पर्यावरण की हत्या का ठेका
बैलाडीला की खदान और पच्चीस हजार हरे पेड़ काटने का ठेका गौतम अडानी को दिये जाने से सियासी बवाल मचा हुआ है। सरकार का दावा है कि रमन सरकार ने यह आदेश दिया था। बस्तर के आदिवासी इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ठेका रद्द नहीं किये जाने पर अपनी जान देने की बात कहकर सरकार को सकते में डाल दिये हैं।
0 रमेश कुमार ’’रिपु’’
चलो छत्तीसगढ़ चलो। हरे पेड़ काटना है। गौतम अडानी को बैलाडीला की खदान और 25 हजार 400 पेड़ काटने का ठेका मिला हुआ है। आप बेरोजगार युवक हैं तो आइये। एक कुल्हाड़ी हरे पेड़ों पर चलाइये। पर्यावरण की हत्या में हम आगे नहीं आयेंगे। यही कहोगे तो उससे क्या अडानी का ठेका रद्द हो जायेगा? नहीं,न। तो फिर अपनी बेरोजगारी दूर करिये कुछ दिनों के लिए। ऐसी सियासी अपील विपक्ष इन दिनों भूपेश सरकार का मजाक उड़ाने के लिए कर रहा है।
दरअसल जब तक डाॅ रमन सिंह की सरकार थी कांग्रेस चीखती रही कि विकास के नाम पर हरे पेड़ों की बलि ली जा रही है। अब कांग्रेस की सरकार बैलाडीला की 13 नम्बर की खदान का ठेका अडानी को देकर विरोध को जाल में फंस गई है। यह अलग बात है कि सरकार 7 जून से सरकार के फैसले का विरोध कर रहे आदिवासियों के एक प्रतिनिधि मंडल की चार मांगों को स्वीकार कर आंदोलन की तपिश का कम करने की सियासी चाल चली गई है। प्रभावित क्षेत्र में वनों की कटाई पर तुरंत रोक लगेगी। वर्ष 2014 के फर्जी ग्राम सभा के आरोप की जांच कराई जाएगी। क्षेत्र में संचालित कार्यों पर तत्काल रोक लगाई जावेगी। राज्य सरकार की ओर से भारत सरकार को पत्र लिख कर जन भावनाओं की जानकारी दी जाएगी।
आदिवासी गुस्से में
दंतेवाड़ा से करीब 30 किलोमीटर दूर किरंदुल में 5000 से ज्यादा आदिवासी नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन(एनएमडीसी) के दफ्तर के बाहर डेरा डाले हुये हैं और बैलाडिला की पहाड़ियों पर हो रहे लौह,खनन का विरोध कर रहे हैं। इस खनन से यहां नंदीराज पहाड़ी के अस्तित्व पर संकट छा गया है जिसे गोंड, धुरवा, मुरिया और भतरा समेत दर्जनों आदिवासी समूह अपना देवता मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। यहां दो पहाड़ हैं। नन्दराज पहाड़ के सामने का पहाड़ पिटोरमेटा देवी का पहाड़ है। दोनों पहाड़ में भरमार लोह अयस्क है। जिसके लिए ही यह सौदा हुआ है। खदान की ऊंची पहाड़ियां सदाबहार हरे भरे पेड़ो से और वनोऔषधियों से भरी हुई थी। ये आदिवासी आसपास के 50 किलोमीटर के दायरे में फैले गांवों से पैदल चलकर किंरदुल पहुंचे है।दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा के गांवों से आये लोग तेज गर्मी और बारिश के बावजूद विरोध स्थल पर डटे हुये हैं। उनका कहना है कि अपने आराध्य देवता की प्रतीक इस पहाड़ी को खनन के लिये देने को वो तैयार नहीं हैं। यह पहली बार नहीं है कि खनिजों से समृद्ध पहाड़ को खोदने की तैयारी को आदिवासियों की आस्था का सामना करना पड़ा हो। उड़ीसा में बाक्साइट से भरी नियामगिरी की पहाड़ियों को भी स्थानीय डोंगरिया कोंध आदिवासियों ने अपने आंदोलन से बचाया। नियाम राजा कोंध आदिवासियों का देवता है और सुप्रीम कोर्ट ने इनके पक्ष में फैसला दिया।
भूपेश के समक्ष समस्या
