Thursday, December 26, 2019

सत्ता की चाबी की चुनौती

     
नगरीय निकाय चुनाव में बड़ी भयावह हार भाजपा की नहीं रही है। जैसा कि विधान सभा के चुनाव में थी। और कांग्रेस की जीत भी कोई बड़ी जीत नहीं है। प्रदेश के 47 निकायों में सत्ता की चाबी निर्दलियों के हाथों में है। भाजपा और कांग्रेस के समक्ष सत्ता की चाबी को अपने पास रखने की चुनौती है।








0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
            राजधानी रायपुर के नगर निगम में कांग्रेस और भाजपा दोनों के समक्ष चुनौती थी अपनी अपनी पार्टी का मेयर बनाने की। चुनावी परिणाम ने दोनों ही बड़ी पार्टियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इसलिए कि दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिला। जनता ने सत्ता की चाबी निर्दलीय पार्षदों के हाथ में दे दी है। जाहिर सी बता है कि निर्दलीय पार्षदों की अहमियत बढ़ गई है। वहीं प्रदेश की राजधानी रायपुर में सरकार होने के बाद भी,कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दो सीट पीछे है। 34 कांग्रेस,29 भाजपा और 7 निर्दलीय पार्षद जीते हैं। रायपुर के सांसद सुनील सोनी और पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह का दावा है कि भाजपा का ही मेयर बनेगा। यदि ऐसा हो जाता है तो भूपेश सरकार की बड़ी हार होगी। जिसकी उम्मीद कम है। इस चुनाव में विपक्ष के अपने तीखे आरोप भी हैं। धन,बल और सत्ता का दुरूप्रयोग कांग्रेस ने किया है। बगैर आरोप के राजनीति नहीं चलती। सबसे बड़ा सवाल यह है कि धान के मामले पर जिस तरह भाजपा शहर से गांव तक धरना और प्रदर्शन की,उसका लाभ उसे उतना नहीं मिला। लेकिन वह कांग्रेस का पीछ करना नहीं छोड़ी। 47निकायों में सत्ता की चाबी निर्दलीय पार्षदों के हाथ में होने से एक बात साफ है कि जनता अभी कांग्रेस की पूरी तरह हुई नहीं है। धमतरी में तीन बागी पार्षद के कांग्रेस में शामिल हो जाने से कांग्रेस की लाज बच गई।
निर्दलीय बने किंगमेकर
नगरीय निकाय का चुनाव विपक्ष और सत्ता पक्ष की सियासी ताकत का एक तरीके से मूल्यांकन किया है,कहना गलत नहीं होगा। पंजा थोड़ा ऊपर है,कमल से। लेकिन कई स्थानों में कांग्रेस और भाजपा दोनों बराबर है। बलौदाबाजार के नगर पंचायत में दोनों दलों को 7-7 सीटें मिली है। नगर पंचायत साजा में 6-6 सीटें। नगर पंचायत गंडई,सहसपुर लोहारा,पिपरिया,दोरनपाल,नई लेदरी,बिल्हा नगर पंचायत,नगर पालिका तखतपुर और कटघोरा में भी दोनों दलों को 7-7 सीटें मिली है। जािहर सी बात है कि किसी भी दल के साथ निर्दलीय चले गये, तो अध्यक्ष उस पार्टी का बनेगा। पेंड्रा में स्थिति बड़ी अजीब है। कांगे्रस और भाजपा 4-4 सीट जीते हैं। लेकिन छजका 4 सीट जीती है। 3 निर्दलीय पार्षद भी है। यानी यहां छजका किंगमेकर की भूमिका में है। खरौद में भी भाजपा और कांग्रेस 5-5 सीटें जीती हैं। जबकि 5 सीटों पर निर्दलियों का कब्जा है।
अपने अपने दावे
निकाय चुनाव में पंजा थोड़ा सा ऊपर है। जबकि प्रदेश में उसकी सत्ता है, तो उसका जैसा जोर होना चाहिए था,वैसा नहीं दिखा। जैसा कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कहते हैं,‘‘ एक साल में भूपेश अलोकप्रिय हो गये’’। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम कहते हैं,‘‘ सभी दस नगर निगम में कांग्रेस के मेयर बनेंगे। जहां संख्या कम है, वहां निर्दलीय हमारे साथ हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,‘‘ हमारे नौजवानों ने भाजपा के सूरमाओं को पछाड़ दिया है। रायपुर में हम हैट्रिक करने जा रहे हैं। तीसरी बार यहां के निगम में कांग्रेस का कब्जा होगा। दुर्ग में पिछले 20 सालों से हम बाहर थे। सबसे बड़ी जीत दुर्ग में हमें मिली है। धमतरी में लगातार भाजपा जीतती रही थी। जहां इस बार कांग्रेस को सफलता मिली। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मेहनत सरकार के कामकाज पर जनता ने भरोसा जताया। राजनांदगांव एवं कवर्धा में कांग्रेस ने बाजी मारी। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के क्षेत्र में कांग्रेस को सफलता मिली। पिछली बार 6 नगर निगमों में कांग्रेस के महापौर जीते थे, लेकिन वहां पार्षदों की संख्या के हिसाब से बहुमत नहीं था। इस समय हर तरफ हमारा बहुमत है।
 वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने बैलेट पेपर से हुए चुनाव को कांग्रेस की साजिश बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि बैलेट पेपर से चुनाव कराकर कांग्रेस सरकार अपनी साजिश में सफल रही। मतगणना अधिकारी और कर्मचारियों पर राज्य सरकार का दबाव था। उन्होंने दावा किया कि आधे से अधिक निकायों में भाजपा के महापौर और अध्यक्ष चुने जाएंगे।
कोरबा में कांग्रेस हैरान
कोरबा के चुनाव परिणाम से कांग्रेस हैरान है। कोरबा में भाजपा को बड़ी लीड मिली। इस चुनावी परिणाम में सबसे चैकाने वाली बात रही कि जिले के प्रभारी मंत्री और विधायकों को अपने अपने क्षेत्र में करारी मात मिली। भाजपा की महासचिव सरोज पांडे भी अपने क्षेत्र में भाजपा को नहीं जीता पाईं। वहीं रायपुर में मेयर के प्रबल दावेदार संजय श्रीवास्तव को करारी मात मिली। भाजपा के प्रफुल्ल माहेश्वरी और भाजपा के जिला अध्यक्ष राजेन्द्र पांडे भी चुनाव हार गये। रायपुर में कांग्रेस का महापौर निर्दलीय के भरोसे ही बनने के आसार है। प्रदेश में कांग्रेस के 1283 पार्षद जीते और भाजपा के 1131 पार्षद। 103 नगर पंचायत में 48 में कांग्रेस और 40 में भाजपा विजयी रही। दस जगह बराबरी और पांच निर्दलीय जीते। 38 नगर पालिका में 18कांग्र्रेस और 17 में भाजपा का कब्जा और 3 में निर्दलियों का दबदबा है। 10नगर निगम में से 7 पर कांग्रेस विजयी रही और 2 में भाजपा और कांग्रेस बराबरी पर। बीजापुर नगर पालिका में कांग्रेस ने एक तरफा कब्जा किया। 15 वार्डो में 12 पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा ने जीत दर्ज की।
मेयर की दौड़ मेें
राजधानी में मेयर की दौड़ में तीन नाम हैं। एजाज ढेबर,प्रमोद दुबे वर्तमान में मेयर हैं और ज्ञानेश शर्मा। तीनों उम्मीदवारों में किसे मेयर बनाना है यह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निर्भर करेगा। लेकिन माना जा रहा है कि ज्ञानेश शर्मा इसके पहले कांग्रेस मीडिया के प्रमुख का दायित्व निभा चुके हैं। इसलिए वे मुख्यमंत्री के अति करीब हैं। लेकिन जाति कार्ड चला तो एजाज ढेबर का नाम पहले आ सकता है। चूंकि प्रमोद दुब पिछली दफा मेयर रह चुके हैं। इस बार वे 1500 वोटों से जीते हैं जबकि एजाज ढेबर सबसे अधिक वोटों से चुनाव जीते हैं। एजाज ढेबर पर सहमति दस जनपथ के कहने पर रही बन सकती है। लेकिन यह माना जा रहा है कि प्रमोद दुबे को मुख्यमंत्री दोबारा मेयर नहीं बनाना चाहेंगे। ज्ञानेश शर्मा मेयर नहीं बनाये गये तो सभापति बनाये जा सकते हैं।
बहरहाल निकाय चुनाव में भी डाॅ रमन सिंह कमल नहीं खिला सके। जाहिर सी बात है कि भाजपा को पूरे चार साल जनता के बीच जाकर कड़ी मेहनत और अपनी छाप बनाने की ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत है। जिला पंचायत के चुनाव तीन स्तरों पर होना है। यह चुनाव भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और डाॅ रमन सिंह के बीच प्रतिष्ठा का रहेगा।
मंत्री और विधायकों के क्षेत्र में कांग्रेस को मिली मात  फोटो-
निकाय चुनाव के परिणाम से कांग्रेस के मंत्री और विधायकों के काम काज और परफारमेंस पर सवाल उठ रहे हैं। जिन्हें स्थानीय स्तर पर चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वे पैदल भी साबित नहीं हुए। जबकि अपने विधान सभा क्षेत्र में बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। बेमेतरा जिले के साजा विधानसभा क्षेत्र के देवकर नगर पंचायत में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल गया है। 15 वार्डों के नगर पंचायत में 8 सीटों पर भाजपा, 6 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली हैण् आपको बता दें यह विधानसभा सीट मंत्री रविन्द्र चैबे की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम कोंडागांव नगर पालिका के चुनाव में उनके हिस्से करारी हार आई। कुल 21 वार्ड में भाजपा को 13 जबकि कांग्रेस 9 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा अभनपुर. विधायक धनेन्द्र साहू का निर्वाचन क्षेत्र है। यहां कुल 15 वार्ड में भाजपा को 10, निर्दलीय को 4 और कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट पर जीत सकी।
विधायक चंद्रदेव राय विधानसभा बिलाईगढ़. से है। यहाँ भी कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। कुल15 वार्ड में भाजपा को 7 निर्दलीय को 5 जबकि कांग्रेस को सिर्फ 3 सीट मिली है।
विधानसभा अहिवारा के विधायक रुद्र गुरु अपने निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस को हारने से नहीं बचा सके।   कुल 15 वार्ड में भाजपा को 10 कांग्रेस को 4 और निर्दलीय को 1 सीट पर जीत मिली है
विधानसभा डौंडीलोहारा विधायक अनिला भेड़िया का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ कुल 15 वार्ड में निर्दललियों को 7 भाजपा को 5 और कांग्रेस को महज 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा बेमेतरा,आशीष छाबड़ा का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ लगातार दूसरी बार कांग्रेस की करारी हार हुई। कुल 21 वार्ड में भाजपा को 12 कांग्रेस को 8 और निर्दलीय 1 सीट पर काबिज हुआ।
विधानसभा महासमुंद के विधायक विनोद चंद्राकर अपने निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस को हारने से नहीं बचा सके। कुल 30 वार्ड में भाजपा को 14 कांग्रेस को 8ए जोगी कांग्रेस को 2 और निर्दलियों को 5 और आप को 1 सीट पर जीत मिली है।
खल्हारी.बागबहार विधानसभा के विधायक द्वारिकाधीश यादव के निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेसे को 4 सीट मिली।  कुल 15 वार्ड में भाजपा को 6 निर्दलियों को 5 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा सरायपाली. किस्मत लाल नंद का निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस की सर्वाधिक बुरी गति हुई। कुल 15 वार्ड में भाजपा को 9 और कांग्रेस को 3 और निर्दलियों को 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा बसना. विधायक देवेन्द्र बहादुर का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ कुल 15 वार्ड में 7 में निर्दलियों को 5 में कांग्रेस को और 3 में भाजपा को जीत मिली है।
विधानसभा राजिम के विधायक अमितेष शुक्ल अपने निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस को हार से नहीं बचा सके। कुल 15 वार्ड में भाजपा को 6 कांग्रेस को 3 जेसीसीजे 1 और निर्दलियों को 5 सीटों पर जीत मिली
विधानसभा दंतेवाड़ा. की विधायक देवती कर्मा के निर्वाचन क्षेत्र में कुल 15 वार्ड में भाजपा को 8 निर्दलियों को 4 और कांग्रेस को सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा बस्तर. विधायक लखेश्वर बघेल का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ से भी कांग्रेस को करारी हार का सामना पड़ा है। कुल 15 वार्डों में निर्दलियों ने 10 कांग्रेस ने 4 और भाजपा ने सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली।
विधानसभा अंतगाढ़. विधायक अनूप नाग का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। कुल 15 वार्डों में भाजपा को 7 कांग्रेस को 5 और निर्दलियों को 3 सीटों पर जीत मिली है।
विधानसभा नगरी.सिहावा लक्ष्मी धु्रव का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। कुल 15 वार्डों में भाजपा ने 9 कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की।
विधानसभा जशपुर. विधायक विनय भगत का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई है। कुल 20 वार्ड में भाजपा को 16, निर्दलियों को 3 और सिर्फ 1 सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है।
विधानसभा पत्थलगाँव. विधायक रामपुकार सिंह का निर्वाचन क्षेत्र है। यहाँ भी कांग्रेस हार गई। कुल 15 वार्ड में 9 में भाजपा को, 5 में कांग्रेस को 1 में निर्दलीय को विजय मिली।
विधानसभा गुंडरदेही के विधायक कुँवर निषाद अपने निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस को नहीं जीता सके। 15 वार्ड में भाजपा को 8, कांग्रेस को 6 और निर्दलीय को 1 सीट पर जीत मिली।
 

