Sunday, May 16, 2021

मन से हर कोई है मंटो

 ▪️मन से हर कोई है मंटो..

सआदत हसन मंटो का अंदाजे बयां सबसे जुदा था। वे इंसानी कमजोरियों से वाकिफ़ थे। उनके अफ़साने के क़िरदार समाज के हैं। यही वजह है कि अवार्गियां, शरारतें, बदमाशियांँ, हरामीपन और निर्लजता से जुदा नहीं हैं उनके किरदार। जिस जमाने में उन्होंने ठंडा गोश्त लिखा था, उस समय समाज इतना बेशर्म नहीं था। काली सलवार या कहे बू’ और खोल दे’ जैसी कहानियों से आज का साहित्य भरा हुआ है। इंडिया टुडे पत्रिका,जो अपने आप को देश की धड़कन कहती है, बकायदा हर साल सेक्स अंक निकालता है। स्त्री और पुरूष के संबंधों को मंटो ने जो देखा वही लिखा। उन दिनों भी स्त्री-पुरूष की फैंटेसी आज से अलग नहीं थी। बस,बेपर्दा नहीं थी।


आज के इराॅटिक ‘ठंडा गोश्त’ और बू" से जुदा नहीं हैं। हैरानी वाली बात है कि इस कहानी को अश्लील कहा गया। जबकि कहानी के नायक को इंसान बनने की बहुत बड़ी सजा से गुजरना पड़ता है। इसर सिंह और कुलवंत के शारीरिक संबंध का जिक्र जिस तरह किया गया है,वह कहानी की जरूरत है। यह कहानी पुरानी मान्यताओं से पर्दा हटाती है। उसके पौरूष का प्रभावशाली बताने के लिए यह तो बताना ही पड़ेगा कि वो पहले कैसेे था। मंटो कहते हैं, इस कहानी का मामला अदालत पहुंँच कर मेरा भुरकस निकाल दिया।


‘खोल दो’ कहानी झकझोर देती है। बेटी के दुपट्टे को बड़ी हिफाजत से रखने वाला पिता स्ट्रेचर में लाश सी पड़ी बेटी को देखकर कहता है कि मैं इसका पिता हूँ। डाॅक्टर कहता है कि खिड़कियाँ खोल दो। दंगाइयों ने इतनी बार बलात्कार करते हैं कि बेजान सकीना 'खोल दो’ सुनती है तो वह अपनी सलवार नीचे कर देती है। बावजूद इसके पिता के मन में खुशी की इक लहर है कि उसकी बेटी जिंदा है। दरअसल यह कहानी बताती है कि बलात्कार के बाद भी जीवन समाप्त नहीं होता। अवसाद में जाने की बजाय फिर से जीने की हिम्मत करें।


सच तो यह है कि आज भी हर लेखक मन से थोड़ा थोड़ा मंटो हैं। उनकी कहानी में काली सलवार,बू और धुंआ किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। ’बू‘ कहानी जैसी तन्हाई से केवल मर्द ही नहीं, महिलाएं भी उकताती हैं। यह अलग बात है कि कहानी बू 'पर तो डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के तहत भी मुकदमा चला।


मेरा मानना है कि मंटो को बदनाम करने वालों की लाॅबी दरअसल मंटो को बदनाम नहीं, बल्कि मशहूर करने के लिए उन्हें कोर्ट तक घसीटा। 


 बहरहाल ‘काली सलवार’ और ‘बू’ पर चलाये गये मुकदमों में जहां मंटो को बरी किया गया वहीं ‘धुआं’ को लेकर उनकी पहले गिरफ्तारी और जमानत फिर बाद में मुकदमे के फैसले के दौरान दो सौ रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई। मंटो होना इतना आसान नहीं है।

@ रमेश कुमार "रिपु"


Saturday, May 15, 2021

लाल गलियारे में कोरोना





जिस लाल गलियारे में आज तक पुलिस नहीं पहुंँच सकी वहाँं कोविड वायरस ने दस्तक देकर खलबली मचा दिया है। मौत की महामारी के डर से संगठन छोड़ कर नौ नक्सली भाग गए। कई इनामी नक्सलियों की जानें चली गई और कई जान बचाने सरेंडर कर रहे हैं। सवाल यह है कि,क्या कोरोना के भय से लाल गलियारा खाली हो जाएगा?


