Tuesday, June 16, 2020

नक्सलियों से यारी





 
सरकार विरोधी अर्बन नक्सलियों की माओवादियों से यारी पुरानी है। नक्सलियों के खौफ की दहशत से ठेकेदार और आम आदमी उनकी मदद करते आए हैं। माओवादियों को कारतूस बेचने वाले पुलिस कर्मी पहली बार पकड़े गए। ऐसी घटनाओं से साफ है कि छत्तीसगढ़ में नक्सल राज क्यों है?








0 रमेश तिवारी‘रिपु’’
                   शहरी नक्सली सरकार विरोधी हंैं या फिर देश विरोधी अथवा सरकार के खिलाफ लड़ने वाले माओवादियों के समर्थक हैं? सूबे में जब भी नक्सलियों के मददगार पकड़े गए, यह सवाल उठा है। युगवार्ता से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक चर्चा में कहे थे,‘‘ प्रदेश में कारतूस और हथियार के कारखाने नहीं हैं। ऐसे में माओवादियों के पास ए. के. 47 और कारतूस कहां से आते हैं,नक्सलियों को हथियार और अन्य विस्फोटक सामग्री की सप्लाई कौन करता है। किस रास्ते से हथियार उन तक पहंुचता है। केन्द्र सरकार को पता करना चाहिए’’। मुख्यमंत्री को शायद इसका अंदाजा उस वक़्त नहीं था कि, शहरी नक्सल ही माओवादियों के मददगार हैं।
नक्सलियों का शहरी नेटवर्क 
सडक निर्माण कंपनी का ठेकेदार तापस पालिका बोलेरो में 24 मार्च की रात्रि में नक्सलियों को सामान पहुंचाने निकला। कांकेर पुलिस ने उसे सिकोड़ थानांतर्गत मरदा मार्ग पर पकड़ा। बोलेरो से दस नग मोबइल फोन,75 मीटर वर्दी कपड़ा 45 जोड़ी जूते, दो नग वाॅकी टाॅकी,दो सौ मीटर इलेक्ट्रिक वायर और अन्य रोजमर्रा के सामानों को जब्त किया। पूछताछ में नक्सली मददगारों में राजनांदगांव के ठेकेदार दयाशंकर मिश्रा का नाम सामने आया। इसके बाद राजनांदगांव निवासी अजय जैन व कोमल प्रसाद वर्मा, कोयलीबेड़ा निवासी रोहित नाग, मेरठ (यूपी) निवासी सुशील शर्मा और बालाघाट (एम.पी) निवासी सुरेश शरणागत तक पुलिस पहंुची।  
सूचना से खुला राज
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने बताया की 4 जून को माओवादियों के लिए गोला बारूद एवं अन्य सामग्री के सप्लाई के सम्बंध में मुखबिर से सूचना मिलने पर धमतरी निवासी मनोज शर्मा व बालोद निवासी हरिशंकर गेडाम को सुकमा मलकानगिरी चैक से घेराबंदी कर पकड़ा गया। इनके कब्जे से 303 व एसएलआर हथियारों के 395 राउंड कारतूस मिला। दोनों के बताने पर दुर्गकोंदल के गणेश कुंजाम व आत्माराम नरेटी को गिरफ्तार किया गया। इनका संपर्क कांकेर के बड़े नक्सली लीडर दर्शन पेद्दा प्रतापपुर एरिया कमेटी सचिव से होने का खुलासा हुआ। इनके कब्जे से भी 70 राउंड आई.एन.एस.ए.एस. और 303 के मिले 303,एके 47,एस.एल.आर.,आई.एन.एस.ए.एस. के कुल 695 राउंड कारतूस बरामद हुए थे।
कैसे पकड़े गये पुलिस कर्मी