पानी में मौत








        
डेढ़ हजार की आबादी वाले छत्तीसगढ़ के रायपुर से दो सौ पैंतीस किलोमीटर दूर गरियाबंद जिले के देवभोग तहसील के सुपेबेड़ा गांव में पिछले पांच सालों से शहनाई नहीं बजी। क्यों कि इस गांव का पानी किडनी का दुश्मन है। सैकड़ों लोगों की जानें चली गई। पन्द्रह सालों तक बीजेपी की सरकार ने पीने का पानी मुहैया नहीं करा सकी और अब कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री को गांव वाले उनके किये वायदों को याद दिला रहे हैं।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दो सौ पैतीस किलोमीटर दूर गरियाबंद जिले के देवभोग तहसील के सुपेबेड़ा गांव में पानी में मौत बसती है। सुनकर हैरानी होती है। पानी में मौत कैसे बसती है? दरअसल आजादी के इतने बरसों के बाद भी न तो रमन की सरकार और न ही भूपेश की सरकार ने मीठा पानी उपलब्ध करा सकी। यहां के किसी भी बोर का पानी जीवन नहीं है। डेढ़ हजार आबादी वाले इस गांव के लोगों का कहना है कि करीब सवा सौ लोगों की मौत हो चुकी है। साढ़े तीन सौ लोगों के रक्त की रिपोर्ट पाॅजिटीव आने से राज्यपाल अनुसुइया उइके हैरत में हैं। उन्हें जब इसकी जानकारी दी तो उन्हांेने कहा,’’मै हतप्रभ हूं कि सवा सौ लोगों की पानी की वजह से किडनी फेल हो जाने से जानें जा चुकी है। खबर चैकानें वाली थी इसलिए वहां जाकर इस गांव के लोगों से मिली। सरकार सुपेबेड़ा गांव के प्रति काफी गंभीर है। वह यहां के मरीजों के लिए सब कुछ करने को तैयार है। इसके बाद भी मेरी जरूरत महसूस होती है तो उन्हें व्यक्तिगत मदद को तैयार हूं’’। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,’’ राज्यपाल की चिंता वाजिब है। हम लोग भी चिंतित है। हम तो चाहते हैं कि उसके कारण का पता लगे।राज्यपाल सुपेबेड़ा की स्थिति देखने के बाद केन्द्र सरकार को भी कहें कि पता लगाये कि आखिर मौत की वजह क्या है’’?
सुपेबेड़ा पूरे छत्तीसगढ़ में मौत के गांव के नाम से जाना जाता है। यही वजह है कि किडनी की बीमारी के कारण एक दशक से हालात बेहद खराब हैं। पांच साल से यहां किसी भी घर में शहनाई नहीं बजी।   किडनी की बीमारी के डर से इस गांव में न कोई अपनी लड़की ब्याहना चाहता है और न ही यहां की लड़की को कोई बहू बनाकर अपने घर ले जाना चाहता है। हैरान करने वाली बात यह है कि किडनी की बीमारी की वजह से हर घर में एक महिला की मांग उजड़ चुकी है। खुशी छिन चुकी है। अपने परिवार के 17 सदस्य को किडनी की बीमारी से खो चुके त्रिलोचन सोनवानी ने बताया कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर वाहवाही लूटने में लगी है। चाहे पूर्व बीजेपी की सरकार हो या वर्तमान कांग्रेस की सरकार। त्रिलोचन सोनवानी पहले व्यक्ति हैं जो गांव के 12 व्यक्तियों को रायपुर के मैकाहारा अस्पताल में भर्ती करवाया। जिसमें सात लोगांे की मौत हो गई और पांच अपने गांव सुपेबेड़ा लौट आये। क्यों कि उन्हें मैकाहारा में दवाई खरीदने के लिए बाध्य किया जाता था और अस्पताल में खाना भी नहीं मिलता था।
मौत का गांव
सुपेबेड़ा आज मौत के गांव के नाम से जाना जाता है। यहां ऐसा कोई घर नहीं बचा जहां किडनी से मौत न हुई हो। महेन्द्र मिश्रा के पिता के पिता जलंधर मिश्रा की मौत किड़नी की बीमारी से  हो चुकी है। 65 वर्षीय दामोदर मसरा की डेढ़ साल पहले रक्त परीक्षण में 4.4 पाॅजिटिव पाया गया। इनके भाई चैवन सिंह पत्नी शैलेन्द्र दामोदर की मौत 2018 में हो चुकी है। जलंधर मसरा भी किडनी रोग से ग्रसित है। अंकुर राम आडिल किडनी की बीमारी से ग्रस्त है। इलाज कराने के चक्कर में उसकी आधी जमीन बिक गई। देव प्रकाश पुरैना किडनी रोग में अपने पिता मोहन लाल पुरैना को 2016 में खो चुके हैं। घर में विधवा मां और बहन है। रोजगार का कोई साधन नहीं है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक अब तक 74 लोगों की मौत हो चुकी है। 
मशीनें हैं एक्सपर्ट नहीं 
डाॅ रमन सिंह के कार्यकाल में दो साल पहले डायलिसिस मशीन राजधानी से सुपेबेड़ा के लिए भेजा गया था लेकिन, मशीन चलाने के लिए एक्सपर्ट डॉक्टर नहीं होने की वजह से इसका फायदा किसी भी मरीज को नहीं मिला। जिन मरीजों को डायलिसिस की जरूरत है उन्हें राजधानी रायपुर के डीकेएस हॉस्पिटल और रामकृष्ण केयर भेजा जाता है। डाॅ रमन सिंह की सरकार ने इस गांव को इस समस्या से उबारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। बल्कि अलेक्जेड्राइड की खदानें अपने करीबी उद्योगपतियों को देकर पानी में विषैलों तत्वों में इजाफा किया। किडनी पीड़ितों के इलाज के लिए जो भी व्यवस्था की बात की वो सारे बेबुनियादी है। स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर जो डायलिसिस मशीन भेजी गई, वो आज तक चालू नहीं हुई। दो बोर कराये गये लेकिन, उसका भी पानी संक्रमित है।
निशाने पर थी रमन सरकार
तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल 18 जून 2018 में किडनी की बीमारी से प्रभावित गांव सुपेबेड़ा का दौरा किया था। उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और गांव के हालातों का जायजा लिया। सुपेबेडा के हालातों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था,’’ रमन सिंह विकास यात्रा छोड़कर सुपेबेडा आये और जो दूषित पानी यहां के लोग सालों से पी रहे है उसे पीकर दिखायें। सरकार सिर्फ वादे करती है पर कुछ करती नहीं है। सरकार ने लोगों को वादा तो बहुत किया लेकिन एक भी वादे पूरे नहीं कर सकी। फिर चाहे वो नदी से शुद्ध पेयजल मुहैया कराने का दावा हो या फिर गांव में ही मरीजों को डायलसिस की सुविधा उपलब्ध कराना हो। सरकार अपने किसी भी वादे को पूरा नहीं कर पायी है’’।
भूपेश वायदा भूले
हैरान करने वाली बात यह है कि तात्कालीन पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने चुनाव के वक्त इस गांव का दौरा करने के बाद एक एक घर से कहा था,’’ प्रदेश मंे कांग्रेस की सरकार बनी तो हर पीड़ित घर को दस लाख रूपये कर अनुदान और प्रभावित परिवार के प्रत्येक युवा को रोजगार दिया जायेगा’’। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने दस माह हो गये लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश अपना वायदा भूल गये हैं।
सरकार हरकत में आई
राज्यपाल अनसुइया उइके के सुपेबेडा गांव के दौरे के बाद सरकार हरकत में आई। स्वास्थ्य एंव पंचायत मंत्री टीएस सिंह देव ने यहां आकर बड़ी बड़ी घोषणा कर गये हैं। उन्होंने ग्रामीणों से हाथ जोड़कर इलाज के लिए रायपुर चलने कहा। अपना मोबाइल नंबर दिया और बोले अब शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा। सुपेबेड़ा समेत आसपास के प्रभावित गांव मिस्टीगुड़ा, सेंधगुड़ा, खमारगुड़ा, खोकसरा, रेवापाली,सागौनबाड़ी,किरलीगुड़ा,फूलीगुड़ा,मोटापारा आदि सभी गांव की जिम्मेदारी हमारी है। उन्होंने कहा कि पूर्व सरकार में हुई चूक की मौजूदा सरकार पुनरावृत्ति नहीं करेगी। तीन माह के अंदर गांव से तीन किलोमीटर दूर तेल नदी से पाइप लाइन के जरिये गांव में पानी पहुंच जायेगा। जल्द अस्पताल खुल जायेगा। इसके अलावा विधवा महिलाओं के लिए कुटीर उद्योग खुल जायेगा। साथ ही बेरोजगार युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा’’। उन्होंने माना कि यहां उच्च स्तरीय शोध की आवश्यकता है, जिससे बीमारी के कारणों का पता लग सकेगा। उसके बाद ही इसका समाधान निकाला जा सकता है। सरकार की इस घोषणा का क्रियान्वयन कितना होता है यह वक्त बतायेगा। गांव के अंकुर राम आंडिल कहते हैं,’’ भूपेश बघेल ने गांवों वालों से जो वायदा कर गये थे,उसका क्या होगा’’।
क्रिएटिनिन लेबल 4 से ऊपर
डाॅ आशीष सिन्हा के नेतृत्व में डॉ चंद्रकांत दीवान, नेफ्रोलॉजिस्ट मनीष पटेल समेत पांच चिकित्सकों की टीम ने सुपेबेड़ा के रिमूवल प्लांट का पानी और खाद्य सामग्रियों के जांच में पाया कि पानी में कैडिमयम व क्रोमियम जैसे हैवी मेटल भारी मात्रा में है। वहीं 400 रक्त नमूने लिए गए जिसमें 256 किडनी की बीमारी से पॉजिटिव पाए गए हैं। हैरानी वाली बात यह है कि लिये गये ब्लड नमूने में ज्यादातर में क्रिएटिनिन लेबल 4 से ऊपर पाया गया है। किडनी में डेढ़ प्रतिशत क्रिएटिनिन का बढ़ना सामान्य माना ताता है। इससे अधिक क्रिएटिनिन का होना खतरनाक माना जाता है। लेकिन यहां के लोेगों को 23 पांइट तक क्रिएटिनिन पाया गया। यहां के पानी में फ्लोराइड,आर्सेनिक,क्रोमियम,केडिनियम,इसके अलवा एथेन और मिथेन जैसे रासायनिक तत्व अधिक मात्रा में पाये गये हैं।
हैंण्ड पंप का पानी जानलेवा
डाॅ आशीष सिन्हा किडनी रोग से ग्रसित मरीज 62 वर्षीय पूरनधर पुरैना ने बातें की तो उसने चैकाने वाला खुलासा किया। पुरैना ने बताया कि जब तक गांव वाले नदी व कुएं का पानी पी रहे थे, तब तक किसी को कोई बीमारी नहीं थी। लेकिन सरकारी हैंडपम्प से पानी पीना शुरु किया उसके बाद से ही यहां किडनी की बीमारी फैली। पानी में फ्लोराइड, आयरन, आर्सेनिक,क्रोमियम,केडिनियम,और दूसरे भारी तत्वों की अधिकता की वजह से लगभग सभी कि हड्डियां कमजोर हो गई हैं। दांत पीले और कई लोगों के कमर झुक गई है। कई लोग सीधे खड़े नहीं हो सकते। 2005 से 2018 तक किडनी बीमारी से मरने वाले परिजनों को संसदीय सचिव स्वेच्छानुदान से 20 हजार और मुख्यमंत्री से 50,50 हजार की सहायता राशि दी गई। 
ग्रामीण मिलेंगे सीएम से
सुपेबेड़ा गांव की पहचान केवल छत्तीसग ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक किडनी प्रभावित गांव के रूप में रही है। गांव में अब तक किडनी की बीमारी से तत्कालीन सरकार ने ग्रामीणों की हर संभव मदद का दावा किया,लेकिन ग्रामीणों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। कांग्रेस की सरकार बनते ही सुपेबेड़ा के लोगों में एक बार फिर बेहतर जीवन की उम्मीद जगी। भूपेश बघेल को उनका वादा याद दिलाने के लिए ग्रामीणों का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही उनसे मिलने की तैयारी में है। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के सुप्रीमो अजीत जोगी ने कहा,’’ जब तक सुपेबेड़ा के दर्द का इलाज नहीं हो जाता राज्योत्सव नहीं मनाया जाना चाहिए।
बहरहाल मौत का गांव सुपेबेड़ा’’को इस नाम से निजात पाने में कितने दिन लगेंगे गांव वाले भी नहीं जानते। भूपेश सरकार इस गांव को जीवनदान देने की दिशा में क्या, क्या करती है,पूरे प्रदेश की नजर है।
  

सवालों के घेरे में सरकार






सत्ता पाने के लिए काग्रेस ने जनता से जो वादे किये थे,वो सत्ताई भंवर में उलझ कर रह गये हैं। सरकार अपने वायदे पर उम्मीद से कम खरी उतरी। डाॅ रमन सिंह कांग्रेस सरकार के एक बरस को बुरे सपने जैसा करार देते हैं। वहीं अजीत जोगी कहते हैं नरवा, गुरवा और बाड़ी में ही उलझी रही सरकार। सवाल यह है कि भूपेश सरकार नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने में कितने कदम चली। 

