जो उम्मीदवार उनके सर्वे में जीत रहा है, उसे टिकट दिया जाएगा। यह कोई मायने नहीं रखता कि जिला कांग्रेस अध्यक्ष या फिर शहर कांग्रेस अध्यक्ष ने पैनल में किसी का नाम दिया है या नहीं। ▪️अल्पसंख्यक को टिकट मिलेगा.. दिग्विजय सिंह का कहना है कि अल्पसंख्यक नेताओं को टिकट कांग्रेस नहीं देगी। उन्हें टिकट देने से बीजेपी चुनाव जीत जाती है, सवाल पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता दिग्विजय सिंह यह बात किस संदर्भ में कही। लेकिन मेरा मानना है अल्पसंख्यक नेताओं को भी टिकट दी जाएगी। ▪️पुष्पराज चैथे नम्बर पर.. पुष्पराज सिंह सपा से लोकसभा से चुनाव लड़े थे, तो 85 हजार वोट पाए थे। इस बार कांग्रेस से बीजेपी में आ गए हैं। हर विधान सभा में महाराज होने के नाते दस से पन्द्रह हजार उनके वोट है। यह वोट बीजेपी में चले गए तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है, सवाल पर अजय सिंह राहुल ने कहा कि राजनीति की हवा हमेशा एक सी नहीं होती। पुष्पराज सिंह उस समय चौथे नम्बर पर थे। इस बार भी वो चौथे नम्बर पर ही रहेंगे। ▪️आदिवासी बीजेपी से खफा.. आदिवासी वोटर को लुभाने बीजेपी जी जान से जुटी है। आदिवासी वोटर को लुभाने अमितशाह शहडोल संभाग का दौरा कर चुके हैं। शिवराज भी इस बार अधिक से अधिक सीट जीतना चाहते हैं। क्या इसलिए राहुल गांधी ब्योहारी आ रहे हैं? आदिवासी वोटर बीजेपी के हाथ से छिटक गया है। इसी से समझ सकते हैं कि बीजेपी 2018 के चुनाव में आदिवासी की 47 सीट में 31 सीट कांग्रेसी जीती। बीजेपी को सिर्फ 16 सीट मिली। 2003 के चुनाव में सोनिया गांधी व्यौहारी आई थीं। इस बार शिवराज कुछ भी कर लें आदिवासी सीट वो महाकौशल,और विंध्य में भी कम ही पाएंगे। आदिवासी वोटर उनसे बेहद नाराज है। ▪️बीजेपी को बीजेपी हाराएगी.. एक समय कहा जाता था कि कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती थी है। इस बार भी यह कहावत क्या जिंदा रहेगी। नेता प्रतिपक्ष ने हंसते हुए कहा इस बार जनता कहेगी कि भाजपा ही भाजपा को हराती है। इस बार विंध्य क्षेत्र में जिस तरह जनता शिवराज सरकार से नाराज है उससे यही लगता है कि 20-22 सीट कांग्रेस को मिलेगी।

Monday, June 12, 2023

पटरी पर मौत रोकने की सबसे बड़ी चुनौती

"बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाली सरकार के सामने चुनौती है पटरी पर मौत रोकना। अब तक सिर्फ साठ ट्रेनों में ही कवच सिस्टम है। उद्योगपतियों का ग्यारह लाख करोड़ रुपए कर्ज माफ कर देने वाली सरकार कवच सिस्टम के लिए चौतीस हजार करोड़ रुपए खर्च कर दे तो देश में बालासोर जैसी दुर्घटना की पुनरावृति नहीं होगी। जबकि दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा उद्योगपति लेकर देश से भाग गए।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ दो जून को ओड़िसा में जिस ट्रैक पर रेल हादसे में 278 लोगों की जानें गयी अब उसी ट्रैक पर फिर से रेलगाड़ियां चलनी शुरू हो गयी। प्रधान मंत्री ने कहा कि गुनहगार बख्शे नहीं जाएंगे। वहीं रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ओडिशा ट्रिपल ट्रेन हादसा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग और सिग्नल सिस्टम की समस्या की वजह से हुआ है। शाम को कहा रेलवे बोर्ड ने रेल हादसे की सीबीआई जांच की सिफारिश की है। रेलवे बोर्ड की सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने कहा कि साजिश की संभावना से इनकार नहीं किया गया है। जब सब पता है तो फिर सीबीआई जांच क्यों? जाहिर सी बात है लोगों का ध्यान बांटने के लिए ऐसा किया गया है ताकि इस्तीफे की बात न उठे। सवाल यह है कि देश के प्रधान मंत्री वंदेमातरम ट्रेन को हरी झंडी दिखाते आए हैं। देश में करीब पन्द्रह वंदेमातरम ट्रेन अलग-अलग रूट पर चल रही हैं। इस ट्रेन का किराया अन्य ट्रेनो की तुलना में पाँच गुना ज्यादा है। यात्री सफर इस उम्मीद से करता है कि वह सुरक्षित अपने घर पहुंच जाएगा। लेकिन बालासोर की रेल दुर्घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार की गलती से अथवा अनदेखी से रेल दुर्घटना होने पर क्यों ने सरकार को कटघरे पर खड़ा किया जाए। इसलिए भी कि प्रधान मंत्री सारे मंत्रालय के जवाबदारी लेते हैं तो फिर रेल दुर्घटना की क्यों नहीं? इस हादसे की जिम्मेदारी कौन लेगा? अब न अटल जी का और न ही नेहरू का दौर है। कैग की रिपोर्ट की अनदेखी - मोदी सरकार यदि कैग की रिपोर्ट को अमल में लाती तो बालासोर हादसा होता नहीं। रेल्वे बजट में 2023-24 के लिए ढाई लाख करोड़ रुपए का प्रावधान है। लेकिन इस हादसे ने सबका ध्यान रेल मंत्री अश्विनी के 2022 के उस बयान की ओर खींचा है,जिसमें उन्होंने कहा था, रेल कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। इसे ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम कहते हैं। इंजन और पटरियों में लगे इस डिवाइस की मदद से रेल दुर्घटनाएं रोकी जा सकती है। कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेनों के इंजन में कवच लगा होता तो इस हादसे को टाला जा सकता था। देश में करीब एक लाख पन्द्रह हजार किलोमीटर रेल पटरियांँ है। प्रति किलोमीटर कवच सिस्टम पर तीस लाख रुपए खर्चा आएगा। यानी देश में कवच सिस्टम पर चौतीस हजार करोड़ रुपए का खर्चा आएगा। लोगों की जिन्दगी के नजरिये से देखा जाए तो यह बहुत बड़ी राशि नहीं है। बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाली सरकार के सामने चुनौती है पटरी पर मौत रोकना। अब तक सिर्फ साठ ट्रेनों में ही कवच सिस्टम है। उद्योगपतियों का ग्यारह लाख करोड़ रुपए कर्ज माफ कर देने वाली सरकार कवच सिस्टम के लिए चौतीस हजार करोड़ रुपए खर्च कर दे तो देश में बालासोर जैसी दुर्घटना की पुनरावृति नहीं होगी। जबकि दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा उद्योगपति लेकर देश से भाग गए। कोंकण रेलवे के इंजीनियरों ने रेल हादसे रोकने के लिए रक्षा कवच विकसित किया था। सन् 2011 में मनमोहन सरकार के समय लगाने की शुरूआत हो गयी थी। इसे हर रेल नेटवर्क पर लगाने की योजना है। लेकिन काम की गति कछुवा गति जैसी है। सरकार ने अनदेखी की - दिसंबर 2022 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे की व्यवस्था में खामियों की ओर सरकार का ध्यान खींचा था। अप्रैल 2017 से मार्च 2021 के बीच चार सालों में 16 जोनल रेलवे में 1129 डिरेलमेंट की घटनाएं हुईं। यानी हर साल लगभग 282 डिरेलमेंट हुए। इसमें करीब 3296 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। जाहिर है कि ट्रैक का निरीक्षण नहीं होने से डिरेलमेंट होगा। रिपोर्ट कहती है 422 डिरेलमेंट इंजीनियरिंग विभाग की लापरवाही से हुए। 171 मामलों में ट्रैक के मैंटिनेंस में कमी डिरेलमेंट की वजह रही। वहीं मैकेनिकल डिपार्टमेंट की लापरवाही से 182 डिरेलमेंट हुए। 156 मामलों में निर्धारित ट्रैक पैरामीटर के नियमों का पालन नहीं होने से डिरेलमेंट हुआ। 154 डिरेलमेंट में लोको पायलट की खराब ड्राइविंग और ओवर स्पीडिंग मुख्य वजहें रहीं। 37 फीसदी मामलों में कोच में खराबी और पहियों का गलत निर्माण से डिरेलमेंट हुआ। करीब चार सौ मामलों में खराब डिब्बों और खराब पहिए दुर्घटना की वजह बने हैं। सरकार के रेल बजट में पुराने डिब्बे और पहिए के मेंटिनेस का जिक्र सिर्फ संसद के पटल पर होता है। यानी जमीनी हकीकत कुछ और है। 275 डिरेलमेंट ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट की लापरवाही के चलते हुए। दरअसल रेलवे विभाग की ओर से ट्रैक मेनटेनेंस धीरे- धीरे कम होता गया। जांच होने से क्या - बलासोर रेल दुर्घटना की जांच सीबाआई के करने से क्या होगा? 278 लोगों की जान वापस आने से रही। दरअसल जनता का गुस्सा कम करने के लिए सरकार रेल हादसे की जांच के आदेश देती है। कुछ दिनों बाद लोग भूल जाते है। फाइल बंद हो जाती है। जैसा कि सन 2016 में कानपुर में रेल दुर्घटना में 150 लोगों की मौत पर प्रधान मंत्री ने साजिश की आशंका के चलते एनआई को जांच करने आदेश दिया था । दो साल बाद एनआईए ने फाइल बंद कर दी। चार्जशीट दायर करने से इंकार कर दिया। सरकार को लगता है मुआवजा दे देने से लोगों को न्याय मिल जाता है। लोग संतुष्ट हो जाते हैं। जबकि सरकार मरने वाले परिवार की तकलीफ के बारे में कुछ भी नहीं सोचती। कई बार ऐसा भी होता है कि परिजन को उनका अपना शव नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में उन्हें न क्लेम मिलता है और न ही नौकरी मिलती है। दो हजार करोड़ की कटौती - बहुत लोगों को यह भी नहीं पता कि रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार ने खराब पट्टिरियों के लिए विशेष सुरक्षा फंड बनाया था। बड़े पैमाने पर पुरानी और जर्जर पटरियों की जगह नई पटरियां लगाने का काम किया गया। लेकिन मोदी सरकार ने 2018 में इस पर किए गए 9607 करोड़ रुपये के खर्च में दो साल बाद दो हजार करोड़ रुपये की कटौती कर दी। यानी राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष में 79 प्रतिशत फंडिंग कम की गई। रेल पटरी नवीकरण कार्यों की राशि में भारी गिरावट भी रेल दुर्घटना की भी वजह है। कईयों ने इस्तीफा दिया- राजनीति में अब नैतिकता खत्म हो गयी है। लाल बहादुर शास्त्री 1958 में रेल मंत्री थे। आन्ध्र प्रदेश के महबूबनगर में एक रेल हादसा में 112 लोगों की मौत हो गयी थी। उन्होंने इस्तीफा पी.एम नेहरू को दे दिया था। उनका इस्तीफा नेहरू नहीं स्वीकारे। इसके बाद तमिलनाडु के अरियालुर में 144 लोगों की मौत पर नेहरू को लालबहादुर शास्त्री ने अपना इस्तीफा भेज दिया था। नीतीश कुमार ने भी 1990 में असम में गैसल ट्रेन दुर्घटना की जवाबदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। तब 290 लोगों की मौत हुई थी। ममता बनर्जी ने सन् 2000 में दो ट्रेन की दुर्घटना में इस्तीफा दे दिया था। अटल जी ने उनका इस्तीफा नहीं स्वीकारे थे। एनडीए सरकार में रेल मंत्री रहे सुरेश प्रभु ने 2017 में दो रेल हादसे पर इस्तीफा दे दिया था। पीएम मोदी ने नहीं स्वीकारा।

