Sunday, April 18, 2021

वामपंथ और दक्षिणपंथ में भेद नहीं

                   
    
मध्यप्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष गिरीश गौतम कहते हैं विंध्य प्रदेश बनाना या फिर मऊँगंज को जिला बनाना हमारा विषय नहीं है। यह सरकार का विषय है। यदि जनता चाहती है तो हम उसका विरोध भी नहीं करेंगे। मेरे डीएनए में कामरेड है। बावजूद इसके वाम से दक्षिणपंथ की ओर झुकाव से जन सेवा का धर्म नहीं बदल जाएगा। किसी के बनी रेखा को काटकर अपनी रेखा बनाने में विश्वास नहीं रखता और अपने आप को विंध्य का शेर की बजाय विंध्य का पुत्र कहलाना ज्यादा अच्छा मानता हँू। उनसे  बातचीत किये है  0 रमेश कुमार ’रिपु’





ने उसके प्रमुख अंश-
0 आपका कहना था कि, वाम से दक्षिण पंथी इसलिए हुआ कि श्रीनिवास तिवारी को हराना था। बड़ा मंच चाहिए था। क्या अब वाम आपके लिए कोई मायने रखता है?
00 वो बात पुरानी हो गई। राजनीतिक व्यक्ति को मंच अपने लिए नहीं चाहिए। जन कल्याण के काम के लिए स्वाभाविक तौर पर मंच की जरूरत होती है। मैं समझता हूँ बीजेपी से बेहतर मंच और कोई नहीं है। वाम मोर्चा का जहांँ तक सवाल है,कामरेड मेरे डीएनए में है। इसलिए उसे अलग करके नहीं देखना चाहिए।
0 वाम से दक्षिण में विचलन आश्चर्यजनक नहीं है?
00 वाम से दक्षिण में विचलन जरा भी आश्चर्यजनक नहीं है। कोई भी सिद्धांत होगा अंतोगत्वा समाज के लिए ही काम करेगा। वाम पंथ हो या फिर दक्षिण पंथ,दोनों कभी नहीं कहते कि टाटा बिरला के लिए काम करो। देश बहुत बड़ा है। मैं समझता हूँ कि वामपंथी सामाजिक परिदृश्य को नहंी समझ पाए। उन्हांेने धर्म को धर्म की तरह देखा, उसके मर्म को नहंी समझा। उदाहरण बतौर,कुंभ का आयोजन धर्म है लेकिन, बगैर आमंत्रण के लोगों का वहांँ पहुंचना यह धर्म का मर्म है। वामदल मजदूर और गरीबों की बात करता है। दीनदयाल अंत्योदय की बात करते हैं। ऐसी स्थिति में फर्क कहांँ है। अंत्योदय में भी अंंितम छोर पर खड़े व्यक्ति के उत्थान और प्रगति की बात करते हैं। सबका साथ,सबका विकास की धारणा को लेकर चलना चाहिए।
0 कामरेड स्पीकर और नवाचारी स्पीकर दो नाम से आप को लोग जानने लगे हैं। दोनों में कौन सा संबोधन आपके दिल को छूता है।
00 मेरे में कामरेड है। कामरेड को कोई ब्रांड नहीं है। यह अंग्रेजी का शब्द है। जिसका मतलब साथी होता है। सबका साथ,सबका विकास की धारणा को लेकर आगे चलेंगे। सदन अच्छे से चले। मार्शल का इस्तेमाल न करना पड़े।  सदन की गरिमा बनी रहे। इसलिए कुछ नये नियम बनाए हैं। प्रथम बार निर्वाचित विधायकों को सवाल करने का पहले मौका दिया जाएगा। वरीयता और प्रशिक्षण के साथ सदन की गरिमा बनी रहे इसलिए भाषा के संस्कार पर विशेष ध्यान देने को कहा है। अति उत्साह में असंसदीय भाषा का इस्तेमाल से बचें। राजनीति की गरिमा सदन में बनी रहेगी तो बाहर भी उसका मूल्य है। सदन के अंदर झूठा,फेकू,बंटाधार,मामू आदि असंसदीय भाषा सुनने को अब नहंी मिलेगी।
0 आम लोगों की धारणा है कि, अब विंध्य प्रदेश बन जाएगा। कुछ नही ंतो मऊगंज जिला बन ही जाएगा। आप किसे प्राथमिकता देंगे?
