Thursday, April 2, 2020

क्यों होते हैं नक्सली हमले?

       
     एक बार फिर सुकमा में लाल आतंक का नरसंहार ने साबित कर दिया कि नरम उपाय नाकाम हो गए हैं। सन् 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। आखिर उसके बाद से सुरक्षा बल को जवाबी कार्रवाई में कोई बड़ी सफलता क्यों नहीं मिली ?








0 रमेश तिवारी ‘‘रिपु’’
                छत्तीसगढ़ का नक्सली जिला सुकमा एक बार फिर दहशतजदा है। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। 21 मार्च को करीब तीन सौ नक्सलियों ने जवानों को चारो तरफ से घेर कर उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई। जिसमें 17 जवान शहीद हुए और 14 घायल हुए। जबकि नक्सलियों ने अपनी प्रेस नोट में कहा कि हमारे तीन कामरेड सकरू,राजेश और कामरेड सुक्कू मारे गये है। जिनका अंतिम संस्कार कर दिया गया है। डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व फोर्स) के जवानों को पहली बार इतना बड़ा नुकसान हुआ है। डीआरजी स्थानीय युवकों द्वारा बनाया गया सुरक्षा बलों का एक दल है। नक्सलियों ने इस मुठभेड़ के बाद जवानों से 16 हथियार जिसमें 11 नग ए.के 47 और 1550 कारतूस भी लूट लिए।   सवाल यह है कि आखिर कब तक शहीदों की संख्या गिनने का काम सरकार करेगी। इसलिए कि चिंतागुफा, बुर्कापाल और ताड़मेटला वह इलाका है,जहां सुरक्षा बल के जवान सबसे अधिक हताहत हुए हैं। सन् 2010 में ताडमेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। उसके बाद से जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बल को कोई बड़ी सफलता आज तक नहीं मिली। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि नक्सलियों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाने की जगह, नरम उपाय अपनाये गये। जो कि नाकाम हो चुके हैं।
देखा जाये तो पिछले तीन सालों में पुलिस प्रशासन यह बताने का प्रयास किया कि भारी संख्या में इनामी नक्सली और हार्ड कोर नक्सलियों ने समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए आत्मसमर्पण किए। इनकी संख्या तीन सौ से अधिक थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इनामी नक्सलियों ने हथियार डाले, तो फिर माओवादियों के छापामार दस्ते कहां से आ गये? सुकमा में अब भी इनका दबदबा क्यों है? जाहिर सी बात है कि, नक्सलवाद से निपटने के लिए केन्द्र सरकार से मिलने वाली राशि को गोल माल करने की यह एक बड़ी साजिश है। 
सच्चाई कुछ और
डीजीपी डी.एम अवस्थी और सरकार दावा हैं कि, आॅपरेशन प्रहार से नक्सली कमजोर हुए हैं। यदि दोनों की बातें पर यक़ीन कर लिया जाये, तो इसका मलतब यह हुआ कि नक्सलवाद अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है? इसके उलट देखा जाये, तो सच्चाई कुछ और है। जैसा कि दंतेवाड़ा की कांग्रेस विधायक देवती कर्मा कहती हैं,‘‘नक्सलवाद पहले भी था, आगे भी रहेगा। इसको खत्म करना मुश्किल हैं। क्यों कि नक्सलियों की समस्या को खत्म करना बहुत मुश्किल है’’। वहीं प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू कहते हैं,‘‘प्रदेश में जितने भी नक्सली हैं,वे आन्ध्र प्रदेश या फिर तेलंगाना के हैं। यदि वे पकड़े जाते हैं,तो छत्तीसगढ़ से नक्सल राज़ खत्म हो जायेगा। छत्तीसगढ़ का कोई भी आदिवासी नक्सली नहीं है। हमारी सरकार नक्सल समस्या से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है’’।
नक्सली वारदात में कमी आईः भूपेश