0 रमेश कुमार’’रिपु’’
                 ‘‘नवा छत्तीसगढ़ गढ़बों’’। भूपेश सरकार का यह नारा आज भी प्रदेश के हर जिले में विज्ञापन के रूप में चश्पा है। एक साल में भूपेश सरकार कितने घर चली, विपक्ष सरकार से पूछ रहा है। क्या एक साल में भूपेश का कद बढ़ा या फिर कांग्रेस का, अथवा सरकार का। वैसे देखा जाये तो प्रदेश सरकार ने अपने एक बरस सुर्खियों की राजनीति में ही गंवाये। एक साल की सरकार ने प्रदेश की जनता को क्या दिया। उसके घोषणा पत्र के कितने वायदे पूरे हुए। कांग्रेस के नवा छत्तीसगढ़ गढ़बों के नारे का सच, कितना सच है,इसका सही मूल्यांकन जनता और विपक्ष करता है। वैसे विपक्ष का एक सूत्रीय काम होता है सरकार की खामियां ढूंढना। बावजूद इसके देखा जाये तो भूपेश सरकार पूर्व सरकार के ज्यादातर मामले की जांच के लिए एसआइटी का गठन करते एक बरस बिता दिये। आठ एसआईटी गठित की गई। हाई कोर्ट ने सात एसआईटी को न केवल रद्द किया बल्कि, जांच पर भी रोक लगा दी। सरकार सत्ता में आने के लिए किसानों से ढाई हजार रूपये प्रति क्ंिवटल की दर से धान खरीदने का वायदा किया था। लेकिन अब वह प्रदेश की 2048 केन्द्रों में 1815 और 1835 रुपए की दर पर धान 15 फरवरी तक खरीदेगी। इस साल 54 नए खरीदी केन्द्र बनाए गए हैं। जबकि 48 मंडियों एवं 76 उपमंडियों के प्रांगण का उपयोग भी खरीदी के लिए किया जाएगा। इस साल प्रदेश के 19 लाख 56 हजार किसानों ने धान बेचने के लिए अपना पंजीयन कराया है। जो कि पिछले साल की तुलना में दो लाख 58 हजार ज्यादा है। सरकार द्वारा घोषित 25 सौ रुपए मंेे से अंतर की राशि किसानों को अलग से दी जायेगी। लेकिन कैसे दी जायेगी,यह सरकार ने अभी तक नहीं बताया। अलबत्ता प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को अंतर की राशि देने के लिए पांच मंत्रियों की कमेटी बनाई है। जो तेलंगाना की रइत बंधु और ओडिशा की कादिया पॉलिसी का अध्ययन करेगी। कमेटी आगामी बजट सत्र के पहले सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। सीएम भूपेश कहते हैं कि, किसानों को हर हाल में 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जाएगा। सरकार ने शीतकालीन सत्र के अनुपूरक बजट में 205 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। जाहिर सी बात है यदि अंतर की राशि प्रदेश सरकार अपनी जेब से देती है, तो उसे 600 करोड़ रूपये का नुकसान होगा। 
किसानों का गुस्सा सड़कों पर
प्रदेश में किसानों से सरकार 1815 और 1835 रुपए की दर पर धान खरीदने का आदेश जारी किया तो विपक्ष ने हंगामा किया। किसानों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया। कवर्धा में धान खरीदी शुरू होने के दूसरे हफ्तें विवाद बढ़ा। कवर्धा के किसानों ने सरकार की खिलाफ़त की और कहा पूरा धान खरीदने का वायदा करने के बाद, तय सीमा में धान लिया जा रहा है। बचा हुआ धान सरकारी सख्ती की वजह से किसान किसी और को भी नहीं बेच सकते। जिले के झिरौनी केंद्र में किसानों ने मुख्यमंत्री का पूतला फूंका। किसानों का कहना है कि सॉफ्टवेयर को ऐसे सेट कर दिया गया है कि, वह एक सीमा तक ही धान खरीदी की एंट्री कर रहा है। जबकि सरकार और इसके अधिकारी पूरा धान लेने  की बात कह रहे हैं। प्रदेश के आधे से अधिक धान खरीदी केन्द्रों में किसानों ने बहिष्कार किया। बावजूद इसके सरकार ने इस साल 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा है।
बुरे सपने जैसी सरकारः रमन
पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह कहते हैं,‘‘ पूरा एक वर्ष छत्तीसगढ़ के लिए एक बुरे सपने जैसा रहा है। गेड़ी चढ़ने,भौरा चलाने और सोंटा मारने से विकास नहीं होता। दरअसल हाल ही में लोक संस्कृति के त्योहार हरेली और गौरा,गौरी पूजन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गेड़ी चलाई थी और सोंटा (चाबुक) भी खुद को मरवाया था। इस सरकार की जो सबसे खतरनाक बात रही, वह ये कि जिन वर्गों को बड़े सपने दिखा कर सत्ता में आई,सबसे ज्यादा उन्हें ही परेशान किया। 2500 रुपया प्रति क्ंिवटल कीमत धान की किसानों को देने से सदन में मुकर गए। धान खरीदी केन्द्रों में अराजकता की स्थिति है। सरकार केवल एक कमेटी का गठन करके धान खरीदी को लेकर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहती है। किसानों का कर्जा माफ करने में फर्जीवाड़ा किया गया। जिस किसान ने कर्जा लिया ही नहीं था, उसे ऋण माफी का प्रमाण पत्र थमा दिया गया। राष्ट्रीयकृत व व्यवसायिक बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों का एक रुपया भी माफ नहीं किया गया। 
निर्भया जैसी स्थिति हर जिले में
डाॅ रमन सिंह ने कहा,सत्ता में आयी सरकार केवल बदला और तबादले को ही बदलाव समझ बैठी है। पुलिसिंग का हाल तो ऐसा बेहाल है कि दुष्कर्म और हत्या आदि की घटनाएं रुक ही नहीं रही हैं। खुद सरकार द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार साल भर में 80 हजार से अधिक अपराध छत्तीसगढ़ में दर्ज किये गए हैं। जबकि अभी भी यह साल बचा हुआ है। केवल रायपुर में रेप,हत्या की 80 से अधिक जघन्य वारदात हो चुकी हैं। डॉ रमन ने कहा कि छत्तीसगढ़ में किसी भी जिले में महिलायें, बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। आये दिन हो रहे अनाचार, हत्याए व छेड़छाड़ की घटनाओं से छत्तीसगढ़ की पहचान अब अपराध गढ़ के रूप में होने लगी है। राज्य के रायपुर संभाग में ही 448 रेप व 664 अपहरण के मामले दर्ज किये गये हैं। बिलासपुर संभाग में 891 रेप व 1377 अपहरण के मामले दर्ज किये गये हैं। कुल 27 जिलों में 7 महिने के भीतर ही 35954 अपराध के मामले दर्ज हैं। हर कोने से निर्भया जैसी वारदातें सामने आ रही हैं। इसी विधानसभा में हमने अपने विधायक भीमा मंडावी जी को खोया है। उनकी नृशंस हत्या की एनआई जांच रोकने के लिए एड़ी,चोटी का जोर लगा दिया था। आखिर किस बात की परदेदारी है। क्या छिपाना चाहते हैं ये। अब हाई कोर्ट ने एनआईए जांच का रास्ता साफ किया है। जांच होने दीजिये पता चलेगा। यही कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए झीरम का सबूत अपनी जेब में होने की बात करते थे, कहाँ है साक्ष्य, अभी तक एजेंसियों को दिया क्यों नहीं।
दिल्ली के वकीलों को पैसा लुटाया
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कहते हैं,‘‘ पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी को केवल बदलापुर की राजनीति के लिए झोंक दिया गया। विधानसभा में सवाल पूछने पर चैंकाने वाली जानकारी सामने आयी कि केवल कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को ही 60 लाख रूपये की फीस दे दी गई ताकि, झूठा मामला बना कर हमें फंसाया जा सके। ऐसे आरोपियों पर प्रदेश की गाढ़ी कमाई लुटाना कहां का न्याय है। इसके अलावा भी दिल्ली के कांग्रेसी वकीलों पर करोड़ों लुटाये गए। अधिकांश मामलों पर कोर्ट में सरकार को मुंह की खानी पड़ी। प्रदेश सरकार ने नेशनल हेराल्ड को दिया 50 लाख का विज्ञापन। जो जनहित में नहीं है।
सरकार के पास विजन नहीं: जोगी
देखा जाये तो विपक्ष का हर नेता भूपेश सरकार की खिलाफत कर रहा है। उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया है जिसे विपक्ष कहे कि यह काम ठीक था। छजका के सुप्रीमों अजीत जोगी कहते हैं, 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में आई लेकिन, पूरा एक साल हताशा एवं निराशा से भरा रहा। सरकार के पास कोई विजन नहीं है। इस सरकार ने एक साल नरवा, घुरवा, और बाड़ी में ही गुम रही। युवाओं को रोजगार, किसानों को परेशानी, महंगाई पर नियंत्रण, स्वास्थ्य शिक्षा समेत हर क्षेत्र में सरकार कुछ नहीं कर पाई। सरकार कहती है बिजली बिल आधा कर दिया गया है। भरपूर बिजली दी जा रही है। लेकिन लो वोल्टेज की परेशानी के चलते बालोद जिले के डौंडी विकास खंड के ग्राम पंचायत मथेना में 40 किसानों की 140 एकड़ फसल सूख गई। पुलिस कर्मियों को मिलने वाले नक्सल भत्ते को बंद कर दिया गया। यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। 
खत्म हो जायेगा नक्सलवादः भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं समीक्षा के नजरिये से एक साल की अवधि कम है। प्रदेश की जनता के साथ छल नहीं किया। रमन सरकार 20 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता की बात करते रहे, जबकि हमारी क्षमता 11 लाख हेक्टेयर की है। ग्रामीणों को रोजगार दे रहे हैं। ई टेंडर बंद कर दिया गया है। नक्सल समस्या में 50 फीसदी की कमी आई है। पूरी उम्मीद है कि पांच साल में नक्सल समस्या खत्म हो जायेगा। प्रदेश की जनता को 450 करोड़ की बिजली बांटी। धान खरीदी के लिए 21 हजार करोड़ खर्च किया गया है। नरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के लिए 4000 करोड़ का फंड दिया गया है। गोठान सरकारी योजना नहीं है। इसका संचालन गांव वालों को ही करना है। हरेली,तीजा और पोरा जो इस प्रदेश का त्योहार है। छुट्टियां घोषित की। मंत्रिमंडल के काम काज की समीक्षा पार्टी हाई कमान और बड़े नेता कर रहे हैं। यह प्रक्रिया चलती रहेगी। हमारी देनदारी 50 हजार करोड़ की है। किसानों का कर्जा माफी,धान खरीदी,मानक बोरा संग्रहण दर बढ़ाया है। इस वजह से  सभी सेक्टरों में उछाल आया है। आदिवासियों की जमीन छीनी जाती रही है। उनको 4200 एकड़ जमीन वापस करने का काम पहली बार हुआ। स्वच्छता दीदी योजना के तहत मानदेय बढ़कर छह हजार किया। जमीन की गाइड लाइन दर में 30 फीसदी की कमी की गई। छोटे भूखंडों की के क्रय विक्रय से रोक हटाया गया। 1250 करोड़ की लागत के 28694 नवीन आवास स्वीकृत किये गये।
सरकार के समक्ष चुनौतियां
इससे इंकार नहीं है कि प्रदेश सरकार को स्थायी रूप से नक्सल समस्या मिली है। सरकार के पास देनदारी अधिक है। घाटे से उबारना और आय बढ़ाना है। 7.18 फीसदी ब्याज दर पर सरकार ने 2 हजार करोड़ का कर्ज लिया। केन्द्र सरकार ने किसानों को बोनस देने से इंकार कर दिया है। लेकिन कांग्रेस के घोंषणा पत्र में ऐसे कई वायदे हैं, जो उसके लिए चुनौती है। हर साल 2500 रूपये क्विंटल किसानों से धान खरीदना। प्रदेश के 40 लाख बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देना या फिर उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करना। दस लाख बेरोजगारों को ढाई हजार रूपये बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही थी। नरवा,घुरवा और बाड़ी योजना को जमीनी धरातल पर सफल करना। कुपोषण दूर करना। शराब बंदी के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट को लागू करना।शराब बंदी का वादा करके सत्ता में आई कांग्रेस अब 1 साल बाद भी शराब बंदी को लेकर कोई भी फैसला नहीं ले पाई। बल्कि दो घंटे और शराब दुकानें खोलने की सीमा बढ़ा दी गई। वहीं शराब से आय का लक्ष्य बढ़ा कर 4700 हजार करोड़ किया गया है। पूरे प्रदेश में ओवर रेट पर शराब बिक रही है उसके करीब 5420 मामले दर्ज किये गये हैं। स्काई वाॅक को तोड़ने की बात कही थी,कमेटी भी गठित की गई। लेकिन हुआ कुछ नहीं। पुलिस भर्ती बल .की परीक्षाओं का परिणाम लंबे समय से रोक कर रखा गया है। 61 हजार नौजवानों का भविष्य अंधकार में है। दो वर्ष की सेवाओं के उपरांत शिक्षाकर्मियों को नियमित करने का वादा भी झूठा साबित हुआ। सरकारी नौकरियों पर एक साल की रोक लगा दी गई। सरकार ने वादा किया था कि महिला स्व सहायता समूहों का कर्जा माफ किया जायेगा। इस वक्त 1 लाख से भी ज्यादा महिला स्व सहायता समूहों का लगभग 1100 करोड़ रुपया कर्जा है। सरकार ने एक फूटी कौड़ी माफ नहीं की। विधवा महिलाओं को 1 हजार रुपए पेंशन देने का वादा था, वो भी पूरा नहीं किया गया। पीड्ल्यूडी विभाग के माध्यम से होने वाले बड़े विकास के कार्य आज प्रदेश भर में रुके हुए हैं। रेल कारिडोर का पैसा रोक कर प्रदेश के विकास को बाधित किया गया है। स्मार्ट सिटी के सभी प्रोजेक्ट रुके। उच्च न्यायालय ने सरकार के कई फैसले को निरस्त किया,मसलन, सहकारी संस्थाओं को भंग करने का मामला हो, आरक्षण बढ़ाने का विषय हो प्रमोशन में आरक्षण देने का मामला हो, अनुसूचित जाति आयोग व महिला आयोग की सदस्यों की नियुक्ति का मामला हो, पूर्व मुख्य सचिव अमन सिंह के खिलाफ एसआईटी गठित करने का मामला हो। पाटन और कवर्धा के 700 किसान अब भी कर्जदार। सहकारी बैंक के सीइओ ने नोटिस दिया है। सरकार के कर्ज माफी घोषणा पर यह प्रश्न चिन्ह है। गन्ना किसान खेत में आग लगा रहे हैं। बंपर पैदावार के बाद भी शक्कर कारखाने में पर्ची नहीं मिलने से किसान परेशान हैं। जनता को लाभ पहुचाने वाली 22 तरह की योजनाओं पर सरकार ने रोक लगा दी।
 सियासी प्रतिशोध में बिताः कौशिक
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा,कांग्रेस सरकार के एक साल का कार्यकाल राजनीतिक प्रतिशोध का रहा है। प्रदेश सरकार के काम की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री डॉण् रमन सिंह के खिलाफ बदलापुर से शुरू हुई और डॉ रमन सिंह के खिलाफ फिर दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के साथ एक साल इस सरकार ने पूरा किया है। पूरे साल भर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगाकर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सरकार के चरित्र हनन में ही लगे रहे। 
बहरहाल भूपेश सरकार ने एक साल में ढाई घर भले नहीं चली विपक्ष की नजरों में लेकिन अपनी छाप प्रदेश की जनता के बीच छोड़ी। इससे इंकार नहीं कि कांग्रेस सरकार को अपने घोषणा पत्र के कई कामों को अभी करना बाकी है। यदि उसे पूरा नहीं की तो सरकार के प्रति जनता में नाराजगी बढ़ सकती है।














     

