Wednesday, March 3, 2021

पत्रकारों को जान के लाले

 











बस्तर में पत्रकारिता कभी भी आसान नहीं रही।पत्रकारांे को पुलिस के खिलाफ लिखने पर पुलिस नक्सलियों का मुखबिर बताकर जेल में डाल देती है और पुलिस का साथ देने पर नक्सली अपना दुश्मन समझ लेते है। यहां पत्रकरिता विकलांग हो गई है।  


0 रमेश कुमार ‘रिपु’
             छत्तीसगढ़ में उस पार्टी की सरकार है,जिसके नेता राजबब्बर ने कांग्रेस भवन में कहा था कि,नक्सली क्रांतिकारी हैं। वे क्रांति के लिए निकले हैं। कोई उन्हें रोके नहीं। सवाल यह है कि, नक्सली किस तरह के क्रांतिकारी हैं,जो जन अदालत लगाकर पत्रकारों को सजा देने की बात कर रहे है। प्रेस नोट जारी कर पत्रकार गणेश मिश्रा,लीलाधर राठी, बीबीसी के पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चैधरी, पी विजय, और फारूख अली को चेतावनी दी हैं। जबकि बस्तर में एक लाख के करीब फोर्स के जवान हैं। और भूपेश सरकार कहती है कि,नक्सली कमजोर हुए हैं। यदि नक्सली कमजोर हुए हैं,तो आम आदिवासी और पत्रकारों को नक्सली धमकी देने की हिमाकत कैसे कर लिए? पत्रकारों का संगठन सुकमा,बिजापुर और जगदलपुर मुख्यालय में धरना प्रदर्शन कर नक्सलियों का विरोध किया है। सरकार की चुप्पी हैरान करती है। बस्तर आईजी पी सुन्दरराज कहते हैं, इस पूरे मामले को पुलिस ने गंभीरता से लिया है। पुलिस माओवादियों के प्रेस नोट की जांच कर रही है। पत्रकारों और समाजसेवी सहित सभी नागरिकों के सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की है। किसे कितनी सुरक्षा दी जाएगी, इस बात को हम सार्वजनिक नहीं कर सकते। वहीं प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णु देव साय कहते हैं,सरकार झूठ बोलाती है कि नक्सलवाद कमजोर हुआ है। उनके हौसले बढ़े हैं। अब पत्रकार उनके निशाने पर है।’’
नक्सलियों के पत्र का जांँच करायेंगे। पुलिस अपने स्तर पर नक्सलवाद के खात्मे के लिए काम कर रही है।’’जाहिर सी बात है कि पत्रकारों की जान की कोई कीमत पुलिस नहीं मानती।
गौरतलब है कि दक्षिण सब जोनल ब्यूरो की ओर से 9 और 12 फरवरी को बीजापुर में प्रेस नोट जारी करते हुए पत्रकारों और कार्पोरेट घराने के लोगों को चेतावनी दी थी कि, भ्रष्टाचारियों और कॉरपोरेट घरानों के लोगों को जन अदालत लगाकर सजा दी जाएगी। 13 फरवरी को दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने पत्रकारों के खिलाफ पर्चे भी फेंके। इसके बाद नक्सलियों की तरफ से 15 फरवरी को जारी विज्ञप्ति में सुकमा के पत्रकार लीलाधर राठी व बीजापुर के पत्रकार गणेश मिश्रा को जन अदालत में दंडित करने की चेतावनी देते हुए कहा कि ये कार्पोरेट घरानों के दलाल है। इस घटना की प्रदेश भर के पत्रकारों ने निंदा की है। इसके बाद 17 फरवरी को नक्सलियों का एक पत्र फिर मीडिया के पास आया जिसमें पत्रकारों को आंदोलन नहीं करने की सलाह देते हुए मामले पर चर्चा करने की बात कही। पत्र में लिखा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार यहां के प्राकृतिक संसाधनों को कारर्पोरेट घराने के हाथों में सौपने भूअर्जन पुनर्वास व्यवस्थापना कानून 2019 को लाया। जनता को बेदखल करने खदाने और बांधे शुरू करने के लिए समझौता किया। नया कैम्प और खदान खोलने का जनता लगातार विरोध कर रही है। फासीवादी सलवा जुड़ूम,शांति सेना,अग्नि सेना जैसी संस्थाओं के नेता फारूख अली जैसे गुंडों को शोषक वर्ग ने सम्मानित किया। पत्रकार और समाजसेवीं इसका विरोध करें,नहीं तो अंजाम भुगतने तैयार रहें।
पत्रकार गणेश मिश्रा कहते हैं,उनका कार्पोरेट घरानों से कोई ताल्लूक नहीं है। वे विशुद्ध रूप से पत्रकार हैं। लीलाधर राठी कई साल से बीजापुर में किराए के घर में रहते हैं। बरसों से वे ग्रामीण लोगों की आवाज उठाते आ रहे हैं। बात सारकेगुड़ा की हो या एड़समेटा की,उन्होंने निष्पक्ष होकर मसले को कवर किया। लीलाधर राठी कहते हैं,कभी ऐसा काम नहीं किया कि नक्सली नाराज हो जाएं। सुकमा में राठी मार्ट नाम से एक दुकान खोली है,उसमें सभी महिलाएं वर्कर हैं। उनकी पत्नी दुकान की मालकिन हैं। दुकान में काम करने वाली सभी महिलाएं निर्धन हैं। गौरतलब है कि 26 जनवरी को दस लोगों को मार्ट की ओर से सम्मानित किया गया था। चर्चा