Tuesday, March 10, 2020

ईमानदारी के खलनायक

                     
      
भ्रष्टाचार के लिए जनता राजनेताओं को दोषी करार देती है। पर सही मायने में बेेईमान अफसर हैं। अफरशाही में बढ़ता भ्रष्टाचार ये साबित करता है कि लोकायुक्त की कार्रवाई और हाई कोर्ट की फटकार के बाद भी इन्हें डर नहीं लगता। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 12 घोटालेबाज अफसरों के विरूद्ध केस दर्ज करने का आदेश देकर बता दिया कि इनकी बेईमानी की वजह से जनहितकारी नीतियां प्रभावित होती हैं।












0 रमेश कुमार ‘‘रिपु‘‘
            छत्तीसगढ़ में आईएएस अफसरों ने बिहार के चारा घोटाले के लिए अपनाये गये नुस्खे से आगे निकल गये। अफसरों ने दिव्यांगों का इलाज कागजों पर दिखाकर एक हजार करोड़ रूपये पर हाथ फेर दिया। यह सब हुआ डाॅ रमन सिंह के कार्यकाल में। जाहिर सी बात है कि पूर्व मुख्मंत्री डाॅ रमन सिंह के कार्यकाल में नौकराशाह उन्हें अंधेरे में रखते थे। राज्य के 6 आईएएस समेत 12 अफसरों की बेईमानी पर्दे में ही रहती यदि रायपुर के कुंदन सिंह ठाकुर की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर न करते।
राज्य के 6 आईएएस अफसर आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एम.के राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पी.पी सोती समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एम.एल पांडेय और पंकज वर्मा ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर एसआरसी राज्य स्रोत निःशक्त जन संस्थान के नाम पर करोड़ों रुपए का घोटाला किया है। 30 जनवरी को जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने 2018 में दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई को 7 दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे। छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड आईएएस अफसर  एम.के राउत और विवेक ढांढ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ घोटाले के मामले में सीबीआइ जांच पर रोक लगा दी है।
भाजपा राज में घोटाला
एक हजार करोड़ का घोटाला सन् 2008 से 2018 के दौरान भाजपा राज में हुआ है। चैकाने वाली बात यह है कि पूर्व मुख्य सचिवों में विवेक ढांड अभी रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी रेरा के अभी  अध्यक्ष हैं। जो संवैधानिक पद है। दूसरे पूर्व मुख्य सचिव सुनील कुजूर राज्य सहकारी निर्वाचन आयोग के कमिश्नर हैं। मुख्य सूचना आयुक्त एम.के. राउत का नाम भी फर्जीवाड़ा करने वालों में है। एम. के. राउत का कहना है कि वे कभी समाज कल्याण विभाग में नहीं थे। विवेक ढांड और राउत को रमन सरकार ने संवैधानिक पदों पर बिठाया था। वहीं सुनील कुजूर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुख्य सचिव और फिर निर्वाचन आयोग का कमिश्नर बनाया। स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला का नाम भी घोटाला करने वालों में है। बहुचर्चित नान नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले में वे करीब तीन साल तक निलंबित थे। उन्हें कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने बहाल किया है। जबकि नान घोटाले की लड़ाई भूपेश सड़क से सदन तक की,आलोक शुक्ला को बार्खास्त करने के लिए।
अपना कल्याण किया