Wednesday, May 17, 2023

हिन्दुत्व की चुनावी लड़ाई बीजेपी के काम नहीं आई

कर्नाटक में हिन्दुत्व की चुनावी लड़ाई मोदी के काम नहीं आई। इसी के साथ बीजेपी के लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार बंद हो गया। इसी साल तीन राज्यों में होने वाले चुनाव से बेहिसाब बेचैनी बीजेपी के लिए बढ़ गयी। मोदी और अमितशाह को चुनाव के बड़े रणनीतिकार बताया जाता था लेकिन ंपजाब हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में हार से स्पष्ट है कि मोदी का सियासी बाजार में रेट गिर गया है । 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ लोकतंत्र में हर बार चुनाव में एक ही कार्ड काम नहीं करता। बीजेपी को लगता है कि हिन्दुत्व कार्ड उसके जीत के लिए ट्रंप कार्ड है। कर्नाटक चुनाव में मोदी ने बजरंगदल को बजरंग बली से जोड़कर चुनाव को हिन्दुत्व का रंग देने पूरी ताकत लगा दी। प्रदेश भर में बीजेपी हनुमान चालीसा पढ़ने लगी। मोदी ने पच्चीस किलोमीटर का रोड शो भी किया। लेकिन चुनाव परिणाम यही बताता है कि मोदी और अमित शाह का सियासी बाजार में रेट गिर गया है। मोदी की छवि के दम पर बीजेपी अब ढाई घर नहीं चल सकती। पजाब हिमाचल प्रदेश हारने के बाद कर्नाटक जिसे दक्षिण का सियासी द्वार कहा जाता है, वो बीजेपी के लिए बंद हो गया है। बीजेपी का पश्चिम बंगाल से भी बदतर प्रदर्शन था कर्नाटक में। पश्विम बंगाल में अस्सी सीट और कर्नाटक में 64 सीट पाकर कमजोर विपक्ष की भूमिका में बीजेपी रहेगी। यह कह सकते हैं कि मोदी के नारे की हवा अब निकलने लगी है। कांग्रेस मुक्त भारत की। छह माह बाद तेलंगाना में चुनाव होना है। वहां बीजेपी वैसे ही कमजोर है। क्या यह मान लिया जाए कि मोदी की लीडरशिप कर्नाटक में नहीं चली। डबल इंजन सिर्फ दिल्ली में काम करता है। वो और उनकी सरकार कर्नाटक में फेल हो गए। इस बार बीजेपी अपने चुनावी बयान से मतदाताओं को ज्यादा नाराज किया। जैसा कि विजयनगर में मोदी ने कहा आज हनुमान जी की इस पवित्र भूमि को नमन करना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है और दुर्भाग्य देखिए। मैं आज जब यहां हनुमान जी को नमन करने आया हूं उसी समय कांग्रेस पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में बजरंगबली को ताले में बंद करने का निर्णय लिया है। कांग्रेस पार्टी को प्रभु श्री राम से भी तकलीफ होती थी और अब जय बजरंगबली बोलने वालों से भी तकलीफ हो रही है। मोदी धार्मिक धु्रवीकरण करने की कोशिश की। उन्हें उम्मीद थी इससे भगवा छतरी तन जाएगी। भ्रष्टाचार - मोदी हर आम सभा में यही कहते रहे कि सारे भ्रष्टाचारी विपक्ष एक हो गए है। लेकिन वे अपने मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार की अनदेखी किए। बीजेपी की हार के कारणों में एक कारण यह भी था। कांग्रेस ने शुरुआत से ही भाजपा के खिलाफ 40 फीसदी कमीशन लेने वाली सरकार को प्रचारित किया। एस.ईश्वरप्पा को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और बीजेपी के एक विधायक को जेल जाना पड़ा था। राज्य के ठेकेदार संघ ने इसकी शिकायत पी.एम मोदी से भी की थी। लेकिन शिकायत को उन्होंने तरजीह नहीं दी। चुनाव में काग्रेस ने इसे मुद्दा बनाकर बीजेपी के गले की फांस बना दिया। सियासी समीकरण - बीजेपी जिनके दम पर चुनाव जीतने का दम भर रही थी,उन्हें ही ठीक से नहंी जोड़ पाई। बीजेपी अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने पास न रख सकी और न ही दलित आदिवासी ओबीसी और वोक्कालिंग समुदायों का भरोसा बन सकी। दूसरी ओर कांग्रेस मुसलमानों दलितों और ओबीसी के अलावा लिंगायत समुदाय के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रही है। पुराना मौसूर वोक्कालिंगा का गढ़ है। यहां जेडीएस मजबूत है यही माना जा रहा था। क्यों कि पिछले दफा 58 सीटों में सबसे अधिक 24 सीट जेडीएस को,कांग्रेस को 18 और बीजेपी को 15 सीट मिली थी। इस बार पासा बदल गया। बोम्मई सरकार ने चुनाव से पहले मुसलमानों के लिए चार फीसदी कोटा समाप्त कर दिया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आगामी सरकार तक यथावत बनाए रखने का आदेश दिया। जाहिर है मुसलमानों ने बीजेपी को नकार दिया। धु्रवीकरण काम नहीं आया - कर्नाटक में एक साल से बीजेपी नेता हलाला हिजाब से लेकर अजान तक का मुद्दा उठा रहे हैं। हिजाब टीपू सुल्तान कम्युनल वॉयलेंस और करप्शन. कर्नाटक का पूरा चुनाव इन्हीं मुद्दों के इर्द.गिर्द रहा। उडुपी जहां से हिजाब विवाद शुरू हुआ। मेलकोटे जहां टीपू सुल्तान के आदेश पर 800 ब्राह्मणों की हत्या का दावा किया जाता है। श्रीरंगपटना जहां की जामिया मस्जिद के बारे में दावा है कि इसे टीपू सुल्तान ने हनुमान मंदिर तोड़कर बनवाया था। रामनगर जिसे दक्षिण की अयोध्या कहा जाता है बीजेपी सरकार ने यहां भव्य राम मंदिर बनाने का वादा किया। इसके अलावा वोक्कालिंगा वोटरों को साधने के लिए मोदी ने बेंगलूरु के संस्थापक कैपेगौड़ा की एयरपोर्ट के सामने 108 फीट की प्रतिमा का लोकार्पण किया था। वोक्कालिंगा के धर्म गुरू निर्मलानंद स्वामी से अमितशाह की भेंट को बीजेपी सियासी फायदा से जोड़ ली। इस जाति का आरक्ष्ण दो फीसदी बढ़ा दिया गया है। बावजूद इसके धु्रवीकरण काम नहीं आया। दिग्गज नेताओं को किनारे किया - बीजेपी ने भले ही येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया हो लेकिन सी.एम की कुर्सी पर रहने के बावजूद बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। जबकि कांग्रेस के पास डी.के शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे। बोम्मई को आगे खड़ा करना भाजपा को महंगा पड़ा। कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस येदियुरप्पा को बीजपी ने साइड में कर दिया। चुनाव प्रचार की कमान वोक्कालिंगा के केन्द्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे के पास थी। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी को भाजपा ने टिकट नहीं दिया। जबकि दोनों नेता कांग्रेस में शामिल हो गए और मैदान में उतर गए। येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी के हित में नहीं था। सत्ता विरोधी लहर - कांग्रेस सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के सवाल पर बोम्मई सरकार को घेरी। चालीस फीसदी कमीशन की सरकार का स्लोगन देकर कांग्रेस ने बीजेपी के नाक में दम लगा दिया। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी लंबे समय तक कर्नाटक में ही रहे। इसका प्रभाव जनता में काफी देखा गया है। कांग्रेस अघ्यक्ष मल्ल्किार्जुन खड़गे दलित वोटरों को लुभाने में लगे हैं। प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवाकुमार खुद वोक्कालिंगा जाति से हैं और सिद्धरमैया पिछड़ी जाति कोरुबा से है। दोनों ने मतभेद भुलाकर कांग्रेस का प्रचार किया। राज्य में सत्ता विरोधी लहर चली जिसे बीजेपी नियंत्रित नहंी कर सकी। बहरहाल कर्नाटक में हिन्दुत्व की चुनावी लड़ाई मोदी के काम नहीं आई। इसी के साथ
लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार बंद हो गया। इसी साल तीन राज्यों में होने वाले चुनाव से बेहिसाब बेचैनी बीजेपी के लिए बढ़ गयी। मोदी और अमितशाह को चुनाव के बड़े रणनीतिकार बताया जाता था लेकिन ंपजाब हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में हार से स्पष्ट है कि मोदी का सियासी बाजार में रेट गिर गया है ।

