Wednesday, June 12, 2019

पर्यावरण की हत्या का ठेका


  पर्यावरण की हत्या का ठेका
बैलाडीला की खदान और पच्चीस हजार हरे पेड़ काटने का ठेका गौतम अडानी को दिये जाने से सियासी बवाल मचा हुआ है। सरकार का दावा है कि रमन सरकार ने यह आदेश दिया था। बस्तर के आदिवासी इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ठेका रद्द नहीं किये जाने पर अपनी जान देने की बात कहकर सरकार को सकते में डाल दिये हैं।

0 रमेश कुमार ’’रिपु’’
                      चलो छत्तीसगढ़ चलो। हरे पेड़ काटना है। गौतम अडानी को बैलाडीला की खदान और 25 हजार 400 पेड़ काटने का ठेका मिला हुआ है। आप बेरोजगार युवक हैं तो आइये। एक कुल्हाड़ी हरे पेड़ों पर चलाइये। पर्यावरण की हत्या में हम आगे नहीं आयेंगे। यही कहोगे तो उससे क्या अडानी का ठेका रद्द हो जायेगा? नहीं,न। तो फिर अपनी बेरोजगारी दूर करिये कुछ दिनों के लिए। ऐसी सियासी अपील विपक्ष इन दिनों भूपेश सरकार का मजाक उड़ाने के लिए कर रहा है।
दरअसल जब तक डाॅ रमन सिंह की सरकार थी कांग्रेस चीखती रही कि विकास के नाम पर हरे पेड़ों की बलि ली जा रही है। अब कांग्रेस की सरकार बैलाडीला की 13 नम्बर की खदान का ठेका अडानी को देकर विरोध को जाल में फंस गई है। यह अलग बात है कि सरकार 7 जून से सरकार के फैसले का विरोध कर रहे आदिवासियों के एक प्रतिनिधि मंडल की चार मांगों को स्वीकार कर आंदोलन की तपिश का कम करने की सियासी चाल चली गई है। प्रभावित क्षेत्र में वनों की कटाई पर तुरंत रोक लगेगी। वर्ष 2014 के फर्जी ग्राम सभा के आरोप की जांच कराई जाएगी। क्षेत्र में संचालित कार्यों पर तत्काल रोक लगाई जावेगी। राज्य सरकार की ओर से भारत सरकार को पत्र लिख कर जन भावनाओं की जानकारी दी जाएगी।
आदिवासी गुस्से में
दंतेवाड़ा से करीब 30 किलोमीटर दूर किरंदुल में 5000 से ज्यादा आदिवासी नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन(एनएमडीसी) के दफ्तर के बाहर डेरा डाले हुये हैं और बैलाडिला की पहाड़ियों पर हो रहे लौह,खनन का विरोध कर रहे हैं। इस खनन से यहां नंदीराज पहाड़ी के अस्तित्व पर संकट छा गया है जिसे गोंड, धुरवा, मुरिया और भतरा समेत दर्जनों आदिवासी समूह अपना देवता मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। यहां दो पहाड़ हैं। नन्दराज पहाड़ के सामने का पहाड़ पिटोरमेटा देवी का पहाड़ है। दोनों पहाड़ में भरमार लोह अयस्क है। जिसके लिए ही यह सौदा हुआ है। खदान की ऊंची पहाड़ियां सदाबहार हरे भरे पेड़ो से और वनोऔषधियों से भरी हुई थी। ये आदिवासी आसपास के 50 किलोमीटर के दायरे में फैले गांवों से पैदल चलकर किंरदुल पहुंचे है।दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा के गांवों से आये लोग तेज गर्मी और बारिश के बावजूद विरोध स्थल पर डटे हुये हैं। उनका कहना है कि अपने आराध्य देवता की प्रतीक इस पहाड़ी को खनन के लिये देने को वो तैयार नहीं हैं। यह पहली बार नहीं है कि खनिजों से समृद्ध पहाड़ को खोदने की तैयारी को आदिवासियों की आस्था का सामना करना पड़ा हो। उड़ीसा में बाक्साइट से भरी नियामगिरी की पहाड़ियों को भी स्थानीय डोंगरिया कोंध आदिवासियों ने अपने आंदोलन से बचाया। नियाम राजा कोंध आदिवासियों का देवता है और सुप्रीम कोर्ट ने इनके पक्ष में फैसला दिया।
भूपेश के समक्ष समस्या
