Monday, January 1, 2024

हाथ’ में खिल गया कमल

'मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ‘हाथ’ से सत्ता जाने के बाद सवाल यह है, कि कांग्रेस क्या खुद को उबार पाएगी? भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे, कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी मंत्रियों से गुस्साई जनता ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। 0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु‘‘ किसी ने नही सोचा था कि मध्यप्रदेश,राजथान और छत्तीसगढ़ के चुनाव भाजपा के लिए आनंददायी टी पार्टी साबित होगी। खासकर छत्तीसगढ़ में। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह यह मान लिए थे, कि इस बार शिवराज की बिदाई तय है। लेकिन कांग्रेस के ये दोनों नेता जनता के मूड और उनकी सोच को नहीं समझ सके। यही हाल छत्तीसगढ़ में भूपेश का था। उन्हें यकीन था कि गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का उनका स्लोगन,गोबर खरीदी,गो मूत्र खरीदी,किसानों की धान खरीदी योजना,किसानों का कर्जा माफ और आदिवासी को लुभाने वाली नीति उनके खाते में जाएगी। इसीलिए भूपेश और प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलेजा कहती थीं इस बार 75 के पार। यह तो नहीं हो सका । मगर हाथ से सत्ता चली गयी। छत्तीसगढ़ में भूपेश की गृहलक्ष्मी योजना देर से प्रचारित हुई,जबकि भाजपा महतारी योजना फार्म छपवाकर जनता से भरवाने लगी। मध्यप्रदेश के लाड़ली बहना योजना जैसा ही यह था और यह योजना सियासी गेम चेज करने का सबसे बड़ा कारक बना। भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे, कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी नौ मंत्रियों से गुस्साए प्रदेश वासियों ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। भूपेश से कर्मचारी नाराज.. छत्तीसगढ़ में महतारी योजना ने सियासी गेम चेंज कर दिया। मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तरह। बारह दिन बाद भूपेश ने गृहलक्ष्मी योजना के तहत पन्द्रह हजार रुपए सालाना देने की घोंषणा की। वहीं भूपेश सरकार ने अपने घोंषणा पत्र को पूरा नहीं किये। प्रदेश के छत्तीसगढ़ सर्वे विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ 45 हजार हैं। संविदा अनियमित,दैनिक वेतन भोगी प्लेस मेट,ठेका कर्मचारियों को मिलाकर यह संख्या ढाई लाख से ऊपर है। कर्मचािरयों ने भूपेश के खिलाफ वोट किया। भूपेश सरकार छह लाख वोट से हार गयी। जबकि इन्ही कर्मचारी और उनके परिवार की संख्या ही दस लाख से ज्यादा है। अन्य कर्मचारियों को मिला दें तो यह संख्या पच्चीस लाख हो जाती है। केन्द्र की आयकर टीम और ईडी ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के करीबियों के यहां छापा मार कर सियासी स्थिति बिगाड़ दी। चर्चा थी, कि आने वाले समय में बिहार के चुनाव की फंडिग छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से होना था। कांग्रेस के खिलाफ हवा.. छत्तीसगढ़ में चुनावी नतीजे के सर्वे यही बता रहे थे, कि वहां भूपेश सरकार फिर से लौट रही है। लेकिन भूपेश सरकार का जाना यह बताता है कि ईडी का छापा गलत नहीं था। महादेव ऐप झूठा नहीं था। कोयला घोटाला सही था। भूपेश सरकार के नौ मंत्री बुरी तरह हार गये। वो जनता से कटे हुए थे। भूपेश स्वयं सारे विभाग के मंत्रियों को काम करने की छूट नहीं दी। हर जिले में कलेक्टर मुख्यमंत्री का एजेंट बतौर काम कर रहे थे। उनका राजनीतिक मीडिया प्रभारी हो या फिर मीडिया प्रमुख ने पत्रकारों के दो खेमे बना दिये। पत्रकारों को मुख्यमंत्री से दूर रखा। जिससे मुख्यमंत्री को सही जानकारी नहीं मिल सकी। लाड़ली बहना का अंडर करेंट.. मध्यप्रदेश में सन् 2018 में कांग्रेस की सरकर बनने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ज्योतिरादत्यि सिंधिया को नाराज न किये होते तो न सरकार जाती और न ही कांग्रेस की इतनी बुरी गत होती। इसलिए भी कि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य से बड़ा लोकप्रिय कोई युवा नेता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साढ़े तीन साल तक केवल बयान बाजी करते रहे। जिला स्तर पर कांग्रेस को रिचार्ज करने का काम नहीं किया। संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं किया। चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था,कि जिन 60 सीटों पर कभी कांग्रेस चुनाव नहीं जीती उन्हें जीताने की जवाबदारी मेरी है। हैरानी वाली बात है, कि ऐसी सीटों को जीताने के लिए कुछ किया नहीं। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर है यही कहते रहे। बाहर इसका शोर था। लेकिन अंदर लाड़ली बहन का करेंट तेज है, कांग्रेस के बड़े नेता नहीं भाप सके। मध्यप्रदेश में कांग्रेस अनाथ रही.. कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद छिंदवाड़ा,भोपाल और इंदौर से कहीं बाहर नहीं गए। दिग्विजय सिंह के प्रति अब भी जनता में रोष है। कमलानाथ जिले में पार्टी संगठन का ढांचा नहीं खड़ा कर सके। जिले में कांग्रेस के पास जमीनी कार्य कर्ता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की लोकप्रियता गिर गयी है। मीडिया में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को जय वीरू की जोड़ी का नाम मिला। आपसी गुटबाजी और बड़े नेताओं के बीच आपसी खींचतान मीडिया में दिखा। लाड़ली बहना योजना का अंडर करेंट इतना भयावह निकला कि पंजा चारो खाने चित हो गया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में उसी बात का जिक्र था, जिसे शिवराज चुनाव से पहले की पूरा कर दिये थे। कमलनाथ का सर्वे भाजपा को 85 सीट से ज्यादा नहीं दे रहा था,स्थिति ठीक उल्टी हो गयी कांग्रेस की। प्रदेश में कमलनाथ का सियासी प्रचार तंत्र कमजोर रहा। कई संभाग में बड़े नेता एक बार भी नहीं गये। संघ ने पूरे प्रदेश में एक लाख से अधिक बैठकें की चुनाव से पहले। उसने जनता की नब्ज को परखा। कई उम्मीदवारों को टिकट संघ के कहने पर मिला। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेताओं की कमी है। दिग्विजय सिंह को रिटायर हो जाना चाहिए। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश को अब नए सिरे से कांग्रेस को खड़ा करना चाहिए। राहुल को भी समझना चाहिए कि केवल भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस उदय नहीं होगा। यदि ऐसा ही लोकसभा में रहा तो सियासी जगत से कांग्रेस का अंतिम संस्कार हो जाएगा। क्यों कि सन् 2014 के बाद से कांग्रेस की राज्यों से पकड़ कमजोर होती जा रही है। 2004 में 14 राज्यों में कांग्रेस काबिज थी। 2009 में 11 राज्य,2014 में उसकी सत्ता 9 राज्यों तक सिमट गई। 2019 में चुनाव में 6 राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन 2020 में मध्यप्रदेश उसके ‘हाथ’ से निकल गया। 2023 में तीन राज्य हाथ से निकल गये।

कहीं इतिहास ना बन जाए कांग्रेस..

मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ‘हाथ’ में कमल खिल जाने के बाद से सवाल यह है कि कांग्रेस क्या खुद को उबार पाएगी? या फिर वो आने वाले समय में एक इतिहास बन कर रह जाएगी। क्यों कि सन् 2004 के बाद से लगातार राज्य हारती जा रही है। 0 रमेश कुमार ‘रिपु‘‘ किसी ने नही सोचा था कि मध्यप्रदेश,राजथान और छत्तीसगढ़ के चुनाव भाजपा के लिए आनंददायी टी पार्टी साबित होगी। खासकर छत्तीसगढ़ में। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह यह मान लिए थे, कि इस बार शिवराज की बिदाई तय है। लेकिन कांग्रेस के ये दोनों नेता जनता के मूड और उनकी सोच को नहीं समझ सके। यही हाल छत्तीसगढ़ में भूपेश का था। उन्हें यकीन था कि गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का उनका स्लोगन,गोबर खरीदी,गो मूत्र खरीदी,किसानों की धान खरीदी योजना,किसानों का कर्जा माफ और आदिवासी को लुभाने वाली नीति उनके खाते में जाएगी। इसीलिए भूपेश और प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलेजा कहती थीं इस बार 75 के पार। यह तो नहीं हो सका । मगर हाथ से सत्ता चली गयी। छत्तीसगढ़ में भूपेश की गृहलक्ष्मी योजना देर से प्रचारित हुई,जबकि भाजपा महतारी योजना फार्म छपवाकर जनता से भरवाने लगी। मध्यप्रदेश के लाड़ली बहना योजना जैसा ही यह था और यह योजना सियासी गेम चेज करने का सबसे बड़ा कारक बना। भूपेश सरकार को लेकर मीडिया और हाईकमान आश्वस्त थे, कि सत्ता नहीं जाएगी। लेकिन भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार और उसके अहंकारी नौ मंत्रियों से गुस्साए प्रदेश वासियों ने कांग्रेस को किनारे कर दिया। राजस्थान ने अपना सियासी रिवाज कायम रखा। तेलंगाना कांग्रेस को सात्वना पुरस्कार के रूप में मिला। भूपेश से कर्मचारी नाराज.. छत्तीसगढ़ में महतारी योजना ने सियासी गेम चेंज कर दिया। मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तरह। बारह दिन बाद भूपेश ने गृहलक्ष्मी योजना के तहत पन्द्रह हजार रुपए सालाना देने की घोंषणा की। वहीं भूपेश सरकार ने अपने घोंषणा पत्र को पूरा नहीं किये। प्रदेश के छत्तीसगढ़ सर्वे विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ 45 हजार हैं। संविदा अनियमित,दैनिक वेतन भोगी प्लेस मेट,ठेका कर्मचारियों को मिलाकर यह संख्या ढाई लाख से ऊपर है। कर्मचािरयों ने भूपेश के खिलाफ वोट किया। भूपेश सरकार छह लाख वोट से हार गयी। जबकि इन्ही कर्मचारी और उनके परिवार की संख्या ही दस लाख से ज्यादा है। अन्य कर्मचारियों को मिला दें तो यह संख्या पच्चीस लाख हो जाती है। केन्द्र की आयकर टीम और ईडी ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के करीबियों के यहां छापा मार कर सियासी स्थिति बिगाड़ दी। चर्चा थी, कि आने वाले समय में बिहार के चुनाव की फंडिग छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से होना था। कांग्रेस के खिलाफ हवा.. छत्तीसगढ़ में चुनावी नतीजे के सर्वे यही बता रहे थे, कि वहां भूपेश सरकार फिर से लौट रही है। लेकिन भूपेश सरकार का जाना यह बताता है कि ईडी का छापा गलत नहीं था। महादेव ऐप झूठा नहीं था। कोयला घोटाला सही था। भूपेश सरकार के नौ मंत्री बुरी तरह हार गये। वो जनता से कटे हुए थे। भूपेश स्वयं सारे विभाग के मंत्रियों को काम करने की छूट नहीं दी। हर जिले में कलेक्टर मुख्यमंत्री का एजेंट बतौर काम कर रहे थे। उनका राजनीतिक मीडिया प्रभारी हो या फिर मीडिया प्रमुख ने पत्रकारों के दो खेमे बना दिये। पत्रकारों को मुख्यमंत्री से दूर रखा। जिससे मुख्यमंत्री को सही जानकारी नहीं मिल सकी। लाड़ली बहना का अंडर करेंट.. मध्यप्रदेश में सन् 2018 में कांग्रेस की सरकर बनने के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ज्योतिरादत्यि सिंधिया को नाराज न किये होते तो न सरकार जाती और न ही कांग्रेस की इतनी बुरी गत होती। इसलिए भी कि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य से बड़ा लोकप्रिय कोई युवा नेता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साढ़े तीन साल तक केवल बयान बाजी करते रहे। जिला स्तर पर कांग्रेस को रिचार्ज करने का काम नहीं किया। संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं किया। चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने कहा था,कि जिन 60 सीटों पर कभी कांग्रेस चुनाव नहीं जीती उन्हें जीताने की जवाबदारी मेरी है। हैरानी वाली बात है, कि ऐसी सीटों को जीताने के लिए कुछ किया नहीं। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर है यही कहते रहे। बाहर इसका शोर था। लेकिन अंदर लाड़ली बहन का करेंट तेज है, कांग्रेस के बड़े नेता नहीं भाप सके। मध्यप्रदेश में कांग्रेस अनाथ रही.. कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद छिंदवाड़ा,भोपाल और इंदौर से कहीं बाहर नहीं गए। दिग्विजय सिंह के प्रति अब भी जनता में रोष है। कमलानाथ जिले में पार्टी संगठन का ढांचा नहीं खड़ा कर सके। जिले में कांग्रेस के पास जमीनी कार्य कर्ता नहीं है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की लोकप्रियता गिर गयी है। मीडिया में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को जय वीरू की जोड़ी का नाम मिला। वहीं आपसी गुटबाजी और बड़े नेताओं के बीच आपसी खींचतान मीडिया में दिखा। सवाल यह है कि कमलनाथ ने अपने सर्वे के आधार पर उन्हें ही टिकट दी जो चुनाव जीत रहे हैं, फिर गलती कहां हो गई? दरअसल लाड़ली बहना योजना का अंडर करेंट इतना भयावह निकला कि पंजा चारो खाने चित हो गया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में उसी बात का जिक्र था, जिसे शिवराज चुनाव से पहले की पूरा कर दिये थे। कमलनाथ का सर्वे भाजपा को 85 सीट से ज्यादा नहीं दे रहा था,स्थिति ठीक उल्टी हो गयी कांग्रेस की। प्रदेश में कमलनाथ का सियासी प्रचार तंत्र कमजोर रहा। कई संभाग में बड़े नेता एक बार भी नहीं गये। संघ ने पूरे प्रदेश में एक लाख से अधिक बैठकें की चुनाव से पहले। उसने जनता की नब्ज को परखा। कई उम्मीदवारों को टिकट संघ के कहने पर मिला। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेताओं की कमी है। दिग्विजय सिंह को रिटायर हो जाना चाहिए। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश को अब नए सिरे से कांग्रेस को खड़ा करना चाहिए। राहुल को भी समझना चाहिए कि केवल भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस उदय नहीं होगा। यदि ऐसा ही लोकसभा में रहा तो सियासी जगत में कांग्रेस इतिहास बन कर रह जाएगी । क्यों कि सन् 2014 के बाद से कांग्रेस की राज्यों से पकड़ कमजोर होती जा रही है। 2004 में 14 राज्यों में कांग्रेस काबिज थी। 2009 में 11 राज्य,2014 में उसकी सत्ता 9 राज्यों तक सिमट गई। 2019 में चुनाव में 6 राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन 2020 में मध्यप्रदेश उसके ‘हाथ’ से निकल गया। 2023 में तीन राज्य हाथ से निकल गये।

डबल इंजन की सरकार,कैसे होगी वादों की नैया पार

"मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति को अंजाम दिया गया है। अब पिछड़ों के कंधे पर सवार होकर बीजेपी लोकसभा चुनाव फतह करना चाहती है। तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मोदी की गारंटी को लोकसभा चुनाव से पहले पूरा करके बताना है, कि उनके राज्य में अच्छे दिन आ गए हैं। सवाल यह है कि चुनौती के सागर पर वादों की स्टीमर कैसे चलेगी। मोदी की गारंटी पर विपक्ष की नजर है, कि कहीं यह जुमला बनकर न रह जाए।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’
मोदी की गारंटी के दम पर भाजपा मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भगवा रंग में रंग गयी। सियासत का सिंकदर एक बर फिर बन कर मोदी उभरे। अब सवाल यह है कि मुख्यमंत्री डाॅ मोहन यादव,विष्णु देव साय और भजन शर्मा किस तरह अपने प्रदेश में अच्छे दिन लाते हैं। इसलिए कि इनके सामने चुनौतियों का पहाड़ है। खास कर तीनों राज्यों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। मध्यप्रदेश पर सन् 2019 में 195178 करोड़ कर्ज था जो सन् 2023 में बढ़कर 378617 करोड़ हो गया है। यानी प्रति व्यक्ति कर्ज 43731 रुपए है। प्रति व्यक्ति आय 140583 रुपए है। राजस्थान पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया। सन् 2019 में 31184 करोड़ था जो सन् 2023 में बढ़कर 537012 करोड़ हो गया। यानी प्रति व्यक्ति ऋण 66277 रुपए है। प्रति व्यक्ति आय 156149 रुपए है। छत्तीसगढ़ पर सन् 2019 में 68988 करोड़ रुपए का कर्ज था जो सन् 2023 में बढ़कर 118166 करोड़ हो गया। प्रति व्यक्ति पर ऋण 39154 रुपए है। और प्रति व्यक्ति आय 133898 रुपए है। तीनों राज्यों में डबल इंजन की सरकार है। रेवड़ी किस राज्य पर भारी होगी यह भी बड़ा सवाल है। साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारी भी। मोहन को बड़ी लकीर खींचनी होगी.. तीनों राज्यों में बने मुख्यमंत्री के पास अनुभव की कमी है। ऐसी