Wednesday, May 10, 2023

कर्नाटक में चुनावी लड़ाई हिन्दुत्व पर आई

''सत्ता में आने पर बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात कांग्रेस ने की तो बीजेपी ने इसे धर्म से जोड़ कर हिन्दुत्व की राजनीति को हवा दे रही है। बीजेपी को लगता है हनुमान चालीस का पाठ और मोदी के रोड शो से कर्नाटक में भगवा छतरी तन जाएगी। यदि कर्नाटक बीजेपी नहीं जीती तो उसे हिन्दी बेल्ट को जीतना मुश्किल होगा। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ लोकतंत्र में एक बयान चुनाव की दशा और दिशा बदल देते हैं। जनता की सोच बदल देते हैं। जनता में भावनात्मक लहर पैदा कर देते हैं। सत्ता में आने पर बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात कांग्रेस ने की तो बीजेपी ने इसे धर्म से जोड़ कर हिन्दुत्व की राजनीति को हवा दे रही है। बीजेपी को लगता है, हिन्दुत्व की राजनीति से कर्नाटक में भगवा छतरी तन जाएगी। यदि कर्नाटक बीजेपी नहीं जीती तो उसे हिन्दी बेल्ट को जीतना मुश्किल होगा। वैसे अमितशाह और तमाम चैनल के सर्वे के आधार पर पार्टी मान चुकी थी, कि दक्षिण का मिशन खतरे में है। बीजेपी ने अब बजरंग दल को बजरंगबली से जोड़ कर कर्नाटक में धर्म ध्वजा के जरिए विपक्ष को तगड़ा झटका देने की मुहीम में जुट गई है। पार्टी के नेता मान रहे हैं,कि प्रदेश भर में हनुमान चालीसा का पाठ और मोदी के (28 विधान सभा में ) रोड शो से कांग्रेस बैकफुट में आ गई। ‘हाथ’ में आने वाली सत्ता के फिसल जाने के भय से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने कहा,सत्ता में आने पर पूरे राज्य में हनुमान मंदिर का जीर्णोद्वार करवाएंगे और नए हनुमान मंदिर बनवाएंगे। पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली बीजेपी के हिन्दुत्व कार्ड की बढ़ती तपिश को कम करने कहा, पीएफआई और बजरंगदल जैसे संगठन को समाज में शांति भंग करते हैं। राज्य सरकार बजरंग दल को प्रतिबंधित नहीं कर सकती। बीजेपी बजरंग बाण से चालीस फीसदी वाली सरकार और अल्पसंख्यकों को आरक्षण नहीं देने जैसे मामले की हवा निकालने में लग गई है। यू.पी में अयोध्या के तर्ज पर बेंगलूरु के रामगढ़ में स्थित राम मंदिर में भव्य राम मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। रामगढ़ में ही शोले फिल्म की शूटिंग हुई थी। रामगढ़ के आस-पास के इलाके में करीब चालीस विधान सभा आते हैं। हिन्दुत्व कार्ड का असर कितना हुआ,चुनाव परिणाम बताएंगे। चुनावी हथकंडे - कर्नाटक चुनाव जीतना बीजेपी के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव के नजरिए से महत्वपूर्ण है। क्यों कि पिछली बार कर्नाटक ने मोदी की झोली में 25 सीटें दी थी। बीजेपी ने कर्नाटक में अपनी सत्ताई किला बचाने के लिए रेवड़ी की पोटली भी उछाली। जबकि प्रधान मंत्री रेवड़ी नीति की खिलाफत मंच से कई बार चुके हैं। सत्ता विरोधी लहर को कम करने की पूरी ऊर्जा पार्टी लगा दी है। बीजेपी एस.सी. कोटे का आरक्षण 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 कर दिया है। और एस.टी. कोटे को 3 से बढ़ाकर सात कर दिया है। लिंगायत समाज की कुछ जातियों को आरक्षण 5 से 7 और वोक्कालिंगा समाज का 4 से 6 फीसदी कोटा बढ़ाया गया है। मोदी की छवि दांव पर - कर्नाटक चुनाव तय करेगा पी.एम.मोदी की छवि से वोटर कितना प्रभावित है। पंजाब,हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में पी.एम की छवि का कोई खास लाभ नहीं मिला। इसलिए पार्टी कर्नाटक का चुनाव स्थानीय नेताओं के दम पर लड़ रही है। पार्टी में लिंगायत समाज के वसवराज बोम्मई सी.एम.हैं,लेकिन चुनाव प्रचार की कमान वोक्कालिंगा के केन्द्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे के पास है। वोक्कालिंगा वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने बेंगलूरु के संस्थापक कैपेगौड़ा की एयरपोर्ट के सामने 108 फीट की प्रतिमा का लोकार्पण मोदी ने पिछले साल किया था। इसके अलावा वोक्कालिंगा के धर्म गुरू निर्मलानंद स्वामी से अमितशाह की कई भेंट से सियासी फायदा से जोड़ा जा रहा है। इस जाति का आरक्षण दो फीसदी बढ़ा दिया गया है। बीजेपी से नाराज - पुराना मौसूर वोक्कालिंगा का गढ़ है। यहां जेडीएस मजबूत है। पिछले दफा 58 सीटों में सबसे अधिक 24 सीट जेडीएस को,कांग्रेस को 18 और बीजेपी को 15 सीट मिली थी। मुसलमानों को पाले में लाने कांग्रेस पहले से ही प्रयासरत है। बोम्मई सरकार ने चुनाव से पहले मुसलमानों के लिए चार फीसदी कोटा समाप्त कर दिया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने नौ मई तक रोक लगा दी। दरअसल अधिकांश विधान सभा में मुस्लिम वोटर 20 से 25 हजार के करीब हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 38 फीसदी वोट मिले थे,जो बीजेपी से दो फीसदी अधिक था। इसके बावजूद बीजेपी को कांग्रेस से अधिक सीट मिली थी। बीजेपी के 105 विधायक जीते थे। कर्नाटक में 224 विधान सभा में 54 लिंगायत समाज के विधायक हैं। जिसमें सर्वाधिक 37 बीजेपी के विधायक हैं। सौ सीटों पर लिंगायत वोटर प्रभावी हैं। ओल्ड कर्नाटक-मुंबई रीजन यानी अभी का कितुर कर्नाटक क्षेत्र में इसकी बहुलता है। इस क्षेत्र में बेलागवी, धारवाड़,विजयपुरा,गडग,हवेरी,बगलकोट और उत्तर कन्नड़ के सात जिले और विधान सभा की 50 सीटें आती है। कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व गैर लिंगायत के हाथों में है। लिंगायत इस समय बीजेपी से नाराज है। देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का आधार वोक्कालिंगा वोटर हैं। इस बार कुमार स्वामी यही मानकर चल रहे हैं कि किसी को बहुमत नहीं मिलने पर उनकी बल्ले-बल्ले हो सकती है। कांग्रेस की रणनीति - बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए डी.के शिवकुमार और सिद्धरमैया की जोड़ी आपसी गुटबाजी को दरकिनार करके सीधे जनता को सरकार की नकामी गिना रहे हैं। कांग्रेस सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के सवाल पर बोम्मई सरकार को घेर रही है। चालीस फीसदी कमीशन की सरकार का स्लोगन देकर कांग्रेस ने बीजेपी के नाक में दम लगा रखा है। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी लंबे समय तक कर्नाटक में ही रहे। इसका प्रभाव जनता में काफी देखा गया है। कांग्रेस अघ्यक्ष मल्ल्किार्जुन खड़गे दलित वोटरों को लुभाने में लगे हैं। प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवाकुमार खुद वोक्कालिंगा जाति से हैं और सिद्धरमैया पिछड़ी जाति कोरुबा से है। हिन्दुत्व पर जोर - बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में हिन्दुत्व पर जोर दिया है। गो हत्या प्रतिबंध कानून और जबरिया धर्म परिवर्तन कानून का सख्त बनाने का वायदा किया। बीजेपी को लगता है कि हिजाब विवाद,टीपू सूल्तान विवाद,और मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार से उसे फायदा मिल सकता है। पार्टी राज्य में 2500 करोड़ रुपये से पाँच सर्किट बनाने की बात कही है। इन पांच सर्किट में तीन परशुराम सर्किट,गंगोपुरा सर्किट,और कावेरी सर्किट वाले इलाके टीपू सुल्तान,हिजाब और पीएफआई पर रोक जैसे मुद्दे हैं। वोटरों को लुभाने बीजेपी ने गरीबी रेखा के नीचे परिवार को आधा लीटर नंदिनी दूध प्रतिदिन देने का वायदा की। दरअसल कांग्रेस ने बीजेपी पर राज्य के सहकारी ब्रांड नंदनी को खत्म करने का आरोप लगाया था। हर महीने परिवार के हर सदस्य को 5 किलो बाजरा। उगादी,गणेश चतुर्थी और दीवाली पर बीपीएल परिवार को तीन मुफ्त गैस सिलेंडर, कर्नाटक ओनरशिर में संशोधन, हर वार्ड में लैब, अटल आहार केन्द्र,कर्नाटक में समान नागरिक संहिता आदि बातें हैं। बहरहाल कर्नाटक यदि बीजेपी हार गई तो उसे मध्यप्रदेश बचाने में दिक्कत जा सकती है। छत्तीसगढ़ उसके हाथ में आएगी इसकी संभावना कम है। राजस्थान में गहलोत और सचिन के सियासी जंग पर बीजेपी की राजनीति टिकी है। तेलंगाना में बीजेपी नहीं आई तो अगामी लोकसभा चुनाव चौकाने वाले होंगे।