भूपेश सरकार के समक्ष विकट समस्या है। यदि केन्द्र सरकार से पैसा चाहिए तो वो इतनी हिम्मत नहीं दिखा सकती कि अडानी का ठेका रद्द कर दे। वैसे बस्तर जाने के रास्ते में लाइन से पेड़ ऐसे बिछे और कटे हैं जैसे युद्ध में लाशें बिछ जाती हैं। रमन सरकार के समय भी एक लाख पेड़ काटे जा चुके हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बैलाडीला खदान अडानी को दिए जाने के मामले में कहा कि रमन बताएं कि वे अडानी को माइंस देने के पक्ष में हैं या नहीं। उन्होंने सफाई देते हुए कहा, पिछली सरकार के जो फैसले होते हैं उसे वर्तमान सरकार के अधिकारी तब तक कैरी ऑन करते हैं जब तक कोई नया फैसला नहीं हो जाए।
पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी
बैलाडीला पहाड़ में एनएमडीसी के खदान नम्बर 13 में खनन के खिलाफ आदिवासियों के जारी विरोध के बीच वन मंत्री मो अकबर ने दस्तावेज पेश करते हुए बताया कि वहां वृक्ष काटने की अनुमति जनवरी 2018 में तात्कालीन रमन सरकार ने दी थी। उनके खिलाफ लगाए जा रहे सभी आरोप झूठे हैं। कांग्रेस सरकार ने और राज्य वन मंत्रालय ने कोई भी अनुमति पर्यावरण को लेकर नहीं दी थी। सहमति पर्यावरण विभाग ने नहीं बल्कि, पर्यावरण संरक्षण बोर्ड ने दी थी। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण बोर्ड केंद्र सरकार की जल एवं वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम के तहत गठित एक स्वायतशासी संस्था है, जिसकी कार्रवाई अलग से चलती है। बोर्ड के फैसले अलग से होते हैं। चूंकि ये एक स्वतंत्र इकाई है इसलिए इनकी बैठकों में मंत्री शामिल नहीं होते। गौरतलब है कि पूरे मामले में अजीत जोगी और रमन सिंह ने राज्य सरकार पर अडानी को पर्यावरणीय स्वीकृति देने का आरोप लगाया है। रमन सिंह कहना था कि अप्रेल में मो. अकबर के वन मंत्रालय में वहां पर खनन की पर्यावरणीय स्वीकृति दी थी।
दोहरा मापदंड क्योंः उसेंडी
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा है कि राज्य सरकार दोहरा मापदंड अपनाकर गुमराह कर रही है। जल, जंगल और जमीन का मुद्दा आदिवासियों के लिए उनकी अस्मिता और आत्मा से जुड़ा मुद्दा है, जिसका भाजपा पूरा सम्मान व समर्थन करती है। वर्तमान सरकार इस खदान के पक्ष में नहीं थी तो अप्रैल 2019 में पर्यावरण विभाग ने अनुमति का विरोध क्यों नहीं किया। गौरतलब है कि अडानी को खदान का आवंटन बीजेपी सरकार के समय हुआ और दूसरी तरफ गिदौरी.पितौरी कोयला खदान का आवंटन राज्य सरकार के सीएसइबी को हुआ है। खनन का कार्य अडानी कंपनी को लोकसभा चुनाव के एक महीने पहले 848 रुपए प्रति टन के दर पर दिया गया है। मुख्यमंत्री बघेल यह स्पष्ट करें कि इतनी उच्च दर पर कोयला खदान का आवंटन अडानी कंपनी को क्यों किया गया। जबकि गार,े पलमा कोयला खदान बीजेपी सरकार ने लगभग 550 रुपए प्रति टन की दर से दी थी। सवाल यह है कि दोनों कोयला खदानों की दरों में इतना अंतर क्यों है।
पीछे नहीं हटेंगे:मंडावी
रमन सरकार ने पाँचवी अनुसूचित क्षेत्र को संविधान द्वारा मिले विशेष अधिकारों को दरकिनार करते हुए गौतम अडानी की कम्पनी को फायदा पहुुचाने के मकसद से आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन को योजनाबद्ध तरीके से तहस नहस करने का खाखा तैयार किया था। अब सात जून से बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले के पच्चीस हजार से अधिक आदिवासी विरोध में आंदोलनरत है। इस आंदोलन के समर्थन में बीजापुर विधायक और बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विक्रम शाह मंडावी ने लौह आयस्क खनन के विरोध में संघर्षरत आदिवासियों से वादा किया कि हिरोली स्थित पिटोम मेटा पहाड़ में बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा के आदिवासियों का देव स्थल है, आदिवासियों की आस्था के साथ किसी भी कंपनी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जायेगा। इस मसले पर प्रदेश और केंद्र की सरकार से बात करेंगे। जरूरी हुआ तो वे केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोलेंगे। बस्तर के आदिवासियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने देंगे।