0 रमेश कुमार ‘रिपु’
                   इन दिनों नक्सली दहशत में हैं। क्यों कि कोरोना वायरस लाल गलियारा पहुंँच कर कहर मचा रहा है। कोविड महामारी की दूसरी लहर का माओवादियों में खौफ साफ-साफ दिख रहा है। 11 मई को सुरक्षा बलों को गंगूलर इलाके में नक्सलियों के कैंप में छापेमारी के दौरान कामरेड वी.एम का एक पत्र मिला। पत्र 25 लाख की इनामी नक्सली लीडर सुजाता के नाम है। पत्र में लिखा है प्रिय कामरेड दीदी। बस्तर और दरभा डीविजन के कई नक्सली नेताओं की मौत कोरोना की वजह से हुई है और कई गंभीर रूप से बीमार हैं। नौ नक्सली भाग गए हैं। पत्र में लिखा है कि, जिंदा रहंेगे तभी क्रांतिकारी आंदोलन आगे बढ़ा सकते हैं।
जाहिर सी बात है कि नक्सली कैडर के कई नक्सली कोरोना वायरस की चपेट में हैं। पुलिस का मानना है कि करीब 100 से ज्यादा नक्सली कोरोना और फूड पॉइजनिंग की चपेट में आकर बीमार हो चुके हैं। इनमें इनामी नक्सली सुजाता, जयलाल, दिनेश सहित अन्य नक्सलियों के गंभीर होने की पुख्ता सूचना है। जिन नक्सलियों की मौत हुई है उनके नामों का खुलासा अभी नहीं हुआ है। लेकिन ये बड़े कैडर के नक्सली बताए जा रहे हैं। लाल गलियारा छोड़कर जाने वालों में सेक्शन कमांडर बुधराम, विमला, कोंटा प्लाटून से रितेश,जोगा और दरभा डिवीजन से नागेश, सुमित्रा, अनिता का नाम पत्र में है।  पत्र में यह भी लिखा है कि जो दवाइयां उपलब्ध हैं उसका असर नहीं हो रहा है।  
दक्षिण बस्तर में रूपी और दरभा डिवीजन से छह कमांडर हुंगा, देवे, गंगा, सुदरु, मुन्नी और रीना की मौत हो गई है। पुलिस का दावा है कि लाल गलियारे में सौ से ज्यादा नक्सलियों के संक्रमित होने और उनमें ए.पी.स्ट्रेन के खतरे की आशंका है। चंूकि ये इलाका आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना की सीमा से लगा है, नक्सली आते-जाते रहते हैं। ऐसे में नक्सलियों में कोरोना के ए.पी स्ट्रेन फैलने की आशंका भी है। अगर ऐसा है तो अंदरूनी गाँवों के ग्रामीणों के संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ गया है। नक्सली क्टब्, राजेश, सुरेश, मनोज की स्थिति खराब बताई गई है। नक्सली मंगू भी बीमार है। सुजाता के अलावा गंगालूर एरिया कमेटी के सेक्रेटरी दिनेश की टीम से 10-15 नक्सली सदस्य कोरोना संक्रमित हैं। वहीं दरभा डिवीजन कमेटी के नक्सली सामडू और जयलाल की टीम के भी कई सदस्य कोरोना पीड़ित होने की पुख्ता सूचना है। यह सभी नक्सली बड़े कैडर के हैं। पुलिस की नाकाबंदी की वजह से दवाइयों की सप्लाई बंद है। जिससे लाल गलियारे में और ज्यादा दहशत है।
नक्सल दंपती को कोरोना
उत्तर बस्तर जिला बीजापुर परतापुर एरिया कमेटी अंतर्गत मेंढ़की एलओएस के सदस्य नक्सल दम्पती अर्जुन ताती 28 वर्ष एवं लक्ष्मी पद्दा 22 वर्ष बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण 12 मई को संगठन छोड़कर पुलिस के सम्पर्क में आये। जाँंच में कोरोना पॉजिटिव पाये जाने पर कांकेर कोविड अस्पताल में भर्ती हैं।
 सरेंडर करें इलाज कराएंगे
दक्षिण बस्तर के तीनों जिले बीजापुर,दंतेवाड़ा,सुकुमा से तेलंगाना राज्य की सीमा लगती है। ऐसे में अब तेलंगाना पुलिस भी अलर्ट हो गई है। तेलंगाना के कोतागुड़म एस.पी सुनील दत्त ने कहा कि,दोनों राज्यों के बॉर्डर इलाके में बड़ी संख्या में नक्सलियों को कोरोना होने की खबर पुख्ता है। ग्रामीणों तक हम लगातार सूचनाएं पहुंँचा रहे हैं कि वे नक्सलियों की बैठक में शामिल न हों। वहीं डॉ अभिषेक पल्लव एस. पी. दंतेवाड़ा ने कहा,‘बरामद पत्र से यह खुलासा हुआ है कि पिछली जोनल कमेटी में कोरोना को लेकर आपस में तीखी बहस हुई थी। बड़े नक्सलियों पर भी निशाना साधते हुआ कहा गया है कि, जोनल कमेटी के सदस्य निचले कैडर तक सही जानकारी नहीं पहुंँचाते हैं। डेढ़ साल से स्थाई नेतृत्व नहीं होने से महत्वपूर्ण निर्णय नहीं हो पा रहा है। जो बीमारी के डर से संगठन छोड़ भागे हैं, सभी बड़े कैडर के इनामी नक्सली हैं। उनसे अपील है कि वे लोन वर्राटू अभियान के तहत सरंडर करंे। छत्तीसगढ़ पुलिस उनके इलाज का पूरा इंतजाम करेगी।’
