Wednesday, May 6, 2020

शर्मिली बन गई खूंरेजी

 
        
बस्तर की शर्मिली महिलाएं लाल गलियारे में रहकर खूंरेजी महिलाएं बन गई हैं.उनके हाथ में न केवल नक्सली नेटवर्क की कमान है बल्कि, किसी बड़े हमले की अगुआई भी करती हैं.अपनी जान और इज्जत को जोखिम में डालने वाली माओवादी महिलाओं पर लाखों के इनाम है.जल,जमीन और जंगल की लड़ाई के लिए नक्सली नेताओं ने माकपा के सिद्धांत की घुट्टी पिलाकर इन्हें बंदूक उठाने के लिए विवश कर दिया है.वहीं,राजनीतिक पैरामीटर में ये गरीब हैं,बेरोजगार हैं,कुपोषित हैं.महिला नक्सली अपने हक़ की आखि़री लड़ाई लड़ रही हैं.









0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु‘‘
                               छत्तीसगढ़ के अबूझमाढ़ की दुर्गम पहाड़ी और जंगल में माओवादियों का मुख्य गढ़ है.वामपंथी उग्रवाद का संचालन इन्हीं जंगलों से हो रहा है.इन्हीं घने जंगलों में माओवादी अपनी समानांतर सरकार चलाते हैं.जिसे वे जनताना सरकार कहते हंै.नक्सली जिला सुकमा की सरहद  आंन्ध्र प्रदेश और ओड़िसा से मिलती है.जिसे पुलिस माओवादियों की राजधानी कहती है.माओवादियों के नेटवर्क का संचालन यहीं से होता है. सन् 2005 तक नक्सली लीडरों ने महिलाओं की सेना तैयार नहीं किये थे. 2006 में नक्सली लीडरों ने निर्णय लिया महिला सेना तैयार करने का.उसके बाद हर घर से एक बेटी और बेटा यह कहकर नक्सलियों ने मांगा कि तुम्हारे हक की लड़ाई हम सरकार से लड़ रहे हैं,इसलिए अपना एक बेटा या फिर बेटी दें.धीरे धीरे नक्सलियों के एक बड़े नेटवर्क का संचालन महिला नक्सली करने लगी.नक्सली संगठन में जो आदिवासी महिलायें हंैं, वे सभी युवा है.कभी आदिवासी महिलाओं को शर्मिली कहा जाता था,लेकिन अब इनके चेहरे पर लज्जा नहीं दिखती.बर्बरता और कू्ररता की एक मिसाल बन गई हैं.नक्सली नेता अपने संगठन में खूंरेजी महिलाओं को उन्हें कैडर के हिसाब से पद देते हैं.पद,प्रतिष्ठा और अच्छे वेतन के लिए आदिवासी लड़कियां चूल्हा चैका और पढ़ाई छोड़कर माओवादी बन रही हैं.
माओवादियों की धारण है कि राजनैतिक सत्ता बंदूक की नली से निकलती है.पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) पुरूषों की तरह महिलाओं को भी नियुक्त करता है.उन्हें सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है.छापामार दस्तों की अगुआई की जिम्मेदारी भी प्रशिक्षित महिलाओं को दी जाती है.बस्तर में नक्सलियों के एक बड़े नेटवर्क की कमान युवा महिलाओं के हाथों में है.बस्तर की आदिवासी महिलाएं बड़ी मेहनती हैं.हाड़तोड़ मेहनत करना और पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेती किसानी से लेकर वनोपज एकत्र करना, हाट बाजारों में बेचने के अलावा घर गृहस्थी और बाल बच्चे संभालना उनका यह स्थायी गुण है.विषम परिस्थितियों में नहीं घबराना आदिवासी महिलाओं की विशेषता है.आदिवासी महिलाओं की यही विशेषता लालगलियारे की जरूरत बन गया.आदिवासी औरतों में अनुशासन और किसी भी काम को मन लगाकर करने की इच्छा शक्ति बहुत तेज होती है.उनकी इस खूबी का इस्तेेमाल माओवादी नेताओं ने किया और उन्हें खूंखार छापामार बना दिए.पैसा और टेर्रर की वजह से भी आदिवासी महिलायें अब नक्सली मूवमेंट को अंजाम दे रही हैं.जंगल में रहते हुए इनका आचरण जंगली हो गया है.दया और ममता से इनका कोई सरोकार नहीं रहा.पुलिस के शारीरिक और मानसिक शोषण की वजह से पुलिस की ये सख्त दुश्मन हैं.जाहिर सी बात है कि पुलिस की छवि आदिवासियों के बीच अच्छी नहीं है.हिड़मा का पुलिस ने सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसे महिला नक्सली का ड्रेस पहनाकर गोली मार दी थी.मीडिया को बाद में बताया  कि इनामी नक्सली थी.मीना खलको कांड में भी यही हुआ था.यह अलग बात है कि मानवाधिकार आयोग की जांच में खुलासा होने पर पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई हुई थी.वहीं ऐसे सैकड़ांे मामले हैं,जिसमें पुलिस के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई.वर्दी के खिलाफ नक्सली महिलायें हिंसा की नई परिभाषा गढ़ रही हैं.इनकी बर्बरता और हिंसक वारदात की वजह से पुलिस ने कई महिला नक्सलियों पर इनाम घोषित किया है.जिसमें कुमारी वनोजा पर 8 लाख,कुमारी सोढ़ी लिंगे पर 5 लाख एवं माड़वी मंगली की गिरफ्तारी पर 3 लाख रूपए का इनाम है.