मरना पसंद करूंगा: जोगी
पूर्व मुख्यमंत्री एवं जनता कंाग्रेस छत्तीसगढ़ जे के सुप्रीमों अजीत जोगी ने कहा,’मैं मरना पसंद करूंगा लेकिन भूपेश सरकार को अड़ानी को एक फावड़ा या कुदाल चलाने की अनुमति नहीं देने दूंगा।  सरकार बनने के पहले भूपेश कहते थे कि अडानी को एक भी खदान नहीं लेने दूंगा,सरकार बनने के बाद उसी अडानी को पांच खदानें दे दी।
आस्था से खिलवाड़ मंजूर नहीं
नंदराज पहाड़ को बचाने के लिए बैलाडीला में चल रहे आदिवासियों के आंदोलन के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम और नवनिर्वाचित सांसद दीपक बैज ने कहा, आदिवासियों की आस्था से खिलवाड़ सरकार और कोई भी न करे उनके लिए ठीक नहीं होगा। इसकी लड़ाई सड़क से संसद तक लड़ने में पीछे नहीं हटेंगे।
क्यों भड़कता है असंतोष
जमीन अधिग्रहण को लेकर बस्तर मे असंतोष आखिर बढ़ता क्यों है। जाहिर है कि सरकर की बेईमानी और आदिवासियों की समस्याओं को नजर अंदाज किया जाता है।  हर पार्टी की सरकार अपने राज में किसानों, ग्रामीणों और आदिवासियों को विकास की राह में अड़चन मानती आयी हैं। जमीन लेने से पहले न तो ईमानदारी से जनसुनवाई होती है और न ही भू स्वामियों को प्रोजेक्ट के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। इसके अलावा पर्यावरण नियमों की अनदेखी और कृषि क्षेत्र का विनाश लोगों की मुख्य शिकायत रहती है। इसीलिये जिस तरह 15 साल पहले लोहांडीगुडा में लोग जन सुनवाई के तरीके और पारदर्शिता न बरते जाने से भड़के थे, वही स्थिति किरंदुल में धरना दे रहे आदिवासियों की है। सवाल है कि दो सरकारी कंपनियों एनएमडीसी और सीएमडीसी छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का ज्वाइंट वेंचर होने के बावजूद आखिर निजी कंपनी अडानी ग्रुप को क्यों आमंत्रित किया गया। मई 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दंतेवाड़ा के पास डिलबिली में 24000 करोड़ रुपये के अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट का उद्घाटन किया। जिसका अभी तक कहीं नामोनिशान नहीं है। यह स्टील प्लांट सरकारी कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ओर से लगाया जाना है। लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण इस प्रोजेक्ट को यहां नहीं लगाया जा रहा। कहा जा रहा है कि किरंदुल में भी सड़क बनाने के नाम पर करीब 1 लाख पेड़ों को काटा जायेगा, जिससे विरोध के स्वर और ऊंचे हो गए हैं।
नक्सली उठाते हैं फायदा
दंतेवाड़ा में आदिवासी अपनी जमीन और देवता के लिये हाथों में तीर,कमान और कुल्हाड़ी लेकर डटे हैं और उनके सैंकड़ों साथी जनवादी गीत गा रहे है। सरकार इस धरने पर निगरानी के लिये ड्रोन की मदद ले रही है ताकि, संघर्ष में शामिल नक्सलियों की पहचान हो सके। बंगाल के नंदीग्राम और लालगढ़ से लेकर छत्तीसगढ़ के लोहांडीगुडा और दंतेवाड़ा और उड़ीसा के नियामगिरी से लेकर आंध्र प्रदेश के पोलावरम तक माओवादियों के लिये ऐसे आंदोलन अपनी पैठ बढ़ाने के लिए मुफीद होते हैं।