भूपेश सरकार के समक्ष विकट समस्या है। यदि केन्द्र सरकार से पैसा चाहिए तो वो इतनी हिम्मत नहीं दिखा सकती कि अडानी का ठेका रद्द कर दे। वैसे बस्तर जाने के रास्ते में लाइन से पेड़ ऐसे बिछे और कटे हैं जैसे युद्ध में लाशें बिछ जाती हैं। रमन सरकार के समय भी एक लाख पेड़ काटे जा चुके हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बैलाडीला खदान अडानी को दिए जाने के मामले में कहा कि रमन बताएं कि वे अडानी को माइंस देने के पक्ष में हैं या नहीं। उन्होंने सफाई देते हुए कहा, पिछली सरकार के जो फैसले होते हैं उसे वर्तमान सरकार के अधिकारी तब तक कैरी ऑन करते हैं जब तक कोई नया फैसला नहीं हो जाए।
पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी
बैलाडीला पहाड़ में एनएमडीसी के खदान नम्बर 13 में खनन के खिलाफ आदिवासियों के जारी विरोध के बीच वन मंत्री मो अकबर ने दस्तावेज पेश करते हुए बताया कि वहां वृक्ष काटने की अनुमति जनवरी 2018 में तात्कालीन रमन सरकार ने दी थी। उनके खिलाफ लगाए जा रहे सभी आरोप झूठे हैं। कांग्रेस सरकार ने और राज्य वन मंत्रालय ने कोई भी अनुमति पर्यावरण को लेकर नहीं दी थी। सहमति पर्यावरण विभाग ने नहीं बल्कि, पर्यावरण संरक्षण बोर्ड ने दी थी। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण बोर्ड केंद्र सरकार की जल एवं वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम के तहत गठित एक स्वायतशासी संस्था है, जिसकी कार्रवाई अलग से चलती है। बोर्ड के फैसले अलग से होते हैं। चूंकि ये एक स्वतंत्र इकाई है इसलिए इनकी बैठकों में मंत्री शामिल नहीं होते। गौरतलब है कि पूरे मामले में अजीत जोगी और रमन सिंह ने राज्य सरकार पर अडानी को पर्यावरणीय स्वीकृति देने का आरोप लगाया है। रमन सिंह कहना था कि अप्रेल में मो. अकबर के वन मंत्रालय में वहां पर खनन की पर्यावरणीय स्वीकृति दी थी।
दोहरा मापदंड क्योंः उसेंडी
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा है कि राज्य सरकार दोहरा मापदंड अपनाकर गुमराह कर रही है। जल, जंगल और जमीन का मुद्दा आदिवासियों के लिए उनकी अस्मिता और आत्मा से जुड़ा मुद्दा है, जिसका भाजपा पूरा सम्मान व समर्थन करती है। वर्तमान सरकार इस खदान के पक्ष में नहीं थी तो अप्रैल 2019 में पर्यावरण विभाग ने अनुमति का विरोध क्यों नहीं किया। गौरतलब है कि अडानी को खदान का आवंटन बीजेपी सरकार के समय हुआ और दूसरी तरफ गिदौरी.पितौरी कोयला खदान का आवंटन राज्य सरकार के सीएसइबी को हुआ है। खनन का कार्य अडानी कंपनी को लोकसभा चुनाव के एक महीने पहले 848 रुपए प्रति टन के दर पर दिया गया है। मुख्यमंत्री बघेल यह स्पष्ट करें कि इतनी उच्च दर पर कोयला खदान का आवंटन अडानी कंपनी को क्यों किया गया। जबकि गार,े पलमा कोयला खदान बीजेपी सरकार ने लगभग 550 रुपए प्रति टन की दर से दी थी। सवाल यह है कि दोनों कोयला खदानों की दरों में इतना अंतर क्यों है।
पीछे नहीं हटेंगे:मंडावी