नक्सली वारदात में महिलाएं
पुलिस भी मानती है कि इन 14 सालों में बड़ी संख्या में महिलाएं नक्सली दलम मेें शामिल होकर नक्सली संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई हैं.बस्तर संभाग के दरभा, भेज्जी, फरसगढ़, कुटरू, छोटेडोंगर, झारा घाटी, आवापल्ली, आमाबेड़ा, ओरछा सहित आधा दर्जन इलाकों में महिलाओं को एरिया कमांडर के पद पर तैनात कर नक्सली मूवमेंट को बढ़ाने और हिंसा फैलाने का काम सौंपा गया है. इस समय बस्तर की जेलों में लगभग 50 खूंखार महिला नक्सली कैद हैं.इनमें आधा दर्जन हार्डकोर महिला नक्सली हैं.जो नक्सलियों के बड़े मूवमेेंट को आपरेट करती थीं.छत्तीसगढ़ की ज्यादातर नक्सली वारदातांे में महिलाओं की भूमिका रही है.दरभा के झीरम घाटी पर हुए कांग्रेसियों की परिवर्तन यात्रा हमले को भी नक्सली महिला लीडरों ने अंजाम दिया था.बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा को झीरम घाटी में बेरहमी से महिला नक्सलियों ने मारा था. महिला नक्सली कर्मा को पीटते हुए सड़क से लगभग आधा किलोमीटर अन्दर ले गई थीं और इस दौरान उनके चेहरे पर चाकुओं से वार भी करती रहीं.ये क्रोध का चरम था.कई घटनाओं में महिला नक्सलियों के नाम सामने आने के बाद पुलिस ने भी अति संवेदनशील क्षेत्रों में संदिग्ध महिलाओं पर नजर रखना प्रारम्भ कर दिया है.नक्सल प्रभावित जिला सुकमा के बुरकापाल में 24 अप्रैल 2017 को माओवादी और सुरक्षा बल के जवानों के बीच हुई मुठभेड़ में तीन सैकड़ा से अधिक माओवादी थे. जिसमें से आधे से अधिक वर्दी में महिला नक्सलीं थी. जो सुरक्षा बल के जवानों पर गोलियां चला रही थीं.अविभाजित दंतेवाड़ा में 2010 में हुई नक्सली वारदात, जिसमें 76 सैनिक मारे गये थे.महिला नक्सलियों ने रैकी करके ही घटना को अंजाम दिया था.फोर्स के कैंप और हाट बजार में बड़ी असानी से महिलाएं चली जाती हैं,इसलिए भी माओवादियों ने महिलाओं की फौज तैयार की है.
बसंती का कहर
कांकेर जिले के लोहारी गांव की आठ लाख की इनामी नक्सली कमांडर संध्या उर्फ बसंती उर्फ जुरी गावड़े  2001 में नक्सलियों के बाल संगठन में शामिल हुई थी.इसके बाद संगठन में अलग-अलग जगहों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाने के बाद अपने गांव में जन मिलिशिया कमांडर के तौर पर काम कर रही थी.नक्सल नेताओं के शोषण से तंग आ कर बसंती ने आत्मसमर्पण कर दिया.उसका प्रमुख काम पुलिस पार्टी पर हमला कर हथियार लूटना, सीनियर नक्सली नेताओं की सुरक्षा करना.उसने जो गंभीर वारदात को अंजाम दिया,उसमें से दुर्गूकोन्दल, आमाबेड़ा, कोयलीबेड़ा और पखांजूर थाना क्षेत्र में कई जगह विस्फोट, आगजनी और एम्बुश लगाने की घटनाओं में शामिल.13 सितंबर 2003 दंतेवाड़ा जिले के गीदम थाने में हमला और लूट. 2007 में बीजापुर जिले के रानीबोदली कैंप पर हमला. 2010 में चिंतलनार में हमला,जिसमें 76 सैनिक मारे गये थे. 