वरिष्ट पत्रिकार रमेश शर्मा कहते हैं,छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने सत्ता में वापसी के बाद टाटा के स्टील प्लांट के लिये ली गई किसानों की जमीन लौटाने का जो काम शुरू किया, उससे विश्वास का माहौल बन सकता था और यही रास्ता बस्तर में नक्सलवाद से लड़ने की दिशा में पहला कदम हैं। लेकिन ताजा घटना बताती है कि सरकार के सामने नये सिरे से विश्वास को बहाल करने की चुनौती है, जिसमें ड्रोन के बजाय ग्रामीणों से बातचीत कहीं बड़ा हथियार होगा’’।
नाम की तख्तियां हैं,पेड़ नहीं
राजधानी रायपुर से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जांजगीर चांपा जिला से 25 किलोमीटर दूर पामगढ़ विकास खंड और बलौदा वन परिक्षेत्र के तहत भैसो गांव में 10 हेक्टेयर जमीन पर जिधर भी नजर दौड़ाओ तो अफसरों,नेताओं और मंत्रियों के नाम की तख्तियां नजर आती है। लेकिन यह तख्ती लगी क्यों है,पूछने पर गांव के मोहन बघेल बताते हैं, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गांरंटी योजना के तहत यहां 11 हजार पौधे रोपे गए थे। इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने पौधा रोपकर किया था। इसके लिए शासन से 17.67 लाख रूपए खर्च किया गया था। कुछ ही दिनों बाद सभी पौधे सूख गए लेकिन, अधिकारियों की लगी तख्तियां हरियर छत्तीसगढ़ का मजाक उढ़ा रही हैं। इस गांव की कथा से अलग एक कथा और भी है।
पोस्टरों में हरियर छत्तीसगढ़
सरगुजा से बस्तर तक हरे हरे पेड़ों की लाशें बिछी हुई हैं। जगदलपुर नेशनल हाइवे के किनारे सैकड़ों पेड़ काट दिए गए हैं। इसी तरह बस्तर जिले मंे माचकोट वन परिक्षेत्र केे तहत पीरिया गाव में एनएमडीसी की पानी की पाइप लाइन बिछाने के लिए सबरी से नगरनार तक 24 किलोमीटर तक के रास्ते में चार हजार पेड़ काटे गए। पूरे बस्तर संभाग में लाखों पेड़ धराशाही कर दिए गए हैं। बावजूद इसके वन मंत्री का दावा है कि हरियर छत्तीसगढ़ है हमारा। सरकार कहती है जंगलों की सुरक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। पौधा रोपण कर जंगल बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। गौरतलब है कि इस साल गर्मी में बिलासपुर का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस था। जाहिर है कि हरियर छत्तीसगढ़ सिर्फ नारों और पोस्टरों पर दिख रहा है। हरियर छत्तीसगढ़ योजना के तहत रमन सरकार के समय 9000 करोड़ रूपए का वृक्षारोपण किया गया था,बावजूद इसके जंगलों का रकबा कम होना चैकाता है। 10 साल में 250 वर्ग किलोमीटर जंगल गायब हो गए है। सरगुजा से बस्तर तक अंधाधुंध विकास के नाम पर आधे से अधिक जंगल साफ हो गए हैं।
 
 

मरीज न बनें अस्पताल

    मरीज न बनें अस्पताल
आयुष्मान योजना से आगे की योजना को छत्तीसगढ़ सरकार उतारना चाहती हैं। ताकि अस्पताल मरीज न बनें। सरकार को सबके सेहत की चिंता है,इसलिए डेढ़ साल के भीतर सभी 27 जिला अस्पतालों को मल्टी स्पेशियलिटी बनाया जाएगा। आयुष्मान योजना में ऐसी कई बीमारियां है, जिनका इलाज नहीं है। और इस योजना का लाभ मरीजों को भर्ती होने के बाद मिलता है। जबकि इससे बेहतर कई योजनाएं प्रदेश में संचालित हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस.सिंह देव से बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था की अंतहीन पीड़ा और स्वास्थ्य को लेकर रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘ ने उनसे बातचीत की,जिसके प्रमुख अंश -

0 प्रदेश सरकार आयुष्मान योजना को केरल,ओड़िसा,दिल्ली सरकार की तरह क्या इसलिए बंद करना चाहती है इसलिए कि यह केन्द्र की बीजेपी सरकार की योजना है?