Sunday, November 10, 2019

मुहब्बत का सावन

                         मुहब्बत का सावन        
’’तन्हाइयों की बारिश में भीगते भीगते आषाढ़ बीत गया। अब तो सावन भी लग गया। सावन की झड़ी में क्या, इस बरस भी अकेला ही भीगना पड़ेगा? बोलो ना, क्या यह हसरत इस जन्म में मुकम्मल नहीं होगी। मेरी ये दुआ ऊपर वाला कुबूल करने से रहा,तुम ही कुबूल कर लोे’’।
देवेश की मिन्नतों पर रूपाली खिलखिला कर हंसते हुए बोली,’’तुम और तुम्हारी ख्वाहिशें.. दोनों अजीब है। कोई सावन में भीगनेे के लिए ऊपर वाले से दुआ मांगता है,वो अपनी महबूबा के साथ..! ऐसी दीवानगी मेंने कभी न देखी और न सुनी है। मै तुम्हारी यह दुआ कुबुल करने से रही। देखो, ऊपर वाला तुम्हारी दुआ कब कुबूल करता है... मै तो चली’’।
’’पिछले तीन बरस से, हर सावन में देवेश अपने संग मुझे भी सावन में भीगने की गुजारिश कर रहा है। जब वो बड़े प्यार से मुझे प्यासी नज़रों से देखता है तो मै उसकी आंखों में झांक कर देखती हूं कि प्यार का सागर कितना हिलकोरे मार रहा है। सच में, उसे प्यार है या फिर सिर्फ बातों में प्यार जता रहा है। वैसे सच कहूं..हर प्रेमी बातों में प्यार कुछ ज्यादा ही जताते हैं। हर बार की तरह उसे मेरा यही जवाब,मेरा सावन अभी आया नहीं है। ये भी नहीं जानती,वो कब और किस तरह आयेगा। जब आयेगा.. तब भीग लूंगी। कम से कम, अभी तो नहीं’’
सोच लो, कहीं ऐसा न हो तुम्हारा सावन बरसे न। और तुम बगैर भीगी ही रह जाओ’’। देवेश मुस्कुरा के बोला।
’’ऐसा होगा, इसकी उम्मीद कम ही है। और ऐसा हुआ तो फिर मै इस सावन के साथ भीग लूंगी। पर अभी मूड नहीं है। रूपाली आंखें मटकाते हुए बोली।
मुहब्बत और इश्क का यही तो कमाल है। लड़की मुहब्बत तो किसी से भी कर लेती है,लेकिन इश्क सबसे करे, कोई जरूरी नहीं। इश्क में ऐसा बहुत कम होता है कि लड़कियां जल्दीबाजी दिखायें। रूपाली के साथ भी ऐसा ही था। वो देवेश से मुहब्बत तो करती है,लेकिन इश्क के लिए अभी उसे कोई जल्दी नहीं है। क्यों कि रूपाली दुविधा में है। इश्क करे या फिर कॅरियर को देखे। वैसे मुलाकात की हथौड़ी, चाहत की शीलालेख पर बार बार पड़ती है तो, किसी न किसी आकार में ढल ही जाती है। माशूका को यदि आशिक इस बात का यकीन दिला दे कि वो उसके साथ बेवफाई नहीं करेगा। उम्र भर साथ रहने का भरोसा दिलाने में कामयाब हो जाये तो मुहब्बत को इश्क में तब्दील होने में वक़्त नहंीं लगता। रूपाली और देवेश की मुहब्बत में भी ऐसा ही हो रहा था। रूपाली को पहली नज़र में ही देवेश से मुहब्बत हो गई,फिर इश्क भी हो गया। पर उससे इज़हारे इश्क नहीं कर रही थी। पर उसे यकीन हो गया है कि देवेश के साथ वो खुश रहेगी।
जब हम दिल से किसी को चाहने लगते हैं और उस पर यकीन करने लगते हैं तो इश्क के मामले में किसी की भी सलाह,कांटो की तरह चुभती हैं। रूपाली के साथ भी यही हुआ।
रूपाली ने देवेश से शादी करने की इच्छा अपनी मां के सामने जाहिर की तो उसकी मां अराधना न केवल हैरान हुई बल्कि, शाद की बात सुनकर चैंक पड़ी। क्यों कि उन्हें तो कभी लगा ही नहीं कि उनकी बेटी प्यार में है। सभी की मां की तरह उन्होंने भी कहा, ’’ क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि अपने कॅरियर को किक मार रही हो? आज एक बड़े मीडिया हाउस में जिस ओहदे पर हो, वहां तक पहुंचने में लोगों को बरसों लग जाते हैं। हो सकता है कल को न्यूज़ एडिटर बना दी जाओ। देवेश के प्यार के लिए यदि तुम अपने कॅरियर को किक मार के सदा के लिए उसकी हो जाना चाहती हो तो, मै यही कहूंगी कि जल्दी बाजी कर रही हो। हो सकता है कि तुम्हारा यह डिसीजिन तुम्हारे आने वाले कल के लिए बेहतर न हो। तुम अपनी ज़िन्दगी के लिए राइट परसन चुन रही हो। मुहब्बत में कदम जब दिल की पगडंडी पर जब चलने लगते हैं तो बहुत कुछ दांव पर लग जाता है। सोच लो,तुम्हारा क्या दांव पर लगने वाला’’।
मां,देवेश एक विदेशी कंपनी में मैनेजर है। वो सेटल है। फिर जिस शिद्दत से वो मुझे प्यार करता है,जरूरी नहीं है कि आप मेरे लिए अरैंज मैरिज करें तो वो देवेश से अच्छा हो। मै देवेश को जानती हूं,पहचानती हूं। उससे प्यार करती हूं। हां,आपकी इस बात से सहमत हूं कि अपने कॅरियर को किक मार रही हूं। लेकिन कभी मुझे नौकरी की जरूरत पड़ी तो मै जानती हूं,अखबारांे में सर्विस कभी भी, मुझे मिल जायेगी। मेरे पास अनुभव है। योग्यता है। लेकिन देवेश मुझे मिलेगा, इसकी गारंटी नहीं है’’।
’’ठीक है। अभी तुम्हें देवेश और उसका प्यार दिख रहा है। नींद की रातों में उसकी आंखें रोशनी सी चमकती है। तुम्हारी हाथों की लकीरों में तुम्हें देवेश का साथ दिखता है। क्या तुझे कभी आकाश की आंखों में प्यार नहीं दिखा? जो बचपन से अब तक तेरे साथ रहा। छोटी- छोटी बातों पर तेरे रूठ जाने पर तुझसे स्वाॅरी कहता था। तेरे पास किताब नहीं थी,वो तुझे अपनी किताबें दे दी परीक्षा के वक़्त और खुद बगैर किताब के परीक्षा दिया। उसकी सदा कोशिश रही कि तुम प्रथम आओ। वो सदैव तुम्हारी मदद के लिए हाथ आगे किये रहता था। याद कर कितनी बार बीमार पड़ी और वो ही तुझे अस्पताल ले गया। तुझे आइस्क्रीम खाना होता था तो वो चिलचिलाती धूप में दुकान चला जाता था। कोई किसी के लिए इतनी दौड़ भाग क्यों करेगा? चाहत भी कोई चीज़ होती है। कोई जुबां से न बोले तो इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि उसके दिल में मुहब्बत नहीं है। रही बात मैनेजर की तो ..वो भी.. मैनेजर है,शहर के बड़े होटल में। आखिर देवेश और आकाश में फर्क क्या है? वो तुझे दिल से चाहता है। मै ने उसकी आंखों में तेरे लिए प्यार उमड़ते कई बार देखा है। हां,उसने कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं किया होगा। डरता है, तेरी डाट से। वैसे कभी तुम उसे, अपने आगे फटकने नहीं दी। उसे अपने बराबर कभी खड़ा नहीं होने दी। इसलिए उसकी आंखों में,उसके दिल में,और उसकी चाहत में प्यार  नहीं देखी। लेकिन मै ने कई बार देखा है कि आकाश उसे दिल से बेहद चाहता है। मै देवेश को जानती नहीं,शायद इसलिए आकाश का पक्ष ले रही हूं। ऐसा हो सकता है। फिर भी,कहूंगी...अपनी जिन्दगी का बड़ा फैसला लेने से पहले, एक बार मेरी बातों पर गौर करके देखना। हमें कोई एतराज़ नहीं है, शादी तुम्हारी तो करनी ही है। तुम जहां कहोगी,तुम्हारी पसंद के लड़के से शादी कर देंगे’’।
’’मंा, आकाश मेरा केवल दोस्त है। दोस्त,राइट परसन नहीं होते। बेस्ट फ्रेंड,सदा बेस्ट ही रहते हैं। शादी के पहले भी और शादी के बाद भी। और आकाश को मैने उस नज़र से कभी देखा भी नहीं। उसके प्रति मेरे दिल में ऐसी फीलिंग भी नहीं है,जिससे मै उसके बारे में कुछ सोच सकूं। बड़ी मासूमियत से रूपाली ने कहा।
’’बेस्ट फ्रेंड यदि राइट परसन बनें तो ज़िन्दगी में कभी कोई शिकायत नहीं होती। कभी यह कहने का मौका नहीं मिलता बीवी को कि मै ने तुमसे शादी करके बड़ी गलती की। मुझे देख। तेरे पापा मेरे बेस्ट फ्रेंड थे। आज भी हैं। कभी उन्हें मुझ पर झल्लाते हुए देखी? नहीं ना। बल्कि मै ही उन पर हावी रहती हूं। लेकिन, वो कुछ बोलते नहीं। क्यों कि, वो जानते हैं कि उनकी बेस्ट फ्रेंड को कौन सी बात बुरी लग सकती है’’।
कई बार हमारी आंखों को भी ख़बर नहीं हो पाती है कि बहुतों का प्यार पानी में झलकता महल सा होता है। दिन की धूप में जिसकी बाहांें में झूम जाने का ख़्वाब सजाया और चांदनी रात के फूलों को जूड़े में सजा लेने की चाह जगी,ऐसे हमसफ़र जब भ्रम तोड़ते हैं,तब लगता है पहली नज़र का प्यार सिर्फ धोखा है’’। अनुराधा ने सलाह देते हुए कहा।
रूपाली प्यार के ऐसे मोड़ पर है जहां उसकी पहली और आखिरी चाहत सिर्फ देवेश। उसने अपना फैसला अनुराधा को सुना दिया कि उसके दिल के मकान पूरी तरह देवेश बस चुके हैं। किसी दूसरे की कल्पना नहीं कर सकती। अनुराधा भी रूपाली के फैसले को दरकिनार न करते हुए उसकी शादी देवेश के साथ कर दी।
ज़िन्दगी में कभी कभी इश्क पहले होता है और झंझटें बाद में आती है। रूपाली की नज़र में देवेश का का प्यार किसी इबादत से कम नहीं था। लेकिन उसका यह भ्रम तब टूटा जब उसकी ज़िन्दगी में अचानक एक ऐसी शाम आई कि,उसकी सुबह हुई कि नहीं, उसे पता ही नहीं चला। जिन आंखों ने पहली बार रूपाली को देखकर चांद कहा था। उसके ख़्यालों में खो जाने की चाह हुई थी। वो आज बेवफ़ाई कर रही हैं।हुआ ये कि रूपाली की एक मेडिकल रिपोर्ट ने देवेश और रूपाली के बीच जो प्यार की नदी बहती थी,वो अचानक सूख गई। रिपोर्ट ने देवेश को सकते में डाल दिया।
रूपाली की मेडिकल रिपोर्ट देखकर देवश की आंख फटी की फटी रह गई। वो हैरान हो गया। अपने आप से रिपोर्ट देखकर उसने कहा,’’ अभी से ये दिन देखने के आ गये? आखिर रूपाली की उम्र ही क्या है? सिर्फ 28 साल। और इतनी कम उम्र में उसे बे्रेस्ट कैंसर! हमारी शादी को हुए,अभी एक बरस ही तो हुए हैं। और ये मुसीबत! कैंसर के मरीजों का ख़्याल आते ही उसके पांव तले की जमीन खिसक गई। एक महीने तक उसने रूपाली को बताया नहीं कि उसे ब्रेस्ट कैंसर है। अलबत्ता एक महीने में वो ऐसा बदला कि उसे बरसों बाद देखने वाले देखकर कह ही नहीं सकते कि यह वही देवेश है। जो रूपाली की तारीफ करते थकता नहीं था। उसके प्यार के सिवा उसे कुछ दिखता नहीं था। अब बात, बात पर रूपाली पर गुस्सा करने लगा है। छोटी, छोटी सी बातांे पर.. उस पर खींझने लगा। चाय देने में एक मिनट की भी देरी हो जाने पर उसका हाथ उस पर उठ जाया करता था। देवेश में इस तरह के आये बदलाव से रूपाली हैरान थी। धीरे धीरे उसे भी अंदर ही अंदर गुस्सा आने लगा। मुझ पर जान लुटाने वाला,मुहब्बत की कस्में खाने वाला और कैडल डिनर के लिए आये दिन दबाव डालने वाला शख्स, अचानक बदल कैसे गया? उसमें इतनी नफ़रत से कहां से आ गई। बेवफाई जानबुझकर कर रहा है या फिर वाकय में बेवफा हो गया है?