छत्तीसगढ़ में बाबूलाल अग्रवाल पहले आईएएस अफसर हैं, जो केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग में 250 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में बर्खास्त किये जा चुके हैं। जेल भी जा चुके हैं। प्रदेश गठन के पहले इस कांड में शामिल पी.पी श्रोती सन् 2000 में भोपाल से आए थे। सेवानिवृति के बाद भी सेवावृद्धि लेते रहे हैं। पंचायत और समाज कल्याण विभाग के संचालक के पद पर बरसों तक जमे रहे।     राज्य योजना मंडल के सदस्य भी रहे। समाज कल्याण विभाग के अपर संचालक एम.एल. पांडेय पहले भी भ्रष्टाचार के मामले में फंस चुके हैं। कुछ साल पहले एंटी करप्शन ब्यूरो ने उनके घर छापा मारा था। छापे में अग्रोहा सोसायटी में करीब 5 हजार वर्गफुट में आलीशान बंगला। दस हजार वर्गफुट में दो मंजिला आलीशान भवन। जिसमें स्कूल चल रहा है। 25 एकड़ जमीन पाटन में। मुंबई, पुणे में करोड़ों का निवेश। 28 बैंक खाते में एक करोड़ से अधिक राशि। कई जमीन खरीदी के प्रमाण मिले हैं। पूछताछ के दौरान एसीबी को 10 विदेश दौरों का पता चला। घर से डाॅलर भी मिले। 25 से अधिक बैंक खाते। विभिन्न फर्मो में 50 लाख से अधिक का निवेश। समाज कल्याण विभाग के अपर संचालक एमएल पांडे पर 9 साल पहले 90 लाख का घोटाला करने का आरोप लगा था। उनके खिलाफ तत्कालीन सचिव एम.के राउत ने एफआईआर करने की सिफारिश की थी। लेकिन इसे दबा दिया गया। इतना ही नहीं उन्हें पद से हटाने के बजाय मनपसंद पोस्टिंग भी दी गई। दिव्यांगों के नाम का पैसा डकारने वालों में समाज कल्याण विभाग के संयुक्त संचालक राजेश तिवारी अशोक तिवारी, हरमन खलखो, पंकज वर्मा और सतीश पांडेय के भी नाम हैं।
ऐसे किया महाघोटाला
अधिकारियों ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) के नाम पर घोटाला किया है। एसआरसी का कार्यालय माना रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है। एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया के एकाउंट और एसबीआइ मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग.अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड से खाते खुलवाकर रुपये निकाले गए। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि ऐसी कोई संस्था राज्य में है ही नहीं। सिर्फ कागजों में संस्था का गठन किया गया था। राज्य को संस्था के माध्यम से 1000 करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह सीबीआइ जांच से सभी बातों के खुलासे की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल घोटाले के लिए डॉ रमन सिंह और केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह को जवाब देह बता रहे हैं।
फर्जी बिल पास
भारत सरकार ने दिव्यांग बच्चों के सर्वेक्षण के लिए एक करोड़ की रकम आवंटित की थी। लेकिन अफसरों ने इस रकम को कागजों में चंद जिलों को वितरित करने की खानापूर्ति की। शेष रकम से गैर.आवश्यक वस्तुओं की खरीदी के फर्जी बिल संलग्न कर एक करोड़ रूपये पर हाथ फेर दिया। सर्वेक्षण भी नहीं किया। दरसअल ज्यादातर जिलों में सर्वेक्षण की रकम वितरित ही नहीं की गई। राशि पर हाथ मारने के लिए समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने अपने चहेते अधिकारियों की पदस्थापना वाले जिले को एक से अधिक बार राशि आवंटित किया। ताकि सर्वेक्षण व्यय कागजों में दर्शाया जा सके। इसमें रायपुर के व्यापक इंटरप्राइजेस और सिक्यूर्ड सर्विसेस अमलीडीह के लाखों के बिल संलग्न किये गए। इन बिलों में ना तो ऑर्डर नंबर है और ना ही जीएसटी विवरण। अफसरों ने विज्ञापन के लिए होर्डिंग्स पर लाखों खर्च बताया लेकिन, होर्डिग्स किस स्थान पर है और किस विषय को लेकर लगाई गई, इसका कोई विवरण नहीं है। अफसरों ने