00 छत्तीसगढ़ में अभी आयुष्मान योजना बंद नहीं की जा रही है। बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में आयुष्मान पांच लाख रूपये तक का उपचार नहीं कर रही है। छत्तीसगढ़ सरकार के पास आयुष्मान योजना से आगे जाने की योजना है। इसे राजनीतिक रंग देकर लोग देख रहे हैं कि बीजेपी की योजना है इसलिए इसे बंद किया जा रहा है। जबकि ऐसा नहीं है। आयुष्मान योजना को देश की पांच सरकारों ने नहीं स्वीकारा। उनका कहना है कि हमारे यहां इससे बेहतर योजनायें है। प्रदेश सरकार के पास भी इससे अच्छी योजनायें हैं। संजीवनी सहायता कोष जैसी योजनाएं संचालित हैं।
0 कई जिला अस्पताल खुद बीमार हैं। उनके उपचार की दिशा में क्या करने जा रहे हैं?
00 वर्तमान में कई अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सक तो हैं लेकिन, जरुरी संसाधनों की कमी है। इसलिए प्रदेश के सभी 27 जिला अस्पतालों को मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल में अपग्रेड किया जाएगा। इसके अलावा सभी 6 मेडिकल कॉलेजों को सुपर स्पेशियलिटी बनाया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है। योजना के मुताबिक अगले डेढ़ साल में इन अस्पतालों को नई सुविधाओं से लैंस कर दिया जाएगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि ताकि स्वास्थ व्यवस्थायें दुरूस्त हो सकंे। ऐसा होने से सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में भी मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा।   
0 आयुष्मान योजना को अन्य योजनाओं से बेहतर बताया जा रहा है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर खामियां क्या है?
00 छत्तीसगढ़ में आयुष्मान योजना केवल 42-43 लाख नागरिकों को ही कव्हर्ड करता है। 17-18 लाख इसके दायरे में नहीं आते। जबकि सबको स्वास्थ्य सुविधा मिलनी चाहिए। यूपीए सरकार के समय प्रधान मंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 50 हजार रूपये तक के इलाज की व्यवस्था थी। पहले 300 रूपये में स्वास्थ्य बीमा होता था, आज 11 सौ रूपये लगते है। जाहिर है कि बीमा कंपनियों के माध्यम से टैक्स पेमेंट दूसरी जगह जा रहा है। 11 सौ रूपये के प्रीमियम पर 50 हजार रूपये तक के इलाज की सुविधा है। जिसमें 60 फीसदी केन्द्र सरकार देती है और 40 फीसदी राशि राज्य सरकार। 50 हजार रूपये के उपचार में छत्तीसगढ़ सरकार ट्रस्ट माॅडल के तहत पेमेंट कर रही है। दरअसल आयुष्मान योजना के संदर्भ में कइयों को जानकारी नहीं है। इस योजना में कई खामियां है। इस योजना में मरीजों को फायदा,उसके भर्ती होने के बाद मिलता है। यानी भर्ती होने से पहले जितनी भी जांचे हैं मसलन,एक्सरे,ब्लड जांच,सोनोग्राफी आदि जांच के लिए मरीज को भर्ती से पहले खुद पेमेंट करना पड़ेगा। जाहिर सी बात है कि हर मरीज तो भर्ती नहीं होता। एक जानकारी के अनुसार 70-86 फीसदी लोग भर्ती नहीं होते। दूसरी ओर आयुष्मान योजना में ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनका इलाज नहीं है। गेंगरीन के आॅपरेशन की व्यवस्था है, लेकिन शुगर का नहीं होगा। आयुष्मान योजना में 13 सौ बीमारी के उपचार की व्यवस्था है लेकिन, पांच लाख से ऊपर के इलाज की व्यवस्था नहीं है। 
0 तो क्या आयुष्मान योजना 13 सौ बीमारियों का इलाज जुमला है। यह केवल मन की बातें और प्रचार तक ही सीमित है?