00 विंध्य प्रदेश बनाना और मऊगंज को जिला बनाना दोनों हमारा विषय नहीं है। यह सरकार का काम  है। जनता चाहेगी तो विंध्य प्रदेश बन जाएगा और मऊगंज जिला भी बन जाएगा। जनता जो चाहती है, हम उसके खिलाफ नहीं जायेंगे।
0 विंध्य के लोगों की आम धारणा है कि माननीय गिरीश जी कुछ अलग हटकर हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि, श्रीनिवास तिवारी की रेखा को काटकर वो अपनी बड़ी रेखा बनाएंगे?
00 मैं उस सिद्धांत को मानता हूँ, किसी की रेखा को काटकर अपनी रेखा को बड़ी नहीं करना है। न ही किसी दूसरे की रेखा का फालो करूंगा। अपनी रेखा अपने कर्मों से खुद बनाऊंगा। मुझे पद मिला है, तो अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए मिला है। मैं अपने लिए अपने को चुनौती मानता हूँ। वक्त और जनता पर यह फैसला छोड़ता हूँॅॅू कि वह खुद मूल्यांकन कर, तय करे कि किसकी रेखा बड़ी है।
0 विंध्य में एक परंपरा है जो बडे पद पर पहुँच जाता है उसे विंध्य का शेर कहते हैं। विंध्य का सूरज आदि ऐसे संबोधन से लाद दिया जाता है। आप को ऐसे संबांेधन से अब तक नवाजा गया या नहीं?
00 मैं अपने आप को विंध्य की धरती का बेटा मानता हॅू। विंध्य का शेर जैसे विंध्या का सूरज आदि संबोधन मुझ पर सूट नहीं करता। मैं विंध्य का शेर होना भी नहीं चाहता।
0 श्री निवास तिवारी ने विंध्य की जनता को संजय गांधी अस्पताल दिये। आप विंध्य को क्या देना चाहंेगे?
00 विंध्य में यह देखने का मिला है कि, यहांँ कैंसर के मरीज बहुत हैं। तंबाखू के सेवन की वजह से कैंसर के मरीजों का पता तब चलता है जब,चैथे या फिर अंतिम स्टेज पर मरीज पहँुंच जाता है। हमने सभी माननीय विधायकों से आग्रह  किया है कि, वे सरकार पर दबाव बनाएं और यहाँं एक रिसर्च सेंटर खोला जाए। ताकि यहां के लोगों को अपने इलाज के लिए बाहर न जाना पड़े।
0 देवतलाब विधान सभा क्षेत्र को क्या देना चाहेंगे?
00 हमारी इच्छा है कि पर्यटन के क्षेत्र में देवतलाब का नाम हो। साथ ही यह प्रयास रहेगा कि, देवतलाब नगर पंचायत के साथ तहसील बन जाए। ताकि जनता को इसका लाभ मिल सके।
0 श्रीनिवास तिवारी के समय सत्ता का एक ही केन्द्र था, जिसे अमहिया सरकार कहते थे। क्या यह मान लिया जाए कि, विंध्य के स्पीकर की परंपरा का निर्वाह होगा या फिर आप दूसरी पार्टी से हैं, तो कुछ और होगा?
00 मंै ऐसी परंपरा पर विश्वास नहीं करता। यदि सत्ता का केन्द्र एक जगह करना होता, तो सारे विधायकों को अपने पास बुलाता। किसी भी विधायक या फिर सांसद से मिलने उनके निवास नहीं जाता।
0 हर राजनीतिक व्यक्ति का एक मुकाम होता है। क्या आपको लगता है कि आप की सियासी यात्रा पूरी हो गई?