लाखों की सरकारी रकम राज्य संसाधन एवं पुनर्वास केंद्र को देना बताया, लेकिन व्यय बिल लगाया सिक्योरिटी सर्विस का। राज्य संसाधन एवं पुनर्वास केंद्र माना को जारी 18 लाख रुपए के बिल सिक्योर्ड सर्विसेस अमलीडीह और सिक्योरिटी कंपनी के दर्शाये गए। इसके अलावा श्री साई इंटरप्राइजेस भनपुरी से कम्प्यूटर टेबल, सोफा, राउंड टेबल समेत अन्य मेसर्स रॉय किराना एंड जनरल स्टोर माना से राशन, होटल विनायक इंटरनेशनल में लंच, डिनर और रुम बुकिंग, ओम साई मोबाइल्स एंड कम्प्यूटर से लैपटॉप, डेस्कटॉप समेत अन्य उपकरणों की खरीदी के केवल बिल हैं, सामान नहीं है। सभी बिल पास भी हो गया।
यह संगठित अपराध हैः हाई कोर्ट
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य के मुख्य सचिव अजय सिंह ने अपना शपथ.पत्र दिया था। इसमें उन्होंने 150.200 करोड़ की गलतियां सामने आने की बात कही थी। हाईकोर्ट ने कहा कि जिसे राज्य के मुख्य सचिव गलतियां और त्रुटि बता रहे हैं, वह एक संगठित और सुनियोजित अपराध है।  फर्जीवाड़े में उलझे कुछ ओहदेदारों की नियुक्ति भले रमन सिंह ने की हो लेकिन, ज्यादातर अफसर अब भूपेश बघेल के आदमी बन गये हैं। यह मामला पहले सिंगल बेंच के पास था फिर गंभीरता को देखकर दो जजों की बेंच को भेजा गया। कहा जा रहा है कि कोर्ट संज्ञान नहीं लेती तो इतना बड़ा घोटाला उजागर ही नहीं होता। 
रेणुका सिंह का भी नाम
फर्जीवाड़े में केंद्रीय जनजाति विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह भी लपेटे में आ गई हैं। जब यह फर्जीवाड़ा हुआ, तब वह कुछ समय के लिए राज्य की समाज कल्याण मंत्री थीं। रेणुका सिंह का कहना है कि उन पर गलत आरोप लगाया गया है,लेकिन पूछताछ की गई तो पूरा सहयोग करेंगी।
डेढ़ लाख की रिश्वत लेते पकड़े गये
भ्रष्टाचार की बेल छत्तीसगढ़ से लेकर मध्यप्रदेश तक फैली है। दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है,लेकिन बेईमान अफसरों के पौ बारह हैं। योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग रीवा संभाग के संयुक्त संचालक राजेंद्र कुमार झारिया को लोकायुक्त पुलिस ने डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। इसके बाद लोकायुक्त की एक टीम ने झारिया के भोपाल स्थिति निवास पर छापा मारा है। छापे में लोकायुक्त पुलिस को 36 लाख रुपए नगद, लगभग पौने दो किलो चांदी और सोना मिला है। झारिया कस्टम हाउसिंग कालोनी नयापुरा कोलार के रहने वाले है। संतोष कुमार द्विवेदी ठेकेदार ने लोकायुक्त पुलिस से शिकायत की थी कि झारिया विधायक निधि से स्वीकृत कार्य में प्रशासनिक अनुमति दिलाने के एवज में 3 प्रतिशत राशि की मांग कर रहे हैं। विधायक निधि से ग्रामीण क्षेत्र में पानी का टैंकर व 10 गांवों में यात्री प्रतीक्षालय बनवाने के लिए 71,22500 रुपए की धनराशि जारी की गई है। 
जाहिर सी बात है कि बेईमान अफसरों की वजह से जन हितकारी योजनाएं और नीतियों का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होता। अदालत को भी ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाये जाना चाहिए।
      

आयकर के छापे से बवाल

     
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दस से ज्यादा करीबियों के ठिकाने पर आयकर छापे से बवाल मच गया।  भाजपा और कांग्रेस आमने सामने टकराव की मुद्रा में आ गये। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्यपाल को ज्ञापन देकर आयकर छापे को राजनीतिक रंग दे दिया। छापे से तिलमिलाई सरकार आयकर की कार्रवाई को सरकार को अस्थिर करने की साजिश बताया।