स्थिति में राज्य की पस्त माली हालत को बगैर केन्द्र की मदद से बेहतर करना राज्य सरकारों के सामने विकट समस्या है। संसाधन स्वयं के दम पर जुटाने होंगे। चूंकि बीजेपी के संकल्प पत्र में ऐसे कई वादे हैं और मोदी की गारंटी हैं, जो बीजेपी शासित राज्यों के समक्ष चुनौती है,लोकसभा से पहले इन्हें पूरा करना। इसलिए कि तीनों मुख्यमंत्रियों के सामने 2024 का विजन है। मध्यप्रदेश में शिवराज की लोकप्रियता बहुत है। उनके साथ कोई विवाद नहीं रहा। वो जनता के नेता है। उन्हें सत्ता का घमंड कभी नहीं रहा। और यह भी जताने की कभी कोशिश नहीं किया, कि प्रदेश में जो भी है वो उनके दम की वजह से है। हमेशा वे संगठन को लेकर चले। वो आज मुख्यमंत्री नहीं हैं, लेकिन बहनों के दिलों में वो बरसों तक रहेंगे। भाजपा को शिवराज की तरह ऐसा नेता मिलना मुश्किल होगा। पार्टी उनका क्या इस्तेमाल करेगी,यह अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। वहीं उनकी लोकप्रियता का भी सामना करते हुए डाॅ मोहन यादव को अपनी लकीर खींचनी है। उन्हें ऐसा कुछ करना पड़ेगा, कि जनता शिवराज सिंह को भूले। इसके अलावा प्रहलाद पटेल,कैलाश विजय वर्गीय,वीडी शर्मा,जैसे अनके बड़े नेता हैं। उनसे तालमेल बनाना है। जाहिर सी बात है कि नयी भाजपा को नये तरीके से गढ़ा जा रहा है। सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति के तहत डाॅक्टर मोहन यादव को मोदी ने मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर बड़ा सियासी मैसेज दिया है। लालू प्रसाद यादव,अखिलेश यादव,तेजस्वी यादव से उन्हें बड़ा बनाना है। केवल ओबीसी वोटों को साधना ही नहीं है। वैसे बीजेपी नए भारत की राजनीति में पिछड़ों की पीठ पर सवार है। मोदी ने ओबीसी और दलित कार्ड खेलकर विभिन्न पार्टियों के जुड़े दिग्गजों को चुनौती दी है। राजेन्द्र शुक्ला ब्राम्हण,जगदीश देवड़ा दलित को उप मुख्यमंत्री और नरेन्द सिंह तोमर को विधान सभा अध्यक्ष बनाकर मोदी ने सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति का इस्तेमाल किया है। ऐसा ही छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किया है। राजस्थान में भजन शर्मा मुख्यमंत्री हैं और छत्तीसगढ़ में विजय शर्मा उप मुख्यमंत्री अरूण साव ओबीसी और विष्णुदेव साय आदिवासी के बड़े नेता है। सामाजिक विस्तार की बीजेपी की योजना नई नहीं है। लेकिन इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी कि ऐसा होगा। देश की राजनीति में जाति का असर इतना प्रभावी है कि मोदी अपने भाषणों में कई बार यादवों सहित सभी ओबीसी जातियों को आकर्षित करने के लिए खुद निसंकोच पिछड़ी जाति का बताया। लालू और नीतिश की राजनीति की काट पेश करने के लिए मोदी ने तीनों राज्यों में ऐसा किया है। विभिन्न जातियों को एक सामाजिक गठजोड़ तैयार करना चाहते हैं,ताकि चुनाव में बहुमत हासिल किया जा सके। मोहन के समक्ष चुनौतियां.. मोहन यादव कैसे अखिलेश यादव और लालू प्रसाद यादव, नीतिश कुमार की सियासी रेखा से बड़ी रेखा खींचते हैं,बीजेपी भी नहीं जानती। इसलिए कि उनके समक्ष एक-एक करके बीजेपी के संकल्प पत्रों को पूरा करना है। गेहूं 2700 रुपए प्रति क्विंटल और धान 3100 रुपए प्रति क्विंटल किसानों से खरीदना। गरीब परिवारों को 12वीं तक मुफ्त शिक्षा देना है। गरीब छात्राओं को के.जी. से पी.जी तक मुफ्त शिक्षा। हर परिवार में एक सदस्य को रोजगार या स्वरोजगार देना। लाड़ली बहनों को पक्का मकान और पांच साल गरीबों को मुफ्त राशन देना है। किसानों को सालाना 12000 रुपए देना। 100 रुपए में 100 यूनिट बिजली,450 में गैस सिलेंडर,महिलाओं को हर माह तीन हजार रुपए देना। तेंदूपत्ता के लिए 4000 रुपए प्रति बोरा देना,जन्म से शादी तक बेटी को 2 लाख रुपए देना। इस समय राज्य में मल्टीडाइमेशनल गरीबी 21 फीसदी से ज्यादा है। 2021 के अनुसार 1.82 करोड़ लोग गरीब हैं। बुजुर्गो को 600 रुपए मासिक पेंशन देना है। बढ़ते कर्ज के बीच मोदी की गारंटी को पूरा करना है। सन् 2024 के लिए बजट खर्च 306,103 करोड़ रुपए है। मोहन यादव के समक्ष आर्थिक चुनौतियां बहुत हैं। विष्णु कैसे लाएंगे अच्छे दिन.. छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनते ही वोटर कहना शुरू कर दिया है कि कौन सा वादे पहले पूरा होना चाहिए। किसान चाहता है, कि रमन सरकार के समय का दो साल का लंबित बोनस उसे जल्द मिल जाए। प्रधान मंत्री आवास के तहत 18 लाख लोगों को छत मिल जाए। महिलाएं चाहती हैं, कि हर महीने महतारी योजना के तहत एक-एक हजार रुपए उनके खाते में आ जाएं। किसानों को धान का समर्थन मूल्य पर 3200 रुपए प्रति क्विंटल मिल जाए।