कोरोना वाले नक्सली
कवर्धा में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के दो इनामी नक्सली दिवाकर उर्फ किशन डी.व्ही.सी सचिव भोरमदेव एरिया कमेटी और महिला देवे उर्फ लक्ष्मी एरिया कमेटी की सदस्य है। इन्हें झलमला थाना क्षेत्र और मध्यप्रदेश की सीमा से गिरफ्तार किया गया है। डी.व्ही.सी दिवाकर उर्फ किशन के विरूद्व छत्तीसगढ़ शासन द्वारा आठ लाख और मध्यप्रदेश शासन द्वारा पांँच लाख और महिला सदस्य देवे उर्फ लक्ष्मी के विरूद्व छत्तीसगढ़ शासन द्वारा दो लाख और मध्यप्रदेश शासन द्वारा दो लाख का ईनाम घोषित है। दोनों की कोरोना रिपोर्ट पाॅजिटिव आई है।
जवान की हत्या
लाल गलियारे में कारोना वायरस का कहर मचा रखा है मगर नक्सली वारदातों में कमी नहीं आ रही है। 13 मई को नक्सलियों ने ककसाड़ त्यौहार मनाने गए अबुझमाड़ के अंदरूनी गांव नेडनार में एक ग्रामीण को पुलिस का मुखबिर बताते हुए उसकी पत्नी और माँ के सामने रस्सी से बांधकर उसका गला घोंट कर हत्या कर दी।
जांच सहायक आरक्षक विट्टी भीमा एस आई.बी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन ब्रांच में पदस्थ था, उसकी ड्यूटी दोरनापाल थाने में लगाई गई थी। 11 मई की रात जवान अपने घर पर सो रहा था। नक्सली उसे घसीटते हुए दूर ले गए। उन्होंने उसकी डंडे से बुरी तरह पिटाई की और बाद में धारदार हथियार से हत्या कर दी। जवान की पत्नी ने पुलिस को इस बात की जानकारी दी लेकिन जब तक पुलिस वहांँ पहुंँचती नक्सली वहांँ से भाग चुके थे। इसके पहले नक्सलियों में 15 अप्रैल को भेजी में दो सहायक आरक्षक धनीराम कश्यप व पुनेम हड़मा की हत्या कर दी थी।
जिला मुख्यालय कांकेर से करीब 20 किमी कि दूरी पर आमाबेड़ा जाने मार्ग के उसेली और तुमसनार के बीच में 9 मई को नक्सलियों ने एक पुल के पास बम ब्लास्ट किया था। इसके बाद 10 मई को बैनर पोस्टर के माध्यम से नक्सलियों ने इस घटना को अंजाम देने का कारण आमाबेड़ा से कांकेर पहुंँच मार्ग में सड़क निर्माण का कार्य को बताया है। वहीं जोरों पर चल रहे निर्माण कार्य को तत्काल बंद करने की बात कही है। माओवादियों ने पोस्टर में लिखा है कि यदि इसके बाद भी कार्य चालू करने पर सभी गाड़ियों को आग के हवाले कर ठेकेदार को सजा देंगे।
नक्सली दंपति का सरेंडर  .
किसकोड़ो एरिया कमेटी के डिप्टी कमांडर बुधराम उर्फ जयसिंह ने अपनी पत्नी सन्नी के साथ जिला मुख्यालय कांकेर में 10 मई को आत्मसमर्पण कर दिया। जयसिंह पर 5 लाख रुपये का और उसकी पत्नी सन्नी जो मूलतः बीजापुर जिले की  है पिछले 6 सालों से कांकेर जिले में सक्रिय थी। इस पर 2 लाख रुपये का इनाम था। एस.पी एम.आर अहिरे ने नक्सल दंपति को 10-10 हजार रूपये की सहायता राशि प्रदान करते हुए मुख्य धारा में लौटने पर स्वागत किया है। एस.पी एम.आर. अहिरे ने कहा कि नक्सलियों की साख अब सिमटती जा रही है और स्थानीय आदिवासी जो नक्सलियों के साथ चले गए थे।’’
बहरहाल कोविड की दूसरी लहर का असर इस बार लाल गलियारे में भी है। यह आशंका जताई जा रही है कि नक्सलियों को दवा और राशन नहीं मिलने पर अपनी जान बचाने के लिए लाल गलियारा छोड़ने की होड़ मच जाएगी। ऐसा हुआ, तो नक्सलवाद अपने आप कमजोर होकर खत्म हो सकता है।
                                 0 रमेश तिवारी ‘रिपु’
                                 मो. 07974304532
 