छत्तीसगढ़ के डीजीपी दुर्गेश माधव अवस्थी कहते हैं,‘‘ बहुत सारी नक्सली वारदातों में महिला माओवादियों के हाथ होने की जानकारी मिली है.गुप्त सूचना के आधार पर आॅपरेशन चलाए हैं.2019 से अब तक हर महीने माओवादियों के कैंप पर हमले किये हैं.हमारे एक भी कैंप पर वे अब तक हमला नहीं कर पाए हैं.नक्सलियों में दहशत है.भारी संख्या में महिलाएं सरेंडर कर मुख्य धारा शामिल हुई हैं.जाहिर है कि नक्सलवाद से महिलाओं को मोहभंग होने लगा है’’.
27 जवानों की जान ली सुकाय
नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के गीदम थाना क्षेत्र से आठ लाख की इनामी नक्सली सुकाय वेट्टी सन् 2011 में एलजीएस सदस्य के रूप में नक्सली संगठन से जुड़ी.पूर्वी बस्तर डिविजन के कुआनार में एल.जी.एस. की सक्रिय सदस्य थी.सन् 2010 में मुडपाल के जंगल में पुलिस पर एम्बुश लगाकर हमला,नारायणपुर के धौड़ाई इलाके में सीआरपीएफ के जवानों पर हमला, इसमें 27 जवान शहीद हुए थे.2013 में कोंडागांव के केशकाल थाना क्षेत्र में पुलिस नक्सली मुठभेड़ में शामिल थी.
नाबालिग युवतियांे की मांग
आन्ध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई कई बड़ी नक्सली वारदातों को अंजाम देने वाली तीन लाख की इनामी नक्सली रमोली नेताम अपने पति गोंविद नेताम के साथ सरेंडर की, कहती है,’’बड़े नेता नाबालिग युवतियों को संगठन में शामिल करने का दबाव बनाते हैं.पहले युवतियों में जोश भरा जाता है कि, यह अपने लोगों के लिए हमारी लड़ाई है,लेकिन शामिल होने के बाद दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है.जुगरी निवासी छिनारी नारायणपुर मर्दापाल एलओएस सदस्य के रूप में वर्ष 2008 में भर्ती हुई थी.उसे भानपुरी एरिया कमेटी सदस्य की जिम्मेदारी दी गई थी.दोनों महिला नक्सलियों पर 50-50 हजार का इनाम था.माओवादियों को प्रेम और संतान पैदा करने की इजाजत नहीं होती.आठ लाख रूपए की इनामी नक्सली 20 वर्षीया आसमती को 10 लाख रूपए के इनामी नक्सली संपत से प्यार हो गया.इन दोनों की मुहब्बत परवान चढ ही रही थी,इसकी भनक कमेटी के सचिव राजू उर्फ रामचन्द्र रेड्डी को लग गई.दोनों को अलग कर दिया.आसमती को यह अच्छा नहंी लगा और वह घर बसाने के लिए लाल गलियारे से नाता तोड़ने के लिए संपत को विवश किया और दोनों ने हथियार डाल दिए.
