Wednesday, April 8, 2020

नाम बदलने की सियासत

     कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम बदलकर भूपेश सरकार ने चंदूलाल चंद्राकर कर दिया। तर्क दिया गया कि वे पत्रकार नहीं थे। जबकि देश में अनेक संस्थान हैं, जो गांधी परिवार के नाम है। जबकि उस संस्थान की प्रकृति से उनका कोई लेना देना नहीं है।





0 रमेश तिवारी ‘रिपु’
           छत्तीसगढ़ में एक बार फिर कांग्रेस सरकार और राजभवन के बीच टकराव की नींव बनती दिख रही है। वजह यह कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में बलदेव भाई शर्मा की नई नियुक्ति व बिलासपुर स्थित सुन्दरलाल शर्मा विश्वविद्यालय में वंशगोपाल सिंह की पुर्न नियुक्ति राज भवन से हुई है। भूपेश सरकार का कहना है कि दोनों नव नियुक्त कुलपति की पृष्ठ भूमि संघ से है। कंाग्रेस की सरकार में उच्च शिक्षण संस्थाओं के पद पर संघ की विचारधारा के व्यक्तियों की नियुक्ति पहली बार हुई है। जाहिर सी बात है कि भूपेश सरकार को यह नागवार गुजरी। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम बदलकर भूपेश सरकार ने चंदूलाल चंद्राकर के नाम कर दिया। तर्क दिया गया कि वे पत्रकार नहीं थे। जबकि देश में अनेक संस्थान हैं, जो गांधी परिवार के नाम है। जबकि उस संस्थान की प्रकृति से उनका कोई लेना देना नहीं है। 
विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति पर राज्यपाल का अधिकार खत्म करने संबंधी भूपेश सरकार के बिल का बीजेपी ने विधानसभा में विरोध किया। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा सरकार पूरक कार्यसूची में 28 विधेयक लेकर आई और बिना चर्चा के उसे पारित करा लिया। इसे बाद में भी लाया जा सकता था। जब से कांग्रेस की सरकार बनी है, तब से ही नई कार्यप्रणाली विकसित कर ली गई है। यह संसदीय परंपराओं के खिलाफ है। कांग्रेस सरकार लगातार संसदीय कार्यप्रणाली की धज्जियां उड़ा रही है। यह चिंता का विषय है’’।
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थियों का कहना है कि सरकार का यह फैसला समाज में द्वेष और वर्ग भेद को प्रेरित करने वाला है। पूर्व सांसद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकार स्व. चंदूलाल चंद्राकर कभी विवादों में नहीं रहे। उनका सभी सम्मान करते हैं। लेकिन सरकार ने राजनीतिक द्वेष के साथ उनका नाम विवादों से जोड़ दिया है। इससे पहले पं.दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर योजनाओं का नाम बदला गया था।
गौरतलब है कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय पन्द्रह साल से उसी नाम से चल रहा है । अब अचानक उसे चंदूलाल चंद्राकर के नाम जाना जाएगा। हो सकता है कि भाजपा की सरकार आने पर वह पुराना नाम वापस ले आएगी। कांग्रेस जब भी सत्ता में आएगी वैसा वो फिर करे। यह एक तरह से दुखद मजाक होगा। इस प्रवृत्ति से बचने की जरूरत है। यह नाम बदलना नहीं है, यह एक तरह से बदला लेना है। कायदे से कांग्रेस सरकार को उदारता दिखाते हुए कुशाभाऊ ठाकरे के नाम से ही विश्वविद्यालय चलने देना चाहिए था। इसलिए कि भाजपा सरकार ने पहले से चल रहे किसी विश्वविद्यालय का नाम बदलकर कुशाभाऊ ठाकरे के नाम नहीं किया। 
क्या राज्यपाल रोक देंगी बिल?
विधानसभा में पारित होने वाला बिल राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल की मंजूरी प्राप्त बिल को दोबारा सदन के पटल पर पेश किया जाता है। अधिकृत तौर पर बिल के प्रावधान तब ही लागू होना माने जाते हैं। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति संबंधी बिल क्या राज्यपाल रोक देंगी? सूत्रों का दावा है यूजीसी की गाइडलाइन स्पष्ट प्रावधान है कि विश्वविद्यालय पूरी तरह से स्वायत्त रहेंगे। सरकारों का दखल इस पर कम से कम होगा। ऐसे में यूजीसी की गाइडलाइन का सरकार उल्लंघन नहीं कर सकती।
