Saturday, April 15, 2023

झूठे इतिहास का बहुत जरूरी है आपरेशन

'वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने इतिहास को अपने विचारों की प्रयोगशाला बना दिया। मुगल शासक
ों की क्रूरता और अत्याचार को ढकने में अपनी सारी बौद्धिकता लगा दी। मुगल बादशाहों को इतिहास में नेक दिल और अच्छा इंसान बताने की साजिश की गयी है। इतिहास का सिर्फ आॅपरेशन ही नही बल्कि,नए सिरे से लिखा जाना जरूरी है। क्यों कि पुराना इतिहास केवल झूठ का पुलिंदा है।' 0 रमेश कुमार' रिपु ' एनसीइआरटी (राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के अधिकारियों ने इतिहास की किताबों से कुछ चीजों को हटाने का फैसला किया है। उनके इस फैसले पर विवाद हो रहा है। कायदे से पूरा इतिहास नए सिरे से लिखा जाना चाहिए। इसलिए कि वामपंथी इतिहासकारों ने झूठा इतिहास खूब लिखा है। यहां तक लिखा है कि मुगल दौर में एक भी मंदिर नहीं तोड़ा गया था। आज के दौर में कोई भी बच्चा यह मानने को तैयार नहीं है। इतिहास का अपना सच और झूठ दोनों है। देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी हमारे बच्चे इतिहास का झूठ क्यों पढ़ें? यानी अमृत महोत्सव के दौर में क्यों पढ़ा जाए कि अकबर महान था। जो जीता वही सिंकदर। औरंगजेब की बर्बरता को नजर अंदाज क्यों किया जाए। धर्म परिवर्तन नहीं करने पर 1704 में श्री गोविंद सिंह के दो पुत्रों, साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को मुगल शासक ने ईंटों की दीवार में चुनवा दिया था। हूमायू की झूठी गाथाएं हमारे बच्चे क्यों पढ़ें? सोमनाथ का मंदिर लूटने वाले मुहम्मद गजनवी की महिमा मंडित क्यों? कारीगरों के हाथ कटवा देने वाले शाहजहां को अपनी बेगम मुमताज का बहुत बड़ा प्रेमी बताने की झूठी कहानी क्यों पढ़ी जाए? वामपंथी इतिहासकारों ने दक्षिण के राजाओं,राजवंशों का इतिहास लिखा ही नहीं। चोल राजाओं ने एक हजार साल तक राज किया था। पुराने इतिहास में मुगल दौर को ज्यादा अहमियत दी गई। जबकि मुगलों का सिर्फ तीन सौ साल का इतिहास है। प्राचीन इतिहास में मुगल दौर की जितनी भी झूठी गाथाएं हैं,उन्हें हटा कर नए सिरे से इतिहास लिखा जाना चाहिए। शाहजहां और मुमताज में नहीं था प्रेम - आज भी यही कहा जाता है कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनाया। जबकि इतिहास में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिलता कि शाहजहां और मुमताज में कोई प्रेम था। इसके विपरीत जहांगीर और नूर जहांँ में प्रेम था। अपनी पत्नी से प्रेम करने वाला शासक प्रतिभावान कारीगरों के हाथ कटवा दे,उसे कला का संरक्षक नहीं कहा जा सकता। शाहजहां अहंकारी और अत्याचारी शासक था। मुमताज के दफनाने की तिथि का उल्लेख नहीं मिलता है। भिन्न-भिन्न तिथियांँ है। ताजमहल कब बना, इसकी कोई तारीख तय नहीं है। टेवर नियर भारत में 1641 में आया था। मुमताज की मौत के ग्यारह वर्ष बाद। तब तक ताजमहल नहीं बना था। वह ताजमहल बनते देखा है। टेवर नियर 1641 से 1668 तक भारत में था। जय सिंह का,पैतृक राजा प्रसाद ले लिया गया था और मुमताज की मौत के बाद उसे उस में दफनाया गया था। पहले मंदिर था जामा मस्जिद - दिल्ली के संदर्भ में यही बताया जाता है कि पुरानी दिल्ली की स्थापना 15वीं शताब्दी में बादशाह शाहजहाँ ने की थी। जबकि तैमूरलंग जिसने सन् 1338 ई० के क्रिसमस के दिनों में दिल्ली पर आक्रमण किया था। कत्ले आम उसने पुरानी दिल्ली में ही किये थे। पुरानी दिल्ली का प्रमुख मन्दिर तैमूरलंग के आक्रमण काल में ही मस्जिद में बदल गया था। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हिन्दू लोग उस भवन में अपनी स्वेच्छा से एकत्र न हुए होते। आज जिसे जामा मस्जिद नाम से पुकारा जाता है वो एक हिन्दू मंदिर ही था। इतिहासकारों ने बता दिया कि इसे शाहजहां ने बनवाया था। मंदिर था निजामुद्दीन का मकबरा -दिल्ली में निजामुद्दीन का मकबरा कहलाने वाली इमारत कभी हिंदुओं का मंदिर था। इस पर पंचरत्न के पांच गुंबज हैं। आज भी पंच, पंचामृत, पंचगनी आदि के महत्व को हिन्दू जानते है। इमारत गेहुए रंग के पत्थर की बनी हुई है। जो हिंदू ध्वज का रंग है। अंदर एक विशाल बावड़ी है। उस के तल में हिंदू मूर्तियां पड़ी मिलेंगी। इस्लामी हमलावरों ने मंदिरों से उखाड़ कर उसमें फिकवा दी। हैरानी वाली बात है कि जब तक निजामुद्दीन थे उनका कोई महत्व नहीं था। उनके मौत के बाद महल कोई क्यों बनवाएगा? सिंकदर नहीं था महान - इतिहास में लिखा है सिंकदर महान था। उसने चाणक्य के साथी पोरस को हरा दिया। क्या पोरस महान नहीं था? यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर को महान बताने के लिए लिख दिया कि जो जीता वही सिंकदर। भारतीय इतिहासकार यही लिखते,जो जीता वही पोरस। सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात अपने सौतेले और चचेरे भाइयों का कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिंहासन पर बैठा था। अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला। यूनान के मकदूनिया का राजा सिकंदर कभी भी महान नहीं था। यूनानी योद्धा सिकंदर एक क्रूर अत्याचारी और शराब पीने वाला व्यक्ति था। सिकंदर ने कभी भी उदारता नहीं दिखाई। प्रसिद्ध इतिहासकार एर्रियन लिखते हैं, जब बैक्ट्रिया के राजा बसूस को बंदी बनाकर लाया गया। तब सिकंदर ने उनको कोड़े लगवाए और उनका नाक-कान कटवा दिया । कुछ दिनों बाद उनकी हत्या करवा दिया। उसने अपने गुरु अरस्तू के भतीजे कलास्थनीज को मारने में संकोच नहीं किया। ऐसे व्यक्ति को महान कैसे कह सकते हैं? सच यह है कि यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में झूठ लिख कर अपने महान योद्धा और देश के सम्मान को बचाया। ज्ञानी नहीं थे मौलाना आजाद - इतिहासकार ठाकुर रामसिंह शेखावत के अनुसार देश के पहले शिक्षामंत्री मौलाना आजाद को भारतीय संस्कृति का ज्ञान नहीं था। उनके एवं उनके बाद बने मुस्लिम शिक्षामंत्रियों के इशारे पर योजनाबद्ध तरीके से इतिहास में काफी फेरबदल किया गया। रामसिंह अंग्रेज इतिहास बिनसेंट स्मिथ का हवाला देते हुए कहते हैं, कि सारंगपुर विजय के बाद मुगल सिपहसालार आसफ खां ने अकबर को चिट्ठी लिखी थी कि मालवा और निमाड़ को हिन्दूविहीन कर दिया गया है। इस चिट्ठी का उल्लेख स्मिथ की पुस्तक में है। क्रूर था अकबर - अकबर के लिए पहली बार महान शब्द का संबोधन एक पुर्तगाली पादरी ने किया था। अकबर इतना क्रूर था कि आत्मसमर्पण करने वाले इस्लाम कबूल नहीं करते थे,उन्हें मौत के घाट उतार देता था। अकबर एक धूर्त बादशाह था। यह अलग बात है,कि टी.वी. और फिल्मों में अकबर और जोधाबाई के प्रेम प्रसंग दिखाए जाते हैं। जबकि हकीकत में जोधा से अकबर की शादी नहीं हुई थी। उसका भाई भारमल का बेटा भूपत उसका डोला अकबर के खेमे में छोड़ गया था। अबुल फजल ने भी एक जगह उल्लेख किया है कि जोधा को एक बार ही आगरा के महल से बाहर निकलने दिया गया। उसका भाई अकबर को बचाते हुए मारा गया था। बख्तियार के नाम रेल्वे स्टेशन -दुनिया का सबसे अधिक समृद्ध विश्वविद्यालय नालंदा की किताबों से और उसके विचारों से आपत्ति करने वाले मुगल शासक बख्तियार खिलजी ने उसे जला दिया। कई महीने तक किताबें जलती रहीं। दुनिया में इतिहास का ज्ञान रखने वाला नालंदा विश्वविद्यालय खाक हो गया। ज्ञान के दुश्मन का महिमा मंडित करने वाले का इतिहास क्यों पढ़ा जाए? नए जमाने की पीढ़ी को ऐसी शख्सियत से क्या मिलेगा। इतिहास में खलनायक वाले पात्र अनेक हैं। हैरानी की बात है बख्तियार के नाम का बख्तियारपुर रेल्वे स्टेशन अब भी है। वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने इतिहास को अपने विचारों की प्रयोगशाला बना दिया। मुगल शासकों की क्रूरता और अत्याचार को ढकने में अपनी सारी बौद्धिकता लगा दी। मुगल बादशाहों को इतिहास में नेक दिल और अच्छा इंसान बताने की साजिश की गयी है। क्यों कि पुराना इतिहास केवल झूठ का पुलिंदा है। मुगलिया सलतनत ने देश की संस्कृति और उसके गौरव के साथ खिलवाड़ किया। फिर भी उनकी महिमा मंडन इतिहास में है। इसलिए झूठे इतिहास का आॅपरेशन जरूरी है।

Saturday, April 1, 2023

क्या छत्तीसगढ़ के नक्सली‘कांग्रेसी’ हो गए..?