Saturday, April 15, 2023

झूठे इतिहास का बहुत जरूरी है आपरेशन

'वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने इतिहास को अपने विचारों की प्रयोगशाला बना दिया। मुगल शासक
ों की क्रूरता और अत्याचार को ढकने में अपनी सारी बौद्धिकता लगा दी। मुगल बादशाहों को इतिहास में नेक दिल और अच्छा इंसान बताने की साजिश की गयी है। इतिहास का सिर्फ आॅपरेशन ही नही बल्कि,नए सिरे से लिखा जाना जरूरी है। क्यों कि पुराना इतिहास केवल झूठ का पुलिंदा है।' 0 रमेश कुमार' रिपु ' एनसीइआरटी (राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के अधिकारियों ने इतिहास की किताबों से कुछ चीजों को हटाने का फैसला किया है। उनके इस फैसले पर विवाद हो रहा है। कायदे से पूरा इतिहास नए सिरे से लिखा जाना चाहिए। इसलिए कि वामपंथी इतिहासकारों ने झूठा इतिहास खूब लिखा है। यहां तक लिखा है कि मुगल दौर में एक भी मंदिर नहीं तोड़ा गया था। आज के दौर में कोई भी बच्चा यह मानने को तैयार नहीं है। इतिहास का अपना सच और झूठ दोनों है। देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी हमारे बच्चे इतिहास का झूठ क्यों पढ़ें? यानी अमृत महोत्सव के दौर में क्यों पढ़ा जाए कि अकबर महान था। जो जीता वही सिंकदर। औरंगजेब की बर्बरता को नजर अंदाज क्यों किया जाए। धर्म परिवर्तन नहीं करने पर 1704 में श्री गोविंद सिंह के दो पुत्रों, साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को मुगल शासक ने ईंटों की दीवार में चुनवा दिया था। हूमायू की झूठी गाथाएं हमारे बच्चे क्यों पढ़ें? सोमनाथ का मंदिर लूटने वाले मुहम्मद गजनवी की महिमा मंडित क्यों? कारीगरों के हाथ कटवा देने वाले शाहजहां को अपनी बेगम मुमताज का बहुत बड़ा प्रेमी बताने की झूठी कहानी क्यों पढ़ी जाए? वामपंथी इतिहासकारों ने दक्षिण के राजाओं,राजवंशों का इतिहास लिखा ही नहीं। चोल राजाओं ने एक हजार साल तक राज किया था। पुराने इतिहास में मुगल दौर को ज्यादा अहमियत दी गई। जबकि मुगलों का सिर्फ तीन सौ साल का इतिहास है। प्राचीन इतिहास में मुगल दौर की जितनी भी झूठी गाथाएं हैं,उन्हें हटा कर नए सिरे से इतिहास लिखा जाना चाहिए। शाहजहां और मुमताज में नहीं था प्रेम - आज भी यही कहा जाता है कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनाया। जबकि इतिहास में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिलता कि शाहजहां और मुमताज में कोई प्रेम था। इसके विपरीत जहांगीर और नूर जहांँ में प्रेम था। अपनी पत्नी से प्रेम करने वाला शासक प्रतिभावान कारीगरों के हाथ कटवा दे,उसे कला का संरक्षक नहीं कहा जा सकता। शाहजहां अहंकारी और अत्याचारी शासक था। मुमताज के दफनाने की तिथि का उल्लेख नहीं मिलता है। भिन्न-भिन्न तिथियांँ है। ताजमहल कब बना, इसकी कोई तारीख तय नहीं है। टेवर नियर भारत में 1641 में आया था। मुमताज की मौत के ग्यारह वर्ष बाद। तब तक ताजमहल नहीं बना था। वह ताजमहल बनते देखा है। टेवर नियर 1641 से 1668 तक भारत में था। जय सिंह का,पैतृक राजा प्रसाद ले लिया गया था और मुमताज की मौत के बाद उसे उस में दफनाया गया था। पहले मंदिर था जामा मस्जिद - दिल्ली के संदर्भ में यही बताया जाता है कि पुरानी दिल्ली की स्थापना 15वीं शताब्दी में बादशाह शाहजहाँ ने की थी। जबकि तैमूरलंग जिसने सन् 1338 ई० के क्रिसमस के दिनों में दिल्ली पर आक्रमण किया था। कत्ले आम उसने पुरानी दिल्ली में ही किये थे। पुरानी दिल्ली का प्रमुख मन्दिर तैमूरलंग के आक्रमण काल में ही मस्जिद में बदल गया था। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हिन्दू लोग उस भवन में अपनी स्वेच्छा से एकत्र न हुए होते। आज जिसे जामा मस्जिद नाम से पुकारा जाता है वो एक हिन्दू मंदिर ही था। इतिहासकारों ने बता दिया कि इसे शाहजहां ने बनवाया था। मंदिर था निजामुद्दीन का मकबरा -दिल्ली में निजामुद्दीन का मकबरा कहलाने वाली इमारत कभी हिंदुओं का मंदिर था। इस पर पंचरत्न के पांच गुंबज हैं। आज भी पंच, पंचामृत, पंचगनी आदि के महत्व को हिन्दू जानते है। इमारत गेहुए रंग के पत्थर की बनी हुई है। जो हिंदू ध्वज का रंग है। अंदर एक विशाल बावड़ी है। उस के तल में हिंदू मूर्तियां पड़ी मिलेंगी। इस्लामी हमलावरों ने मंदिरों से उखाड़ कर उसमें फिकवा दी। हैरानी वाली बात है कि जब तक निजामुद्दीन थे उनका कोई महत्व नहीं था। उनके मौत के बाद महल कोई क्यों बनवाएगा? सिंकदर नहीं था महान - इतिहास में लिखा है सिंकदर महान था। उसने चाणक्य के साथी पोरस को हरा दिया। क्या पोरस महान नहीं था? यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर को महान बताने के लिए लिख दिया कि जो जीता वही सिंकदर। भारतीय इतिहासकार यही लिखते,जो जीता वही पोरस। सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात अपने सौतेले और चचेरे भाइयों का कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिंहासन पर बैठा था। अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला। यूनान के मकदूनिया का राजा सिकंदर कभी भी महान नहीं था। यूनानी योद्धा सिकंदर एक क्रूर अत्याचारी और शराब पीने वाला व्यक्ति था। सिकंदर ने कभी भी उदारता नहीं दिखाई। प्रसिद्ध इतिहासकार एर्रियन लिखते हैं, जब बैक्ट्रिया के राजा बसूस को बंदी बनाकर लाया गया। तब सिकंदर ने उनको कोड़े लगवाए और उनका नाक-कान कटवा दिया । कुछ दिनों बाद उनकी हत्या करवा दिया। उसने अपने गुरु अरस्तू के भतीजे कलास्थनीज को मारने में संकोच नहीं किया। ऐसे व्यक्ति को महान कैसे कह सकते हैं? सच यह है कि यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में झूठ लिख कर अपने महान योद्धा और देश के सम्मान को बचाया। ज्ञानी नहीं थे मौलाना आजाद - इतिहासकार ठाकुर रामसिंह शेखावत के अनुसार देश के पहले शिक्षामंत्री मौलाना आजाद को भारतीय संस्कृति का ज्ञान नहीं था। उनके एवं उनके बाद बने मुस्लिम शिक्षामंत्रियों के इशारे पर योजनाबद्ध तरीके से इतिहास में काफी फेरबदल किया गया। रामसिंह अंग्रेज इतिहास बिनसेंट स्मिथ का हवाला देते हुए कहते हैं, कि सारंगपुर विजय के बाद मुगल सिपहसालार आसफ खां ने अकबर को चिट्ठी लिखी थी कि मालवा और निमाड़ को हिन्दूविहीन कर दिया गया है। इस चिट्ठी का उल्लेख स्मिथ की पुस्तक में है। क्रूर था अकबर - अकबर के लिए पहली बार महान शब्द का संबोधन एक पुर्तगाली पादरी ने किया था। अकबर इतना क्रूर था कि आत्मसमर्पण करने वाले इस्लाम कबूल नहीं करते थे,उन्हें मौत के घाट उतार देता था। अकबर एक धूर्त बादशाह था। यह अलग बात है,कि टी.वी. और फिल्मों में अकबर और जोधाबाई के प्रेम प्रसंग दिखाए जाते हैं। जबकि हकीकत में जोधा से अकबर की शादी नहीं हुई थी। उसका भाई भारमल का बेटा भूपत उसका डोला अकबर के खेमे में छोड़ गया था। अबुल फजल ने भी एक जगह उल्लेख किया है कि जोधा को एक बार ही आगरा के महल से बाहर निकलने दिया गया। उसका भाई अकबर को बचाते हुए मारा गया था। बख्तियार के नाम रेल्वे स्टेशन -दुनिया का सबसे अधिक समृद्ध विश्वविद्यालय नालंदा की किताबों से और उसके विचारों से आपत्ति करने वाले मुगल शासक बख्तियार खिलजी ने उसे जला दिया। कई महीने तक किताबें जलती रहीं। दुनिया में इतिहास का ज्ञान रखने वाला नालंदा विश्वविद्यालय खाक हो गया। ज्ञान के दुश्मन का महिमा मंडित करने वाले का इतिहास क्यों पढ़ा जाए? नए जमाने की पीढ़ी को ऐसी शख्सियत से क्या मिलेगा। इतिहास में खलनायक वाले पात्र अनेक हैं। हैरानी की बात है बख्तियार के नाम का बख्तियारपुर रेल्वे स्टेशन अब भी है। वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने इतिहास को अपने विचारों की प्रयोगशाला बना दिया। मुगल शासकों की क्रूरता और अत्याचार को ढकने में अपनी सारी बौद्धिकता लगा दी। मुगल बादशाहों को इतिहास में नेक दिल और अच्छा इंसान बताने की साजिश की गयी है। क्यों कि पुराना इतिहास केवल झूठ का पुलिंदा है। मुगलिया सलतनत ने देश की संस्कृति और उसके गौरव के साथ खिलवाड़ किया। फिर भी उनकी महिमा मंडन इतिहास में है। इसलिए झूठे इतिहास का आॅपरेशन जरूरी है।