पुलिस की योजना के अनुसार मनोज शर्मा व हरीशंकर स्कॉर्पियो वाहन से सुकमा पहुंचे थे। थानेदार (एएसआई) आनंद जाटव बाइक से मलकानगिरी चैक पहुंचा। उसके पास कारतूस से भरा बैग था। मौके पर ही सबको पकड़ लिया गया। तीनों को पकड़े जाने के बाद पुलिस ने हेड कांस्टेबल सुभाष सिंह को भी इंदिरा कॉलोनी स्थित उसके घर से गिरफ्तार कर लिया। हेडकांस्टेबल की ड्यूटी शस्त्रागार में रहती थी। पकड़े गए हेड कांस्टेबल व ए.एस.आई. ने दो बार कारतूस बेचे जाने की बात कबूल की है। तीसरी बार वे पुलिस के हत्थे चढ़ गए। नक्सल ऑपरेशन में जाने वाले आरक्षक और सहायक आरक्षकों के कारतूस गायब कर नक्सलियों तक सप्लाई करते थे। ए. के. 47 के एक कारतूस नक्सलियों को पांच सौ रूपये में मिलते थे। सन् 2013 और 2018 में भी नक्सल ऑपरेशन से जुड़े आधा दर्जन से ज्यादा जवानों को नक्सलियों को कारतूस बेचने के मामले में पकड़ा गया था। अफसरों ने जवानों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई कर छोड़ दिया था।   
नक्सली मददगार गिरफ्तार
नक्सलियों के लिए सामान व रकम पहुंचाने वाले मामले में 12 आरोपी, ठेकेदार तापस पालिका 24 मार्च, मुंशी दयाशंकर मिश्रा 29 मार्च, अजय जैन कोमल प्रसाद वर्मा राजनांदगांव, रोहित नाग कोयलीबेड़ा, सुशील शर्मा उत्तर प्रदेश, सुरेश शरणागत मध्यप्रदेश 24 अप्रैल, टोनी उर्फ शीलेंद्र भदौरिया राजनांदगांव 5 मई, जनपद सदस्य राजेंद्र सलाम व मुकेश सलाम 6 मई को, अरूण ठाकुर 12 मई तथा मुख्य आरोपी निशांत जैन को 14 मई को पुलिस ने गिरफ्तार किया। पकड़े गए आरोपियों के नक्सली कमांडर सरिता राजुसलाम और नक्सली लीडर दर्शन पेद्दा जैसे कई नक्सलियों से संपर्क था।
करोड़ों का आसामी
काम की तलाश में 2001 को लैण्डमार्क इंजीनियर कंपनी बिलासपुर का मालिक निशांत जैन दिल्ली के गुडगांव से आया था। आज 6 सौ करोड़ का मालिक है। सन् 2018 से वह नक्सलियों से सांठगांठ करके संवेदनशील इलाके कोयलीबेड़ा, अंतागढ़, आमाबेड़ा, सिकसोड़, रावघाट, तोड़ोकी में प्रधान मंत्री सड़क के निर्माण का ठेका लेता था। सड़क निर्माण की आड़ में नक्सलियों की जरूरत के सामान पहंुचाते थे। इसीलिए लैंडमार्क इंजीनियरिंग कंपनी बिलासपुर तथा लैंडमार्क रायल इंजीनियर कंपनी राजनांदगांव के कामों में नक्सली न कभी बाधा उत्पन्न किए और न ही उनके वाहनों को जलाया। इन सभी कामों को दोनों भाइयों ने पेटी कांट्रेक्ट पर रूद्रांश अर्थ मूवर्स कंपनी के पार्टनर तापस पालित,अजय जैन व कोमल जैन को दिया था। इंजीनियरिंग कंपनी का मालिक बनने से निशांत जैन अपने एक रिश्तेदार की निर्माण कंपनी में मैनेजर था। नक्सली नेटवर्क की जांच कर रही एस.आइ.टी को 24 अप्रैल को राजनांदगांव निवासी अजय जैन को गिरफ्तार करने पर कुछ अहम दस्तावेज मिले थे। जांच में इस नेटवर्क का कनेक्शन लैंडमार्क इंजीनियरिंग कंपनी बिलासपुर से जुड़ा। निशांत जैन को एसआईटी की टीम ने बिलासपुर से गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में 14 मई को जेल भेज दिया। उसके दोनों मोबाइल से उसकी काॅल डिटेल पुलिस खगाल रही है। 
पूर्व सरपंच निकला मददगार