सिलगेर जैसी घटना की पुनरावृति चाहे जितनी बार हो, नक्सली नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बने। इसलिए एक बार फिर लाल सलाम के निशाने पर भाजपाई हैं। और माओवादी कांग्रेस नेता राजबब्बर की कही बात को अमल में लाने बीजेपी नेताओं की हत्या कर क्रांतिकार बनने में लगे हैं। 0 रमेश कुमार ‘रिपु’ कांग्रेस नेता राजबब्बर ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस भवन में 4 नवम्बर 2018 को कहा था,‘‘नक्सली क्रांतिकारी हैं। वे क्रांति करने निकले हैं। उन्हें कोई रोके नहीं।’’ तो क्या यह मान लिया जाए कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी नेताओं की हत्या कर के नक्सली क्रांतिकारी बनना चाहते हैं। या छत्तीसगढ़ के नक्सली अपनी विचार धारा बदल लिए है। अब वे भाकपा का चोला उतार कर कांग्रेसी हो गए हैं। यह सवाल छत्तीसगढ़ में पिछले एक माह में उनके द्वारा चार भाजपा नेताओं की हत्या पर उठा है। अभी तक यही कहा जाता था कि नक्सलियों की अपनी सोच है। विचार धारा है। वे सरकार के दुश्मन हैं। वे अपनी जनताना सरकार चलाते हैं। अब वे बदल गए हैं। इसीलिए जितना उपद्रव बीजेपी के शासन मे ंकिया उतना कांग्रेस के शासन में नहीं। वे एकदम से चुप बैठ गए हैं,ऐसा भी नहीं है। वारदात करके अपने होने का एहसास कराते रहते हैं। सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव ने संसद में बीजेपी नेताओं की हत्या का मामला उठाया तो प्रदेश में राजनीति गरमा गई। बीजेपी मंडल अध्यक्ष नीलकंठ ककेम की घर में घुसकर नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी। दूसरी घटना नारायणपुर जिले के छोटे डोंगर में बीजेपी जिला उपाध्यक्ष सागर साहू की माओवादियों ने घर में हत्या की। तीसरी घटना दंतेवाड़ा जिले के हितामेटा गांव की है। पूर्व सरपंच और बीजेपी के सक्रिय नेता रामधर अलामी की हत्या की। इसके पहले बस्तर जिले के बास्तानार इलाके में भी बीजेपी जिला महामंत्री बुधराम करटम की हत्या की। हालांकि बस्तर पुलिस ने भाजपा के जिला महामंत्री के मौत को दुर्घटना बताया है। वहीं भूपेश सरकार का दावा है राज्य में नक्सली वारदातों में भारी कमी आई है। पहले जहांँ आए दिन नक्सली वारदातें हुआ करती थी,अब थम गयी है। सवाल यह है,कि अब नक्सली नरम किसके लिए हुए हैं। राजनीतिक सवाल कई हैं। उन्हीं सवालों में एक सवाल यह है,कि भूपेश सरकार नक्सलियों पर नकेल लगाने में कामयाब हो गई है तो फिर लाल सलाम के निशाने पर बीजेपी नेता ही क्यों हैं? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं,बीजेपी चाहे तो एनआइए से जांच करा ले। नक्सलियों ने अपनी रणनीति बदली है। वे पहले हमला करते थे,अब घर में जाकर हत्या करने लगे हैं। वे कमजोर हुए हैं। रिकार्ड देख सकते हैं,हमने छह सौ गांवों को नक्सली मुक्त कराया है। तीन सौ स्कूल फिर से प्रारंभ किए गए हैं। सरकार किसी भी पार्टी की हो,नक्सली बंदूक से निकली गोली,‘मौत का वारंट’ बनी। छत्तीसगढ़ के दूर अंचलों में क्रांति के नाम पर लाल गलियारे में धधक रही आग में भी दहशत की कहानी है। यह आग सरकार विरोधी है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी हिंसा के फैलाव को कम करने के मक़सद से सलवा जुडूम शुरू न किया गया होता, तो शायद माओवादियों के निशाने पर राजनीतिक दलों के नेता न होते। सलवा जुड़ूम ने माओवादियों को आक्रोशित कर दिया। सलवा जुडूम की वजह से 25 मई 2013 को नक्सलियों ने झीरम कांँड किया। नक्सलियों ने 32 कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बर्बरता पूर्वक हत्या की थी। यह वारदात बड़ी भयावह थी। झीरम कांँड के चार साल बाद नक्सलियों ने बीजेपी नेताओं को धमकाना शुरू कर दिया था। पुलिस के हत्थे चढ़ा तीन लाख का इनामी कुख्यात माओवादी मद्देड़ एल.