00 विधान सभा अध्यक्ष बन जाना ही मेरी राजनीति का मुकाम नहीं है। मंै इसे पड़ाव मानता हॅू। राजनीतिक व्यक्ति की यात्रा सतत चलती रहती है। तब तक, जब तक वो चल सकता है। मेरा मानना है कि हर राजनीतिक व्यक्ति को सदैव जिज्ञासु और विद्यार्थी की भूमिका में रहना चाहिए। ताकि उसे सीखने का मौका मिलता रहे। अपनी राजनीतक यात्रा में भटक न सके।

 

छत्तीसगढ़ में हुए बड़े नरसंहार




छत्तीसगढ़ में कई नरसंहार अब तक हो चुके हैं। पहला नरसंहार 8 अक्टूबर 1998 को हुआ था। माओवादियों ने तर्रेम इलाके से गुजर रही पुलिस जवानों से भरी लॉरी और ठीक पीछे चल रही जीप को लैंड माइंस से उड़ा दिया था। इस हादसे में अठारह जवान शहीद हुए थे।  
23 मार्च नरायणपुर
बस्तर के नारायणपुर में 23 मार्च को नक्सलियों के विस्फोट से, एक बस में बैठकर अपने कैंप की ओर से लौट रहे 25 जवानों में से 5 जवान शहीद हो गये। सुकमा. 21 मार्च 2020
सुकमा जिले के चिंतागुफा इलाके में डीआरजी और एसटीएफ जवान सर्चिंग पर थे। एलमागुंडा के आसपास नक्सलियों के मौजूद होने की सूचना मिली थी। कोरजागुड़ा पहाड़ी के पास छिपे नक्सलियों ने चारों ओर से जवानों पर गोलियों की बौछार कर दी। जिससे 17 जवान शहीद हो गए थे।  
श्यामगिरी. 9 अप्रैल 2019
दंतेवाड़ा में 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान से ठीक पहले नक्सलियों ने चुनाव प्रचार के लिए जा रहे भाजपा विधायक भीमा मंडावी की कार पर हमला किया था। इस हमले में बीजेपी विधायक भीमा मंडावी के अलावा उनके चार सुरक्षा कर्मी भी मारे गए थे।
दुर्गपाल. 24 अप्रैल 2017
सुकमा जिले के दुर्रपाल के पास नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 25 जवान उस समय मारे गए थे। जब वे सड़क निर्माण में सुरक्षा के बीच खाना खा रहे थे।
दरभा. 25 मई 2013
बस्तर के दरभा घाटी में हुए माओवादी हमले में आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार पटेलए पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 लोग मारे गए थे।
धोड़ाई. 29 जून 2010
नारायणपुर जिले के धोड़ाई में सीआरपीएफ के जवानों पर माओवादियों के हमले में पुलिस के 27 जवान मारे गए।
दंतेवाड़ा. 17 मई 2010
एक यात्री बस में सवार हो कर दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे सुरक्षाबल के जवानों पर माओवादियों ने बारूदी सुरंग लगा कर हमला किया था। जिसमें 12 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 36 लोग मारे गए थे।
ताड़मेटला. 6 अप्रैल 2010
बस्तर के ताड़मेटला में सीआरपीएफ के जवान सर्चिंग से लौट कर आराम कर रहे थे। जहां   माओवादियों के बारुदी सुरंग में 76 जवान एक साथ शहीद हुए थे।
मदनवाड़ा. 12 जुलाई 2009
राजनांदगांव के मानपुर इलाके में माओवादियों के हमले की सूचना पा कर पहुंचे पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चैबे समेत 29 पुलिसकर्मियों पर माओवादियों ने हमला बोला और उनकी हत्या कर दी थी।
उरपलमेटा. 9 जुलाई 2007
एर्राबोर के उरपलमेटा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस का बल माओवादियों की तलाश कर के वापस बेस कैंप लौट रहा था। इस दल पर माओवादियों ने हमला कर दिया था। जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए।
रानीबोदली. 15 मार्च 2007
बीजापुर के रानीबोदली में पुलिस के एक कैंप पर आधी रात को नक्सलियों ने हमला किया था। भारी गोलीबारी की। कैंप को बाहर से आग लगा दिया। इस हमले में पुलिस के 55 जवान मारे गए थे।
 

लड़नी अब होगी लड़ाई

            
                   

दस दिनों में 27 जवानों के नरसंहार ने साबित कर दिया कि नरम उपाय नाकाम हो गए हैं। नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई लड़नी ही होगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल असम में वोट की राजनीति करते रहे और राज्य में नक्सली मौत का तांडव। सवाल यह है कि नक्सलियों से बातचीत का रास्ता खोलना चाहिए या फिर नक्सलवाद खात्मे के लिए हंट नहीं,हंटर चाहिए।  


0 रमेश कुमार ’रिपु’
            मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ढाई साल से दावा कर रहे हैं कि, माओवाद कमजोर हो गया हैं। नक्सली अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। जबकि मार्च 2020 में नक्सलियों के जाल में फंसकर 17 जवान शहीद हुए थे। 2021 में 23 मार्च को नरायणपुर में पांच जवान शहीद होने पर कहा था कि,जवानों की शहादत बेकार नहीं जायेगी। 3 अप्रैल 2021 को माओवादियों ने बीजापुर जिले के तर्रेम, सिलगेर के टेकलगुड़म और जोनागुड़ा में एंबुश लगाकर 23 जवानों की जानें ले ली। झीरम कांड की तरह नक्सलियों ने बर्बरता का परिचय दिया। जोनागुड़ा में शहीद सुरक्षा कर्मी की नक्सलियों ने हाथ काट कर ले गए। बीजापुर का यह नरसंहार अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। अब तक छत्तीसगढ़ में 1301 जवान शहीद हो चुके हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि, क्या नक्सलियों से बातचीत का रास्ता खोला जाना चाहिए या फिर ग्रीन हंट नहीं, हंटर चाहिए। अथवा सेना का उपयोग करना चाहिए। नक्सलवाद के खत्मे के लिए केन्द्र सरकार ने अतिरिक्त पांच बटालियन दी। तो क्या यह मान लिया जाए कि, आॅपरेशन में कोताही बरती जा रही है? नक्सलियों के इस नरसंहार से सवाल यह उठता है कि कांग्रेस नेता राजबब्बर राजीव गांधी कांग्रेस भवन में 2018 में कहा था कि, नक्सली क्रांतिकारी हैं। वे क्रांति करने निकले हैं। कोई उन्हें रोके नहीं।’ तो क्या मान लिया जाये कि, भूपेश सरकार ने नक्सलियों पर नकेल न लगे, इसलिए अपने घोषणा पत्र को दरकिनार कर अब तक नक्सली नीति नहीं बनाई?