चूंकि प्रदेश में धान खरीदी एक नम्वंबर से चल रही है। तेंदूपत्ता भी 5500 रुपए प्रति बोरा की राशि मिलने लगे। मुफ्त इलाज दस लाख रुपए और गरीबों को सिलेंडर 500 रुपए में चाहिए। भूमिहीन मजूदूरों को सालाना दस हजार रुपए देना। भाजपा की सरकार पूरे पांच साल रहेगी और एक साथ अपने संकल्प पत्र के वादे को पूरा करेगी, इसकी संभावना कम है। ऐसा हुआ तो विपक्ष सरकार को सड़क से विधान सभा तक घेरेगी। भजन के सामने चुनौती... समाजिक और आर्थिक आंकड़ों को एक तरफ रखकर इस बार चुनाव की नयी परिभाषा मोदी की गारंटी के रूप में सामने आई। राजस्थान में रोटी बदलने का वैसे भी रिवाज है। लेकिन बदलाव की सत्ता जिस तरह मोदी की गारंटी ने लिखी,उसे चुनौती नहीं दी जा सकती। लेकिन राजस्थान में इस बार गहलोत सरकार की उपलब्धि को दरकिनार करते हुए भाजपा ने केवल जाति और संस्कृति के गणित को ही समाने नहीं रखा, बल्कि विकास के सिद्धांत को भी रखा। लोगों की जरूरतों को अहमियत दी। जनता की सेवा करने वाली सरकार बताने के लिए संकल्प पत्र में ऐसे कई वादों को जोड़ा गया है, जो मुख्यमंत्री भजन शर्मा के सामने चुनौती बनकर खड़े हैं। 12वीं पास मेघावी छात्रों को मुफ्त स्कूटी। छात्रों को के.जी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा। गरीब परिवारों को 400 रुपयों में गैस सिलेंडर।एआइआइएमएस की तर्ज पर आइआइटी की तर्ज पर काॅलेज का निर्माण। मातृ वंदन की राशि 4000 हजार से बढ़ाकर 8000 रुपए करना। बेटी के जन्म पर दो लाख रुपए का बांड। एसआइटी से पेपर लीक की जांच। 2.5 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी। किसानों को सलाना 12 हजार रुपए देना। सवाल यह है कि इन तीन राज्यों की जनता को उक्त लाभ मिलेंगे तो भाजपा शासित अन्य राज्यों में नहीं मिलने से क्या,वहां की जनता आवाज नहीं उठाएगी। फिर रेवड़ी कल्चर की राजनीति का क्या होगा। सवाल यह है,कि चुनौती के सागर पर वादों की स्टीमर कैसे चलेगी। मोदी की गारंटी पर विपक्ष की नजर है, कि कहीं यह जुमला बनकर न रह जाए।

अर्श से फर्श पर कांग्रेस के नायक

"मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 'हाथ' से सत्ता जाने के बाद सियासत में कांग्रेस के सुहाने दौर की हवा खराब हो गयी है। कांग्रेस के नेताओं के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है। मध्यप्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ ही सब कुछ थे। भूपेश बघेल की अनुमति के बगैर छत्तीसगढ़ कांग्रेस सांसें नहीं ले सकती थी। राजस्थान में अशोक गहलोत को कांग्रेस सियासत का जादूगर कहती थी। उनका जादू नहीं चला। यानी कि गांधी परिवार के दुलारों के प्रति जनता की आस्थाएं अब दरक चुकी है।" 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ तीन दिसम्बर 2023 से पहले कांग्रेस का मनोबल बहुत ऊंचा था। कई नेता यह मानकर चल रहे थे, कि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ’हाथ’ में सत्ता आने पर कांग्रेस एक रिकार्ड बनाएगी। राजस्थान की जनता सियासी रिवाज पलट देगी। इसका दावा राहुल गांधी भी कर रहे थे। चुनावी विश्लेषक भी यही मानकर चल रहे थे,कि छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार दोबारा बनेगी। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह दावा कर रहे थे, कि इस बार कांग्रेस 150 से ऊपर सीट पाएगी। कोई विधायक नहीं खरीद सकेगा। पता नहीं ऐसा वो दावा कांग्रेस के लिए किये थे, या फिर भाजपा के लिए। चुनाव परिणाम के बाद से संकट के भंवर में कांग्रेस और कांग्रेसी हैं। तीन राज्यों में कांग्रेस की करारी हार से उसकी हवा बिगड़ी हुई है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस खड़ी कैसे हो,गांधी परिवार को कुछ सूझ नहीं रहा है। तीनों राज्यों में अगुआई करने वाले चेहरों की रणनीति कांग्रेस को जीत नहीं दिला सकी। जाहिर सी बात है, कि कांग्रेस के अंदर कुछ ऐसी खामियां थी, जिसे गांधी परिवार ने नजर अंदाज किया या फिर गांधी परिवार को अंधेरे में रखा गया। जवाबदारी नहीं दिखी.. मध्यप्रदेश में कमलनाथ ही सब कुछ थे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और स्वयं मुख्यमंत्री का चेहरा भी। कांग्रेस में पद से लेकर टिकट बंटवारे तक सब कुछ वो स्वयं फैसला करते थे। हैरानी वाली बात है, कि उन्होंने तीन -तीन सर्वे के बाद प्रत्याशियों को टिकट दिया, फिर कांग्रेस हार कैसे गयी? दिग्विजय सिंह ने कहा था, कि कांग्रेस जिन 66 सीटों पर कभी चुनाव नहीं जीती,उन सीटों पर कांग्रेस को जीताने की मेरी जवाबदारी। उनकी जवाबदारी किसी भी विधान सभा में नहीं दिखी। वर्ना कांग्रेस को 120 से अधिक सीट मिली होती। 