 









नहीं भाई भाजपा

            
 उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में 54 मंत्री,विधायक और सांसदों के बावजूद बीजेपी को झटका मिलना क्या इस बात का संकेत है, कि योगी आदित्यनाथ का जलवा फीका पड़ गया है? योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के लोगों को भाजपा नहीं भाई। क्या यू.पी.में सियासी फिजायें करवट बदलने को बेताब हैं? और भैया लोग राज्य में नई सियासी धुन सुनने की चाह रखते हैं! बंगाल चुनाव की तरह क्या य.ूपी. में भी राष्ट्रीय दलों का आधार सिकुड़ जाएगा और क्षेत्रीय पार्टियाँ लम्बी रेस का घोड़ा साबित होंगी?


 0 रमेश कुमार ‘रिपु’’
पंचायत चुनाव के परिणाम ने औकात बता दी। मंत्रियों की और राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों की। प्रदेश में गाँव की चैपाल से लेकर हर शहर के चैराहे पर अगली विधान सभा की चर्चा गर्म है। राज्य में अगले साल विधान सभा चुनाव है। पंचायत चुनाव में मर्यादाएं तार-तार हुई। मगर जवाबदेही जीरो। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को अपने 23 कैबिनेट मंत्री 22 राज्यमंत्री और 9 स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रियों पर भरेासा था, कि पंचायत चुनाव में भी गेरूआई राजनीति की पताका लहरायेगी। सांसद से लेकर विधायको को हर मोर्चे पर लगाया गया था। दस का दम। बेचारे साबित हुए बेदम। यानी योगी सरकार की इतनी बड़ी मंत्रियों की फौज और बूथ लेवल पर मजबूत संगठन होने के बाद भी मंसूबों पर पानी फिर गया।
समाजवादी पार्टी,बसपा और कांग्रेस ने भी पंचायत की फ्री स्टाइल सियासी अखाड़े में उतरने के लिए काफी तैयारी की थी। इसलिए कि पंचायती चुनाव को राज्य में 2022 मे होने वाले विधान सभा चुनाव का सेमी फाइनल माना जा रहा था। वहीं सत्ता पक्ष का मानना है, कि मछली-मछली कितना पानी,अभी तय होना बाकी है। दूसरी ओर विपक्ष का दावा है,मछली कहीं पानी के बाहर सूखे में न आ जाए।’’
वैसे पंचायत चुनाव में कोई भी पार्टी अपने उम्मीदवारों की घोंषणा नहीं करती,लेकिन बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की थी। चुनाव परिणाम से पता चला, कि बीजेपी को शिकस्त मिली है। सपा गदगद है। प्रदेश के 75 जिले में 3050 सीट में हुए चुनाव में सपा को 759 सीटें और बीजेपी को 768 सीटें मिली। बसपा 319,कांग्रेस 125 रालोद 69 आम आदमी पार्टी 64 और 944 सीटें निर्दलीय के खाते में गई। दो सीटों के नतीजे घोषित नहीं हुए। निर्दलीय के दम पर सूबे में कई जगह जिला पंचायत अध्यक्ष बनेंगे। हो सकता है, इस जोड़ तोड़ में बीजेपी आगे निकल जाए।