Saturday, April 1, 2023

क्या छत्तीसगढ़ के नक्सली‘कांग्रेसी’ हो गए..?

सिलगेर जैसी घटना की पुनरावृति चाहे जितनी बार हो, नक्सली नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बने। इसलिए एक बार फिर लाल सलाम के निशाने पर भाजपाई हैं। और माओवादी कांग्रेस नेता राजबब्बर की कही बात को अमल में लाने बीजेपी नेताओं की हत्या कर क्रांतिकार बनने में लगे हैं। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ कांग्रेस नेता राजबब्बर ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस भवन में 4 नवम्बर 2018 को कहा था,‘‘नक्सली क्रांतिकारी हैं। वे क्रांति करने निकले हैं। उन्हें कोई रोके नहीं।’’ तो क्या यह मान लिया जाए कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी नेताओं की हत्या कर के नक्सली क्रांतिकारी बनना चाहते हैं। या छत्तीसगढ़ के नक्सली अपनी विचार धारा बदल लिए है। अब वे भाकपा का चोला उतार कर कांग्रेसी हो गए हैं। यह सवाल छत्तीसगढ़ में पिछले एक माह में उनके द्वारा चार भाजपा नेताओं की हत्या पर उठा है। अभी तक यही कहा जाता था कि नक्सलियों की अपनी सोच है। विचार धारा है। वे सरकार के दुश्मन हैं। वे अपनी जनताना सरकार चलाते हैं। अब वे बदल गए हैं। इसीलिए जितना उपद्रव बीजेपी के शासन मे ंकिया उतना कांग्रेस के शासन में नहीं। वे एकदम से चुप बैठ गए हैं,ऐसा भी नहीं है। वारदात करके अपने होने का एहसास कराते रहते हैं। सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव ने संसद में बीजेपी नेताओं की हत्या का मामला उठाया तो प्रदेश में राजनीति गरमा गई। बीजेपी मंडल अध्यक्ष नीलकंठ ककेम की घर में घुसकर नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी। दूसरी घटना नारायणपुर जिले के छोटे डोंगर में बीजेपी जिला उपाध्यक्ष सागर साहू की माओवादियों ने घर में हत्या की। तीसरी घटना दंतेवाड़ा जिले के हितामेटा गांव की है। पूर्व सरपंच और बीजेपी के सक्रिय नेता रामधर अलामी की हत्या की। इसके पहले बस्तर जिले के बास्तानार इलाके में भी बीजेपी जिला महामंत्री बुधराम करटम की हत्या की। हालांकि बस्तर पुलिस ने भाजपा के जिला महामंत्री के मौत को दुर्घटना बताया है। वहीं भूपेश सरकार का दावा है राज्य में नक्सली वारदातों में भारी कमी आई है। पहले जहांँ आए दिन नक्सली वारदातें हुआ करती थी,अब थम गयी है। सवाल यह है,कि अब नक्सली नरम किसके लिए हुए हैं। राजनीतिक सवाल कई हैं। उन्हीं सवालों में एक सवाल यह है,कि भूपेश सरकार नक्सलियों पर नकेल लगाने में कामयाब हो गई है तो फिर लाल सलाम के निशाने पर बीजेपी नेता ही क्यों हैं? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,बीजेपी चाहे तो एनआइए से जांच करा ले। नक्सलियों ने अपनी रणनीति बदली है। वे पहले हमला करते थे,अब घर में जाकर हत्या करने लगे हैं। वे कमजोर हुए हैं। रिकार्ड देख सकते हैं,हमने छह सौ गांवों को नक्सली मुक्त कराया है। तीन सौ स्कूल फिर से प्रारंभ किए गए हैं। सरकार किसी भी पार्टी की हो,नक्सली बंदूक से निकली गोली,‘मौत का वारंट’ बनी। छत्तीसगढ़ के दूर अंचलों में क्रांति के नाम पर लाल गलियारे में धधक रही आग में भी दहशत की कहानी है। यह आग सरकार विरोधी है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी हिंसा के फैलाव को कम करने के मक़सद से सलवा जुडूम शुरू न किया गया होता, तो शायद माओवादियों के निशाने पर राजनीतिक दलों के नेता न होते। सलवा जुड़ूम ने माओवादियों को आक्रोशित कर दिया। सलवा जुडूम की वजह से 25 मई 2013 को नक्सलियों ने झीरम कांँड किया। नक्सलियों ने 32 कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बर्बरता पूर्वक हत्या की थी। यह वारदात बड़ी भयावह थी। झीरम कांँड के चार साल बाद नक्सलियों ने बीजेपी नेताओं को धमकाना शुरू कर दिया था। पुलिस के हत्थे चढ़ा तीन लाख का इनामी कुख्यात माओवादी मद्देड़ एल.जी.एस कमांडर राकेश सोढ़ी 23 जून 2017 को खुलासा किया,कि वन मंत्री महेश गागड़ा माओवादियों की हिटलिस्ट में हैं। महेश गागड़ा घोर नक्सल प्रभावित इलाके बीजापुर में रहते हैं। उन्हें मारने के लिए सेन्ट्रल कमेटी ने आदेश जारी किया था। नक्सली राकेश सोढ़ी के खुलासे पर पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने वन मंत्री की सुरक्षा बढ़ा दी थी। नक्सली राकेश सोढ़ी के मुताबिक माओवादियों के खिलाफ़ आॅपरेशन से सेन्ट्रल कमेटी के नेता नाराज़ हैं। ‘आॅपरेशन प्रहार’ को रोकने सेन्ट्रल कमेटी ने बीजेपी के नेताओं की हत्या की योजना बना रहे हैं।’’ नक्सली राकेश सोंढ़ी के मुताबिक मद्देड़ जिला पंचायत सदस्य और बीजेपी नेता की हत्या माओवादी कमांडर नागेश के कहने पर की गई थी। किरंदुल थाने के चोलनार में नक्सलियों ने पूर्व जनपद अध्यक्ष और कांग्रेस नेता छन्नूराम की 26 जून 2017 की रात चाकू और कुल्हाड़ी से हत्या कर दी। वे नक्सली हमले में शहीद महेंद्र कर्मा के करीबी थे। उस समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा,‘‘बस्तर में कांग्रेसी सुरक्षित नहीं हैं। चुनाव आते ही कांग्रेस नेताओं की हत्या बस्तर में शुरू हो जाती है। राज्य सरकार सुरक्षा दे पाने में नाकाम है।’’ डाॅ रमन सिंह के समय नक्सलियों ने एक फ़रमान जारी किया था,कि भाजपा नेता,भाजपा छोड़ें और सरकार की तारीफ करना बंद करें अन्यथा उनकी जान की ख़ैर नहीं है। डाॅ रमन सिंह के समय भी बीजेपी के 35 लोग पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिए थे। भाजपा के दो जिला पंचायत सदस्यों को नक्सलियों ने गोली मार दी थी। बस्तर में माओवादियों ने 2018 के चुनाव के डेढ़ साल पहले से बीजापुर से बीजेपी को खत्म करने अपने अभियान की शुरूआत कर दी थी। बीजापुर के ग्रामीण क्षेत्रों के बीजेपी नेताओं को अल्टीमेटम दिया कि वे बीजेपी छोड़ दें। भोपालपटनम के भाजपा नेता मज्जी रामसाय और बोरगुड़ा के सरपंच यालम नारायण की नक्सलियों ने हत्या कर यह बता दिया, कि उनके फ़रमान को नकारना ठीक नहीं है। इसके बाद वनमंत्री महेश गागड़ा के काफिले पर पैगड़पल्ली के निकट हुए हमले में जिला पंचायत सदस्य रमेश पुजारी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। महेश गागड़ा के ही करीबी भाजयुमो अध्यक्ष मुरली कृष्ण नायडू पर भी हमला किया था। मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह के लोक सुराज अभियान के दौरान 2016 में 28 अप्रैल को जब वे भोपालपटनम और तिमेड़ पहुंचे, तो दहशत के चलते क्षेत्र का कोई भी भाजपा पदाधिकारी उनसे मिलने नहीं गया था। भारतीय जनता युवा मोर्चा के बीजापुर जिला अध्यक्ष रह चुके, जगदीश कोंड्रा की नक्सलियों ने कुल्हाड़ी से 27 मार्च 2018 को हत्या कर दी थी। सिलगेर जैसी घटना की पुनरावृति चाहे जितनी बार हो, नक्सली नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बने। इसलिए एक बार फिर लाल सलाम के निशाने पर भाजपाई हैं। और माओवादी कांग्रेस नेता राजबब्बर की कही बात को अमल में लाने बीजेपी नेताओं की हत्या कर क्रांतिकार बनने में लगे हैं।

