Monday, November 15, 2021

तिकड़म बाजों पर कटाक्ष

 ▪️तिकड़म बाजों पर कटाक्ष..

हिन्दी के अखबारों और पत्रिकाओं में व्यंग्य आज की ज़रूरत बन गए हैं। इसलिए इन्हें नज़र अंदाज़ करना या फिर हाशिए पर रखना घाटे का सौदा है। "पुरस्कार की उठावनी" व्यंग्य संग्रह की रचनाएं विभिन्न कालों में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अख़बारों में लिखे गए हैं। रचनाएं हास्य व्यंग्य शैली में स्थान,घटना और परिस्थिति के सापेक्ष हैं। बावजूद इसके कई रचनाओं को पढ़ने पर ध्यान घटना की ओर चला जाता है। कोरोना काॅल में लिखी गई रचना हो या  राजनीतिक,मानवीय संवेदनाएं और नैतिक मूल्यों के तिकड़म बाजों पर, हास्य अंदाज़ में तीखा कटाक्ष है।


'पुरस्कार की उठावनी' अरविंद तिवारी की चालीस रचनाओं का नया संग्रह है। ब्रिटिश जमाने के अच्छे पुलों को भ्रष्टाचार के लिए जर्जर बताने की जिस भाषा का इस्तेमाल इंजीनियर करते हैं,वो नेताओं को भी मात देते हैं। विधायक निधी की वाट कैसे लगती है पुल की तीन कथाएं बताती है। फिसड्डी होना बेहद अपमान जनक है, मगर एक पायदान ऊपर चढ़ जाने पर सुशासन के गदगद होने का सुख है ‘लास्ट बट वन‘। बेसिर पैर की कविता लिखने वाले कवियों पर कटाक्ष है ‘कवि की छत का पेड़’। आने वाले समय में बिजली उपभोक्ताओं की ज़्यादती से इंजीनियर अपने आप को कैसे बचाएंगे, उसे जान सकते हैं, बिजली विभाग का इंटरव्यूह रचना से।


रचनाओं में सहज टिपपणियों के बीच कई सूक्ति वाक्य उभरे हैं,‘‘जैसे वर्चुअल कार्यक्रम और इंस्पेक्टर मातादीन में, लोग आन लाइन का जिक्र ऐसे करते हैं, मानो लोक सेवा आयोग के चयन में पहले स्थान पर आये हैं। कोरोना काल की लव स्टोरी में, पचास हजार रुपए तोला वाला सोना खो जाए, तो नींद वाला सोना भी हराम हो जाता है। प्राइवेट रिजाॅर्ट के सरकारी मच्छर-जब पत्नी को पता चला कि मच्छर तक ब्लैकमेल के काम आ सकते हैं, तो उसे अपने पति पर गर्व हुआ। उसे उम्मीद हो गई कि किसी न किसी दिन उसके भरतार मंत्री जरूर बनेंगे। सरकार भी बड़े हवाई अड्डे को खलिस पब्लिक को लीज पर दे देती है और खुद जालू काका की तरह छोटे-छोटे अड्डो के विकास में जुट जाती है। एनसीआर का कटखना कुत्ता में मोहल्ला क्लीनिक को छोड़ों बड़े-बड़े कारपोरेट अस्पतालों में भी कुत्ते का रैबीज उपलब्ध नहीं है। आम आदमी कुत्ते में आर्ट नहीं देखता,पराली का जलना भी उसके लिए आर्ट नहीं है।


पुरस्कार की उठावनी निश्चिय तौर पर राष्ट्रीय मुद्दा है। पुरस्कारों की गरीबी उतनी अपमानजनक नहीं होती,जितना अपमान मित्रों के बार-बार इस गरीबी का जिक्र करने पर होता है। वरिष्ठ लेखक उस भारतीय भाषा की तरह हैं,जिसे आठवीं अनुसूची में स्थान अभी तक नहीं मिला। साहित्य जगत में पुरस्कार के लिए तरह-तरह की टांग खिंचाई की जाती है। जितने लेखक नहीं हैं, उतने नाम के पुरस्कार हैं। कोई पुरस्कार की बात करे तो बड़ी नम्रता से मित्र कह देते हैं, कि आप तो पुरस्कार से ऊपर उठ चुके हैं। यानी उसके यहां पुरस्कार की उठावनी हो चुकी है। छोटी राशि का सम्मान पाने वाले लेखकों पर करारा कटाक्ष है। पैसे वाली पार्टी का हो गया लेखक बनने के फायदे का अच्छा विश्लेषण है। संग्रह में सात व्यंग्य रचनाएं कारोना से जुड़ी हैं,लेकिन सभी की तासीर अलग-अलग है।


समाज के विभिन्न स्याह पक्षों,और व्यवस्थाओं के अलावा रोज की जिन्दगी पर सारी रचनाएं आईना दिखाती है। कुछ रचनाओं के शीर्षक सब कुछ अंदर की कथा को बयान कर देते हैं। जैसे-साहित्य की सीबीआई और ईडी,वह खुद कोरोना कैरियर हो गए,लोकतंत्र का सूचकांक,फागुन में कल्लो भाभी की पाती,नये साल की पहली मिसकाॅल,कुंए की मुंडेर पर मेढ़कआदि अलग-अलग ऊहापोहों से गुजरती रचनाओं की कई तस्वीरें हैं।


संग्रह के शीर्षक से यही लगता है कि अरविंद तिवारी किसी पुरस्कार के हक़दार हैं,लेकिन उनके समकालीन मित्रों ने उनके पुरस्कार की उठावनी कर दिये हैं। ऐसे तिकड़मी मित्रों पर उनकी यह किताब गहरा कटाक्ष करती है। बहरहाल हास्य रहित इस व्यंग्य संग्रह की मारक क्षमता राफैल जैसी है। सामान्य व्यंग्य रचनाओं से हटकर तीखी-मसालेदार पठनीय रचना है।

किताब - पुरस्कार की उठावनी

लेखक - अरविंद तिवारी

प्रकाशक - इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड

मूल्य - 250 रुपए

@रमेश कुमार ‘रिपु’


अपनी कहानी जैसे

 ▪️अपनी कहानी जैसी


मन्नू भंडारी बिलकुल अपनी कहानी जैसी थीं। जैसे उनकी कहानियों के पात्र शोर नहीं मचाते थे,नारे बाजी के हिमायती नहीं हैं,मूल्यों के प्रति सजग हैं और एक समग्र नजरिया रखते हैं,वैसी ही मन्नू भंडारी सारी जिन्दगी रहीं। कहानियों में नये तेवर,नये स्वाद और आडम्बर से परे के लिए हमेशा मन्नू जी जानी जायेंगी। राजेन्द्र यादव ने स्त्री विमर्श का जो स्वरूप हिन्दी जगत को दिया उससे अलहदा है मन्नू भंडारी की कहानियों की दुनिया में नारी। आज हिन्दी जगत में स्त्री लेखन को लेकर नारीवाद और अस्मिता विमर्श का बोलबाला है,लेकिन मन्नू भंडारी की कहानियांें में वो ग्लैमर और शोर-शराबा नहीं है। दरअसल उन्होंने जैसा जीवन जिया वैसी ही कहानियां गढ़ी। मन्नू जी अपनी कहानियों के जरिये हिन्दी जगत के पाठकों को हमेशा याद आयेंगी।