00 एक हद तक यह जुमला ही है। आयुष्मान में 10 करोड़ परिवार को इंगित किया गया है।  50 करोड़ लोग इसके दायरे में आयेंगे। लेकिन 70 करोड़ लोगों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। इसकी अपनी सीमा है। छत्तीसगढ़ में पचास हजार के ऊपर के उपचार में केन्द्र सरकार का कोई योगदान नहीं है। यह केवल मन की बातें और प्रचार तक आयुष्मान योजना उपस्थित है। सबको स्वास्थ्य का लाभ मिल सके और बीमार अस्पताल का भी इलाज हो सके, इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार ने स्वास्थ्य विभाग की बेहतरी के लिए बेहतर योजनाओं पर काम कर रही है। प्रदेश की संजीवनी सहायता कोष से 30 बीमारियों का इलाज होता है। हाॅर्ट की बीमारी के लिए डेढ़ लाख,किडनी ट्रांसप्लांट के लिए तीन लाख रूपये की सहायता मिलती है।
0 क्या यह मान लिया जाये कि अयुष्मान योजना का विकल्प है सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल?
00 आयुष्मान योजना की कल्पना है निःशुल्क उपचार। लेकिन उसकी अपनी एक सीमा है। हम उस सीमा से आगे जाकर सबको स्वास्थ्य लाभ देना चाहते हैं। पांच लाख से ऊपर जाने की चुनौती है। हार्ट,लीवर आदि के ट्रांसप्लांट की व्यवस्था हो, यह चाहते हैं। सुपर स्पेशियलिटी में न्यूरो सर्जरी, न्यूरो लाजिस्ट कार्डियक नेफ्रो, सर्जरी, पीडियाट्रिक, आंतों समेत सभी बड़ी बीमारियों के विशेषज्ञ और सर्जरी की मशीनरी के साथ डाॅक्टर भी उपलब्ध रहेंगे। मल्टी स्पेशियलिटी मेडिसिन, सर्जरी पीडियाट्रिक,और हड्डी रोग विशेषज्ञ जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। प्रदेश में अभी एक मात्र सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल डीकेएस रायपुर में है। योजना के मुताबिक अगले डेढ़ साल में 6 मेडिकल कॉलेजों में मिलेगी सुपर स्पेशियलिटी सुविधा। जिला अस्पतालों में ट्राॅमा सेंटर से लेकर तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
0 मेडिकल काॅलेजों में मरीजों का रिकार्ड रखने को क्यों कहा गया है।
00 दरअसल मेडिकल काॅलेज में हर तरह के मरीज आते है। ओपीडी में जितने भी रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं,उनके नाम और बीमारी की जानकारी हर हफ्ते मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध कराई जाएगी। हर महीने इसकी समीक्षा कर यह पता लगाया जाएगा कि जिस बीमारी का उपचार प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में हो सकता है, उसके लिए मरीज मेडिकल कॉलेज क्यों आ रहे हैं।
0 छत्तीसगढ़ में एक चिकित्सक पर 25 हजार मरीजों के उपचार का दायित्व है। ऐसी स्थिति मंे नया छत्तीसगढ़ गढ़बों का नारा कितना असरकारक है।
00 इससे इंकार नहीं है कि चिकित्सकों और विशेषज्ञों की कमी है। सभी जिलों में चिकित्सकों की भर्ती चल रही है। अभी हमारे पास मात्र 132 स्पेशलिस्ट है। जबकि 1500 चाहिए। 800 मेडिकल आॅफीसर की कमी है। 300 मेडिकल आॅफीसर के पद भरे जायेंगे। 425 पद खाली हैं। जिसमें 345 चिकित्सकों के इंटरव्यू के लिए आये हैं। इनकी पोस्टिंग के बाद 600 और मेडिकल आॅफीसर की भर्ती के इश्तिहार निकाले जायेंगे। बेहतर पैकेज दिये जायेंगे। मेडिकल काॅलेज से हर साल एक हजार चिकित्सक निकल रहे हैं। ऐसी नीतियां बनायेंगे कि हर चिकित्सक को दो साल ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकीय सेवा देना अनिवार्य है।
0 पिछले 10-15 सालों में डेढ़ हजार चिकित्सक इस्तीफा दे चुके हैं। दो हजार पद रिक्त हैं। ऐसी स्थिति में क्या सरकारी अस्पतालों को निजी हाथों में दे देना चाहिए? 