जी.एस कमांडर राकेश सोढ़ी 23 जून 2017 को खुलासा किया,कि वन मंत्री महेश गागड़ा माओवादियों की हिटलिस्ट में हैं। महेश गागड़ा घोर नक्सल प्रभावित इलाके बीजापुर में रहते हैं। उन्हें मारने के लिए सेन्ट्रल कमेटी ने आदेश जारी किया था। नक्सली राकेश सोढ़ी के खुलासे पर पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह ने वन मंत्री की सुरक्षा बढ़ा दी थी। नक्सली राकेश सोढ़ी के मुताबिक माओवादियों के खिलाफ़ आॅपरेशन से सेन्ट्रल कमेटी के नेता नाराज़ हैं। ‘आॅपरेशन प्रहार’ को रोकने सेन्ट्रल कमेटी ने बीजेपी के नेताओं की हत्या की योजना बना रहे हैं।’’ नक्सली राकेश सोंढ़ी के मुताबिक मद्देड़ जिला पंचायत सदस्य और बीजेपी नेता की हत्या माओवादी कमांडर नागेश के कहने पर की गई थी। किरंदुल थाने के चोलनार में नक्सलियों ने पूर्व जनपद अध्यक्ष और कांग्रेस नेता छन्नूराम की 26 जून 2017 की रात चाकू और कुल्हाड़ी से हत्या कर दी। वे नक्सली हमले में शहीद महेंद्र कर्मा के करीबी थे। उस समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा,‘‘बस्तर में कांग्रेसी सुरक्षित नहीं हैं। चुनाव आते ही कांग्रेस नेताओं की हत्या बस्तर में शुरू हो जाती है। राज्य सरकार सुरक्षा दे पाने में नाकाम है।’’ डाॅ रमन सिंह के समय नक्सलियों ने एक फ़रमान जारी किया था,कि भाजपा नेता,भाजपा छोड़ें और सरकार की तारीफ करना बंद करें अन्यथा उनकी जान की ख़ैर नहीं है। डाॅ रमन सिंह के समय भी बीजेपी के 35 लोग पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिए थे। भाजपा के दो जिला पंचायत सदस्यों को नक्सलियों ने गोली मार दी थी। बस्तर में माओवादियों ने 2018 के चुनाव के डेढ़ साल पहले से बीजापुर से बीजेपी को खत्म करने अपने अभियान की शुरूआत कर दी थी। बीजापुर के ग्रामीण क्षेत्रों के बीजेपी नेताओं को अल्टीमेटम दिया कि वे बीजेपी छोड़ दें। भोपालपटनम के भाजपा नेता मज्जी रामसाय और बोरगुड़ा के सरपंच यालम नारायण की नक्सलियों ने हत्या कर यह बता दिया, कि उनके फ़रमान को नकारना ठीक नहीं है। इसके बाद वनमंत्री महेश गागड़ा के काफिले पर पैगड़पल्ली के निकट हुए हमले में जिला पंचायत सदस्य रमेश पुजारी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। महेश गागड़ा के ही करीबी भाजयुमो अध्यक्ष मुरली कृष्ण नायडू पर भी हमला किया था। मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह के लोक सुराज अभियान के दौरान 2016 में 28 अप्रैल को जब वे भोपालपटनम और तिमेड़ पहुंचे, तो दहशत के चलते क्षेत्र का कोई भी भाजपा पदाधिकारी उनसे मिलने नहीं गया था। भारतीय जनता युवा मोर्चा के बीजापुर जिला अध्यक्ष रह चुके, जगदीश कोंड्रा की नक्सलियों ने कुल्हाड़ी से 27 मार्च 2018 को हत्या कर दी थी। सिलगेर जैसी घटना की पुनरावृति चाहे जितनी बार हो, नक्सली नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बने। इसलिए एक बार फिर लाल सलाम के निशाने पर भाजपाई हैं। और माओवादी कांग्रेस नेता राजबब्बर की कही बात को अमल में लाने बीजेपी नेताओं की हत्या कर क्रांतिकार बनने में लगे हैं।