भेदभाव नहीं
आदिवासी समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव की स्थिति नहीं है.समता का दर्जा दिया गया है.बस्तर में बेरोजगारी मुद्दा नहीं है.शहरी लोग और सरकारी तंत्र जब उन तक पहुंचा, तो उन्होंने बताया गया कि पिछड़े हो.रहन सहन ठीक नहीं है.कच्चे मकान में रहते हो. कपड़ा ठीक से पहनो.सरकारी पैरामीटर में वे गरीब कहे गये.आदिवासी कभी कुपोषित नहीं थे.अपनी जिन्दगी में आदिवासी महिलायें खुश थीं.इसलिए भी कि जातिगत भेदभाव उनके साथ कभी नहीं था.इसलिए भी कि सभी एक ही जाति के हैं.सवाल यह है कि फिर आदिवासी महिलाएं नक्सलवाद को आत्मसात क्यों की?देखा जाये तो बस्तर अंचल में आदिवासी संसाधन पर कब्जे की लड़ाई है.जल, जंगल,और जमीन की लड़ाई है.सरकार जल, जंगल, और जमीन पर कब्जा उद्योगपतियों को दे रही है.जबकि सदियों से इन पर आदिवासियों का कब्जा था.जंगलों को काट कर उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए सड़कंे बनाने की सरकार की नीतियों की वजह से आज हर आदिवासी को दिग्भ्रमित करने की खेल खेला जा रहा है.आन्ध्र के नक्सली नेताओं ने आकर छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज में माकपा के सिद्धांत का बीज बोया.यही वजह है कि आज छत्तीसगढ़ के 28 जिलों में 18 जिले नक्सलवाद की आग में जल रहे हैं. सरेडर करने वाली महिला नक्सलियों यह बात समझ में आ गई कि राजनीति की सत्ता बंदूक की गोली से नहीं निकलेगी.आन्ध्र के नक्सली लीडर ने उनका दैहिक और मानसिक शोषण करने का यह तरीका निकाला है.
क्यों बन रही हैं नक्सली
आदिवासी समाज की महिलायें नक्सली क्यों बन रही है?इसके पीछे एक नहीं चार प्रमुख कारण हैं.उनके घर का कोई व्यक्ति पुलिस से प्रताड़ित होकर नक्सली बन गया, तो उनके घर की महिलायें भी उनके साथ  बंदूक उठा लीं.किसी का प्रेमी नक्सली बन गया, तो वो भी नक्सली बन गई.जिस आदिवासी महिला या पुरूष का दिमाग माकपा के सिद्धांत से प्रभावित होकर परिवर्तित हो गया वो नक्सली बन गया.लेकिन इन सब कारणों के अलावा एक सबसे प्रमुख कारण वसूली को माना जा रहा है.जंगली क्षेत्र में सड़कें,पुलिया,पुल या फिर विकास के अन्य निर्माण कार्यो में लगे ठेकेदारों से वसूली करना.टेंडर के आधार पर अपना प्रतिशत तय कर रखे हैं.नहीं देने वाले ठेकेदार काम नहीं कर सकते.उनके ट्रेक्टर,जेसीबी मशीन,डंपर,वाहन आदि को नक्सली फूंक देते हैं.नक्सली दहशत अब वूसली का जरिया बन गया है.तेंदूत्ता सीजन में सबसे अधिक राशि नक्सलियों को वसूली से मिलती है.
बस्तर में कमांडेंट के पद पर रहे कमलेश कमल कहते हैं,‘‘आदिवासी महिलाओं को लगता है कि नक्सली बनना अन्य विकल्पों से बेहतर विकल्प है.भूख या फिर बेरोजगारी से मरने की जगह गोली से मर जाना ज्यादा ठीक है.नक्सली बनने के बाद समर्पण कर देने से एक निश्चत रकम मिलती है.यह लालच भी महिलाओं को नक्सली धारा की ओर खींचती है’’
कुछ जीवन में करना है.अन्याय के खिलाफ लड़ना है. आदिवासी महिलायें प्रलोभन में बड़ी आसानी से फंस जाती हैं.नक्सली ब्रेन वास करते हैं आदिवासियों का.देखिये सरकार तुम्हारे साथ कितना सौतेला व्यवहार करती है.तुम्हारे जल,जंगल और जमीन को उद्योगपतियों को देकर तुम्हें कमजोर कर रही है.तुम्हारे वन उपज पर उद्योगपति कब्जा कर रहे हैं.सरकार के खिलाफ आपकी लड़ाई हम लड़ंगे,तुम लोग हमारा सहयोग करें’’
बहरहाल अब स्थानीय महिलाएं समझ गई हैं कि माओवादी केवल उनका शारीरिक शोषण के लिए उन्हें नक्सली बनाए हैं. इस वजह से नक्सलवाद के प्रति उनमें गुस्सा है और वे सरेंडर करने की दिशा में अधिक सोचने लगी हैं. पुलिस का दबाव भी काम कर रहा है. बस्तर के आईजी विवेकानंद सिन्हा कहते हैं, स्थानीय आदिवासियों का माओवाद से मोह भंग हो रहा है.अब नक्सलाद अंतिम सांसे गिन रहा है’’.