एक दिन रूपाली को स्टेपलर की जरूरत पड़ी। देवेश के टेबल की ड्राज में से स्टेपलर निकालते वक्त एक फाइल दिखी। यहां कौन सी फाइल है? देखें,आखिर कैसी फाइल है। यह सोच कर उसने फाइल पलटी तो देखा कि यह तो उसकी मेडिकल रिपोर्ट है।जिसमें उसे ब्रेस्ट कैंसर है। रिपोर्ट देखकर रूपाली को पहले खुद पर यकीन नहीं हुआ। उसने कई बार अपना नाम पढ़ा। फिर उसने रिपोर्ट में दिये गये मोबाइल नंबर पर फोन करके डाॅक्टर से सच जानना चाहा। उधर से आवाज आई,कैसर पहले स्टेज पर है। 
मुझे कैंसर है। रिपोर्ट आये एक महीने हो गये हैं। और देवेश मुझसे अब तक यह बात छुपा कर क्यों रखी? बताया क्यों नहीं? आखिर क्या चल रहा है देवेश के मन में। कहीं वो इस रिपोर्ट से टूट तो नहीं गया। वो मेरे बारे में सोच,सोच के अंदर से हिम्मत तो नहीं खो दिया। इसीलिए मुझ पर झल्ला उठता है?
कैंसर होने की रिपोर्ट पर रूपाली सन्न रह गई। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। अब क्या होगा। उसने जो सपने देखे थे देवेश के साथ, वो कैसे मुकम्मल होंगे। क्या वो अब मां नहीं बन पायेगी? मां,का ख्याल आते ही रूपाली सिहर उठी। देवेश क्या करेंगे? मै यदि नहीं बची तो...! मेरे बगैर देवेश कैसे रहेगा? देवेश उसके बगैर अधूरा हो जायेेगा। पागल हो जायेगा। उसकी दुनिया उजड़ जायेगी। अभी अभी ही तो हमारी शादी हुई थी। एक बरस में ही, इतना सब कुछ हो जायेगा। कभी सोचा न था। मुझे देवेश को धीरज बंधाना होगा, आदमी बहुत जल्दी टूट जाते हैं। चिंता न करें। मुझे कुछ भी न होगा। ब्रेस्ट कैसर ही हुआ है। पहला स्टेज है। बहुत लोगों को होता है। अब ब्रेस्ट कैंसर लाइलाज नहीं है। हां,जिन्दगी में इसकी कल्पना हम दोनों ने कभी नहीं की थी। खासकर इस उम्र में बिलकुल नहीं। ब्रेस्ट कैसर के बाद ज़िन्दगी खत्म नहीं हो जाती है। यह मर्ज अपने नाम से ही पूरे परिवार को डरा जरूर देता है। मगर मुझे देखिये, मै बिलकुल डरी नहीं हूं। तुम मेरे साथ हो तो.. फिर मुझे कैसा डर...!
अपने आप से कई बातें रूपाली कर ली। अगले पल ही उसने अपने आप को संभालते हुए खुद से बोली,मै जैसा सोच रही हूं,ये सच नहीं हो सकता। क्यों कि मरीज तो मै हूं। देवेश को तो मुझ पर दया दिखानी चाहिए। प्यार आना चाहिए। मुझे अधिक से अधिक खुश रखना चाहिए,लेकिन उनका व्यवहार  इसके ठीक उल्टा क्यों है? एक बार भी उन्होंने हमदर्दी नहीं दिखाई। हमदर्दी के दो शब्द भी नहीं बोले। मुझे कैंसर होते ही, कहीं किसी और से तो उनका इश्क नहीं चल रहा है? क्या मुझे कैंसर होने से देवेश बदल जायेगा..? उसकी मुहब्बत मेरे लिए कम हो जायेगी? उसकी मुहब्बत बदल जायेगी’’? एक साथ मन में कई सवाल रूपाली को घेर लिये। हर सवालों का जवाब चाहिए। यानी देवेश के आने तक उसका इंतज़ार करना ही पड़ेगा। उसे अभी फोन करना ठीक नहीं होगा’’।
रात को खाने की टेबल पर अचानक देवेश चीख पड़ा रूपाली पर। सब्जी में कोई इतनी मिर्ची डालता है..। तुम चाहती क्या हो? कभी दाल में नमक ज्यादा और कभी नमक ही नहीं। आखिर तुम्हें हो क्या गया है। कोई ऐसा खाना बनाता है? ऐसा लगता है तुमने तय कर लिया है कि अच्छा खाना बनाकर खिलाना ही नहीं है। यदि ऐसा है तो, मेरे साथ मत रहो। ऐसे में, तुम्हें अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता। अपने मां के पास चली जाओ। ताकि मै चैन से रह सकूं। गुस्से में देवेश बोला।
सब्जी को चखते हुए रूपाली ने कहा,इसमें तो मिर्ची डाली ही नहीं है। मै ऐसे में तुम्हें अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता,क्या मतलब देवेश..। रूपाली ने मासूमियत से कहा।
’’नहीं है मिर्ची तो तुम ही खा लो। मुझे ऐसी सब्जी नहीं खानी है, बस’’। चीख कर देवेश ने कहा।
ठीक है,मत खाइये। जो खाना है खा लो। मै बड़े जतन से तुम्हारी पसंद की आलू ,गोभी, मटर की सब्जी बनाई। वो ही पसंद नहीं है। कल ही बोले थे न,कि सब्जी में मिर्ची नहीं डालना। भूल भी गये। कोई बात नहीं। कुछ देर ठहर कर रूपाली बोली, गुस्सा शांत हो गया हो तो यह बताइये, मेरी मेडिकल रिपेार्ट पिछले एक माह से ला कर रखी है लेकिन,बताए क्यों नहीं कि, मुझे बे्रस्ट कैंसर है..!
भूल गया बताना। ब्रेस्ट कैंसर है,यह भी कोई बताने की चीज़ है। नहीं बताया तो क्या हो गया। और फिर तुमने रिपोर्ट देख तो ली’’।
’’एक महीने बाद देखी। इस बीच हम किसी अच्छे डाॅक्टर से मिल सकते थे। कैंसर है। कोई छोटी मोटी बीमारी नहीं। ऐसी बीमारी में क्या कोई ऐसी लापरवाही करता है? मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी’’।
’’उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी कि तुम्हें कैंसर हो जायेगा’’। देवेश तेज आवाज में बोला।
तो,अब क्या करोगे? धीमी आवाज में रूपाली ने पूछा। उसे जो जवाब देवेश से मिले वो कैंसर से भी बड़ा भयावह था।
’’मैने तुमसे प्यार किया.. शादी किया..खुशी खुशी ज़िन्दगी जीने के लिए। इसलिए नहीं कि एक बीमार ज़िन्दगी को ढोऊं। मुझसे कोई उम्मीद भी नहीं रखना। सर्दी,खांसी,बुखार और मलेरिया जैसी बीमारी होती तो उसके इलाज़ के लिए न बोलता। लेकिन कैंसर..! यह तो मौत से भी बद्तर बीमारी है। मै ही नहीं,कोई भी इस बीमारी की शिकार बीवी से कैसे रिश्ता रखेगा? कैसर के इलाज़ के बाद भी, तुम  डिफेक्टिव समान की तरह हो जाओगी। सारी उम्र कैंसर हास्पीटल भागना पड़ेगा। कैंसर मरीज एक धड़कती लाश से ज्यादा कुछ नहीं है। बीवी होकर भी तुम्हारा होना.. न होना, कोई मायने नहीं रहेगा। तुम मां भी बन सकोगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। यदि बन भी गई तो हमेशा डर बना रहेगा कि होने वाली संतान भी कहीं कैंसर की मरीज तो नहीं होगी..!
और कुछ कहने को बाकी हो तो कह लो। पता नहीं फिर कहने को न मिले। सुबुकते हुए रूपाली ने कहा।
’’हां,सच यही है। मेरी बातें कड़वी लग रही होगी,लेकिन गलत नहीं कह रहा हंू। और एक बात.. मै तुम्हारे कैसर इलाज के लिए अपना समय और पैसा जाया नहीं कर सकता। अच्छा होगा कि तुम अपनी मां के पास चली जाओ। मुझे कैंसर वाली बीवी का पति कहलाना पसंद नहीं है। मै तुम्हें नहीं ढो सकता। मै अपना कॅरियर देखूं कि या तुम्हारी बीमारी। जानती हो, बड़ी मुश्किल से नौकरी मिलती है। इस बीमारी के इलाज़ में कई माह लग जाते हैं। और मै इतनी लंबी छुट्टी नहीं ले सकता। इलाज़ कराता रहा तो नौकरी चली जायेगी। प्राइवेट फर्म में इतनी छुट्टी नहीं मिलती। इस बीमारी का भरोसा नहीं, कितने रूपये लगेंगे। वैसे भी तुम्हारे पापा ने दहेज में कुछ खास दिये भी नहीं। इसलिए तुम अपने पापा से कह सकती हो कि...।
बीच में ही टोकते हुए रूपाली ने गुस्से से कहा,’’क्यों,सात लाख दिये तो थे। क्या कम थे? तुम बहुत पानीदार हो तो वही रकम लौटा दो’’।
’’सात लाख जो दिये थे वो सब खर्च भी तो हो गये। कौन सा मेरे घर वालों ने बचा कर बैंक में डाल दिया। देखो मै कोई बहस नहीं करना चाहता। सीधी सी बात,मै कैंसर वाली औरत को बीवी बतौर नहीं रख सकता। और न ही मेरे पास तुम्हारे इलाज़ के लिए समय है’’। देवेश मुंह बनाते हुए कहा।
रूपाली को लगा जैसे उसके पैर तले की जमीन खिसक गई। सिर से आसमान गायब हो गया। जिसके लिए अपनी मां की बातों को इज्ज़त नहीं दी। नज़र अंदाज़ की। वो आज मुझे न केवल नज़र अंदाज़ कर दिया बल्कि, दिल से भी निकाल दिया। क्या ऐसा भी कोई महबूब होता है,जो सावन में एक साथ भीगने की तमन्ना रखता था.. वो कैंसर होने पर एक पल में.. सात फेरे की गांठ को खोल दे? नफ़रत करे,गुस्सा करे। हमसफ़र तो साथ साथ चलते हैं,ये कैसा हमसफ़र है ..जो साथी कोे तकलीफ में देखकर रास्ता बदल दिया। क्या,ऐसे ही लोग बेवफ़ा कहे जाते हैं’’..?
रूपाली हिम्मत से उठ खड़ी हुई और देवेश से कहा,’’ मुझे कैंसर हुआ है तो क्या हुआ,अभी ज़िन्दगी खत्म नहीं हुई है। मै अपने आप से लडूंगी। कोई मेरा साथ दे या न दे’’।
रूपाली अपनी मां के पास लौट आई। कई दिन बीत गये। रूपाली को चुप चुप देखकर अराधना ने एक दिन पूछा,क्या देवेश से झगड़ा करके बिना बताये उसे,यहां चली आई हो ? इस सवाल का कोई जवाब रूपाली ने नहीं दिया।
एक दिन अराधना ने देखा कि रूपाली अपने कमरे में चुप चाप रो रही है। अराधना ने गौर किया कि कोई बात है जो रूपाली उससे छिपा रही है। जानना जरूरी है। उसने आकाश को फोन कर बताया कि रूपाली आई है। उसे आये एक सप्ताह हो गये हैं। लेकिन उसे आज रोते हुए देखी। मगर वो कुछ बता नहीं रही है। उससे बात करके देख,शायद तुझे कुछ बताये’’।
कंपनी की तरफ से आकाश को एक सप्ताह के लिए मलेशिया जाने का ट्रिप मिला था। वह चाह रहा था कोई उसके साथ चले। उसने रूपाली को फोन कर कहा,’’तुझे आये एक सप्ताह हो गया और मुझे फोन करना भी जरूरी नहीं समझी। अरे हां,अब मुझे फोन क्यों करेगी। अब तो तुझे कोई और दोस्त मिल गया है। साथी मिल गया है। हमसफ़र मिल गया है। खैर। ये बता मलेशिया घूमने चलेगी क्या? दरअसल,मुझे कंपनी की तरफ से मलेशिया जाने का ट्रिप मिला है। यदि कोई एतराज़ न हो तो मेरे साथ चलती तो अच्छा रहता। अभी मै घर आ रहा हूं। दो टिकट फिल्म की लिया हूं। बहुत दिन हुए तेरे साथ फिल्म देखे। देख इंकार मत करना’’।
रूपाली ने कहा,’’मेरी तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए मन नहीं कर रहा है। मै फिल्म देखने नहीं जा सकती। मम्मी के साथ चले जा’’।
’’मुझे कुछ नहीं सुनना है। तैयार रहना, आ रहा हंू। फिल्म नहीं देखने जाना है तो मत जा। मुझे पेट में दर्द रहता है इसलिए पहले डाॅक्टर के पास जाऊंगा। सब कुछ ठीक रहा तो ही फिल्म जायेंगे। ओ.के‘‘।
आकाश आ गया पर रूपाली तैयार नहीं हुई थी। अराधना के कहने पर मुश्किल से रूपाली आकाश के साथ जाने को तैयार हुई। रास्ते में आकाश ने कहा,पहले फिल्म चलें या फिर डाॅक्टर के पास’’?