00 सवाल यह है कि क्या निजी चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में जाना पसंद करेंगे। सरकारी नौकरी हर कोई चाहता है। फिर सवाल यह है कि कोई निजी क्षेत्रों में भागकर जो चिकित्सक काम कर रहे हैं वो सरकारी आस्पताल में काम क्यों नहीं करना चाहते। यदि निजी क्षेत्र के चिकित्सक सरकारी अस्पतालों में काम करने को इच्छुक हैं तो आयें। उनका स्वागत है। सरकार उन्हें सवा लाख,दो लाख और ढाई लाख का पेकेज देने को तैयार है। आपको बता दें कि बीजापुर कैंपस में हमारे यहां के प्रतिनिधि गये। उन्होने देखा कि लखनऊ के चिकित्सक वहां काम कर रहे हैं। जब बाहर के लोग यहां काम कर सकते हैं तो फिर यहां क्यों नहीं। दक्षिण भारत के हर जिले में मेेडिकल काॅलेज हैं। एमीबीएस चिकित्सक 20-30 हजार रूपये के वेतन पर काम कर रहे हैं। चुनाव के बाद दक्षिण भारत के कैंपेस में जाकर हम ऐसे चिकित्सकों को आमंत्रित करेंगे। उन्हें वहां से अधिक पैकेज देंगे। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी को इस तरह दूर करने की योजना है। जो स्पेशलिस्ट डाॅक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में हैं उनकी पोस्टिंग जिला चिकित्सालय में की जायेगी। कांग्रेस के घोषणा पत्र में जिक्र है नर्सो की वेतन विसंगतियों को दूर करना।
0 चिकित्सा के क्षेत्र में सरकार की और क्या योजनायें हैं।
00 मिनी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पीएचसी में अभी दो का स्टाफ होता है। लेकिन इसमें दो स्टाफ और बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। इस तरह दो अतिरिक्त स्टॉफ के साथ इसे 24 घंटे सातों दिन खुला रखने पर विचार किया जा रहा है। पिछले साल भवनहीन अस्पतालों के लिए 900 भवन तैयार किये गये। जहां खनिज से पैसा आ रहा है,उन पैसों का इस्तेमाल वहीं पर चिकित्सा क्षेत्रों में किया जायेगा।
0 पिछले दिनों प्रधान मंत्री ने कहा छत्तीसगढ़ सरकार आयुष्मान योजना का बेहतर क्रियान्वयन नहीं कर रही है। क्या यह सच है।
00 मुझे लगता है कि नेशनल हेल्थ अथाॅरिटी को आंकड़ों की जानकारी है,लेकिन प्रधान मंत्री को नहीं है। इसलिए वे गलत बयानी कर गये छत्तीसगढ़ में। नेशनल हेल्थ अथॉरिटी द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ आयुष्मान योजना के क्रियान्वयन पर देश में पहले नंबर पर है। छत्तीसगढ़ में एक लाख में 95 लोगों का इलाज आयुष्मान योजना के द्वारा संभव हुआ है। केंद्र सरकार की नेशनल हेल्थ अथॉरिटी द्वारा जारी किये गये आंकड़े यह बताते हैं कि दूसरे नंबर पर देश में जो राज्य है वहां एक लाख में सिर्फ 26 लोगों का इलाज आयुष्मान योजना से हो पा रहा है।
 

पानी में जले जिन्दगी..

पानी में जले जिन्दगी..