0 रमेश कुमार ’’रिपु‘‘
              छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय आयकर की टीम ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबियों के यहां छापे डालकर सरकार की चूलें हिला दी। सरकार इस छापे से घबरा गई। और आनन फानन में राज्यपाल अनसुइया उइके को ज्ञापन देकर इसे रोकने की मांग कर बैठी। मीडिया से मुख्यमंत्री ने कहा,‘‘यह छापा प्रदेश सरकार को अस्थिर करने की साजिश है। ज्ञापन में आरोप लगाया कि राज्य सरकार चूंकि पूर्व सरकार के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई कर रही है, इसलिए केन्द्र सरकार इसका बदला ले रही है‘‘। चैकाने वाली बात है कि बहुमत वाली सरकार आयकर के छापे से अस्थिर कैसे हो जायेगी? आयकर विभाग ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबियों के यहां छापा डाला तो राजधानी रायपुर से लेकर दिल्ली तक हलचल मच गई। यह छापा बिहार में चुनाव से पहले डाला गया है। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि झारखंड चुनाव की फंडिग छत्तीसगढ़ सरकार ने की थी। बिहार चुनाव की भी फंडिंग का दायित्व छत्तीसगढ़ सरकार को दिया गया है। संभवतःइस छापे के चलते सरकार की रणनीति फेल हो गई। इस छापे ने सबसे अधिक मीडिया का ध्यान मुख्यमंत्री की उप सचिव सौम्या चैरसिया के निवास में पड़े छापे ने खींचा। इसकी वजह यह है कि वो छापे के दो दिन बाद मीडिया के सामने मुखातिब होते हुए कहा,‘‘ मै दो दिन तक आॅफिस में थी। मुझे मीडिया से पता चला कि मेरे यहां आयकर का छापा पड़ा है’’। जबकि उनके ड्राइवर पन्नालाल ने 29 फरवरी को मीडिया को बताया कि छापों से पहले फाइलों से भरे चार,पांच बैग लेकर वह सी.एम हाउस गया था। इन फाइलों में क्या था, उसे नहीं मालूम’’।  
सौम्या के यहां क्या मिला              
सौम्या चैरसिया के ठिकानों पर जांच में आयकर विभाग को प्रापर्टी और लेन देन के दस्तावेज,दर्जनों रजिस्ट्री के पेपर मिले हैं। ज्वेलरी मिली हैं, जिनका मूल्यांकन किया गया। सौम्या के सभी लाॅकरों को सील करने और बैंक खातों के लेनदेन पर रोक लगा दी गई है। आय से अधिक राशि खर्च करने, बैंकों में रकम जमा करने और निवेश का खुलासा हुआ है। आयकर अधिकारी पिछले छह वर्षो के पुराने रिकार्ड की जांच कर रहे हैं। सौम्या की मां और ड्राइवर पन्नालाल से तीन फरवरी को 5 अफसरों की टीम ने दोबारा पूछताछ की। सौम्या के घर से मिले लैपटॉप, पैनड्राइव को भी सीज किया गया है। ये सारी जानकारियां आयकर के दिल्ली मुख्यालय को भेजी गई हैं। दूसरी ओर रायपुर, बिलासपुर, जगदलपुर के 32 ठिकानों में 5 दिनों की छापेमारी में मिले दस्तावेजी सबूतों के आधार पर अधिकारी जांच आगे बढ़ाने में लगे हैं।
हवाला के प्रमाण मिले
आयकर के इस छापे से 15 माह पुरानी भूपेश बघेल की सरकार आयकर के चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही है। आयकर टीम ने 27 फरवरी से लेकर 2 मार्च तक प्रदेश में कई ठिकानों पर छापा मारा। इनकम टैक्स कमिश्नर व मीडिया प्रवक्ता सुरभि अहलूवालिया ने बताया कि जांच के दौरान 150 करोड़ रूपये नकद मिले। साक्ष्य मिले हैं कि शराब और माइनिंग का पैसा नियमित रूप से अफसरों को जा रहा था। इसके अलावा नोटबंदी के दौरान भारी नगदी जमा करने की भी जानकारी मिली है। शेल कंपनियों में निवेश की भी सूचनाएं हैं। जब्त किए गए दस्तावेजों और इलेक्ट्रॉनिक डेटा से पता चला कि अफसरों के साथ कई लोगों को नियमित भुगतान किया जा रहा था। हवाला कारोबार के भी प्रमाण मिले हैं।