रूपाली ने कहा,पहले लेडी डाॅक्टर के पास चलते हैं। उसके बाद फिर देखेंगे,कहां जाना है।
लेडी डाॅक्टर की तुझे क्या जरूरत पड़ गई? ठीक है, कह रही है तो पहले वहीं चलते हैं। फिल्म के लिए बहुत टाइम है’’।
डाॅ रूचि रस्तोगी से मिलने रूपाली जाने लगी तो आकाश भी उसके साथ अंदर चला गया। रूपाली पहले उसे बाहर ही बैठने को कहने वाली थी,फिर कुछ सोचकर कुछ नहीं बोली। रूपाली ने डाॅ रूचि को अपनी रिपोर्ट दिखाई।
रिपोर्ट देखकर डाॅ रूचि ने कहा,आपको तो ब्रेस्ट कैंसर हैं। लेट मत करो। अभी फस्ट स्टेज पर है। कोई खतरे की बात नहीं है। अच्छा होगा कि टाटा हास्पीटल में दिखा लो’’।
बे्रस्ट कैंसर हैं! आकाश ने हैरान होकर कहा। और अभी तक यह बात छिपा कर रखी थी!
डाॅक्टर रूचि से सारी बातें समझने के बाद आकाश ने रूपाली से कहा,ऐसा करते हैं फिल्म देखने का प्रोग्राम रिजेक्ट। हम पहले टाटा हास्पीटल चलते हैं। पहले फाइल बनवाते हैं। फिर डाॅक्टर से मिलते हैं। आज ही बहुत कुछ हो जायेगा। तुम्हारा पंजीयन, मेमोग्राफी और ब्लड की रिपोर्ट भी आ जायेगी।
रूपाली ने कहा,मुझे कैंसर है,येे बात मै मम्मी को अभी तक नहीं बताई हूं। तुम्हें पता है,इस मर्ज के इलाज़ में आदमी टूट जाता है। उसका साथ देने वाले भी मरीज हो जाते हैं। कैंसर वाले मरीज को  ढोना पड़ता है। मम्मी सुनेगी तो न जाने कैसा रियेक्ट करेंगी। क्या तुम्हें पता है इलाज़ में कितने रूपये लगेंगे? पहले घर चलते हैं। मम्मी से बात करते हैं,वो क्या कहती हैं। तब तय करेंगे क्या करना हैं। कैंसर हुआ है। अभी इतनी जल्दी खतरे के स्टेज पर नहीं पहुंच जायेगा। हमारे पास समय है’’।
‘‘मै तुम्हारी एक नही सुनूंगा। पहले अस्पताल चलते हैं। वहां देखते हैं आज क्या,क्या हो सकता है। और रहा सवाल मम्मी को बताने का तो वो फोन पर भी बता सकते हैं। लेकिन अभी मम्मी को कुछ नहीं बतायेंगे। रहा सवाल पैसे का तो,तुम्हारे, मेरे बीच ये पैसे की बात कहां से आ गई। तू मुझे अपना बेस्ट फ्रेंड नहीं मानती क्या? तेरी शादी होने के बाद, क्या अब मै तेरा बेस्ट फ्रेंड नहीं रहा? आकाश हक से कहा।
’’ऐसा मैने कब कहा कि तू मेरा बेस्ट फ्रेंड नहीं है। मेरी सांस जब तक चलती रहेगी, तब तक मै यही कहूंगी कि तू ही मेरा बेस्ट फ्रेंड है। बस,खुश। मेरी एक बात मान ले.. पहले घर चलते हैं’’। प्यार जताते हुए रूपाली ने कहा।
’’तेरा ये बेस्ट फ्रेंड आज तेरी बात नहीं सुनेंगा। आज मेरी सुनेगी’’। आकाश ने कहा।
रूपाली रास्ते भर सोचती रही,मै देवेश को अपनी जान समझती रही,लेकिन मेरी जाॅन तो कोई और है। क्या बेस्ट फ्रेंड ऐसे भी होते हैं..? टाटा हास्पीटल में एक बेंच में रूपाली बैठी रही और आकाश इधर से उधर दौड़ता रहा। रूपाली का ब्रेस्ट इक्जामिन के बाद डाॅक्टर ने मेमोग्राफी,और ब्लड की जांच लिखा। रिपोर्ट आने के बाद आॅपरेशन की डेट मिलेगी। दरअसल आकाश ने रूपाली की फाइल डिलेक्स श्रेणी की बनावाया। ताकि जल्द जांच हो जाये और आॅपरेशन भी।
तीन चार दिन में सारी रिपोर्ट आ गई। रूपाली के आॅपरेशन की डेट मिलने के बाद आकाश ने अराधना को बताया,’’रूपाली को ब्रेस्ट कैंसर है। इसलिए वो उस दिन रो रही थी‘‘।
’’ब्रेस्ट कैंसर ? हमारे खानदान में किसी को भी ब्रेस्ट कैंसर कभी नहीं हुआ। मुझे भी नहीं है। फिर इसे कैसे हो गया? ये कब से आई हुई है, लेकिन मुझे अभी तक बताई क्यों नहीं? कब पता चला? किस स्टेज पर है? डाॅक्टर से अभी तक मिली कि नहीं..? मुंबई में रहकर भी इतना लेट,हद हो गई? बड़ी हैरानी से अराधना ने एक संास में कई सवाल कर गईं।
’’चिंता करने की कोई बात नहीं। फस्ट स्टेज पर है। खतरे वाली बात नहीं है। जरा आॅपरेशन करके निकाल देंगे। हां कुछ कैमों लगेंगे। मेरे साथ रूपाली कहीं घूमने नहीं जाती थी,टाटा हास्पीटल ही जाती थी। बहुत डरी हुई थी। वो तो डाॅक्टर ने जब समझाया, तब इसकी हिम्मत बंधी’’। आकाश ने कहा।
ये लड़की,हद कर दी। कैंसर हो गया तुझे,देवेश को पता है कि नहीं? अराधना ने रूपाली से पूछा।
’’हां, मम्मी उन्हें सब पता है। उनका नाम मत लो। मै उनके लिए अजनबी हो गई और वो मेरे लिए’’। रूपाली चिढ़ कर बोली।
’’क्या कहा! तुम्हारे बीच कोई लड़ाई हुई है क्या? जो इस तरह बोल रही है। ये तो पति पत्नी के बीच होते रहता है। देख, तेरे पापा और मेरे बीच क्या झगड़ा नहीं होता। क्या मै इन्हें छोड़ कर चली गई या फिर ये मुझे’’। अराधना समझाते हुए रूपाली से कहा।
’’आप नहीं समझेंगी मम्मी। ऐसी बात नहीं है’’। रूपाली बड़े धैर्य से यह बात कही।
’’फिर कैसी बात है। मुझे जब तक बतायेगी नहीं, पता कैसे चलेगा। तुम दोनों के बीच हुआ क्या है’’। नाराजगी भरे अंदाज में अराधना ने कहा।
’’रूपाली विवश होकर विस्तार से सारी बात बताई तो अराधना सन्न रह गई। गजब कर दिया इस लड़के ने। क्या कोई ऐसा भी करता है? कहती थी कि देवेश बहुत अच्छा है। मुझे सदा खुश रखेगा। ये क्या? जो व्यक्ति पत्नी को कैंसर होने पर सैम्पथी दिखाने की बजाय, ऐसा बोले, उससे तो सारी ज़िन्दगी के लिए मुंख मोड़ लेना.. कहीं ज्यादा अच्छा है। ऊपर से ये कहना कि जब ठीक हो जाओ तब ही आना? जाहिर सी बात है कि उसे तुझसे प्यार कभी था ही नहीं। तेरी नौकरी, तेरी खुबसूरती और योग्यता को देखकर शादी किया था। मेरी बात मान ली होती तो आज ये दिन देखने को नहीं मिलते। जिसे कभी रिस्पांस नहीं दी,वो ही आज तेरे उस पल में काम आया, जहां देवेश को होना चाहिए था। मै कहती थी ना, बेस्ट फ्रेंड यदि लाइफ पार्टनर हों तो ज़िन्दगी में हर दिन सबेरा है’’।   
रूपाली जब तक आॅपरेशन थियेटर से नहीं निकली आकाश बाहर तकता रहा। उसे कमरे में ले जाया गया। आधे घंटे में उसे होश आ गया। सामने उसकी नज़र पड़ी तो उसे आकाश ही दिखा। जो उसके लिए गजरा और गुलाब का गुलदस्ता लेकर आया था। गजरा रूपाली को बेहद पसंद है। अपने बालों में अक्सर वो लगाया करती थी। ये बात देवेश को पता थी लेकिन, शादी के बाद वो कभी रूपाली के लिए गजरा लेकर नहीं आया। आकाश के हाथ में गजरा देखकर उसकी आंखें भर आई। 
’’अर,े अब रोना क्यों? आॅपरेशन हो गया और तुम्हें पता भी नहीं चला। अब जल्दी ठीक हो जाओगी। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे साथ पूरा घर परिवार है’’। चहक कर आकाश ने कहा।
परिवार! लड़की की जब शादी हो जाती है तो उसका परिवार सिर्फ ससुराल होता है। लेकिन मेरे ससुराल से तो कोई भी मुझे देखने नहीं आया, आकाश। रूआंसी होकर रूपाली ने कहा।
मेरा कहने का मतलब,मम्मी अभी आती होंगी। उनका फोन कुछ देर पहले आया था। आकाश ने कहा।
तभी अराधना जूस,फल,पानी आदि लेकर पहुंची।
अराधना ने आकाश से कहा, ऐसा कर तू सुबह से कुछ खाया पिया नहीं है। खाना लाई हूं,खा ले। रूपाली जूस पी लेगी। तू थक गया होगा। तूझे मलेशिया जाना था न। रूपाली के चक्कर में तेरा जाना कैंसिल तो नहीं हो गया?
नहीं मम्मी, कंपनी को बता दिया है कि अभी नहीं जा सकता। फिर कभी चला जाऊंगा। रूपाली का ट्रीटमेंट ज्यादा जरूरी है। आप आ गई हैं तो मै निकलता हूं। शाम को फिर जाऊंगा’’। कहकर आकाश चला गया।
कोई गैर अपना बनकर साथ दे या फिर सहयोग करे तो... दर्द खुशबू बनकर दिल में उतर जाता है। रूपाली उस खुशबू को महसूस कर रही है। वैसे रूपाली का कुछ लगता नहीं आकाश । आकाश के मां बाप बचपन में ही गुजर गये थे। वो अपने चाचा और चाची के साथ रहता था। दोनों की कोई औलाद नहीं होने की वजह से आकाश को अपने बेटे की तरह पाल कर बड़ा किये। अराधना भी उसे बेहद दुलार और प्यार देती आई हैं। रूपाली और आकाश दोनों एक साथ बड़े हुए।
मिट्टी के चूल्हे में इश्क की अंगीठी के जलने का पता दिल को तब होता है,जब वो किसी और के  लिए धड़कने लगता है। आज रूपाली महसूस कर रही है कि देवेश तो उसके लिए बना ही न था। उसके लिए तो आकाश ही बना था,मै ही उसे पहचानने में गलती कर गई।
वो आकाश और देवेश की तुलना कर रही थी अपने आप में,तभी अराधना ने कहा,’’यदि आकाश न होता तो इतनी जल्दी तेरा आॅपरेशन भी न हो पाता। मुझे उसने पता ही नहीं होने दिया कि तुझे कैंसर है। ऐसा लगता है बचपन में आकाश मेरे हाथों का बना जितना पोहा खाया था, उसने उस नमक का कर्ज़ आज उतार दिया’’। 
हां,मम्मी आपके नमक का कर्ज़ तो उसने उतार दिया लेकिन मुझ पर उसका उधार चढ़ गया। आज मै बेफिक्र होकर संासे ले रही हूं तो उसकी वजह से। देवेश तो मुझे मरने के लिए छोड़ दिया। मेरी ज़िन्दगी के होंठ तो नीले पड़ गये थे। जब मैने अपनी मेडिकल रिपोर्ट देखी कि मुझे कैंसर है, तब उम्र के आकाश पर मेरे सपनों के सारे परिंदे एकाएक गायब हो गये’’।
’’कोई हमारे सपनों के परिंदों को उढ़ा देता है तो कोई उसे वापस लाने चुपके से ज़िन्दगी में आ  जाता है। तुझे याद भले न हो लेकिन मैने कहा था,देवेश के लिए तू अपने कॅरियर को किक मार कर गलती कर रही है। प्यार को बचाये रखने के लिए जरूरी है एक दूसरे में ढलना। एक दूसरे को ट्रस्ट करना। प्यार तो शीशा है। जरा सी ठेस लगी तो पहले प्यार का ताज़महल ढहता है उसके बाद दिल टूटता है’’। अराधना ने कहा।
’’देवेश का नाम मत लो मम्मी। जो मुझे मरने के लिए छोड़ दिया हो,उसका नाम लेकर मेरी पीड़ा को और मत बढ़ाओ। मुझे नई जिन्दगी,बेस्ट फ्रेंड ने दी है। लगता है मेरे आंसुओं से उसका कोई रिश्ता है। मै आज समझी हूं कि कोई जुबां से न बोले,तो इसका मतलब यह नहीं कि उसके दिल में अपने दोस्त के प्यार और उसकी चाहत की तड़प नहीं होती। अब उसके हिस्से का सावन नहीं रोयेगा। न ही उसकी चाहतों का बादल बिछड़ेगा। मै इस करवा चैथ में चांद किसके लिए देखूंगी,यह तय कर लिया है’’।
रूपाली के गालों पर आकाश के लिए प्यार के आंसू लुढ़क आये। जो बता रहे थे मुहब्बत के सावन का कोई महीना नहीं होता। दिल कभी कभी अपनों के लिए खुशी के आंसू भी रो लेता है।