जल,जमीन और जंगल की लड़ाई छत्तीसगढ़ में सिर्फ आदिवासी लड़ रहे हैं। सरकार तीनों पर अपना अधिपत्य मानती है। उद्योगपति सरकार में बैठे लोगों को रेड कारपोरेट पर चला कर, सब तरीके का ठेका पा जाते है। साढ़े तीन दशक से नक्सली और आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं। अब स्थिति यह हो गई है कि जल संकट, नक्सली समस्या से बड़ी समस्या बन गई है। इसलिए कि नदियों का पानी उद्योगों ने निचोड़ लिया। तालाबों की जान बिल्डरों ने ले ली। नतीजा पानी का हाहाकार। राजधानी रायपुर से लेकर गांवों तक है। पानी की प्राथमिकता अब रोटी,कपड़ा और मकान से अधिक है। क्यों कि एक तरफ धरती प्यासी है, तो दूसरी ओर लोग प्यासे हैं।
धरती के पेट में पानी नहीं है। जो पानी है बिजली वालों को मुफ्त रमन सरकार दे दी। करोड़ों का पानी पी गये उद्योगपति। आंकड़े बोलते हैं। मेसर्स जायसवाल निको लि. पर 59.44 लाख,मेसर्स मोनेट इस्पात एंड एनर्जी लि. पर 8 करोड़ 45 लाख,सी.एस आई डी सीपर 8 करोड़ 61 लाख,एस के एस इस्पात एंड पॅावर लिं. पर 8 करोड़ 72 लाख,मेसर्स सारडा एनर्जी एंड मिनरल लिं. पर 1 करोड़ 8 लाख बकाया है। रायगढ़ जिले के पांच उद्योगों पर पचास करोड़ रुपए का जलकर बकाया है। इनमें इंड सिनर्जी लिमिटेड कोटमार पर 43 करोड़ 37 लाख, एमएसटी पावर पर 15 लाख 73 हजार, रुक्मणी पावर पर तीन लाख 55 हजार, जिंदल पावर तमनार पर एक करोड़ 41 लाख रुपए और अंजनी स्टील पर पांच करोड़ 51 लाख रुपए की राशि बकाया है। कोरबा के बाल्को नगर में स्थित वेदांता कंपनी लिमिटेड के 540 मेगावाट पावर प्लांट में करीब 6 करोड़ का पानी मुफ्त पी गया।
बस्तर में विकास का सच यह है कि हर साल सैकड़ों आदिवासी जहरीले पानी के कारण मरते हैं। बस्तर में 92, कोंडागांव में 40 कांकेर में 57, बीजापुर में 6 बस्तियों के लोग आज भी फ्लोराइड युक्त पानी पी रहे है। बीजापुर में 31 कस्बों के हजारों ग्रामीण फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं। भोपालपटनम के गेर्रागुड़ा गांव में फ्लोराईड युक्त पानी पीकर बच्चों के दांत खराब हो गए हैं। गरियाबंद, देवभोग का सुपेबड़ा गांव में बीते पांच साल में 54 मौतें किडनी फेल होने से हो चुकी। ये सरकारी आंकड़ा है। 231 ग्रामीण किडनी रोग पीड़ित हैं। नए केस भी आ रहे हैं। लेकिन अब तक ग्रामीणों को साफ पानी मुहैया नहीं कराया जा सका। जबकि ये प्रमाणित हो चुका है कि गांव के पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से ग्रामीण किडनी रोगी हो रहे हैं।
कांकेर जिले के अनेक गांवों में ग्रामीण नदियों में बालू को हटाकर गड्ढा कर घंटों इंतजार करते हैं पानी का। पानी रिस रिस कर जब गड्ढे में भर जाता है तो कटोरे से बाल्टी में भरते हैं। कई गांवों में खेतों में गड्ढा कर पानी के लिए ऐसी ही प्रक्रिया अपना रखे हैं।जल के लिए जिंदगी जल रही है। जंगल है तो पानी है। पानी है तो दुनिया है। जंगल कटेंगे तो पानी कहां से मिलेगा। यह तो सरकार में बैठे लोगों को सोचना चाहिए। उन्हें तो उद्योगपति बिसलरी भेज देंगे। लेकिन आदिवासी की किस्मत में तो आर्सेनिक जल या फिर गंदा पानी है।