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने युगवार्ता को बताया कि,‘‘नक्सल घटनाओं में और सुरक्षाबलों की शहादत में 62 प्रतिशत एवं आम नागरिकों की हत्याओं में 48 प्रतिशत की कमी आयी है। विगत एक वर्ष में 48 नक्सली लीडर मारे गए। इन नक्सली नेताओं के ऊपर एक करोड़ 92 लाख रूपए का इनाम रखा गया था। इस दौरान 131 नक्सली लीडर गिरफ्तार किए गए। जिन पर दो करोड़ 88 लाख रूपए का इनाम था। इसी तरह 126 नक्सली लीडर आत्मसम्पर्ण किए। इन नेताओं पर दो करोड़ 85 लाख रूपए का इनाम था। पिछले एक वर्ष में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कुल 161 हथियार बरामद किए गए। इनमें एके.47, जी.3 रायफल, इंसास रायफल, एसएलआर रायफल, 303 रायफल, 9 एमएम कार्बाइन एवं पिस्टल शामिल है। नक्सल घटनाओं में वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 40 प्रतिशत की कमी आयी है। सरकार का दायित्व है कि पिछड़े इलाकों में विकास की नींव रखे और काम करे। ऐसे कड़े कदम भी उठाये जिससे नक्सली हिंसा का खात्मा भी हो.दंतेवाड़ा संहार की पुनरावृति न हो।
जंगल में सर्च ऑपरेशन
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने. बताया कि जवानों को एंबुश में फंसा कर नक्सलियों ने घटना को अंजाम दिया। पूरे बस्तर में पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) के करीब 800 हथियार बंद नक्सली हैं। जो घटना के बाद महाराष्ट्र,तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश के इलाके में चले जाते हैं। 21 मार्च को जिस नक्सली दल ने जवानों पर हमला किया, वह कंपनी नंबर एक के नक्सली हैं। जिनका लीडर हिड़मा है जिस पर 50 लाख का इनाम है। यह ताड़मेटला,बुरकापाल,झीरम सहित अन्य बड़ी वारदातों में शामिल था। बस्तर संभाग में पैरा मिलिट्री और छत्तीसगढ़ पुलिस के करीब 50 हजार जवान तैनात हैं। यानी एक नक्सली के लिए करीब 50 जवान हैं। इनामी नक्सली लीडर हिड़मा और नागेश सहित अन्य की मौजूदगी की सूचना पर सीआरपीएफ,एसटीएफ और डीआरजी के लगभग 500 जवान सर्चिग के लिए निकले थे। एल्मागुंडा के नजदीक कोराजगुड़ा पहाड़ियों में सशस्त्र बल और पुलिस की संयुक्त टीम जैसे पहुंची, नक्सलियों ने इस टीम पर तुरंत हमला बोल दिया। एल्मागुंडा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 450 किमी दूरी पर स्थित है।
सरकार सबक नहीं ली
राज्य सरकार सीआरपीएफ के जवानों का इस्तेमाल सड़क के निर्माण कार्यों की सुरक्षा के लिए करती है। जबकि सड़क निर्माण में लगे सुरक्षा बलों पर दर्जनों बार नक्सली हमला कर चुके हैं। जबकि यहां तैनात जवानों पर हमला होने की स्थिति में उन तक मदद कभी भी वक्त पर नहीं पहुंची। छत्तीसगढ़ पिछले 18 साल से नक्सलवाद से जूझ रहा है लेकिन,इतने नक्सली हमले के बाद भी सरकार कोई सबक नहीं ली। प्रदेश के 28 जिलों में 18 जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं।
सरकार हर नक्सली हमले पर यही कहती है,शहीदों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। लेकिन नक्सलवाद के खिलाफ जैसी लड़ाई लड़ी जानी चाहिए, वैसी लड़ाई अब तक नहीं लड़ी गई। जरूरी है कि नक्सलियों को मिलने वाले हथियार पर रोक लगे। 21 मार्च को हुए हमले में पता चला कि नक्सलियों को हथियार आन्ध्र और तमिलनाडु से मिलते हैं। सरकार जब कहती है कि नक्सली समस्या खत्म होने के कगार पर हैं, तो नक्सली इसकी प्रतिक्रिया में कोई गंभीर वारदात करते हैं। राज्य पुलिस के पास और केंद्रीय बलों के पास भी इंटेलिजेंस नेटवर्क है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चूक कैसे हो जाती है। जाहिर सी बात है कि दोनों में तालमेल का अभाव है। बहरहाल लाल आतंक के खिलाफ आक्रमक अभियान की जरूरत है।        
 अब तक हुई बड़ी नक्सली वारदातें
 सितम्बर 2005     गंगालूर रोड पर एंटी लैंडमाइन वाहन के ब्लास्ट में 23 जवान शहीद हुए थे।
 28 फरवरी 2006 को नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के एर्राबोर गांव में लैंडमाइन ब्लास्ट किया। जिसमें 25 लोगों की जान गई थी।
