Saturday, June 15, 2019

नहीं चलेगी बदलापुर की राजनीति: डाॅ रमन

 नहीं चलेगी बदलापुर की राजनीति: डाॅ रमन
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाॅ रमन सिंह कहते हैं कि बीजेपी की इतनी बड़ी जीत मोदी और राष्ट्र भक्तों की है। भूपेश बघेल राष्ट्रीय नेता बनने का ख्वाब देख रहे थे। जबकि वे अपने ही विधान सभा के बूथ को नहीं बचा सके। प्रदेश में बदलापुर की राजनीति नहीं चल सकती। कांग्रेस की झूठ में पड़कर जनता उसे विधान सभा में वोट कर दिया था,लेकिन लोकसभा में उसने राष्ट्रवाद को मजबूत करने वाली पार्टी बीजेपी को वोट किया। डाॅ रमन सिंह से    रमेश कुमार ‘‘रिपु’’      हुई बातचीत के प्रमुख अंश 

0 प्रदेश में बीजेपी की सरकार नहीं होने के बाद भी, कांग्रेससे अधिक सीट लोकसभा में बीजेपी को मिलने की वजह आप क्या मानते हैं।
00 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के झूठे वादे के चक्कर में पड़कर लोगों ने वोट दिया था लेकिन, ये अब भ्रम टूट गया है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में हमने यह विश्वास व्यक्त किया था की राज्य की जनता एग्जिट पोल से भी बेहतर समर्थन दे चुकी है और परिणाम आने पर यह बात सत्य साबित हुई है। एग्जिट पोल से ही यह संकेत मिल गए थे कि छत्तीसगढ़ सहित देश की जनता ने मोदी जी के नेतृत्व में स्वाभिमानी सरकार चुनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह भारत की जीत है। भारत के जनता की जीत है।
0 क्या भूपेश बघेल सरकार के बदलापुर राजनीति का भी कोई असर था?
00 बदलापुर की सरकार वाली मानसिकता छत्तीसगढ़ में नहीं चल सकती। देश नये युग में प्रवेश कर रहा है। नया इतिहास रचा गया है। यह दूसरा अवसर है जब किसी पार्टी को अपने बूते सरकार बनाने का अवसर जनता ने दिया। जनता झूठ के सब्ज बाग दिखाने वाली पार्टी को पसंद नहीं करती। कंाग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा था यदि हम सात सीट नहीं जीते तो हमें समीक्षा करना पड़ेगा। अब कांग्रेस को समीक्षा करनी चाहिए कि वे पांच महीने पहले विधान सभा में 68 सीट जीते थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा 66 विधान सभा सीटों में बढ़त कैसे बना ली।
0 भाजपा की इतनी बड़ी जीत को आप किस रूप में लेते  है।
00 बीजेपी की इतनी बड़ी जीत मोदी और राष्ट्र भक्तों की है। भूपेश बघेल प्रधान मंत्री को आइना भेजे थे। अब एक बार उस आइने में अपना चेहरा देख लें। प्रधान मंत्री को किये ट्वीट की भाषा देखिये, लिखा, अरे प्रधान मंत्री जी रिजल्ट का इंतजार कर लेते। अभी से झोला उठाकर चल दिये। झोला उठाकर जाने की जरूरत अब उन्हें है।
0 भूपेश बघेल इस चुनाव में कई स्थानों में कांग्रेस का प्रचार करके राष्ट्रीय नेता बन गये। कुछ कहेंगे।
00 हंसते हुए कहा, प्रदेश समेत देश के दूसरे हिस्से में जहां,जहां भूपेश बघेल के पांव पड़े, वहां कांग्रेस की लुटिया डूब गई। अमेठी में राहुल को जीता नहीं पाए। भोपाल में दिग्विजय के साथ भी यही हुआ। लखनऊ गए और वहां भी हार मिली। जबलपुर में भी कांग्रेस हार गई। छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ी हार दुर्ग से हुई, जो खुद सीएम का गढ़ है। भूपेश बघेल की अपनी बूथ में विधानसभा में कांग्रेस चुनाव हार गई। भूपेश बघेल राष्ट्रीय स्तर के नेता बनने का ख्वाव देख रहे थे। 5 महीने के इनके कार्यकाल को छत्तीसगढ़ की जनता ने नकार दिया है।