कोयलीबेड़ा इलाके में नक्सलियों के लिए ठेकेदारों से लेवी वसूलने और उनकी मदद करने वाला भाजपा मंडल का पूर्व महामंत्री अरुण ठाकुर को पुलिस ने 13 मई को गिरफ्तार किया। ठेकेदारों से मिले सामानों को अरूण नक्सलियों तक पहुंचाता था। अरूण कुमार शुरू से भाजपा व आर.एस.एस से जुड़ा था। वह इलाके के युवाओं को आरएसएस के प्रशिक्षण कैंप भेजता था,जिससे नक्सली उससे नाराज थे। बाद में वह, यह काम बंद कर दिया। 15 साल पहले कोयलीबेड़ा में वार्ड पंच के चुनाव में उपसरपंच चुना गया था। अरुण पिछले साल कोयलीबेड़ा भाजपा मंडल के महामंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। कोयलीबड़ी इलाके में अरूण के दम पर ही नक्सलियों का शहरी नेटवर्क खड़ा हुआ। नक्सलियों के लिए ठेकेदारों से वसूली गई लेवी की रकम में से कुछ अरूण न दबा ली थी। नक्सलियों ने ऐसा करने पर उसके खिलाफ पर्चे बोंदानार इलाके फेकने लगे थे। बाद में नक्सलियों से माफी मांग कर उनका पैसा वापस करने का वायदा किया था। बाद में नक्सली उसे माफ कर अपने काम में लगा दिए थे। 2018 में अरुण कुमार ठेकेदार तापस पालित के साथ मिलकर कागबरस से गुड़ाबेड़ा सड़क के निर्माण में जुड़ गया। पुलिस को शक है कि अरुण अपने प्रिंटर, फोटो कॉपी मशीन व कम्युटर से कोयलीबेड़ा इलाके में नक्सलियों के पर्चे निकाल कर उसे फेंकवाता था। 
क्या है अर्बन नक्सलवाद
देश के सभी नक्सली संगठनों से जुड़ा यह एक ऐसा समूह है, जो शहरों में सक्रिय है। सरकार के अनुसार यह देश के लिए सबसे बड़ा आंतरिक खतरा है। नक्सलवाद अब गांवों या जंगलों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि, यह अब शहरों तक फैल चुका है। ये सरकारी सिस्टम में अपने लोगों को भेज कर सारा काम करते हैं,किसी को कानों कान खबर नहीं हो पाती। इनका मूल उदे्दश्य वही है जो माओवादियों के होते हैं। हिंसा के जरिए भारत के राज्यों पर कब्जा करना। ऐसे लोगों को भारत सरकार के कामों में बुराई ही बुराई दिखती है। ये हर वक्त सरकार की आलोचना करते हैं। अंडरग्रांउड काम करने वालों के लिए ये रक्षक कवच हैं। कहीं भी नक्सली कार्रवाई होती है,ये उसे दलित,किसान या आदिवासी का दमन बताकर जनमत तैयार करते हैं। इनकी बातें मीडिया,ब्यूरो क्रेसी,न्यायपालिका बड़ी प्रमुखता से सुनती है। माओवादी राष्ट्र को नहीं मानते। इसलिए उसे हमेशा खंडित करने का प्रयास करते हैं। माओवादी जानते हैं कि, लोकतंत्र के सारे सिस्टम शहरों में हैं। समाज को प्रभावित करने वाले नेता,सांसद,अफसर,प्रोफेसर और डाॅक्टर। नक्सली सिस्टम पर भरोसा नहीं करते। उसे उखाड़ फेकने के लिए अर्बन नक्सल उनके मददगार बन जाते हैं। सन् 2009 में पूर्व गृहमंत्री पी.चिंदम्बरम ने माओवादियों के खिलाफ ग्रीन हंट शुरू किया। जिससे माओवादियों को काफी नुकसान हुआ था। नक्सलियों ने अपनी रणनीति बदली और गुपचुप तरीके से शहरों में अपनी गतिविधियां बढ़ाई। समाज के असरदार लोग उनसे जुड़ गई। उनकी ंिहंसक गतिविधियों को वैध और सरकार की कार्रवाई को दमन विरोधी ठहराने की मुहिम शुरू कर दी। जो अब तक जारी है। दरअसल जब तक नक्सलियों की कोर लीडर शिप को खत्म नहीं किया जाएगा,अर्बन नक्सलियों पर नकेल लगाना मुश्किल है।