माओ की संवेदनात्मक चाल
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि, जवानों की शहादत का बदला लिया जाएगा। इस पर नक्सलियों की केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने कहा कि जवानों की मौत के लिए केंद्र, राज्य सरकार और नार्थ ब्लॉक जिम्मेदार है। गृहमंत्री बताएं किस किस से बदला लेंगे। विभिन्न मुठभेड़ों में शहीद जवानों के परिजनों के प्रति संवेदना जताते हुए कहा, संगठन की लड़ाई जवानों से नहीं है। सरकार की ओर से हथियार उठाने की वजह से संगठन को उनसे लड़ना पड़ता है। जाहिर है कि, नक्सली लीडर अब संवेदनात्मक बातें करके सारा दोष सरकार पर मड़ना चाहते हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर निवासी कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मनहास को नक्सली लीडर हिड़मा अपने साथ ले गया है। ऐसा समझा जा रहा है कि, हिड़मा इस जवान को छोड़ने के लिए सरकार के सामने अपनी कोई मांग रख सकता है।  
कई सवाल उठ रहे हैं
गृहमंत्री अमित शाह ने इस हादसे की जांच के आदेश दिये हैं। बात साफ है कि सुरक्षा बल से इस बार भी चूक हुई है। फोर्स के बड़े अफसरों की प्लानिंग एग्जीक्यूशन ग्रांउड रिपोर्ट और इंटेलिजेंस की लापरवाही से यह नरसंहार हुआ है। जोनागुड़ा का क्षेत्र गुरिल्ला युद्ध के लिए जाना जाता है। कोबरा बटालियन इसमें माहिर है। ऐसे में यह हादिसा कैसे हो गया? हिड़मा की बटालियन नंम्बर एक आधुनिक हाथियारों से लैंस रहती है,जानकर भी हमले से पहले उसके व्यूह से कैसे बचना है,इसकी प्लानिंग क्यों नहीं की गई? झीरम कांड का मास्टर माइंड हिड़मा ने अपने होने की सूचना पुलिस तक फैलाई। पुलिस न अपने मुखबिरों से पता करने की कोशिश क्यों नहीं की? क्या हिड़मा के खिलाफ आॅपरेशन की जानकारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को थी? फौज के अफसर और पुलिस तक किसने खबर पहुंचाई कि नक्सली कमांडर हिड़मा भारी संख्या में नक्सली टेकलगुड़म और जोनागुड़ा में हैं? हैरानी वाली बात है कि सीआरपीएफ,कोबरा बाटालियन,पुलिस का खुफिया तंत्र और इंटेलिजेंस आदि को पता क्यों नहीं चला कि, करीब 700 नक्सली किसी बड़े हादसे की तैयारी कर रहे हैं?