रमन सरकार ने पाँचवी अनुसूचित क्षेत्र को संविधान द्वारा मिले विशेष अधिकारों को दरकिनार करते हुए गौतम अडानी की कम्पनी को फायदा पहुुचाने के मकसद से आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन को योजनाबद्ध तरीके से तहस नहस करने का खाखा तैयार किया था। अब सात जून से बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले के पच्चीस हजार से अधिक आदिवासी विरोध में आंदोलनरत है। इस आंदोलन के समर्थन में बीजापुर विधायक और बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विक्रम शाह मंडावी ने लौह आयस्क खनन के विरोध में संघर्षरत आदिवासियों से वादा किया कि हिरोली स्थित पिटोम मेटा पहाड़ में बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा के आदिवासियों का देव स्थल है, आदिवासियों की आस्था के साथ किसी भी कंपनी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जायेगा। इस मसले पर प्रदेश और केंद्र की सरकार से बात करेंगे। जरूरी हुआ तो वे केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोलेंगे। बस्तर के आदिवासियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने देंगे।
मरना पसंद करूंगा: जोगी
पूर्व मुख्यमंत्री एवं जनता कंाग्रेस छत्तीसगढ़ जे के सुप्रीमों अजीत जोगी ने कहा,’मैं मरना पसंद करूंगा लेकिन भूपेश सरकार को अड़ानी को एक फावड़ा या कुदाल चलाने की अनुमति नहीं देने दूंगा। सरकार बनने के पहले भूपेश कहते थे कि अडानी को एक भी खदान नहीं लेने दूंगा,सरकार बनने के बाद उसी अडानी को पांच खदानें दे दी।
आस्था से खिलवाड़ मंजूर नहीं
नंदराज पहाड़ को बचाने के लिए बैलाडीला में चल रहे आदिवासियों के आंदोलन के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम और नवनिर्वाचित सांसद दीपक बैज ने कहा, आदिवासियों की आस्था से खिलवाड़ सरकार और कोई भी न करे उनके लिए ठीक नहीं होगा। इसकी लड़ाई सड़क से संसद तक लड़ने में पीछे नहीं हटेंगे।
क्यों भड़कता है असंतोष
जमीन अधिग्रहण को लेकर बस्तर मे असंतोष आखिर बढ़ता क्यों है। जाहिर है कि सरकर की बेईमानी और आदिवासियों की समस्याओं को नजर अंदाज किया जाता है। हर पार्टी की सरकार अपने राज में किसानों, ग्रामीणों और आदिवासियों को विकास की राह में अड़चन मानती आयी हैं। जमीन लेने से पहले न तो ईमानदारी से जनसुनवाई होती है और न ही भू स्वामियों को प्रोजेक्ट के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। इसके अलावा पर्यावरण नियमों की अनदेखी और कृषि क्षेत्र का विनाश लोगों की मुख्य शिकायत रहती है। इसीलिये जिस तरह 15 साल पहले लोहांडीगुडा में लोग जन सुनवाई के तरीके और पारदर्शिता न बरते जाने से भड़के थे, वही स्थिति किरंदुल में धरना दे रहे आदिवासियों की है। सवाल है कि दो सरकारी कंपनियों एनएमडीसी और सीएमडीसी छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का ज्वाइंट वेंचर होने के बावजूद आखिर निजी कंपनी अडानी ग्रुप को क्यों आमंत्रित किया गया। मई 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दंतेवाड़ा के पास डिलबिली में 24000 करोड़ रुपये के अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट का उद्घाटन किया। जिसका अभी तक कहीं नामोनिशान नहीं है। यह स्टील प्लांट सरकारी कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ओर से लगाया जाना है। लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण इस प्रोजेक्ट को यहां नहीं लगाया जा रहा। कहा जा रहा है कि किरंदुल में भी सड़क बनाने के नाम पर करीब 1 लाख पेड़ों को काटा जायेगा, जिससे विरोध के स्वर और ऊंचे हो गए हैं।