0 राज्य में प्रदेश के सांसदों की क्या भूमिका रहेगी।
00 राज्य के विकास के लिए छत्तीसगढ़ के सांसदों की अहम भूमिका होगी। उम्मीद है इतनी बड़ी जीत में यहां से किसी को मंत्री बनाया जा सकता है। उसका लाभ प्रदेश को मिलेगा। सांसद यहां के लिये नेशनल हाइवे और रेलवे के प्रोजेक्ट को स्वीकृत कराने का प्रयास करेंगे। ताकि प्रदेश को इसका लाभ मिल सके।

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‘हाथ’ में खिला ‘कमल’

   

   ‘हाथ’ में खिला ‘कमल
विधान सभा चुनाव में सियासत का सिंकदर बनकर उभरे भूपेश बघेल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों में हार का तंबुरा कैसे थमा दिये? क्या एसआइटी की चाबुक चलाने की सियासी प्रक्रिया जनता को पसंद नहीं आई। न्यूनतम आय गारंटी योजना को दरकिनार कर जनता ने कांग्रेस के हाथ में क्यों कमल खिला दिया? कांग्रेस की किसान कर्ज माफी रणनीति के बावजूद उसका वोट बैंक बढ़ा क्यों नहीं? ऐसे सवालों का जवाब ढूंढती यह रिपोर्ट।

0 रमेश कुमार ‘‘रिपु’’
                       ’’गढ़बो नया छत्तीसगढ़‘‘। यही नारा है भूपेश बघेल की सरकार का। सवाल यह है कि यह नारा आकार क्यों नहीं ले पाया लोकसभा चुनाव तक?लोकसभा चुनाव के चार महीने पहले 68 विधान सभा जीतने वाली कंाग्रेस 66 विधान सभा चुनाव कैसे हार गई? भूपेश सरकार का दावा है कि सत्ता में आने के दसवें दिन ही प्रदेश के 3 लाख 57 हजार किसानों के कर्ज माफ कर दिये गये। किसानों के खाते में 1248 करोड़ डालने के बाद भी आखिर कांग्रेस लोकसभा चुनाव में चारों खाने चित क्यों हो गई?भूपेश बधेल विधान सभा चुनाव में सियासत का सिंकदर बनकर उभरे थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेसियों के हाथों में हार का तंबुरा दे दिये। जबकि चुनाव से पहले सरकार का दावा था कि 11 सीट जीतेंगे। कांग्रेस के हाथ में जीत की लकीर आखिर भूपेश बघेल लोकसभा में क्यों नहीं बना सके। जबकि प्रदेश में उनकी सरकार है। चूक गये या धोखा खा गये। बड़े दांव का खिलाड़ी बनने का दावा तो ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंह देव भी किये थे। सी.एम बनने की चाह थी। चरणदास महंत भी इसी दौड़ में शामिल थे। वे एक नई रेस जीत गये हैं। टी.एस सिंह देव यहां तक कह दिये थे कि प्रदेश में कांग्रेस कम से कम सात सीट नहीं जीतती है तो,यह कांग्रेस की हार है। यह हार कांग्रेस की है या फिर भूपेश बघेल सरकार की अथवा कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं की? आखिर हारा कौन? भूपेश बघेल तो अभी तक नहीं कहे कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस हारी है। जबकि राहुल गांधी ने कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा की पेशकश भी की। यह अलग बात है कि उनका इस्तीफा कार्यसमिति मंजूर नहीं करेगी। लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा करके एक संदेश तो दे ही दिये क्षत्रपों को कि हार की जवाबदारी स्वीकार कर इस्तीफा दो। उनके सियासी संकेत को क्या कोई नहीं समझा?