66 सीट पर ही न सीमट जाती। सबको क्लीन चिट.. सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस की कमान तीन लोगों के हाथ में थी। उस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे। लेकिन 2023 के चुनाव में कांग्रेस की कमान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के हाथ में थी।कमलनाथ कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे को ठीक नहीं कर पाए केवल बयान बाजी करते रहे गये। शिवराज की अच्छे से विदायी करेंगे। दरअसल 2023 के चुनाव में लाड़ली बहना का अंडर करेंट था। जिसकी वजह से बीजेपी को 13 फीसदी वोट अधिक मिले। कांग्रेस को यह दिखा नहीं। 2003 के चुनाव में बीजेपी को 173 सीट मिली थी। तब संघ सक्रिय था। यह अलग बात है, कि कांग्रेस की हार की समीक्षा में किसी ने भी हार की जवाबदारी नहीं ली। और न ही गांधी परिवार ने किसी को दोषी ठहराया। उसकी वजह यह है कि पार्टी को फंड कमलनाथ,भूपेश बघेल और अशोक गहलोत मुहैया कराते थे। कमलनाथ बड़े व्यवसायी है। उन्हें गांधी परिवार निशाने पर ले नहीं सकता। मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को बनाया गया है। लोकसभा चुनाव के लिए कमलनाथ को फ्री करने के लिए। प्रदेश की 29 सीट में कितनी सीट कमलनाथ,दिग्विजय सिंह और जीतू पटवारी दिला सकते हैं गांधी परिवार भी नहीं जानता। भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेस.. छत्तीसगढ़ में भूपेश हैं ,तो भरोसा है के नारे की हवा निकल गयी। गांधी परिवार को पूरा भरोसा था,कि उनका एटीएम बंद नहीं हो सकता। लेकिन जनता को भूपेश सरकार का भ्रष्टाचार रास नहीं आया। महादेव एप,कोयला घोटाला,शराब घोटाला और गोठान घोठाला ने गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की बखिया उधेड़ दी। जबकि पिछड़ा वर्ग की राजनीति को भूपेश धार दे रहे थे। राहुल गांधी भी पिछड़े वर्ग की बात करते थे। कमलनाथ संशय में थे, कि कहीं राहुल गांधी मध्यप्रदेश में किसी पिछड़े वर्ग के नेता को सीएम न बना दें। इसलिए उन्होंने पूरे चुनाव में पिछड़े वर्ग का जिक्र नहीं किया। छत्तीसगढ़ में टी.एस सिंह देव और भूपेश के बीच सियासी समझौता हुआ था, कि ढाई- ढाई साल मुख्यमंत्री रहने का। लेकिन भूपेश ने गांधी परिवार का ऐसा विश्वास जीता कि टी.एस सिंह देव का मुख्यमंत्री बनने का नम्बर नहीं लगा। प्रधान मंत्री आवास मामले की आवाज जब टी.एस सिंह देव ने उठाई तो उन्हे उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। लेकिन दोनो के बीच पूरे पांच साल रस्साकशी की स्थिति रही। जिसका फायदा बीजेपी को मिला। राहुल गांधी और सोनिया गांधी हैराल्ड मामले में जमानत पर है। देर सबेर भूपेश बघेल महादेव एप सहित अन्य घोटाले के मामले में फंस सकते हैं। उन्हें जेल जाने से गांधी परिवार भी नहीं बचा सकता। टी.एस सिंह देव बच जाएंगे। लेकिन कांग्रेस के कई अन्य नेता फंस सकते हैं। झगड़े में उलझी रही कांग्रेस.. राजस्थान में राहुल गांधी बड़े- बड़े दावे कर रहे थे, कि सियासी रोटी इस बार जनता नहीं पलटेगी गहलोत की सरकार फिर बनेगी। जबकि साचिन पायलट और अशोक गहलोत में तनातनी थी। प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान सचिन ने पूरी मेहनत की और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन गुजरात में राहुल गांधी के सलाहकार रहे अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के रूप में इनाम मिला। तीन बार मुख्यमंत्री रहे। हर बार उनके नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव लड़ी और मुॅंह की खायी। 2023 का चुनाव अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस लड़ी, मगर कांग्रेस के लिए सुहाना सियासी दौर लौट कर नहीं आया। जबकि अशोक गहलोत को कांग्रेस सियासत का जादूगर कहती थी। उनका जादू नहीं चला। जाहिर सी बात है,कि सचिन पायलट खुश हुए होंगे। दरअसल गांधी परिवार ने तीनों राज्यों में अपने नेताओं के बीच चल रहे सियासी द्वंद का हल नहीं निकाल सकी। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच के सियासी झगड़े का हल निकाल लेती तो पन्द्रह महीने में कमलनाथ की सरकार न गिर जाती। राजस्थान में सचिन और अशोक गहलोत के बीच सुलह का कोई रास्ता निकाल लेती तो वहां कांग्रेस का 'हाथ' कमजोर न होता। यही स्थिति छत्तीसगढ़ की थी। टी.