नक्सली उठाते हैं फायदा
दंतेवाड़ा में आदिवासी अपनी जमीन और देवता के लिये हाथों में तीर,कमान और कुल्हाड़ी लेकर डटे हैं और उनके सैंकड़ों साथी जनवादी गीत गा रहे है। सरकार इस धरने पर निगरानी के लिये ड्रोन की मदद ले रही है ताकि, संघर्ष में शामिल नक्सलियों की पहचान हो सके। बंगाल के नंदीग्राम और लालगढ़ से लेकर छत्तीसगढ़ के लोहांडीगुडा और दंतेवाड़ा और उड़ीसा के नियामगिरी से लेकर आंध्र प्रदेश के पोलावरम तक माओवादियों के लिये ऐसे आंदोलन अपनी पैठ बढ़ाने के लिए मुफीद होते हैं।
वरिष्ट पत्रिकार रमेश शर्मा कहते हैं,छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने सत्ता में वापसी के बाद टाटा के स्टील प्लांट के लिये ली गई किसानों की जमीन लौटाने का जो काम शुरू किया, उससे विश्वास का माहौल बन सकता था और यही रास्ता बस्तर में नक्सलवाद से लड़ने की दिशा में पहला कदम हैं। लेकिन ताजा घटना बताती है कि सरकार के सामने नये सिरे से विश्वास को बहाल करने की चुनौती है, जिसमें ड्रोन के बजाय ग्रामीणों से बातचीत कहीं बड़ा हथियार होगा’’।
नाम की तख्तियां हैं,पेड़ नहीं
राजधानी रायपुर से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जांजगीर चांपा जिला से 25 किलोमीटर दूर पामगढ़ विकास खंड और बलौदा वन परिक्षेत्र के तहत भैसो गांव में 10 हेक्टेयर जमीन पर जिधर भी नजर दौड़ाओ तो अफसरों,नेताओं और मंत्रियों के नाम की तख्तियां नजर आती है। लेकिन यह तख्ती लगी क्यों है,पूछने पर गांव के मोहन बघेल बताते हैं, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गांरंटी योजना के तहत यहां 11 हजार पौधे रोपे गए थे। इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने पौधा रोपकर किया था। इसके लिए शासन से 17.67 लाख रूपए खर्च किया गया था। कुछ ही दिनों बाद सभी पौधे सूख गए लेकिन, अधिकारियों की लगी तख्तियां हरियर छत्तीसगढ़ का मजाक उढ़ा रही हैं। इस गांव की कथा से अलग एक कथा और भी है।
पोस्टरों में हरियर छत्तीसगढ़
सरगुजा से बस्तर तक हरे हरे पेड़ों की लाशें बिछी हुई हैं। जगदलपुर नेशनल हाइवे के किनारे सैकड़ों पेड़ काट दिए गए हैं। इसी तरह बस्तर जिले मंे माचकोट वन परिक्षेत्र केे तहत पीरिया गाव में एनएमडीसी की पानी की पाइप लाइन बिछाने के लिए सबरी से नगरनार तक 24 किलोमीटर तक के रास्ते में चार हजार पेड़ काटे गए। पूरे बस्तर संभाग में लाखों पेड़ धराशाही कर दिए गए हैं। बावजूद इसके वन मंत्री का दावा है कि हरियर छत्तीसगढ़ है हमारा। सरकार कहती है जंगलों की सुरक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। पौधा रोपण कर जंगल बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। गौरतलब है कि इस साल गर्मी में बिलासपुर का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस था। जाहिर है कि हरियर छत्तीसगढ़ सिर्फ नारों और पोस्टरों पर दिख रहा है। हरियर छत्तीसगढ़ योजना के तहत रमन सरकार के समय 9000 करोड़ रूपए का वृक्षारोपण किया गया था,बावजूद इसके जंगलों का रकबा कम होना चैकाता है। 10 साल में 250 वर्ग किलोमीटर जंगल गायब हो गए है। सरगुजा से बस्तर तक अंधाधुंध विकास के नाम पर आधे से अधिक जंगल साफ हो गए हैं।