नाराज किया किसने..
कांग्रेस की नाव सत्ताई समुंदर में है। हार का मंथन करती है तो विरोध का जहर ही निकलना है। और कांग्रेस के क्षत्रप नहीं चाहेंगें कि ऐसा हो। वजह सब जानते हंै। कांग्रेस की हर शाख पर कालिदास बैठे हैं। ऐसे में क्या यह मान लिया जाये कि कार्यकत्र्ताओं की नाराजगी से कांग्रेस हारी। गौरतलब है कि विधान सभा चुनाव भाजपा हारी थी तो पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक और डाॅ रमन सिंह ने हार का ठीकरा भाजपा कार्यकत्र्ताओं पर फोड़ा। इस बयान पर भाजपा दो फाक हो गई थी। सवाल यह है कि कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं को नाराज किया किसने। प्रदेश कांगे्रस प्रभारी पीएल पुनिया को यह जानना चाहिए। संगठन की कमान तो भूपेश बघेल के हाथ में है।
कांग्रेस के समक्ष यक्ष प्रश्न
कांग्रेस के समक्ष यक्ष प्रश्न है कि कार्यकत्र्ताओं को निगम मंडल के पद देने और अपने विधायकों को नाराज कर देने से पी.एल पुनिया नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव कांग्रेस को जीता लेंगे,या फिर भूपेश बघेल की सरकार? वैसे राजीव भवन में हर दिन एक मंत्री कार्यकत्र्ताओं के साथ बैठक कर जानने का प्रयास करेगें कि उनकी नाराजगी की वजह क्या है? वजह जानने से पहले निगम मंडल में उन्हें ओहदा देने की बात चांैकाती है। जबकि कांग्रेस को तो यह जानना चाहिए कि किसान उससे छिटका कैसे। जनता उसे नजर अंदाज क्यों की। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में जनता का रूख क्या लोकसभा जैसा है। यदि ऐसा है तो जाहिर है कि भूपेश बघेल सराकर से जनता नाराज है। और वो अपना जिला सरकार का दायित्व कांग्रेस को नहीं,भाजपा को दे सकती है।
भाजपा की जड़ हरी हुई
सियासी सवाल कई हैं, पर जवाब कांग्रेस के पास नहीं,भाजपा के पास है। जैसा कि भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाॅ रमन सिंह कहते हैं,‘‘बदलापुर की राजनीति प्रदेश में न चली है और न ही चलती है’’। भाजपा की जड़े लोकसभा चुनाव के परिणाम से एक बार फिर हरी हो गई’’। लोकसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस का वोट बैंक खिसक गया है। जबकि किसानों के दम पर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। किसानों के कर्जा माफी की घोषणा से कांग्रेस को लाभ तो मिला लेकिन, मोदी के राष्ट्रवाद ने भूपेश सरकार के काम काज की बखिया उधेड़ दी। जाहिर सी बात है कि भूपेश सरकार का काम काज जनता के अनुकूल नहीं था। सुर्खियों की राजनीति के लिए पूर्व सरकार के कामकाजों की जांच के लिए नई सरकार एसआइटी की चाबुक घूमाती रही। और जनता ने मोदी पर दांव लगा दिया। दरअसल भाजपा की चुनावी रणनीति पूरी तरह मोदी ब्रांड पर केन्द्रित थी। प्रदेश में डाॅ रमन सिंह ने भूपेश बघेल को मात दे दिये। अभी तक प्रदेश की जनता लोकसभा चुनाव में उसे ही वोट करती आई है जिसकी प्रदेश में सरकार रहती है। भूपेश बघेल आकलन इसी आधार पर कर रहे थे,और उन्हें भरोसा था कि कांग्रेस की हथेली में 11 नहीं तो दस सीट आ जायेगी। लेकिन इस बार इस ट्रेंड को जनता ने बदल दिया। भूपेश बघेल ही नहीं,डाॅ रमन सिंह को भी हैरत में जनता ने डाल दिया।  