बदलाव की आहट
बहरहाल,यही माना जाता है,कि राज्य में जिसकी सरकार होती है,पंचायत चुनाव के परिणाम भी उसी के पक्ष में जाते हैं। बदलाव की यह आहट बीजेपी के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष राम गोंविद सिंह चैधरी कहते हैं,‘‘यू.पी में सियासी फिजायें करवट बदलने को बेताब हैं? और भैया लोग राज्य में नई सियासी धुन सुनने की चाह रखतेे हैं।’’पंचायती राज की सियासत सूबे की राजनीति में बड़ा दखल रखती है। एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को बड़ी उम्मीद थी, कि राम मंदिर का निर्माण बीजेपी की राजनीति के लिए संजीवनी साबित होगी। लेकिन हैरानी वाली बात है, कि बीजेपी अयोध्या, मथुरा,काशी में मात खा गई। मथुरा से आने वाले दो मंत्री श्रीकांत शर्मा और लक्ष्मी नारायण चैधरी क्षेत्र में भाजपा को जीत नहीं दिला सके। जिला पंचायत की 33 सीटों में बसपा को 13 भाजपा 8 आरएलडी. 8 अन्य 3 और सपा को एक सीट मिली। जबकि बीजेपी मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि को गरमा कर भी कुछ नहीं पाई। अयोध्या में उसे करारा झटका लगा। यहाँ 40 सीटों में सपा को 18,बीजेपी को 08,बसपा 04 निर्दलीय एंव अन्य को 10 सीटें मिली। वाराणसी में बीजेपी के खाते में 40 में से केवल 8 सीटें आ सकी, जबकि सपा 14,बीएसपी को 5 सीट मिली। अयोध्या में राम मंदिर के दम पर 2022 का विधान सभा चुनाव जीतने का सपना संजोए हुए है। लेकिन परिणाम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर में भी बीजेपी के खिलाफ रहा। बीजेपी के जिला अध्यक्ष दिवाकर सिंह ने कहा,‘‘परिणाम निराशाजनक हैं। अयोध्या जिले की हर विधानसभा सीट पर बीजेपी विधायक होने के बावजूद हम 40 जिला पंचायत सीटों में से सिर्फ 8 जीतने में सफल हुए हैं। वहीं बीजेपी का दावा है कि जितने भी निर्दलीय चुनाव जीते हैं,वो उसकी पार्टी के हैं।
योगी को तगड़ा झटका
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर को बीजेपी का गढ़ माना जाता है।   जिला पंचायत सदस्य पद के लिए 68 सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी का दावा था, कि 20 से कम सीटें नहीं मिलेगी। समाजवादी पार्टी ने 20 सीटें झटक ली है। 21 सीटों पर  निर्दलीय प्रत्याशियों ने कब्जा कर लिया। इसके अलावा बसपा ने 2 कांग्रेस आम आदमी पार्टी और निषाद पार्टी के हिस्से एक-एक सीटें आईं है। पूर्वांचल में भी बीजेपी का दबदबा रहा। लेकिन यहाँ भी बीजेपी को करारी शिकस्त मिली। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ दुबे कहते हैं,‘‘मतदाताओं में योगी सरकार को लेकर भारी रोष कोरोना महामारी में ऑक्सीजन, बेड और अस्पताल की अव्यवस्था से होने वाली मौत को लेकर था। सरकारी अमला सिर्फ आंकड़ों की बाजीगिरी करता आया है।’’
मायावती उत्साहित
बसपा मुखिया मायावती चुनाव परिणाम से उत्साहित हैं। उन्होंने कहा यह परिणाम आगामी विधानसभा चुनावों के लिए लोगों में नई ऊर्जा, जोश भरने और हौसले बुलंद करने वाला है। हमारी पार्टी के प्रत्याशियों के साथ ही कार्यकर्ता तथा नेता इस परिणाम को पाकर बेहद उत्साहित हैं। हम प्रदेश की जनता का तहे दिल से आभार प्रकट करते हैं। आगरा, मथुरा, मेरठ, बुलंदाशहर, गाजियाबाद, सहारनपुर, आजमगढ़ सहित करीब 25 जिलों से बहुजन समाज पार्टी की परिणाम काफी अच्छा आया है।
योगी सरकार से नाराज
कोरोना और किसान आंदोलन के साइड इफ्ेक्ट इस चुनाव में साफ-साफ दिखे। वहीं कई जगह सपा और बीजेपी की सीटों में कोई खास अंतर नहीं है। लेकिन योगी और पी.एम. मोदी के गढ़ में बीजेपी को वोट करने की बजाय, लोगों ने सपा को पसंद किया। वाराणसी में जिला पंचायत की 40 सीटों में से बीजेपी को आठ सीटों से ही संतोष करना पड़ा। वहीं 17 सीटों पर सपा, कांग्रेस के 5 प्रत्याशी जीते हैं,3 बसपा, 6 निर्दलीय और एक आम सीट आम आदमी पार्टी को मिला। इस चुनाव परिणाम से विपक्ष यह प्रचारित कर रही है कि मतदाताओं का विश्वास बीजेपी से उठ गया है। विपक्ष की बातों से क्या यह मान लिया जाये, कि विधान सभा चुनाव में राष्ट्रीय दलों का आधार सिकुड़ जाएगा और क्षेत्रीय पार्टियाँ लम्बी रेस का घोड़ा साबित होंगी? चूंकि विधान सभा चुनाव आठ माह बाद होेने हैं,यदि समय रहते बीजेपी ने अपनी रणनीति में जन हित के लिए कोई बड़ा बदलाव कर लेती है तभी विपक्ष को चित होगा। जानकारों का कहना है, कि कोरोना इतनी जल्दी जायेगा नहीं और किसानों की नाराजगी भी दूर नहीं होगी। बीजेपी के लिए यही दो कारक कंटक साबित हो सकते हैं।
बीजेपी धमका रहीःयादव
सपा प्रमख अखिलेश यादव ने कहा, बीजेपी यूपी पंचायत चुनाव में जीते लोगों को धमका रही हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनावों में उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। बीजेपी ने कभी लोकतंत्र का सम्मान नहीं किया है। बीजेपी सरकार की कुरीतियाँं प्रदेशवासियों को भारी पड़ रहीं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा,‘‘जीते हुए प्रत्याशियों को जनता का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। जीते हुए प्रत्याशी चुनौती पूर्ण समय में कोरोना महामारी से लड़ने में स्थानीय प्रशासन का सहयोग करें और मानवता की सेवा करने में आगे आएं।’’ वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा, पंचायत चुनाव में पार्टी ने संतोष जनक प्रदर्शन किया है। उनकी पार्टी के 270 जिला पंचायत सदस्य और समर्थित जीते हैं 571 जिला पंचायत सदस्य दूसरे नंबर पर रहे 711 कांग्रेस के प्रत्याशी समर्थक तीसरे पायदान पर रहे हैं।
किसान आंदोलन का असर
पश्चिम यू.पी. यानी पूर्वांचल में किसान आंदोलन और कोरोना की दूसरी लहर ने बीजेपी का खेल बिगाड़ने का काम किया है। मेरठ से लेकर शामली,बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, गाजियाबाद, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, हाथरस, अलीगढ़, मथुरा में पार्टी को करारी मात मिली। पश्चिम यू.पी में किसान आंदोलन आर.एल.डी. के लिए संजीवनी साबित हुआ है। राष्ट्रीय लोकदल ने 35 सीटें मिलने का दावा किया है। सपा के साथ उसके गठबंधन होने के चलते सपा को 76 सीटें मिली हैं।
बहरहाल पंचायत चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को मंथन करने के लिए मजबूर कर दिया हैं। क्यों कि सूबे में आठ महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं।