इनके यहां पड़ा आइटी का छापा
विवेक ढांड- छत्तीसगढ़ के विवेक ढांड पहले पूर्व मुख्यसचिव हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद स्व. रत्नेश सालोमन के जरिये प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी को साधने वाले विवेक ढांड ने प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद डॉ रमन सिंह के कार्यकाल में मुख्य सचिव रहे हैं। इस समय रेरा के चेयरमेन है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इन्होंने पढ़ाया भी है।
सौम्या चैरसिया - मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव हैं। 2008 बैच की अफसर हैं। दिसंबर 2018 से मुख्यमंत्री की उपसचिव हैं। आइटी के छापे से सुर्खियों में आई।
एजाज ढेबर - छत्तीसगढ़ में कभी अजीत जोगी के बेहद करीबी तथा बाद में उनसे अलग होकर हाल ही में राजधानी रायपुर के महापौर बने एजाज ढेबर तथा उनके भाई अनवर ढेबर के ढेबर स्टील, ढेबर सिटी, रियल स्टेट वेलिंगटन होटल सहित कुछ रेस्टोरेंट में भी केंद्रीय आयकर विभाग की टीम ने छापा मारा है। हाल ही में उन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पसंद पर महापौर बनाया गया है। ढेबर परिवार को कांग्रेस का आर्थिक मददगार माना जाता है। इनके भाई अनवर ढेबर के यहां भी आइटी ने छापा मारा है।
अरूणपति त्रिपाठी- इंडियन टेलीकाॅम सर्विस के अधिकारी है। आबकारी विभाग में ओएसडी हैं। केन्द्र से प्रतिनियुक्ति पर आए हैं।
अनिल टूटेजा- आईएएस अनिल टुटेजा तथा उनकी पत्नी मीनाक्षी टुटेजा जो कि ब्यूटीशियन संस्थान की संचालक है,के ठिकानों पर भी आयकर की टीम ने छापा मारा है। नान घोटाला में नाम आने के बाद अनिल टुटेजा को रमन सरकार ने बिना कामकाज के मंत्रालय में अटैच कर रखा था। उन्हें हाल ही में अदालत के स्थगन के बाद उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्ति दी गई है।
गुरूचरण सिंह होरा - रायपुर विकास प्राधिकरण में इंजीनियर थे। इन्होंने 2013 में नौकरी छोड़ कर होटल का कारोबार शुरू किया। जमीन की कारोबारी में भी हाथ अजमाया। इस समय एक होटल और सिटी केबल न्यूज चैनल के मालिक हैं।
अनमोलक सिंह भाटिया -प्रमुख रूप से शराब के कारोबारी है। इन्हें कांग्रेस का करीबी कहा जाता है। डाॅ रमन सिंह के समय ये नेपथ्य में थे।
डाॅ ए. फरिश्ता - डाॅ फरिश्ता के यहां भी आयकर का छापा पड़ा। यहां आय से अधिक संपत्ति मिलने की जानकारी है। इसके अलावा चार्टड एकाउंटेंट कमलेश जैन, संजय संचेती सहित 22 अन्य लोगों के यहां आइटी के छापे पड़े।
मुख्यमंत्री ने बताया
आयकर छापे में विभाग के अधिकारियों को क्या क्या मिला जारी प्रेस नोट को झूठा करार देते हुए    मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा,‘‘आयकर विभाग को भाजपा से जुड़े गुरूचरण सिंह होरा के आफिस से 50 लाख और घर पर 51 लाख कैश मिला। रेरा चेयरमैन विवेक ढांड के यहां तीन लाख और अनिल टुटेजा के पास से 13 लाख रुपए मिले। हमारे कार्यकर्ता अफरोज के यहां भी आयकर टीम को उसके घर पर मात्र 18 सौ रुपए मिला। महापौर एजाज ढेबर के के पास मात्र तीन हजार कैश मिला। उनकी मां के पास जरूर चार लाख रुपये मिले। वो भी वे नाती,पोतों को देने के लिए पैसे जमा करती हैं’’।
एक छापा कई बातें