Thursday, March 30, 2023

मानहानि के फैसले पर टन भर राजनीति

"राहुल गांधी ने पूरे मोदी समुदाय पर आरोप नहीं लगाया। बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी का भी नाम नहीं लिया। फिर मान हानि पूर्णेश मोदी और मोदी समुदाय की कैसे हो गयी? सूरत का फैसला कहांँ तक उचित है,सवाल है ही,साथ ही सत्ता पक्ष की सियासत ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ यह एक यक्ष प्रश्न है। राहुल के बयान से किसकी मानहानि हुई। समुदाय की या व्यक्ति की? ललित मोदी,नीरव मोदी और नरेन्द्र मोदी क्या अदालत में याचिका फाइल कर कहा, कि राहुल गांधी के बयान से हमारी मानहानि हुई है? याचिका कर्ता पूर्णेश मोदी का नाम राहुल गांधी ने लिया नहीं। राहुल गांधी ने मोदी समुदाय पर आरोप लगाया नहीं। उन्होंने कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली में नीरव मोदी,ललित मोदी और नरेन्द्र मोदी को चोर कहा। और यह पूछा,कि सब चोरों के सरनेम मोदी ही क्यों हैं। यह नहीं कहा, कि सब मोदी चोर हैं। राहुल गांधी के वकील ने दलील दी थी,कि पूर्णेश मोदी को इस मामले में पीड़ित पक्ष के रूप में शिकायतकर्ता नहीं होना चाहिए था। क्योंकि राहुल गांधी नें अधिकांश भाषणों में प्रधानमंत्री को निशाना बनाया है,न कि पूर्णेश मोदी को। बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा कहते हैं,राहुल गांधी नेे ललित मोदी,नीरव मोदी और नरेन्द्र मोदी को चोर कहकर ओबीसी समाज का अपमान किया है। वहीं सवाल यह है,कि योगी आदित्यनाथ ने सी.एम. बनने के बाद आखिलेश यादव के आवास खाली करने पर गंगाजल से धुलवा कर,क्या ओबीसी समाज का सम्मान बढ़ाया था? ललित मोदी मारवाड़ी हैं और नीरव मोदी जैन। क्या इन्हें चोर कहने से ओबीसी समुदाय का अपमान होता है? नरेन्द्र मोदी ओबीसी से आते है। तेली जाति के हैँ । वैसे भी गुजरात में परचून का काम करने वाले मोदी कहे जाते हैं। क्या यह मान लिया जाए,कि देश की अर्थव्यवस्था पर चोट करके भागे नीरव मोदी और ललित मोदी का बीजेपी ओबीसी के नाम पर सम्मानित करना चाहती है? अजीब क्रोनोलाॅजी है - राहुल गांधी ने सात फरवरी को मोदी और अडानी मामले पर लोकसभा में सवाल किये। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लिखा है कि देश के बाहर अडाणी की शेल कंपनियां हैं। सरकार बताए ये कंपनियां किसकी है। शेल कंपनियों से अडाणी के खाते में आया बीस हजार करोड़ रुपए किसका है? गौरतलब है कि देश में एक लाख 75 हजार सेल कंपनियां बंद कर दी गई हैं। सोलह फरवरी को शिकायत कर्ता पूर्णेश मोदी गुजरात हाई कोर्ट में खुद का स्टे वापस ले लेते हैँ । 27 फरवरी को सुनवाई शुरू होती है। 17 मार्च को फैसला रिजर्व और 23 मार्च को फैसला आता है। आनन फानन में लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी। प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार किसी भी जन प्रतिनिधि को दो साल या फिर इससे अधिक की सजा होती है,तो उसकी सदस्यता चली जाती है। जबकि मध्यप्रदेश में बीजेपी के दो विधायकों के साथ ऐसा अभी तक नहीं हुआ है। सूरत की अदालत का फैसला कहांँ तक उचित है,उस पर भी चर्चा है। यद्यपि सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को एक महीने का समय दिया है ऊपरी अदालत में अपील करने का। लेकिन लोकसभा सचिवालय ने एक दिन की भी मोहलत देना उचित नहीं समझा। दिल्ली के घटनाक्रम से बहुतों को एहसास हुआ कि राजनीति क्या चीज है। असंभव को संभव बना दिया। छल,प्रपंच,स्वार्थ और साजिश। सभी एक साथ। राहुल के साथ जो हुआ,सब खेल है। प्रयोजित है। कुछ संयोग और कुछ दुर्योग। पर अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है। कांग्रेस देश भर में सत्याग्रह कर रही है। और राहुल मामले को लेकर लगभग सभी विपक्षी दल एक हो रहे हैँ । यानी सन् 1977 जैसा मामला है। यदि ऐसा हुआ तो 2024 की चुनावी डगर बीजेपी के लिए टेढ़ी हो सकती है।जैसा कि अरविंद केजरीवाल कहते हैं,देश में गैर बीजेपी नेताओं को मुकदमें में फंसा कर खत्म करने की साजिश की जा रही है। हमारे कांग्रेस से मतभेद हैं,मगर राहुल गांधी को इस तरह मानहानि केस में फंसाना ठीक नहीं। हम अदालत का सम्मान करते हैं,पर इस निर्णय से असहमत हैं। बीजेपी नेताओं का क्या होगा - मानहानि मामले पर राजनीति का पारा ऊपर नीचे अभी होता रहेगा। इसलिए कि विपक्ष भाजपा नेताओं के पुराने वीडियो सोशल मीडिया में जारी कर सवाल कर रहे हैं,कि क्या यह मानहानि नहीं है? जैसा कि कांग्रेस नेत्री सुप्रिया कहती हैं,मोदी जी ने चीन में कहा,पिछले जनम में कोई पाप किया था,इसलिए हिन्दुस्तान में जन्म लिया। पिछले सत्तर साल में देश में कुछ नहीं हुआ। क्या देश की 140 करोड़ जनता का यह अपमान नहीं है? संसद में मोदी ने रेणुका की हंसी पर कहे,रामायण सीरियल बंद होने के बाद पहली बार शूर्पनखा सी हंँसी सुनने को मिली। सोनिया गांधी को कांग्रेस की विधवा कहा गया। शशि थरूर की पत्नी सुनंदा को पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड कहे थे। सवाल यह है कि शीर्ष नेताओं की भाषा का संस्कार ऐसा होगा, तो फिर लोकतंत्र में शिष्टता,आदर्श और मूल्यवादी राजनीति के बचने की संभावना नहीं रह जाएगी। सवाल यह भी है, कि देश के नेताओं को बोलना कब आएगा? इतनी जल्दी बाजी क्यों - लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने में इतनी जल्दी बाजी क्यों की? यह सवाल हर कोई कर रहा है। न खाऊंगा और न खाने दूंगा नारे पर अब संदेह होने लगा है। इसलिए कि जो अडानी 2014 से पहले तक दुनिया में 609 वे नंबर पर थे और कुछ साल में दूसरे नंबर पर कैसे पहुंचे? नियम बदल कर अडाणी को 6 एयरपोर्ट दिए गए। दुनिया का सबसे ज्यादा प्रॉफिटेबल मुंबई एयरपोर्ट को जीवीके से हाईजैक कर लिया गया। एयरपोर्ट में आज अडाणी की 24 फीसदी हिस्सेदारी है। 126 हवाई जहाजों का जो एचएएल का कॉन्ट्रैक्ट था, अनिल अंबानी को चला गया। प्रधानमंत्री इजराइल जाते हैं और अडाणी को ड्रोन को री फिट करने का कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता है। 4 डिफेंस की इनके पास कंपनियां है। प्रधानमंत्री ऑस्ट्रेलिया जाते हैं और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया वन बिलियन डॉलर लोन अडाणी को दे देता है। बांग्लादेश गए। कुछ दिन बाद बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड 25 साल का कॉन्ट्रैक्ट अडाणी के साथ साइन करता है। श्रीलंका राष्ट्रपति राजपक्षा ने कहा था,कि मोदी जी ने दबाव डाला था कि अडाणी को विंड पावर प्रोजेक्ट दे दिया जाए। मोदी इन आरोपों का कोई जवाब संसद में नहीं दिए। अडानी मामले पर जेपीसी भी गठित नहीं की। उक्त बातें राहुल संसद में फिर न उठा कर सरकार को कटघरे में खड़ा करें। इसलिए राहुल की सांसदी छिनी गई। बहरहाल राहुल गांधी के जेल जाने या फिर संसद सदस्यता खत्म होने से बीजेपी को कोई खास लाभ मिलेगा, इसकी संभावना नहीं दिख रही है। इसलिए कि राहुल के रहने पर ही बीजेपी को कोसने को बहुत कुछ मिलेगा। राहुल मामले पर जिस तरह पूरा विपक्ष एक होता दिख रहा है,इससे बीजेपी को नुकसान होगा।