जबकि भूपेश बघेल की सरकार ने 15000 शिक्षकों,1345 सहायक प्रोफेसरों और 61 खेल अधिकारियों की भर्ती की भी घोषणा की,हालांकि राज्य की बेरोजगारी के अनुसार यह पर्याप्त नहीं है। इससे बेरोजगारी दूर नहीं होगी। जनता को यह एहसास कराने की पहल सरकार ने की कि जनता के लिए वो दरवाजे खोल रही है। पर भूपेश सरकार के जादुई पिटारे से जो निकला उससे जनता खुश नहीं हुई।
बढ़ सकता है सियासी घाटा
अब सामने जिला पंचायत और निकाय चुनाव हैं। कांग्रेस का वोट बैंक खिसक गया है। किसान नाराज है। किसानों का बिजली बिल आधा कर देने का दावा सरकार कर रही है, वहीं बस्तर,धमतरी और राजनांदगावं के किसानों को खाद नहीं मिल रही है। मुख्यमंत्री के समक्ष आने वाले समय में एक नहीं कई चुनौतियां हैं। बेरोजगारों को रोजगार और बेरोजगारी भत्ता भी। किसानों को खाद नहीं मिलने पर सवाल यह है कि सरकार किसानों को रिझायगी कैसे। वैसे भी किसान सरकार के कर्ज माफी की रणनीति से खुश नहीं है। दो लाख कर्ज माफ किया गया है, जबकि चुनाव से पहले कांग्रेस का कहना था कि सत्ता में आते ही दस दिनों में किसानों के सारे कर्जे माफ कर दिये जायेंगे। सत्ता मिली तो कर्ज की अवधि और सीमा सरकार तय कर दी। जाहिर सी बात है डाॅ रमन सिंह की सरकार ने किसानों के मूड को समझ नहीं सकी और भूपेश सरकार किसानों को रिझा नहीं सकी। जिससे कांग्रेस को राजनीतिक घाटा हुआ। सियासी घाटा बढ़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
ये तो सियासी बहाना है
लोकसभा चुनाव ने राजनीतिक समीकरण बिगाड़ दिया है। खासकर कांग्रेस का। कांगे्रस को अपनी दशा और राजनीतिक दिशा बदलनी होगी। दुर्ग लोकसभा उसके हाथ से छिटक जाना इस बात का संकेत है। इस जिले से मुख्यमंत्री और गृहमंत्री दोनों आते हैं। कांग्रेस बाजी जीतने में असफल हो गई। आखिर वजह क्या है? कांग्रेस के एक विधायक ने कहा कार्यकत्र्ताओं की नाराजगी की वजह से कांग्रेस को दो सीट लोकसभा में मिली। तर्क में दम नहीं है। चरणदास महंत यह कह सकते हैं। इसलिए कि कोरबा और कांकेर में तो ऐसा नहीं हुआ। हैरत वाली बात है कि दुर्ग में मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के बावजूद कार्यकत्र्ता नाराज क्यों हुए। क्या कांग्रेस सत्ता में आने के बाद अपने कार्यकत्र्ताओं को भूल गई। कांग्रेस का संगठनात्मक ढाचा ढीला हो गया। जबकि संगठन की कमान भूपेश बघेल के हाथ में रही। यदि इस बात से कांग्रेसी सहमत नहीं हैं तो, कांग्रेस विधान सभा चुनाव अपने कार्यकत्र्ताओं के दम पर नहीं जीती? जनता ने उसे डाॅ रमन सिंह सरकार की जगह एक मौका दिया है। पन्द्रह साल बहुत हो गया,बदलाव की चाह में सरकार बदली। लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार उसकी पहली प्राथमिकता रही इसलिए उसने बीजेपी को नौ सीट दे दी। कंाग्रेस वहां जीती जहां,उसके लिए जीत आसान थी।
शीर्ष नेतृत्व पर नजर
कांग्रेस के पंडाल में एक सियासी बाजीगर के रूप में चरणदास महंत उभरे। शीर्ष नेतृत्व में यदि परिवर्तन होता है,जिस तरह स्व.इंदिरा गांधी ने 1970 और 1977 में अपने सिपहसालारों को पार्टी का अध्यक्ष बनाया,राहुल गांधी भी वैसा कर सकते है। ऐसे में मुमकिन है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जा सकते हैं। यानी कांग्रेस में पंडाल में टकराव का चिमटा बजने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव भूपेश बघेल की राजनीति का भविष्य तय करेंगे। यदि इन चुनावों में भी हाथ में कमल खिल गया तो एक बात साफ है कि प्रदेश मंे कांग्रेस की राजनीति का भविष्य मोदी ही लिखेंगे। जैसा कि वे ममता बनर्जी को कह चुके हैं कि दीदी आपके 40 विधायक भाजपा के साथ हैं’’। बहरहाल कांग्रेस का नेतृत्व भाजपा की जड़ों के बीच है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पी.एल पुनिया भी शीर्ष नेतृत्व के निशाने पर है। पी.एल पुनिया यू.पी के प्रभारी रहते कांग्रेस को डूबा चुका हैं। प्रदेश मंे कांगे्रस की सरकार है,लेकिन पुनिया और भूपेश से वो सारे विधायक बायें चल रहे हैं जो मंत्री बनने की लाइन में थे। राजनीति हमेशा संभावनाओं पर चलती है। कांगे्रस में बगावत नई सियासत की कथा लिख सकती है।
 भूपेश पर संदेह
कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक जिन्हें मंत्री नहीं बनाया गया है,वे खासे नाराज हैं। सवाल करते हुए कहा, चुनाव से पहले भूपेश बघेल 11 सीट जीतने का दावा कर रहे थे। उनके समर्थक भी कह रहे थे कि किसानों का कर्जा माफ कर दिया गया है। धान की कीमत 2500 रूपये प्रति क्विंटल हो गया है। किसानों का बिजली बिल हाफ कर दिया गया है। इतना सब किया गया है तो फिर कांग्रेस को 11 सीटे मिली क्यों नहीं?यानी केवल मुंह से ही सब कुछ हुआ। यही वजह है कि जनता ने कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया। ऐसे में भूपेश बघेल को हार की जवाबदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए’’। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कहते हैं,’’प्रदेश की जनता ने नये भारत के निर्माण के लिए मोदी के हाथ को मजबूत किया। कांग्रेस केवल झूठ का गुब्बारा फूलाती रही। मोदी जी ने पांच सालों में गांव की गरीब महिलाएं,गरीब किसानों के लिए जितना किया,उतना कांग्रेस की सरकारों ने कभी नहंीं किया’’।
एक सच ऐसा भी
प्रदेश के करीब 34 लाख किसान हर साल लगभग 7 हजार कारोड़ कर्ज लेते हंै। 10 लाख किसानों पर अभी भी करीब 15 हजार करोड़ कर्ज बकाया है। 10 हजार करोड़ तो बीते दो साल का बकाया है। दरअसल फसल बीमा का लाभ किसी भी सरकार में किसानों को मिला नहीं। इसलिए किसान कर्जदार हुए। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 34 लाख किसानों में से करीब 1.51 लाख ने ही फसल बीमा कराया। इनमें से आधे राजनांदगांव जिले से हैं। बस्तर के 7 जिलों में से सुकमा, नारायणपुर और बीजापुर में दो.दो किसानों ने ही बीमा कराया। बस्तर में किसानों ने फसल बीमा नहीं कराया। बस्तर के किसानों ने चना, गेंहूं, अलसी, सरसों, तिवरा और आलू की फसल ली पर बीमा नहीं कराया। किसानों के साथ सरकार का रवैया हितकर नहीं है। यही वजह है कि राज्य में वर्ष 2015 से 30 जून 2017 तक कुल 11826 आत्महत्या के प्रकरण दर्ज किए गए हैं। जिसमें 1271 किसानों ने तथा 10,555 अन्य व्यक्तियों ने आत्महत्या की है। इस अवधि में राज्य के सूरजपुर जिले में 198 किसानों ने, बलौदाबाजार जिले में 181 किसानों ने, बालोद जिले में 170 किसानों ने, महासमुंद जिले में 153 किसानों ने तथा बलरामपुर जिले में 138 किसानों ने आत्महत्या की। किसानों की मांग है कि उन पर लगातार बढ़ते कर्ज का सरकारें उपाय करें। उनकी फसलों का उचित मूल्य मिले। किसानों पर लदे कर्ज माफ किए जाएं। किसानों की फसलों का बीमा हो और सिंचाई,बीज आदि की सुविधाएं को सुगम बनाया जाए।
कब कर्ज होगा माफ
दुर्ग के किसान संजय साहू कहते हैं हाथ में सत्ता आ जाये इसके लिए कांग्रेस ने किसानों के साथ छल किया। मध्य प्रदेश में 31 मार्च 2018 तक के किसानों के कर्जें माफ किए गए हैं, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में 30 नवंबर 2018 तक का कर्ज माफ किया गया है। कांग्रेस ने किसानो के साथ कर्ज माफी पर राजनीति कर गई। किसानों के सिर्फ अल्पकालीन कृषि ऋण ही माफ किये गये हैं। यह सिर्फ 6100 करोड़ रुपए का कर्ज है’’। दरअसल खेतों की जमीन की निराई,गुड़ाई जैसे काम के लिए किसान अल्पकालीन कर्ज लेता हैं। जो 20,30 हजार रुपये का होता है। दीर्घकालीन और फसल ऋण माफ नहीं किये गये। इसलिए कि दोनों तरह के कर्ज का दायरा कहीं ज्यादा बड़ा और गंभीर है। दीर्घकालीन कर्ज में किसान कृषि उपकरण, टैक्टर.ट्रॉली, हार्वेस्टर कल.पुजे आर्दि खरीदते हैं। जिसे 3 से 5 साल या उससे अधिक अवधि में चुकाना होता है। फसल कर्ज की अवधि बुवाई से कटाई तक की होती है। इसका इस्तेमाल बुवाई के दौरान बीज, फर्टिलाइजर, और दवा आदि खरीदने के लिए होता है। इस कर्ज की वसूली फसल बेचने के दौरान कर ली जाती है।
क्या चाहते हैं किसान
किसान अब मांग रहे कर रहे हैं कि कर्ज माफी मतलब पूरे कर्ज की माफी है। जिसमें दीर्घकालीन और फसल लोन भी शामिल हो। अधिकतर किसान कृषि लोन के मामले में ही डिफॉल्टर हैं क्योंकि कभी बारिश अधिक होने, तो कभी सूखा पड़ने से फसल को नुकसान होता है। जिससे कर्ज नहीं चुका पाते। चुनाव के समय कांग्रेस के घोषणा पर किसानों को भरोसा हुआ कि उनके सिर पर जो कर्ज है वह माफ हो जायेगा। लेकिन कांग्रेस ने कर्जमाफी के आदेश में नियम व शर्तें लगा दी। उससे किसान ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सरकार ने 16.50 लाख किसानों को 6100 करोड़ कर्ज माफ करने का वादा किया था। हुआ आधा भी नहीं। 3.57 लाख किसानों के खाते में 1248 करोड़ रुपये डाले गये हैं। किसानों के साथ कांग्रेस सरकार ने धोखा किया तो जनता ने कांग्रेस के साथ। उसका न केवल वोट बैंक खिसक गया बल्कि किसान नाराज हैं। कंाग्रेस की न्यूनतम गारंटी योजना को जनता ने कर्ज माफी योजना की तरह ही लिया। जबकि मोदी न किसानों को हर साल 6 हजार रूपये देने की घोषणा की। उसकी पहली किस्त यानी 2018 की चुनाव से पहले सबके खाते में आ गई। जाहिर सी बात है कि मोदी के दीर्घ अवधि के सुधार पर जनता ने भरोसा किया।



  


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