हिड़मा पर 25 लाख का इनाम
इस नरसंहार का मास्टर माइंड मंडावी हिड़मा उर्फ इदमुल पोडियाम भीमा पर 25 लाख रूपये का इनाम है। हिड़मा सुकमा जिलेे के जगरगुडा इलाके के पुडअती गांव का निवासी है। इसकी दो शादी हुई है। इसकी दोनों पत्नियां नक्सली हैं। तीन भाई हैं। मांडवी देवा और मांडवी टुल्ला गांव में खेती करती हैं। तीसरा भाई मांडवी नंदा गांव में नक्सलियों का पढ़ाता है। बहन हिड़मा दोरनपाल में रहती है।
आॅपरेशन की कमांड नलिनी क्यों
इस नरसंहार के लिए पूरी तरह भूपेश सरकार और नक्सल आॅपरेशन के आई.जी नलिनी प्रभात अपनी जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकते। गृह मंत्रालय की राममोहन कमेटी ने ताड़मेटला कांड के लिए  नक्सल आॅपरेशन के आई.जी. नलिनी प्रभात, तत्कालीन सीआरपीएफ के आई जी रमेश चन्द्र,62 बटालियन के कमांडर ए. के. बिष्ट और इंस्पेक्टर संजीव बागड़े दोषी ठहराया था। बावजूद इसके नक्सल आॅपरेशन का दायित्व नलिनी प्रभात का सौंपा जाना अश्चर्य जनक है। ताड़मेटला कांड की जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार नक्सलियों के पास सीआरपीएफ का वायरलेस सेट था। इससे उन्हें फोर्स के मूवमेंट की पूरी जानकारी मिल रही थी। इसी के जरिए उन्हें फोर्स के चिंतलनार कैंप वापस लौटने की तारीख रास्ता और समय पता चल गया था। ऐसे ही 3 अप्रैल 2021 को बीजापुर के जोनागुड़ा में नक्सलियों ने सुनियोजित जानकारी देकर फोर्स को फंसाया। नक्सलियों ने अपनी लोकेशन खबरियों के हाथ अधिकारियों तक पहुंचाई। इसके बाद अधिकारियों ने जवानों को जोनागुड़ा पहुंचने के निर्देश दे दिए।
नक्सलियों ने दो चालें चली
नारायणपुर जिले में 23 मार्च 2021 को आईईडी ब्लास्ट कर पांच जवानों की जानें ली ली थी। पुलिस के पास खूफिया जानकारी थी कि, नक्सली 2021 में कोई बड़ा हमला करेंगे। इसलिए दो हजार जवान आॅपरेशन में भेजे गए थे। जबकि इसके पहले 17 मार्च को नक्सलियों ने विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि, वे जनता की भलाई के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने बातचीत के लिए तीन शर्तें भी रखी थीं। इनमें सशस्त्र बलों को हटाने, माओवादी संगठनों पर लगे प्रतिबंध हटाने और जेल में बंद उनके नेताओं की बिना शर्त रिहाई शामिल थीं। सरकार ने अपनी ओर से निःशर्त समझौता वार्ता की बात कही। कांग्रेस नेता छविन्द्र कर्मा दो माह पहले से कह रहे थे कि, नक्सली जब खामोश रहते हैं, तो वो कोई योजना पर काम कर रहे होते हैं।’’   
एंबुश को तोड़ नहीं पाए
सीआरपीएफ के सेकंड इन कमांड आॅफिसर संदीप कहते हंै,‘‘नक्सली लीडर हिड़मा और सुजाता ने एक बड़े हादिसे की प्लानिंग किये थे। सभी जवान बहादुरी से लड़े। आॅपरेशन करके जवान लौट रहे थे तभी नक्सलियों ने हमला बोला। जवानों के हर मूवमेंट की जानकारी गांव के लोग और महिलाएं नक्सलियों को दे रहे थे।’’ हैरानी वाली बात है कि,नक्सली कमांडर हिड़मा आॅपरेशन के लिए बीजापुर के तर्रेम से 760, उसूर से 200 पामेड से 195 सुकमा 483 एवं नरसापुर से 420 का बल रवाना  हुआ था। सीआरपीएफ डीआरजी जिला पुलिस बल और कोबरा बटालियन के जवानों की ज्वाइन पार्टी सर्चिंग पर निकली थी। सुरक्षा बलों ने पहले पामेड़ इलाके में नक्सलियों के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन प्लान किया था। लेकिन इसके बाद सुकमा,बीजापुर की सीमा पर जोनागुड़ा के पास बड़ी संख्या में नक्सलियों की मौजूदगी की जानकारी मिलने के बाद पामेड़ की जगह बीजापुर में ऑपरेशन लांच किया गया। 