Thursday, October 24, 2019

जोगी के लिए मुश्किलों का पहाड़


अजीत जोगी अपने ही बनाये फंदे में फंस गये हैं। उन पर गिरफ्तारी के साथ ही उनकी विधायकी पर भी तलवार लटक रही है। अंतागढ़ उप चुनाव कांड में अजीत और अमित जोगी आरोपी हैं। जेसीसी के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी के जेल से बाहर निकलने की संभावना कम है। ऐसे में सवाल है कि जोगी की पार्टी बचेगी या खत्म हो जायेगी।








0 रमेश कुमार ’’रिपु’’
                   ’’छत्तीसगढ़ में तीसरी राजनीतिक ताकत जोगी की पार्टी है’’। डाॅ रमन सिंह कभी यह कहकर जोगी का राजनीतिक कद बढ़ाया था। वहीं जोगी की पार्टी को भाजपा की ‘बी’ टीम कांग्रेस कहती आई है। आज पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनका पुत्र अमित जोगी की सियासत के सितारे गर्दिश में हैं। और छत्तीसगढ़ की तीसरी सियासी ताकत इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही है। जेसीसी (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी को अपनी नागरिकता की गलत जानकारी देने के आरोप में सेशन कोर्ट ने जेल भेज दिया है। वहीं छत्तीसगढ़ की आदिवासी कल्याण विभाग की उच्चाधिकार हाई पावर कमेटी ने अजीत जोगी को आदिवासी मानने से इंकार कर  दिया है। अजीत जोगी के खिलाफ समीरा पैकरा की शिकायत पर धारा 420,467,468,471 के तहत अपराध दर्ज किया गया है। अंतागढ़ टेप कांड मामले में जोगी के खिलाफ एक नया मोड़ तब आ गया है। अंतागढ़ उप चुनाव कांड के आरोपी पूर्व विधायक मंतूराम पवार ने उपचुनाव को प्रभावित करने के लिए 7.50 करोड़ रूपये के लेन देने का खुलासा प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्टेªट नीरज श्रीवास्वत की कोर्ट में कलमबंद बयान दर्ज कराया। उन्होंने कहा कि उन्हें एक पैसा नहीं दिया गया। 2014 में हुए अंतागढ़ उप चुनाव के सौदे में फिरोज सिद्दकी और अमीन मेनन की भूमिका बिचैलिये की थी। डाॅ रमन सिंह का पहली बार नाम अंतागढ़ मामले में सामाने आया है। इससे राजेश मूणत,अजीत जोगी,अमित जोगी की मुश्किलें बढ़ सकती है। इन तीनो के खिलाफ पंडरी थाने में केस दर्ज है। मामले की जांच एसआइटी कर रही है। इस कांड की जारी सी.डी में इन सभी नेताओं की आवाज होने की आशंका है,लेकिन किसी ने भी अपनी आवाज का सेम्पल एसआइटी को अभी तक नहीं दिया। अब मंतूराम पवार के इस शपथ पत्र से जोगी परिवार पर एक और मुश्किल बढ़ गई। वहीं जेसीसी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष इकबाल अहमद रिजवी ने कहा, बीजेपी में रहते हुए मंतूराम पवार ने जिस तरह का बयान दिया है, इससे साफ जाहिर है कि वे कांग्रेस प्रवेश करने वाले हैं। कांग्रेस से मिले प्रलोभन के कारण ही वे इस प्रकार का बयान दे रहे हैं’’। पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने कहा,’’ दंतेवाड़ा उप चुनाव नजदीक है।  पहली बार मेरे खिलाफ राजनीतिक षडयंत्र के तहत मेरा नाम उछाला गया है। कांग्रेस की सोची समझी रणनीति के तहत मंतूराम पर दबाव बनाकर यह बयान दिलवाया गया है। इससे पहले भी मंतूराम ने विभिन्न न्यायलयों में शपथ पत्र पर बयान दिया है कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना नामांकन वापस लिया था। और इस प्रकरण में पैसा का किसी तरह से कोई लेने देन नहीं हुआ था। इस संबंध में कोर्ट में अपना पक्ष रखूंगा’’। 
कोर्ट ने की गंभीर टिप्पणी
अजीत जोगी के खिलाफ दर्ज मामले से अब वे विधायक रहेंगे या नहीं, 19 सितंबर से कोर्ट इस मामले कीें सुनवाई करेगी। चूंकि अजीत जोगी की पार्टी जेसीसी (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़) जोगी घराने के इर्द गिर्द घूमती है। अजीत जोगी अपनी पार्टी के सप्रीमों हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी हाई पाॅवर कमेटी की रिपोर्ट पर,इसकी संभावना कम ही है कि हाई कोर्ट जोगी की जाति को लेकर कोई अलग से निर्णय देगी। उनकी विधायकी खत्म होने की आशंका ज्यादा है। वहीं अमित जोगी को हाई कार्ट से बेल मिलने की संभावना कम बनती दिख रही है। उसकी वजह यह है कि सेशन कोर्ट के जज विनय प्रधान ने अपने फैसले में कहा,’’ प्रजातंत्र के पावन धरा पर विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किये हैं। अपराध की गंभीरता को देखते हुए जमानत याचिका खारिज की जाती है’’। वहीं रायपुर की विशेष मजिस्टेट लीना अग्रवाल ने अंतागढ़ टेपकांड मामले में आरोपी जेसीसी के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी को ट्रांजिट रिमांड पर अदालत में पेश करने का आदेश दिया है। गौरेला पुलिस को पेशी के लिए 12 सितंबर तक का वक्त दिया है।  तीन बड़ी अपराधिक घटनाओं के बाद जेसीसी पार्टी को लेकर सियासी अटकलों का बाजार गर्म है। जोगी की पार्टी जेसीसी रहेगी या टूट जायेगी। अमित जोगी को धोखा धड़ी के जुर्म में कम से कम दो साल की सजा हो सकती हैं। इसलिए कि उनके खिलाफ पुख्ता दस्तावेज हैं। अमित जोगी के जेल में होने से अजीत जोगी भावानात्मक रूप से टूट जायेंगे। उनकी विधायकी खत्म होने और अंतागढ़ मामले की वजह से पार्टी का जनाधार तो खत्म होगा ही साथ अब उन पर जनता की विश्वसनीयता भी घटेगी। सवाल यह है कि जोगी अपनी पार्टी की कमान किसके हाथ में देंगे? 
रेणू की रूचि नहीं राजनीति में
श्रीमती डाॅ. रेणू जोगी पार्टी में ज्यादा अनुभवी हैं। यदि अजीत जोगी की गिरफ्तारी होती है तो पार्टी की कमान रेणू जोगी के हाथ आ सकती है। लेकिन पार्टी को पूरा समय देने में वे भी अक्षम हैं। स्वास्थ्य उनका भी ठीक नहीं रहता। वहीं रेणू जोगी पर कोई आरोप नहीं है। स्वच्छ छवि है ही साथ ही  समझदार नेत्री हैं। लेकिन अजीत जोगी के आदिवासी मामले पर हाई कोर्ट का भी फैसला हाई पाॅवर कमेटी जैसा ही रहा तो फिर रेणू जोगी के संदर्भ में भी तहकीकात के सवाल उठाये जा सकते हैं। उन्होंने आदिवासी के रूप में क्या, क्या, सुविधायें और लाभ लीं। यदि ऐसा कुछ भी साक्ष्य मिलता है तो फिर श्रीमती रेणू जोगी भी फंस सकती हैं। वैसे रेणू जोगी की दिलचस्पी राजनीति मे अब नहीं है। इसी से स्पष्ट है कि वे अंत तक जोगी की पार्टी में शामिल नहीं हुई। लेकिन कांग्रेस से इस्तीफा भी नहीं दिया,पर जोगी के साथ हमेशा रहीं। उन्हें इसके लिए कई बार नोटिस भी दिया गया। जब कांग्रेस ने उन्हें कोटा विधान सभा के लिए टिकट नहीं दी तो वो अजीत जोगी की पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ीं। आज जेसीसी से कोटा की विधायक हैं। ऐसे में यह भी संभावना खत्म हो जाती है कि वे कांग्रेस मंे कभी लौटेंगी। 
जेसीसी का अगला अध्यक्ष कौन?
अजीत जोगी अपनी हर सियासी गोटी बहुत सोच समझ कर चलते हैं। अपने ऊपर किसी भी तरह के खतरे की आशंका को वे पहले ही भंाप जाते हैं। वे कभी नहीं चाहेंगे कि रेणू जोगी पर कोई राजनीतिक संकट मंडराये। ऐसे में उनके घर में उनकी बहू ऋचा जोगी पर जाकर नजर ठहरती है। ऋचा जोगी राजनीति में बहुत समय से सक्रिय हैं। विपक्ष की भूमिका में वे डाॅ रमन सिंह से लेकर भूपेश सरकार तक सक्रिय दिखीं। भूपेश बघेल का ड्रीम प्रोजेक्ट नरवा,घुरवा,गोठान और बाड़ी मामले को सबसे पहले उठाया कि यह प्रोजेक्ट केवल भ्रष्टाचार का जरिया है। पिछला चुनाव जोगी ने ऋचा को अपनी पार्टी के बजाय अकलतरा से बसपा से लड़ाया। बहुत कम वोटों के अंतर से वे चुनाव हारी लेकिन राजनीति में अपनी सक्रियता नहीं छोड़ी। युवाओं के बीच अधिक लोकप्रिय हैं। ऐसे में संभावना यह भी बनती है कि रेणू के इंकार करने पर ऋचा जोगी को प्रदेश अध्यक्ष बनें। वहीं रेणू जोगी कभी नहीं चाहंेगी कि पार्टी की कमान ऋचा के हाथ में आये। क्यों कि ऋचा जोगी सबसे अधिक तेज तर्रार नेत्री हैं,पार्टी के लोगों का कहना है कि श्रीमती रेणू जोगी और ऋचा में बनती नहीं। ऋचा तभी प्रदेश अध्यक्ष बन सकती हैं जब अमित जोगी कहेंगे। अजीत जोगी पार्टी की कमान लोरमी के विधायक धरमजीत सिंह को भी सौप सकते हैं। धरम जीत सिंह चार बार के विधायक और विधान सभा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। अनुभवी होने के साथ ही अजीत जोगी के विश्वासपात्र भी हैं। पूर्व विधायक आर. के. राय पर जोगी को कम भरोसा है। सभी को पता है कि वे जोगी के साथ रहते तो हैं,लेकिन कांग्रेस में वापस आने के लिए कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं से संपर्क में है। भूपेश बघेल की पसंद आर. के राय नहीं हैं,इसलिए उनकी कांग्रेस में वापसी अब तक नहीं हुई है।
देवव्रत से परहेज क्यों
खैरागढ़ विधायक देवव्रत सिंह जो कि कांग्रेस से सांसद भी रहे हैं। भूपेश बघेल से इनकी कभी नहीं पटी। कांग्रेस में रहकर इन्होंने भूपेश बघेल की कई बार कांग्रेस हाई कमान से लिखित में शिकायत भी की। इनकी लोकप्रियता खैरागढ़ से राजनांदगांव तक है। युवाओं के बीच सबसे अधिक सक्रिय और रईस नेता हैं। युवा हैं, धारा प्रवाह किसी भी मुद्दे पर बोलने में सक्षम हैं। विपक्ष की भूमिका बड़ी इमानदारी से निबाहते हैं। वहीं पार्टी के लोगों का कहना है कि जोगी कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी पार्टी का अध्यक्ष कोई ऐसा व्यक्ति बने जो पार्टी पर अपना दबदबा रखे। जोगी जानते हैं कि देवव्रत बहुत तेज और किसी की नहीं सुनने वाले नेताओं में से हैं। वे एक बार फैसला ले लिये तो आसानी से बदलते नहीं हैं। देवव्रत ंिसंह की वजह सेे जोगी घराने का पार्टी में कोई अस्तित्व ही नहीं रह जायेगा। इससे इंकार भी नहीं है कि देवव्रत सिंह के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान है। भाजपा नहीं करेगी मदद
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपने बनाये राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसे जोगी को क्या भाजपा मदद करेगी?इसकी संभावना कम ही दिखती है। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि संघ नहीं चाहेगा कि जोगी राजनीति में मजबूती से खड़े रहे हैं। यह अलग बात है कि डाॅ रमन सिंह जोगी को तीसरी सियासी ताकत अपने राजनीतिक फायदे के लिए बताते रहे। लेकिन उसका फायदा विधान सभा चुनाव में नहीं मिला। जिससे डाॅ रमन सिंह की राजनीतिक नजरिये से संघ के समक्ष बड़ी भद्द हुई है। अब डाॅ रमन सिंह सत्ता से बाहर हैं। लेकिन नान घोटाला और अंतागढ़ उप चुनाव कांड में उनके नाम आने से उनकी साख कलंकित हुई है। उनका दामाद डाॅ पुनीत गुप्ता भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा है। डाॅ रमन सिंह की सत्ता जाने के बाद से कोर्ट के चक्कर में डाॅ पुनीत गुप्ता का समय जाया जा रहा है। भाजपा बंटी हुई है। डाॅ रमन सिंह के साथ संघ भी नहीं है। जाहिर है कि जोगी भाजपा की ‘बी’ टीम होकर भी अकेले पड़ गये हैं।
जोगी के खिलाफ संघ
सामने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव है। डाॅ रमन सिंह चाहते हैं कि चुनाव में जोगी की मौजूदगी रहे। इसलिए अमित जोगी को जेल हुई तो उन्होने भूपेश सरकार को घेरते हुए कहा,सरकार हिम्मत से क्यों नहीं कहती है कि हां हमने अमित जोगी को गिरफ्तार किया है। सरकार को बोलने में परेशानी क्यों हो रही है’’। संघ नहीं चाहता कि जोगी राजनीतिक रूप से मजबूत हों और सक्रिय रहे हैं। इसकी वजह यह है कि संघ हिन्दू राजनीति का समर्थक है। संघ के ज्यादातर लोग अजीत जोगी को ईसाई मानते हैं। जोगी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान छत्तीसगढ़ में ईसाई मिशनरी को ज्यादा बढ़ावा मिला है। दिलीप सिंह जूदेव सारी जिन्दगी आदिवासियों का पैर धोकर उन्हें ईसाई से हिन्दू धारा में लाते रहे। आज जोगी अपनी जाति की लड़ाई लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी जाति को लेकर कांग्रेस के नेता ही एक मत नहीं है। जोगी के साथ लंबे समय तक साथ रहे नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री शिव डहरिया कहते हैं,जोगी न आदिवासी हैं और न ही सतनामी हैं’’।
मुझ पर आरोप गलत हैः भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,मुझ पर लगाये गये आरोप बिलकुल गलत हैं। जोगी पर आरोप भाजपा ने लगाये उनकी जाति की जांच भाजपा ने की। भाजपा की ही समीरा पैकरा ने शिकायत की थी। यह पूरा किया कराया तो भाजपा का है। जोगी ने आदिवासी का अपना जाति प्रमाण पत्र दिखाया। कांग्रेस ने उन्हें विधायक,मंत्री,मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन उनका जाति प्रमाण पत्र ही गलत हो जाये तो उसमें क्या किया जा सकता है। 
बहरहाल जोगी की सियासत के सितारे गर्दिश में हैं। सभावना है कि आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति में कई बदलाव हो सकते हैं।

नक्सली झीरम पार्ट टू के मूड में..

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भूपेश सरकार से नाराज नक्सलियों ने सरकार के साथ उद्योग मंत्री कवासी लखमा को देख लेने की चेतावनी देकर खलबली मचा दिये हैं। सरकार से माओविदियों की नाराजगी की वजह यह है कि कोतागुडा गांव और गोमियापाल में तीन,तीन ग्रामीणों की पुलिस ने नक्सली बताकर हत्या कर दी। भूपेश सरकार नक्सवाद पर वही काम कर रही है जो रमन सरकार ने किया। सवाल यह है कि नक्सलियों की नाराजगी कहीं झीरम पार्ट टू को अंजाम तो नहीं देगी?

0 0 रमेश कुमार ’’रिपु’’’
                  नक्सली क्या अब कांग्रेस नेताओं को अपना निशाना बनायेंगे? झीरम पार्ट टू को अंजाम देंगे? दंतेवाड़ा के भाजपा विधायक भीमा मंडावी की हत्या के बाद ऐसी क्या वजह है कि नक्सली उद्योग मंत्री कवासी लखमा को देख लेने की धमकी दी। आम आदमी की सांसे वैसे ही दहशतजदा है। बस्तर में कहा जाता है,’’यहां के आदिवासी को नक्सलियों का मुखबिर बताकर पुलिस गोली मार देती है अथवा नक्सली पुलिस का मुखबिर कहकर गोली मार दते हैं। यानी हर हाल में गोली मौत का वारंट है बेकसूर आदिवासियों के लिए।
गोली नक्सलियों की हो या फिर पुलिस की,मारा तो आदिवासी ही जाता है। माओवादी अब आदिवासियों का शुभ चिंतक बनने के लिए पुलिस पर आरोपों की गोलियों चलाने लगे हैं। जब जब कोई आदिवासी पुलिस की गोली से मरता है तो नक्सली प्रेस नोट जारी कर सरकार को कटघरे में खड़े करते हैं। जाहिर सी बात है कि इन दिनों भूपेश सरकार से नक्सली नाराज चल रहे हैं। नक्सलियों की दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी के सचिव विकास ने प्रेस नोट जारी कर कहा, सुकमा जिले के चिंतलनार पंचायत स्थित कोतागुड़ा गांव में 14 सितंबर को ग्रामीण अपने गांव के पुजारीगायता को चुनने के लिए अपनी परंपरा के अनुसार शिकार करने जंगल में गए थे। जंगली सुअर शिकार के दौरान घायल हो गया था,उसका पीछा कर रहे थे। इसी बीच चिंतलनार थाना अंतर्गत के बुर्कापाल कैंप से गश्त पर निकले डीआरजी के जवानों ने ग्रामीणों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर सोड़ी देवाल, मुचाकी हड़मा, मुचाकी हिड़मा की निर्मम हत्या कर दी। इनमें से सोड़ी देवाल की घटना स्थल पर ही मौत हुई जबकि दो अन्य ग्रामीणों को घायल अवस्था में पकड़कर उन्हें आमानवीय यातनाएं देकर पुलिस ने उनकी जघन्य हत्या की। अपने दो पेज के पर्चे में माओविदियों ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार चुनावी वायदा भूल गई है। ऐसा लगता है कि भाजपा शासनकाल में कांग्रेस ने फर्जी मुठभेड़ों के विरोध का केवल दिखावा किया है। कथित रुप से ग्रामीणों की हत्या और प्रताड़ना जारी है’’। माओवादियों ने कवासी लखमा को उद्योगों का समर्थक बताया और धमकी दी है। कवासी लखमा आदिवासी विरोधी हैं। उसकी चिकनी चुपड़ी बातों का भंडाफोड़ करें। जबकि कवासी के राजनीतिक विरोधी दबे सुर में नक्सली हिमायती उन्हें बताते हैं। लेकिन माओवादियों की धमकी इस ओर इशारा कर रही है कि कवासी उनके निशाने पर हैं।
इसी तरह की घटना दंतेवाड़ा के गोमियापाल में भी हुई। यहां भी पुलिस ने तीन निर्दोष आदिवासियों को गोली मार दी। गांव के पांच लड़के शराब पी रहे थे। पुलिस ने मडकामरास का पोदिया और मदाड़ी के भीमा को जबरदस्ती अपने साथ ले गई। हिड़मा पुलिस को चकमा देकर अंधेरे का लाभ उठाकर भाग गया। पुलिस अजय,पोदिया और लच्छू को लेकर आगे निकल गई। भीमा पुलिस की गोली का शिकार होने से बच गया। इस मामले पर सामाजिक कार्यकत्र्ता सोनी सोरी और बेला भाटिया ने पुलिस थाने में शिकायत करने पहुंची तो पुलिस ने उल्टे इन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया।

सलवा जुडूम का विरोध
गौरतलब है कि सलवा जूडूम का कवासी लखमा ने विरोध किया था। तब से कवासी रमन सरकार और सलवा जुडूम समर्थकों की आंखों की किरकिरी बन गये थे। तत्कालीन कलेक्टर के. आर. पिस्दा ने राज्य सरकार को एक गोपनीय पत्र भेजा था जो कि कलेक्ट्रेट में ही सार्वजनिक हो गया था। पत्र में लिखा गया था कि कवासी लखमा से सुरक्षा ले ली जाए। इन्हें नक्सलियों से कोई खतरा नही है। अब राज्य सरकार ने इनकी और इनके बेटे हरीश लखमा की सुरक्षा बढ़ा दी है।

कवासी पर गंभीर अरोप
नक्सलियों ने प्रदेश के उद्योगमंत्री कवासी लखमा को गद्दार और धोखेबाज बताया है। चुनाव के पहले आदिवासी हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने वाले ढोंगी आदिवासियों का गद्दार, धोखेबाज कवासी लखमा सत्ता में बैठते ही आदिवासियों के जल,जंगल,जमीन व संसाधनों को कौड़ियों के भाव देशी विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करने के लिए स्वयं उद्योग मंत्री बन बैठे हैं। उन्होंने लखमा पर फर्जी मुठभेड़ को अंजाम देने वाले पुलिस कर्मियों को आउट आफ टर्न प्रमोशन दिलवाने का आरोप लगाया है। कवासी की देखरेख में छत्तीसगढ़ भू अर्जन, पुनर्वास, पुर्न व्यवस्थापन कानून 2019 पास कराया गया है, जो कि राज्य के किसानों, दलितों व आदिवासियों की जमीनों, जंगलों, खदानों को छीनकर पूंजीपतियों के हवाले करने के लिए ही बनाया गया है।