एस सिंह देव सरगुजा के राजा हैं। 2018 के चुनाव में 14 सीट कांग्रेस जीती थी,इस बार सभी सीट हार गयी। स्वयं टी.एस सिंह देव भी चुनाव हार गये। कांग्रेस में गिरावट.. जाहिर सी बात है कि कांग्रेस में गिरावट लगातर आ रही है। सन् 1975 की इमरजेंसी के बाद की स्थिति हो या फिर 2004 से 2014 के बीच की स्थिति हो। बहुमत से दूर होती गयी। कांग्रेस में कई खेमे हैं, जो अपने -अपने तरीके से कांग्रेस को भेड़ की तरह हांक रहे हैं। अच्छे नेतृत्व की कमी है। कांग्रेस का भविष्य कैसा होगा, स्वयं गांधी परिवार भी नहीं जानता। तीन राज्यों में कांग्रेस की कमान जिनके हाथो में थी, उनकी राजनीति आज फर्श पर है। तीन राज्यों में ‘हाथ’ से सत्ता जाने के बाद सियासत में कांग्रेस के सुहाने दौर की हवा खराब हो गयी है। कांग्रेस के नेताओं के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है। यानी कि गांधी परिवार के दुलारों के प्रति जनता की आस्थाएं अब दरक चुकी है।

भारत न्याय यात्रा,कांग्रेस को कितना फायदा

"राहुल की भारत न्याय यात्रा से यदि कांग्रेस नहीं सिमटती जैसा, कि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस हार गयी तो उनकी राजनीति में अर्द्धविराम नहीं लगेगा। वैसे भी इस बार 2024 के चुनाव में सिर्फ दो ही पार्टी की विचार धाराएं दिखेंगी। एक बीजेपी की और दूसरी इंडिया गठबंधन की। भारत न्याय यात्रा से कांग्रेस में अच्छे दिन आने का न्याय जनता करेगी या नहीं,राहुल भी नहीं जानते।" 0 रमेश कुमार‘रिपु’ भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा क्या कोई सियासी इतिहास बना सकेगी? यह सवाल इसलिए भी है,कि सूर्य जब उत्तरायण की ओर होगा, तब राहुल गांधी मणिपुर से भारत न्याय यात्रा की शुरूआत करेंगे। उस मणिपुर से, जो हिंसा के डंडे में केवल लहूलुहान ही नहीं हुआ बल्कि,उसकी आबरू भी तार-तार होने के बाद भी सदन में न प्रधान मंत्री मोदी कुछ बोले और नही गृह मंत्री अमित शाह। जाहिर सी बात है,कि राहुल गांधी भारत न्याय यात्रा में अपने साथ कई सवाल और मुद्दों को लेकर भी चलेंगे । वैसे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जब चुनाव प्रचार में नहीं होते हैं,तब वो सरकारी कार्यक्रमों में होते हैं। और पार्टी का ही प्रचार करते नजर आते हैं। सियासी परिदृश्य बदला... राहुल की भारत न्याय यात्रा उन राज्यों से निकलेगी,जहां क्षत्रपों की अपनी सियासत है। मणिपुर से मुंबई तक 6200 किलोमीटर की यात्रा कहीं पैदल और कहीं बस से करेंगे। भारत न्याय यात्रा 14 राज्यों से यानी 85 जिले और 98 लोकसभा से होकर गुजरेगी। इन राज्यों के तहत लोकसभा की कुल 355 सीटें आती हैं। ये वो राज्य हैं,जहां कांग्रेस का पिछले दो चुनावों में प्रदर्शन बेहद ही खराब रहा। 2019 के चुनाव में कांग्रेस 355 सीटों में केवल 14 सीट पाई थी। इस समय बीजेपी के पास 236 सीटें हैं। अब सियासी परिदृश्य बदल गया है। एक तरफ भारत न्याय यात्रा होगी,दूसरी तरफ मोदी की गारंटी। सन् 2019 के चुनाव में बीजेपी के समक्ष चुनौतियां कम थी,उस वक्त इंडिया गठबंधन नहीं था। इंडिया गठबंधन यानी 28 दलों को मिलने वाला वोट 67 फीसदी है और बीजेपी 37.76 फीसदी वोट पाकर 193 सीटें पाई। जबकि एनडीए का संयुक्त वोट 603.7 मिलियन था। यानी 45 फीसदी वोट पाकर कुल 303 सीटें पाई। कांग्रेस 11 करोड़ 94 लाख वोट पाकर सिर्फ 52 सीटें पाई। कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 92 सीटें जीती थी। राहुल की भारत न्याय यात्रा से कांग्रेस का दस फीसदी भी वोट बढ़ता है, तो सदन में विपक्ष का नेता होने की हैसियत हो सकती है। यात्रा में कई मुद्दे साथ होंगे.. भारत न्याय यात्रा कांग्रेस की यात्रा है। इंडिया गठबंधन की नहीं। ऐसे में इडिया गठबंधन के 28 दलों के राज्य में भारत न्याय यात्रा पहुंचेगी,तब उसकी आगवानी करते हैं या नहीं, इस पर विपक्ष की नजर रहेगी। यदि ऐसा होता है,तो यह मैेसेज जाएगा,कि भारत न्याय यात्रा अकेले कांग्रेस की नहीं,बल्कि इंडिया गठबंधन की है। और जनता में राहुल गांधी मणिपुर से लेकर मुंबई तक के तमाम राज्यों के सवालों को अपनी यात्रा में शामिल कर उन्हें मुद्दा बनाकर चलेंगे,तब बीेजेपी की सियासी परेशानी बढ़ सकती है। क्यों कि 146 सांसदों के निलंबन, अडानी के सवाल, बेरोजगारी,महंगाई और देश की आर्थिक स्थिति के मुद्दे होंगे ही, साथ ही किसानों की भी बात होगी। बीजेपी का मकसद मोदी की हैट्रिक.. भारत जोड़ो यात्रा सात सिंतम्बर 2022 