  हार के स्वाद ने सोचने को मजबूर किया
पंचायत चुनाव में बीजेपी को मिली करारी हार ने सियासत के सूरमाओं को सोचने के लिए विवश कर दिया है। खासकर अपने अपने गढ़ में गेरूआई राजनीति की लाज बचाने में नाकाम रहने वाले बीजेपी के मंत्री,विधायक और सांसदों को। जवाबदेही के बहीखाते में केन्द्रीय नेतृत्व क्या लिखेगा,यह तो वक्त बतायेगा। हैरानी वाली बात है, कि मध्य यूपी, पूर्वाचल,ब्रज क्षेत्र,बुंदेलखंड ,पश्चिमी यू.पी,रूहेल क्षेत्र और सेन्ट्रल यूपी में में बीजेपी को बढ़त नहीं मिली।
मिस इंडिया रनर अप दीक्षा हारीं
फेमिना मिस इंडिया 2015 की रनर अप दीक्षा सिंह जौनपुर जिले के बसखा से पंचायत लगभग पाँच हजार वोटों से हार गई। अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरूआत करने से पहले ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी समर्थित उम्मीदवार नगीना सिंह ने लगभग 5000 मतों के अंतर से जीत दर्ज की दीक्षा सिंह पंचायत चुनाव में 5 वें स्थान पर रहीं। उन्हें विकास के नाम पर केवल 2000 वोट मिले।
0 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के रहने वाले उनके करीबी गोरख सिंह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव नहीं जीत सके। वहीं समाजवादी पार्टी अपना दुर्ग बचाने में कामयाब रही।
0 डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह तक कानपुर देहात नहीं जीता पाए। यहां पर भी सपा व निर्दलीयों ने बाजी मारी और भाजपा को केवल 4 सीटें मिलीं। निर्दलीय और सपा 11-11 पर रहीं। बसपा 6 सीटें जीत सकी। इसी तरह केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी और प्रयागराज में भी भाजपा को नहीं जीता पाए यहां पर निर्दलीय और समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की।
0 समाजवादी पार्टी सपा के वरिष्ठ नेता और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता राम गोविंद चैधरी के बेटे सहित अनेक सूरमाओं के रिश्तेदारों को पराजकय का सामना करना पड़ा है। सपा के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चैधरी के बेटे रंजीत चैधरी जिला पंचायत के वार्ड संख्या 16 से पराजित हो गए हैं। वह तीसरे स्थान पर रहे।
0 कानपुर में दो मंत्री सतीश महाना और नीलिमा कटियार जिला पंचायत सदस्यों को जिताने में कामयाब नहीं हो पाईं। यहाँं भी सपा आगे रही। सपा ने 285 सीटें और भाजपा ने 155 सीटें जीतने का दावा किया है।
0 कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर और दारा सिंह चैहान के क्षेत्र मऊ में सपा-बसपा और भाजपा पर निर्दलीय भारी पड़े। मायावती की पार्टी को 7 सीटें मिली हैं तो सपा और भाजपा को दो-दो सीटें मिलीं। 34 सीट में 21 सीट निर्दलीय जीते हैं। मंत्री का दावा है, कि यह सभी सदस्य भाजपा के समर्थन में जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाएंगे।
0 कैबिनेट के मंत्री रमापति शास्त्री के भतीजे भी जिला पंचायत के चुनाव हार गए हैं। बृजेश पाठक लखनऊ शहर के मध्य से विधायक हैं। उनको उन्नाव में जिला पंचायत के लिए लगाया गया थाए जहां पर निर्दलीय और सपा अपने ज्यादा सदस्य जीता पाए हैं।
0 प्रतापगढ़ जिले से उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह मोती सिंह अपनी पत्नी को चुनाव नहीं जीत पाए। मंत्री की पत्नी का टिकट पार्टी ने काट दिया था। उसके बावजूद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़वाया था। इसके अलावा जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह जिला पंचायत में कुछ खास प्रदर्शन हीं कर पाए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कोटे से गन्ना मंत्री बने सुरेश राणा भूपेंद्र चैधरी समेत आधा दर्जन मंत्रियों की मेहनत पर किसान आंदोलन ने पानी फेर दिया।
0 भाजपा के बिल्थरारोड क्षेत्र के विधायक धनन्जय कन्नौजिया की मांँ सर्यकुमारी देवी नगरा क्षेत्र पंचायत के वार्ड संख्या 19 से चुनाव हार गई हैं।
0 भाजपा के पूर्व सांसद हरिनारायण राजभर के बेटे अटल राजभर जिला पंचायत के वार्ड संख्या 24 से सपा नेता व पूर्व मंत्री शारदा नन्द अंचल के पौत्र विनय प्रकाश अंचल जिला पंचायत के वार्ड संख्या 27 से तथा भाजपा के गोरक्षनाथ प्रांत के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष देवेंद्र यादव जिला पंचायत के वार्ड संख्या 10 से चुनाव हार गए हैं।
0 भाजपा नेता व पूर्व सांसद बब्बन राजभर के भाई लल्लन राजभर सीयर क्षेत्र पंचायत के गजियापुर ग्राम पंचायत से प्रधान पद का तथा भाजपा सांसद नीरज शेखर के निकट सम्बन्धी आलोक सिंह सीयर क्षेत्र पंचायत के मझौवा से क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव हार गए हैं।   
बीएसपी ने गाड़ी फूंकी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जिले गोरखपुर में ब्रह्मपुर ब्लॉक  के वार्ड नंबर 60 से बहुजन समाज पार्टी समर्थित उम्मीदवार रविप्रताप निषाद और वार्ड 61 से कोदई निषाद का आरोप है, कि चुनाव में उनकी जीत हुई थी। लेकिन जीत का प्रमाण पत्र हम लोगों को न देकर हारे हुए गोपाल यादव और रमेश को देने से इन दोनों प्रत्याशियों के समर्थकों ने हंगामा शुरू कर दिया। भीड़ ने चैरीचैरा क्षेत्र की नई बाजार पुलिस चैकी फूंक डाली। सुरक्षा में तैनात पीएसी की गाड़ी और सड़क पर खड़ी बाइकों में आग लगा दी। पुलिस और वहांँ से गुजर रही गाड़ियों पर पथराव भी किया।
हथगोले फेके
बाराबंकी जिले में थाना जहांगीराबाद इलाके के बेरिया में चुनावी हार जीत के बाद दो पक्षों में झगड़ा के दौराान लाठी डंडे चले। उसके बाद एक दूसरे के घरों पर हथगोले फेंके जाने लगे। झगड़े का कारण वर्चस्व की लड़ाई बताया जा रहा है। हालांकि पुलिस ने बलपूर्वक मामला शांत करा दिया है। किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। झगड़े में घायल हुए वसीम ने बताया, कि चुनावी तकरार में हो रही लड़ाई को शांत कराने गए थे। लेकिन दूसरे पक्ष ने हमला बोल दिया। गम्भीर रूप से घायल वसीम को इलाज के लिए जिला अस्पताल भेजा गया है।
शादी की रात जीती
रामपुर की रहने वाली पूनम शर्मा 30 मई की रात सात जन्मों के बंधन में बंधने जा रही थी। वह वरमाला के लिए स्टेज पर जाने वाली थी। अचानक इसी बीच उसे पता चला कि वह पंचायत सदस्य का चुनाव 31 वोटों से जीत गई। उसे 601 वोट मिले थे। पूनम ने पंचायत चुनाव में वार्ड नंबर 135 से क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था। घर वाले शादी में मशगूल थे। पूनम बार.बार एजेंट के जरिए मतगणना अपडेट ले रही थी। रात करीब 10 बजे पूनम को पता चला कि वह चुनाव जीत गई है। वह वरमाला का कार्यक्रम छोड़कर हाथों में मेंहदी सजाए, लाल जोड़े में मतगणना स्थल पर पहुंच गई। जीत का प्रमाण पत्र हासिल किया। पूनम दोगुनी खुशियों संग अपने घर लौटी और जीवन साथी संग सात फेरे लिए।   
                                       रमेश तिवारी ‘रिपु’
                                    मो. 7974304532   
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Saturday, May 8, 2021