16 जुलाई 2006 को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में एक राहत शिविर पर हमला किया। जिसमें 29 लोगों की जान गई थी।
15 मार्च 2007 में नक्सलियों ने बस्तर क्षेत्र में पुलिस बेस कैंप पर करीब 350 की संख्या में हमला किया। इस हमले में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल  के 15 जवान शहीद हुए थे। 9 सलवा जुडूम के आदिवासी युवक थे। 
जुलाई 2007 एर्राबोर अंतर्गत उरपलमेटा एम्बुश में 23 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे।
अगस्त 2007 को तारमेटला में मुठभेड़ में थानेदार सहित 12 जवान शहीद हुए।
6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में एक के बाद एक ब्लास्ट किया था। जिसमें 76 जवानों को शहीद हुए थे। 
8 मई 2010 छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पुलिस की एक गाड़ी को उड़ा दिया था। जिसमें भारतीय अर्धसैनिक बल के 8 जवान शहीद हुए थे।
 25 मई साल 2013 में नक्सलियों ने दरभा की झीरम घाटी में बहुत बड़ा हमला किया। नक्सलियों के इस हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस का पूरा शीर्ष नेतृत्व खत्म हो गया था। प्रदेश कांग्रेस के 25 नेताओं की मौत हुई थी। इस हमले में विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल जैसे बड़े नेताओं को कांग्रेस ने खोया था।
28 फरवरी 2014 को नक्सल हमले में 6 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।
11 मार्च 2014 को झीरम घाटी हमले के करीब एक साल बाद नक्सलियों ने उससे कुछ ही दूरी पर एक और हमला किया। इसमें 15 जवान शहीद हुए थे। और एक ग्रामीण की भी इसमें मौत हो गई थी। 
12 अप्रैल 2014 को लोकसभा चुनाव के दौरान बीजापुर और दरभा घाटी में आईईडी ब्लास्ट में पांच जवानों समेत 14 लोगों की मौत हो गई थी। मरने वालों में सात मतदान कर्मी भी थे। 
दिसंबर 2014 सुकमा जिले के चिंतागुफा इलाके में एंटी नक्सल ऑपरेशन चला रहे सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला उस वक्त किया था, जब सीआरपीएफ के जवान अपने साथी जवानों के शव ढूंढ रहे थे। घात लगाकर किए गए इस हमले में 14 जवान शहीद और 12 घायल हुए थे।
11 मार्च 2014 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में झीरम घाटी के घने जंगलों में नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया, इसमें सीआरपीएफ के 11 जवान और 4 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। 
1 मार्च 2017 नक्सलियों के हमले में अर्धसैनिक बल के 11 कमांडो शहीद हुए थे। 3 पुलिसकर्मी घायल हुए थे।
11 मार्च 2017 सुकमा जिले में अवरुद्ध सड़कों को खाली करने के काम में जुटे सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में 11 जवान शहीद हुए और 3 से ज्यादा घायल हो गए।
25 अप्रैल  2017 को  सुकमा में हुए सीआरपीएफ के जवानों पर हमले में कुल 25 जवान शहीद हुए   और 7 जवान घायल हुए।
 24 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले में सीआरपीएफ के अधिकारी सड़क निर्माण करने वालों की रखवाली कर रहे थे। इस दौरान नक्सलियों ने अफसरों पर अटैक किया। 25 जवान शहीद हो गए और 7 घायल हुए थे।
 13 मार्च 2018  सुकमा में नक्सलियों ने बड़ा हमला कर सीआरपीएफ के 9 जवानों को मौत के घाट उतार डाला। होली के दिन सीआरपीएफ ने 10 नक्सलियों को घेरकर ढेर कर दिया था। माना जा रहा है कि ये हमला उसी का बदला था।
 27 अक्टूबर 2018 में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 4 जवान शहीद हुए थे।
 30 अक्टूबर 2018 को दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमेल में दूरदर्शन के कैमरामैन की मौत हुई और 2 जवान शहीद हुए थे।
 9 अप्रैल को नक्सलियों भाजपा विधायक भीमा मंडावी को निशाना बनाया। इस हमले में उनकी जान चली गई।