यह बिल क्यूं लाया गया
अभी तक विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति और हटाने का अधिकार राज्यपाल के पास था। कुलपति की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार तीन नामों का पैनल राज्यपाल को भेजती थी। इन नामों में से किसी एक नाम को राज्यपाल की मंजूरी मिलती थी। लेकिन कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय और पं सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति  के पहले राजभवन ने सरकार से अभिमत भी नहीं लिया। भूपेश सरकार ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। और राज्यपाल की इस नियुक्ति पर सरकार सहमत नहीं हुई। राज्यपाल के अधिकार मे कटौती करने यह बिल लाया गया।
कानूनी अभिमत के बाद पेश हुआ बिल
यह माना जा रहा है कि सरकार ने तमाम लीगल मुद्दों पर चर्चा करने के बाद ही यह बिल विधानसभा में प्रस्तुत किया था। राजभवन से बिल लौटाए जाने की स्थिति में इसे दोबारा मंजूरी के लिए भेजे जाने का नियम है। ऐसी स्थिति में राज्यपाल को बिल को मंजूरी देनी होगी। कई बार यह भी देखा गया है कि राज्यपाल बिल को कई साल तक रोक रखे हैं।
दुर्ग के पत्रकार मनविंदर सिंह भाटिया कहते हैं,ठाकरे जी पत्रकार नहीं थे,लेकिन यह जरूरी नहीं है कि किसी संस्थान का नाम किसी व्यक्ति के नाम पर रखा जाय, तो संबंधित व्यक्ति उस विधा से जुड़ा भी हो। देश में अनेक संस्थान चल रहे हैं गांधी परिवार के नाम से। जबकि उस संस्थान की प्रकृति से उनका कोई लेना,देना नहीं है। चंद्राकर जी के नाम से प्रदेश सरकार कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय में कोई शोध पीठ, ग्रंथ अकादमी या विश्वविद्यालय का नामकरण कर सकती थी। 
वहीं यह भी मांग उठी है कि राज्य सरकार को नवा रायपुर में महानदी और इंद्रावती भवन के बीच चैक में उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित करने और छत्तीसगढ़ संवाद भवन का नाम चंदूलाल जी के स्मृति में रखने पर विचार करना चाहिए। बदलापुर राजनीति से महापुरुषों के नाम पर बेवजह विवाद पैदा होता है जो पीड़ादायक है।।
 बहरहाल सवाल यह भी है कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्व विद्यालय के नाम से जिनके पास डिग्री है,तो क्या उसे फर्जी मान ली जाएगी? करोड़ों रूपये विश्वविद्यालय की ब्रांडिंग में लगा, यानी उसका अब कोई औचित्य नहीं। कायदे से भूपेश सरकार चंदूलाल चन्दाकर के नाम से कोई और शिक्षण संस्थान बनाती तो अच्छा रहता। देखना यह है कि कांग्रेस व छात्रों के विरोध के बीच पदभार ग्रहण करने वाले बल्देव शर्मा कब तक पद पर बने रहते हैं।
गांधी परिवार के नाम पर संस्थान
राज्य सरकार की 25 योजनाएं राजीव गांधी और 27 इंदिरा गांधी के नाम पर हैं। खेल प्रतियोगिताएं 23 राजीव गांधी, 4 इंदिरा और 2 जवाहरलाल नेहरू के नाम पर है। शैक्षणिक संस्थान 55 राजीव गांधी, 21 इंदिरा गांधी 22 जवाहर लाल नेहरू के नाम। 74 सड़क, जगह, इमारतें और 37 संस्थान,चेयर,फेस्टिवल राजीव गांधी के नाम और इंदिरा गांधी के नाम 51 एवार्ड और 39 चिकित्सा संस्थान और अस्पताल है। 15 स्काॅलरशिप राजीव के नाम पर दिये जा रहे हैं,और इंदिरा के नाम 15 नेशनल पार्क हैं। इंदिरा गांधी के नाम पर 5 एयर पोर्ट और बंदरगाह,16 राजीव गांधी के नाम पर है।  देश में 8 इंदिरा गांधी,3जवाहर लाल नेहरू के नाम पर योजनाएं चल रही हैं। इसके अलावा 600 से अधिक सरकारी योजनाएं राजीव,इंदिरा और जवाहरलाल नेहरू के नाम पर हैं।