मौत की लहर और बेपरवाह सरकार











सरकार की लापरवाही में मौत की दूसरी लहर ने साढ़े सात हजार लोगों की जानें ले ली। बेपरवाह सरकार ने राजधानी रायपुर कोरोना की राजधानी बना दिया। बेबस जनता अस्पतालों में आॅक्सीजन,बेड और जीवन रक्षक दवाई के लिए परेशान है। शवों को कचरा गाड़ी में ले जाया गया। अंतिम समय भी सम्मान नहीं दे सकी सरकार।   
0 रमेश तिवारी’रिपु’
            छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने का दावा करते थे। प्रदेश में सरकार की लापरवाही की वजह से साढ़े सात हजार मौत के बाद जनता पूछ रही है,‘‘ क्या यही नवा छत्तीसगढ़ है? राजधानी रायपुर कोरोना की राजधानी बन गई है। प्रदेश में पहली मौत 29 मई 2020 को हुई थी। इस समय राजधानी रायपुर में रोज 66 और प्रदेश में औसत मौत 175 है। सवाल यह है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जब पता था कि कोविड की दूसरी लहर पहली लहर से भयावह होगी, बावजूद इसके उन्होंने राजधानी रायपर में आईपीएल का मैच क्यों कराया और जी खोल कर फ्री कूपन क्यों बांटे। इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक छवि बनाने के लिए असम में चुनाव प्रचार करने पहुंँच गए। इधर प्रदेश में कोरोना का ओलंपिक शुरू हो गया फिर भी मुख्यमंत्री ने कमान नहीं संभाली। देखते ही देखते छत्तीसगढ़ देश में कोरोना के मामले में पांँचवा राज्य बन गया। कोविड की दूसरी लहर मौत की सूनामी बन गई।      
व्यापारी राजकुमार ग्वालानी कहते हैं,‘‘हिन्दुस्तान के अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर रंगून में एक शेर लिखे थे,‘‘ कितना बदनसीब है जफर दफ्न के लिए,दो गज जमीन भी नहीं मिली कू ए यार में’’। बहादुर शाह जफ़र भी नहीं जानते थे कि आगे चलकर यह शेर बहुतों की जिन्दगी की बानगी हो जायेगा। बेदिल दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक के अस्पतालों में मरने के लिए लोगों को एक बेड भी नसीब नहीं होगा।’’  
कोविड की आपदा पर प्रदेश सरकार की खामियों पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय ने कहा,‘‘पहली लहर में केंद्र से लॉकडाउन का अधिकार मांगने वाले भूपेश अपनी जिम्मेदारियों से बचते हुए कोरोना रोकथाम की जिम्मेदारी कलेक्टर पर डाल दिए हैं। आज पूरा प्रदेश कोरोना से त्रस्त है और भूपेश अपनी राजनीति में मस्त है।’’
विपक्ष ने मांगा हिसाब
छत्तीसगढ़ में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने 24 अप्रैल को अपने घरों के बाहर कोरोना से होने वाली मौत, अस्पतालों की अव्यवस्था, दवाईयों की कालाबाजारी के साथ सरकार से डीएमएफ डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड के दो हजार करोड़ और शराब के सेस के चार सौ करोड़ रूपये का हिसाब मांगा। पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने कहा,‘ सरकार दावा कर रही है कि 850 करोड़ रूपये कोरोना इलाज के लिए बजट निर्धारित किया गया है। सरकार बताए कि खर्च कहाँ-कहाँ किया गया है।’’ वहीं कांग्रेस और अन्य पार्टियों के लोग पिछले एक डेढ़ साल से प्रधानमंत्री केयर्स फंड का हिसाब मांँग रहे हैं। सवाल यह है कि दोनों पार्टियों के नेता मिलकर छत्तीसगढ़ के हितों के लिए यहाँ की स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए क्यों नहीं हिसाब माँगते। ऐसा क्यों नहीं सोचते बस्तर में कोई बड़ी नक्सली वारदात होती है, तो घायल जवानों को हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर से रायपुर के प्रायवेट और सरकारी मेडिकल कालेज क्यों लाना पड़ता है? जबकि बस्तर में विकास के नाम पर  करोड़ों रूपये व्यय होते हैं। अरबों की खनिज वन संपदा यहाँ से बाहर जाती है। रायपुर राजधानी का मुँह क्यों देखना पड़ता है?
बहरहाल अब पीएम केयर के माध्यम से प्रदेश के चार जिलों आॅक्सीजन प्लांट लगेगा। वहीं राज्य के सभी जिलों में कुल 1322 आइसोलेशन बेड की व्यवस्था की गई है और आवश्यकतानुसार मरीजों को भर्ती कर उपचार किया जा रहा है। रायपुर में 158 आइसोलेशन बेड है, जबकि सबसे अधिक मरने वालों की संख्या यहाँ है।
टीकाकरण के दावे में झोल
सरकार दावा करती है कि रायपुर में रोज 40 हजार टीकाकरण की क्षमता है,लेकिन वैक्सीनेशन की रफ्तार बाकी जिलों की तुलना में धीमी है। यहांँ पांँच हजार टीके भी रोज नहीं लग रहे हैं। दो सौ केन्द्र की जगह मात्र 99 केन्द्रों में टीकाकरण हो रहा है। इस पर स्वास्थ्य मंत्री टी.एस सिंहदेव ने कहा कि वैक्सीन उत्पादक कंपनियां समय से वैक्सीन उपलब्ध कराने को तैयार नहीं हैं। अगर समय से वैक्सीन नहीं मिली तो हमारे पास टीकाकरण अभियान चलाने का कोई तरीका नहीं है। स्वास्थ्यमंत्री का दावा है अभी हमारे पास टीकाकरण के 3 हजार केंद्र हैं। यहांँ 7 हजार वैक्सीनेटर तैनात हैं। इन केंद्रों की संख्या बढ़ाई भी जा सकती है लेकिन वैक्सीन ही नहीं मिलेगी तो वैक्सीनेशन कैसे होगा? केंद्र सरकार से मूल्य और आपूर्ति की सुगमता आदि पर बातचीत कर रहे हैं। जल्द ही सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड वैक्सीन के 50 लाख डोज का पहला ऑर्डर भेजा जा सकता है।  