Thursday, March 9, 2023

सीट बेल्ट बांध लें,चुनावी मौसम बदलने वाला है

"अगले साल दस राज्यों में चुनाव है। गुजरात चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी ने अपनी ओर सबका ध्यान खींचा है। सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है,आप किसे करेगी हाॅफ। क्या आप की वजह से चुनावी मौसम बदलेगा? किस पार्टी को अपनी सीट बेल्ट बांध लेनी चाहिए..?" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ गुजरात चुनाव से सियासियों को यह एहसास हो गया,कि आम आदमी पार्टी अब क्या चीज है? गुजरात में असंभव को भी संभव कर दिया। दो राज्यों में आप की सरकार। अब दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी का मेयर,यानी एमसीडी में कब्जा। अगले साल मेघालय,छत्तीसगढ़, कर्नाटक,राजस्थान,मध्यप्रदेश और राजस्थान में चुनाव है। गुजरात चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी ने अपनी ओर सबका ध्यान खींचा है। सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है,आप किसे करेगी हाॅफ। क्या आप की वजह से चुनावी मौसम बदलेगा? किस पार्टी को अपनी सीट बेल्ट बांध लेनी चाहिए? अगले साल होने वाले दस राज्यों के चुनाव में सबका ध्यान मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में है। मध्यप्रदेश में बीजेपी एंटीइन्कमबेसी के संक्रमण से गुजर रही है। जबकि है सत्ता में। लेकिन संशय में है। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। अंदर ही अंदर खामोशी है। शांति है,पर सब अशांत हैं। कांग्रेस के खेमे में तोड़ फोड़ कर उसने सरकार बना ली,मगर चुनाव में जनता उसे सत्ता सौपेंगी कि नहीं,बीजेपी के नेता दुविधा में हैं। गुजरात में पूरा मंत्रीमंडल बदल दिया गया था। मुख्यमंत्री भी। साथ ही 103 नए चेहरों को टिकट दिया गया। क्या यहाँ भी आप की वजह से ऐसा हो सकता है,या फिर ऐसा करना पड़ेगा। आंतरिक सर्वे और इंटेलीजेंस की रिपोर्ट ने बीजेपी हाईकमान का बी.पी.बढ़ा दिया है। उसे भी लगता है,एंटी इनकम्बेंसी की वजह से बीजेपी को बड़ा नुकसान होने का अंदेशा है। मध्यप्रदेश में भी शिवराज सरकार की बड़ी सर्जरी करके ही एंटी इन्कमबेंसी कम की जा सकती है। करीब 67 विधायकों के टिकट काटने की योजना है। ताकि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के लिए भष्मासुर साबित हो सके। वहीं बीजेपी के सामने अगामी चुनाव में कई सियासी कंटक है । सिंधिया गुट के बाद आज भी कांग्रेस में 95 विधायक हैं। बीजेपी को ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट को भी टिकट देना होगा। जाहिर है टिकट वितरण में संतुलन बनाना बीजेपी के लिए मुश्किल होगा। संतुलन तभी बनेगा,जब सीनियर विधायकों की टिकट कटेगी। बीजेपी और कांग्रेस से नाराज लोगों को टिकट देने आप कांउटर खोल कर बैठ जाएगी। ऐसे में सबसे ज्यादा बवाल बीजेपी में मचेगा। और आम आदमी पार्टी की वजह से नुकसान बीजेपी को होगा। ऐसा हुआ तो चुनाव का मौसम बदल जाएगा। सीट बेल्ट बांधने की बारी बीजेपी की है। आप से कांग्रेस का संगठन ज्यादा मजबूत होने से उसे खतरे का अंदेशा कम है। बीजेपी नेता मानते हैं कि,गुजरात जैसी मध्यप्रदेश की सियासी स्थिति नहीं है। यहांँ का वोटर भी वैसा नहीं है। लेकिन बरसों से बीजेपी में जो विधायक हैं,वर्तमान में मंत्री भी हैं। चुनाव प्रचार में या फिर लोकसभा चुनाव में उन्हें लगाया जा सकता है। देखा जाए तो बीजेपी में आठ बार से विधायक हैं गोपाल भार्गव। सात बार से विधायक हैं विजय शाह,गौरीशंकर बिसेन और कर्ण सिंह वहीं छह बार से विधायकों में जगदीश देवड़ा,नरोत्तम मिश्रा,बिसाहूलाल सिंह,पारस जैन,रामपाल सिंह और गोपीलाल जाटव हैं। पांच बार से विधायक कमल पटेल,प्रेम सिंह पटेल,तुलसी सिलावट,मीना सिंह,जय सिंह मरावी,सीतासरण शर्मा,नागेन्द्र सिंह। चौदह ऐसे विधायक हैं,जो चार बार से विधायक हैं। 28 विधायक तीन बार से है। दो बार के 36 विधायक हैं और पहली बार विधान सभा पहुंचने वाले 30 विधायक हैं। जाहिर सी बात है उन मंत्रियों और विधायकों की टिकट कट सकती है जिन्हें नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में बीजेपी के जिताने का दायित्व दिया गया था,लेकिन सफल नहीं हो सके। वैसे आप के पास कोई सियासी सिद्धांत नहीं। सिवाय रेवड़ी नीति के। यह रेवड़ी नीति का जादू किन राज्यों की जनता पर चलेगा,खुद आप भी नहीं जानती। लेकिन गुजरात चुनाव में उसकी वजह से कांग्रेस 77 सीट से फिसल कर 17 सीट पर आ गई। क्या मध्यप्रदेश में भी ऐसा हो सकता है? क्या वाकई कांग्रेस का विकल्प आप बन सकती है या फिर उसे बीजेपी का भी विकल्प बतौर जनता देखती है? शहरी अबादी का मध्यम वर्ग का तबका आप की रेवड़ी नीति से प्रभावित है। यह वोटर कांग्रेस और बीजेपी दोनों को वोट करता आया है। वो बंटेगा। आप उसी वोटर पर फोकस करेगी,जिन्हें कांग्रेस और बीजेपी करती है। उसकी नजर ओबीसी,एस.सी.और एस.टी.. वोटरों पर है । सन् 2018 के विधान सभा चुनाव में आप को मात्र 2.54 लाख वोट मिले थे। जबकि नगरीय निकाय और पंचायती चुनाव में उसे सात फीसदी वोट मिले। यदि वो विधान सभा चुनाव में पन्द्रह फीसदी वोट झटक लेती है तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों का नुकसान होगा। प्रदेश में आम आदमी पार्टी का सिंगरौली में मेयर है। जबकि इसे शिवराज सिंह चैहान सिंगापुर बनाने का वायदा किए थे। यहाँ आप के पांँच पार्षद हैं। यानी सिंगरौली जिले की विधान सभा में आप का दखल रहेगा। आप ने नगरीय निकाय चुनाव में पार्षद के लिए 1500 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। जिसमें 51 प्रत्याशी चुनाव जीते। आप के 86 पार्षद प्रत्याशी दूसरे नम्बर पर थे। मेयर चुनाव में ग्वालियर से रूचि गुप्ता ने 45 हजार से अधिक वोट पाई थीं। वहीं सिंगरौली, उमरिया, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, राजगढ़, शाजापुर,रतलाम,ग्वालियर के डबरा,श्योपुर,छिंदवाड़ा में पार्टी के पार्षद चुनकर आए हैं। तो क्या यह मान लिया जाए, कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस जिन 26 सीटों पर सात हजार से भी कम वोटों से जीती है, गुजरात जैसी स्थिति बनने पर कांग्रेस को पचास से अधिक सीटों का नुकसान होगा। दिल्ली से लगे ग्वालियर चंबल में दस विधान सभा आते हैं। आदिवासी रिजर्व सीटों पर आप का जयस(जय आदिवासी युवा शक्ति) से तालमेल है। ऐसे में कांग्रेस की दस सीटों का परिणाम प्रभावित हो सकता है। 2018 के चुनाव में आदिवासी की 47 सीट में 30 सीटें बीजेपी जीती थी। इस बार यह सीट घट सकती है। विधान सभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों की वजह से उसका वोट प्रतिशत पन्द्रह फीसदी हुआ तो चुनाव का मौसम बदल जाएगा। छत्तीसगढ़ में आप एक बूथ पर दस युथ की रणनीत पर काम कर रही है। आप के कार्यकर्ता घर घर जा कर जानकारियांँ एकत्र कर रहे हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस सात सीटों पर तीसरे नम्बर पर थी। 19 सीटों पर उसका मंथन चल रहा है। कांग्रेस के 71 विधायक हैं। आप उनके लिए भी दरवाजे खोल रखी है जो बीजेपी,कांग्रेस और जोगी कांग्रेस से टिकट नहीं पाएंगे। छत्तीसगढ़ में आप के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन आप से सियासी नुकसान अन्य दलों को होगा,क्यों कि आप भी इस वक्त राष्ट्रीय पार्टी है।

विपक्ष को तोड़ने मोदी की नायाब रणनीति

"ईडी,आइटी और सीबीआइ की चाकू से विपक्ष की आर्थिक पाइप लाइन को चुनाव से पहले मोदी ने काटने का इंतजाम किया है। ताकि 350 से ज्यादा के लक्ष्य के तहत मुश्किल वाली 160 सीट में भी भगवा छतरी तन सके।" 0 रमेश
कुमार ‘रिपु’ बीजेपी के लिए 2024 का चुनाव जीतना ज्यादा महत्वपूर्ण है। ताकि वह इंदिरा गांधी के दस साल तक पी.एम.रहने का रिकार्ड तोड़ सके। इसके लिए मोदी सरकार ने ईडी,आइटी और सीबीआइ की चाकू से विपक्ष की आर्थिक पाइप लाइन को चुनाव से पहले काटना शुरू कर दिया है। ताकि 350 से ज्यादा के लक्ष्य के तहत मुश्किल वाली 160 सीट में भी भगवा छतरी तन सके। वैसे नौ राज्यों का चुनाव भाजपा के लिए 2024 के आम चुनाव का सेमीफाइनल है। दूसरी और कांग्रेस के लिए खुद को पुर्नजीवित करने का आखिरी मौका। लेकिन बीजेपी ने चुनाव से पहले जो रणनीति बनाई है,उसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। छत्तीसगढ़ में छठवीं बार ई.डी ने छापा मारा है। विपक्ष को जहांँ से आर्थिक हेमोग्लोबिन मिल रहा है,उस नस को ई.डी,आइ.टी. और सी.बी.आइ. के ब्लेड से सत्ता पक्ष काट देना चाहता है। ताकि विपक्ष आर्थिक रूप से विकलांग हो जाए। यह बात छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई से स्पष्ट है। छठवीं बार ई.डी.- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब-जब दूसरे राज्य का चुनावी प्रभारी बने,ईडी ने छापा मारा। झारखंड,असम,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड या फिर हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाए गए थे,तब भी ईडी ने राज्य में छापा मारा। अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 24 फरवरी से कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन होने जा रहा है। उससे पहले ई.डी ने छापा मारा। वैसे कांग्रेस के लिए भूपेश बघेल एटीएम हैं। इसलिए सत्ता पक्ष के लिए किरकिरी बने हुए हैं। चूंकि राजनीति पैसे से चलती है। पैसे पर पलती है। ऐसे में कांग्रेस की राजनीति को तोड़ने के लिए पैसे की आवाजाही रोकना जरूरी है। या फिर ईडी,आइटी और सीबीआइ का इतना दबाव बनाओ,कि दीगर पार्टी के लोग बीजेपी में शामिल हो जाएं। प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस प्रवक्ता आर.पी सिंह,विनोद तिवारी,कांग्रेस कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल,खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन और भिलाई विधायक देवेंद्र यादव के घर पर छापा मारा। निखिल चंद्राकर कारोबारी सूर्यकांत तिवारी का कर्मचारी है। इनके पास से डायरियां बरामद हुई हैं। जिसमें लेनदेन का ब्यौरा है। लेव्ही घोटाला - यह माना जा रहा है कि पांच करोड़ की उगाही की गई है,जो कि लेव्ही घोटाला है। उसकी पूछताछ के लिए ई.डी.ने छापा मारा है। हर टन कोयले पर पच्चीस रुपए वसूला जाता है। वैसे ईडी ने कइयों को गिरफ्तार किया है। सौम्या चैरसिया जो कि सुपर सीएम कही जाती हैं,वो इस वक्त जेल में है। ईडी ने छत्तीसगढ़ में हुए 540 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार में 277 करोड़ रुपए का लिखित हिसाब दिया है। वहीं कांग्रेस का कहना है,कांग्रेस अधिवेशन को डिस्टर्ब करने की ये साजिश है। ई.डी,आइ.टी.चुप्प-मोदी की लोकप्रियता की राह में देश की चरमराती आर्थिक व्यवस्था,बड़ती महंगाई और बेरोजगारी रोड़े बन सकते है। वहीं मोदी के सियासी कामयाबी की बात करें तो 2018 और 2021 के बीच हुए 23 राज्यों के चुनाव में भाजपा केवल त्रिपुरा में सीधे चुनाव जीती। सन् 2022 के चुनाव में वह गुजरात,उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चुनाव जीती। बाकी अन्य राज्यों में वह गठबंधन की राजनीति की। लेकिन हिमाचल में हार गई। दिल्ली के एमसीडी चुनाव में भी बीजेपी दूसरे नम्बर पर थी। बीजेपी 2023 में होने वाले हर चुनाव को जीतना चाहती है। मोदी सरकार विपक्षी एकता की रस्सी को ईडी,आइटी और सीबीआइ के चाकू से काट देना चाहती है। मगर, उसकी राह में रोड़े भी हैं। जो कंटक बन सकते हैं। बीजेपी चाहती है कि विपक्ष 2024 में रहे,लेकिन ताकतवर न रहे। और जो विपक्षी पार्टी ताकतवर बनने की कोशिश करें उनके पीछे ई.डी.,आइ.टी,और सीबीआइ लगा दो। अडानी मामले में देश का ध्यान बांटने सत्ता पक्ष ने पूरी ताकत लगा दी। एक ही दिन में आम लोगों का शेयर बाजार में दस लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गया। कारपोरेट का पैसा किस-किस मद में लगा है,किस-किस राजनीतिक पार्टी को पैसा मनीलाॅड्रिग के तहत कितना दिया गया,इसका खुलासा न हो जाए,इसके लिए न आइटी और न ही ईडी हरकत में आई। अडानी कांड ने यह बता दिया कि कैसे कारपोरेट काम करता है। उनके लिए नियम कायदे बदल दिए गए। लेकिन सदन में राहुल ने अडानी के मामले में जो भी पूछा उन सवालों का जवाब पी.एम. ने नहीं दिया। बल्कि संसद की कार्यवाही से उनकी बातों को हटा दिया गया। महाराष्ट्र में विपक्ष की आर्थिक पाइप लाइन को पहले शिंदे के जरिए कट किया गया। फिर शिवसेना बागी के हवाले कर दिया गया। अब चुनाव आयोग ने शिवसेना का दफ्तर और सिंबल सब कुछ बागी के हवाले कर दिया। एनसीपी,कांग्रेस 2014 और 2019 में शिवसेना और बीजेपी गठबंधन के आगे नहीं टिक पाए। उद्धव के सामने कई विकट समस्या है। क्यों कि सामने बीएमसी का चुनाव है। मगर,सुप्रीम कोर्ट अभी सुनवाई कोे तैयार नहीं है। नोटिस की फ़ास - मोदी सरकार लोकसभा चुनाव से पहले वो सारे विपक्षी जिनसे बीजेपी को नुकसान हो सकता है,उन सभी के गले में ईडी,आइ.टी और सीबीआइ का सांप डाल देना चाहती है। जैसा कि पश्चिम बंगाल में ई.डी. ने 27 राजनीतिक लोगों को नोटिस दिया है। आइटी ने 715 और सीबीआइ ने 115 लोगों को। केरल में 51 लोगो को ई.डी की नोटिस मिली है। 290 आइटी और 48 सीबीआइ के रडार में है।महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस को मिलाकर 15 लोगों को ईडी की नोटिस दी गई है। 415 आइटी और 98 लोग सीबीआइ के निशाने पर हैं। छत्तीसगढ़ में 17 राजनीतिक लोगों को ईडी की नोटिस। आइटी की नोटिस 392 राजनीतिक लोगों को और 62 सीबीआइ के रडार पर हैं।तेलंगाना राज्य जिस पर केन्द्र सरकार की नजर है। यहां ईडी की नोटिस 19 राजनीतिक लोगों को,944 आई.टी और सीबीआइ के रडार पर 69 लोग हैं। पंजाब में 27 लोगों को ईडी,908 को आइटी और 51 लोगों को सीबीआइ की नोटिस दी गई है। उत्तर प्रदेश में 17 राजनीतिक लोगों को ईडी,490 को आइटी और 37 लोगों को सीबीआई की नोटिस दी गई है। राजस्थान में 16 लोगों को ई.डी जिसमें गहलोत के भाई भी शामिल है,1112 लोगों को आइटी और 86 लोगों को सीबीआई की नोटिस दी गई है। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। बिहार में आरजेडी जब तक नीतिश के साथ हैं,तब तक ईडी की फाइल तेजस्वी के खिलाफ नहीं खुलेगी। और सीबीआइ की फाइल लालू के खिलाफ नहीं खुलेगी। देश की अर्थव्यवस्था बेहद कमजोर हो गई है। महंगाई चरम पर है और बेरोजगारी से लोग परेशान है। लेकिन विपक्ष इसकी बात न संसद में और न मीडिया में कर सके,इसलिए ईडी,सीबीआइ और आइटी के जरिए सत्ता पक्ष 2024 के चुनाव को प्रभावित करना चाहती है।