3 अप्रैल की दोपहर सील गिर के जंगल में घात लगाए 700 नक्सलियों ने पुलिस पार्टी को पहले भीतर तक आने दिया। तीनों से ओर उनके एंबुश में घेरने के बाद अचानक हमला कर दिया। पहला एंबुश पहाड़ी के पास लगाया गया। दूसरा जुन्ना गुड़ा गाँव में जबकि आगे करीब दो किलोमीटर पर तीसरा एंबुश लगाया था। कहां से और कैसे एंबुश तोड़ना है किसी को समझ में नहीं आया। वहीं बस्तर आई. जी. पी. सुदंरराज ने बताया कि अभी तक 9 नक्सलियों के मारे जाने की सूचना है। जबकि 15 से ज्यादा घायल हैं। राष्ट्रीय विशेष सुरक्षा सलाहकार विजय कुमार भी पिछले 10 दिनों से बस्तर में। उन्हें विशेष रूप से बस्तर में नक्सलवाद के खात्मे के लिए तैनात किया गया है। उनके रहते दो नक्सली वारदात हो गई।
झोपड़ियों से गोली बरसी
माओवदियों ने तीन तरफ से हमले का जाल बिछाया और जवान उसकी चलाकी को समझ नहीं पाए। जोनागुड़ा में नक्सलियों ने झोपड़ियों में घात लगाकर हमला किया। टेकलगुड़ा गांव में करीब 30 घर हैं,सभी को नक्सलियों ने खाली कराया और यहां से छिपकर हमला किये। दोनों जगह जवानों की लाशें बिछी रही। खून फैला हुआ था। पेड़ों पर गोलियों के निशान थे। तीन घंटे तक जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चली। घायल जवानों को पास से गोली मारी और बम से हमला किया।
बहरहाल कब तक बस्तर नक्सलियों के बारूद से दहलता रहेगा? कश्मीर की तरह छत्तीसगढ़ के नक्सलवाद को भी राष्ट्रीय मामला समझना जरूरी हो गया है। कैसे शांति स्थापित होगी छत्तीसगढ़ में इस दिशा में अब विचार करना जरूरी है।
 

 
 









गी ड़ाई
दस दिनों में 27 जवानों के नरसंहार ने साबित कर दिया कि नरम उपाय नाकाम हो गए हैं। नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई लड़नी ही होगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल असम में वोट की राजनीति करते रहे और राज्य में नक्सली मौत का तांडव। सवाल यह है कि नक्सलियों से बातचीत का रास्ता खोलना चाहिए या फिर नक्सलवाद खात्मे के लिए हंट नहीं,हंटर चाहिए।  
0 रमेश कुमार ’रिपु’
            मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ढाई साल से दावा कर रहे हैं कि, माओवाद कमजोर हो गया हैं। नक्सली अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। जबकि मार्च 2020 में नक्सलियों के जाल में फंसकर 17 जवान शहीद हुए थे। 2021 में 23 मार्च को नरायणपुर में पांच जवान शहीद होने पर कहा था कि,जवानों की शहादत बेकार नहीं जायेगी। 3 अप्रैल 2021 को माओवादियों ने बीजापुर जिले के तर्रेम, सिलगेर के टेकलगुड़म और जोनागुड़ा में एंबुश लगाकर 23 जवानों की जानें ले ली। झीरम कांड की तरह नक्सलियों ने बर्बरता का परिचय दिया। जोनागुड़ा में शहीद सुरक्षा कर्मी की नक्सलियों ने हाथ काट कर ले गए। बीजापुर का यह नरसंहार अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। अब तक छत्तीसगढ़ में 1301 जवान शहीद हो चुके हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि, क्या नक्सलियों से बातचीत का रास्ता खोला जाना चाहिए या फिर ग्रीन हंट नहीं, हंटर चाहिए। अथवा सेना का उपयोग करना चाहिए। नक्सलवाद के खत्मे के लिए केन्द्र सरकार ने अतिरिक्त पांच बटालियन दी। तो क्या यह मान लिया जाए कि, आॅपरेशन में कोताही बरती जा रही है? नक्सलियों के इस नरसंहार से सवाल यह उठता है कि कांग्रेस नेता राजबब्बर राजीव गांधी कांग्रेस भवन में 2018 में कहा था कि, नक्सली क्रांतिकारी हैं। वे क्रांति करने निकले हैं। कोई उन्हें रोके नहीं।’ तो क्या मान लिया जाये कि, भूपेश सरकार ने नक्सलियों पर नकेल न लगे, इसलिए अपने घोषणा पत्र को दरकिनार कर अब तक नक्सली नीति नहीं बनाई?