साँसों के सौदागर  
कोविड को सरकार नियंत्रित नहीं कर पाई वहीं दूसरी ओर साँसों के सौदागर लोगों की मदद करने की बजाए रेमडेसिविर इंजेक्शन मनमानी कीमत पर बेचते पकड़े गए। पकड़े गए युवकों का राजनीतिक कनेक्शन ने कई सवाल खड़े कर दिये हंै।साइबर सेल के प्रभारी रमाकांत साहू ने बताया कि ये लोग 15 से 30 हजार रुपए में इंजेक्शन बेच रहे थे। इनके पास से 9 इंजेक्शन और 1 लाख 58 हजार रुपए मिले हैं।
जनता को लूट रहें    
देश के दूसरे कोरोना वैक्सीन उत्पादक भारत बायोटेक ने भी राज्य सरकारों और खुले बाजार के लिए वैक्सीन के दाम तय कर दिये हैं। इसके मुताबिक यह राज्य सरकारों को 600 रुपए और निजी अस्पतालों को 1200 रुपए प्रति डोज की दर से बेची जाएगी। अब इस दाम को लेकर बवाल मच गया है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार पर जनता को लूटने का आरोप लगा दिया है। सीरम इंस्टीट्यूट ने अपनी वैक्सीन कोवीशील्ड का दाम राज्यों के लिए 400 रुपए और खुले बाजार के लिए 600 रुपया प्रति डोज तय किया है। यह कंपनी केंद्र सरकार को 150 रुपए प्रति डोज में वैक्सीन उपलब्ध करा रही है। इसको लेकर राज्यों में भारी असंतोष दिख रहा है।
कचरा गाड़ी में शव
कांग्रेस सरकार के कारण राज्य में उत्पन्न कोरोना संबंधित अव्यवस्थाओं के विरोध में भाजपा का हर नेता अपने -अपने निवास में एक दिवसीय धरना दिया। पूर्व मंत्री एंव विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि कांग्रेस की अव्यवस्था का आलम यह है कि छत्तीसगढ़ में अस्पतालों में जगह नहीं है। वेंटिलेटर की व्यवस्था नहीं है। ऑक्सीजन सरकार उपलब्ध नहीं करा रही है और सरकार मृतकों का भी सम्मान न कर कचरा  गाड़ी में ढोकर उनका अंतिम संस्कार कर रही है। ऐसी सोई सरकार को जागृत करने के लिए आज भाजपा प्रदेश भर में धरने पर बैठी है। गौरतलब है कि राजनांद गांव के डोंगरगांव ब्लॉक में दो सगी बहनों सहित 4 लोगों की कोरोना से मौत हुई। जिसके बाद इनके शवों को एम्बुलेंस तक प्रशासन ने मुहैया नहीं कराया बल्कि नगर पंचायत के कचरा फेंकने वाले वाहन से शवों को ले जाया गया।
मदद के लिए बढ़ाया हाथ
आॅक्सीजन की कमी का सामना एक तरफ छत्तीसगढ़ सरकार कर रही है,वहीं 11 अप्रैल से 24 अप्रैल तक छत्तीसगढ़ से 270695 मेट्रिक टन आक्सीजन की अन्य राज्यों को आपूर्ति कर जरूरतमंद राज्यों को सहायता पहुंचाई गई है। 11 अप्रैल से 24 अप्रैल तक छत्तीसगढ़ से कर्नाटक को 1682 मेट्रिक टन, आंध्रप्रदेश को 17669 मेट्रिक टन, मध्यप्रदेश को 80122 मेट्रिक टन, गुजरात को 12042 मेट्रिक टन तेलंगाना को 578 मेट्रिक टन और महाराष्ट्र को 10138 मेट्रिक टन मेडिकल आक्सीजन की आपूर्ति की गई है। वहीं सरकार की तमाम दलीलों के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि, ऑक्सीजन उपलब्ध कराना राज्य की जिम्मेदारी है। वह सुनिश्चित करे कि इसकी कमी से किसी मरीज की मौत न हो। चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने कहा कि उद्योगपतियों से सरकार सामंजस्य बनाएए जिससे ऑक्सीजन और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में मदद मिले।
आपदा में भेदभाव का आरोप
काग्रेस प्रवक्ता एवं संसदीय सचिव विकास उपाध्याय कहते हैं,‘‘विधायकों को एक माह का वेतन देने की बात आती है, तो कांग्रेस के विधायक मुख्यमंत्री सहायता कोष में राशि देते हैं और भाजपा के विधायक जिला राहत कोष के अलावा अपने लोगों से पीएम केयर्स फंड में राशि दिलवाते हैं। जाहिर है कि बीजेपी वाले आपदा में सहायता राशि देने में भी भेदभाव रखते हैं।  
सीनियर ऑर्थोपीडिक सर्जन डॉ एस फुलझेले और डॉ आरके पंडा के अनुसार कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर एक भीषण ज्वार की तरह उभरी है। पहल लहर की तुलना में करीब पांँच गुना तेज है। हर्ड इम्यूनिटि हासिल करने के लिए 75 फीसदी आबादी का टीकाकरण करना होगा। देरी से जांँच व इलाज में देरी भारी पड़ रही है। लक्षण दिखते ही जांच करवाने व समय पर इलाज कराने से आधी से ज्यादा मौतें रोकी जा सकती हैं। मॉस्क पहनकर 99 फीसदी संक्रमण को रोका जा सकता है।
बहरहाल कोविड के प्रति सरकार खबरदार नहीं थी। वहीं जनता के साथ सरकार की लापरवाही ने कोरोना को बढ़ने का मौका दिया। टीकाकरण को राज्य सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया।