Sunday, May 16, 2021

मन से हर कोई है मंटो

 ▪️मन से हर कोई है मंटो..

सआदत हसन मंटो का अंदाजे बयां सबसे जुदा था। वे इंसानी कमजोरियों से वाकिफ़ थे। उनके अफ़साने के क़िरदार समाज के हैं। यही वजह है कि अवार्गियां, शरारतें, बदमाशियांँ, हरामीपन और निर्लजता से जुदा नहीं हैं उनके किरदार। जिस जमाने में उन्होंने ठंडा गोश्त लिखा था, उस समय समाज इतना बेशर्म नहीं था। काली सलवार या कहे बू’ और खोल दे’ जैसी कहानियों से आज का साहित्य भरा हुआ है। इंडिया टुडे पत्रिका,जो अपने आप को देश की धड़कन कहती है, बकायदा हर साल सेक्स अंक निकालता है। स्त्री और पुरूष के संबंधों को मंटो ने जो देखा वही लिखा। उन दिनों भी स्त्री-पुरूष की फैंटेसी आज से अलग नहीं थी। बस,बेपर्दा नहीं थी।


आज के इराॅटिक ‘ठंडा गोश्त’ और बू" से जुदा नहीं हैं। हैरानी वाली बात है कि इस कहानी को अश्लील कहा गया। जबकि कहानी के नायक को इंसान बनने की बहुत बड़ी सजा से गुजरना पड़ता है। इसर सिंह और कुलवंत के शारीरिक संबंध का जिक्र जिस तरह किया गया है,वह कहानी की जरूरत है। यह कहानी पुरानी मान्यताओं से पर्दा हटाती है। उसके पौरूष का प्रभावशाली बताने के लिए यह तो बताना ही पड़ेगा कि वो पहले कैसेे था। मंटो कहते हैं, इस कहानी का मामला अदालत पहुंँच कर मेरा भुरकस निकाल दिया।


‘खोल दो’ कहानी झकझोर देती है। बेटी के दुपट्टे को बड़ी हिफाजत से रखने वाला पिता स्ट्रेचर में लाश सी पड़ी बेटी को देखकर कहता है कि मैं इसका पिता हूँ। डाॅक्टर कहता है कि खिड़कियाँ खोल दो। दंगाइयों ने इतनी बार बलात्कार करते हैं कि बेजान सकीना 'खोल दो’ सुनती है तो वह अपनी सलवार नीचे कर देती है। बावजूद इसके पिता के मन में खुशी की इक लहर है कि उसकी बेटी जिंदा है। दरअसल यह कहानी बताती है कि बलात्कार के बाद भी जीवन समाप्त नहीं होता। अवसाद में जाने की बजाय फिर से जीने की हिम्मत करें।


सच तो यह है कि आज भी हर लेखक मन से थोड़ा थोड़ा मंटो हैं। उनकी कहानी में काली सलवार,बू और धुंआ किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। ’बू‘ कहानी जैसी तन्हाई से केवल मर्द ही नहीं, महिलाएं भी उकताती हैं। यह अलग बात है कि कहानी बू 'पर तो डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के तहत भी मुकदमा चला।


मेरा मानना है कि मंटो को बदनाम करने वालों की लाॅबी दरअसल मंटो को बदनाम नहीं, बल्कि मशहूर करने के लिए उन्हें कोर्ट तक घसीटा। 


 बहरहाल ‘काली सलवार’ और ‘बू’ पर चलाये गये मुकदमों में जहां मंटो को बरी किया गया वहीं ‘धुआं’ को लेकर उनकी पहले गिरफ्तारी और जमानत फिर बाद में मुकदमे के फैसले के दौरान दो सौ रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई। मंटो होना इतना आसान नहीं है।

@ रमेश कुमार "रिपु"