माओ की संवेदनात्मक चाल
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि, जवानों की शहादत का बदला लिया जाएगा। इस पर नक्सलियों की केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने कहा कि जवानों की मौत के लिए केंद्र, राज्य सरकार और नार्थ ब्लॉक जिम्मेदार है। गृहमंत्री बताएं किस किस से बदला लेंगे। विभिन्न मुठभेड़ों में शहीद जवानों के परिजनों के प्रति संवेदना जताते हुए कहा, संगठन की लड़ाई जवानों से नहीं है। सरकार की ओर से हथियार उठाने की वजह से संगठन को उनसे लड़ना पड़ता है। जाहिर है कि, नक्सली लीडर अब संवेदनात्मक बातें करके सारा दोष सरकार पर मड़ना चाहते हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर निवासी कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मनहास को नक्सली लीडर हिड़मा अपने साथ ले गया है। ऐसा समझा जा रहा है कि, हिड़मा इस जवान को छोड़ने के लिए सरकार के सामने अपनी कोई मांग रख सकता है।  
कई सवाल उठ रहे हैं
गृहमंत्री अमित शाह ने इस हादसे की जांच के आदेश दिये हैं। बात साफ है कि सुरक्षा बल से इस बार भी चूक हुई है। फोर्स के बड़े अफसरों की प्लानिंग एग्जीक्यूशन ग्रांउड रिपोर्ट और इंटेलिजेंस की लापरवाही से यह नरसंहार हुआ है। जोनागुड़ा का क्षेत्र गुरिल्ला युद्ध के लिए जाना जाता है। कोबरा बटालियन इसमें माहिर है। ऐसे में यह हादिसा कैसे हो गया? हिड़मा की बटालियन नंम्बर एक आधुनिक हाथियारों से लैंस रहती है,जानकर भी हमले से पहले उसके व्यूह से कैसे बचना है,इसकी प्लानिंग क्यों नहीं की गई? झीरम कांड का मास्टर माइंड हिड़मा ने अपने होने की सूचना पुलिस तक फैलाई। पुलिस न अपने मुखबिरों से पता करने की कोशिश क्यों नहीं की? क्या हिड़मा के खिलाफ आॅपरेशन की जानकारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को थी? फौज के अफसर और पुलिस तक किसने खबर पहुंचाई कि नक्सली कमांडर हिड़मा भारी संख्या में नक्सली टेकलगुड़म और जोनागुड़ा में हैं? हैरानी वाली बात है कि सीआरपीएफ,कोबरा बाटालियन,पुलिस का खुफिया तंत्र और इंटेलिजेंस आदि को पता क्यों नहीं चला कि, करीब 700 नक्सली किसी बड़े हादसे की तैयारी कर रहे हैं?
हिड़मा पर 25 लाख का इनाम
इस नरसंहार का मास्टर माइंड मंडावी हिड़मा उर्फ इदमुल पोडियाम भीमा पर 25 लाख रूपये का इनाम है। हिड़मा सुकमा जिलेे के जगरगुडा इलाके के पुडअती गांव का निवासी है। इसकी दो शादी हुई है। इसकी दोनों पत्नियां नक्सली हैं। तीन भाई हैं। मांडवी देवा और मांडवी टुल्ला गांव में खेती करती हैं। तीसरा भाई मांडवी नंदा गांव में नक्सलियों का पढ़ाता है। बहन हिड़मा दोरनपाल में रहती है।
आॅपरेशन की कमांड नलिनी क्यों
इस नरसंहार के लिए पूरी तरह भूपेश सरकार और नक्सल आॅपरेशन के आई.जी नलिनी प्रभात अपनी जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकते। गृह मंत्रालय की राममोहन कमेटी ने ताड़मेटला कांड के लिए  नक्सल आॅपरेशन के आई.जी. नलिनी प्रभात, तत्कालीन सीआरपीएफ के आई जी रमेश चन्द्र,62 बटालियन के कमांडर ए. के. बिष्ट और इंस्पेक्टर संजीव बागड़े दोषी ठहराया था। बावजूद इसके नक्सल आॅपरेशन का दायित्व नलिनी प्रभात का सौंपा जाना अश्चर्य जनक है। ताड़मेटला कांड की जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार नक्सलियों के पास सीआरपीएफ का वायरलेस सेट था। इससे उन्हें फोर्स के मूवमेंट की पूरी जानकारी मिल रही थी। इसी के जरिए उन्हें फोर्स के चिंतलनार कैंप वापस लौटने की तारीख रास्ता और समय पता चल गया था। ऐसे ही 3 अप्रैल 2021 को बीजापुर के जोनागुड़ा में नक्सलियों ने सुनियोजित जानकारी देकर फोर्स को फंसाया। नक्सलियों ने अपनी लोकेशन खबरियों के हाथ अधिकारियों तक पहुंचाई। इसके बाद अधिकारियों ने जवानों को जोनागुड़ा पहुंचने के निर्देश दे दिए।