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 28 फरवरी को बोले कि सरकार को अस्थिर करने की यह साजिश है।आइटी के छापे को संघीय ढांचा के खिलाफ कार्रवाई बताया। सवाल यह है कि आयकर टीम के छापे का विरोध कांग्रेसियों ने सड़कों पर उतर कर स्थानीय आयकर विभाग के आॅफिस में जाकर क्यों किया। जब कुछ नहीं था, तो फिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सरकार को अस्थिर करने की बात क्यों कही? जाहिर सी बात है कि प्रदेश में सीबीआइ को पहले ही सरकार प्रतिबंधित कर चुकी है। आयकर को प्रतिबंधित करना भूल गई। बिहार चुनाव की फंडिग की उनकी रणनीति फेल हो गई है। सौम्या के ड्राइवर पन्नालाल की बातें और मिले दस्तावेज की जांच से संभावना है कि कुछ सनसनीखेज तथ्यों का खुलासा होगा।
हमले का मौका मिला
प्रदेश की 15 माह पुरानी सरकार पर भाजपा को हमला करने का मौका मिल गया। राज्य सभा सदस्य रामविचार नेताम ने कहा कि अफसरों के यहां आइटी के छापे सेे मुख्यमंत्री बदहवास क्यों हो गये हैं। क्या मुख्यमंत्री विधायकों की जगह अफसरों की मदद से सरकार चला रहे हैं’’। वहीं दिल्ली में कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, केन्द्रीय एजेंसियां इतनी निष्पक्ष है तो अभिषेक सिंह की जांच क्यों नहीं करती। उनका नाम पनामा पेपर्स में आया था’’। इस पर डाॅ रमन सिंह ने कहा कि पनामा का मामला पांच साल पहले ही रफा दफा हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट में पूरी कार्रवाई हुई है। स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इसमें कोई लेने देन नहीं हुआ है। आरोप लगाने से कुछ नहीं होता। कांग्रेस हर स्तर पर इस मामले में जा चुकी है। प्रदेश सरकार के पास 68 विधायक हैं। आयकर के छापे से सरकार कैसे अस्थिर हो सकती है। सीआरपीएफ लेकर आइटी  छापा ने मारा। पुलिस और सीआरपीएफ में कोई अंतर नहीं है’’।
छापे पर वि.स. में हंगामा
भाजपा के शासन में भी आयकर छापा पड़ा था। आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में आइएएस बाबूलाल अग्रवाल भी फंसे थे। सरकार के बहुत करीबी कहे जाने वाले शराब कारोबारी पप्पू भाटिया के यहां भी आयकर छापा पड़ा था,जिसे तत्कालीन विपक्ष ने मुद्दा बनाया था। लेकिन रमन सरकार ने इसकी खिलाफत नहीं की थी। लोकसभा चुनाव से पहले कमलनाथ के सलाहकार आर के मिगलानी और उनके रिश्ते दारों के यहां आयकर छापे पड़े थे। तब भी केन्द्र और राज्य सरकार पर उंगली नहीं उठी थी। लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा में दो फरवरी को आइटी के छापे पर जमकर हंगामा हुआ। विपक्षी विधायकों ने सरकार पर छापे में बाधा डालने का आरोप लगाते हुए स्थगन पर चर्चा की मांग की। भाजपा विधायक ननकीराम कंवर ने शासकीय कार्य में बाधा डालने वाले सभी मंत्रियों के खिलाफ केस किए जाने की मांग की। शून्यकाल में भाजपा विधायक शिवरतन शर्मा ने छापों के संबंध में स्थगन पर चर्चा कराने की मांग करते हुए कहा कि सरकार द्वारा छापों को रोकने की कोशिश की गई है। पुलिस ने आयकर अफसरों की 20 से ज्यादा गाड़ियों को जब्त की। जोगी कांग्रेस विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा कि पहले भी सीआरपीएफ की मौजूदगी में कार्रवाई हुई है। किसी अफसर के यहां छापा पड़ने से सरकार कैसे अस्थिर हो सकती है। कैबिनेट रोक दिया गया। सीएम दिल्ली चले गए, कांग्रेस सड़क पर उतर गई। सरकार को प्रतिक्रया देने से पहले प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। 
बहरहाल आइटी छापे को प्रदेश सरकार को अस्थिर करने की साजिश करार देना सार्थक राजनीति  नहीं है। ऐसी बातों से केन्द्र और राज्य सरकार के बीच टकराव की स्थिति निर्मित होती है,जो प्रदेश की जनता और विकास के लिए हितकर नहीं है। दोनों सरकारों को इससे बचना चाहिए’’।