से 29 जनवरी 2023 तक थी। जबकि भारत न्याय यात्रा 14 जनवरी से 20 मार्च 2024 तक। भारत न्याय यात्रा की वजह यह है,कि कांग्रेस अपना वोट बैंक बढ़ाना चाहती है। कांग्रेस शासित राज्यो में न्याय स्कीम की शुरूआत भी संभव है। वहीं बीजेपी भारत संकल्प यात्रा गांव-गाव तक निकाल रही है। इसके पीछे मकसद है,मोदी की हैट्रिक सुनिश्चत करना और विकसित भारत के लाभार्थियों से संवाद कायम करना। इसके लिए 2500 कार्यक्रम के लिए वैन तैनात रहेंगे। साथ ही विकसित भारत हेल्थ कैंप भी करीब 65300 आयोजित होंगे। जिसमें महिला युवा,किसान और करीब एक करोड़ गरीब लोगों को लाना। देश के 255000 पंचायतों तक पहुंचने का लक्ष्य है। साथ ही 2019 से दस फीसदी वोट बढ़ाना है। वहीं भारत न्याय यात्रा का मकसद है 85 जिलों से गुजर कर करीब 98.7 करोड़ लोगों का ध्यान आकर्षित करना। बीजेपी के समक्ष चुनौतियां.. दोनों बड़ी पार्टियों का सियासी एजेंडा तय है। लेकिन सीटों को लेकर इंडिया गठबंधन में कोई बात नहीं हुई,जबकि बीजेपी जनवरी के अंत तक कुछ उम्मीदवार घोषित कर सकती है। विकसित भारत संकल्प यात्रा और भारत न्याय यात्रा में से किसी एक को जनता को चुनना होगा। इन यात्राओं से किसे फायदा होगा 2024 में, कोई भी दावा नहीं कर सकता। लेकिन भारत संकल्प यात्रा के जरिए बीजेपी की नजर उन राज्यो में होगी, जहां उसकी सरकार नहीं है। पश्चिम बंगाल,जहां टीएमसी की सरकार है। तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है। ओड़िशा में बीजू जनता दल की है। गैर बीजेपी शासित राज्यों में बीजेपी के लिए भारी चुनौती है। इसलिए कि 2019 के चुनाव में पश्चिम बंगाल में 42 में से 18 सीटें जीती थी। टीएमसी ने विधान सभा में बीजेपी को बढ़त बनाने से रोका। बिहार में जेडीयू एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी,तब उसे 40 में से 30 सीट मिली थी। अब इंडिया गठबंधन में नीतिश हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे, तब बीजेपी को 48 में से 41 सीट मिली थी। अब स्थिति बदल गयी है। उद्धव गुट इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं। झारखंड में 14 सीट है। यहां झामुमो के साथ कांग्रेस की गठबंधन सरकार है। मणिपुर और मेघालय में दो -दो सीट है। असम में 14 सीट। जिसमें नौ सीट पर बीजेपी और तीन पर कांग्रेस का कब्जा है। दो सीट कांग्रेस हार गयी। एक निर्दलीय और एक सीट एआईयूडीएफ के पास है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरसा दावा करते हैं, कि हम इस बार 11 सीटें जीतेंगे। मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी विधान सभा चुनाव जीती है। तीनों राज्यों को मिला दें तो यहां लोकसभा की 65 सीटें होती है। हिन्दी भाषी राज्य दिल्ली,झारखंड,हरियाणा,हिमालचल प्रदेश,यू.पी और उत्तराखंड,एम.पी,छग और राजस्थान की मिलाकर कुल 193 सीटे होती है। कांग्रेस इन्हीं राज्यों से कम से कम 30-40 सीट भी जीत जाती है,तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। हिमाचल प्रदेश की सभी चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। जरूरी है चुनाव जीतना.. सवाल यह है कि राहुल की यात्रा क्या इंडिया गठबंधन की पार्टियों पर असर डालेगी या फिर सिर्फ अपनी ही पार्टी को रिचार्ज करेगी । पिछले दिनों दिल्ली में इंडिया गठबंधन की बैठक में दिल्ली के सी.एम अरविंद केजरीवाल और बंगाल की सी.एम ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को 2024 में इंडिया गठबंधन की ओर से पी.एम उम्मीदवार बनाए जाने का प्रस्ताव रख कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है,कि वो राहुल को पी.एम. के रूप में नहीं स्वीकारते। हालांकि खरगे ने इस बात पर जोर दिया था,कि गठबंधन को एक पी.एम चेहरा पेश करने की जरूरत नहीं है। जरूरी है चुनाव जीतना। राहुल की भारत न्याय यात्रा से यदि कांग्रेस नहीं सिमटती,जैसा कि मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस हार गयी तो उनकी राजनीति में अर्द्धविराम नहीं लगेगा। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री कर रहे टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी का वीडियो बनाए जाने पर उनकी सियासी मानसिकता पर उठी उंगलियों पर सवाल नहीं उठेंगे। वैसे भी, इस बार 2024 के चुनाव में सिर्फ दो ही पार्टी की विचार धाराएं दिखेगी। एक बीजेपी की और दूसरी इंडिया गठबंधन की।वैसे भारत न्याय यात्रा से कांग्रेस में अच्छे दिन आने का न्याय जनता करेगी या नहीं,राहुल भी नहीं जानते।