नक्सलियों ने दो चालें चली
नारायणपुर जिले में 23 मार्च 2021 को आईईडी ब्लास्ट कर पांच जवानों की जानें ली ली थी। पुलिस के पास खूफिया जानकारी थी कि, नक्सली 2021 में कोई बड़ा हमला करेंगे। इसलिए दो हजार जवान आॅपरेशन में भेजे गए थे। जबकि इसके पहले 17 मार्च को नक्सलियों ने विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि, वे जनता की भलाई के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने बातचीत के लिए तीन शर्तें भी रखी थीं। इनमें सशस्त्र बलों को हटाने, माओवादी संगठनों पर लगे प्रतिबंध हटाने और जेल में बंद उनके नेताओं की बिना शर्त रिहाई शामिल थीं। सरकार ने अपनी ओर से निःशर्त समझौता वार्ता की बात कही। कांग्रेस नेता छविन्द्र कर्मा दो माह पहले से कह रहे थे कि, नक्सली जब खामोश रहते हैं, तो वो कोई योजना पर काम कर रहे होते हैं।’’   
एंबुश को तोड़ नहीं पाए
सीआरपीएफ के सेकंड इन कमांड आॅफिसर संदीप कहते हंै,‘‘नक्सली लीडर हिड़मा और सुजाता ने एक बड़े हादिसे की प्लानिंग किये थे। सभी जवान बहादुरी से लड़े। आॅपरेशन करके जवान लौट रहे थे तभी नक्सलियों ने हमला बोला। जवानों के हर मूवमेंट की जानकारी गांव के लोग और महिलाएं नक्सलियों को दे रहे थे।’’ हैरानी वाली बात है कि,नक्सली कमांडर हिड़मा आॅपरेशन के लिए बीजापुर के तर्रेम से 760, उसूर से 200 पामेड से 195 सुकमा 483 एवं नरसापुर से 420 का बल रवाना  हुआ था। सीआरपीएफ डीआरजी जिला पुलिस बल और कोबरा बटालियन के जवानों की ज्वाइन पार्टी सर्चिंग पर निकली थी। सुरक्षा बलों ने पहले पामेड़ इलाके में नक्सलियों के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन प्लान किया था। लेकिन इसके बाद सुकमा,बीजापुर की सीमा पर जोनागुड़ा के पास बड़ी संख्या में नक्सलियों की मौजूदगी की जानकारी मिलने के बाद पामेड़ की जगह बीजापुर में ऑपरेशन लांच किया गया। 3 अप्रैल की दोपहर सील गिर के जंगल में घात लगाए 700 नक्सलियों ने पुलिस पार्टी को पहले भीतर तक आने दिया। तीनों से ओर उनके एंबुश में घेरने के बाद अचानक हमला कर दिया। पहला एंबुश पहाड़ी के पास लगाया गया। दूसरा जुन्ना गुड़ा गाँव में जबकि आगे करीब दो किलोमीटर पर तीसरा एंबुश लगाया था। कहां से और कैसे एंबुश तोड़ना है किसी को समझ में नहीं आया। वहीं बस्तर आई. जी. पी. सुदंरराज ने बताया कि अभी तक 9 नक्सलियों के मारे जाने की सूचना है। जबकि 15 से ज्यादा घायल हैं। राष्ट्रीय विशेष सुरक्षा सलाहकार विजय कुमार भी पिछले 10 दिनों से बस्तर में। उन्हें विशेष रूप से बस्तर में नक्सलवाद के खात्मे के लिए तैनात किया गया है। उनके रहते दो नक्सली वारदात हो गई।
झोपड़ियों से गोली बरसी
माओवदियों ने तीन तरफ से हमले का जाल बिछाया और जवान उसकी चलाकी को समझ नहीं पाए। जोनागुड़ा में नक्सलियों ने झोपड़ियों में घात लगाकर हमला किया। टेकलगुड़ा गांव में करीब 30 घर हैं,सभी को नक्सलियों ने खाली कराया और यहां से छिपकर हमला किये। दोनों जगह जवानों की लाशें बिछी रही। खून फैला हुआ था। पेड़ों पर गोलियों के निशान थे। तीन घंटे तक जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चली। घायल जवानों को पास से गोली मारी और बम से हमला किया।
बहरहाल कब तक बस्तर नक्सलियों के बारूद से दहलता रहेगा? कश्मीर की तरह छत्तीसगढ़ के नक्सलवाद को भी राष्ट्रीय मामला समझना जरूरी हो गया है। कैसे शांति स्थापित होगी छत्तीसगढ़ में इस दिशा में अब विचार करना जरूरी है।