नक्सली मना रहे हैं वर्षगांठ
मुख्यमंत्री के बयानों से एक बात साफ है कि वे नक्सलियों से दो दो हाथ करने को तैयार हैं।   चैकाने वाली बात है कि माओवादियों के प्रति इतनी सख्ती दिखाने के बावजूद माओवादी बैनर में लिखा है कि 50 वीं वर्षगांठ मनाने एवं नई पार्टी भाकपा माओवादि की 15 वीं वर्षगाँठ समारोह को 21 सितंबर से 8 नवम्बर तक देश भर में क्रांतिकारी जोश के साथ मनाने के साथ दीर्घकालीन जन युद्ध को देशभर में विस्तृत और तेज करना है। नक्सलवादी क्रांति जिंदाबाद। माओवाद ऐलान कर रखा है कि बड़े पैमाने पर पार्टी का सदस्य बनो और दंडकारण्य के क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाएं। जाहिर सी बात है कि नक्सली संगठन फरवरी तक नई भर्ती करेंगे। उसके बाद वे हमला करेंगे। वहीं उनकी दहशतगर्दी अभी भी कायम है।
गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा कि इन नौ महीनों में कांग्रेस सरकार ने नक्सली गतिविधियों पर काफी हद तक काबू पाया है। पूर्ववर्ती सरकार में साहस ही नहीं था वर्ना आज तस्वीर कुछ और होती। दंतेवाड़ा की कांग्रेस विधायक देवती कर्मा बोलीं. नक्सल पहले भी था आगे भी रहेगा, इसको खत्म करना मुश्किल है।
डी.जी डी.एम अवस्थी कहते हैं,’’ नक्सली डरे हुए है। इसलिए लगातार इनामी नक्सली सरेंडर कर रहे हैं। प्रदेश में माओवाद लगातार कमजोर होता जा रहा है। ऐसा नहीं लगता कि वे झीरम पार्ट टू कर सकेंगे। वहीं माना जा रहा है कि यदि सरकार नक्सलियों के प्रति अपना सख्त रवैया बनाई रखी तो नक्सली किसी गंभीर वारदात को अंजाम दे सकते हैं। वहीं भविष्य की रणनीति के तहत खुलेआम नई भर्ती का पोस्टर,बैनर और पर्चे बांट रहे हैं, जो अच्छा संकेत नहीं है।

नक्सली वारदातें दो माह की
0 नक्सलियों ने पुलिस की मुखबिरी करने का आरोप लगाते हुए मडकम रोहित की हत्या कर दी है। घटना सुकमा जिले के डब्बाकोंटा की है।
0 नारायणपुर में नक्सलियों ने एक ठेकेदार की सड़क निर्माण में लगी जेबीसी मशीन सहित मिक्चर मशीन को आग के हवाले किया।
0 कांकेर में नक्सलियों द्वारा ब्लास्ट करने से एक कंपनी के तीन कर्मचारियों की मौत हो गई है। जिसके बाद इलाके में सक्रिय नक्सलियों पर सवाल उठने लगे हैं।
0 दुर्गुकोंदल में नक्सलियों ने भारी मात्रा में बैनर.पोस्टर लगाया है। पोस्टर में आरएसएस कार्यकर्ता दादू सिंह की हत्या करने की बात कबूली और गिरफ्तार किए गए निर्दोष आदिवासियों को छोड़ने की चेतावनी दी है।
0 नक्सलियों ने किरन्दुल थानाक्षेत्र में पेरपा चैक पर ग्रामीण ताती बुधराम की धारदार हथियार से हत्या कर दिया और शव को सड़क पर फेंक दिया। पर्चा जारी करते हुए नक्सलियों ने ग्रामीण पर पुलिस की मुखबिरी का आरोप लगाया है।







सरेंडर करने वाले इनामी माओवादी
0 दक्षिण छत्तीसगढ़ की बड़ी नक्सल घटनाओं में शामिल बताई जा रही तेलंगाना राज्य कमेटी की मेंबर सुजाता उर्फ नागाराम रुपा को बीजापुर पुलिस ने गिरफ्तार किया।
0 बीजापुर पुलिस के सामने छह नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। आत्मसमर्पित नक्सलियों में दिलीप वड्डे चिन्ना प्लाटून कमांडर माड़ डिवीजन पर आठ लाख का इनाम। मड़कम बण्डी डिप्टी सेक्शन कमांडर माड़ डिवीजन पर तीन लाख इनाम। सनकी बड्डे उर्फ सुजाता प्लाटून दो अबूझमाड़ एरिया कमेटी पर दो लाख इनाम। महेश वासम सीएनएम सदस्य नेशनल पार्क एरिया कमेटी, विनोद मेटटा सीएनएम सदस्य नेशनल पार्क एरिया कमेटी का नाम शामिल है।
0 सुकमा पुलिस ने पांच लाख की इनामी महिला नक्सली माड़वी गंगी चिंतागुफा क्षेत्र निवासी डीकेएमएस अध्यक्ष, केरलापाल एरिया कमेटी है जो कि 2006 से नक्सली कमांडर सतिषन्ना के द्वारा संगठन से जोड़ी गई थी। मड़कम हुंगी निवासी चिंतागुफा क्षेत्र कर्कोटा एलओएस सदस्या ईनामी 1 लाख रूपये,कुड़ामी गंगा निवासी कुकानार क्षेत्र पेदारास एलओएस सदस्य ईनामी 1 लाख रूपये, सोड़ी जोगा निवासी गादीरास क्षेत्र नक्सली सहयोगी।
0 दंतेवाड़ा पुलिस को नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कामयाबी हाथ लगी। चार इनामी नक्सली समेत 28 नक्सलियों ने जवानों के सामने सरेंडर किया है। आत्मसमर्पित नक्सलियों में 26 नम्बर प्लाटून सदस्य मंगलू 2 लाख का इनाम, बामन कवासी कटेकल्याण एल जी एस सदस्य 1 लाख इनामी, हांदा एल जी एस सदस्य 1 लाख इनामी पोडियामी गंगी, सीएनएम कमांडर 1लाख इनामी सन्नू मरकाम, भीमा कुड़ामी, हांदो कुडामी,रोसोल माडवी,जोगा कवासी, बुधरा माडवी, आयता मडकामी, आयतू मडकामी, हडमा सोढ़ी, मादे कुहराम, बामन मरकाम, लक्खोकुडामी, लखमा मुचाकी, हुंगा मुचाकी, सुकड़ा मुचाकी, गागरू मरकाम, सुकड़ा मड़कामी, हडमाकवासी, लच्छूकोवासी, बामन मरकाम, बुधराम कवासी, हिड़मा मड़काम,सुकड़ा  कवासी, महादेव पोडियाम जनमिलिशिया सदस्य शामिल है।

किसी भी नक्सली नेता को जीवनदान नहीं देंगे: भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हंै कि नक्सलियों से समझौता नहीं करंेगे। केन्द्र सरकार को चाहिए कि दूसरे राज्य के जितने भी इनामी नक्सली हैं उन्हें गिरफ्तार करे। आन्ध्र सरकार को निर्देश दे। अन्यथा छत्तीसगढ़ की पुलिस नक्सली नेताओं को जीवनदान नहीं देगी। छत्तीसगढ़ का कोई भी आदिवासी नक्सली नहीं हैं। जो भी यहां नक्सली नेता हैं वे तेलंगाना या फिर आन्ध्र प्रदेश के हैं। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश -
0 रमन सरकार के समय भी निर्दोष आदिवासी नक्सली बताकर मार दिये जाते थे। कांगे्रस सरकार के समय भी ऐसी घटनायें हो रही हैं।
00 आंकड़े बढ़ाने के लिए निर्दोष आदिवासियों को नहीं मारेंगे। और उन्हें नक्सली कहकर गिरफ्तार भी नहीं करेंगे। सच तो यह है कि हमारे यहां कोई भी अदिवासी नक्सली नहीं है। जितने भी नक्सली नेता हैं वो आन्ध्र के हैं या फिर तेलंगाना के हैं। हमारे राज्य में जो भी नक्सली नेता आयेगा वो मारा जायेगा। दूसरे राज्य में जाकर हम कार्रवाई नहीं कर सकते। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वो बताये कि कितने इनामी नक्सली हैं। हमारे यहां कोई भी आदिवासी नक्सली नहीं है।
0 छत्तीसगढ़ में ज्यादातर नक्सली नेता बाहर के हंै। क्या उनसे बात चीत कर समाधान का कोई रास्ता निकालना चाहेंगे?
0 हम किसी भी नक्सली नेता से बात नहीं करेंगे। वो छत्तीसगढ़ छोड़कर चले जायें अन्यथा हमारी पुलिस उन्हें अभयदान नहीं देगी। अभी तक जितने भी इनामी नक्सली पकड़े गये हैं वो सब के सब भरमार बंदूक के साथ नहीं बल्कि, एक के 47 जैसे घातक हथियार के साथ पकड़े गये हैं। छत्तीसगढ़ में जितने भी इनामी नक्सली हैं वो सब के सब आन्ध्र के हैं। यह आन्ध्र प्रदेश की सरकार की जवाबदारी है कि वह इन्हें गिरफ्तार करे या फिर मारे।
0 ज्यादा तर नक्सलियों के पास विदेशी हथियार हैं। आखिर ये हथियार उन्हें मिलता कहां से है?
0 सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो भी इनामी नक्सली पकड़े जाते हैं या फिर मारे जाते हैं उनके पास घातक हथियार कहां से आते हैं। चीन,जपान या फिर विदेशी रायफल छत्तीसगढ़ में बनती नहीं। इसके अलावा गोलियां भी बाहर के होते हैं या फिर हमारे देश के कारखाने के। जाहिर सी बात है कि नक्सलियों के तार बाहर से जुड़े हैं। यह केन्द्र सरकार की जवाबदारी है कि उन्हें हथियार मुहैया कराने वालों का पता करे और उनके खिलाफ कार्रवाई करे।
0 आप कश्मीर मामले का विरोध क्यों करते हैं?
00 भाजपा के घोंषणा पत्र में 370 हटाने का जिक्र था। इसलिए हमें उनके एजेंडे पर एतराज नहीं है। एतराज इस बात पर है कि छत्तीसगढ़ राज्य बना तो मध्यप्रदेश विधान सभा से प्रस्ताव पास हुआ। यू.पी विधान सभा में भी प्रस्ताव पारित होने के बाद उत्तराखंड बना, इसी तरह बिहार विधान सभा में प्रस्ताव पारित होने पर झारखंड बना। लेकिन बिना प्रस्ताव पारित हुए जम्मू और कश्मीर को अलग किये जाने पर हमें एतराज है। राज्य की जनता को बगैर विश्वास में लिये यह किया गया। जनता के विश्वास के साथ अविश्वास किया गया है।
0 इन दिनों मंदी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। क्या छत्तीसगढ़ में भी इसका असर है?
00 देश में मंदी है लेकिन,छत्तीसगढ़ में मंदी के हालात नहीं है। आटो से लेकर रियल स्टेट में भी मंदी नहीं है। प्रदेश सरकार के राजस्व में कमी नहीं आई है बल्कि, बढ़ोतरी हुई है।





 


Friday, September 20, 2019

दंतेवाड़ाः किसकी सियासत का करेगा कबाड़ा


कांग्रेस का आगामी राजनीतिक भविष्य दंतेवाड़ा उप चुनाव तय करेगा। इस चुनाव के परिणाम से यह पता चलेगा कि प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कितना लोकप्रिय हुए। इसलिए कि लोकसभा चुनाव के दाग अब भी नहीं धुले हैं,वहीं डाॅ रमन सिंह सरकार में न रहकर भी लोकसभा की नौ सीट जीता ले गये। हाथ किसी का भी हो,लेकिन श्रेय उन्हें ही मिला। मंतूराम पवार के आरोप निश्चय ही दंतेवाड़ा उप चुनाव को ध्यान में रख कर लगाए गए हैं। पर ऐसा नहीं लगता कि उनके आरोपों की छाया इस चुनाव में दिखेगी। क्यों कि उन्होंने विश्वास खो दिया है। दूसरी वजह यह है कि यहां मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ने से कांग्रेस बच रही है, जबकि बीेजेपी विकास की बात कर रही है। कांग्रेस ने चुनाव को आरोप प्रत्यारोप के रंग में रंग दिया है।इससे उसे नुकसान की आशंका ज्यादा है।
उम्मीद टूट सकती है
दंतेवाड़ा में भावानात्मक हवा का थोड़ा बहुत असर है। लेकिन बीजेपी के पक्ष में ज्यादा है। दंतेवाड़ा की यह सीट भाजपा के पास थी। यदि कांग्रेस इसे अपने पक्ष में कर लेती है तो आने वाले निकाय और पंचायत चुनाव में कांग्रेस की उम्मीद,पर पानी फिरने की आशंका कम हो सकती है। वैसे अभी आठ माह की सरकार जनता के बीच अपनी खास छाप नहीं बन सकी है। इसकी वजह यह है कि सरकार का सारा पाॅवर एक जगह सिमट गया। अन्य मंत्री सिर्फं नाम के मंत्री है। नौकरशाह उनकी सुनते नहीं। इस वजह से प्रदेश में काम काज ठप हैं। डाॅ रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में दंतेवाड़ा के लिए जो काम किये हैं,उसका लाभ बीजेपी को मिलता है या फिर कांग्रेस को नरवा,घुरवा,बाड़ी और गोठान के नारे से वोट मिलता है,पूरे प्रदेश की नजर है। वेसे मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट पोस्टर की तरह फड़फड़ा रहा है।
आदिवासियों के हक की बात नहीं
दंतेवाड़ा में आम आदिवासी के हक की बात इस उप चुनाव में कोई भी बड़ी पार्टी नहीं कर रही है। सिर्फ आरोप और प्रत्यारोप तक ही सिमट गया है यह चुनाव। दरअसल कांग्रेस को पता है कि उसने अपने आठ माह की सरकार में दंतेवाड़ा के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिसे वो हवा दे सके। न तो पलायन रोकने का उसके पास कोई योजना है। न ही बेरोजगारी दूर करने की कोई ठोस योजना है। बेरोजगारी भत्ता यहां के बेरोजगारों को कब देगी,बताया। बेवजह जेलों में बंद आदिवासियों को कब छोड़ा जायेगा,उसकी तारीख तय की नहीं। सिर्फ घोंषणाओं की बात है। और इस बात को नक्सली भी तूल दे रहे हैं कि कांग्रेस सरकार ने वायदा तो किया था लेकिन, पहल अभी तक नहीं की। दंतेवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को लाल पानी पीना ,अब भी मजबूरी है। उन्हें मीठा पानी कब और कैसे मिलेगा, इसकी बात कांग्रेस के किसी भी मंत्री ने नहीं की। देश चांद पर चन्द्रयान भेज रहा है, उस दौर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्कूल में भौरा चलाने की शिक्षा देते और तस्वीर खिंचाने तक सिमट गये। दूसरी ओर नक्सली आम आदमी कोे मौत के घाट उतारने से बाज नहीं आये। दूसरी तरफ पुलिस पर आरोप है कि उसने आदिवासियों को इनामी नक्सली बताकर भून दिया। जबकि वहां के लोगों का दावा है कि मारे गये लोग नक्सली नहीं हैं। ऐसी वारदातों से सवाल यह उठता है कि दंतेवाड़ा उपचुनाव से इस विधान सभा के लोगों को क्या मिलेगा?
खूनी खेल कितने चुनाव तक
सरकार और पुलिस दोनों यह बताने केा तैयार नहीं है कि कितने इनामी नक्सली हैं। भीमा मंडावी की हत्या नक्सलियों ने की। चुनाव तक और चुनाव के बाद भी न जाने कितने लोग नक्सली बारूद और गोली के चपेट में आयेंगे सरकार को भी पता नहीं। फिर ऐसे चुनाव का क्या अर्थ, यहां का आदिवासी लगाये? सरकार किसी भी पार्टी की हो, यहां के आदिवासी को हर हाल में मरना ही है। चाहे नक्सली मार दें या फिर पुलिस नक्सली बताकर मार दे। यह खेल कितने चुनाव तक चलेगा, सरकार को बताना चाहिए।