है कि, सम्मानित जिन्हें किया गया उसमें कुछ लोग सलवा जुड़ूम के समर्थक थे। नक्सली इसीलिए नाराज हैं। सुकमा के पत्रकार लीलाधर राठी एक बार जब माओवादियों ने सब इंस्पेक्टर प्रकाश सोनी को बंधक बना लिया था। जनअदालत से वे लंबी सुनवाई के बाद प्रकाश सोनी को सकुशन रिहा करा लाए थे। बस्तर में शांति स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत बीबीसी के पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चैधरी कहते हैं,ं मोबाइल और रेडियो के माध्यम से बस्तर के अंदरूनी इलाकों में लोगों से संवाद स्थापित कर रहे हैं। आदिवासी महिलाओं के लिए सैनेटरी पैड के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की पहल को गति दे रहे हैं। ताकि महिलाओं में जागरूकता आए।
नक्सलियों के खिलाफ हुए प्रदर्शन
बीजापुर में 14 फरवरी को नक्सलियों के पर्चे फेंकने के बाद बीजापुर में पत्रकारों ने बैठक की। 16 फरवरी से 22 फरवरी तक धरना,प्रदर्शन कर नक्सलियों का विरोध कर निंदा प्रस्ताव पारित किया। 15 फरवरी को जगदलपुर में सामाजिक संगठनों ने इसके विरोध में नक्सलियों का पुतला दहन किया। 16 फरवरी को पत्रकारों ने दंतेवाड़ा में बाइक रैली निकालकर नक्सलियों के फरमान का विरोध किया। बाइक रैली कंगाल से निकाली गई है। 16 फरवरी को पत्रकारों ने माओ के गढ़ गंगालूर में एक रैली और सभा की। नक्सलियों ने बीजापुर और सुकमा के पत्रकार को जान से मारने की धमकी का विरोध करते हुए जवाब मांगा। 18 फरवरी को कुछ पत्रकार गंगालूर से 10 किलोमीटर आगे नक्सलियों की मांद में घुसे। नक्सली स्मारक के सामने नक्सल विज्ञप्ति का उन्होंने विरोध जताया। 18 फरवरी को पत्रकारों ने बुरगुम गांव में धरना,प्रदर्शन किया। सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने पत्रकारों के प्रदर्शन का समर्थन किया। जगदलपुर पत्रकार संघ अध्यक्ष एस करीमुद्दीन ने कहा,कि नक्सली जल्द सामने आएं और स्थिति को स्पष्ट करें। इसलिए कि परिवार परेशान है।
पहले भी पत्रकार मारे गए
नक्सलियों के निशाने पर पहली बार पत्रकार नहीं आए हैं। इसके पहले बीजापुर जिले के साईं रेड्डी और बस्तर जिले के नेमीचंद जैन को माओवादियों ने अपना निशाना बनाया है। इन दोनों मृत पत्रकारों के खिलाफ कोई पर्चा जारी नहीं किया गया था। ऐसा पहली बार हुआ है, जब पत्र में बीजापुर के गणेश मिश्रा, सुकमा के लीलाधर राठी बीबीसी के पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चैधरी के साथ माओवादियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले कोंटा के पी. विजय और सुकमा के फारूख अली का नाम शामिल है।  
माओवादियों के जारी पर्चे के जवाब में समाज सेवी फारूख अली ने कहा,नक्सली पीएलजीए सप्ताह के नाम पर निर्दोष ग्रामीणों की जान लेते हैं और अपने आप को क्रांति का दूत कहते हैं। बस्तर से आदिवासी संस्कृति खत्म करना चाहते हैं। बंदूक की नोक पर न केवल लोगों में डर पैदा करना चाहते हैं बल्कि, इसी के दम पर सत्ता हासिल करना चाहते हैं। बस्तर के लोग कभी उनके सपने को पूरा नहीं होने देंगे।
दक्षिण बस्तर पत्रकार संघ अध्यक्ष बप्पी राय कहते हैं,छत्तीसगढ़ के बस्तर में पत्रकारिता बेहद चुनौतीपूर्ण है। जब सरकार और नक्सलियों के बीच कोई वार्ता करनी होती है,तब बस्तर के पत्रकार ही सरकार की मदद करते हैं। बस्तर के पत्रकारों के माध्यम से ही कई बार निर्दोषों को नक्सलियों के कब्जे से छुड़ाया गया है। इतना ही नहीं,बस्तर संभाग के सभी नक्सल प्रभावित जिलों के पत्रकार जब कोई बड़ा नक्सली हमला होता है, तो पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि, मददगार बनकर खड़े हो जाते हैं। जान जोखिम में डालकर अंदरूनी इलाकों से खबर लेकर आते है। जिसके बाद वही खबर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबर बनती है।’’
बाहरहाल बस्तर में पत्रकारिता इतनी आसान नहीं है। पुलिस के खिलाफ लिखने पर पुलिस नक्सलियों का मुखबिर बताकर पत्रकारों को जेल में डाल देती है और पुलिस का साथ देने परा नक्सली जन अदालत में फैसला करने की बात कहते हैं। यहां पत्रकारिता विकलांग हो गई है,कहें तो गलत नहीं होगा। देखना यह है कि सरकार और पुलिस, पत्रकारों की सुरक्षा माओवादियों से किस तरह करती है।